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मंगलवार, अप्रैल 05, 2022

नवरात्रि का चतुर्थ दिवस : माता कुष्मांडाकी आराधना



    आज नवरात्रि का चतुर्थ दिवस है और आज कुष्मांडा देवी की आराधना करेंगे। आप यह जानते हैं कि सृष्टि का निर्माण शक्तियों से हुआ है। ब्रह्मांड का निर्माता होने के कारण तथा शक्ति का सर्वोच्च पुंज होने के कारण मां कुष्मांडा को आप तेजस स्वरूप में देख सकते हैं। भारतीय सनातन में सृष्टि का निर्माण वैज्ञानिक सांकेतिक सत्य है। जिसमें यह कहा है कि सृष्टि का सृजन शक्ति के बिना असंभव है। शक्ति के अभाव में ना तो दुनिया चलती है नाही शरीर यहां तक कि इस संपूर्ण ब्रह्मांड जिसमें हजारों आकाशगंगा नक्षत्र लाखों सूर्य का अस्तित्व है जो अनंत विस्तारित है उसके संचरण में संचालन में शक्ति की मौजूदगी अर्थात उपस्थिति को नकारा नहीं जा सकता। मां कुष्मांडा के मौजूद होने तथा उनके अस्तित्व का अर्थ है कि यह वह शक्ति है जिसके माध्यम से पूरा विश्व जीवंत है और संपूर्ण ब्रह्मांड विभिन्न गतिविधियों से गतिमान है।
   हम जिस गैलेक्सी में निवास करते हैं जिसे हम मिल्की वे गैलेक्सी कहते हैं उस गैलेक्सी के हजारों सूर्य में हमारे सूर्य के मंडल में मां कुष्मांडा के अस्तित्व की कल्पना पुराना एवं सनातन शास्त्रों में की गई है। अगर हम वैज्ञानिक भाषा में कहें तो अष्टभुजी मां कुष्मांडा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा से विश्व ही नहीं बल्कि समूचे ब्रह्मांड अस्तित्ववाद है।
   मां अष्टभुजा के हाथों में कमंडल धनुष बाण कमल अमृत से भरा हुआ कलश चक्र गदा है तथा एक हाथ में सिद्धियों और निधियों की दात्री जपमाला दर्शित है। मां कुष्मांडा के वाहन को सिंह के स्वरूप में प्रदर्शित किया है।

सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

सामान्य व्यक्ति को इस श्लोक का जाप करना चाहिए 

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'

विशेष :- इस दिन जहाँ तक संभव हो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन करना चाहिए। उन्हें भोजन में दही, हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके बाद फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए। जिससे माताजी प्रसन्न होती हैं। और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।


   

सोमवार, अप्रैल 04, 2022

शूद्रों के साथ वेदों में कोई दुर्व्यवहार नहीं किया..!

