13.9.11

न्यू मीडिया में हिंदी की दशा और दिशा : कनिष्क कश्यप


           न्यू मीडिया , विशेष तौर पर हिंदी न्यू मीडिया जिसका सबसे लघु इकाई एक ब्लॉग को कहा जा सकते, अब तक का सर्वाधिक उपेक्षित और गैर-प्रभावी बता कर उपेक्षा की दृष्टि सहता रहा है. यह सत्य है कि न्यू मीडिया शब्द के मायने इतने संकीर्ण नहीं कि मात्र ब्लॉग लेखन ही उसकी परिधि में  आये. यह एक तकनिकी क्रांति के बाद और विशेष तौर पर डाटा ट्रान्सफर ओवर वर्ल्ड वाइड वेब के क्षेत्र में आये चमत्कारी परिवर्तन के कारण इतना आग्रही हो गया कि इसे समान्तर मीडिया की तरह देखने और आंकने की  बौद्धिक मजबूरी पैदा होती गयी.

आभार:ब्लॉग ठाले बैठे 
इसकी परिधि एक ब्लॉग , एक वेबसाईट से लेकर फेसबुक , ट्वीटर , विकिपीडिया और यु-ट्यूब के प्रभावी हस्तक्षेप से कहीं आगे कनवर्जेन्स तक को समेटे हुए है. कनवर्जेन्स का अर्थ है आपके मोबाइल फोन (आई-फोन), पॉम पैड में पुरे सुचना तंत्र का विलय हो जाना . अब चाहे वह टीवी हो , अखबार का ऑनलाइन संस्करण हो, रेडियो प्रसारण हो , फेसबुक हो या आपका ब्लॉगस्पोट का ब्लॉग. यह सब सिमट कर एक छोटे डिवाइस में आ जाना ही कनवर्जेन्स कहलाता है.
अब बुनियादी सवाल यह उठता है , कि आम आदमी को मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक चैलेन्ज के रूप में क्यूँ माना जा रहा है. जब सम्प्रेषण, प्रस्तुति, व्यापकता और विश्वसनीयता के आधार पर आज भी परंपरागत मीडिया ..छोटी मछलिओं के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रभावी हैं. आज भी इंटनेट पर टाइम्स , भाष्कर और गार्जियन वैसे ही काबिज हैं. सुचना प्रवाह के इस विशाल समंदर में आपकी आवाज तो है , मगर वह हाशिए पर है . वह उस रिक्त स्थान में हैं , जिसे ताक पर कहते हैं. यह दुर्दशा विशेष तौर पर भारत में हैं और उसमे भी हिंदी के इर्द-गिर्द.
हिंदी के प्रति उदासीनता सबसे ज्यादा उनकी ही हैं , जिन्हें हिंदी आती है. मात्र  हिंदी के ज्ञान लिए और अंग्रेजी को टटोलने वाले लोग अंग्रेजियत के बड़े दीवाने दीखते हैं. इसका सीधा असर हिंदी ऑनलाइन मीडिया में बाजार के बेरुखी के रूप में सामने आता है. परन्तु इसे शिकायत के तौर पर नहीं लेकर हमें चुनौती के रूप में देखना पड़ेगा. चुनौती हिंदी के अस्तित्व को समृद्ध , सशक्त और सक्षम बनाये रखने की. क्योंकि आप किसी सहयोग , समर्थन की आस लिए इस क्षेत्र में उतरें हैं तो आपको निराशा ही मिलेगी . संवेदना के बर्बर मर्दन में यकीं रखने वाले ..बाजारवाद के अधीन इस न्यू मीडिया का प्रयोग-पटल भी अलग नहीं है . हाँ , इसमें आपको चूं -चूं करने भर के लिए जरूर आजाद छोड़ रखा है. क्योंकि इस बाज़ार के प्रभावी खिलाडिओं को यह अच्छी तरह पता है ..कि आपकी चूं-चूं उनके लिए बड़े बगीचे में चहचहाने वाले चिड़िया से ज्यादा कुछ और नहीं.  जिसे उतनी ही आजादी मिलती है कि वह मौसम पर अपना मिजाज चूं-चूं कर जाहिर कर सके. मौसम बदलने की ताकत उसमे नहीं.शायद यह ट्वीटर यहीं दर्शाता है.