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बुधवार, दिसंबर 02, 2020

एक प्रधानमंत्री अंतर्राष्ट्रीय चूक

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने मंगलवार को भारत में किसानों द्वारा नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन के बारे में चिंता व्यक्त ( यूट्यूब लिंक ) की । ट्रूडो ने सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक या गुरु नानक की 551 वीं जयंती के अवसर पर कनाडाई सांसद बर्दिश चग्गर द्वारा आयोजित एक फेसबुक वीडियो कांफ्रेंस में भाग लेते हुए ये चिंता जाहिर की। उनके साथ कनाडा के मंत्री नवदीप बैंस, हरजीत सज्जन और सिख समुदाय के सदस्य शामिल थे। ट्रूडो ने कहा, “अगर मैं किसानों द्वारा विरोध के बारे में भारत से आने वाली खबरों की बात करूं स्थिति गंभीर है और हमें चिंता है। ट्रूडो ने कहा "आपको याद दिला दूं, शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार की रक्षा के लिए कनाडा हमेशा खड़ा रहेगा। हम बातचीत के महत्व पर विश्वास करते हैं और इसीलिए हम अपनी चिंताओं को उजागर करने के लिए सीधे भारतीय अधिकारियों के पास कई माध्यमों से पहुंच गए हैं।
 जस्टिन का यह भाषण केवल भारतीय मूल के कैनेडियन नागरिकों को संतुष्ट करने  वाला  वक्तव्य है जो उन्हें आगामी समय में राजनैतिक   लाभ दिला सकता है । वैसे भी कनाडा के आगामी आम चुनावों की परिस्थितियां जस्टिन  तू डूब के अनुकूल नहीं है। परंतु श्रीमती प्रियंका चतुर्वेदी जी ने जस्टिन ट्रूडो की इस हरकत पर ट्वीट करते हुए भारतीय मामलों में हस्तक्षेप ना करने की स्पष्ट  संदेश दिए  और आंतरिक मुद्दे के शीघ्र निपटान के लिए भारत के प्रधानमंत्री महोदय से  अनुरोध किया है। 
    आपको याद होगा जस्टिन ट्रूडो की 2018 वाली भारत यात्रा जिस पर यूट्यूब पर बहुत ज़बरदस्त कॉमेडी पेश करते हुए उनकी यात्रा को एक कलाकार ने डिजास्टर तक की संज्ञा दी डाली
भारत की ओर से फिल्मी कलाकार जस्टिन से मिले 

इस यात्रा को ना केवल विश्व में याद रखा है बल्कि Justin trudeau की आने वाली पीढ़ियों का इतिहास भी यही होगा।
   मुझे तो लगता है कि कैनेडियन प्रधानमंत्री के दिल का 2018 वाला
घाव अभी तक नहीं भरा है ।
  अपने ही देश में समस्याओं से घिरे जस्टिन के मुंह से भारत को नागरिक अधिकारों का ज्ञान बांटने वाले जस्टिन ट्रूडो को चाहिए कि -" खालिस्तान के समर्थकों को कनाडा आमंत्रित करें वहां की नागरिकता दें  और कनाडा को खालिस्तान के रूप में विकसित करलें । इससे बेहतर विकल्प उनके पास कोई शेष नहीं है अथवा एक और विकल्प है कि वह भारत के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करें ।  वैसे भी भारत में 1 इंच भी भूमि देशद्रोहियों के लिए अब शेष नहीं है। वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह

मंगलवार, दिसंबर 01, 2020

कोविड19 टीकाकरण के लिए 13.77 लाख से बड़ी आर्मी तैयार है !

 

हमारी सीमाओं की रक्षा करने  14 लाख से अधिक  वीर सैनिक तैनात हैं इसी तरह  भारत के सभी गांव शहर में 13 लाख 77 हज़ार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता उतनी ही हेल्पर्स एवं आशा वर्कर ऊषा वर्कर हजारों प्रोजेक्ट ऑफीसर सुपरवाइजर एएनएम भारत में कोविड-19 के लिए तैयार  और निकट भविष्य में प्राप्त होने वाले टीके आसानी से मात्र 3 से 6 माह के भीतर लगा सकने में सक्षम है। 


 1975 से प्रारंभ  icds कार्यक्रम का इतना लाभ होने का है जिसकी विश्व में परिकल्पना ही ना की होगी यह मेरा दावा है । 
बात उन दिनों की है जब हम लिटरेसी को लेकर बहुत परेशान थे गांव में साक्षरता की दर को देखकर दुख होता था 2007 आते आते हमने जब गांवों का सैंपल सर्वे किया तो पाया 2004 से 2007 तक जिस तेजी से वृद्धि हुई उसकी वजह आंगनवाड़ी केंद्रों के साथ शिक्षा विभाग का कन्वर्जेंस तेजी से बड़ा यह एक उदाहरण मात्र है यह समझने के लिए कि अगर आंगनवाड़ी केंद्रों का इंवॉल्वमेंट किसी भी मुहिम के लिए किया जाता है तो उसकी सफलता की गारंटी कोई भी ले सकता है। 1996 में जब मैं इस सेवा का हिस्सा बना तब कुपोषण गैर बराबरी अशिक्षा कुरीतियां सोशल इंटेक्स को काफी नेगेटिवली रिफ्लेक्ट  कर रहे थे। इसकी  जड़ में  अशिक्षा बड़ा योगदान था । और देखते देखते  मंजर तेजी से बदल गया। 
   राज्य सरकारों ने इस सेवा की उपयोगिता को देखते हुए बहुत तेजी से सेवा के विस्तार को अपनाया उपहार के रूप में पाया कुपोषण के मामलों में कमी इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी की संख्या में इजाफा टोटल सैनिटेशन प्रोग्राम्स के कारण सकारात्मक वातावरण  बनाने के मामलों में बढ़ोतरी । 
मुझे अच्छी तरह याद है मेरे  सिलेक्शन  मेरी सिलेक्शन में यह पूछा था - "आप और कहीं जॉब कर सकते थे आपने आईसीडीएस को क्यों चुना 
" मैंने अपनी क्रैचस दिखाते हुए कहा कि -"1963 में  पोलियो का टीका होता तो शायद मैं इन्हें यूज नहीं कर रहा होता ।
 समझ लीजिए कि दक्षिण एशिया के चीन को छोड़कर समूचे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत जैसी व्यवस्था कहीं भी नजर नहीं आ सकती यहां तक कि यूरोप के अफ्रीका के देशों में भी ऐसी शासकीय तौर पर बनाई गई व्यवस्था के बारे में कोई सोच भी ना रहा होगा और इसका फायदा हम उठा सकेंगे यह तय है कोविड-19 का वैक्सीन तो आने दीजिए ।
इन सबके साथ साथ अगर ओपिनियन लीडर पॉलीटिकल लीडर सोशल वर्कर सोशल मीडिया इस कार्यक्रम में साथ देंगे तो भारत में कोविड-19 का वैक्सीनेशन विश्व के लिए सबसे कम समय में सबसे अधिक उपलब्धियों वाले आईकॉनिक अभियान के रूप में नजर आएगा। मुझे ऐसा लगता है कि अगर आप पूरे देश को 25 दिनों में टीकाकरण करना चाहे तो भी हम अपना टारगेट आसानी से हासिल कर लेंगे। यह मेरा 30 साल की सार्वजनिक जिंदगी का अनुभव कहता है।

सोमवार, नवंबर 30, 2020

जन्मपर्व पर शुभतामय संदेशों के लिए आभार

आभार नमन 
आज पूर्णिमा है 
    ॐ रामकृष्ण हरि:

    गुरुवर का जन्मपर्व मना रहा हूँ आप सबके साथ । 

29 नवम्बर को मेरा जन्मपर्व था ।  आप सब ने मुझे व्यक्तिगत रुप से उपस्थित होकर / टेलीफोन कॉल कर/ वीडियो  आडियो के जरिए तथा सोशल मीडिया पर शुभकामनाएं देने वाले शब्दों से युक्त उत्साहवर्धक और जीवन में जीने की जिजीविषा को नव संचार देने वाली शुभकामनाएं भेजीं । कुछ टेलीफोन कॉल शाम के बाद अचानक स्वास्थ्य खराब होने के कारण मैं रिसीव नहीं कर सका ब्लड प्रेशर का अचानक बढ़ जाना जरा दुखद रहा क्षमा चाहता हूं।
आप सब के शुभकामना संदेश के प्रति एवं विविध प्रकार की कलात्मक तरीके से अभिव्यक्त भावनाओं का सम्मान करता हूं। उन बच्चों का विशेष रूप से हार्दिक आभार और उन्हें अनवरत स्नेह देना चाहता हूं जिन्होंने अपने स्वरों में गीत उच्च स्तरीय शब्दों में कविता संप्रेषित की हैं ।
जीवन का आलाप यानी मेलोडी ऑफ लाइफ़ यही है। मैं ऐसे किसी स्वर्ग की कल्पना नहीं करता जहां ग्रंथों में वर्णित दृश्य होते हैं। धरती पर ही सब कुछ है स्वर्ग भी...। सनातन अध्यात्म और दुनिया भर की विचारधाराएं अब  स्वीकारने लगी हैं कि..  स्वर्ग कहीं है तो इस धरा पर ही है। मन में मानस में चिंतन में अगर शुचिता और निष्कपट प्रेम हो तो सब कुछ संभव है हां स्वर्ग का धरा पर होना भी । गुरुदेव कहते हैं प्रेम ही संसार की नींव है..! 
           अपनी स्वर्गीय मातुश्री पिताश्री भाईयों एवं संतानों से पहले परमपिता परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ हूं जिन्होंने मुझे पृथ्वी पर अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए भेजा है। नेति नेति ब्रह्म के प्रति कृतज्ञता के साथ परिवार जन , बिल्लोरे कुटुम्ब, चौरे परिवार, बालभवन परिवार, अखिल भारतीय नार्मदीय ब्राह्मण समाज, जबलपुर इकाई साहित्य सेवी साथियों, महिला बाल विकास विभाग के सहकर्मियों स्टेडियम ग्रुप नाट्यलोक एवं जानकी रमण परिवार एवं सभी साथियों के प्रति विनम्र कृतज्ञता के साथ नतमस्तक हूं जिनकी शुभकामनाओं ने यह साबित कर दिया कि शुभकामनाएं जीवन को स्वर्ग तुल्य आनंद देती है ।  यूं तो वे कविता लिखते नहीं है लेकिन यह सत्य है कि वे कविता जीते हैं Satish Billore जी की कविता Suryansh Nema की कविता के साथ यहां प्रस्तुत है 
आपका स्नेह पात्र
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

