7.6.11

जूता दिखाओ प्रसिद्ध हो जाओ

                इन्सान के पैरों में जूता और खोपड़ी में अक्ल एक साथ आई. कहते हैं आदिम युग में  लोग बिना जूते और बिना दिमाग के कंदराओं में लुक छिप के रहा करते थे कि एक दिन अचानक उसे आग की ताक़त का  एहसास हुआ. फ़िर चका खोजा फ़िर फ़िर पत्थर का आयुध बनाया तभी महान रचनाकार से उनकी  सहचरी ने पूछा :-"हे प्रभू मनुष्य प्रजाति अभी भी अपूर्ण है इसे पूर्ण करो वरना मैं कंद मूल फ़ल आदि खाए बिना कठोर तप के लिये वन गमन करूंगी.. "
प्रभू बोले :-"हे भागवान, यदि मैने इन को तीक्ष्ण बुद्धि दे दी तो ये पहले  विकासोन्मुख होंगे फ़िर विनाश की ओर अग्रसरित होंगे "
आभार अर्कजेश जी का
 सहचरी ने मौन धारण कर लिया. उस समय प्रभू को लगा कि सहचरी के बिना उनका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा सो बोले है ठीक है.इस तरह  नारी हट के आगे भगवान भी नि:शब्द हो गये . माया के वशी भूत प्रभू ने मनुष्य को पैरों में जूते पहने का आईडिया भेज दिया. आदिम समाज ने खड़ाऊ फ़िर जूती फ़िर उसके पुर्लिंग यानी जूते का अविष्कार किया. 
     प्रभू के भेजे  आईडिये से हुई खोज से आगे तक पहुंचे लोगों ने रज़त,स्वर्ण मण्डित पादुकाओं, जूते-जूतियों, का निर्माण किया. आम आदमी से लेकर रसूखदार, ब्योपारी से लेकर थानेदार, नाकेदार से लेकर तहसीलदार, कुल मिला कर सबने जूता संवर्ग के उत्पादों का अपने अपने तरीके से स्तेमाल सीख लिया. कोई किसी को जूते की नोक पे रखने लगा, तो कोई किसी के  जूते चाटता नज़र आएगा, कोई नित का जूतम-पैजारी बन गया तो किसी ने जूतों का औक़ात-मापन यंत्र के रूप में उपयोग  किया. कुछ लोग जूता खिलाने कुछ खाने के लिये प्रसूते हैं यह सामाजिक व्यवस्था ने तय कर दिया.अरे हां दुल्हन को बियाहने पहुंचा दूल्हा जिसकी आत्मा जूतों में बसती है उन जूतों के चोरी जाने के बावज़ूद सुकुमार सालियों से  लुटने का सौभाग्य प्राप्त करता .यानी जूता भारतीय समाज ने सांस्कृतिक एवम सामाजिक  महत्व पूर्व से ही निर्धारित कर दिया.यानी चाकू-छुरी की तरह ही बहु उपयोगी आइटम बन चुका है. 
     इतना ही नहीं राज़कपूर जी ने साबित कर दिया  जूता भले जापानी हो दिल हिन्दुस्तानी ही रहेगा 
                                      समय के साथ जूते ने साबित कर दिया कि सुर्खियों में आने के लिये जूता वास्तव में सबसे प्रभावी आयुध है. सूत्रों की मानें तो   सुर्खियों में छा जाने के लिये वीरों ने जब से "जूतायुध" का भरपूर स्तेमाल सार्वजनिक रूप शुरु किया है उससे प्रभावित हुए कुछ  लोगों ने बंदूकों पिस्तोलों के लिये कलैक्टर साहबों के दफ़्तर में दाखिल आवेदन वापस लेना शुरु कर दिया है. 
           जूतायुध का महत्व को कम न मानिये इस पर विशद अध्ययन और शोध कार्य आनिवार्य है. ताक़ि ये सुनिश्चित हो सके कि "जूते-सियासत-आम आदमी" रूपी बरमुड़ा त्रिकोण के भीतर क्या क्या छुपा है 
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"पत्थर के खुदा पत्थर के सनम पत्थर के के इंसा पाएं हैं 
तुम शहरे मोहब्बत कहते हो हम जान बचा के आएं हैं "

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8 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अथ जूता जिज्ञासा का प्रारम्भ!
दानव जूता राखिये, बिन जूता सब सून...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

फ़िर क्या सोचा ?

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

अच्छा चिन्तन...
By the Way-
अभी तक सैंडिल का प्रयोग नहीं किया गया...

Dr Varsha Singh ने कहा…

शानदार जूता पुराण....

Swarajya karun ने कहा…

आप तो अब 'जूता -पुराण ' लिख डालिए !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उम्दा सुझाव!

Darshan Lal Baweja ने कहा…

जूता पुराण....

Archana Chaoji ने कहा…

gazal sunwane ke liye shukriya.

Wow.....New

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