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बुधवार, जनवरी 18, 2012

फिलीस्तीनियों के "वापसी के अधिकार" को समाप्त करना


डैनियल
पाइप्स

1967 से 1993 के मध्य पश्चिमी तट या गाजा से कुछ सैकडों की संख्या में ही फिलीस्तीनियों ने इजरायली अरब लोगों से विवाह कर (जो कि इजरायल की कुल जनसंख्या का पाँचवा भाग हैं) और इजरायल की नागरिकता प्राप्त कर इजरायल में निवास करने के अधिकार को प्राप्त किया। इसके बाद ओस्लो समझौते ने कम चर्चित परिवार पुनर्मिलन प्रावधानों के द्वारा इस छोटी सी धारा को एक नदी में परिवर्तित कर दिया। 1994 से 2002 के मध्य फिलीस्तीन अथारिटी के 137,000 निवासी इजरायल में आ चुके हैं और उनमें से अनेक छल और बहुविवाह में संलिप्त हैं।
इजरायल के समक्ष दो कारण हैं जिसके चलते उसे इस अनियंत्रित आप्रवास से चिंतित होना चाहिये। पहला, यह सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करता है। शिन बेट सुरक्षा सेवा के प्रमुख युवाल दिस्किन ने 2005 में ध्यान दिलाया था कि आतंक की गतिविधियों में लिप्त पाये गये 225 इजरायली अरब में से 25 जो कि 11 प्रतिशत है अवैध रूप से परिवार पुनर्मिलन प्रावधानों के तहत इजरायल में प्रविष्ट हुए थे। वे 19 इजरायलियों को मारने आये और 83 को घायल किया और उनमें से सबसे अधिक दुष्ट शादी तुबासी था जिसने कि 2002 में हमास की ओर से हाइफा के माज्जा रेस्टोरेंट पर आत्मघाती आक्रमण किया और 15 लोगों की ह्त्या की।
दूसरा, यह चोरी छुपे फिलीस्तीनियों के " वापसी के अधिकार" के रूप में कार्य करता है और इजरायल के यहूदी स्वरूप को कमतर बनाता है। जो 137,000 नये नागरिक इजरायल में आये हैं वे इजरायल की कुल जनसंख्या का 2 प्रतिशत हैं जो कि कम संख्या नहीं है। युवाल स्टीनिज जो कि अब वित्त मन्त्री हैं उन्होंने 2003 में ही फिलीस्तीन अथारिटी की परिवार पुनर्मिलन की नीति को इजरायल में फिलीस्तीनियों की संख्या बढाने और इसके यहूदी चरित्र को कमतर करने के प्रयास के रूप में आँक लिया था। बाद में एक फिलीस्तीनी मध्यस्थ अहमद क़ुरेयी ने इस आशंका को सही सिद्ध किया , " यदि इजरायल सीमा के सम्बंध में हमारी योजना को अस्वीकार करता है ( एक फिलीस्तीनी राज्य ) तो हमें इजरायल की नागरिकता की माँग करनी चाहिये"
इन दो खतरों की प्रतिक्रिया में इजरायल की संसद ने जुलाई 2003 में " इजरायली कानून में नागरिकता और प्रवेश" कानून पारित किया। इस कानून के अंतर्गत फिलीस्तीनी परिवारों को स्वतः ही इजरायल की नागरिकता या निवास को प्रतिबंधित कर दिया गया और इसके साथ कुछ तदर्थ और सीमित अपवाद लगा दिये गये जिसके द्वारा गृह मंत्रालय को यह प्रमाणित करना होता है कि वे स्वयं को इजरायल के साथ जुडा हुआ पाते हैं और अन्य प्रकार से सहायक हैं। काफी कटु आलोचना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने वर्ष 2005 में इस बात को दुहराया , " इजरायल राज्य को अपने यहूदी चरित्र को संरक्षित रखने और बनाये रखने का पूरा अधिकार है चाहे इसका अर्थ यह भी हो कि इससे नागरिकता की नीति पर भी प्रभाव पड्ता हो" ।