रविवार, नवंबर 29, 2020

स्व इंदिरा जी , मोदी जी बनाम किसान आंदोलन

 किसान आंदोलन में किसान कहां है यह सोचना पड़ा जब हमने पाया कि एक बंदा यह बोल रहा था कि हमने कनाडा में जाकर सिखों को ठोका इंदिरा को ठोका मोदी को भी ठोकेंगे ....? - इससे आंदोलन की पृष्ठभूमि और आधार स्पष्ट हो चुका है। भारत की सर्वप्रिय प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी का उल्लेख कर प्रजातांत्रिक अवस्था को धमकाना यह साबित करता है कि आंदोलन का आधार और उद्देश्य किसान तो कदापि नहीं है। आंदोलन प्रजातांत्रिक जरूरत है प्रजातंत्र से अनुमति भी देता है। भारत के संविधान के प्रति हमें आभार व्यक्त करना चाहिए की भारत सरकार आंदोलनों के प्रति डिक्टेटर रवैया अपना सकें । ऐसे प्रावधान संविधान में सुनिश्चित कर दिए गए।
किसान आंदोलन का अर्थ समझने के लिए स्व. इंदिरा गांधी के लिए अपमान कारक  बाात कह देंना आंदोलन की आधार कथा कह देता है । इस वाक्य  को लिखना तक मेरे मानस को झखजोर रहा है कि -"इस तरह की भाषा का प्रयोग करना केवल खालिस्तान आंदोलन की पुनरावृत्ति है । किसी भी आंदोलन के लिए हमें भारत का संविधान स्वीकृति स्वभाविक रूप से देता है । परन्तु आंदोलन की पृष्ठभूमि जिस तरह से तैयार की गई उससे साबित हो रहा है कि देश के विरुद्ध कोई एक ऐसी ताक़त काम कर रही है जो एक बार फिर भारत को भयभीत कर देना चाहती है। 
 इस तस्वीर में भिंडरावाले का चित्र लगा कर जो कुछ किया जा रहा है उसे किसान आंदोलन का नाम देना सर्वाधिक चिंतनीय मुद्दा है ।
    मित्रो सी ए ए के विरोध में किये गए आंदोलन का आरम्भ एवम अंत और उसकी  पृष्ठभूमि के मंज़र को देखें तो साफ हो जाता है कि यह आंदोलन भी केवल भारत को खत्म करने की बुनियाद पर खड़ा किया था ।
     भारतीय  के रूप में कोई भी व्यक्ति इस प्रकार के आंदोलनों को  कैसे स्वीकारे आप ही तय कर सकते हैं । स्व इंदिरा गांधी जी की निर्मम हत्या का हवाला देकर मोदी जी के अंत की धमकी कनाडा के लोगों को मारने के उदाहरण के साथ देना क्या किसान आंदोलन का आधार हो सकता है ?
मेरी बुद्धि यह स्वीकार नहीं करती । रवीश ब्रांड लोग चाहें तो स्वीकार सकते हैं ।
   ज्ञानरंजन जी द्वारा सम्पादित पहल के एक आर्टिकल में  जिस कानून का हवाला देकर जबलपुर के पूर्व वाशिंदे प्रोफेसर भुवन पांडे ने फोन पर मुझे सन्तुष्ट करने की कोशिश की उससे सहमत होने का कोई सवाल ही नहीं उठता । आयातित विचार धारा के पोषक एवम प्रमोटर्स इन प्रोफेसर साहब ने जो कहा सुनकर हंसी आती है । वे उस वर्ग को मासूम बता रहे थे जो केवल दक्षिण पंथी विचारकों से बाकायदा डिस्टेंस मेंटेन कर रहे थे । शाहीनबाग के पथभ्रष्ट आंदोलन के समर्थन में इतने अधीर होकर लिख दिया जैसे कि अन्य किसी वर्ग की भावना का कोई महत्व ही नहीं है ।
बेचारे प्रोफेसर साहब का मानस जिस CAA के जिस आंदोलन को दादी नानी वाला आंदोलन करार दे रहे हैं अपने आलेख में उसके लिए पैसा दादाओं- नानाओं ने भेजा था यह किससे छिपा है ? 
 केंद्र सरकार की गुप्तचर व्यवस्था को चाहिए कि अब हर आंदोलन पर पैनी नज़र रखी जावे  वरना हम किस आतंकी संगठन के कुत्सित प्रयास के शिकार हो जाएं किसी को पता भी नहीं लगेगा ?
Twitter पर एक बुजुर्ग की सलाह दी उल्लेखनीय है नीचे लिंक पर क्लिक करके अवश्य देखिए
https://twitter.com/realshooterdadi/status/1332727043864215552?s=09
  

रविवार, नवंबर 22, 2020

ब्राह्मणों के विरुद्ध ज़हरीले होते लोग



              वामन मेशराम
   जाति व्यवस्था कब से आई क्यों आई इसे समझने के लिए हमें समझना होगा कि  हम एक तरह की कबीलों में रहने की मानसिकता के आदिकाल से ही शिकार हैं। और यह मानसिक स्थिति हमसे अलग नहीं हो पाती है।
      भारत में इसे जाति व्यवस्था कह सकते हैं तो यूरोप में इसे रंग भी और नस्लभेद की व्यवस्था के रूप में अंगीकार किया है। उधर अब्राहिमिक संप्रदायों ने तो तीन खातों में बांट दिया है । इतने से ही काम नहीं चला और गंभीर वर्गीकरण प्रारंभ कर दिए गए किसी रिपोर्ट में देख रहा था कि अकेले इस्लाम में 70 से अधिक सैक्ट बन गए हैं । सनातनीयों ने भी शैव वैष्णव शाक्त आदि के रूप में समाज को व्यक्त कर दिया था।समाज के विकास के साथ असहमतियाँ पूरे अधिकार के साथ विकसित होती चली गईं । जाति व्यवस्था का कोई मौलिक आधार तो है नहीं भारतीय समाज में जाति व्यवस्था का प्रवेश होना कबीले वाली मानसिकता का सर्वोच्च उदाहरण है।
वामन मेश्राम जैसे लोग जिसका फायदा उठाकर एक विशेष समूह को टारगेट कर की केवल सामाजिक भ्रम पैदा कर रहे हैं। वास्तव में उनके पास ऐसा कोई आधार भारतीय संविधान के लागू होने के बाद शेष तो नहीं है। वर्तमान परिस्थितियों में भी वैसी नहीं है जैसा उनके द्वारा परिभाषित किया जा रहा है। भारतीय सामाजिक व्यवस्था के वर्तमान स्वरूप को देखने से स्पष्ट होता है कि-"अब भारत में जातिगत संरक्षण जैसे मसलों पर मजमा लगाना अर्थहीन और राष्ट्रीय एकात्मता के भाव को तार तार करना है...!"
  अब तो वामन मेश्राम और बामसेफ का नैरेटिव उतना ही अप्रासंगिक है जितना ब्रिटिश इंडिया के समय एवं उसके पहले हुआ करता था। अब बाकायदा सामुदायिक समरसता कीजिए न केवल वातावरण तैयार है अगर वातावरण का असर ना हुआ तो कठोर कानूनी प्रावधानों को चाहे जितना से कोई भी उपयोग में ला सकता है।
  हां यहां एक खास बिंदु उभर कर आता है जिस से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि-"अब मुद्दा विहीन बामसेफ के पास केवल व्यवस्था को डराने धमकाने के अलावा अपने लोगों को उकसाने का कार्य बाकी रह गया है !"
हाल के दिनों में 10 या 11 साल के बच्चे ने एक भाषण प्रतियोगिता में कहा था कि-"आज भी भारत में दलित महिलाओं का शोषण सर्वाधिक हो रहा है..!"  मैं जानता हूं कि उस बच्चे का मस्तिष्क इतना तो पता भी नहीं चल सकता । उस बच्चे के माता पिता को भी जानता हूं जो एक खास है  एजेंडे को  लेकर हर जगह मुखर हो जाते हैं । बच्चे के भाषण में  लैगेसी साफ नजर आ रही थी । हम सब जानते हैं कि कमजोर का शोषण करना शोषक की मूल प्रवृत्ति है। हम देखते हैं कि जहां तक महिलाओं के अधिकारों दिव्यांगों के अधिकारों या किन्नरों के अधिकारों की बात होती है तब हमारा चिंतन खो जाता है। यह एक मानसिकता है इसे बदलना होगा। वर्तमान परिस्थितियों में ना तो वामन मेश्राम प्रासंगिक हैं ना ही वे लोग ही प्रासंगिक हैं जो वर्गीकरण करते हैं और वर्ग संघर्ष कराने या उसे जीवित रखने पर विश्वास करते हैं। किंतु डेमोक्रेटिक सिस्टम में  ऐसी कोई सेफ्टी गार्ड नहीं लगे हैं जो यह तय कर दें कि  ऐसे अप्रासंगिक विषयों पर जहर न उगल सकें ।
   यूट्यूब पर एक वीडियो देख रहा था एक सिख वक्ता ने बामसेफ की मीटिंग में ना केवल राम की परिभाषा को बदल दिया बल्कि गुरु तेग बहादुर के बलिदान को भी नकारते हुए ब्राह्मण वर्ग को यह तक कह दिया कि यदि सांप और ब्राह्मण एक साथ नजर आ जाए तो पहले ब्राम्हण को मारना चाहिए।
यूट्यूब धड़ल्ले से ऐसे वक्तव्य को जारी रखता है जो न केवल हिंसा बल्कि सामाजिक समरसता की धज्जियां उड़ाते हैं। हाल के दिनों में सत्य सनातन के एक चैनल को यूट्यूब में प्रतिबंधित कर दिया । इस चैनल पर कभी भी हमने हिंसा को प्रमोट करते हुए किसी को भी नहीं देखा सुना । जबकि बामसेफ जैसी संस्थाओं के चैनल निर्भीकता के साथ के अप्रासंगिक एवं दुर्दांत कंटेंट प्रस्तुत करते हैं। विश्व गुरु बनने की राह में अगर यही जरूरी है तो फिर सपना देखते रहिए । 

https://youtu.be/NagyW0YArZY

     

शनिवार, नवंबर 21, 2020

आसान नहीं है ज्ञानरंजन होना..!