   *हमें उपनिवेश काल के किसी भी दस्तावेज पर ना तो भरोसा करना चाहिए ना ही उसे अब पुनः रेखांकित करने की आवश्यकता है।*
          ईसाई मिशनरी ने कहा था कि-" अगर ब्राह्मण ना होते तो हम पूरे हिंदुस्तान को कन्वर्ट कर लेते"
       उपनिवेश काल में हिंदुस्तान को क्रिस्चियन बनाने के लिए विंस्टन चर्चिल का वह वाक्य भी विस्मरण हो जाता है जिसमें उन्होंने कहा था कि-" भारत एक भौगोलिक स्थान है इसे देश ना कहा जाए। ठीक उसी तरह जैसे भूमध्य सागर।"
     उपरोक्त दोनों बातें एक दूसरे की पूरक है। और यह हम वर्तमान में देख भी रहे हैं। भरत एक ऐसा देश है जहां पर उसके विद्वान वर्ग को लांछित और अपमानित करने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ता है। यह वर्ग है ब्राह्मणों का। मैंने अपनी कृति भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व ने स्पष्ट रूप से लिखा है कि-" वर्ण व्यवस्था तत्कालीन भारतीय व्यवसायिक व्यवस्था पर आधारित थी।' कृति के अध्ययन करने पर आप पाएंगे कि भारत में दलित शब्द कभी भी इस्तेमाल नहीं किया गया है। वर्ण व्यवस्था के तहत क्षात्र वर्ण वाले लोगों ने अपनी जैसे वर्ण वाले लोगों के बीच रोटी बेटी का रिश्ता रखा। वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत वह क्षत्रिय कहलाए। कालांतर में विदेशी यमन मुस्लिम आक्रांताओं एवं ब्रिटिश उपनिवेश काल में वर्ण व्यवस्था अचानक कब जाति व्यवस्था में इसकी पतासाजी करने पर पता चला कि जातियों को चिन्हित करने तथा समाज को वर्गीकृत करने में ब्रिटिश उपनिवेश काल का सर्वाधिक योगदान रहा है।
    वैश्य वर्ण बड़े व्यवसाय करता था चंद्रगुप्त मौर्य के कालखंड में उसे श्रेष्ठी या श्रेष्ठि वर्ण से संबोधित किया गया।
    बड़े व्यवसाय करने वाले का कार्य आंतरिक अर्थात अंतर्देशीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्पादों को भेजना और धन कमाना था। अर्थव्यवस्था में जनता पर बहुत अधिक भार नहीं हुआ करता था बल्कि वैश्य वर्ण पर राजसत्ता को राज्य के प्रबंधन के लिए धन की व्यवस्था करने का दायित्व दिया गया था।
छोटे व्यवसाय करने वाले वर्ण को छुद्र शब्द की संज्ञा दी गई। शूद्र शब्द उसी का पर्याय है। मैंने अपनी कृति में पांचवें वर्ण का उल्लेख किया है जो चांडाल वर्ण है। चांडाल वर्ण का काम शवों के निपटान का कार्य था कृति में आप भली प्रकार उस बिंदु का विश्लेषण देख सकते हैं।
    जाति व्यवस्था ना तो वैदिक काल में थी नाही विदेशी यात्रियों के भारत आगमन पर खास तौर पर चीनी यात्रियों के आगमन पर देखी गई।
  इसका आशय स्पष्ट है कि प्राचीन भारत ने जाति प्रथा एक व्यवस्था के अंतर्गत परिलक्षित होती है जिसे वर्ण व्यवस्था कहते हैं। अर्थात जैसे स्वर्ण आभूषणों का कार्य करने वाला व्यक्ति स्वर्णकार सोनी सर्राफ कहलाता है। मित्रों कश्मीर में लोहार वंश ने राज किया। यह तथ्य कल्हण की राजतरंगिणी नामक किताब में उल्लेखित है। अर्थात जाति बाध्यता नहीं है राजा को क्षत्रिय जाति का होना आवश्यक नहीं था। कल्याण स्वयं भी इन सब बातों पर ना तो भरोसा करते थे और ना ही इस पर उन्होंने प्रकाश ही डाला है। शक हूण जैसी विदेशी जातियां ने भारत में वैवाहिक संबंध स्थापित किए। अगर भारतीय जाति व्यवस्था प्राचीन इतिहास में जटिल होती तो ऐसा नहीं होता।
आइए अब हम चलते हैं ब्राह्मणों को अपमानित करने वाले आख्यानों नैरेटिवस पर।
    किसी भी संप्रदाय का लक्ष्य होता है कि वह अपने मंतव्य को स्थापित करते हुए संप्रदाय की जनसंख्या में वृद्धि करें। ऐसा ही हमेशा हुआ है। यवन, अपनी संस्कृति और सभ्यता को विस्तारित करने के उद्देश्य से भारत में आई थी। तदुपरांत अब्राह्मिक संप्रदायों ने अपना विस्तार करने का बीड़ा उठाया। और यह तब तक संभव ना था जब तक कि आप किसी वर्ग का ध्रुवीकरण करके उसे इनोसेंट पीड़ित प्रताड़ित साबित ना करें। ऐसा करने के बाद उसकी मानसिक स्थिति परिवर्तित होते ही अपने संप्रदाय में शामिल करने में बहुत आसानी होती है।
    नवबौद्ध भी यही सब कर रहे हैं। अब जब भारत में पिछले 100 वर्षों में यह स्थापित कर दिया गया है कि भारत जाति व्यवस्था से ग्रस्त है तथा यह साबित किया जा चुका है निकली जातियां बड़ी जातियों से पीड़ित रहे हैं ऐसी स्थिति में हिंदू धर्म को मानने वालों को आसानी से अपने संप्रदाय में शामिल किया जा सकता है। हां यह बात अवश्य है कि यह सब कुछ मध्यकाल और उसके बाद की स्थिति है।
    आप जानते ही होंगे बामसेफ एवं वामन मेश्राम तथा रावण जैसे लोग आज भी ब्राह्मणों के खिलाफ विष अमन करने में पीछे नहीं रहते।
ऐसे लोगों को स्पष्ट संदेश देना चाहूंगा की जाति व्यवस्था व्यक्ति के कार्यों पर आधारित थी जो कालांतर में जातीय संगठनों में परिवर्तित हो गई। मित्रों रामायण कालीन भारत में राम कथा में वर्णित शबरी के जूठे बेर खाना अथवा निषादराज को अपना मित्र बताना किस तत्व का प्रमाण है कि भारतीय व्यवस्था में जातियों के साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव को स्थान नहीं था। मित्रों भगवान राम क्षत्रिय थे भगवान कृष्ण यादव थे हम उनको नमन करते हैं और उनके प्रति ईश्वर तुल्य आस्था रखते हैं उन्हें भगवान मानते हैं।
     वर्तमान समय में जिस तरह से जातीय डिस्क्रिमिनेशन कथित शेड्यूल्ड जातियों में देखा जाता है उतना अन्य कहीं नहीं। अब ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य एवं छुद्र के बीच वैवाहिक संबंध भी स्थापित हो रहे हैं। परंतु प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जहां भीड़ का महत्व है ध्रुवीकरण हो जाता है। निर्वाचन आयोग को चाहिए कि प्रेस एवं राजनीतिक दलों को ऐसी एडवाइजरी जारी करें अथवा ऐसे नियम स्थापित करें जो जातीय एवं सांप्रदायिक आधार पर प्रजातांत्रिक महापर्व में भाग लेने वाली लोगों को हतोत्साहित करें।
    धर्म केवल सनातन है शेष सभी संप्रदाय हैं संप्रदाय में धर्म के मौलिक सिद्धांतों का समावेश होता है। संप्रदाय देश काल परिस्थिति के अनुसार अपने सिद्धांतों को सुनिश्चित करते हैं। शैव वैष्णव शाक्त संप्रदायों को मानने वालों के लिए आदि गुरु शंकराचार्य ने द्वैत अद्वैत अद्वैताद्वैत को स्पष्ट रूप से समझाया है। परंतु हम फिर से वर्गीकृत हो रहे हैं सनातनी यों को चाहिए कि वह एकात्म भाव से सनातन को अंगीकार करें।
    ब्रिटिश कॉलोनी पीरियड में जिस तरह से वर्गीकरण किया गया सन 1800 और उसके उपरांत भारतीय सामाजिक व्यवस्था में विभिन्न हितकारी विवरणों को सम्मिलित कर दिया गया। जिससे सामाजिक समरसता के ढांचे में जातिवाद क्षेत्रवाद भाषावाद को बल मिला है। और यही नकारात्मक बिंदु भारत को विश्व गुरु बनने से रोकेंगे।
   *हमें उपनिवेश काल के किसी भी दस्तावेज पर ना तो भरोसा करना चाहिए ना ही उसे अब पुनः रेखांकित करने की आवश्यकता है।*
     हाल ही में एक सामाजिक सम्मेलन में इसी तरह का कुछ घटनाक्रम घटित हुआ जिसमें ब्रिटिश कॉल खंड के विवरण को रेखांकित करते हुए उस जाति के लोगों को दुखी करने की कोशिश की गई। जब हम अब मुगल एवं अंग्रेजों द्वारा स्थापित मंतव्य का खंडन कर चुके हैं तथा यथासंभव करते भी जा रहे हैं तब हमें उनके दस्तावेजों के हवाले से कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है। हमें केवल राष्ट्र के प्रति सोचना है और वह भी शुद्ध भारतीय बनकर। अनर्गल वार्ता तथ्यहीन मंतव्य हमारी आत्मा साहस को कमजोर करते हैं। यही मेरी मनोकामना है कि हम अपने समूह में अपने समाज में अपने राष्ट्र में एकात्मता के भाव को प्रेरित करें ताकि हम भारत को विघटित करने वाली ताकतों से जुड़ सकें।
वेदों में छुद्र (शूद्र) वर्ण के अधिकार
   एक विवरण के अनुसार वेदों में यज्ञादि अधिकार प्राप्त थे ....


