13.6.11

तबादलों की पावन-सरिता



  
प्रशासनिक व्यवस्था में तबादलों की पावन-सरिता बहती है जो नीति से कभी कभार ही बहा करती है बल्कि ”रीति”से अक्सर बहा करती है.  तबादलों की बहती इस नदिया में कौन कितने हाथ धोता है ये तो  भगवान, तबादलाकांक्षी, और तबादलाकर्ता ही जानता है. यदाकदा जानता है तो वो जो  तबादलाकांक्षी, और तबादलाकर्ता के बीच का सूत्र हो. इस देश में तबादला कर्ता एक समस्या ग्रस्त सरकारी प्राणी होता है. उसकी मुख्य समस्या होती हैं ..बच्चे छोटे हैं, बाप बीमार है, मां की तबीयत ठीक नहीं रहती, यानी वो सब जो घोषित तबादला नीति की राहत वाली सूची में वार्षिक रूप से घोषित होता है. अगर ये सब बे नतीज़ा हो तो तो अपने वक़ील साहबान हैं न जो स्टे नामक संयंत्र से उसे लम्बी राहत का हरा भरा बगीचा दिखा लाते हैं.  तबादले पहले भी होते थे अब भी होते हैं  क्योंकि यह तो एक सरकारी प्रक्रिया है. होना भी चाहिये अब घर में ही लीजिये कभी हम ड्राईंग रूम में सो जाते हैं कभी बेड-रूम में खाना खाते हैं. यानी परिवर्तन हमेशा ज़रूरी तत्व है. गिरी  जी का तबादला हुआ, उनके जगह पधारीं देवी जी ने आफ़िस में ताला जड़ दिया ताक़ि गिरी जी उनकी कुर्सी पर न बैठे रह जाएं. देवी जी सिखाई पुत्री थीं सो वही किया जो गिरी के दुश्मन सिखा रए थे. अब इस बार हुआ ये कि उनका तबादला हुआ तो वे गायब और इस डर से उनने कुर्सी-टेबल हटवा दिये कि कार्यालयीन टाईंम पर कहीं रिलीवर नामक दस्यु आ धमका और उनकी कुर्सी पर टोटका कर दिया तो ?
         इस तो भय से मोहतर्मा नें कुर्सी-टेबल हटवा दिये. बहुत अच्छा हुआ वरना दो तलवारें एक म्यान में..? 
तबादलों का एक और  पक्ष होता है जिसका तबादला कर दिया जाता है उसे लगता है जैसे वो बेचारा या बेचारी अंधेरी गली से हनुमान चालीसा बांचता   या ताबीज़ के सहारे  
निकल रहा/रही था  और कोई उसे लप्पड़  मार के निकल गया. अकबकाया सा ऐसा सरकारी जीव फौरी राहत की व्यवस्था में लग जाता है. 
                           तबादलों को निश्तेज़ करने वाले संयंत्र का निर्माण भारत की अदालतों में क़ानून नामक रसायन से वक़ील नामक वैज्ञानिक किया करते हैं. इस संयंत्र को स्टे कहा जाता है. जिस पर सारे सरकारी जीवों की गहन आस्था है. वकील नामक  वैज्ञानिक कोर्ट कचैरी के रुख से भली प्रकार वाकिफ  होते हैं. 
      इन सब में केवल सामर्थ्य हीन ही मारा जाता है. समर्थ तो कदापि नहीं. इसके आगे मैं कुछ भी न लिखूंगा वरना ....    
          भरे पेट वाले मेरे जैसे सरकारी जंतु क्या जानें कि देश की ग़रीब जनता खुद अपना तबादला कर लेती है दो जून की रोटी के जुगाड़ में.बिच्छू की तरह पीठ पे डेरा लेकर निकल पड़ता है. यू पी बिहार का मजूरा निकल पड़ता है आजीविका के लिये महानगरीयों में. उधर वीर सिपाही   बर्फ़ के ग्लेशियर पर सीमित साधनों के साथ तबादला आदेश का पालन करता  देश के हम जैसे सुविधा भोगियों को बेफ़िक्री की नींद सुलाता है रात-दिन जाग जाग के.भूखा भी रहता ही होगा कभी कभार कौन जाने.   
नोट:- इस आलेख में प्रयुक्त तस्वीरें गूगल के साभार प्राप्त की गईं हैं जिस किसी को आपत्ती हो मुझे सूचित कर सकता है ताकि चित्र हटा सकूं   