जहाँ अमिताभ बच्चन और राहुल गाँधी ने क्या कहा यह उल्लेखनीय अवश्य है , परन्तु वहीँ बात अगर आप उसी ट्वीटर पर चार साल से कह रहे तो भी आपको कोई नहीं पूछता. न्यू मीडिया में बड़े खिलाडिओं की उपलब्धि की कतार में अपने को खड़ा मानना आपका और हमारा दिवास्वपन है. मुझे याद याता है , पल्लू शॉट जी हाँ  ..दिलशान का पल्लू शॉट . आज जिसे दिलशान का पल्लू शॉट कहा जाता है ..उसे बिहार की गलिओं में हमने हजारों बार खेला . और हमने क्या बच्चा-बच्चा यह शॉट खेला करता है.  मुझे यह सारी स्थिति कुछ -कुछ ऐसा ही आभास दिलाती है, जैसे मोनियुल -हक स्टेडियम के बाहर के खाली फील्ड में खेलने का वक्त होता था. असल मैच तो स्टेडियम के अंदर चल रहा होता है. किन्तु बहार खेलने वाले भी यहीं कहते हैं कि मोनियुल-हक से खेल कर आ रहे हैं.
परन्तु इस कथन में मेरी कोई  दोष-दर्शिता को नहीं देखें . इसके अलग मायने हैं. परन्तु किसी भी तंत्र में कुछ तो फल को खाने वाले होते हैं, उन्हें यह फिक्र नहीं होती और न ही उनसे अपेक्षा की जाए कि वह फल खाने से पहले आम की नस्ल , उसकी लागत , उसकी पैदावार और उसके मालिक का पता लगा कर फल खायेंगे. और दूसरी जमात उन लोगों की होती है जो फल के पैदावार , उसके व्यापर और नस्ल , स्थानीय बाज़ार पर उसका प्रभाव, भविष्य के स्पंदन पर नज़र बनाये रखते हैं. ऐसे ही लोगों को आप कभी फेसबुक और ट्वीटर पर चिंतित होते हुए यत्र-तत्र पाते हैं. कई तो इनकी चिंता को इनकी अज्ञानता और कई इन्हें रुढिवादी बता कर उपहास करते हैं. परन्तु यह चिंता वाजिब है.
लेकिन सवाल कठिन तब हो जाता है , जब आप स्थानीय उपक्रम को राष्ट्र-प्रेम , भाषा-मोह में आकार अपना समर्थन और सहानुभूति देते हैं  और कल वहीँ तथाकथित देशी , विदेशी चोला पहनने लगता है . इसे अंग्रेजों से मिली मुक्ति के बाद के दिनों में बनी बॉलीवुड फिल्मों को देखर समझा जा सकता है. सब से सब अंग्रेजियत से सराबोर हैं . और तो और ..हिंदी भी अंग्रजी की तरह बोलते नज़र आते हैं . फिर चाहे वह भारतीय राजनीती ही क्यों न हो. शोषण तो अब भी बदस्तूर जारी है. नायक बदल गए हैं , अपर पटकथा वहीँ है , परिणति वहीँ है .
हिंदी को न्यू मीडिया में प्रभावी रखने के लिए वर्तमान  निकायों का विकेन्द्रीकरण आवश्यक है.  अपनी कमजोरी को ही अपना हथियार बनाना होगा. इसमें हमारी कमजोरी और बौना होने का अहसास सिर्फ इसीलिए है कि ..एक ब्लॉग और एक वेबसाईट , बहुत ही कम लागत पर शुरू हो जाती है और संपादन सुख लेते हुए आप अपना हस्तक्षेप को तैयार हो जाते हैं. लेकिन गलती यहीं है कि हम किसी बड़े हाउस की तरह बर्ताव करने लगने हैं. आवश्यकता है अपनी खोज, उर्जा और आवाज को ग्रामीण स्तर पर ले जाने की . क्योंकि वह क्षेत्र आज मुख्यधारा द्वारा उपेक्षित हैं.आपकी सक्रियता वहाँ आपकी पैठ आसानी से बना देगी . फिर कल को कोई आपको चुनौती देने आये ..तब तक आप अपनी पहचान स्थानीय स्तर पर बना चुके होंगे.
(लेखक कनिष्क कश्यप  न्यू मीडिया विशेषज्ञ है )