• परम्परा

वैदिक ग्रंथों में नहीं किया गया है शुद्रों के साथ भेदभाव




सचिन सिंह गौर

देश में दलित विमर्श करने वाले बुद्धिजीवियों द्वारा सनातन धर्म पर शुद्रों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया जाता है। इसके लिए अक्सर श्रीराम द्वारा शम्बुक का वध किए जाने जैसी घटनाओं का उल्लेख किया जाता है। यदि हम शम्बुक की पूरी कथा और वेदादि शास्त्रों में शुद्रों के लिए दी गई व्यवस्थाओं को देखें तो यह कथा विश्वसनीय नहीं लगती।

शम्बूक वध का प्रसंग उत्तर रामायण में मिलता है जिसके अनुसार शम्बूक नाम के एक शूद्र के तपस्या करने के कारण अयोध्या में एक ब्राह्मण का पुत्र अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है। तत्पश्चात वह ब्राह्मण श्रीरामचंद्र के दरबार में जाकर अपने पुत्र की अकाल मृत्यु की शिकायत करता है एवं आरोप लगाता है कि यह राजा का दुष्कृत्य है जिसके परिणामस्वरूप ऐसा हुआ। तब श्रीराम ब्राह्मणो और ऋषियों की एक सभा करते हैं जिसमें नारद मुनि कहते हैं अवश्य ही आपके राज्य में कोई शूद्र तप कर रहा है जिसके फलस्वरूप ऐसी घटनायें हो रही हैं। चूंकि त्रेता युग में शूद्र का तप करना पूर्णत: वर्जित है एवं हानिकारक था, इसलिए यह सुनते ही श्रीराम चंद्र अपने पुष्पक विमान पर सवार हो ऐसे शूद्र को ढूंढने निकल पड़ते हैं। दक्षिण दिशा में शैवल पर्वत के उत्तर भाग में एक सरोवर पर तपस्या करते हुए एक तपस्वी मिल गया जो पेड़ से उल्टा लटक कर तपस्या कर रहा था।

प्रसंग के अनुसार श्रीराम उस शूद्र के पास जाते हैं और पूछते हैं ‘तापस! जिस वस्तु के लिए तुम तपस्या में लगे हो, उसे मैं सुनना चाहता हूँ। इसके सिवा यह भी बताओ की तुम ब्राह्मण हो या अजेय क्षत्रिय? तीसरे वर्ण के वैश्य हो या शुद्र हो?’ कलेश रहित कर्म करने वाले भगवान् राम का यह वचन सुनकर नीचे मस्तक करके लटका हुआ वह तपस्वी बोला – हे श्री राम ! मैं झूठ नहीं बोलूँगा। देव लोक को पाने की इच्छा से ही तपस्या में लगा हूँ। मुझे शुद्र जानिए। मेरा नाम शम्बूक है। इतना सुनते ही श्रीराम अपनी तलवार से उसका वध कर देते हैं। यह प्रसंग वाल्मीकि रामायण में उत्तर कांड के 73-76 सर्ग में मिलता है।


इस प्रसंग को आधार बनाकर आज खूब राजनीति की जाती है, जबकि यह प्रसंग पूर्ण रूप से असत्य, काल्पनिक, प्रक्षिप्त है और बाद के काल में उत्तर रामायण में जोड़ा गया है। वैसे तो पूरी उत्तर रामायण ही संदिग्ध है, क्यूंकि महर्षि वाल्मीकि अपनी रामायण में केवल 6 काण्ड ही लिखे थे और युद्ध कांड में रावण वध के पश्चात श्रीराम जानकी और लक्ष्मण के अयोध्या वापिस आने पर रामायण समाप्त कर दी थी।
निषाद के साथ पढऩे वाले उससे जीवन भर मित्रता निभाने वाले, भील शबरी के जूठे बैर खाने वाले, वनवासियों को साथ लेकर उनका आत्मविश्वास बढ़ाकर रावण जैसे शक्तिशाली राजा का मान मर्दन करने वाले रघुनाथ ऐसा कार्य करें, यह असंभव है। इस प्रसंग को जोडऩे का कारण पूरी तरह राजनीतिक ही रहा होगा।

जहाँ तक शूद्रों के ऊपर किये जाने वाले अत्याचार करने और तपस्या न करने देने की बात है तो शास्त्रों में कहीं भी शूद्र को तपस्या करने, यज्ञ करने का निषेध नहीं किया गया है। सनातन धर्म के सर्वोच्च ग्रन्थ वेदों के आधार पर ये बात सर्वसिद्ध है। वेदों के नाम और सर्ग के अनुसार हमने यहाँ इस विषय को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

वेदों में शूद्रों के विषय में कई मन्त्र एवं श्लोक हैं जो समाज में शूद्रों के महत्व का वर्णन करते हैं। वेदों में शुद्र को अत्यंत परिश्रमी कहा गया है। तप शब्द का प्रयोग अनंत सामथ्र्य से जगत के सभी पदार्थों की रचना करने वाले ईश्वर के लिए वेद मंत्र में हुआ है।

महापुराण में कहा गया है कि त्रेता युग में केवल एक वेद था, यजुर्वेद। यजुर्वेद मुख्य रूप से यज्ञों का विधान है। यज्ञ आर्य संस्कृति में सबसे मत्वपूर्ण, फलदायी एवं पवित्र कर्म माना गया है। अग्नि पवित्र है और जहां यज्ञ होता है, वहां संपूर्ण वातावरण, पवित्र और देवमय बन जाता है। यज्ञवेदी में ‘स्वाहा’ कहकर देवताओं को भोजन परोसने से मनुष्य को दुख-दारिद्रय और कष्टों से छुटकारा मिलता है। यजुर्वेद में कई मन्त्र हैं जो शूद्र को यज्ञ तप करने का अधिकार देते हैं। जिनसे स्पष्ट है कि शूद्र को यज्ञ आर्यों का सबसे पवित्र कर्म करने का पूर्ण अधिकार था।
यजुर्वेद अध्याय 30 मन्त्र 5 में कहा गया है – तपसे शुद्रम् अर्थात् तप यानी कठोर कर्म करने वाले पुरुष का नाम शुद्र है।
     यजुर्वेद अध्याय 16 मन्त्र 27 कहता है – नमो निशादेभ्य अर्थात् – शिल्प-कारीगरी विद्या से युक्त जो परिश्रमी जन (निषाद यानी शुद्र) हैं उनको नमन है ।
    ऋग्वेद 10. 53. 5 में कहा गया है – पञ्च जना मम होत्रं जुषन्तां गोजाता उत ये यज्ञियास: अर्थात् पांचों वर्गों के मनुष्य यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र एवं अतिशूद्र यानी अवर्ण मेरे यज्ञ को करें। इसमें वर्ण व्यवस्था से बाहर के अतिशूद्रों का भी वर्णन है।
     वेदों में शूद्रों के लिये अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें :
वैदिक ग्रंथों में नहीं किया गया है शुद्रों के साथ भेदभाव




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नवरात्रि का तीसरा दिन : माता चंद्रघंटा की आराधना