"आसान नहीं है ज्ञानरंजन होना...!"
     2008-2009 का कोई  दिन या उस दिन की कोई शाम होगी । एक स्लिम ट्रिम पर्सनालिटी से सामना हुआ । ऐसा नहीं कि उनसे पहली बार मिला मिलना तो कई बार हुआ.... पर इस बार सोचा कि इतना चुम्बकीय आकर्षण कैसे हासिल होता है । बहुत धीरे से पर घनेरी तपिश की पीढा सहकर ये बने हैं गोया । 
  जी सत्य यही है ज्ञानरंजन आसानी से हर कोई ऐरागैरा बन ही नहीं सकता । 
   101 रामनगर जबलपुर के दरवाजे पर कोई 144 नहीं लगी थी जब उनके घर गया था । बहुत खुल के बात हुई थी तब । अब कोविड के बाद कभी गया तो फिर से होगी एक मुलाक़ात उनसे । उनसे असहमत/सहमत होना मेरा अपना अधिकार है, इसे लेकर बहुतेरे नकली साहित्यिक जीवगण खासे चिंतित रहते हैं । सो सुनिए-ज्ञान जी क्या कहते हैं बकौल यशोवर्धन पाठक-"गिरीश की अपनी मौलिक चिंतनधारा तो है ।" उनके इस वक्तव्य से अभिभूत हूँ वैसे भी उनके चरणों की रज माथे पर लगाना मेरे संस्कार का हिस्सा हैं । 
अक्सर लोग ज्ञानजी की सहजता को समझने में भूल कर देते हैं । निलोसे जी मेरी बेटियों के मामाजी हैं.. वे अक्सर ज्ञान जी के व्यक्तित्व से मुझे परिचित कराने में कोई कमी नहीं छोड़ते। तो मनोहर भैया के ज़रिए भी दादा के साथ जुड़ जाता हूँ। 
ज्ञानरंजन के नाम को मानद उपाधि के लिए राजभवन से स्वीकृति न मिल सकी पहल के संपादक ज्ञानरंजन जी इस बात से न तो भौंचक हैं ओर न ही उत्तेजित जितना स्नेही साहित्यकार.इस घटना को बेहद सहजता से लिया.रानी दुर्गावती विश्व विद्यालय की प्रस्तावित मानद उपाधि सूची का हू-ब-हू अनुमोदित होकर वापस न आना कम से कम ज्ञानजी के लिए अहमियत की बात नहीं है. किसी मानद उपाधि के बिना स्टेट्समैन का दर्जा हासिल है उनको । 
   एक सुबह सवेरे ज्ञान जी से फोन पर संपर्क साधा तो वे सहजता से कहने लगे :-गिरीश अब तुम लोग ब्लागिंग की तरफ चले गए हो  बेशक ब्लागिंग एक बेहतरीन माध्यम है किन्तु तुम को पढ़ना सुनना कई दिनों से नहीं हुआ. यह एक बक़ाया है मुझपर । जो ज़रूर पूरा करूंगा । 
 वास्तव में अखबारों के पास हम जैसों को छापने के लिए जगह नहीं है और हमारा भी मोहभंग हो गया है. ज्ञान जी आज भी चाहते हैं कि वे हमें सुनें समझें उनने कहा था -"तो तुम लोगों को सुनूँ पढूं तो कैसे ?  कम से कम एक बार महीने में गोष्ठी तो हो "
ज्ञान जी की इस पीढा के कारण से सब लोग वाकिफ हैं .... साहित्यिक-संगोष्ठीयों का अवसान, अखबारों में  साहित्यकारों की [खासकर नए नए लिक्खाड़ों ] उपेक्षा करते लोग शुद्ध व्यवसाई हैं । मुझे तो समीर भाई ने रास्ता दिखा दिया ।  वैकल्पिक संसाधन जैसे ब्लागिंग ।सो लिख रहा हूँ। पाठक भी खासी तादात में मौजूद हैं ।  
ज्ञान जी की इस पीढा को परख कर जबलपुर के रचनाकार एकजुट तो हैं आप भी देखिए शायद आप के शहर का कोई बुजुर्ग बरगद अपनी छांह बांटने लालायित तो हैं पर हम आप हैं कि ए.सी. वाली कृत्रिमता पर आसक्त हो चुके हैं ।  संदेश साफ़ है ... मित्रों गोष्ठियां जारी रखिए कहते रहिए कहते हो तो लगता है कि ज़िंदा हो ।    
अजय यादव आज ही ले आए हैं पहल का ताज़ा अंक इस वादे के साथ कि वे अबाध किताबें देते रहेंगे । मुझे क़बीर समग्र, परसाई समग्र, वोल्गा से गंगा तक, संस्कृति के चार अध्याय, और बहुत कुछ चाहिए । कथादेश तो ज़रूरी है ही । युवा साथियों तुम सब पढ़ो टेक्स्ट तुम्हारी प्राथमिक पसन्द होनी चाहिए । अरुण पांडे भाई जी एवम आशुतोष जी भी यही सोचते हैं हम को भी यही चिंता है... बच्चे अब केवल गूगल पर आश्रित हैं टेक्स्ट जो बकौल ज्ञानरंजन पहली पसंद होनी चाहिए अब नहीं है ।
   एक बार फिर ज्ञान जी को जन्मपर्व पर हार्दिक बधाई नमन

चीन ने साम्यवाद की परिभाषा बदल दी...?

साम्यवाद : सामंतवाद एवं पूंजीवाद के जाल में
   साम्यवाद, वर्तमान परिस्थितियों में सामंतवादी और पूंजीवादी व्यवस्था के मकड़जाल में गिरफ्त हो चुका है। अगर दक्षिण एशिया के साम्यवादी राष्ट्र चीन का मूल्यांकन किया जाए ज्ञात होता है कि वहां की अर्थव्यवस्था पूंजीवादी व्यवस्था के कीर्तिमान भी ध्वस्त करती नजर आ रही हैं। अपने आर्टिकल में हम केवल कोविड19 के जनक चीन के ज़रिए समझने की कोशिश करते हैं ।  
चीन का असली चेहरा : पूंजीवादी व्यवस्था और विस्तार वादी संस्कार
यहां चीन में अर्थव्यवस्था की जो स्थिति है वह विश्व की श्रेष्ठ अर्थव्यवस्थाओं में से एक है । चीन ने विश्व के कुछ सुविधा विहीन देशों को गुलाम बनाने के उद्देश्य से उनकी स्थावर संपत्तियों पर खास स्ट्रैटेजी के तहत कब्ज़ा करने की पूरी तैयारी कर ली है। यह चीन द्वारा उठाया गया वह क़दम है जो कि "साम्यवादी-चिंतन" को नेस्तनाबूद करने का पर्याप्त उदाहरण है । यह एक ऐसा राष्ट्र बन चुका है जिसे फ़िल्म  "रोटी कपड़ा मकान" वाले साहूकार डॉक्टर एस डी दुबे की याद आ जावेगी ।
कौन कौन से देश हैं इस सामंत के गुलाम..?  
          चीन के कर्ज से दबे दक्षिण एशिया के देशों में श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल , अग्रणी हैं ।  जबकि 2010 में अफ्रीकी देशों पर चीन का 10 अरब डॉलर (आज के हिसाब से 75 हजार करोड़ रुपए) का कर्ज था। जो 2016 में बढ़कर 30 अरब डॉलर (2.25 लाख करोड़ रुपए) हो गया अब जबकि कोविड19 विस्तारित है तब ।
ये अफ्रीकी देश की हालत क्या हो सकती है आप खुद अंदाज़ा लगा सकते हैं ।
अफ्रीकी देश जिबुती, दुनिया का इकलौता कम आय वाला ऐसा देश है, जिस पर चीन का सबसे ज्यादा कर्ज है। जिबुती पर अपनी जीडीपी का 80% से ज्यादा विदेशी कर्ज है। इन ऋण लेने वाले देशों के पास  चीन नामक साहूकार को ऊँची ब्याज दर चुकाने तक का सामर्थ्य तक नहीं है। दक्षिण एशियाई देश मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति ने साफ तौर पर कर्ज वापसी के लिए असमर्थता व्यक्त कर दी है । 
  स्थिति स्पष्ट है कि- चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक साम्यवादी न होकर शुद्ध रूप से पूंजीवादी व्यवस्था के रूप में शामिल हो चुकी है ।
          जिस व्यवस्था में नागरिक अर्थात व्यक्ति उत्पादन के लिए एक मशीन की तरह प्रयुक्त हो वह व्यवस्था कार्ल मार्क्स के मौलिक सिद्धांतों का अंत करती नज़र आती है।
मार्क्सवाद मानव सभ्यता और समाज को हमेशा से दो वर्गों -शोषक और शोषित- में विभाजित मानता है। नये सिनेरियो में -  शोषक के रूप में चीन की सरकार है और शोषित के रूप में जनता या उसके नागरिक ।
   मार्क्स के सिद्धांत के अनुसार यह सत्य कि है साधन संपन्न वर्ग ने हमेशा से उत्पादन के संसाधनों पर अपना अधिकार रखने की कोशिश की तथा बुर्जुआ विचारधारा की आड़ में एक वर्ग को लगातार वंचित बनाकर रखा।
अतः चीन को इस बात का एहसास भी हो जाना चाहिए कि  शोषित वर्ग (चीन एवम कर्ज़दार देशों के नागरिक ) को इस षडयंत्र का एहसास हो चुका है । अतः वर्ग संघर्ष की 100% संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि  वर्गहीन समाज (साम्यवाद) की स्थापना के लिए वर्ग संघर्ष एक अनिवार्य और निवारणात्मक प्रक्रिया है।
"सामंतवादी दृष्टिकोण अपनाते हैं राष्ट्रप्रमुख...?"
चीन में सदा से ही जनगीत केवल जनता को मानसिक रूप से भ्रमित करने के लिए गाये एवम गवाए हैं । नागरिकों की आज़ादी केवल सरकारी किताबों तक सीमित है । उईगर मुस्लिम इसका सबसे उत्तम उदाहरण हैं । सामंत सदा सामन्त बने रहने के गुन्ताड़े में रहता है। शी जिंग पिंग भी उसी जुगाड़ में हैं। जबकि डेमोक्रेटिक सिस्टम सदा सामंती व्यवस्था के विरुद्ध होता है। कारण भी है कि डेमोक्रेटिक सिस्टम में सत्ता का मार्ग नागरिकों के संवेदनशील मस्तिष्क से निकलता है जबकि उनकी मान्यता है कि -"सत्ता का मार्ग बंदूक की नली से निकलता है । 