इस कानून को चुनौती देने वाले वकील सावसान जाहेर के अनुसार अपवाद के कुल 3,000 प्रार्थना पत्र में से केवल 33 को ही संस्तुति दी गयी। परिवार पुनर्मिलन के मामले में कठोर प्रावधान अपनाने वाला इजरायल अकेला देश नहीं है उदाहरण के लिये डेनमार्क में ऐसा कानून दशकों से प्रयोग में है यदि अन्य लोगों को छोड दें तो इस देश का इजरायल का पति भी नीदरलैंड और आस्ट्रिया की तरह ही एक मुकद्दमा लड रहा है।
पिछले सप्ताह इजरायल के सर्वोच्च न्यायालय ने 6-5 के बहुमत से इस मह्त्वपूर्ण कानून को स्थाई बना दिया। किसी व्यक्ति के विवाह के अधिकार को मान्यता देते हुए भी न्यायालय ने इस बात से इंकार कर दिया कि इसके साथ ही निवास का अधिकार भी प्राप्त होता है। न्यायालय के मनोनीत प्रधान अशर दन ग्रुनिस ने अपने बहुमत के निर्णय में अपने विचार व्यक्त किये , " मानवाधिकार राष्ट्रीय आत्मह्त्या का निर्देश नहीं है" ।
यहूदियों की ओर फिलीस्तीनी आप्रवास की यह परिपाटी 1882 से आरम्भ हुई जब यूरोप के यहूदियों ने अपना अलिया ( उत्थान का हिब्रू शब्द , जिसका अर्थ है इजरायल भूमि के लिये आप्रवास) । उदाहरण के लिये विन्स्टन चर्चिल ने इस बात को पाया था कि किस प्रकार फिलीस्तीन में यहूदी आप्रवास से उसी प्रकार अरब आप्रवास को उत्प्रेरणा मिली। , " उत्पीडन से कहीं दूर अरब लोग देश में बडी संख्या में भर गये और अपने को कई गुना बढाया जब तक कि उनकी जनसंख्या बढ नहीं गयी"।
संक्षेप में, आपको इजरायलवाद ( जायोनिस्ट) के उच्च स्तरीय जीवन और कानून पालक समाज का लाभ प्राप्त करने के लिये यहूदी होना आवश्यक नहीं है। इस विषय के एक छात्र जान पीटर्स का अनुमान है कि एक दोहरा यहूदी और अरब आप्रवासी " कम से कम बराबर सापेक्ष का" 1893 से 1948 के मध्य विकसित हुआ। इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है , अन्य आधुनिक यूरोपवासी जो कि कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बसे ( आस्ट्रेलिया और अफ्रीका) और ऐसे समाज का निर्माण किया जिन्होंने कि मूलवंशियों को भी आकर्षित किया।
फिलीस्तीनी अलिया की यह परिपाटी इजरायल के जन्म के समय से ही जारी है। वे इजरायलवाद विरोधी ( जायोनिस्ट विरोधी) हो सकते हैं लेकिन आर्थिक आप्रवासी, राजनीतिक विद्रोही , समलैंगिक , सूचनाकर्ता और सामान्य मतदाता जो आत्मनिर्भर हैं वे फिलीस्तीन अथारिटी या हमास के नर्क के गर्त की अपेक्षा मध्य पूर्व के विशिष्ट आधुनिक और उदार राज्य को पसंद करते हैं। और यह भी ध्यान देने योग्य है कि कुछ इजरायली अरब ही अपने विवाहित जोडे के साथ पश्चिमी तट और गाजा में रहना पसंद करते है जबकि कोई भी कानूनी बाधा उन्हें ऐसा करने से नहीं रोकती।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का एक दीर्घकालिक मह्त्व है। जैसा किIsrael Hayom में एली हजान ने लिखा है, " न्यायालय ने अघोषित और घोषित दोनों ही प्रकार से निर्णय दे दिया है कि इजरायल एक यहूदी राज्य है, और इसके साथ ही वर्षों पुरानी बहस का समाधान कर दिया है" । पिछले दरवाजे से " वापसी के अधिकार" को बंद करने से इजरायल की इजरायलवादी ( जायोनिस्ट) पहचान और भविष्य सुरक्षित हो गया।