आज 4 अप्रैल 2022 को नवरात्र का तीसरा दिन है और इस दिन हम मां चंद्रघंटा की आराधना करेंगे। मां चंद्रघंटा की विग्रह की आराधना के लिए जिस श्लोक से आवाहन किया जाएगा वह निम्नानुसार
पिण्डजप्रवरारुढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता | 
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता 
यदि यह श्लोक आप याद ना कर पाए तो निम्नलिखित श्लोक को पढ़िए
*या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।*
*नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।*
    देवी के स्वरूप को समझने के लिए निम्न विवरण को अवश्य देखिए
माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दसों हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए उद्यत रहने की होती है।
  मां चंद्रघंटा साधक को आत्मिक शांति एवं दुष्ट पर शक्तियों से मुक्त करती हैं।
सनातन पूजा प्रणाली में केवल मूर्ति पूजा का महत्व ही नहीं है बल्कि साकार आराधना को भी महत्वपूर्ण माना है। मां चंद्रघंटा के पूजन के लिए अगर आप अनुकूल वातावरण महसूस नहीं कर पा रहे हैं या आपको अनुकूल वातावरण नहीं मिलता है तो आप किसी भी श्यामवर्णी तेजस्विनी विवाहित महिला को बुलाकर उन्हें सम्मान देते हुए उनका पूजन करें तथा उन्हें आहार सम्मान सहित खिलाए आहार में दही और हलवा अवश्य दिया जाना चाहिए।
   सनातन को अपमानित करने वालों के लिए यह बता देता हूं कि-" सनातन में नारी का सम्मान करना सर्वोपरि धर्म है।"

रविवार, अप्रैल 03, 2022

नवरात्रित् द्वितीय दिवस की आराध्या देवी ब्रह्मचारिणी के बारे में

                 हिमालय पुत्री की मनोकामना थी  कि उनका विवाह  शिव के साथ हो। देवर्षि नारद उनकी मनोकामना की पूर्ति के लिए उन्हें कठोर तपस्या की सलाह देते हैं । सलाह मानते हुए हिमालय सुता ने 1000 वर्ष तक शिव की कठोर आराधना की और इस आराधना तपस्या के दौरान उन्होंने 1000 वर्ष केवल फल फूल खाए और 100 वर्षों तक केवल शाक आदि खाकर जीवन ऊर्जा प्राप्त की।
   आज यानी 3 अप्रैल 2022 को नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना के लिए हमें निम्नानुसार क्रियाएं करनी चाहिए...
 मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति को अपने कार्य में सदैव विजय प्राप्त होता है। मां ब्रह्मचारिणी दुष्टों को सन्मार्ग दिखाने वाली हैं। माता की भक्ति से व्यक्ति में तप की शक्ति, त्याग, सदाचार, संयम और वैराग्य जैसे गुणों में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा- सामान्य रूप से कैसे करें
• इस दिन सुबह उठकर जल्दी स्नान कर लें, फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।
• घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
• मां दुर्गा का गंगा जल अथवा पवित्र नदी का जल जो स्थानीय रूप से उपलब्ध है से अभिषेक करें।
• अब मां दुर्गा को अर्घ्य दें।
• मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
• धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।
• मां को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
यदि मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र को आप याद ना रख सकें तो निम्न लिखित मंत्र को सहजता से याद किया जा सकता है और एकाग्र चित्त होकर मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जा सकती है-

• मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र:
या देवी सर्वभू‍तेषु ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती:
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो ​तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
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            सनातन धर्म की विशेषता यह है कि वह इसी प्रकार की असंभव और कष्ट साध्य साधना के लिए साधक को बाध्य नहीं करता। जबकि अन्य संप्रदायों में जो हिंदू धर्म से अलग हैं कठोरता और भय समाविष्ट है परंतु सनातन में मन की शुचिता, आचार व्यवहार मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का होना आवश्यक है। और आप जिस जिस देवी मां अर्थात मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करेंगे वह स्वयं तो कठोर तापसी हैं किंतु अपने साधकों के प्रति दयालु भी हैं। ब्रह्मचारिणी की आराधना से जो फल की प्राप्ति होती है वह शक्ति पूजा में विशेष महत्व रखती है। हम 9 दिनों तक शक्ति पूजन करेंगे किंतु अगर हमारा मन मानस और चेतना समन्वित रूप से नहीं रह सकेगी तो हमारी पूजा का कोई अर्थ नहीं है। अतः हमें पूरी नवरात्रि के समय गंभीरता के साथ मन मानस और चेतना समन्वयन (सिंक्रोनाइज़ेशन) शुचिता के साथ करना चाहिए। अन्यथा पूजन का कोई अर्थ नहीं निकलता। शक्ति पूजा के दौरान मन में किसी भी तरह की विलासिता के भाव विशेष रुप से नहीं आने चाहिए । यदि आप मानसिक रूप से अपनी इंद्रियों को वश में नहीं कर सकते हैं तो पूजन अर्चन का अर्थ ही नहीं निकलेगा। आइए आज हम ब्रह्म मुहूर्त में उठकर मां ब्रह्मचारिणी की आराधना का उपरोक्त बताई गई विधि से प्रारंभ करें

शनिवार, अप्रैल 02, 2022

नवरात्रि प्रथम दिवस जानिए मां शैलपुत्री के बारे में


   
       विक्रम संवत 2079 के शुभ आगमन पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई
    महाराजा विक्रमादित्य के नाम पर स्थापित सनातनी नव वर्ष में भारत का प्रवेश आज अंग्रेजी कैलेंडर दिनांक 2 अप्रैल 2022 से हो चुका है।
चैत्र नवरात्र भी आज से प्रारंभ है । आज हम साक्षात मां पार्वती अर्थात शैलपुत्री के स्मरण मैं अपना दिवस बिता रहे हैं। भारतीय सनातन परंपरा में नारी को समानता का ही अधिकार नहीं है बल्कि श्रेष्ठता प्रदान की गई है । पौराणिक मान्यताओं एवं पुराणों में लिखित तथ्यों के आधार पर अरुणाभ वस्त्र धारी मां शैलपुत्री को बेल पर विराजित ऐसी दिव्य तेजस्वी मां के रूप में दर्शित किया गया है जिनके एक हाथ में कमल और दूसरे हाथ में त्रिशूल होता है। कमल भारतीय संस्कृति और दर्शन में महत्वपूर्ण पुष्प है। अगर इसके भावार्थ को समझा जाए तो यह पोस्ट दर्शन अध्यात्म जीवन दर्शन एवं ज्ञान का प्रतीक है। कमल की निकले भाग को मृणाल कहते हैं। दूसरी ओर माता शैलपुत्री जो वस्तुतः हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं या हिमालय की पुत्री के रूप में परिभाषित हैं, के हाथ में त्रिशूल दिखाई देता है। अर्थात ज्ञान वन होना और दुष्ट दलन का अधिकार भारत की हर स्त्री को भारतीय जीवन दर्शन में सम्मिलित किया गया है।
  मां शैलपुत्री अपने वाहन के रूप में वृषभ यानी बैल को उपयोग में लाते हैं। इसका अर्थ यह है कि वह पशु संवर्धन के प्रति निष्ठावान हैं। कृषि प्रधान भारत में बैल का अपना महत्व है। जिसे आप हम सब भली प्रकार जानते हैं। मां पार्वती अर्थात शैलपुत्री शिव की पत्नी हैं. सुधी पाठकों आप सभी को चैत्र प्रतिपदा नव वर्ष विक्रम 2079 की हार्दिक शुभकामनाएं और साधना पर्व चैत्र नवरात्र आध्यात्मिक उन्नति के लिए शत शत नमन
गिरीश बिल्लौरे "मुकुल"
कृतिकार
भारतीय मानव सभ्यता एवं
संस्कृति के प्रवेश द्वार 1
6000  ईसा पूर्व

