जी अब इस शहर में आइनों की कमीं को देख के मलाल होता है की क्यों लुकमान नहीं हैं साथ . बवाल हों या समीर लाल चचा लुकमान थे ही ऐसे . गोया अल्लाह ने लुकमान के लिबास में एक फ़रिश्ता भेजा था इस ज़मीं पर....जिसे मैंने छुआ था उनके चरण स्पर्श कर. दादा लुकमान की याद किसे नहीं आती . सच मेरा तो रोयाँ-रोयाँ खड़ा हो गया था .....27 जुलाई 2002 का वो दिन जब लुकमान जी ने शहर जबलपुर से शरीरी रिश्ता तोडा ........ वे जेहन से दूर कभी हो भी नहीं सकते . जाने किस माटी के बने थे जिसने देखा-सुना लट्टू हो गया . इस अद्भुत गंगो-जमुनी गायन प्रतिभा को उजागर किया पंडित भवानी प्रसाद तिवारी ने , इस बिन्दु पर वरिष्ठ साहित्यकार मोहन शशि का कहना है:-"भवानी दादा के आशीर्वाद से लुकमान का बेलौस सुर-साधक होना सम्भव हो सका धर्म गुरुओं ने भी लुकमान की कव्वालियाँ सुनी"शशि जी ने आगे बताया -"लुकमान सिर्फ़ लुकमान थे (शशि जी ने उनमें नकलीपन कभी नहीं देखा) वे मानस पुत्र थे भवानी दादा के " १४ जनवरी १९२५ (मकर संक्राति) को जन्मा यह देवपुत्र जन्म से मोमिन,था किंतु साम्प्रदायिक सदभाव का मूर्त-स्वरुप था उनका व्यक्तित्व. सिया-चरित,भरत-चरित, मैं मस्त चला हूँ मस्ती में थोडी थोडी मस्ती लेलो , माटी की गागरिया , जैसे गीत बिना किसी लुकमानी महफ़िल का पूरा होना सम्भव ही नहीं होता था।लुकमान साहब को अगर साम्प्रदायिक सौहार्द का स्तम्भ कहें तो कम न होगा। भरत चरित सुन के कितनी पलकें भीगीं किसे मालूम ? मुझे याद है कविवर रामकिशोर अग्रवाल कृत भरत चरित्र, सिया चरित,सुनने वालों की पलकें अक्सर भीग जातीं मैंने देखीं हैं . साधना उपाध्याय,मोहन शशि,स्वयं रामकिशोर अग्रवाल "मनोज", ओंकार तिवारी,रासबिहारी पांडे , बाबू लाल ठाकुर मास्साब, डाक्टर सुधीर तिवारी,और यदि लिखने बैठूं तो एक लम्बी लिस्ट है जिसे लिखना लाजिमी नहीं है.लुकमान का चचा के साथी एक बवाल दूजा डुलकिया कुबेर ,शेषाद्री एक बाजा यानी बैंजो ,और पेटी जिसे खुद चचा बजाते थे. चचा विश्व के लिए मिसाल थे हिन्दू मुसलमान ईसाई सभी चचा की गायकी मुरीद कुल मिला ले कट्टर पंथियों के गाल पे करारा तमाचा थे लुकमान.
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श्रीमती जी के साथ एक बार साहित्यिक कार्यक्रम में चचा से मिला चरण स्पर्श किया श्रीमती जी ने अनमने भाव से नमस्कार किया किन्तु ज्यों हीं उनके मुख से सिया चरित सुना तो बस गोया मन उनका कंचन सा हो गया मानो कार्यक्रम की समाप्ति पर सुलभा ने सबसे पहले चरण स्पर्श किये. हम जो चचा के चरण-स्पर्श से इतने सफल हो गए तो वे कितने सफल न हुए होंगे जिनने चचा के अंतस को स्पर्श किया होगा.
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आप सोच रहें हैं न कौन लुकमान कैसा लुकमान कहाँ का लुकमान जी हाँ इन सभी सवालों का ज़वाब उस दौर में लुकमान ने दे दिया था जब उनने पहली बार भरत-चरित गाया. और हाँ तब भी तब भी जब गाया होगा ''माटी की गागरिया '' या मस्त चला इस मस्ती से थोड़ी-थोड़ी मस्ती ले लो
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मैं इस कोशिश में हूँ कि चचा के गाये गीत आप तक शीघ्र लाऊं यदि बवाल ने मदद की तो ये संभव होगा
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पंडित लुकमान भाईजान हो विनत श्रद्धांजलियां