12.6.11

नई दुनिया ने दिया डाक्टर विजय तिवारी किसलय को "जबलपुर-साहित्य रत्न"


यशस्वी ब्लागर डाक्टर विजय तिवारीकिसलय का चयन  "जबलपुर-साहित्य रत्न" के लिये प्रथम पांच में जूरी द्वारा किया गया है. यह ब्लागजगत के लिये गौरव की बात होगी अगर उनको सम्मान प्राप्त होता है. आपसे विनत अनुरोध है कि उनको अपना एक बहुमूल्य वोट देकर डा० तिवारी को सहयोग करें   सभी स्नेही जनों ने किसलय जी को वोट किया और डाक्टर विजय तिवारी को हासिल हुआ वो सम्मान जिसे पाना एक गौरव पूर्ण घटना है किसलय जी के लिये समूचे ब्लाग जगत के लिये . 


डाक्टर किसलय जी को बीसियों प्रस्तावों में से श्रेष्ठ पांच में चुना था नई दुनिया जबलपुर ने जिसमें शामिल थे वयोवृद्ध साहित्यकार चिंतक श्रीयुत हरिकृष्ण त्रिपाठी, रंगकर्मी साहित्यकार श्रीमति साधना उपाध्याय, कथाकार श्री राजेंद्र दानी, एवम श्रीयुत गार्गी शरण मिश्र जिनका स्नेह श्री किसलय को प्राप्त है.  

कौन हैं किसलय जी 
  जन्म तिथि 05फरवरी 1958 को महाकवि राजशेखर की राजधानी तेवर जबलपुर   में जन्में किसलय जी की शिक्षा एम. . (समाज शास्त्र ), भारतीय विद्या भवन मुंबई से पी. जी. डिप्लोमा इन जर्नलिज़्म, इले. होम्योपैथी    स्नातक, कंप्यूटर की बेसिक शिक्षा.प्राप्त कर चुके हैं.                            

           दशकों से आकाशवाणी  एवं टी. वी. चेनलों पर लगातार प्रसारण. एवं काव्यगोष्ठी का संचालन. ,  कहानी पाठ तथा समीक्षा गोष्ठियों का आयोजन करने वाली संस्था 'कहानी मंच जबलपुर' के संस्थापक सदस्य. साथ ही पाँच वर्ष तक लगातार पढ़ी गयीं कहानियों के 5 वार्षिक संकलनों के प्रकाशन का सहदायित्व निर्वहन.,मध्य प्रदेश लेखक संघ जबलपुर के संस्थापक सदस्य. जबलपुर के वरिष्ठ पत्रकार स्व. हीरा लाल गुप्त की स्मृति एवं पत्रकारिता सम्मान समारोह का सन 1997 से   लगातार आयोजन-सहयोगी, स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय लगभग दो दर्जन पुस्तकों की समीक्षा, विभिन्न एकल, अनियमित तथा नियमित पत्रिकाओं का संपादन. साहित्यिक गोष्ठियों में सहभागिता एवं संचालन. अंतरराष्ट्रीय अंतरजाल (इंटरनेट) के ब्लागरों में सम्मानजनक स्थिति.
डॉ. काशीनाथ सिंह, डॉ. श्रीराम परिहार, प्रो.ज्ञान रंजन, आचार्य भगवत दुबे सहित ख्यातिलब्ध साहित्यकारों का सानिध्य पाने वाले किसलय जी हिन्दी काव्याधारा की दुर्लभ काव्यविधा "आद्याक्षरी" में लगातार लेखन कर रहे हैं.  
                       विजय के अभिन्न मित्र वसंत मिश्रा,राजीव गुप्ता,राजेश पाठक, रमाकांत ताम्रकार, डा०रमेश सैनी,कुंवर प्रेमिल, डा० संध्या जैन ’श्रुति’,अरुण यादव, द्वारका गुप्त, के लिये यह खबर जहां उत्साह जनक थी वहीं ब्लागर समीर लाल , ललित शर्मा,बवाल सहित सभी ब्लागर्स की ओर से  बधाईयां