Bhartiya Manav Sabhyta Evam Sanskriti Ke Pravesh Dwaar: 16000 Isa Purva ( भारतीय मानव–सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेशद्वार : 16000 ईसा पूर्व )  

तड़पती देह के मेले

            (गूगल से साभार)
*तड़पती देह के मेले*
फिसलता है पसीना सर से
भिगो देता है जिस्मों को
शहर,कस्बे, बस्ती में,
लगा करतें है तब अक्सर
तड़पती देह के मेले
तड़पती देह के मेले ।
दरकती की भू ने समझाया
तल में जल है अब कमतर
कि चेहरे और धरती को
अफजल की जरूरत है।
धरा पर घास, पौधे पेड़ लगाओ
रोक लो मीत अब पानी ।
न जी पाएंगे हम और तुम
हुआ न हमने जो पानी ।।
गगनचुंबी इमारत पर
सतपुड़ा के जंगलों में
मूक पंछी और पशुओं को बचा लो
संतुलन प्रकृति का बचा लो।
न कहना फिर कभी अक्सर
मरुस्थल में लगा करते हैं
तड़पती देह के मेले
तड़पती देह के मेले ।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

सोमवार, मार्च 28, 2022

कश्मीर नामा 02 : राज तरंगिणी सिद्ध करती है कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ..!"

राज तरंगिणी सिद्ध करती है कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है 

      कल्हण किसी सरकारी भर्ती परीक्षा के लिए सवाल बनकर रह गए हैं। मेरा मानना है कि हमें भारत को समझने के लिए भारतीय प्राचीन इतिहास को पढ़ने की आवश्यकता है। परंतु हम इन सब से दूर रहते हैं पढ़ने लिखने का आजकल चलन ही खत्म हो गया है। आइए हम राज तरंगिणी में वर्णित कश्मीर के इतिहास के माध्यम से भारत को जानने की कोशिश करते हैं। यहां एक तथ्य स्पष्ट करना चाहता हूं कि "वामन मेश्राम जैसे कुछ अति उत्साही लोग सार्वजनिक मंच से जाती पाती का विश्लेषण करते हुए समाज का वर्गीकरण करने में पीछे नहीं रहते।"
  ब्राह्मणों को अपमानित के पीछे अगणित कारण गिनाने वाली भीड़ को बता देना चाहता हूं कि- "भारतीय इतिहास में कभी भी जाति के आधार पर इसी प्रकार की असहिष्णुता का प्रावधान नहीं था ।"
   ऐतिहासिक दस्तावेजों एवं ग्रंथों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भारत में वर्ण व्यवस्था थी परंतु सामाजिक एकात्मता के भाव को यह व्यवस्था समाप्त नहीं कर रही थी। वर्ण व्यवस्था केवल कर्म आधारित जीविकोपार्जन पर केंद्रित रही है। मैंने अपनी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व में स्पष्ट रूप से इस बात का गहन अध्ययन के उपरांत उल्लेख किया है।
     जाती पाती का वर्गीकरण केवल मुस्लिम आक्रांता आक्रमणकारियों तथा ब्रिटिश आक्रमणकारियों के आने के उपरांत सामाजिक विघटन जाति के आधार पर हुए हैं। विदेशी शासकों ने अपने लाभ के लिए कुछ ऐसे प्रयास किए जिससे सामाजिक रिलेशनशिप में बदलाव  हुआ है। जबकि इसके पूर्व मिहिरकुल जो हूण था तथा कनिष्क जो कुषाण था के कार्यकाल में सामाजिक एकात्मता प्रभावित नहीं हुई। इस बात का रहस्योद्घाटन भारत के प्रथम इतिहासकार कल्हण की किताब राज तरंगिणी में होता है।
केवल मुस्लिम आक्रांता आक्रमणकारियों और ब्रिटिश उपनिवेश वादियों के कारण भारतीय समाज में उथल-पुथल और ढांचागत बदलाव देखने को मिले। इन दोनों ही वर्गों ने भारतीय एकात्मता को गंभीर क्षति पहुंचाई है। राज तरंगिणी के लिखे जाने के पूर्व चीनी यात्रियों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि भारत में एकात्मता के भाव सर्वव्यापी रहे हैं। क्योंकि यह आलेख राज तरंगिणी पर केंद्रित है अतः उसी आधार पर यहां स्पष्ट करना आवश्यक है कि 10 वीं 11 वीं शताब्दी तक सामाजिक ढांचा बेहद प्रभावशाली एवं एकात्मता को बढ़ावा देने वाला था। उदाहरणार्थ वैवाहिक संबंध किसी भी जाति के हो सकते थे। और अस्पृश्यता कश्मीर में कभी देखने को नहीं मिलती थी। प्रमाणित तौर पर कहा जा सकता है कि डोम जाति की कन्या भी कश्मीर की महारानी के रूप में राज तरंगिणी उल्लेखित है। इतना ही नहीं कालांतर में एक राजा जिनका नाम कल्यपाल था वे निम्न वर्ण के थे । उनका विवाह राजपूतों में ही हुआ अर्थात प्रत्येक कश्मीरी को सामाजिक अधिकार समान रूप से प्राप्त हुए थे जन्मना जाति के आधार पर नहीं। लेकिन यह सच है कि केवल मुस्लिम जाति से वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं किए जा सकते थे। परंतु उन्हें राज्य में प्रमुख पदों पर किया जाता था। राज तरंगिणी के अनुसार राजा ललित आदित्य का मंत्री तुखार था जो तुर्की मूल का था और मुस्लिम था। किसी भी गैर कश्मीरी के प्रति कश्मीर में निरादर का भाव  नहीं पाया गया। उन्हें श्रद्धालु आदरणीय इत्यादि शब्दों से संबोधित किया जाता था।
  अगर आप राज तरंगिणी पढ़ लेंगे तो आपको यह ज्ञान हो जाएगा कि कश्मीर भारत का अविभाज्य हिस्सा है, सांस्कृतिक सामाजिक स्वरूप में भी और भौगोलिक स्वरूप में इसे भारत से पृथक देखा ही नहीं जा सकता।
    कश्मीर में हूण राजा मिहिरकुल ने तथा मेघवाहन ने कश्मीर में ब्राह्मणों को राज आश्रय देकर बसाया तथा उनकी सेवाएं ली।
   स्वतंत्रता के उपरांत लिखा गया भारतीय इतिहास राज तरंगिणी नामक ग्रंथ को पढ़ने के उपरांत भ्रामक और अर्थहीन प्रतीत होता है।