12.9.11

हिंदी दिवस पर विशेष : लेट अस ट्राय टू स्पीक हिन्दी


                       राजभाषा,राष्ट्रभाषा यानी ग़रीब-देश की ग़रीब-भाषा को नमन करते हुए हम भारतवासी अपनी भाषा के प्रति कितने ईमानदार हैं इस बात का अंदाज़ पहले-दर्ज़े के कूपे में बिराजे मेरे सह यात्री जोड़े के मेरे एवम श्रीमति जी के बीच चल रही हिंदी भाषा में बातचीत पर किये गये तंज़ से लगाया जा सकता है. 
  • Ramola Do you know how to talk in hind..?
  • No, i don't want this 
  • pl. let us try to speek hindi...
                  और वे हमारी ओर देख कर मुस्कुरा दिये. बेटी शिवानी को जो हमसे हिंदी में बात कर रही थी ने उनके हाव-भाव बांच लिये. झट मेरे बस्ते से "आर.के.नारायण" की किताब ”Swami & Friends”ली और पढ़ने लगी.मेरी प्रश्नवाचक निगाहों को पढ़ते हुए शिवानी बोली :- "I am trying to know about india through Narayana "  
            उस वक़्त शिवानी दसवें दर्ज़े में थी.उसे राष्ट्र भाषा के प्रयोग की वज़ह से उसके मां-बाप का अपमान कितना दु:खी कर-गया था इसका अंदाज़ मुझे न था.मैं समझ गया कि वो उस जोड़े को बता देना चाहती थी कि मेरे पापा गंवार नहीं हैं.. कम-से-कम अंग्रेजी का इतना ग्यान तो रखते हैं कि आर.के.नारायण के ज़रिये जीवन को जान सकें. 
         रोटी की भाषा अंग्रेजी हम मध्य-वर्ग लिये मायने नहीं रखती हमारे लिये महत्वपूर्ण है "जीवन की भाषा जो हमें हमारे जीवन-मूल्यों से परिचित कराए और वो है हमारी राष्ट्र भाषा यानी हिंदी."
        वे लोग भ्रमित हैं कि वे अंग्रेजी के ज़रिये स्वयंभू तौर पर  स्टेटस हासिल कर लेते हैं. मेरी बेटी ही काफ़ी थी उन नासमझों के लिये.   
 शिवानी को मैंने समझाया :-” बेटे,भाषा,बोली, तब तक व्यर्थ है जब तक उसमें संस्कार के दर्शन न हों. 
मेरी हां में अपनी हां मिलाते हुए शिवानी हंस दी और बोली :"Papa let us try to understend feelings haa haa haa ?" 
    सह यात्री जोड़े के चेहरे पढ़ने लायक थे परसाई के शहर की चुहिया भी तीखा तंज-करेगी उन्हैं गुमान न था . 
     मुझे नींद ने घेर लिया इटारसी आते आते तक जोड़ा मेरी बेटी शिवानी और मेरी श्रीमति  से हिंदी में बात करता पाया गया . उन्हैं दिल्ली वाली गाड़ी पकड़नी थी हमें भोपाल वाली.मुझे तो ये किस्सा ता उम्र याद रहेगा और उनको यह चोट .

10.9.11

होना तो यही चाहिए.....