  प्रकाशन :-  काव्य संग्रह " किसलय के काव्य सुमन " का सन 2001 में प्रकाशन. गद्य-पद्य  की 2 पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य
 हिन्दी व्याकरण पर सतत कार्य एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार - प्रसार हेतु संकल्पित.
श्री किसलय जी  स्वतन्त्र पत्रकारिता एवं साहित्य लेखन के चलते लगभग 35 वर्ष से प्रकाशन. कविताओं, कहानियों, लघुकथाओं, आलेखों, समीक्षाओं का सतत् लेखन के लिये प्रतिबद्ध हैं
ब्लागलेखन :- "हिन्दी साहित्य संगम" अंतराजालीय ब्लाग पर नियमित लेखन एवं हिन्दी साहित्य संगमके संस्था के द्वारा लगातार औचक रूप से साहित्यिक गोष्ठियां करने का करिश्मा कर देते हैं विजय भाई.       
अन्य:-  धर्मार्थ इले. होम्योपैथी चिकित्सा का सीमित संचालन. सामाजिक संस्थाओं एवं निजी तौर पर समाज सेवा. विदेशी डाक टिकटों का संग्रह, नवीन टेक्नोलॉजी एवं वैश्विक घटनाओं की जानकारी में रूचि. बाह्य आडंबर, साहित्यिक खेमेबाजी, साहित्य वर्ग विभाजन (जैसे छायावाद, प्रगतिशील, दलित साहित्य आदि)   से परहेज. क्योंकि साहित्य साहित्य होता है.
संप्रति म. प्र. पॉवर जनरेटिंग कंपनी लिमि. जबलपुर के वित्त एवं लेखा विभाग में कार्यालय सहायक.
सम्पर्क:-
 विजय तिवारी " किसलय
'विसुलोक', 2419 मधुवन कालोनी,
विद्युत उपकेन्द्र के आगे, उखरी रोड,
बल्देव बाग, जबलपुर. 482002.
मोबाईल क्रमांक: 094 253 253 53.

7.6.11

जूता दिखाओ प्रसिद्ध हो जाओ

                इन्सान के पैरों में जूता और खोपड़ी में अक्ल एक साथ आई. कहते हैं आदिम युग में  लोग बिना जूते और बिना दिमाग के कंदराओं में लुक छिप के रहा करते थे कि एक दिन अचानक उसे आग की ताक़त का  एहसास हुआ. फ़िर चका खोजा फ़िर फ़िर पत्थर का आयुध बनाया तभी महान रचनाकार से उनकी  सहचरी ने पूछा :-"हे प्रभू मनुष्य प्रजाति अभी भी अपूर्ण है इसे पूर्ण करो वरना मैं कंद मूल फ़ल आदि खाए बिना कठोर तप के लिये वन गमन करूंगी.. "
प्रभू बोले :-"हे भागवान, यदि मैने इन को तीक्ष्ण बुद्धि दे दी तो ये पहले  विकासोन्मुख होंगे फ़िर विनाश की ओर अग्रसरित होंगे "
आभार अर्कजेश जी का
 सहचरी ने मौन धारण कर लिया. उस समय प्रभू को लगा कि सहचरी के बिना उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा सो बोले है ठीक है.इस तरह  नारी हट के आगे भगवान भी नि:शब्द हो गये . माया के वशी भूत प्रभू ने मनुष्य को पैरों में जूते पहने का आईडिया भेज दिया. आदिम समाज ने खड़ाऊ फ़िर जूती फ़िर उसके पुर्लिंग यानी जूते का अविष्कार किया. 
     प्रभू के भेजे  आईडिये से हुई खोज से आगे तक पहुंचे लोगों ने रज़त,स्वर्ण मण्डित पादुकाओं, जूते-जूतियों, का निर्माण किया. आम आदमी से लेकर रसूखदार, ब्योपारी से लेकर थानेदार, नाकेदार से लेकर तहसीलदार, कुल मिला कर सबने जूता संवर्ग के उत्पादों का अपने अपने तरीके से स्तेमाल सीख लिया. कोई किसी को जूते की नोक पे रखने लगा, तो कोई किसी के  जूते चाटता नज़र आएगा, कोई नित का जूतम-पैजारी बन गया तो किसी ने जूतों का औक़ात-मापन यंत्र के रूप में उपयोग  किया. कुछ लोग जूता खिलाने कुछ खाने के लिये प्रसूते हैं यह सामाजिक व्यवस्था ने तय कर दिया.अरे हां दुल्हन को बियाहने पहुंचा दूल्हा जिसकी आत्मा जूतों में बसती है उन जूतों के चोरी जाने के बावज़ूद सुकुमार सालियों से  लुटने का सौभाग्य प्राप्त करता .यानी जूता भारतीय समाज ने सांस्कृतिक एवम सामाजिक  महत्व पूर्व से ही निर्धारित कर दिया.यानी चाकू-छुरी की तरह ही बहु उपयोगी आइटम बन चुका है. 
     इतना ही नहीं राज़कपूर जी ने साबित कर दिया  जूता भले जापानी हो दिल हिन्दुस्तानी ही रहेगा 
                                      समय के साथ जूते ने साबित कर दिया कि सुर्खियों में आने के लिये जूता वास्तव में सबसे प्रभावी आयुध है. सूत्रों की मानें तो   सुर्खियों में छा जाने के लिये वीरों ने जब से "जूतायुध" का भरपूर स्तेमाल सार्वजनिक रूप शुरु किया है उससे प्रभावित हुए कुछ  लोगों ने बंदूकों पिस्तोलों के लिये कलैक्टर साहबों के दफ़्तर में दाखिल आवेदन वापस लेना शुरु कर दिया है. 
           जूतायुध का महत्व को कम न मानिये इस पर विशद अध्ययन और शोध कार्य आनिवार्य है. ताक़ि ये सुनिश्चित हो सके कि "जूते-सियासत-आम आदमी" रूपी बरमुड़ा त्रिकोण के भीतर क्या क्या छुपा है 
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"पत्थर के खुदा पत्थर के सनम पत्थर के के इंसा पाएं हैं 
तुम शहरे मोहब्बत कहते हो हम जान बचा के आएं हैं "