रविवार, मार्च 27, 2022

ISI and Pakistan Army are looking for new rubber stamps

These days the Prime Minister of Pakistan Imran Khan is in trouble.
    Pakistan has a pro army administration and not a democratic system.
The work of deciding the political future of Pakistan is done by ISI and Army, which you all are aware of.
  According to media reports, these days the Chief of ISI and Army Chief Qamar Javed Bajwa, elected Prime Minister, is running very angry.
  The reason for the displeasure of both of them was the Kashmir issue and Imran's going to Russia, angering America.
  Meanwhile, an Indian journalist's comment on the statement of the Prime Minister of Pakistan that the highest number of jobs are available in Pakistan is how there can be a shortage of jobs in Pakistan, hundreds of terror factories.It has been going on in Pakistan for years.
   People who analyze South Asian affairs know that under any circumstances, Pakistan does not want to see a leader who behaves well with India as the Prime Minister.
   These days the Prime Minister of Pakistan seems to be mentally disturbed.Pakistan's army and ISI and political parties have always sold the powder of Kashmir. And with the help of that administration and politics continued in Pakistan.
Even the journalists of Pakistan do not seem to be satisfied with the political system of Pakistan.
   Pakistan's economy is 100 years behind that of India while it has gone behind its own piece i.e. Bangladesh by at least 50 years.The reason for this is that there are serious discrepancies in the socio-political system of Pakistan.
Pakistan, separated from the ethnic unity of countries like India, Bangla Verma, Sri Lanka, Nepal, Bhutan, etc., 
   If we see the Vital Statistics of Pakistan, then no figure touches Bangladesh. Seeing Pakistan, even atheists will have faith in God. Pakistan's foreign policy Pakistan's role in OIC Pakistan's relations with neighboring countries everything is seen from a balanced equation.
If there is any heaven on earth, then it is in Kashmir, as a poet had said. And the existence of God in the sky or anywhere is confirmed by the condition of Pakistan.
  As a writer, my sympathies are more than the people of Sindh Baluchistan. Its clear reason is that the influence of Punjab province in Pakistan is on the politics, economy, army and ISI there.Not only this, academically Pakistan comes in those backward countries of the world where the existence of education is negligible.
   Pakistan is the only nation in the Indian subcontinent where the people can neither understand democracy well nor understand its existence.
    Friends, any leader who comes to Pakistan will not come with positive thinking relative to India. The army chief of Pakistan is now looking for a pawn that will work to distribute tablets against India and Pakistan Let me work as a rubber stamp of the Army and ISI
The situation of minorities in Pakistan, even of Shia and Ahmadiyya Muslims, is not positive in the eyes of human rights organizations. Pakistan's target is to forcibly marry 1000 Hindu girls every year, this proves that Muslims never want any other religion believer to live in Pakistan other than them.
Whenever we talk in the Twitter space, it is known from the people of Baluchistan that Pakistan is the country that has committed the most human rights abuses. The Sindhi population imagining a separate Indus nation and Baluchistan is desperate for liberation.
   The failure of the United Nations is also highlighted here. The United Nations and the Human Rights Organization of the United Nations have not been able to take any effective steps in this direction. Both Obama and Trump have accepted the way terror has been defined after Modi's arrival, but the current US President appears to be innocent in this matter.


क्या पढूं...?

याद होगा आपको क्या लिखूं नि:बंध पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी साहब बड़े  विचार मग्न थे, और इसी विचार प्रवाह में  डूब कर  बक्शी जी ने लिख मारा एक निबंध ! निबंध क्या सच्चाई थी। लिखने के बाद टोपी टांगने की समस्या खूंटी खोजना भी उनकी है समस्या थी ना ।
   उन्हें  लिखने की समस्या थी मुझे पढ़ने की समस्या है। ज्यादातर किताबों में रेफरेंसेस संदर्भ कई किताबों कई लेख कई सृजन  नहीं होते बल्कि कभी-कभी रेफरल बुक नजर आते हैं तो कभी कभी शब्दकोश से उठाए गए शब्दों का संयोजन लगते हैं। कभी वह डाक्ट्रिन लगते हैं तो कभी दाएं बाएं से किए गए कमिटमेंटस नजर आते हैं। कविताओं की दशा भी यही है। कभी कहीं कदाचित आ जाता है नर्मदा महाकाव्य स्त्रियां घर लौटती है वरना वही सब  जैसा ऊपर बताया है। बुरा मत मानिए कलमकार कई सारी रचनाएं ऐसा लगता है कि बहुत पहले कभी खड़ी हैं वास्तव में ऐसा ही होता है। फिर से शब्द संयोजन बदल जाता है मामला जस का तस परोस देते हैं हमारे कलमकार।  क्या करें गिलहरी और अखरोट का रिश्ता ही ऐसा है !
   फफक फफक के रोया था जब बंटवारे पर ट्रेन टू पाकिस्तान महसूस की थी, और दूसरी बात अब जबकि मित्र गंगा चरण मिश्र ने एक कथा मेरे घर पर आ कर सुनाई थी। याद नहीं आ रहा शायद धर्मयुग अथवा साप्ताहिक हिंदुस्तान में काली आंधी भी महसूस हुई थी। किशोरावस्था से निकलते निकलते पता चला की रोटी भी कमाना है यह अलग बात है कि वह गालियां दे रहा था-" मैं कोई नौकरी नहीं करता" ! खैर छोड़ो नादान है समझ नहीं है अनुदान पर जीना भी एक कला है ।
   पता नहीं इतना साहित्य बिखरा हुआ है भारत के वातावरण में कहानी लिख लो कविता रच लो, निबंध लिख लो पर कई लोगों का कंटेंट आयातित क्यों है ? समझ में नहीं आ रहा...!
    अभिज्ञान शाकुंतलम् और हैमलेट में  अंतर क्या है ? 
     अभी तो कुमारसंभव की बात ही नहीं कर रहा चलो करता भी नहीं ।
    अब तो मैंने तय कर दिया है कि-"आंखों तुम केवल हिस्ट्री पढ़ो..!
  हिस्ट्री है कि टाइमलाइन सेट नहीं कर पा रही लिखने में मिस्टेक हो गई किस सोच समझकर यह लिखा गया-" श्री राम कृष्ण केवल कपोल कल्पनाएं हैं ।
   अब यह वाक्य पढ़कर आपको लग रहा होगा कि यह दाएं बाजू से उभरा कोई चिंतन है ? 
   निश्चित तौर पर यही घोषित कर रहे हैं लोग और जैसे ही अरुण पांडे जी ने भरतमुनि के नाट्य शास्त्र का उल्लेख किया तो समझ में आया की कोई कुछ भी कह ले लेकिन विद्वान अपने जान संदर्भों को अंगीकार कर रहे हैं।
   तो समझ लीजिए कि मैं बात कर रहा हूं मानवतावादी वैश्विक तानेबाने की..! जहां से अनुगुंजित होता है-" वसुधैव कुटुंबकम" का उद्घोष ।
   कल ही किसी मुद्दे पर चर्चा चल रही थी विद्वान मित्र शैलेन्द्र पारे जी ने कहा था -" एकला चलो भी जरूरी है लेकिन सब को लेकर चलना भी जरूरी है...!"
बदलती परिस्थिति में जड़ता को कोई स्थान नहीं है ....  it's a very clear nothing is final truth...! Why you are wasting your time  for final truth...?
    समय बदलता है परिस्थितियां बदलती है कभी-कभी तो स्थितियों के वजह से विज्ञान की प्रतिपादित सिद्धांत भी खंडित हो जाती हैं और हमें चकित कर देते हैं । 
    क्या जरूरत है वैश्विक वैमनस्यता बोने की जरूरत तो यह है कि जो बोया है अगर वह कटीला है तो कांटो को तोड़ दिया जाए कुछ नया उगाया जाए।
   कबीर के बाद कबीर पत्थर के बनाके उन्हें पूजें तो  कबीर हंसेंगे कि बेवजह लिखा था दोहा कि- 
पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़
तासे जा चाकी भली, पीस खाय संसार ।
    कबीर ने जो कहा अपने मदमस्त अंदाज में कहा। कभी की अभिव्यक्ति के संदर्भ को समझना चाहिए । 
    अब के कबीर कमिटेड हैं पक्षपाती भी । मिर्जा गालिब और अनोखे निकले 
कह गए -"कहीं ऐसा न कि वाँ ही वही..!
   अब यह देश क़बीरों का नहीं है मिर्जा गालिबों का नहीं है । अब इसमें आयातित विचारधाराएं राज करती हैं ।
वही पढ़ो जो हम पढ़ाएं 
वहीं सुनो जो हम सुनाएं ।
जो राग उनने बना के रखी
उसी पे शब्दों को हम सजाएं..?
न वोल्गा से कथा शुरू है
न गंगा के आ रुकी है ।
न चार पाठों की संस्कृति है-
न गीत की गति कभी रुकी है ।।
      अब आप ही बताएं क्या पढ़े और क्या पढ़ाएं। मैं मंदिर इसलिए जाता हूं कि वहां एक शिल्पी में अथक मेहनत कर एक मूर्ति रखी है शिल्पी की आस्था पर मोहित हूँ और मुझे उसकी आस्था पर आस्था है । मैं मुशरिक नहीं हूं इस बात का सर्टिफिकेशन भी नहीं चाहिए । मुझे मेरा आनंद चाहिए वह चाहे अकेले में मिले या मेले में। तो बता दो ना कि मैं क्या पढूँ और क्यों पढूँ..?
    चलो तो जब तय करना तब बता देना फिलहाल सोता हूं रात गहरा चुकी है ।