बेटी को आदत है घर लौटकर ये बताने की- कि आज का दिन कैसे बीता।आज  जब ऑफ़िस से लौटी तो बड़ी खुश लग रही,चहचहाते हुए घर लौटी...दिल खुश हो जाता है- जब बच्चों को खुश देखती हूँ तो, चेहरा देखते ही पूछा-क्या बात है बस आते ही उसका टेप चालू हो गया-----
- पता है मम्मी आज तो मजा ही आ गया।
-क्या हुआ ऐसा ?
-हुआ यूँ कि जब मैं एक चौराहे पर पहुँची तो लाल बत्ती हो गई थी,मैं रूकी ,मेरे बाजू वाले अंकल भी रूके तभी पीछे से एक लड़का बाईक पर आया और हमारे पीछे हार्न बजाने लगा,मैंने मुड़कर देखा ,जगह नहीं थी फ़िर से थोड़ा झुककर उसे आगे आने दिया ताकि हार्न बन्द हो....
-फ़िर ..
-वो हमसे आगे निकला और लगभग बीच में (क्रासिंग से बहुत आगे) जाकर (औपचारिकतावश) खड़ा हो गया..
- तो इसमें क्या खास बात हो गई ऐसा तो कई लड़के करते हैं ?
-हाँ,...आगे तो सुनो-- उसने "मैं अन्ना हूँ" वाली टोपी लगा रखी थी ..
-ओह ! फ़िर ?
-तभी सड़क के किनारे से लाठी टेकते हुए एक दादाजी धीरे-धीरे चलकर उस के पास आये और उससे कहा-"बेटा अभी तो लाल बत्ती है ,तुम कितना आगे आकर खड़े हो".
-फ़िर ?
-....उस लड़के ने हँसते हुए मुँह बिचका दिया जैसे कहा हो -हुंह!!
- ह्म्म्म तो ?
-फ़िर वो दादाजी थोड़ा आगे आए ,अपनी लकड़ी बगल में दबाई और दोनों हाथों से उसके सिर पर पहनी टोपी इज्जत से उतार ली ,झटक कर साफ़ की और उससे कहा - इनका नाम क्यों खराब कर रहे हो? और टोपी तह करके अपनी जेब में रख ली....और मैं जोर से चिल्ला उठी -जे SSSS ब्बात........
(मैं भी चिल्ला उठी --वाऊऊऊऊ ) हँसते हुए आगे बताया- ये देखकर चौराहे पर खड़े सब लोग हँसने लगे ....इतने में हरी बत्ती भी हो गई..वो लड़का चुपचाप खड़ा रहा ,आगे बढ़ना ही भूल गया..जब हम थोड़े आगे आए तो बाजू वाले अंकल ने उससे कहा- चलो बेटा अब तो ---हरी हो गई.....हा हा हा...


ह्म्म्म होना तो यही चाहिए मुझे भी लगा,हमें अपने आप में ही सुधार लाना होगा पहले ....
आपको क्या लगता है ?...


.







9.9.11

7.9.11

एक पुचकार की बाट जोहते मुंह से ऊं कूं कूं .. आवाज़ निकालते लोग !!


अक्सर तलाशता हूं
दूर तक निगाहैं जमा जमा के
लोगों नपुंसक-भीड़ में
एकाध जिगरे वाले को ...
जो दिखता नहीं हैं..
अपने हरामखोर बास
को बाहर  से गरियाते
और सामने
एक पुचकार की बाट जोहते  
मुंह से ऊं कूं कूं .. आवाज़ निकालते लोग !!
मज़बूरी हैं..
हरवक़्त  वफ़ादारी की
गवाही पेश करना  उनके लिये
ज़रूरी है..!!
कुत्ते की तरह वफ़ादारी
चाहते है मालिक..
ज़रूर वफ़ादार रहो
पर ऐसा न हो कि
कुत्ते के कुछ और
दुर्गुण आ जाएं तुम में ..
आचार-विचार और आहार से
कुत्ता न बनना मेरे दोस्त !!
Ø गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

6.9.11

ऐसी वाणी बोलिए...

 प्रस्तुत है राकेश कुमार जी के ब्लॉग मनसा वाचा कर्मणा से एक पोस्ट




सुर और असुर समाज में हमेशा से ही होते आयें हैं.  सुर वे जन हैं जो अपने विचारों ,भावों
और कर्मो के माध्यम से खुद अपने में  व समाज में  सुर ,संगीत और हार्मोनी लाकर
आनन्द और शांति की स्थापना करने की कोशिश में लगे रहते हैं.  जबकि असुर  वे  हैं
जो इसके विपरीत, सुर और संगीत के बजाय अपने विचारों ,भावों और कर्मो के द्वारा
अप्रिय शोर  उत्पन्न करते रहते हैं और समाज में अशांति फैलाने में कोई कोर कसर
नहीं छोड़ते.   इसका मुख्य कारण तो यह ही समझ में आता है कि सुर जहाँ ज्ञान का
अनुसरण कर जीवन में 'श्रेय मार्गको   अपनाना अपना ध्येय  बनाते हैं वहीँ असुर अज्ञान
के कारण 'प्रेय मार्गपर ही अग्रसर रहना पसंद करते हैं और जीवन के अमूल्य वरदान को भी 
 निष्फल कर देते हैं. 
'प्रेय मार्गतब तक  जरूर अच्छा लगेगा जब तक यह हमें भटकन ,उलझन ,टूटन  व अनबन
आदि नहीं प्रदान कर देता.  जब मन विषाद से अत्यंत ग्रस्त हो जाता है तभी हम कुछ
सोचने  और समझने को मजबूर होते हैं. यदि हमारा सौभाग्य हो तो ऐसे में ही संत समाज
और सदग्रंथ हमे प्रेरणा प्रदान कर उचित मार्गदर्शन करते हैं.
वास्तव में तो चिर स्थाई चेतन आनन्द की खोज में हम सभी लगे हैं. जिसे शास्त्रों में
ईश्वर के नाम से पुकारा गया है. ईश्वर के बारें में हमारे शास्त्र बहुत स्पष्ट हैं.
यह कोई ऐसा .काल्पनिक  विचार नहीं कि जिसको पाया न जा सके. इसके लिए 
आईये  भगवद गीता अध्याय १० श्लोक ३२ (विभूति योग) में  ईश्वर के बारे में दिए गए
निम्न शब्दों पर विचार करते हैं .