कविता और गीत : गिरीश बिल्लोरे मुकुल

कविता


"विषय '',
जो उगलतें हों विष
उन्हें भूल 


अमृत बूंदों को
उगलते
कभी नर्म मुलायम बिस्तर से
सहज ही सम्हलते
विषयों पर चर्चा करें
अपने "दिमाग" में
कुछ बूँदें भरें !
विषय जो रंग भाषा की जाति
गढ़तें हैं ........!
वो जो अनलिखा पढ़तें हैं ...
चाहतें हैं उनको हम भूल जाएँ
किंतु क्यों
तुम बेवज़ह मुझे मिलवाते हो इन विषयों से ....
तुम जो बोलते हो इस लिए कि
तुम्हारे पास जीभ-तालू-शब्द-अर्थ-सन्दर्भ हैं
और हाँ 


तुम अस्तित्व के लिए बोलते हो-
इस लिए नहीं कि 

तुम मेरे शुभ चिन्तक हो । 

शुभ चिन्तक 
रोज़ रोटी 
चैन की नींद !!

गीत:-

अनचेते अमलतास नन्हें
कतिपय पलाश।
रेणु सने शिशुओं-सी
नयनों में लिए आस।।
अनचेते चेतेंगें
सावन में नन्हें
इतराएँगे आँगन में
पालो दोनों को ढँक दामन में।
आँगन अरु उपवन के
ये उजास।

ख़्वाबों में हम सबके बचपन भी
उपवन भी।
मानस में हम सबके
अवगुंठित चिंतन भी।
हम सब खोजते
स्वप्नों के नित विकास।।

मौसम जब बदलें तो
पूत अरु पलाश की
देखभाल तेज़ हुई साथ
अमलतास की
आओ सम्हालें इन्हें ये तो
अपने न्यास।।

मंगलवार, जनवरी 17, 2012

कुछ तो है दुनिया में अच्छा..क्या हर तरफ़ बुराई है ?

हम कह दें वो अफ़साने और तुम कहदो तो सच्चाई
बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!!
****************
जैसा देखा इंसा सनमुख वैसी बात कहा करते हो
लगता है गिरगिट को घर में मीत सदा रक्खा करते हो
बात मेरी बिखरे आखर हैं और तुम्हारी रूबाई है...!!
    बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!!

****************
मन चाहा लिक्खा करते हो मनमाना नित बोल रहे हो
चिंतन हीन मलिन चेहरे को  लेके इत उत डोल रहे हो
कुछ तो है दुनिया में अच्छा..क्या हर तरफ़ बुराई है ?
    बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!!
*****************



तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !!




उनको यक़ीन हो कि न हो हैं हम तो बेक़रार
चुभती हवा रुकेगी क्या कंबल है तारतार !!
मंहगा हुआ बाज़ार औ’जाड़ा है इस क़दर-
हमने किया है रात भर सूरज का इंतज़ार.!!
हाक़िम ने  फ़ुटपाथ पे आ बेदख़ल किया -
औरों की तरह हमने भी डेरा बदल दिया !
सुनतें हैं कि  सरकार कल शाम आएंगें-
जलते हुए सवालों से जाड़ा मिटाएंगें !
हाक़िम से कह दूं सोचा था कि सरकार से कहे
मुद्दे हैं बहुत उनको को ही वो तापते रहें....!
लकड़ी कहां है आपतो - मुद्दे जलाईये
जाड़ों से मरे जिस्मों की गिनती छिपाईये..!!
 जी आज़ ही सूरज ने मुझको बता दिया
कल धूप तेज़ होगी ये  वादा सुना दिया !
तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी
हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !!
 कहता हूं कि मेरे नाम पे आंसू गिराना मत
 फ़ुटपाथ के कुत्तों से मेरा नाता छुड़ाना मत
 उससे ही लिपट के सच कुछ देर सोया था-
ज़हर का बिस्किट उसको खिलाना मत !!

