वर्तमान परिस्थितियों में देखा जाए तो लगभग 22 करोड़ आबादी वाला पाकिस्तान वैसे भी आर्थिक तंगी से गंभीर रूप से प्रभावित है। और यह खबर दक्षिण एशिया के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था किसी भी समय दक्षिण एशियाई देशों तथा उसके सहयोगी देशों में उनके शरणार्थियों की संख्या बढ़ा सकती है इस बारे में पूर्व में भी मेरी यही राय रही है।
अगर वाइटल स्टैटिसटिक्स पर ध्यान दिया जाए तो तो यह माना जाता है कि टॉप थ्री में पाकिस्तान ऐसा राष्ट्र है जहां पर बच्चों की कुपोषण की स्थिति बेहद गंभीर और चिंतनीय है। आशय स्पष्ट है कि पाकिस्तान जैसे राष्ट्र में आजादी के 70 से अधिक वर्ष बीत जाने के बावजूद मौलिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने कोई एक कारगर प्रोग्राम विकसित नहीं हो पाया है। जबकि भारत में अपने प्रारंभिक स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया है। तीसरी दुनिया के अधिकांश देश भारत की कोविड-19 वैक्सीनेशन प्रक्रिया पर गंभीरता से नजर गड़ाए हुए बैठे हैं। सहयोगी राष्ट्रों को भारत की इम्यूनाइजेशन प्रक्रिया का ज्ञान भी है। विश्व में पोलियो से निजात , संपूर्ण टीकाकरण अर्थात यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन और टीवी खसरा के उन्मूलन में भारत की भूमिका अपने आप में सफल मानी जाती है । दक्षिण एशियाई देशों खासतौर पर बांग्लादेश इस दिशा में पूरी सतर्कता के साथ काम कर रहा है लेकिन अपने ही को प्रबंधन के कारण समस्याओं से घिरा पाकिस्तान सामाजिक विकास के क्षेत्र में अभी भारत से 25 से 30 वर्ष पीछे है।
यूनिसेफ का कहना है कि भारत में बाल अधिकार जैसे बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य पोषण एवं उनके अधिकारों के संबंध में अन्य देशों की अपेक्षा अधिक सामाजिक स्वीकृति मिली है।
ऐसा नहीं है कि भारत जैसे देश में मुस्लिम आबादी ने इन कार्यक्रमों को असफल करने की कोई कोशिश की हो। किंतु सीएए के आंदोलन के दौरान एक नैरेटिव अवश्य आंदोलन कर्ताओं ने स्थापित करने की कोशिश की गई थी कि- "आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को आप कोई भी जानकारी ना दें..!"
परंतु सामान्य रूप से ऐसा प्रभावी नहीं हो सका क्योंकि भारतीय मुस्लिम समाज का अधिकांश हिस्सा सामान्य सुविधाओं से ना तो वंचित रहना चाहता और ना ही उसमें ऐसी कोई भावना को सहमति ही मिल सकती है। यहां में आंगनवाड़ी कार्यक्रम का जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत कोविड-19 वैक्सीनेशन का बेहद प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन निकट भविष्य में संभव हो सकेगा ।
प्रत्येक 400 से 800 की जनसंख्या पर भारत सरकार ने ऐसे केंद्रों को स्थापित किया है जिनके माध्यम से प्रसव से पूर्व तथा जन्म के बाद तक बच्चों एवं प्रसूताओं के स्वास्थ्य की रिकॉर्ड को संधारित किया जाता है। यह प्रक्रिया स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित सभी योजनाओं के लिए एक सहयोगी प्रक्रिया के रूप में चिन्हित की गई है। प्रत्येक परिवार की जानकारी एक खास तौर पर तैयार रजिस्टर के माध्यम से संधारित की जाती है। कुल मिलाकर भारत सरकार के पास प्रत्येक गांव की ताजा जनसंख्या और वैक्सीन की आवश्यकता का आंकलन कोविड-19 के संदर्भ में आसानी से किया जा सकता है ।
दक्षिण एशिया का शायद ही कोई ऐसा देश है जहां पर इतनी सुचारू रूप से यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम चलाया जा सकता हो । आपको स्मरण होगा कि आंगनवाड़ी कार्यक्रम की उपयोगिता और उसका स्वास्थ्य सेवाओं के साथ सिंक्रनाइजेशन बढ़ने के साथ-साथ भारत में शिशु मृत्यु दर और बाल मृत्यु दर में भारी गिरावट पिछले 20 वर्षों में देखी गई है। बाल विवाह की दर अचानक गिरावट होना भी इसी कार्यक्रम की ताकि निशानी है।
यहां यह कहना बहुत जरूरी है कि जो देश अपनी जनता के प्रति सजग नहीं रहते उन्हें पाकिस्तानी जैसे स्टेटमेंट देने पड़ते हैं आज जब पूरा विश्व अपने नागरिकों को बचाने के लिए दक्षिण कोविड-19 के वैक्सीनेशन के लिए परेशान है वहीं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट साथियों का ऑफीशियली ऐलान करना कि केवल सोशल डिस्टेंसिंग के माध्यम से आवाम अपने आपको कोविड-19 के खतरे से बचा के रखें...! हास्यास्पद प्रतीत होता है। भारत के सापेक्ष स्वयं को तुलना करने वाले इस राष्ट्र को अभी भी अपनी मानव संसाधन के विकास की निरंतर कार्य करने की जरूरत है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था किसी भी समय दक्षिण एशियाई देशों तथा उसके सहयोगी देशों में उनके शरणार्थियों की संख्या बढ़ा सकती है इस बारे में पूर्व में भी मेरी यही राय रही है।