5.9.11

योग्य शिष्य ही गुरु की सबसे बड़ी दौलत - वित्त मंत्री राघव जी, गुरुजनों के सम्मान में सदैव नतमस्तक रहूँगा - सहकारिता मंत्री श्री बिसेन


शिक्षक दिवस के अवसर पर आज बालाघाट में ऐतिहासिक शिक्षक सम्मान समारोह में एक हजार शिक्षकों का सम्मान किया गया। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री गौरी शंकर बिसेन ने गुरुजनों की वंदना करते हुए उनकी चरण-रज माथे पर लगाकर विद्यार्थियों के सामने उदाहरण पेश किया।
प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा राष्ट्रपति पदक से अलंकृत स्वर्गीय श्री श्यामबिहारी वर्मा की स्मृति में आयोजित गुरूजन सम्मान एवं चरण-पूजन समारोह के मुख्य अतिथि वित्त मंत्री राघवजी ने गुरुजनों के सम्मान समारोह को ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा कि गुरूजनों को उनके योग्य शिष्य मंत्री श्री गौरीशंकर बिसेन द्वारा दिया गया यह सम्मान अविस्मरणीय रहेगा।
श्री राघवजी ने कहा कि योग्य शिष्य ही गुरू की महिमा एवं सम्मान को बढ़ाता है। गुरू वशिष्ठ का सम्मान राम-लक्ष्मण ने बढ़ाया था। इसी तरह गुरू सांदीपनि-श्रीकृष्ण, समर्थ गुरू रामदास-शिवाजी और गुरू चाणक्य के शिष्य चन्द्रगुप्त की कीर्ति से कौन परिचित नहीं है।
मंत्री श्री राघवजी ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में राज्य सरकार ने विगत साढ़े सात वर्षों में शासन के सीमित साधनों के बावजूद गुरूजनों को भरपूर सम्मान दिया है। उन्होंने कहा कि भविष्य में भी सरकार गुरूजनों की समस्याओं के निराकरण में पीछे नहीं रहेगी। श्री राघवजी ने बताया कि उन्होंने भी दो वर्ष तक अध्यापन कार्य किया है।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री श्री गौरीशंकर बिसेन ने कहा कि आज मैं जो कुछ भी हूँ वह गुरूजनों द्वारा दिये गये संस्कार, ज्ञान और कृपा की बदौलत हूँ। मंत्री श्री बिसेन ने कहा कि अगले वर्ष भी शिक्षक दिवस के अवसर पर गुरूजनों के सम्मान में भव्य एवं गरिमामय समारोह का आयोजन किया जायेगा।
प्रारंभ में मंत्री श्री बिसेन और श्रीमती रेखा बिसेन ने गुरुजनों का चरण पखार, चरण रज को माथे पर लगाकर, तिलक लगाकर, पगड़ी पहना कर, शाल, श्रीफल और मिष्ठान्न भेंट कर सम्मान किया।
समारोह में गुरुजन ने मंत्री श्री बिसेन के बचपन के संस्मरण सुनाये। मंत्री श्री बिसेन ने भी स्वर्गीय पं. श्यामबिहारी वर्मा के कड़े अनुशासन तथा शिक्षा के प्रति उनके समर्पित व्यक्तित्व का स्मरण किया। उन्होंने स्वर्गीय वर्मा के पुत्र धीरेन्द्र वर्मा एवं परिजनों को सम्मानित किया। मंत्री द्वय ने समारोह की स्मारिका का भी विमोचन किया।
समारोह में छिंदवाड़ा जिले के निवासी अमर शहीद अमित ठेंगे के माता-पिता का भी सम्मान हुआ।
दुर्गेश रायकवार