रविवार, जनवरी 15, 2012

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव का सम्मान समारोह के साथ समापन


तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी उत्सव का दिनांक 12 जनवरी को सम्मान समारोह के साथ समापन हुआ जिसमें प्रसिद्द साहित्यकार कुंवर नारायण द्वारा देश – विदेश के हिंदी साहित्यकारों , विद्वानों को सम्मानित किया गया । इनमें भारत मे बल्गारिया के राजदूत श्री  कोस्तोव, प्रसिद्ध लेखिका चित्रा मुद्गल, प्रसिद्ध शायर शीन काफ निज़ाम, इटली के प्रो. श्याम मनोहर पांडेय,  प्रवासी साहित्यकार  उषा राजे सक्सेना, ( ब्रिटेन) शैल अग्रवाल,( ब्रिटेन) अनिता कपूर ( अमरीका), दीपक मशाल, ( उतरी आयरलेंड) स्नेह ठाकुर ( कनाडा) कैलाश पंत, महेश शर्मा, विमला सहदेव को पुरस्कार प्रदान किया गया।
सम्मान प्रदान करते हुए श्री कुंवर नारायण ने कहा कि भाषा और साहित्य के क्षेत्र में गहन अध्ध्यन और शोध की आवश्यकता है। उन्होंने मध्यकाल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा भारतीय ज्ञान को एशिया और दूरस्थ देशों में ले जाने को प्रेरणा का स्रोत बताया। उन्होंने  पुस्तकें ले जाते बोद्ध भिक्षुओं को  संस्कृति का वाहक बताया। उन्होने सम्मान विजेताओं को पुरस्कार देते हुए कहा कि उनकी हिदी के प्रति निष्ठा और समर्पण की सराहना की । रत्नाकर पांडेय ने इस अवसर पर आयोजकों प्रवासी दुनिया , अक्षरम और हंसराज कालेज की सराहना करते हुए कि हिंदी का विकास केवल सरकार के माध्यम से संभव नहीं है।
सम्मान समारोह के तुरंत पश्चात अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया । यह सम्मेलन इस बार बाल स्वरूप राही जी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में था। इस कवि सम्मेलन में देश के प्रमुख कवियों उदय प्रताप सिंह, सुरेन्द्र शर्मा, शेरजंग गर्ग कुंवर बैचेन, नरेश शांडिल्य , सर्वेश चंदोसवी,आलोक श्रीवास्तव, अल्का सिन्हा और विदेश से उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, स्नेह ठाकुर, अनिता कपूर, दीपक मशाल आदि  काव्य पाठ का सैंकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने देर रात तक आनंद लिया। इस अवसर पर बालस्वरूप राही के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाशित स्मारिका और उनकी ओर पुष्पा राही की पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।
इससे पूर्व सुबह के सत्रों में वर्ष 2050 में हिंदी और भारतीय भाषाएं विषय में हिंदी के भविष्य के संबंध में व्यापक विचार –विमर्श किया गया। असगर वजाहत ने चर्चा की शुरूआत  करते हुए। विश्वविद्यालयों, अकादमियों. राजभाषा और गैर –सरकारी क्षेत्र में हिंदी की दुर्दशा का विश्लेषण किया। अभय दुबे ने हिंदी और भारतीय भाषाओं को पारिभाषात करते हुए कहा कि हिंदी राष्ट्रभाषा और राजभाषा नहीं अपितु संपर्क भाषा है। प्रभु जोशी ने हिंदी की दुर्दशा के लिए एक गहरे षड्यंत्र का उल्लेख किया । उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकारी अधिकारी, मीडिया और मैकालेपुत्र जिम्मेदार हैं। कैलाश पंत ने हिंदी के संबंध में सकारात्मक पक्षों की ओर ध्यान दिलाया। राहुल देव ने विचारोत्तेजक भाषण में सूत्र दिया अपनी भाषा में अपना भविष्य और युवकों को भाषा के संबंध में बड़े बदलाव का आह्वान किया। बहुत से युवाओं ने इस अभियान से जुड़ने के लिए स्वयं को प्रस्तुत किया । अनिल जोशी ने इसके लिए संयोजित और संगठित प्रयास करने पर बल दिया । उन्होंने कहा कि हिंदी का संस्थागत फ्रेमवर्क बहुत कमजोर है।
तीन दिन का यह कार्यक्रम प्रवासी दुनिया , अक्षरम और हंसराज कालेज की ओर से किया गया था।
विदेशों में हिंदी शिक्षण विषय पर विचार व्यक्त करते हुए केन्द्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अशोक चक्रधर ने विदेशों में हिंदी शिक्षण की चुनौतियों पर सिलसिलेवार बात की और एकरूपता और मानकीकरण के संबंध मे किए जा रहे उपायों के संबंध में बताया। डा विमलेश कांति वर्मा ने अपनी सूरीनाम और त्रिनिडाड की यात्रा में आए अनुभव बांटे । डा  श्याम मनोहर पांडेय ने इटली में 30 वर्षों के सुदीर्घ अनुभव के आधार पर शिक्षण की प्रविधियों की चर्चा की। वीरेन्द्र भारद्वाज ने दक्षिण कोरिया के अपने अनुभवों का ब्यौरा दिया।
रिपोर्ट-स्रोत :- प्रवासी दुनिया     http://www.pravasiduniya.com