गुरुवार, नवंबर 19, 2020

पाकिस्तान वैक्सीन नहीं खरीदेगा...?

रऊफ क्लासरा एवम आमिर मतीन ने पाकिस्तान के  एक टेलीविजन शो में शिरकत करते हुए खुलासा किया कि-"पाकिस्तान सरकार ने स्पष्ट तौर परकोविड-19 से बचाव के लिए तैयार व्यक्तियों को परचेस करने में असमर्थता जाहिर की है। और यह खुलासा उन्होंने पाकिस्तान की कैबिनेट में लिए गए फैसले के हवाले से कहा है..!"
   वर्तमान परिस्थितियों में देखा जाए तो लगभग 22 करोड़ आबादी वाला पाकिस्तान वैसे भी आर्थिक तंगी से गंभीर रूप से प्रभावित है। और यह खबर दक्षिण एशिया के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था किसी भी समय दक्षिण एशियाई देशों तथा उसके सहयोगी देशों में उनके शरणार्थियों की संख्या बढ़ा सकती है इस बारे में पूर्व में भी मेरी यही राय रही है।
अगर वाइटल स्टैटिसटिक्स पर ध्यान दिया जाए तो तो यह माना जाता है कि टॉप थ्री में पाकिस्तान ऐसा राष्ट्र है जहां पर बच्चों की कुपोषण की स्थिति बेहद गंभीर और चिंतनीय है। आशय स्पष्ट है कि पाकिस्तान जैसे राष्ट्र में आजादी के 70 से अधिक वर्ष बीत जाने के बावजूद मौलिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने कोई एक कारगर प्रोग्राम विकसित नहीं हो पाया है। जबकि भारत में अपने प्रारंभिक स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया है। तीसरी दुनिया के अधिकांश देश भारत की कोविड-19 वैक्सीनेशन प्रक्रिया पर गंभीरता से नजर गड़ाए हुए बैठे हैं। सहयोगी राष्ट्रों को भारत की इम्यूनाइजेशन प्रक्रिया का ज्ञान भी है। विश्व में पोलियो से निजात , संपूर्ण टीकाकरण  अर्थात यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन और टीवी खसरा के उन्मूलन में भारत की भूमिका अपने आप में सफल मानी जाती है । दक्षिण एशियाई देशों खासतौर पर बांग्लादेश इस दिशा में पूरी सतर्कता के साथ काम कर रहा है लेकिन अपने ही को प्रबंधन के कारण समस्याओं से घिरा पाकिस्तान सामाजिक विकास के क्षेत्र में अभी भारत से 25 से 30 वर्ष पीछे है।
यूनिसेफ का कहना है कि भारत में बाल अधिकार जैसे बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य पोषण एवं उनके अधिकारों के संबंध में अन्य देशों की अपेक्षा अधिक सामाजिक स्वीकृति मिली है।
ऐसा नहीं है कि भारत जैसे देश में मुस्लिम आबादी ने इन कार्यक्रमों को असफल करने की कोई कोशिश की हो। किंतु सीएए के आंदोलन के दौरान एक नैरेटिव अवश्य आंदोलन कर्ताओं ने स्थापित करने की कोशिश की गई थी कि- "आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को आप कोई भी जानकारी ना दें..!"
   परंतु सामान्य रूप से ऐसा प्रभावी नहीं हो सका क्योंकि भारतीय मुस्लिम समाज का अधिकांश हिस्सा सामान्य सुविधाओं से ना तो वंचित रहना चाहता और ना ही उसमें ऐसी कोई भावना को सहमति ही मिल सकती है। यहां में आंगनवाड़ी कार्यक्रम का जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत कोविड-19 वैक्सीनेशन का बेहद प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन निकट भविष्य में संभव हो सकेगा ।
प्रत्येक 400 से 800 की जनसंख्या पर भारत सरकार ने ऐसे केंद्रों को स्थापित किया है जिनके माध्यम से प्रसव से पूर्व तथा जन्म के बाद तक बच्चों एवं प्रसूताओं के स्वास्थ्य की रिकॉर्ड को संधारित किया जाता है। यह प्रक्रिया स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित सभी योजनाओं के लिए एक सहयोगी प्रक्रिया के रूप में चिन्हित की गई है। प्रत्येक परिवार की जानकारी एक खास तौर पर तैयार रजिस्टर के माध्यम से संधारित की जाती है। कुल मिलाकर भारत सरकार के पास प्रत्येक गांव की ताजा जनसंख्या और वैक्सीन की आवश्यकता का आंकलन कोविड-19 के संदर्भ में आसानी से किया जा सकता है ।
दक्षिण एशिया का शायद ही कोई ऐसा देश है जहां पर इतनी सुचारू रूप से यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम चलाया जा सकता हो । आपको स्मरण होगा कि आंगनवाड़ी कार्यक्रम की उपयोगिता और उसका स्वास्थ्य सेवाओं के साथ सिंक्रनाइजेशन बढ़ने के साथ-साथ भारत में शिशु मृत्यु दर और बाल मृत्यु दर में भारी गिरावट पिछले 20 वर्षों में देखी गई है। बाल विवाह की दर अचानक गिरावट होना भी इसी कार्यक्रम की ताकि निशानी है।
यहां यह कहना बहुत जरूरी है कि जो देश अपनी जनता के प्रति सजग नहीं रहते उन्हें पाकिस्तानी जैसे स्टेटमेंट देने पड़ते हैं आज जब पूरा विश्व अपने नागरिकों को बचाने के लिए दक्षिण कोविड-19 के वैक्सीनेशन के लिए परेशान है वहीं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट साथियों  का ऑफीशियली  ऐलान करना कि केवल सोशल डिस्टेंसिंग के माध्यम से आवाम अपने आपको कोविड-19 के खतरे से बचा के रखें...!  हास्यास्पद प्रतीत होता है। भारत के सापेक्ष स्वयं को तुलना करने वाले इस राष्ट्र को अभी भी अपनी मानव संसाधन के विकास की निरंतर कार्य करने की जरूरत है।