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6.6.11

बाबा रामदेव प्रकरण : रोको उसे वो सच बोल रहा है कुछ पुख़्ता मक़ानों की छतें खोल रहा है


 वैचारिक ग़रीबी से जूझते भारत को देख  भारतीय-प्रजातंत्र की स्थिति का आंकलन सारे विश्व ने कर ही लिया है.अब शेष कुछ भी नहीं है कहने को. फ़िर भी कुछ विचारों को लिखा जाना ज़रूरी है जो बाबा रामदेव के अभियान को नेस्तना बूद करने बाद देश भर की सड़कों नुक्कड़ों घरों, कहवा घरों में  दिन भर चली बातों से ज़रा सा हट के हैं. मुझे याद आ रही है  मित्र शेषाद्री अय्यर अक्सर अपनी महफ़िल में गाया करतें हैं:- 
नीरज़ दीवान के ब्लाग पर लगी तस्वीर
"रोको उसे वो सच बोल रहा है कुछ पुख़्ता मक़ानों की छतें खोल रहा है !!" 
साभार : कीर्तीश भट्ट के ब्लाग
बामुलाहिज़ा से 
    दिल्ली ने बाबा को पुख़्ता मक़ानों की छतें खोलने से चार मई की रात रोक दिया . आंदोलन को रोकने की वज़ह भी पुलिस वाले आला हुज़ूर ने मीडिया के ज़रिये सबको बताईं .  जनता को सफ़ाई देने के लिये प्रशासन के ओहदेदार आए सरकार का पक्ष रखा गया . साहब जी ने बताया कि पंडाल में तनिक भी लाठी चार्ज नहीं हुआ. साहब सही बोले बताओ हमारे एक ब्लागर भाई नीरज़ दीवान   ने अपने ब्लाग की बोर्ड "की बोर्ड का सिपाही " पर लगाई इस तस्वीर को ध्यान से देखिये और फ़िर से याद कीजिये  सा’ब जी के उस बयान पर जिसमें उनने कहा था कि लाठी चार्ज नही हुआ.अब आप ही इस चित्र को देखिये और तय कीजिये क्या पुलिस वाले भैया जी क्या रामदेव बाबा के इस भक्त के दक्षिणावर्त्य को   सम्मानित कर रहें हैं..?
        सरकार को शायद इस बात का इल्म नहीं है आज़ दिन भर आम आदमी सुलगता रहा जो बाबा से सहमत है . अगर कोई इनको अंध भक्त कहे तो कहे आम भारतीय के मन में बाबा का ज़ादू बहुत गहरे समाया है.उसमें बाबा जी को अपमानित किये जाने से जो तिलमिलाहट हुई है उससे आने वाले दिनों जो दृश्य उपस्थित होने वाला है उसका एहसास दमन कारियों को कदापि नहीं है. आज़ तो कुछ लोग ये भी कहते सुने गये :- मतलब ये निकला कि रसूखदार मान ही गए कि बाबा जो कह रहे हैं वो सत्य है. और इस सच का सामना होते ही पुख्ता मक़ानों की छतें खुलना अवश्यम्भावी है.चलो मान लिया कि बाबा ठग है तो भी उनके योग और दवाओं ने कितनों को लाभ दिया इसका अनुमापन कैसे करिये गा.? जितने पण्डाल में थे वो तो बाबा जी के कुल अनुयाईयों का दसवां हिस्सा भी न थे. 
    कटिंग सैलून में चल रहे  एक चैनल पर लालू जी ने उवाचा :- बाबा जी को सियासत नहीं करनी चाहिये.
             यह सुन कर नाई की दुक़ान पर दाढी़ बनवाने गया आम आदमी बोल पड़ा :-"ये सियासत करते करते चारा बेच खरीद सकते हैं तो बाबा अगर सियासत करें तो बुराई क्या है. "
अब तो आप समझ ही गये होंगे कि कुत्ते क्यों भौंकते हैं..?
 जीभूल गये हों तो पढ़िये जी भाग एक भाग दो   