शुक्रवार, जनवरी 13, 2012

नाई के नौकर की समयबद्धता और और भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार..

                                                   बिना शेव चेहरा जाहिल गवांरपने से लबालब होना साबित करता है पर गुरुवार घर में सेव करने की सख्त पाबंदी के चलते आफ़िस जाने से पहले यादव कालोनी के  श्रेष्ठ सैलून चोरी से पर जाना लाज़िमी था  सो चले गये. धर्म भीरू हम मन ही मन भगवान की प्रार्थना करते निकल पड़े ड्रायवर बोला -सा’ब, आफ़िस..?
न, ज़रा यादव कालोनी होके चलतें आफ़िस शेविंग कराके ही जाऊंगा. डर था कि  चपरासी समुदाय और बाबू साहबान क्या सोचेंगे.बोलेंगे भी. आज़ बिल्लोरे जी को तो देखो कैसे दिख रए हैं..बस इसी इकलौते भय से  भगवान को मन ही मन सैट किया और सैलून में जा घुसे..
दो बंदे एक मालिक दूसरा उसका कर्मचारी बाक़ायदा अभिवादन की औपचारिकता के साथ खाली कुर्सी पे बैठने का आग्रह करते नज़र आये.मेरी शेविंग के लिये दौनों में अबोला काम्पीटिशन चल पड़ा मालिक ने तेज़ आवाज़ में चल रहे  टी.वी. को कम करने की हिदायत मातहत को दी घर से हनुमान चालीसा पाठ बांचने के बाद "कोलावरी-डी" बहुत सुकू़न से सुनने की तमन्ना तो भी मैने शराफ़त और सदाचारी होने का अभिनय किया. कर्मचारी को दूसरे काम में लगा कर मालिक मेरे पास आ के बोला "तो शेविंग बस.."
हां भई.. ज़ल्दी जाना है मीटिंग  बस शेव करो..
      गुनगुना पानी तेज़ शीत लहर के दबाव में बार बार अपने मूल स्वरूप में लौट रहा था कि एक आवाज़ सुनाई दी बीस बाइस साल का लड़का दूसरे दोस्त से कहता सुना गया-"अरे, बस घण्टे आध घण्टे में निकल जाऊंगा तुम भी चेहरा साफ़ करालो "
दूसरा लड़का बोला-भाई न मुझे कराना है चेहरा साफ़ नही मुझे इस सब की आदत है
अर्र.. पैसा कौन तुम दोगे ....
दूसरा लड़का स्पष्ट रूप से बोला-"भाई, पैसे मैं न दूंगा तो फ़ेश क्लीनिंग मैं क्यों कराऊं"
अरे मेरी गर्लफ़ैण्ड क्या सोचेगी...
वो तुम्हारी है मुझसे क्या...
           काफ़ी देर तक हां-ना का धंधा चला दोस्तों के बीच अंतत: पहला वाला युवक कुर्सी पे जा धंसा बोला-यार भाई, शाम को गर्ल-फ़्रैण्ड की सगाई  है तुम ऐसा कुछ करो कि चेहरे में ग्लो कम से कम शाम तक रहे.                
                                पिंड खजूरी चेहरे में ग्लो.. मन ही मन मुझे हंसी आ गई हंसी एक्स गर्ल-फ़ैण्ड की सगाई में जाने के उछाह को देखकर भी आ रही थी. यानी अहम नाते की अर्थी निकलना आज की जनरेशन को सहजता से स्वीकार्य है... तू नहीं और सही .....