बुधवार, नवंबर 18, 2020

व्यक्तिचर्चा : मलय दासगुप्ता

रोज रोज कुछ ना कुछ नया मौजूद होता है ब्रह्मांड में । रोज कोई एक नया व्यक्ति मिलता है रोज कोई एक नया ख्याल आता है। 
    श्री मलय दासगुप्ता से मिलने की कोई खास वजह नहीं है । सार्वजनिक जीवन में कौन कब किस से मिलता है उसे याद रखना भी बड़ा मुश्किल होता है । यह तो मुलाकात है बहुत कम हुई है पर एक दूसरे को पहचाने नहीं कोई कमी नहीं रह गई है। सामान्यतः हर किसी पर कलम चलाने की भी इच्छा नहीं होती.... ! यह एक स्वाभाविक एक स्वाभाविक मनोवृत्ति है ।  मलय जी मुझसे आयु में बड़े हैं समझ और चिंतन में भी। अंग्रेजी हिंदी बांग्ला जिनकी मातृभाषा है के बेहतरीन जानकार है। अध्ययन तो इतना है मानो उनके ब्रेन की हार्ड डिस्क में लाखों किताबों जमा हो। ऐसा अंदाज कब लगाया जा सकता है जबकि बातचीत के दौरान रेफरेंसेस अर्थात अर्थात् संदर्भ तुरंत ही निकलते हैं। दासगुप्ता साहब से बात करने का आनंद ही कुछ और है। एक बेहतरीन कम्युनिकेटर हैं। किसी वैचारिक गुच्छे से उनका कोई लेना-देना नहीं। कविता और सृजन से उनका गहरा नाता है । व्यक्ति चर्चा की इस क्रम में आज उनके बारे में कुछ जानकारी प्रस्तुत है
परिचय
नाम:- मलय दासगुप्ता "मलय"
पिता का नाम:- स्व. उपेन्द्र कुमार दासगुप्ता
जन्म तिथि व स्थान:- २९ अगस्त १९५२, जबलपुर म. प्र.
सेवानिवृत सीनियर एडिटर डिफेंस अकाउंट्स डिपार्टमेंट (मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस) अकाउंट्स ऑफिस व्हीकल फैक्ट्री जबलपुर ।
बचपन से ही हिन्दी, बांग्ला, अंग्रेज़ी पठन पाठन में अभिरुचि।
तीनो भाषाओं की कविताओं में अतीव अनुराग।
माडल हाई स्कूल जबलपुर "सम्प्रति लज्जा शंकर झा" में शालेय शिक्षण १९६३ से १९६९।
तात्कालिक भाषण, वादविवाद व काव्य पाठ विधाओं में विशेष आग्रह, अंतर्शाले प्रतियोगिताओं में प्रतिभागी। हस्तलिखित वार्षिक शालेय पत्रिका लेखन में विशेष योगदान। संपादकीय विषय वस्तु लेखन में निज अभिप्राय की अभिव्यक्ति देना विशेषता थी।
१९७२ में शासकीय विज्ञान कॉलेज जबलपुर से बीएससी डिग्री। तदनतर १९९२ में एम. ए. हिंदी व १९९८ में L.L.B रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय ।
१९८४-८५ से १९९६ तक आकाशवाणी जबलपुर द्वारा आयोजित कविता पाठ व कविगोष्ठी में आमंत्रित।
शिर्डी सांई भजन और राधा कृष्ण कीर्तन - भक्ति गीत मिलाकर १०० से अधिक गीतों की रचना, २००७ में स्वरचित सीडी "प्रेम के रंग अनेक" का विमोचन प्रख्यात संगीत गुरु निर्देशक गायिका  डॉ शिप्रा सुल्लेरे द्वारा कंपोजिंग व गायन ।
२०१७ जबलपुर नर्मदा महोत्सव में स्वरचित जबलपुर नगर परिचय गीत का पद्मश्री डॉ सोमा घोष द्वारा गायन।
अध्यात्मिक विषयवस्तुओं में सदैव गहन अभिरुचि रही आयी है।
"नर्मदा परिक्रमा" पर परिभ्रमण दृष्टिकोण से नैसर्गिक सौंदर्य व तीर्थाटन अन्तर्गत अध्यात्म व पर्यटन के समन्वित स्वरूप पर अनुभूति परख लेखन।
रामकृष्ण कथामृत अन्तर्गत अनेक दृष्टांत पर मौलिक चिंतन व लेखन।
भगवद गीता के जीवन संदर्भित कथनों पर मौलिक टिप्पणी व आलेख।
नर्मदा पर बांग्ला पुस्तक "तपो भूमि नर्मदा" के २ खंडो का हिंदी में अनुवाद ।
६९ वर्ष की वयः संधि में कविता, आध्यात्म लेखन व चिंतन, भजन और गीत लेखन ही दिनश्चर्या है।
*****
ईष अनुभूति 

कोशिश की कितनी ही बार
आलोकित करू तेरी प्रेम रश्मि हृदय में बार बार
ऐसा हुआ नहीं अब तक संभव हो न सका हे नाथ 
तुम्हारा आसन मेरे जीवन में वही जहा गहन अंधकार 
उस लता सा अस्तित्व मेरा 
सूख गया जिसका मूल
प्रस्फुटन को कलिया आतुर 
पर खिलता नहीं फूल 
मेरे जीवन में महिमा तेरी 
न हो सकी साकार
कदाचित इसे ही तो कहते है 
वेदना का निर्मम उपहार 
प्रेम सजल नयन नहीं
खिलता नहीं पुण्य प्रताप
प्रपंच प्लावन बहे जीवन धारा 
रह गया शोक संताप 
वैभव मंडित तथापि नीरस 
कैसा ऐश्वर्य विहीन परिधान !
अंतहीन चाहत के रहते
मेरी यही तो पहचान 
उत्सव कभी हुआ नहीं जीवन
न आया मधुमास 
ना ही नवीन का आगमन
या आनंद संतृप्त अश्रुपात 
कौन करता आश्वस्त "मलय" तथापि
करने भगीरथ प्रयास
बहेगी जीवन में प्रेम भागीरथी कभी
लेकर ईष अनुराग लेकर ईष अनुराग 
कोशिश की कितनी ही बार
आलोकित करू तेरी प्रेम रश्मि हृदय में बार बार
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स्मृति शेष
गोधूलि की डूबती सांझ में सुरमई जब रंग भरे
आए थे तुम प्रियें जब अस्तगामी की लाली ढले 

संशय था मन में कुछ कहने को पर कह ना सके
देखा था मैंने सलज्ज् संकोच की लाली तुम्हारे अरविंद मुख पे 

रुके नहीं चले गए थे, जाते जाते देखा था अर्थपूर्ण चितवन से  
सौम्य आग्रह मर्मस्पर्शी वेदना थी मृदु दृष्टि निकच्छेप में 

गोधूलि की डूबती सांझ में सुरमई जब रंग भरे
जब भी देखता हूं उड़ते शुभ्र विहंग दल, शरतीर सा नभनीेल तले 

उठती है टीस "मलय" वेदना विगलित अंतर्मन घिरे 
बोलते नयन कंपित अधर छुब्ध लालिमा मुख कमल 

मुखरित ना हो सका था प्रेम अंततः वियोग गहन छणों में
साक्षी स्वरूप थे दर दीवार मेरे साथ संताप संतृप्त म पल पल में  

आए थे तुम प्रिय जब अस्तगामी की लाली ढले
गोधूलि की डूबती सांझ में सुरमई जब रंग भरे
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दिन ललित बसंत के 

मन मधुप मधुर सुर तान जगे
रंग लाल गुलाल पलाश लगे
सरसो फूले अवनी पीत भए
प्रिय प्राण सखे
दिन ललित बसंती अान लगे
मन डोल गयों मधु रंग के संग
तन बन गयो नवरंग के अंग
चहुं अोर बहे महके सुरभि
मादक महुए संग बाजे मृदंग
कासे कहूं प्रिय प्राण सखॆ
दिन ललित बसंती आन लगे
नवनीत लगे कोपल तरुवर
नवतरंग में जागे है सरोवर
जीवंत लगे आशा की लहर
हुए प्राणवंत अब आठो प्रहर
कह ना सकूं अब प्राण सखे
दिन ललित बसंती आन लगे
उदास पवन "मलय" टीस लगे
जब कूक कोयलिया हूंक उठे
अनुराग रंग खग मृग और वृंद
अभिराम रूप धरे सृष्टि अनंत
प्रिय प्राणवंत हे प्रियंवदे
दिन ललित बसंती आन लगे
दिन ललित बसंती आन लगे
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कुछ आसान नहीं रह गया 

भ्रष्टाचार की मखमली पायदान पर 
ईमान का हर कदम अब थक गया है
यारों ! इक ज़िन्दगी जी लेना अब आसान नहीं रह गया है ।
यहां हवा का रुख देख बात करने लगे है लोग
तमाशबीनों की भीड़ से इन्कलाब की उम्मीद 
आसान नहीं रह गया है
लोकतंत्र की चौपाल पर लगती है राजतंत्र की पंचायत
कानून के लंबे हाथ, वे हाथ नहीं आते जो रसूखदार और खास
किनके भरोसे महफूज़ है आम जनता की जिंदगानी
कहना आसान नहीं रह गया है
वादों में होती है लब्जों की कवायद
दिखाए जाते है उम्मीद के सब्जबाग
अब कौन बहा लाएगा कल्याण की भागीरथी
कहना आसान नहीं रह गया है।
यूं तो तालीम की हर किताब से 
निकलती है सदाचार की गंगा
हकीकत की तपती रेत पर
कहा तक बह पाएगी कहना आसान नहीं रह गया है।
फूल है खुशबू वही
भौरों की गुनगुनाहट वही
पर बोझिल हवाओं में "मलय"
मौसम का फिर खुशनुमा होना
अब आसान नहीं रह गया है।
 भ्रष्टाचार की मखमली पायदान पर 
ईमान का हर कदम अब थक गया हैl
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प्रेम असीम
लड़ाई हर हाल में बुरी नहीं होती, हर हाल में सुकून भी भली नहीं होती
वह इश्क़ परवान चढ़ता ही नहीं, तकरार की जहां गुंजाइश नहीं होती
प्रेम में झंझट कहीं छुपी सी है रहती, शिकवे शिकायत में खूब खिलती महकती
मासूम है इतना रूठने पर दिल ए नादान 
अश्क आंखों में लबों पर हसी दे जाती 
प्रेम में गहराई अनंत 
प्रेम का आकाश दिगंत
आलम तन्हाई की होती है लहरों के नीचे
क्योंकि परमार्थ के सागर में स्वारथ की जड़े नहीं होती
जो उड़ा आसमान लिए इश्क़ परवाज़ 
छोड़ ख्वाइशों की दुनिया के थोथे अरमान
अब कदम पड़ते है फलक पर या "मलय"
दयारे - इश्क़ में दूर दूर तक ज़मी नहीं मिलती
लड़ाई हर हाल में बुरी नहीं होती, हर हाल में सुकून भी भली नहीं होती
******
अनुपम तुम आए थे
अनुपम तुम आए थे आज प्राची आलोक में
अरुण वर्ण पारिजात पुष्प लिए हाथों में
निद्रित शहर नीरव पथ पथिक ना थे
अकेले ही चले गए थे स्वर्णिम रश्मि रथ में
रुकते थमते चलते देखते थे मेरे वातायन को
कदाचित देखा था तुमने करुण सजल नैनों से
अनुपम तुम आए थे आज प्राची आलोक में
अरुण वर्ण पारिजात पुष्प लिए हाथों में
सपने सुरभित हो उठे थे अनाहूत सुगंध से
गूंज उठी थी घर दीवार मुक्त्तक छंद आनंद से
धूल धूसरित निशब्द स्तब्ध मेरी वीणा 
बज उठी थी आज अनाहत के आघात से
कितनी ही बार सोचा मैंने उठ जाऊ त्वरित
सारे अवसाद त्याग दौड़ जाऊ देखू तुम्हे
पर यह हो ना सका कुंठा या आत्मग्लानि परिहास
मिल ना सका तुमसे पात्रता ना थी मेरी
अंततः रिक्त आभास 
अनुपम तथापि तुम आए थे आज प्राची आलोक में
अरुण वर्ण पारिजात पुष्प लिए हाथों में
*******
नयन बरस के सावन आये 