शनिवार, मार्च 19, 2022

कश्मीर नामा 01 : सहदेव ने स्थापित किया था कश्मीर

     12 वीं शताब्दी में  वर्तमान कश्मीर के परिहास पूर्व में जन्में कल्हण के पिता हर्ष देव के दरबार में दरबारी थे। लोहार वंश का साम्राज्य था कश्मीर में। लोहार राजवंश कश्मीर 11वीं और 12वीं शताब्दी में राज करता था। लोहार वंश की स्थापना संग्राम राज ने की थी। राजा संग्राम राज के वंशज हर्ष देव का शासन काल विसंगतियों भरा था। इस राजा ने मंदिरों तक को लूटा था। किसी राजा के दरबार में उनके एक महामात्य चंपक के 2 पुत्र थे। एक पुत्र का नाम कल्हण था तथा दूसरा पुत्र कनक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कल्हण कवि थे जबकि कनक संगीतज्ञ।
यूरोपीय विद्वान विंटरनिट्स भारत के प्रथम इतिहासकार के रूप में कल्हण का नाम सर्वोच्च स्थान पर रखा उसका कारण था कि कल्हण अपनी कृति-"राजतरंगिणी" में व्यवस्थित ढंग से इतिहास का लेखन किया। इतिहास लेखन के लिए जिन बिंदुओं का विशेष ध्यान दिया जाता है उसका ध्यान रखते हुए कल्हण ने काव्य के रूप में राजतरंगिणी की रचना की। इस कृति का रचनाकाल 1147 से लेकर 1149 ईस्वी था। कुछ लोगों की मान्यता है कि सन 1150 तक यह इतिहास लिखा गया। कुछ लोगों का मंतव्य है कि-"कल्हण ही राज तरंगिणी का लेखन काल कल्हण के बाद भी जारी रहा। और उसके सह लेखक थे जोनराज, प्रज्ञा भट्ट, श्रीवर अथवा सीवर एवम सुका ।
   अर्थात राज तरंगिणी में कई और लेखक भी शामिल हुए।
   राज तरंगिणी का जिन भाषाओं में रूपांतरण हुआ वह है राजा जैनुबुद्दीन के दरबारी कवि मुरला अहमद शाह जिन्होंने इस कृति का फारसी भाषा में अनुवाद बसीर उल अरमाद नाम से किया था। इसी नाम से मुगल बादशाह अकबर के राज कवि शाह मुल्लाह शाहबादी ने भी किया है।
अंग्रेजी विद्वान शाहजहां के कार्यकाल में भारत आए और उन्होंने अपनी किताब पैराडाइज ऑफ इंडिया में इस किताब का अनुवाद प्रकाशित किया था। परंतु यह कृति अब विश्व में उपलब्ध नहीं है। अंग्रेजी भाषा में ऑरेलेस्टाइन द्वारा किए गए अनुवाद की उपलब्धता विश्व साहित्य में है।
   मैंने अपनी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 1600 पूर्व में महाभारत के काल का विवरण प्रस्तुत कर दिया है। महाभारत काल से लेकर लोहार वंश के अंतिम हिंदू राजावंश तक 36 वर्ष और 64 उप जातियों का उल्लेख करते हुए कल्हण ने इतिहास का लेखन किया है। कल्हण ने अपने इतिहास में अर्थात राज तरंगिणी में यह तथ्य स्थापित किया है कि पांडवों के छोटे भाई सहदेव ने कश्मीर में राज्य की स्थापना की थी।
   राज तरंगिणी के अनुसार अशोक ने कश्मीर में भी अपने राज्य का विस्तार कर लिया था। प्रारंभ में अशोक शैव संप्रदाय का मानने वाला था। तदुपरांत वह बौद्ध धर्म को मानने लगा। इस कृति में कुषाण वंश के राजा कनिष्क के कश्मीर में विस्तार का भी उल्लेख करते हुए बताया गया है कि वहां कनिष्क पुर नामक नगर की स्थापना कनिष्क ने ही की थी। कनिष्क के काल में चौथी बौद्ध संगति का विवरण भी है।
   राजा अवंती बर्मन के दरबार में सूर नामक प्रथम इंजीनियर ने झेलम पर पुल बनाया था ऐसा उल्लेख इस कृति में मिलता है।
   कल्हण ने 813 ईसा पूर्व से 1150 ईस्वी तक अपनी कृति में दर्ज किया है। कृपया देखिए महाभारत का कालखंड 3762 ईसा पूर्व की पुष्टि आचार्य मृगेंद्र विनोद एवं वेदवीर आर्य ने भी की है। तदनुसार इसका उल्लेख मेरी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व में प्रश्न क्रमांक 192 से 197 तक में दर्ज है।
  मित्रों कल्हण ने अपनी संस्कृत में लिखी गई कृति राज तरंगिणी में जिस इतिहास लेखन के मूल  तत्वों का ध्यान रखा है उन्हें हम क्रमशः निम्नानुसार विश्लेषण कर सकते हैं....
[  ] प्राचीन राजवंश की क्रमवार जानकारी। राज तरंगिणी का अर्थ होता है राजाओं की नदियां अर्थात राज सत्ता का प्रवाह।
[  ] अपने ग्रंथ को प्रमाणित सिद्ध करने के लिए उन्होंने (कल्हण ने) 7826 श्लोकों में महाभारत काल से लेकर 1150 ईस्वी तक का इतिहास लिखा है।
[  ] प्रथम 3 तरंगिणीयों में अर्थात अध्याय में राजवंशों का रामायण एवं महाभारत कालीन राजवंशों का तत्सम कालीन संबंध उल्लेखित किया है।
[  ] कल्याण में कश्मीर में बौद्ध धर्म की स्थापना 273 ईसा पूर्व उल्लेखित की है।
[  ] परमाणु की पुष्टि के लिए श्रुति परंपरा पुरातात्विक प्रमाण आदि का विश्लेषण भी राज तरंगिणी में डाला है।
[  ] राज तरंगिणी में आठ तरंगिणीयां 7826 श्लोक हैं।
[  ] राज तरंगिणी में सभी राजवंशों का तटस्थ भाव से विश्लेषण किया है राजाओं के गुण दोषों का स्पष्ट चित्रण किया है।
[  ] सामाजिक व्यवस्था धार्मिक आर्थिक एवं आध्यात्मिक परिस्थितियों का सटीक विवरण प्रदर्शित है।
          भारत के प्राचीनतम इतिहास को समझने के लिए रोमिला थापर जैसे भ्रामक मंतव्य स्थापित करने वाले इतिहासकारों की जरूरत नहीं है। हमें चाहिए कि हम प्राचीन इतिहास का अध्ययन कल्हण की राज तरंगिणी से शुरू करें।
नोट:- युवाओं को यह आर्टिकल इसलिए पढ़ना चाहिए क्योंकि ताकि वे पीएससी यूपीएससी एवं अन्य प्रतियोगी स्पर्धाओं के लिए *प्राचीन भारतीय इतिहास* उपयोगी पाठ्य सामग्री है।
  अन्य सभी को इस हेतु पढ़ना चाहिए ताकि आप भारत को समझ सकें।