            इसी बीच ऐन मेरी कार के पीछे पासिंग-शो सिगरेट की तरह कृशकाय युवक ने अपनी कार लगाई और कोलावरी डी गुनगुनाते  हुए सैलून में घुसा उसका प्रवेश ही इतना अभद्र था कि उस युवक को आप गुण्डे की संज्ञा  दे सकते हैं शोहदा बोल सकते हैं
 बारबर से बड़े अक्खड़पन से उस शोहदे ने पूछा-"आज तुम और ये बस बाक़ी..."
"बाक़ी आज़ देर से आते हैं गुरुवार है न" यानी तुम तो मालिक हो ये तो नौकर होके टाइम पे हाज़िर हो गया इस जैसे दो चार और हो जाएं तो देश भ्रष्टाचार खतम समझो.. ही ही जै अन्ना महराज़ की..
     मेरी खोपड़ी "नाई के नौकर की समयबद्धता और और भारत में व्याप्त भ्रष्टाचार " को लेकर जंग छिड़ गई तभी अनायास मैं पूछ बैठा-बेटे, इसके समय पर काम पर आने से भ्रष्टाचार का क्या नाता है..?
        उसका जवाब आने लगा कि मेरे शेविंग करने वाले ने फ़रमाया.. सर ज़रा मुण्डी सीधी हां अब ठीक है.
 वो लड़का बोल रहा था-"अंकल, देश के सारे लोग अपना कम ईमान दारी से करें तो भ्रष्टाचार दूर होगा कि नहीं "
  बात तो सही थी पर समीकरण मेरी खोपड़ी को नामंज़ूर था. सो मैने पूछ लिया-तुम क्या पढ़ाई करते हो..?
 न,मैं रुपए कमाता हूं..?
वाह, यानी नौकरी

तो
धंधा करता हूं
दो माह में मैने तीन लाख रुपए कमाए..पूरी मेहनत से काम करता हूं
                         इधर साला पूरा छै महीने लगते हैं तीन लाख तब कमा पाते हैं. इस शोहदे को दो महीने में तीन लाख..?
उसकी बात सुनकर गुस्से से मेरे दाढ़ी के एक एक बाल खड़े हो गए और क्या  खर्र-खर्र दाढ़ी सफ़ा चट्ट हो गई . मैने पूछा -ऐसा कौन सा अंनात्मक कार्य करते हो कि माह में डेढ़ लाख कमा लेते हो
"अंकल प्लाट-खरीद-बेच करता हूं...दिन के दूने हो जाते है"
                           सच कितना ईमानदार है मेरा देश का युवा कितना सच्चा चरित्र है उसकी नज़र से भ्रष्टाचार काश अन्ना जी को नज़र आ जाता तो "मैं अन्ना हूं कहने वाले हरेक सख्श को अन्ना जी आप जान लेते भीड़ में वास्तविक रूप से कितने अन्ना है आप जान लेते"
                      तभी मुंह से निकल गया तो यानी तुम दूध से धुले हो बेटे ..?
 "हां अंकल,दूध से एकदम धुला हूं पर दूध ही मिलावट वाला है ..? -पूरी मक्कारी थी उस की आवाज़ में
   अपनी मां के दूध को लजाते उस युवक को सड़क पर एक लक्ज़री कार जाते दिकी अऔर वो सैलून मालिक की ओर मुखातिब हो के बोला-"अरे लगता है मेरा बाप जा रहा है.. पर इत्ती ज़ल्दी !!"