अगर वाइटल स्टैटिसटिक्स पर ध्यान दिया जाए तो तो यह माना जाता है कि टॉप थ्री में पाकिस्तान ऐसा राष्ट्र है जहां पर बच्चों की कुपोषण की स्थिति बेहद गंभीर और चिंतनीय है। आशय स्पष्ट है कि पाकिस्तान जैसे राष्ट्र में आजादी के 70 से अधिक वर्ष बीत जाने के बावजूद मौलिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने कोई एक कारगर प्रोग्राम विकसित नहीं हो पाया है। जबकि भारत में अपने प्रारंभिक स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रम को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया है। तीसरी दुनिया के अधिकांश देश भारत की कोविड-19 वैक्सीनेशन प्रक्रिया पर गंभीरता से नजर गड़ाए हुए बैठे हैं। सहयोगी राष्ट्रों को भारत की इम्यूनाइजेशन प्रक्रिया का ज्ञान भी है। विश्व में पोलियो से निजात , संपूर्ण टीकाकरण अर्थात यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन और टीवी खसरा के उन्मूलन में भारत की भूमिका अपने आप में सफल मानी जाती है । दक्षिण एशियाई देशों खासतौर पर बांग्लादेश इस दिशा में पूरी सतर्कता के साथ काम कर रहा है लेकिन अपने ही को प्रबंधन के कारण समस्याओं से घिरा पाकिस्तान सामाजिक विकास के क्षेत्र में अभी भारत से 25 से 30 वर्ष पीछे है।
यूनिसेफ का कहना है कि भारत में बाल अधिकार जैसे बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य पोषण एवं उनके अधिकारों के संबंध में अन्य देशों की अपेक्षा अधिक सामाजिक स्वीकृति मिली है।
ऐसा नहीं है कि भारत जैसे देश में मुस्लिम आबादी ने इन कार्यक्रमों को असफल करने की कोई कोशिश की हो। किंतु सीएए के आंदोलन के दौरान एक नैरेटिव अवश्य आंदोलन कर्ताओं ने स्थापित करने की कोशिश की गई थी कि- "आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को आप कोई भी जानकारी ना दें..!"
परंतु सामान्य रूप से ऐसा प्रभावी नहीं हो सका क्योंकि भारतीय मुस्लिम समाज का अधिकांश हिस्सा सामान्य सुविधाओं से ना तो वंचित रहना चाहता और ना ही उसमें ऐसी कोई भावना को सहमति ही मिल सकती है। यहां में आंगनवाड़ी कार्यक्रम का जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत कोविड-19 वैक्सीनेशन का बेहद प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन निकट भविष्य में संभव हो सकेगा ।
प्रत्येक 400 से 800 की जनसंख्या पर भारत सरकार ने ऐसे केंद्रों को स्थापित किया है जिनके माध्यम से प्रसव से पूर्व तथा जन्म के बाद तक बच्चों एवं प्रसूताओं के स्वास्थ्य की रिकॉर्ड को संधारित किया जाता है। यह प्रक्रिया स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित सभी योजनाओं के लिए एक सहयोगी प्रक्रिया के रूप में चिन्हित की गई है। प्रत्येक परिवार की जानकारी एक खास तौर पर तैयार रजिस्टर के माध्यम से संधारित की जाती है। कुल मिलाकर भारत सरकार के पास प्रत्येक गांव की ताजा जनसंख्या और वैक्सीन की आवश्यकता का आंकलन कोविड-19 के संदर्भ में आसानी से किया जा सकता है ।
दक्षिण एशिया का शायद ही कोई ऐसा देश है जहां पर इतनी सुचारू रूप से यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम चलाया जा सकता हो । आपको स्मरण होगा कि आंगनवाड़ी कार्यक्रम की उपयोगिता और उसका स्वास्थ्य सेवाओं के साथ सिंक्रनाइजेशन बढ़ने के साथ-साथ भारत में शिशु मृत्यु दर और बाल मृत्यु दर में भारी गिरावट पिछले 20 वर्षों में देखी गई है। बाल विवाह की दर अचानक गिरावट होना भी इसी कार्यक्रम की ताकि निशानी है।
यहां यह कहना बहुत जरूरी है कि जो देश अपनी जनता के प्रति सजग नहीं रहते उन्हें पाकिस्तानी जैसे स्टेटमेंट देने पड़ते हैं आज जब पूरा विश्व अपने नागरिकों को बचाने के लिए दक्षिण कोविड-19 के वैक्सीनेशन के लिए परेशान है वहीं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट साथियों का ऑफीशियली ऐलान करना कि केवल सोशल डिस्टेंसिंग के माध्यम से आवाम अपने आपको कोविड-19 के खतरे से बचा के रखें...! हास्यास्पद प्रतीत होता है। भारत के सापेक्ष स्वयं को तुलना करने वाले इस राष्ट्र को अभी भी अपनी मानव संसाधन के विकास की निरंतर कार्य करने की जरूरत है।