4.9.11

जनता खुद भ्रष्टाचार पनपाने के जतन में लगी हुई है


                      दरअसल जब से दुनिया बनीं है तब से दुनियां भर की समस्याएं भी बन गईं. समस्या है तो उनका ठीकरा किसके सर फ़ोड़ा जाए यह “खोज” दुनियां को नित-नये काम सुझाती है. अब भ्रष्टाचार को ही लीजिये यह आचरण कहां से शुरु हुआ इस पर विद्वान एक राय हो ही नहीं सकते. कोई कहता है कि ईव ने चाकू न होने की वज़ह से उस फ़ल का बिना काटे स्वाद चखा जिसमें विशेष प्रकार के कीड़े थे जो वे देख न सकीं. कुछ का मानना है कि भगवान की भूल की वज़ह से यह भाववाचक संग्या तेज़ी से हार्ट-टू-हार्ट हैल गई. लेकिन वर्तमान समय में इसे अन्ना के पीछे खड़ी हम भारतीयों की जमात ने नेताओं एवम कर्मचारियों के माथे पे दे मारा. बावज़ूद इसके कि बिना दिये कुछ मिलता नहीं का अनुपालन करती जनता खुद भ्रष्टाचार पनपाने के जतन में लगी हुई है. शादी के लिये लड़के का सौदा करना, खम्बों से बिजली चुराना, अपने फ़ायदे के लिये येन केन प्रकारेण किसी की भी दीवार पोत देना. दूसरों के भ्रष्टाचार को बुरा खुद के  किये भ्रष्टाचरण को अच्छा बताने वाले लोग उस समय सब कुछ भूल जातें हैं जब अपनी “बकत” बनाने के लिये इन सभी आचरणों का सहारा लेते हैं. एक व्यक्ति बेचारा समझता है कि दुनियां में जिसे कोई कष्ट होता है उसका कारण उस व्यक्ति का पाप करना है.. एक बारउस व्यक्ति के मित्र  किसी षड़यंत्र का शिकार बनाया गया तो वह व्यक्ति मित्र का उल्लेख कर कर के अपने नैतिकता मय यशस्वी जीवन गाथा का यश गान कर रहा था .. मित्र को उसके कार्यों की सतत रिपोर्ट मिल रही थी.मित्र भी  वैराग्य भाव से  उसे देखता रहा कभी उसका प्रतिकार नहीं किया करता भी क्यों उसे मालूम था कि :-“सलीब पर ईसा का टांगा जाना, राम का चौदह बरस के लिये वनवास भोगना उनके पाप का का परिणाम नहीं था  ”  
                           लोकपाल या जन लोकपाल बिल पास होगा इससे इस देश में कोई खास फ़र्क नहीं पड़ने जा रहा है. मारा सबसे कमज़ोर ही जाएगा जो उसकी नियति है.
                       है न सच्ची और खरी बात. हां,अन्ना ने जो करवाया उससे एक बात अवश्य सामने आई कि लोग भ्रष्टाचार से आज़िज़ आ चुके हैं. पर आत्म चिंतन कितने कर रहे हैं इस बात पर गौर करना ज़रूरी है.      
          यह परामर्श सभी के लिये है कि हमें भ्रष्टाचरण के प्रति घ्रणा होनी  और हम आत्म-चिंतन भी करें साथ साथ 