28.5.11

समापन किस्त : कुत्ते भौंकते क्यों हैं...?


मिसफ़िट पर पिछली पोस्ट में आपने बांचा 
(इस वाक़ये से एक चिंतन का दरवाज़ा खुलता है. वो दरवाज़ा जो हमारे मन में पनप रहे कुत्तावृत्ति का परिचय देगा सोचते रहिये यही सोचेंगे जो मै लिख रहा हूं)
चित्र क्रमांक 01
कुत्तावृत्ति का प्रमुख परिचय भौंक है, जिसका अर्थ आप सभी बेहतर तरीके से जानते हैं. जिसका क्रिया रूप "भौंकना" है. भौंक एक तरह से  आंतरिक-भयजन्य   आवेग का समानार्थी भाव है. जो आत्म-रक्षार्थ प्रसूतता है. अब बांये चित्र में ही देखिये ये चारों लोग जो मयकश जुआरी हैं नशा आते ही इनके चिंतन पर हावी होगा भय. कहीं मैं हार न जाऊं.और दूसरे को हारता देख खुश होंगे खुद को हारने का भय भी होगा.. फ़िर टुन्न होकर अचानक चिल्लाने लगेंगे ध्यान से सुनने पर आप को साफ़ तौर पर  कुत्तों के लड़ने की ही  आवाज़ आएगी. 
     जब आप कभी अपने आपको आसन्न खतरे से बचाना चाहते हैं तो आप बचाने के राह खोजने से पहले आप चीखेंगे अपना चेहरा देखना तब कुत्ते सा ही लगेगा आपको.मेरे एक परिचित हैं जिनकी आवाज़ वैसे ही गूंजती है जैसे  देर रात मोहल्ले में कुत्तों के सामूहिक भौंक काम्पिटिशन चलता है. 
चित्र क्रमांक 02
हां एक बात और हाथी के बहुत करीब आकर कुत्ते कभी नहीं भौंकते दूर से भौंकते हैं . कारण साफ़ है हाथी कद काठी ताकत वाकात में सबका बाप जो होता है. 
घरेलू किस्म के कुत्तों में सबसे कायर कुत्ता पामेरियन नस्ल का होता है ससुरा खतरे की ओर मुंह करके पीछे खिसक-खिसक के   भौंकता है. ऐसी वृत्ति सरकारी गैर सरकारी संस्थानों में कार्यरत व्यक्तियों में देखी जा सकती है. 
                   घरेलू कुत्तों में एक आदत ये होती है-कि उनके भोजन करते वक्त कोई भूल से भी उसके पास आए तो मानिए गुर्राहट तय है जो बाद में भौंक में बदल जाती है.उसे लगता है पास आने वाला उसके आहार को खाएगा .   
(सारे चित्रों के लिए गूगल बाबा का  आभार इन पर किसी का भी  कोई अधिकार हो तो बताएं)     

27.5.11

कुत्ते भौंकते क्यों हैं...?