हेरित रही श्याम पुंज घटा घिरे 
नील गगन पर छाए
सजल सघन अनजन के बहते
कमल नयन भर आये
अरुण अधर सूख कम्पित भये
करुण वेदना झांके
नीरव वियोग के मूक वे प्रतिपल
कह गए नैना के धारे
स्तब्ध है सावन विदा के पलछिन
विरह कालिमा छाये
हेरित रही श्याम
कह गए थे पिया मेघ के संग संग
बरसन लेकर आये
एक वारी करे तृप्त धरा  को
एक जियरा आग लगाए
बिरह तपन कह देक्ज न पाए
असउण बहे जियरा जलाये
झरझर झरते बिजुरी दमकते
विरहिणी को आस जगाए
विलाप नयन मलय अब पथरा गए
नयन बरस के सावन आये ।
********
पूर्ण धर्मयुद्ध की अभिलाषा में 

यहां प्रतिदिन एक कुरूछेत्र से गुजरना होता है
नित महाभारत सी द्वंद में रहना पड़ता है
सत्य की निष्ठा पर आशंकित रहते हुए 
किसी अप्रत्याशित का पूर्वाभास हो जाता है
काल चक्र यूहीं घूमता रहता है
अघटनविघटन के नित इतिहास रचता है
न्याय अन्याय सत्य असत्य एक ही तुला के दो दंड है
अब अस्तित्व का श्रेय बलवती होने पर जाता है
सर्वधर्म समभाव के असीम संभावना के रहते
रूढ़ीवादिता का शिकार होना पड़ता है।
परिधिगत उदारवादिता की परिपाटी में
संकीर्णता चरमोत्कर्ष का आभास देता है
तभी तो आज कई कर्ण तिरस्कृत हो जाते है
होते है दिशाहीन सारथी विहीन अर्जुन
अंगीकार से वंचित रह जाते कई भीष्म
मान्यता से परे रह जाते कई द्रोण यहां।
यह कैसा अधर्म था धर्म युद्ध में
क्या एक ही असत्य चिर अजेय सर्व सत्य में
कदाचित आज भी प्रायश्चितरत है "मलय"
धर्मराज के उद्देश्य में आव्हान में
तभी तो होती है पुनरावृत्ति महाभारत की
पुनः पुनः एक अंतहीन कड़ी में
पूर्ण धर्मयुद्ध की अपरिमित प्रत्याशा में
अपरिमित प्रत्याशा में
यहां प्रतिदिन एक कुरूछेत्र से गुजरना होता है
नित महाभारत सी द्वंद में रहना पड़ता है
*********
में सीढ़ी हूं 

मैं सीढ़ी हूं ----------
युग युगान्तर से सिर्फ एक सीढ़ी
सुन्दर परिमार्जित शब्दों में कही सफलता का सोपान हूं
कहीं क्रमवर्धक ज्ञान मंजिरी शब्दजाल में गुंफित मेरे अस्तित्व व कृतित्व अनेक परिचय से विभूषित किया इस सभ्यता ने
निर्लिप्त नेत्रों से अनवरत देखा है मैंने
सभ्यता के समसामयिक उतार चढ़ाव को
रखा है मैंने अपने मर्मस्थल में
इतिहास दर इतिहास की परतों में
दंभ ध्वनित पदशचापो की बर्बरता को
साक्षी स्वरूप मेरे अक्षत-क्षत जब कभी
उन परतों को विदीर्ण कर उनमुक्त हुए
उन्हें वेष्टित किया गया मखमली आवरण के अन्तराल में
मेरे अंतर का चीत्कार हाहाकार प्रतिगुंजित होती रही इस अवगुंठन में
क्षुब्ध हूं तथापि आश्वस्त हूं "मलय"
अंतर्मन की निशब्द विजय दुंदुभी के प्रति
अभी भी गुंजित होता है दर्पचूर पदस्थलित
"हुमायूं" का आर्तनाद
मुझसे होकर गिरते गुजरते एक एक पदशचाप में ।
में सीढ़ी हूं युग युगांतर से सिर्फ एक सीढ़ी ---------
********
फासले कश्मकश के 

फासले हमारे बीच रहे
कुछ नजदीकियां चाहिए
करीब आने के लिए
कुछ दूरियां भी तो चाहिए
रिश्तों में ताजगी रहे
गर्मजोशी रहे जब भी मिले मिलते रहे
नज़रों की पहल कुछ ऐसी
आज तक कश्मकश में रहे
इन आँखों की कशिश कुछ ऐसी
वो छवि कभी ओझल ना हुई
सांझ की झुरमुट में देखा था
काजरारी नैना दो झुकी
आबो हवा वक़्त की ऐसी
वह फिजा पहेली सी लगी
नैनन की देखी आज तक
हृदय कभी भूला ही नहीं
तिष्नगी दिल की "मलय"
अनहद सी गूंजती रह गई
कमसिन प्रेम की मासूम कड़ी
कसक बन के रह गई, कसक बन के रह गई
फासले हमारे बीच रहे
कुछ नजदीकियां चाहिए ।
********
सावन आयो 

सावन आयो पुलकित तन मन 
पवन मधुर बहे सुरभित उपवन
सावन आयो -----
रिमझिम बरसे नीर बहाए
पिया मिलन की आस जगाए 
कोयलिया की कूक है लागे
चिर विरह की अगन लगाए
चिर विरह की ------
श्याम मेघ जब घिर घिर आए
गिरी श्रृंग के रूप में छाए
बिजुरी चमके कुछ ऐसे जैसे
चंद्रचूड़ संग मेनका डोले
चंद्रचूड़ संग ------
रिक्त हृदय करे अति अभिलाषा
"मलय" आज कहे नहीं है दुराशा
पावस के हर पल रुत गाएं
पावन है आशा अभिलाषा
सावन आयो पुलकित तन मन 
********

सोमवार, नवंबर 09, 2020

जीवन की नहीं मृत्यु की तैयारी कीजिए.. जीवन तो वैसे ही संवर जाएगा..!