2.9.11

मध्य-प्रदेश बाल आयोग:श्रीमति रीना गुज़राल


"मध्य-प्रदेश बाल आयोग :एक परिचय"
          प्रस्तुति:   श्रीमति रीना गुज़राल,सदस्य, बाल आयोग 
                विश्व में सर्वाधिक बच्चों की संख्या भारत वर्ष में है और उनके कल्याण हित संरक्षण और सवंर्धन एवं विकास के लिए संविधान के अनुच्छेद 39 (ङ) तथा (च) अधिकारों का सुनिश्चय किया गया है। संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा अनुच्छेद 21 (क) जोडकर भारत का संविधान बच्चों के शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार के रुप में प्रस्तुत करता है। इसी तरह अनुच्छेद 51 (क) में एक प्रावधान जोडा गया है जिसमें नैर्सगिक पालकों को बच्चों को शिक्षा दिलाने के कर्त्तव्य के बारे में सचेत करता है। अनुच्छेद 45 में 06 वर्ष तक की आयु पूर्ण करने तक बाल्यावस्था में बच्चों की देखरेख एवं शिक्षा देने के उपबंध को सम्मिलित किया गया हैं । भारतीय संविधान का अनुच्छेद 24 कारखानों ,खदानों में जोखिम भरे कार्यों से 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को अलग रखने का निर्देश देता है।
इतना ही नहीं इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र संघ की सामान्य सभा 20 नवंबर 1989 के अंतरराष्ट्रीय अनुबंध में बाल अधिकारों के प्रति भारत ने अपनी प्रतिबद्धता दषिष्त की है। बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 (2006 के 4) के तहत बच्चों के अधिकारों के संरक्षण ,सुरक्षा ,प्रोत्साहन एवं विकास के लिए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग मार्च 2007 में एक वैधानिक निकाय के रुप में स्थापित किया गया। मध्यप्रदेष में भी बाल अधिकार संरक्षण आयोग का गठन किया जाकर जस्टिस शीला खन्ना ने आयोग के अध्यक्ष का कार्यभार  1 फरवरी 2010 को संभाला। इस अधिनियम में 18 वर्ष से कम आयु के मानव के बच्चों की परिभाषा में रखा गया है।
20 नवंबर 1989 संयुक्त राष्ट्र की संधि में बच्चों के अधिकारों से संबंधित मापदण्ड एवं प्रावधान 30 बिन्दुओं में व्यापक रुप से दर्शित हैं। जिसकस संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है:-
              माता पिता ,वैध संरक्षक के सामाजिक / आर्थिक स्तर, राष्ट्रीयता ,वर्ण ,जाति लिंग ,भाषा ,धर्म, राजनीतिक विचारधारा के आधार कोई भेदभाव नहीं होगा।  बच्चों के हितों के संदर्भ में संस्थागत ,सार्वजनिक एवं व्यैक्तिक कार्यों एवं िक्रयाकलापों को प्राथमिकता। प्रत्येक बच्चे को उत्तम जीवन जीने का एवं विकास जन्मजाति अधिकार है। बच्चों की मानसिक एवं शारीरिक सुरक्षा कर संपूर्ण विकास भी इसमें शामिल है। बच्चे को अपने नाम पहचान प्राप्त करने का अधिकार आराम विश्राम मनोरंजन ,शारीरिक ,मानसिक आत्मिक नैतिक विकास ,दैनंदिन जीवन स्वतंत्रता से जीने का अधिकार । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वैचारिक एवं धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को भी संधि में उल्लेखित किया है।
परिस्थिति वश कुछ बच्चे प्राकृतिक (नैसर्गिक) अभिभावकों से वंचित होते हैं तो सरकार से विशेष संरक्षण एवं सहायता प्राप्त करने का अधिकार सुनिष्चित किया गया है। नैसर्गिक अभिभावक अर्थात् माता पिता , तथा वैधानिक संरक्षक के कर्त्तव्यों को रेखांकित किया गया है। संधि पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्रों को यह भी सुनिष्चित करना होगा कि बच्चों के शारीरिक मानसिक शोशण उपेक्षापूर्ण व्यवहार ,तथा यौनिक शोषण से बचाने के लिए समुचित व्यवस्थाऐं की जावें। विशेष श्रेणी के बच्चों जो मानसिक शारीरिक रुप से विकलांग हैं को मुफत चिकित्सा सुविधा शिक्षण एवं जीन यापन करने में मदद दी जावेगी।
