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रविवार, अगस्त 21, 2011

आप किनके साथ है ?

 प्रस्तुत है एक कविता डॉ. हरिवंशराय बच्चन जी की ---

किरन बेदी को जिसने देश को एक नई दिशा दी


Find Kiran Online | Kiran Bedi जी आप चाहें तो किरन बेदी के ब्लाग का भ्रमण कर सकते हैं

Crane Bedi

एक ताक़त हैं इस युग का सबसे ज़रूरी व्यक्तित्व. वे अपने ब्लाग पर लिखतीं है :-
The moniker of "Crane Bedi" that I got during my stint with Delhi Traffic Police forms the essence of this blog. A crane removes obstacles-something I have tried to do all my life. Scores of people have urged me to share with them my experiences. Now, at the behest of my two daughters (yes, I have two, one is my godchild), I have decided to keep up with the times. This will serve as a platform to share, narrate and interact with you. "It's always possible"...even for a 57-year old to blog!
        
                               किरन बेदी को  जिसे देश को एक नई दिशा दी  


शुक्रवार, अगस्त 19, 2011

ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !!


साभार : आई बी एन ख़बर

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआं,पण्डित भया न कोय
ढाई आखर “अन्ना” का पढ़ा वो पण्डित होय !!

वो जिसने बदली फ़िज़ा यहां की उसी के सज़दे में सर झुका ये
तू कितने सर अब क़लम करेगा, ये जो कटा तो वो इक उठा है
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तेरी हक़ीक़त  तेरी तिज़ारत  तेरी सियासत, तुझे मुबारक़--
नज़र में तेरी हैं हम जो तिनके,तो देख ले अब हमारी ताक़त !!
कि पत्ता-पत्ता हवा चली है.. तू जा निकल जा बदन छिपा के !!
                          वो जिसने बदली फ़िज़ा यहां की उसी के सज़दे में सर झुका ये
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थी तेरी साज़िश कि टुकड़े-टुकड़े हुआ था भारत, वही जुड़ा है
तेरे तिलिस्मी भरम से बचके, हक़ीक़तों की तरफ़ मुड़ा है....!!
                         अब आगे आके तू सर झुक़ा ले..या आख़िरी तू रज़ा बता दे ..?
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ये जो हक़ीक़त का कारवां हैं,तेरी मुसीबत का आसमां है
कि अपनी सूरत संवार आके, हमारे हाथों में आईना है..!
                        अग़रचे तुझमें नहीं है हिम्मत,तो घर चला जा..या मुंह छिपा ले !
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बुधवार, अगस्त 17, 2011

इतिहास तमाशबीनों का नहीं होता…. ..अविनाश दास


   मेरे नेटिया मित्र अविनाश दास ने अपनी बात में सभी को सजग कर दिया कि किसी भी स्थिति में तमाशबीन महत्व हीन हो जाते हैं इतिहास के लिये.. अविनाश की बात के पीछे से एक ललकार सुनाई दे रही है कि... आंदोलन यानी बदलाव के लिये की गई कोशिश कमज़ोर न हो..
यह किसी आंदोलन में विश्‍वास करने या न करने का समय नहीं है। समय है, इस उबाल को व्‍यवस्‍था के खिलाफ एक सटीक प्रतिरोध में बदल देने का । जिन्‍हें अन्‍ना से दिक्‍कत है, वे अन्‍ना का नाम न लें, लेकिन सड़क पर तो उतरें । जिन्‍हें लोकपाल-जनलोकपाल से दिक्‍कत है, वे इस जनगोलबंदी को एक नयी दिशा देने के लिए तो आगे बढ़ें। इतिहास तमाशबीनों का नहीं होता….” अविनाश का कथन एक वास्तविकता है.
अनपढ़ ग़रीब तबका जिसे ये बात समझने का सामार्थ्य नहीं रखता पर वो ये बात जानता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक जुट होना ज़रूरी है ऐसा जैसे आज़ादी के वक़्त हुआ था वही सब हो रहा है. गांधी सहित सभी समकालीन आईकान्स के संदेशों में क्या था यही न कि :-अंग्रेज़ों से मुक्ति के लिये एकता ज़रूरी है बस इसी संदेश ने एक तार में पिरो दिया लोग गोलबंद हो गए.. और शुरु हो गया परदेशियों को भगाने का अभियान.
सूरत वाली नेटिया मित्र से मिली खबर में पता चता चला कि रविशंकर भी दूसरी पारी के लिये सहयोगियों को बुला रहें हैं. यानी सिलसिला जारी रहेगा. रुकेगा नहीं. सवाल तो ये भी होंगे कि (कदाचित हैं भी ) : क्या अन्ना के जनलोक पाल बिल से तस्वीर बदल जाएगी..?’
सच तो ये है कि अन्ना एण्ड कम्पनी के बिल से तस्वीर बदलने न बदलने पर परिसंवाद से ज़्यादा ज़रूरत इस बात को समझ लेने की है कि:-अब जनता भ्रष्ट आचरण से मुक्ति चाहती है..! इतना ही काफ़ी है. इस गोलबंदी में जो तस्वीर उभर के आ रही है उससे साफ़ है कि- आंदोलित किया नहीं जा रहा बल्कि भारत के उजले कल की तस्वीर देखने वाली आम जनता को रास्ता मिल गया.इतना ही काफ़ी था . उसे (जनता को ) न तो अन्ना ने भड़काया न केजरीवाल ने उकसाया, किरण बेदी और रविशंकर जी का हाथ है इसमें.. बस इतना जानिये ये आवाज़ बरसों से दिल में गूंज रही थी.. खासकर मध्यम वर्ग के जो मुखर हो गई है अब.
            संसद को क़ानून बनाने के अधिकार की बात को आधार बनाया गया जनता के इस आंदोलन के संदर्भ में. सही है तो ये भी सही है कि प्राप्त अधिकार जेबी घड़ी नहीं हो सकते. एक पिता अगर अपनी संतान को प्राकृतिक अधिकार प्राप्त होने के बावज़ूद उपेक्षित करे तो पिता के खिलाफ़ की गई बग़ावत को रोकना असंभव है. 
            मेरी नज़र में जो भी चल रहा है  अन्ना वर्सेस सरकार जैसा कोई भी झगड़ा नहीं है बल्कि एक जनजागरण है एक सिंहनाद है एक हुंकार है जो देर सबेर सामने आती ही . 