जीवन की नहीं मृत्यु की तैयारी कीजिए.. जीवन तो वैसे ही संवर जाएगा?
यह एक आश्चर्यजनक तथ्य होगा कि आप को यह सुझाव दिया जाए कि जीने की नहीं मृत्यु की तैयारी कीजिए ऐसी स्थिति में आप सुझाव देने वाले को मूर्खता का महान केंद्र तुरंत मान लेंगे। परंतु आप यह भली प्रकार जानते हैं कि-"जीवन जिस दिशा की ओर बढ़ता है उस दिशा में ऐसा बिंदु है जहां आपको आखिरी सांस मिलती  है"
है या नहीं इसका निर्णय आप आसानी से कर लेते  हैं। सनातनी दर्शन मृत्यु के पश्चात के समय को  एक संस्कार के तौर पर मान्यता प्राप्त है और हम उसे एक्ज़ीक्यूटिव करते हैं । लेकिन अगर कोई व्यक्ति मरणासन्न हो तो उसके लिए केवल ईश्वरीय सत्ता से प्रार्थना के अलावा कुछ शेष नहीं रहता।
सभी लोग जानते हैं कि यह शाश्वत सत्य है अटल भी है जितना शाश्वत जीवन है उतनी ही शाश्वत मरना।
इस अटल सत्य को कोई मिटा नहीं सकता है, स्वयं राम कृष्ण और महान ऋषियों, पैगंबरों ने भी इस सत्य को स्वीकार्य किया । आपको याद होगा अरस्तु ने जब जहर का प्याला पिया तो भी निर्वेद और शांत थे। प्रभु यीशु ने भी सलीब को परमपिता परमेश्वर का निर्णय माना और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वर्गारोहण किया ( एकअन्य संप्रदाय का जिक्र मैं यहां नहीं करूंगा वैसे भी काफी यह विवाद हो रहा है।)
 आपने अपने कुटुंब में कुछ ऐसे लोगों के बारे में सुना ही होगा कि उन्होंने अपने प्रस्थान का समय बता दिया था । ऐसे हजारों उदाहरण समाज में भी मौजूद हैं । यहां मुझे अपने दो अनुभव स्मरण हो रहे हैं कि मृत्यु बिल्कुल और मुझे विश्वास था कि यह हमें छू भी ना सकेगी ।
उस वक्त उम्र 10 या 11 वर्ष की रही होगी । स्टेशन मास्टर पिता के साथ हमारा परिवार शहपुरा भिटौनी में रहा करता था ।
घर के बाजू में एक कुआं था जिसकी ऊंची ऊंची दीवार लेकिन मछलियों को देखना बहुत अच्छा लगता था । देखते देखते अचानक वैशाखी और शरीर का ऊपरी भाग कुए की तरफ ग्रेविटी की वजह खिंचने लगा । एक पल को लगा कि यह अंतिम स्थिति है परंतु दूसरे ही पल अज्ञात कारणों से बस जाना आश्चर्यचकित कर देने वाली घटना थी ।
लेकिन वह 10 से 15 सेकंड में सिर्फ ईश्वरी सत्ता का स्मरण होता रहा ।
आज से करीब 15 वर्ष पूर्व एक शराबी अपनी मारुति लेकर सड़क पर सीधे जा रहा था और अचानक क्या हुआ कि वह हमारी गली मुड़ गया माइलोमीटर की शायद अंतिम अवस्था रही होगी मैं सामने चलने वाली गौर दादा जी से चर्चा कर रहा  था कि अचानक  दादाजी के मन में क्या आया कि वे अपने घर के अंदर चले गए। में कार निमिश मात्र को अपनी ओर आता देख मन में अचानक अजीब सा भय जाग गया । घर का दरवाजा खोलने में ही  लगभग कुछ मिनट तो लगते और मुझे सुनिश्चित हो गया था कि अब यह कार मुझे अपने अंतिम पलों तक पहुंचा ही देगी । परंतु पुनः ईश्वरी सत्ता के अस्तित्व स्मरण किया और ईश्वर से प्रार्थना की प्रभु उस ड्राइवर को बचा लीजिए ।
इस बार पहली घटना की तरह मैंने स्वयं के बचाव के लिए कोई निवेदन नहीं किया ।  स्वामी विवेकानंद की आत्मकथा में लिखते हैं-"जब मैं स्वयं के लिए मांगता हूं तो मुझे हासिल नहीं होता किंतु जब दूसरों के लिए मांगा जाए तो तुरंत ईश्वर दुगने वेग से प्रचुर मात्रा में देते हैं ।"
मृत्यु के सन्निकट आकर भी उसके पंजे से बच जाना ईश्वरी सत्ता का एहसास कराता है । ईश्वर तत्व की पुष्टि होती है । 
इन घटनाओं का जिक्र इसलिए किया है कि आप हम सब ईश्वरी सत्ता पर भरोसा करें और जिस स्वरुप में भी उसे स्वीकारते हैं या पहचानते हैं उस पर अनाधिकृत प्रश्न ना उठाएं। ऐसी घटनाएं हमें पवित्र बनाती हैं । जब ईश्वरीय सत्ता के अस्तित्व को हम स्वीकार लेते हैं तो हमारे मस्तिष्क में..... शरीर के साथ उत्पन्न होने वाले नकारात्मक गुण जैसी ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, अहंकार, लोकेषणा, अवांछित वस्तुओं की प्राप्ति के नियम के प्रतिकूल हासिल करने के विचार समाप्त हो जाते हैं । हम उस अंतिम समय में निर्वेद भाव से महाप्रस्थान कर सकते हैं।
यह महाप्रस्थान जीवन के अंतिम पलों की मानसिक दशा को तय करती है ।
वही संतो जैसा चिंतन महाप्रस्थान के अंतिम कुछ पलों की वेदना को समाप्त कर देता है।
जितनी जल्दी हम उस महाप्रस्थान के पल के लिए स्वयं को तैयार करेंगे उतने ही जल्द हम महान जीवन को अपना पाएंगे ।
इसीलिए जगतगुरु शंकराचार्य ने कहा है भज गोविंदम भज गोविंदम भज गोविंदम मूड मते ।
     यह आलेख किसी की मृत्यु की कामना के लिए नहीं है बल्कि मृत्यु के समय  की तड़प से मुक्ति के लिए है जो हमारे आपके मन मे विश्वास पैदा करती है। चरपट पंजारिका में इसका संपूर्ण वैज्ञानिक विश्लेषण किया है आदि गुरु ने। आदि गुरु ने लिखा भी तो है ना हम ना त्वं ना यमलोक: तदपि किमर्थम क्रियते शोक: .
सुधि पाठक जन आदि गुरु ने जीवन के मूल्यों को अध्यात्म के साथ सिंक्रोनाइज करने की बात की है और उसका मूल सार है कि जीवन को कितना बेहतर बनाया जाए। अगर जीवन अध्यात्मिक के चैतन्य से भरा होगा तो पक्का मानिए जैसी नींद आती है ना वैसे ही महाप्रस्थान की घड़ी आएगी और हमें उसे पवित्र बनाना है यह मुमुक्ष  अर्थात मोक्ष प्राप्ति का प्रथम मार्ग है यह अलग तथ्य है कि मोक्ष कब मिलता है ?
तब तक जारी रहे- भज गोविंदम भज गोविंदम गोविंदम भज मूड मति ।।

रविवार, नवंबर 08, 2020

कट्टरता सम्प्रदाय का स्वयमेव अंत करती है..!

 
वैश्विक परिदृश्य में देखा जाए तो किसी भी संप्रदाय के लिए सबसेे घातक उस में पनप रही कटटरता ही है । 
 अगर किसी भी संप्रदाय ने कट्टरपंथ दिखाया तो उसका हश्र बहुत दुर्दांत ही होता है । दुर्भाग्यपूर्ण बात यह होती है कि उसके दुष्प्रभाव आम जनता को भोगने होते हैं । यह एक स्थापित सत्य है कि ... "उत्तर वैदिक काल में वर्ग वर्ण और जातिवाद को प्रश्रय मिला तो ग़ैर वैदिक व्यवस्था का प्रवेश प्रारम्भ हुआ ।
            उत्तर वैदिक काल में कर्मकांड को प्रमुखता दी गई । इस काल में ब्राह्मण जाति को अनुष्ठान में महत्व राज्याश्रय एवम सामाजिक प्रतिष्ठा में तीव्रता से वृद्धि हुई । और उसके साथ साथ श्रेष्ठ कहे जाने वाले 3 वर्णों में क्रमशः ब्राह्मण क्षत्रीय, वैश्यों का ध्रुवीकरण हुआ । जब शक्ति का एकीकरण हुआ तो शोषण की प्रवृत्ति को भी अवसर मिलना स्वाभाविक हो गया। 
    यही वह युग था जब मध्य भारत को पार करते हुए द्रविड़ क्षेत्र को अपने अधीन करने का सफल प्रयास भी किया गया था । 
इस काल में जन्मगत जाति प्रथा की शुरुआत हुई । इस काल में  समाज चार वर्णों में वभक्त था-ब्राह्मण , राजन्य (क्षत्रिय), वैश्य , शूद्र। इसी जा में 3 ऋण  -देवऋण, पितृऋण, ऋषिऋण का वर्गीकरण हुआ ।  और यही वह काल था जब  पंचमहायज्ञ- देवयज्ञ, पितृयज्ञ, ऋषि यज्ञ, भूत यज्ञ, नृ यज्ञ की अवधारणा आकार ले सकीं । 
   इसी काल में अर्थववेद सुव्यवस्थित हुआ । जिसमें भूमि को माता का स्वरूप माना गया । पृथ्वी-सूक्तम  का सृजन भी हुआ । जो न केवल  धार्मिक है वरन सार्वकालिक एवम 
 भी कुछ हुआ उतना बुरा न था क्योंकि  उसके पश्चात निरंतर महापुरुष आते रहे । धर्म की देश काल परिस्थितियों के आधार पर सनातन को लोकोउपयोगी बनाते रहे । बुद्ध, शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद फिर सन्त कवियों सूफियों ने भी इसे परिष्कृत किया । अब जाति वर्ण व्यवस्था क्षतिग्रस्त होने को है । 10 से 15 बरस और रुकिए सब कुछ समाप्त हो जाएगा । और केवल एक उदघोष शेष होगा.. "सर्वेजना सुखिनो भवन्तु" 
    देखिए आने वाले कल में स्वयम लोग उन रस्सियों को खोल कर यह ही करेंगे.. किसी को कराहता देख अश्रु पूरित होकर लोक सेवक के रूप में नज़र आएंगे । कट्टरता खुद खत्म हो जाएगी ।  ये सब इसी आर्यावर्त से शुरू होगा । वेदों का प्रकाश आयातित तिमिर का अंत कर देगा । अगली शताब्दी की प्रतीक्षा कीजिए । 

जो बायडन : विदेश नीति पर बदलाव नहीं करेंगे..!

