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शनिवार, सितंबर 18, 2010

ललित जी का पिटारा खुल गया और हम सी एम साब से न बतिया पाए

शाम के अखबार के आन लाइन एडीसन  पी डी एफ़ हो  अथवा सरकारी  वेब साईट या पाबला भैया का ब्लाग आज़ सिर्फ़ ललित शर्मा जी के हिन्दी पोर्टल पर ही चर्चिया रहे है. खबर तो हम भी बज़्ज़ पे छैप दिये थे पर लगा दादा नाराज़ हो गये तो हमारे थोबड़े का शिल्प कर्म न कर दें कहीं. पर  भैया  ऐसे  नहीं  हैं  मेरे  मित्र 
                                                   इधर से रास्ता है जी












































































































































































































तीन भागों में विभक्त पोर्टल का कलेवर सामान्य एवम ललित भाई की मनोभावनाओं को उजागर कर रहा है . हिन्दी का यह पोर्टल किसी फ़ैंटेसी को नहीं जन्मता बल्कि सामान्य सी बातों को आगे लाने की कोशिश करता है जो अनदेखी किंतु ज़रूरी है
 एक राज़ की बात बताऊं गूगल खोज सन्दूक में यह तीसरे स्थान पर है जबकि इसका उदघाटन अभी कुछ घण्टों पहले हुआ है. 
ललित भाई कहते हैं  ”भाई आज़ फ़ोन काहे बन्द था ?”
मैं:- ”असल में कोर्ट में फ़ोन बन्द ही रखना होता है  पर क्यों पूछा ? कोई ज़रूरी बात थी ?”
हां
क्या ?
रमन जी आपसे बात करना चाहते थे !
भाइ ललित जी एक प्यारा सच्चा दोस्त मिल जाए हमें क्या चाहिये और
  "प्रिय मित्रों,
भारत की ललित कलाओं को एक मंच पर लाने की मेरी बरसों की तमन्ना थी। जिसमें परम्परागत शिल्प कला, हस्त शिल्प कला,  चित्र कला, एवं अन्य पारम्परिक कलाओं का समावेश हो। ऐसे कलाकार जिन्हे कभी कोई मंच न मिला हो, उनकी प्रतिभा दुनिया की अंधी गलियों में दम तोड़ रही हो, उन्हे एक मंच मिले और वे भी अपनी कला का प्रदर्शन दुनिया के सामने कर सकें। उन्हे वह स्थान मिल सके, जिसको वे डिजर्व करते हैं। मैने देखा है कि गाँव में एक से एक कलाकार कला की साधना करते हैं। लेकिन उनके पास अपनी कला के प्रदर्शन के लिए स्थान और मंच नहीं होता।
मैं कई कार्यक्रमों में प्रदेश से भी बाहर गया हूँ वहां भी मैने शिल्पकला के अद्भुत कार्य देखे। जिन्हे देखकर लोग दांतो तले उंगली दबा लेते हैं। देखते रह जाते हैं। मशीनों से काम होने के कारण परम्परागत रुप कार्य करने वाले कारीगरों के समक्ष रोजी रोटी की भी समस्या है। हस्त निर्मित शिल्प एवं कलाकृतियाँ का निर्माण वर्तमान में बहुत कम हो गया है। परम्परागत शिल्पकारों ने जीविकोपार्जन के लिए अन्य काम धंधे करने शुरु कर दिए। जिससे लकड़ी, लोहे, तांबे, सोना चांदी, पत्थर, कपड़ा इत्यादि पर होने वाले काम अब काफ़ी कम हो गए हैं।
मेरा एक सपना है कि ऐसे कलाकारों को एक मंच देना तथा वेब साईट के माध्यम से उनकी कला परिचय पूरी दुनिया से कराना। उनके बनाए हुए उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना। जिससे कलाकारों का जीवन यापन हो सके। वर्तमान में यह वेबसाईट प्रारंभिक स्वरुप में है। भारत भर से जानकारी एकत्रित करना भी बहुत श्रम साध्य कार्य है। लेकिन हमने अपने सम्पर्कों एवं साथियों के सहयोग से इसे पूरा करने का बीड़ा उठाया है। ईश्वर की कृपा एवं सबकी मेहनत रही तो अवश्य ही इस कार्य को पूरा करने में हम कामयाब होगें।मेरे इस कार्य में कई साथी साथ में जुड़े हैं। इसलिए अब उपरोक्त कार्य मेरे अकेले का न होकर हम सबका है।ललित कला वेबसाईट पर मेरे सहयोगी श्री जी.के.अवधिया,अल्पना देशपांडे,धीरज ताम्रकार,गिरीश बिल्लौरे जबलपुर, इत्यादि हैं
सादर आपका
ललित शर्मा"