अनुबंधित राष्ट्र बच्चों को बीमारियों की रोकथाम तथा जन्म लेने एंव जीने के अधिकार को भी सुनिष्चित करेंगे। संधि में यह भी निष्चित किया गया है कि संधि पर हस्ताक्षर करने वाले राष्ट्र कानूनी एवं प्रशासनिक तौर पर एसे प्रावधान करेंगे। जिससे न तो बच्चे की गर्भ में मृत्यु हो न ही जन्म लेने के दौरान।
बच्चों की खरीद फरोख्त ,मादक द्रव्यों के व्यापार ,उपयोग एवं व्यवसाय से दूर रखने के लिए अनुबंधित राष्ट्रों को कानून बनाना अनिवार्य होगा। कोई भी बच्चा एसी किसी संस्था में भरती किया जावे न ही रखा जावे ,जहां हिसात्मक कार्यवाही की जाती है।
अपराधी अथवा दंडनीय कानूनों के उलल्घन के आरेापी बच्चों के सामाजिक स्थापना के लिए ,तथा उन्हें आदर्ष नागरिक के रुप में विकसित करने के लिए प्रयास करने के लिए अनुबंधकर्ता राष्ट्र उत्तरदायी होंगे।
उपरोक्त अंतरराष्ट्रीय संधि पत्र के प्रकाश में भारत में एकीकृत बाल सरंक्षण योजना की व्यवस्था सुनिष्चित की गई है। म.प्र.सरकार ने बाल अधिकार सरंक्षण आयोग अधिनियम 2005 की धारा 13 (1) में आयोग के ढांचे ,कार्यकलापों ,कर्त्तव्यों को विस्तार से उल्लेखित किया है। म.प्र.में गठित बाल संरक्षण आयोग बच्चों के लिए सुनिष्चित अधिकारों को पालन कराने , समस्याग्रस्त बच्चों के अधिकारों के संरक्षण की दिशा में सक्रिय होगा। जिसमें राज्य सरकारों के अतंर्गत आने वाले शासकीय संस्थानों , एजेंसियों ,विद्यालयों ,सुधार गृहों ,बच्चों के संरक्षण एवं विकास के लिए कार्यरत् शासकीय विभागों के कार्यकलापों पर निगाह रख सकेगा।
एक संवैधानिक संस्था के रुप में बाल अधिकारों के किसी भी स्तर पर हुए उल्लंघन के परिपेक्ष्य में प्राप्त शिकायतों , सूचनाओं  पर कार्यवाही कर सकेगा। आयेाग स्वप्रेरणा से भी अधिकारों के वंचन एवं उल्लंघन के मामलों को संज्ञान में ले सकेगा। म.प्र में बाल संरक्षण आयोग 2007 का नियम 10 बाल अधिकारों के प्रति अपने प्रस्ताव ,जांच रिपोर्ट ,अनुसंधान ,अघ्ययन ,रिर्पोटस के रुप में दे सकेगा।
शक्तियां
आयोग को दीवानी प्रक्रिया संहिता 1908 के नियम 5 के तहत दीवानी न्यायालय की शक्तियों प्राप्त हैं -
1. किसी भी व्यक्ति को बुलाना ,उसकी उपस्थिति को बाध्य करना तथा उसकी जांच करना ।
2. दस्तावेजों को खोजना एंव प्रस्तुत करना।
3. शपाथ पत्र के तहत साक्ष्य लेना
4. किसी भी कार्यालय एवं न्यायालय से सार्वजनिक अभिलेख की प्रति मंगाना
5. गवाहो या दस्तावेजों की जांच हेतु आज्ञा पत्र जारी करना।
6. क्षेत्राधिकार रखने वाले मजिस्ट्रेट को किसी प्रकरण को सुनवाई हेतु भेजना।
7. जांच की समाप्ति के उपरांत कार्यवाही
1. बाल अधिकारों अथवा तत्समय विधि प्रवृत्त विधि के उल्लंघन होने पर अभियोग चलाने की अनुशंसा
2. सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय को उन निर्देशों आदेशों या आदेश पत्रों के लिए प्रार्थना करना जिन्हे ंकोर्ट आवश्यक समझे।
3. सरकार या अन्य प्राधिकारण को पीडित या उसके परिवारजनों को मध्यकालीन सहायता की ,जैसे की उचित हो ,प्रतिपादन के लिए अनुशंसा करना।

प्रक्रिया -
परिवादों के निपटाने की प्रक्रिया के अंतर्गत समस्त परिवादों जो किसी भी प्रकार से प्राप्त हों को पंजीकृत करते हुए उन्हें एक क्रम दिया जावेगा तथा आगामी दो सप्ताह के भीतर सामान्य रुप से दो सदस्सीय न्यायपीठ में प्रकरण की स्वीकृति की जावेगी। परिवाद निपटाने में किसी भी तरह कोई शुल्क नहीं होगा। आयेाग स्वविवेक से तार ईमेल ,फैक्स के माध्यम से भेजी गई शिकायतो को स्वीकृति हेतु विचारार्थ रख सकेगा।

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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