अवधिया जी ने आलेख के लिये भेजा है इसे 
उस्ताद – जमूरे, ये क्या है..?
जमूरा-    कुत्ता... उस्ताद...कुत्ता...!
उस्ताद – कुत्ता हूं ?  नमकहराम
जमूरा -   न उस्ताद वो कुत्ता  है पर आप नमक...
 उस्ताद – क्या कहा ?
जमूरा -   पर आप नमक दाता !
उस्ताद – हां, तो बता कुत्ता क्या करता है..?
जमूरा -   ... खाता है..?
उस्ताद –  क्या खाता है ?
जमूरा -    उस्ताद , हड्डी  और और क्या..!
उस्ताद –  मालिक के आगे पीछे क्या करता है
जमूरा -   टांग उठाता के
उस्ताद –  क्या बोल  बोल जल्दी बोल
जमूरा -   सू सू और क्या ?
उस्ताद – गंवार रखवाली  करता है, और क्या  
जमूरा -   पर उस्ताद, ये भौंकता क्यों है.......
उस्ताद :- जब भी इसे मालिक औक़ात समझ में आ जाती है तो भौंकने लगता है.
जमूरा  :- न उस्ताद, ऐसी बात नही है..
 उस्ताद :- तो फ़िर कैसी है ?
जमूरा  :-  उस्ताद तो आप हो आपई बताओ
उस्ताद :-  हां, तो जमूरे कान खोल के सुन – जब उसके मालिक पर खतरा आता है  तब भौंकता है
जमूरा  :-   न, कल आप खुर्राटे मार रए थे तब ये भौंका  
उस्ताद :-   तो,
जमूरा  :-  तो ये साबित हुआ कि उसकी भौंक इस कारण नहीं निकलती  
उस्ताद :- तो किस वज़ह से निकलती है. कोई वो खबरिया चैनल है जो जबरिया  
             ही ?
जमूरा  :- वेब कास्टर  भी तो नहीं है जो दिन भर ?
उस्ताद :- तो तू ही बता काहे भौंकता है कुत्ता बता
जमूरा  :-  सही बताऊंगा तो
उस्ताद :-  तो क्या होगा ?
जमूरा  :-  तुम मेरी बात अपने मूं से उगलोगे !
उस्ताद :-   तो क्या , उस बात की रायल्टी लेगा,
जमूरा  :-   न, तुमको ऐलानिया बोलना होगा कि ये बात “जमूरे” ने बताई है.
उस्ताद :-  बोलूंगा
जमूरा  :-  तो सुनो जब कुत्ता डरता है तब वो भौंकता है समझे उस्ताद !
उस्ताद :-  हां,समझा
          उस्ताद और जमूरे के बीच का संवाद में दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक  तत्व के शामिल होते ही सम्पूर्ण कुत्ता-जात में तहलका मच  गया. इधर ब्लॉगजगत ने त्वरित आलेखन चालू किया अवधिया जी की राय है कि :-"
संसार में भला ऐसा कौन है जिसके भीतर कभी बदले की भावना न उपजी हो ? मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक के भीतर बदले की भावना उपजती है। यही कारण है कि कुत्ता तक कुत्ते पर और कभी कभी इन्सान पर भी गुर्राने लगता है।"   

प्रवक्ता पर  गिरीश पंकज जी से साभार 
                उधर अखिल भारतीय कुत्ता परिषद में उनके नेता ने कहा :- वीर कुत्तो, हमारी प्रज़ाती को एक मक्कार  ज़मूरे ने "डरपोक" कहा है.  धर्मेंदर की उमर देख के हमने माफ़ किया , पर न केवल जमूरा वरन  हम सब इन्सानों को बता देना चाहते हैं कि अब हम किसी भी इन्सान को अपना मुंह न चाटने देंगे. 
एक एक आदमी को इतना काटेंगे कि सारे रैबीज खत्म हो जाएं 


मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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