10.9.11

होना तो यही चाहिए.....

बेटी को आदत है घर लौटकर ये बताने की- कि आज का दिन कैसे बीता।आज  जब ऑफ़िस से लौटी तो बड़ी खुश लग रही,चहचहाते हुए घर लौटी...दिल खुश हो जाता है- जब बच्चों को खुश देखती हूँ तो, चेहरा देखते ही पूछा-क्या बात है बस आते ही उसका टेप चालू हो गया-----
- पता है मम्मी आज तो मजा ही आ गया।
-क्या हुआ ऐसा ?
-हुआ यूँ कि जब मैं एक चौराहे पर पहुँची तो लाल बत्ती हो गई थी,मैं रूकी ,मेरे बाजू वाले अंकल भी रूके तभी पीछे से एक लड़का बाईक पर आया और हमारे पीछे हार्न बजाने लगा,मैंने मुड़कर देखा ,जगह नहीं थी फ़िर से थोड़ा झुककर उसे आगे आने दिया ताकि हार्न बन्द हो....
-फ़िर ..
-वो हमसे आगे निकला और लगभग बीच में (क्रासिंग से बहुत आगे) जाकर (औपचारिकतावश) खड़ा हो गया..
- तो इसमें क्या खास बात हो गई ऐसा तो कई लड़के करते हैं ?
-हाँ,...आगे तो सुनो-- उसने "मैं अन्ना हूँ" वाली टोपी लगा रखी थी ..
-ओह ! फ़िर ?
-तभी सड़क के किनारे से लाठी टेकते हुए एक दादाजी धीरे-धीरे चलकर उस के पास आये और उससे कहा-"बेटा अभी तो लाल बत्ती है ,तुम कितना आगे आकर खड़े हो".
-फ़िर ?
-....उस लड़के ने हँसते हुए मुँह बिचका दिया जैसे कहा हो -हुंह!!
- ह्म्म्म तो ?
-फ़िर वो दादाजी थोड़ा आगे आए ,अपनी लकड़ी बगल में दबाई और दोनों हाथों से उसके सिर पर पहनी टोपी इज्जत से उतार ली ,झटक कर साफ़ की और उससे कहा - इनका नाम क्यों खराब कर रहे हो? और टोपी तह करके अपनी जेब में रख ली....और मैं जोर से चिल्ला उठी -जे SSSS ब्बात........
(मैं भी चिल्ला उठी --वाऊऊऊऊ ) हँसते हुए आगे बताया- ये देखकर चौराहे पर खड़े सब लोग हँसने लगे ....इतने में हरी बत्ती भी हो गई..वो लड़का चुपचाप खड़ा रहा ,आगे बढ़ना ही भूल गया..जब हम थोड़े आगे आए तो बाजू वाले अंकल ने उससे कहा- चलो बेटा अब तो ---हरी हो गई.....हा हा हा...


ह्म्म्म होना तो यही चाहिए मुझे भी लगा,हमें अपने आप में ही सुधार लाना होगा पहले ....
आपको क्या लगता है ?...


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5 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

लेकिन ऐसा हर बार कहां सम्भव. और फिर कभी कभार तो नौबत मार पिटाई और दंगे तक आ जाती है.

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

चिन्तन योग्य संदर्भ....

vandana gupta ने कहा…

bilkul sahi kaha sudhar apne aap se hi shuru hota hai.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

किसी न किसी को शुरुवात करनी ही चाहिये.

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) ने कहा…

दिव्या जी अक्सर ऐसा होता है जो कुछ चलन में हो उसे हम आसानी से अपना लेते हैं ठीक उसी तरह जैसे "एक भेंड़ कुंए में तो सारी भेंड़ " यानि के क्या हो रहा , क्यों हो रहा ,उसे जाने बिना हाँ में हाँ लगा देना | चाहे उसके बारे में सही जानकारी हो या ना हो| मेरा कहने का मतलब नकारात्मक पहलु नहीं है , बस कुछ लोग वैसे ही अन्धानुकरण व्यवहार से सही पहलु का भी दुरूपयोग कर देते हैं....

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