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शनिवार, जून 18, 2011

आज़ दो प्रेम गीत इधर भी

तुम बात करो मैं गीत लिखूं
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कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो
कुछ ताने बाने अब तो बुनो
जो बीत गया वो सपना था-
जो आज़ सहज वो अपना है
तुम अलख निरंजित हो मुझमें
मन चाहे मैं तुम को भी दिखूं
            तुम बात करो मैं गीत लिखूं
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तुम गहराई  सागर सी
भर दो प्रिय मेरी गागर भी
रिस रिस के छाजल रीत गई
संग साथ चलो दो जीत नई
इसके आगे कुछ कह न सकूं
         तुम बात करो मैं गीत लिखूं
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तुमको को होगा इंतज़ार
मन भीगे आऎ कब फ़ुहार..?
न मिल मिल पाए तो मत रोना
ये नेह रहेगा फ़िर उधार..!
मैं नेह मंत्र की माल जपूं
         तुम बात करो मैं गीत लिखूं
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रुक जाओ मिलना है तुमसे , मत जाओ यूं जाल बिछाके


तुम संग नेह के भाव जगाके
बैठ थे हम   पलक भिगाके
कागा शोर करे नीम पर -
मीत मिलन की आस जगाके
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नेह निवाले तुम बिन कड़्वे
उत्सव सब सूने लगते हैं,
तुम क्या जानो विरह की पीडा
मन रोता जब सब हंसते हैं.
क्यों आए मेरे जीवन में- आशाओं का थाल सजाके.
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ज़टिल भले हों जाएं हर क्षण
पर  तुम  हो मेरे  सच्चे  प्रण..!
जब भी मुझको स्वीकारोगे-
तब होंगे मदिर मधुर क्षण..!!
रुक जाओ मिलना है तुमसे , मत जाओ यूं जाल बिछाके

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