मंगलवार, अगस्त 16, 2011

अन्ना गांधी वर्सेस ..अदर.गांधी....भाग दो

अन्ना की कहानी अन्ना की जुबानी
वो लोग जो  लोग को पसंद नहीं करते हैं वो मानतें हैं कि अन्ना हज़ारे "व्यक्तिवादी हैं." अन्ना की शिक़ायत करते हुए कोई कह रहें हैं कि अन्ना एक  के इर्द गिर्द अराज़कों का जमवाड़ा है..
आप खुद देखिये यहां  
अन्ना के लिये लोग जो भी कहें या अन्ना अपने बारे में जो भी कहें.. एक बात तो सही है
"होना तय है क्योंकि भ्रष्टाचार है ही अति संवेदन शील मुद्दा "

सोमवार, अगस्त 15, 2011

अन्ना हज़ारे को समर्पित समर्थन-गीत : वो जो गा रहा है वह भी तो है राष्ट्र गीत..!



आज़ वक़्त है सही.......
हज़ारों को तू पाठ दे .
सोच मत कि क्या बुरा 
क्या भला है मेरे मीत
हिम्मतवर की ही 
होती  है सदा ही जीत.!

सोच मत कि क्या
                                                          करेगा  लोकपाल 
                                                          सोच मत कि
इंतज़ाम झोल-झाल ,
ऊपरी कमाई बिन
कैसा होगा अपना हाल !
वक़्त शेष है अभी 
सारे काम टाल दे !
जेब भर तिज़ोरी भर
बोरे भर के नोट भर ,
खैंच हैंच फ़ावड़े से
या यंत्र का प्रयोग कर !
सवाल पे भी नोट ले
जवाब के भी नोट ले !
ले सप्रेम भेंट मीत -
परा ज़रा सी ओट से !
किसने धन से जीतीं है
हज़ारों दिल की धड़कनें.!
मुफ़लिसी के दौर में 
पुख़्ता होती हैं जड़ें..!!
मेरी बात मान ले ...
मीत अब तू ठान ले
क्यों अभी तलक तू चुप
आगे आ उफ़ान ले..
क्यों तुझे देश के दुश्मनों
से प्रीत मीत
वो जो गा रहा है
वह भी तो है राष्ट्र गीत..!!
न ओट से तू नोट ले
न बोरे भर के नोट ले
न सवाल न ज़वाब
किसी वज़ह से नोट ले
न वोट के तू नोट ले
न खोट के तू वोट ले..!
न किसी ग़रीब को
लूट ओ’ खसोट ले..!!
भोर पहली बार की
भोर तेरे द्वार की
आज़ देश में हुई
भोर मददगार सी..!!
भूमिका में आजा मीत
अब तो समझदार की..!!

लोकतंत्र को आलोक-तंत्र बनाने की कवायद

लोकतंत्र को 

आलोक-तंत्र बनाने की कवायद करता.
भारत पैंसठ साल का  बुड्ढा..  हो गया..
अपनी पुरानी यादों में खो गया.......!!
दीवारों पर कांपते हाथों से लिख रहा था 
"आलोक-तंत्र"
लोग भी आये आगे 
बूढ़े का मज़ाक  उड़ा कर भागे..!!
कुछ खड़े रहे मूक दर्शक बन ..!
कुछ गा रहे थे बस हम ही हम..!! 

कोलाहल तेज़ हुआ फ़िर बेतहाशा 
हर ओर नज़र छाने लगी निराशा !
सबकी अलग थलग थी भाषा-
कांप रही थी बच्चों की जिग्यासा !!
कल क्या होगा.. सोच रहे थे बच्चे 
एक बूड़ा़ बोला :-"भागो किसी लंगड़े की पीठ पे लद के ही "
जान बचाओ.. छिप छिपाकर.. 
हमें नहीं चाहिये न्याय
क्या करेंगें स्विस का पैसा लेकर 
फ़हराने दो उनको तिरंगा ये
है उनका
संवैधानिक अधिकार...
रामदेव..अन्ना... सब कर रहे
शब्दों का व्यापार..
अरे छोड़ो न यार
फ़िज़ूल में मत करो वक्त बरबाद..
गूंगे फ़रियादीयो कैसे बोलोगे
बहरी व्यवस्था की भी तो कोई मज़बूरी है
वो कानों से देखेगी...!!
सदन में चीत्कारेंते हैं..
हमारे लिये हां..ये वही लोग हैं जो
सड़क पर दुत्कारतें हैं...
पूरे तो होने दो पांच साल
बदल देना
इस बरगद की छाल...
अभी चलो घर चलतें हैं..

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