बाइडन के कारण  भारत के संदर्भ में अमेरिकी नीतियां  नहीं बदलेंगी !
लेखक:- गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
जो बाइडन डेमोक्रेट उम्मीदवार हैं और लगभग राष्ट्रपति बन ही गए हैं । भारत के विद्यार्थियों एवम विचारकों में बहुत से सवाल हैं जैसे कि-
जो के आने के बाद अमेरिकी विदेश नीति में कौन सा परिवर्तन आने वाला है दक्षिण एशिया के साथ जो बाइडन कैसा संबंध रखेंगे ?
अथवा अमेरिका की भारत के संबंध में पॉलिसी क्या होगी ? और बदली हुई पॉलिसी में भारत का स्टेटस क्या होगा ?
आइए जानते हैं इन सवालों  के क्या क्या संतुष्टि कारक उत्तर हो सकते हैं ?
जो बाइडन को इलेक्शन जिताने में उनका व्यक्तित्व सबसे ज्यादा असरकारक रहा है। शायद ही अमेरिका में कोई कम पढ़ा लिखा अथवा अपेक्षित बौद्धिक क्षमता से कमतर होगा ! यहां अपवादों को अलग कर देना होगा । 


 अमेरिकी जनता ने जो बाइडन जिताने से ज्यादा दिलचस्पी डोनाल्ड ट्रंप को हराने में दिखाई है ।  इसका अर्थ यह है कि-" अमेरिकी जनता ने ट्रंप की व्यक्तित्व को पूरी तरह खारिज कर दिया"
ट्रंप के भाषण अक्सर विचित्र भाषणों की श्रेणी में रखे जाने योग्य माने गए थे। कमोवेश विश्व में भी ऐसी ही छवि डोनाल्ड ट्रंप की बन गई थी। बावजूद इसके डोनाल्ड ट्रंप के शांति प्रयास उन्हें उत्तर कोरिया तक ले गए। परंतु ट्रंप की छवि यूरोपियन मीडिया द्वारा जिस तरह पोट्रेट की गई उसे वैश्विक स्तर पर भारी भरकम प्रजातंत्र के प्रतिनिधि को बहुत हल्के में लिया गया। अमेरिका के बाहर और अमेरिका के भीतर यह पोट्रेट हूबहू स्वीकार आ गया और विकल्प को यानी जो बाइडन  को इसका सीधा सीधा लाभ हुआ ।  यूएस मीडिया और विचारकों ऐसा ही नैरेटिव सेट कर दिया ताकि वोटर की मानसिकता में परिवर्तन आ जाए।
इधर जो बाइडन कमला हैरिस के साथ अपनी भूमि बनाने में सफल हो गए।
विश्वसनीय मीडिया की मानें तो अमेरिका के इलेक्शन में बड़े पैमाने पर वोटों का ध्रुवीकरण हुआ है।
अमेरिका की विदेश नीति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिकी प्रशासन ने निर्धारित कर ली है। आपको याद होगा कि फरवरी 2016 में बराक ओबामा ने ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप पर दस्तखत किए थे जिसमें बारह देश एकमत थे कि- एशिया में स्वेच्छाचारिता का आइकॉन बना चीन और उसका भाई उत्तर कोरिया प्रभावहीन हो जाए । इससे स्पष्ट है कि अमेरिका अपनी उन गलतियों को सुधारना चाहता है जो बिल क्लिंटन  एवं बराक ओबामा के कार्यकाल में चीन को खुली छूट दी गई थी और इस छूट के दुष्परिणाम अमेरिका ने ही देखें थे । अर्थात विश्व के साथ अमेरिका की विदेश नीति में आंशिक बदलाव के साथ चीन के प्रति आक्रामक होगी ।
इस आलेख के प्रारंभ में दक्षिण एशिया के संबंध में अमेरिका की पॉलिसी का जिक्र करना बहुत आवश्यक है।
दक्षिण एशिया में भारत एकमात्र विचार योग्य बिंदु होगा वह भी व्यापारिक संदर्भ में । पेंटागन एवं अमेरिकी प्रशासन यह सुनिश्चित कर चुका है कि भारत उसके लिए बहुत बेहद महत्वपूर्ण है डेमोक्रेट प्रधान के रूप में जो बाइडन स्पेस न्यूक्लियर एनर्जी  तकनीकी बिंदुओं पर रिश्ते  डोनाल्ड ट्रंप से अधिक महत्व देंगे की एवं रक्षा संबंधों में 2 +2  पर हस्ताक्षरित दस्तावेजों को रिविज़िट नहीं करना पड़ेगा बल्कि ट्रांस पेसिफिक पार्टनरशिप समझौते का आयोजित करते हुए अमेरिका चीन के प्रति वही मूड एवं रवैया रखेगा जो ट्रंप का था।
जहां तक कमला हैरिस की बात है तो भी कश्मीर मुद्दे को अब पेंटागन के नजरिए से समझेंगीं उम्मीद है कि कमला हैरिस कश्मीर मुद्दे पर कोई ऐसे वक्तव्य नहीं देंगी जिससे पाकिस्तान को कोई मदद मिल सके।
   यह बात सही है कि सर्व सुविधा संपन्न अमेरिका की कांग्रेस सदस्य धारा 370 और 35 इस संबंध में बहुत अधिक ध्यान नहीं रखते हैं। परंतु पाकिस्तान द्वारा गिलगित बालटिस्तान पर निकट भविष्य में उठाए जाने वाले कदम से पाकिस्तान स्वयं ही एक्सपोज हो जाएगा।
अफगानिस्तान के संदर्भ में अमेरिका अब अपनी पॉलिसी नए नेतृत्व में यथासंभव यथावत ही रखेगा जब तक कि कोई विशेष परिस्थिति निर्मित नहीं होती है।
हां यह अवश्य है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं भीषण आर्थिक संकट झेल रहे देशों के लिए इस शर्त पर कुछ पैकेज अवश्य उपलब्ध हो सकते हैं जिससे वहां के नागरिक न्यूनतम सामान्य जीवन व्यतीत कर सकें।
जो बाइडन सत्ता में आने के पुख्ता हो जाने के साथ ही भारत के पूंजी बाजार की स्थिति मजबूत होने लगी है। ऐसा माना जा रहा है कि अमेरिका में टैक्स और आयात ड्यूटी खास तौर पर चीन जैसे देशों के लिए बढ़ाई जाएंगी । साथ ही साथ संस्थागत निवेशकों विश्व पूंजी बाजार में भागीदारी के अवसर बढ़ जाएंगे।
जो बाइडन कोविड-19 के संकट को गंभीरता से ले सकेंगे। इस बिंदु पर भी कई बार रिपब्लिकन उम्मीदवार पर हमलावर भी हुए थे। अमेरिका के बाद भारत सर्वाधिक प्रभावित रहा है कोविड-19 से पर भारत ने कोरोना महामारी से  मौतों पर नियंत्रण किया जिसकी दर मात्र 1.5% से भी कम होती चली गई जो भारत की अपनी सफलता है।
   अमेरिकी प्रशासन खास तौर पर पेंटागन साइबर टेक्नोलॉजी एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी पर विशेष ध्यान देगा अतः h1b वीजा सरल होना सुनिश्चित है । जिसका लाभ सीधा और साफ तौर  भारतीय युवाओं के लिए महत्वपूर्ण हो जाएगा।
कुल मिलाकर अमेरिकी विदेश नीति बराक ओबामा के कार्यकाल की नीतियां कुछ मामलों में पुनः स्थापित की जाएंगी और आंशिक बदलाव के साथ डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को यथावत स्थापित रखा जाना संभावित है। सुधि पाठक यह स्पष्ट रूप से समझ ले अमेरिका जॉर्ज वाशिंगटन से लेकर जो बाइडन तक अमेरिका के लिए ज्यादा संवेदी कि रहता है । चाहे वह रिपब्लिकन के नेतृत्व में हो या डेमोक्रेट्स के।
अंत में एक मज़ाकिया बात- बाइडन जी, किस देवता की मूर्ति अपने साथ रखेंगे..!
अरे...वे सजीव कमला देवी साथ हैं... जिसे आप देवी लक्ष्मी के रूप में पूजते हैं ! 
( girishbillore@gmail.com )

शुक्रवार, नवंबर 06, 2020

जर्मनी मीडिया डॉयचे वेले ने उठाए बेहूदा सवाल..!

जर्मनी का एक मीडिया हाउस डॉयचे वेले है ने अपने फेसबुक डिस्पैच में कहा है-"भारत विश्व की 10 निरंकुश व्यवस्थाओं में से एक है"
डिस्पैच में मीडिया हाउस  ने वी डैम इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर स्टीफन लिग बैक की हालिया प्रकाशित रिपोर्ट  के आधार पर 180 देशों के 3000 शिक्षाविदों के साथ एक विशेष प्रश्नोत्तरी पर आधारित यह निष्कर्ष निकाला है । डॉयचे वेले का यह मानना है कि-"2014 के बाद से भारतीय आजादी के बाद प्रजातांत्रिक स्थिति में काफी गिरावट हुई है ...!"
   स्टीफन स्वयं भी इस संदर्भ में अपने बयान देते हुए नजर आते हैं।
डॉयचे वेले के इस डिस्पैच का खुलकर न केवल खंडन करना चाहिए बल्कि ऐसे डिस्पैच प्रस्तुत करने पर उसकी निंदा भी करनी चाहिए । हम वॉल्टेयर  के उस सिद्धांत का पालन करते हैं और स्वीकृति भी देते हैं कि असहमति का सम्मान करना चाहिए। परंतु 130 करोड़ भारतीय आबादी जो विश्व की सबसे बड़ी प्रजातांत्रिक व्यवस्था है के आयातित विचारधाराओं के साथ जुड़े शिक्षाविदों को कोई भी अधिकार नहीं है कि वह बिना तथ्य को समझे जाने  इस तरह के जवाब दें कि एक नेगेटिव दे कि एक नेगेटिव नैरेटिव को स्थापित किया जा सके ।
   2014 से किसकी सरकार है  यह आप सब समझते हैं। जहां तक एक भारतीय लेखक होने के नाते डॉयचे वेले से आग्रह करना चाहूंगा कि वे देश के कुछ गाँवो शहरों का भ्रमण उसी प्रश्नावली के साथ किसी वास्तविक भारतीय के साथ जाकर या स्वयं भी जाकर देखें तो पता चलेगा कि - "भारत में प्रजातंत्र की जड़ें कितनी मजबूत हैं..!" 
इस मीडिया हाउस ने यह भी मूल्यांकन नहीं किया कि सामान्य परिस्थितियों में एक बार आपातकाल की घोषणा की जा चुकी थी । 
 भारतीय प्रजातंत्र को निरंकुश साबित करने की कोशिश करना भारतीय मतदाताओं की खिलाफ एक नरेटिव के प्रयास के रूप में  आपके डिस्पैच को देखा जा रहा है । 
जर्मन के इस मीडिया हाउस को अगर यह तथ्य प्रस्तुत करना भी था तो वन साइडेड मूल्यांकन ना करते हुए वास्तविक परिस्थिति को भी समझना चाहिए था।

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