सुनिए एक नज़्म---(आभार शरद जी का सुधार करवाने के लिए....मगर संगीत कहाँ से लाउं???)
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शुक्रवार, अक्टूबर 22, 2010
बुधवार, अक्टूबर 20, 2010
एक अपसगुन हो गया. सच्ची...!
दो तीन दिन के लिए कल से प्रवास पर हूँ अत: ब्लागिंग बंद क्या पूछा न भाई टंकी पे नहीं चढा न ही ऐसा कोई इरादा अब बनाता बस यात्रा से लौटने तक . न पोस्ट पढ़ पाउंगा टिपिया ना भी मुश्किल है. सो आप सब मुझे क्षमा करना जी . निकला तो कल था घर से किंतु एक अपसगुन हो गया. सच्ची एक अफसर का फून आया बोला :-"फलां केस में कल सुनवाई है आपका होना ज़रूरी है. कल निकल जाना ! सो सोचा ठीक है. पत्नी ने नौकरी को सौतन बोला और हम दौनों वापस . सुबह अलबेला जी का फून आया खुशी हुई जानकर कि उनसे जबलपुर स्टेशन पे मुलाक़ात हो जाएगी. किंतु अदालत तो अदालत है. हमारे केस की बारी आई तब तक उनकी ट्रेन निकल चुकी थी यानी कुल मिला कर इंसान जो सोकाता है उसके अनुरूप सदा हो संभव नहीं विपरीत भी होता है. श्रीमती जी को समझाया. वे मान गईं . उनकी समझ में आ गया. आज ट्रेन से हरदा के लिए रवानगी डालने से पेश्तर मन में आया एक पोस्ट लिखूं सो भैया लिख दी अच्छी लगे तो जय राम जी की अच्छी न लगे तो राधे राधे
तो "ब्लॉगर बाबू बता रए हैं कि "Image uploads will be disabled for two hours due to maintenance at 5:00PM PDT Wednesday, Oct. 20th" सो आप सब ने देख ही लिया होगा.
रविवार, अक्टूबर 17, 2010
मानव-अधिकारों का हनन क्यों ?
भड़ास वाले ब्लॉगर यशवंत जी की माता जी के साथ जो भी हुआ है उचित कदापि नहीं. अब एक माँ को चाहिए न्याय...एक बेटी से अपेक्षा है कि वे यशवन्त जी ने पूरे आत्म नियंत्रण के साथ जो पोस्ट लिखी घटना के 72 घंटे बाद देखिये क्या हुई थी घटना :-"वो मायावती की नहीं, मेरी मां हैं. इसीलिए पुलिस वाले बिना अपराध घर से थाने ले गए. बिठाए रखा. बंधक बनाए रखा. पूरे 18 घंटे. शाम 8 से लेकर अगले दिन दोपहर 1 तक. तब तक बंधक बनाए रखा जब तक आरोपी ने सरेंडर नहीं कर दिया. आरोपी से मेरा रिश्ता ये है कि वो मेरा कजन उर्फ चचेरा भाई है. चाचा व पिताजी के चूल्हे व दीवार का अलगाव जाने कबका हो चुका है. खेत बारी सब बंट चुका है. उनका घर अलग, हम लोगों का अलग. उस शाम मां गईं थीं अपनी देवरानी उर्फ मेरी चाची से मिलने-बतियाने. उसी वक्त पुलिस आई. ये कहे जाने के बावजूद कि वो इस घर की नहीं हैं, बगल के घर की हैं, पुलिस उन्हें जीप में बिठाकर साथ ले गई. (आगे यहां से )."इस घटना का पक्ष ये है कि किन कारणों से किसी भी अपराध के आरोपी को तलाशने का तरीक़ा कितना उचित है.जबकी कानून इस बात की कितनी इज़ाज़त देता है इसे "Legal Provision regarding arrest-detention" आलेख पर देखा जा सकता है. अमिताभ ठाकुर ने अपने आलेख में कानूनी प्रावधान की व्याख्या की है. व्याख्या के अलावा सामान्य सी बात है कि किसी अपराध के आरोपी की तलाश में किसी अन्य नातेदार को जो एक प्रथक इकाई का सदस्य है वृद्ध है को पुलिस-स्टेशन में रख उसके मानव-अधिकारों का हनन किस आधार पर किया जा सकता है. ? पुलिस की इस प्रक्रिया से हम असमत हैं.
शनिवार, अक्टूबर 16, 2010
मंगलवार, अक्टूबर 12, 2010
महफ़ूज़ खतरे से बाहर
जो भी कुछ महफ़ूज़ के साथ घटा वो समाज के लिये शर्मनाक़ है इसमें कोई दो राय नहीं. सभी चिंतित हैं. कल तय शुदा सरकारी प्रसारण के चलते आज़ मुझे रिकार्डिंग पर जाना था . रिकार्डिंग रूम में घुस ही रहा था की ललित जी जी ने अपुष्ट खबर की मुझसे पुष्टि चाही. किंतु तब सम्भव न था फ़िर भी फ़ोन बुक में मौज़ूद नम्बर्स पर सीधे महफ़ूज़ को काल किया कोई बात न हो सकी. पाबला जी से चर्चा हुई पर पुष्टि नहीं हम भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि वो खबर झूठी हो . परंतु खबर सच निकली अब संतोष इस बात का है कि उनके शरीर से गोलियां निकाल दी गईं है वे बात कर पा रहें है शिवम मिश्रा जी ने बताया वे बता रहे थे कि :-"तीन जगह गोली लगी "

आ भा मिश्र ,विवेक रस्तोगी ,शरद कोकास,रश्मि रविजा ,समीर लाल ,Swapna Shail,Dr RC Mishra ,Satish Saxena ,Shivam Misra, राज भाटिय़ा . शिखा वार्षणेय सहित सारा ब्लॉग जगत स्तब्ध है और दुआ कर रहा है
आईये दुआ करें
आईये दुआ करे
उनके लिये जो
अपनों से
महफ़ूज़ न हो...!!
जो
सदा दर्द के सागर में तैरता हो
वो जिससे
कईयों का नेह भरा नाता हो
वो जो दुश्मन के भी गुण गाता हो ?
जी हां उसी अपने से पराये-आदमी की
बेहतरी के लिये
आईये दुआ करे
उनके लिये जो
अपनों से
महफ़ूज़ न हो...!!
जो
सदा दर्द के सागर में तैरता हो
वो जिससे
कईयों का नेह भरा नाता हो
वो जो दुश्मन के भी गुण गाता हो ?
जी हां उसी अपने से पराये-आदमी की
बेहतरी के लिये
आईये दुआ करे
रविवार, अक्टूबर 10, 2010
कौन है जो
साभार :गूगल बाबा के ज़रिये |
कौन है जो
आईने को आंखें तरेर रहा है
कौन है जो सब के सामने खुद को बिखेर रहा है
जो भी है एक आधा अधूरा आदमी ही तो
जिसने आज़ तक अपने सिवा किसी दो देखा नहीं
देखता भी कैसे ज्ञान के चक्षु अभी भी नहीं खुले उसके
बचपन में कुत्ते के बच्चों को देखा था उनकी ऑंखें तो खुल जातीं थी
एक-दो दिनों में
पर...................?
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