शुक्रवार, सितंबर 17, 2010

हां सोचती तो है कभी कभार छै: बरस की थी तब वो भी तो बन गई थी दुलहनियां

एक किताब
सखी  के साथ
बांचती बिटिया
पीछे से दादी देखती है गौर से
बिटिया को लगभग पढ़ती है
टकटकी लगाये उनको देखती
कभी पराई हो जाने का भाव
तो कभी
कन्यादान के ज़रिये पुण्य कमाने के लिये
मन में उसके बड़े हो जाने का इंतज़ार भी तो कर रही है ?
इसके आगे और क्या सोच सकती है मां
हां सोचती तो है कभी कभार
छै: बरस की थी तब वो भी तो बन गई थी दुलहनियां
तेरह की थी तो गरभ में कल्लू आ गया था
बाद वाली चार मरी संतानें भी गिन रही है
कुल आठ औलादों की जननी
पौत्रियों
के बारे में खूब सोचती हैं
दादियां उसकी ज़ल्द शादी के सपने
पर ख़त्म हो जाती है ये सोच

गुरुवार, सितंबर 16, 2010

फ़ुल टाईम माँ----

जन्माष्टमी ,राधाष्टमी ......दिन विशेष की जरूरत नहीं ..........एक बार हम भी पुकार ही लें---



 इसे पढ़िये यहाँ---

शनिवार, सितंबर 11, 2010

युनुस ज़ादु के साथ जबलपुर में

मशहूर उदघोषक युनुस खान इन दिनों अपने परिवार के साथ जबलपुर में पधारे हैं . आनन फ़ानन में जो किया जाना है वो कल शाम तक ही तो हो पाएगा जो भी होगा वो उसका नाम  ”काफ़ी विद युनुस” का आयोजन सोचा है.... देखिये कितना और क्या हो पाता है फ़िलहाल एक ब्लागर्स मीट होना तय है. जबलपुर के ब्लागर मित्रों स्थान की सूचना अतिशीघ्र एस०एम०एस० से दी जावेगी . मित्रो मेरे सेल फ़ोन में खराबी के कारण फ़ोनबुक से डाटा गायब हो गया है... आपसे अनुरोध है कि सारे मित्र मेरे इन सेल नम्बर्स पर अपना फ़ोन नम्बर भेजें =>9926471072 अथवा 9479756905

[IMG_77119.jpg]
युनुस जी के साथ जादू और उनकी शरीके हयात ममता जी [small+foto.jpg]से मिलने सभी इच्छुक हैं ईद और गणेश पर्व पर इस दम्पत्ति से मिलना एक सुखद एहसास होगा हम सबके लिये

शुक्रवार, सितंबर 10, 2010

केवल हिन्दुस्तान के हक़ में दुआ कीजिये

क्षमा कीजिये आज यहां चुगली के सन्दर्भ में पोस्ट लगानी थी किंतु ईद के अवसर पर ये पोस्ट ज़रूरी है..भारत ब्रिगेड से इसे मिसफिट पर लाया जावे अत: आलेख की पुन: प्रस्तुति कर रहा हूं...
अब्दुल और पंडित दीनानाथ के बीच की दोस्ती इत्ती पक़्की है कि उसे अलग करना किसी कौमी फ़सादी के बस की बात नहीं. सब कुछ गोया उसके अल्लाह इसके भगवान ने तय कर दिया हो.  अब्दुल्ल की अम्मी की देह में कैन्सर के जीवाणु का बसेरा है उधर दीनानाथ भी अपनी अभाव ग्रस्त ज़िन्दगी से जूझ रहा था. वे दौनों ही एक पेड़ के नीचे बैठे आपसी चर्चा कर रहे थे कि  अचानक उन पर आकाश की सैर कर रहे  फ़रिश्ते और देवदूत की नज़र पड़ी .दौनों कौतुहल वश पेड़ की शाखा पे बैठ के मित्रों की बातें सुनने लगे. फ़रिश्ता जो अल्लाह का भेजा हुआ था सबसे पहले   प्रगट होकर  अब्दुल्ल से कहता है:- सुनो, तुम आज़ मस्ज़िद में जाकर जो दुआ करोगे कुबूल हो . अब्दुल बोला :- फ़रिश्ते, मेरे दोस्त के लिये भी...! फ़रिश्ता उस बात को सुने बिना ग़ायब हो गया. तभी देवदूत प्रगट हुआ उसने दीनानाथ से कहा:- दु:खी इंसान, आज़ तुम जो मंदिर की मूरत से मांगोगे वो होना अटल है...!