गुरुवार, जनवरी 12, 2012

नन्हां दिन जाड़े का


मेरा ट्रेनिंग कालेज 


जनवरी-दिसंबर 1996 की यादें आज ताज़ा हो आईं .नौकरी में ट्रेनिंग की ज़रूरी रस्म के लिये  लखनऊ के  गुड़म्म्बा गांव में हमें  ट्रेनिंग कालेज . ट्रेनिंग के लिये भेजा सरकारी फ़रमान का अनादर करना हमारे लिये नामुमकिन था. सो निकल पड़े . जाते वक़्त ये याद न रहा कि उत्तर भारत में गज़ब जाड़ा पड़ता है.  सुईयां चुभोती शीतलहर और उत्तर भारत के जाड़े का एहसास मेरे लिये बिलकुल नया था सच इतनी सर्दी से मुक़ाबले का मौका मेरे लिये पहला ही था.


   इतनी सर्दी कि शरीर को गर्म रखना मेरे लिये एक भारी आफ़त का काम था. वो लोग जिनको जाड़ा जाड़ा महसूस न होता उनको देखना मेरे लिये अचम्भे की बात थी.जाड़ा तो जबलपुर में भी गज़ब होता है पर हिमालय को चूम के आने वाली हवाएं बेशक हड्डियों तक को बाहर पडे़ लोहे के सरिये की तरह ठण्डी जातीं थी वहां.उस दिन जब मेरा सब्र टूट गया तब मित्र ने कहा भाई कुछ लेते क्यों नहीं..?
    उस रविवार लखनऊ घूमने की गरज़ से हम दोस्त विक्रम पे सवार हो निकल पड़े खूब पैदल घूमें चिकन के कपड़े खरीदे सोचा रिक्शे की सवारी कर लें जबलपुरिया रिक्शों से अलग लखनवी रिक्शे छोटे और बहुत सस्ते थे पांच किलोमीटर तक घुमाया था उसने मालूम है हम दो लोगों से भाड़े के नाम पर कितना लिया..? बस दो -दो रुपये मैने कहा-अशोक भाई ये क्या मांग रहा है, बूढ़ा रिक्शे वाला घबरा गया था मेरे सवाल को सुन बोला सा’ब, एक रुपया कम देदो..! 
     हम हंस दिये जेब से दस का नोट निकाला और दे दिया रिक्शे वाला बोला-"छुट्टा नईं है साब," अशोक जी बोले मांग कौन रहा है दादा जाओ तुमको दस देना चाहते हैं. हमारे चेहरे ताक़ता बूढ़ा गोया नि:शब्द आभार कह रहा हो. गुड़म्म्बा का नाई भी दो रुपये में दाढ़ी-कटिंग-चम्पी करता था. 
 जाड़े से बचने के लिये दो घूंट अल्कोहल .फ़िर खुद ब खुद बोला.. न भाई न हम लोग हास्टल के नियम भंग क्यों करें . बाज़ार से बोरे खरीद लाए हम जमीन पे बिछाने न बिस्तर के नीचे बिछा लिये थे तब जाकर लगा कि बिस्तर सोने लायक है. रूम पार्टनर बोला-यार अगर रजाईयां जाड़ा न रोक पाएं तो क्या करेंगे ?
"रजाई और कम्बल के बीच लगा लेंगे बोरे हा हा हा "
    बाहर बर्फ़ीली हवाएं हिटलर ब्राण्ड डायरेक्टर साहब का हीटर पर प्रतिबंध लकड़ी फ़ाटे से गुरसी जलाने का ज्ञान न होना कम ऊलन कपड़े यानी कुल मिला कर पिछले जन्म के पापों  की सजा भोगने जैसी स्थिति . उधर हर सुबह टाइम पे यानी नौ बजे  क्लास में पहुंचने की अनिवार्यता ..