अनोखे एहसास लेकर दौनो सत्यता के परीक्षण को निकल पढ़े एक मस्ज़िद तो दूसरा मन्दिर गया  दौनों ने अपनी अपनी बात रखी और घर पहुंचे तो अब्दुल की अम्मी की मेडिकल रिपोर्ट लिये खड़ी नफ़ीसा ने बताया:- अब कोई खतरा नहीं . उधर दीनानाथ को घर में सूचना मिली कि  कोर्ट का फ़ैसला उसके हक में आया है.अब उसे पैतृक सम्पत्ती का सत्तर फ़ीसदी हिस्सा मिल जाएगा. जिसमें वो दूकान भी शामिल है जो किसी के बलात कब्ज़े में थी. 
दौनो दोस्त अगले दिन मिले अब्दुल बोला-पंडत, मेरी अम्मी को कैन्सर नहीं है अब ये देख रिपोर्ट. 
वाह- अब्दुल वाह , मेरी ज़ायजाद मुझे वापस मिल गई है. पर ये हुआ कैसे होगा भई...
अब्दुल बोला:-कैंसर तो लाइलाज़ है, मैने तेरी बरक़त की दुआ मांगी थी. 
दीनानाथ:-यार, सच कहूं, मुझे यक़ीन न था कि मुझे ज़ायजाद मिल सकती है सो मैने देवदूत की सलाह पर दुआ मांगी तेरी अम्मी के निरोगी होने की . दोस्तो ठीक है न  तो ठीक है न बस केवल हिन्दुस्तान के हक़ में दुआ कीजिये

गुरुवार, सितंबर 09, 2010

"दुश्मनों के लिये आज़ दिल से दुआ करता हूं....!"


सोचता हूं कि अब लिखूं ज़्यादा और उससे से भी ज़्यादा सोचूं .....? 
सच कितना अच्छा लगता है जब किसी को धीरज से सुनता हूं. आत्मबल बढ़ता है. और जब किसी को पढ़्ता हूं तो लगता है खुद को गढ़ता हूं. एक  पकवान के पकने की महक सा लगता है तब ....और जब  किसी के चिंतन से रास्ता सूझता है...तब उगता है साहस का ...दृढ़ता का सूरज मन के कोने में से और फ़िर यकायक  छा जाता है प्रकाश मन के भीतर वाले गहन तिमिर युक्त बयाबान में.... ? 
ऐसा एहसास किया है आपने कभी ..!
किया तो ज़रूर होगा जैसा मैं सोच रहा हूं उससे भी उम्दा आप  सोचते हो है न........?
यानी अच्छे से भी अच्छा ही होना चाहिये सदा.अच्छे से भी अच्छा क्या हो यह चिंतन ज़रूरी है.
वे पांव वक़्त के नमाज़ी है, ये त्रिसंध्या के लिये प्रतिबद्ध हैं, वो कठोर तपस्वी हैं इन धर्माचरणों का क्या अर्थ निकलता है तब जब हम केवल स्वयम के बारे में सोचते हैं. उसने पूरा दिन दिलों को छलनी करने में गुज़ारा... और तीस दिनी रोज़ेदारी की भी तो किस तरह और क्यों अल्लाह कुबूल करेंगें सदा षड़यंत्र करने वाला मेरे उस मित्र को अगले रमज़ान तक पाक़ीज़गी से सराबोर कर देना या रब .ताकि उसके रोज़े अगली रमज़ान कुबूल हों...!
ईश्वर उस आदमी को  सबुद्धि देना जो मुझे जाने बगैर मेरी नकारात्मक-छवि चारों ओर बनाए जा रहा है उसकी त्रिकाल संध्या ईश्वर स्वीकारे यही प्रार्थना करता हूं. 
वो इन्सान जो सन डे के सन डे गिरजे में जाकर प्रभू के सामने प्रेयर करता है पूरे हफ़्ते मेरे दुर्दिन के लिये प्रयास करता है उसे माफ़ कर देना उसे पवित्र बना देना ताकि उसकी भी साप्ताहिक प्रेयर स्वीकार सकें आप .
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 दोस्तों शक्ल में मिले इन दुश्मनों के उजले कल के लिये याचना का अर्थ उनके बेहतर कल के लिये है न कि उनको अपमानित करने अपमानित करना होता तो सच नाम सहित उल्लेख करता. मुझमें इस बात का साहस है किंतु किसी को आहत करके उसे बदलने से बेहतर है ..... एक सदाचारी की तरह दुश्मन के लिये भी सदभावना रखना.
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 कल देखिये:-” जीवन में सब कुछ करो झूठी चुगलियों को छोड़ कर"



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