सोच रहा था किसी डाक्टर को सेट करके बीमारी के बहाने छुट्टी चला जांऊं रूम पार्टनर बोला -"यार, साला इधर के मेडिकल कालेज में भर्ती करा दिया इन लोगों ने तो घर वाले भी बेक़ार परेशान हो जाएंगे" सो हमने अपने पलायन का विचार किनारे रख दिया. एक दिन यानी 15 दिसम्बर के आस पास बताया गया कि अब गांव में जाना होगा हम सबको. रोज़ सुबह आठ बजे बस रवाना होगी . तय शुदा कार्यक्रम के मुताबिक हम अगले दिन गुड़म्म्बा और कुर्सी रोड के बीच के गांवों में छोड़ दिये गये जहां हमको आंगनवाड़ी सहायिकाओं, कार्यकर्ता से लेकर मातहत सुपरवाईज़र के काम देखने थे. 
          इस दौरान होम-विज़िट भी पाठ्यक्रम के मुताबिक़ करनी होती थी. उस गांव में सभी लोग मज़दूर थे मर्द बाहर काम पे जाते थे औरतें चिकन वर्क करतीं . मंहगे दामों में बाज़ार में बिकने वाले चिकन वर्क वाले कपड़ों को खूबसूरत बनाने वाले धंसी आखों वाले जिस्म उन औरतों के थे जो दिन भर में एक दो कुर्ते तैयार कर पातीं थीं . एक लड़की जो वहां की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता थी ने  मुझे सब कुछ बताया गांव -स्वास्थ्य सुविधाएं, पानी, बिजली सब के बारे में बताया. मैने पूछ ही लिया-"तुम कम से कम ग्रेजुएट तो हो मुझे लगता है "
आंखों में उदासी छा गई फ़िर अचानक बोली-"हां सर, बी एस सी सेकण्ड के आगे न पढ़ सकी"
तभी अंदर से आवाज़ आई -"बेटा भीतर भेज दो साहब को"
   दलान में जूते उतार जब कमरे में गया तो बिस्तर पर पड़ा एक अधेड़ जो किसी दुर्घटना का शिक़ार लगता था  सम्मान से आगवानी के लिये उठ बैठने की असफ़ल कोशिश करने लगा. उसके बिस्तर का मुआयना करने पर पाया खटिया उसपर पुआल बोरा एक गंदा सी गद्दा उस पर मैली चादर फ़िर वह आदमी. पास ही में गुरसी जिसकी आग उसकी बेटी बार बार चेताने ही जाती होगी. गुरसी में आग थी किसी मुद्दे पर वो कुछ कहना चाह रहा था पर मौन मुझे देख रहा था फ़िर अचानक बोला-"ट्रेनिंग पे आए हो ?"
"हां"
किधर से बाबू..
मध्य-प्रदेश से..जनते हो..
हां जबलपुर गया था एक बार 
हां, मैं वहीं से हिइं..
हम कायस्थ हैं..
अच्छा आप किस बिरादरी के हो 
तबी लड़की चाय ले आई 
बिरादरी से ब्राह्मण हूं पर शादी शुदा हूं 
कोई कायस्थ है ट्रेनिंग में तुम्हारे साथ..
हां, एक तो बिहार का, डिप्टी कलेक्टर है. 
उसे लाना बेटा 
पर वो भी शादी शुदा है
    ओह तब ठीक है भगवान की जैसी मर्जी. 
अगले दिन मैं फ़िर उसी गांव में गया उस लड़की से पूछा-"तुम्हारे पिता बहुत परेशान हैं उनका इलाज़ हो तो सकता है न ..?"
 हां, हो सकता है साहब , उनको मुआवज़े के दो लाख रुपए मिले थे बैंक में जमा रखते हैं बोलते हैं मेरे दहेज में खर्च करेंगे .
पता नहीं उस अधेड़ के संकल्प का क्या हुआ होगा 

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