शुक्रवार, मार्च 18, 2022

मैक्समूलर ही नहीं दिनकर जी और राहुल सांकृत्यायन जी ने भी झूठ बोला


   भारत के इतिहास को काल्पनिक साबित करने का क्रम आज से नहीं बल्कि वर्षों से चल रहा है। विगत 70 वर्षों से तो यह बहुत तेजी से चला है। वामपंथी विचारक और लेखक भारत के अस्तित्व को ही न करते हैं।  वामपंथी इतिहासकारों ने तो हद ही कर दी भारतीय महानायक श्रीराम और श्रीकृष्ण को मिथक चरित्र बता दिया। मित्रों जैनिज्म के प्रथम महापुरुष नेमिनाथ तक को इन साजिश करने वालों ने कृष्ण के समकालीन होते हुए व्याख्या और चर्चा से बाहर कर दिया ताकि कृष्ण को कल्पनिक घोषित किया जा सके। साहित्यकार अक्सर कल्पना में लेखन करते हैं। मेरा हमेशा से एक ही उद्देश्य रहा है कि जो लिखो यथार्थ लिखो लोकोपयोगी लिखो राष्ट्र के अस्तित्व को स्थापित करने वाला कंटेंट लिखो। परंतु दुर्भाग्य है इस देश का रामधारी सिंह दिनकर ने राम को लोक कथाओं का नायक निरूपित कर दिया।
लोक साहित्य में भारतीय वैदिक साहित्य में  विदेशी यात्रियों द्वारा लिखे गए साहित्य में भारत के यथार्थ को चित्रित किया है। फिर भी हम अपने प्रमाद वश तथाकथित प्रगतिशील साहित्यकारों के प्रश्नों का जवाब नहीं दे पाते। हम पढ़ते नहीं हैं इसलिए हम जवाब नहीं दे पाते।
रामधारी सिंह दिनकर को नकारना मेरे लिए कोई कठिन नहीं था हो सकता है आपके लिए कठिन हो।
  *चर्चिल ने भारत को केवल एक भौगोलिक शब्द कहा है उनका मानना था भारत एक भौगोलिक शब्द है जैसे भूमध्य रेखा कोई राष्ट्र नहीं भारत भी एक राष्ट्र नहीं है।*
*सर जॉन स्ट्रैची कहते हैं-" भारत के बारे में जानने वाली पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत नाम का कोई देश ना कभी था न कभी है*
  इन तमाम मान्यताओं और नैरेटिवस को यूरोपियन नेपोटिज्म के अलावा क्या नाम दिया जाए?
   मित्रों अब समय आ गया है जब वेदों, उपनिषदों, आरण्यकों, संहिताओं, महाकाव्य क्रमशः रामायण महाभारत, शास्त्रों आदि पर स्पष्ट मीमांसा करते हुए अपनी बात रखी जाए। इस क्रम में मैंने *भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व* कृति की रचना की है। यह एक ऐतिहासिक कृति है। इसी क्रम में जनरल जीडी बक्शी ने सरस्वती सभ्यता के जरिए भी भारत को भारतीय नजरिए से समझने की पेशकश की है । मित्रों आइए विंस्टन चर्चिल और स्ट्रैची को नकारते हुए मैक्स मूलर तथा वामपंथी लेखकों साहित्यकारों जैसे संस्कृति के चार अध्याय लिखने वाले रामधारी सिंह दिनकर को वोल्गा से गंगा तक लिखने वाले राहुल सांकृत्यायन द्वारा स्थापित मंतव्य को जड़ से समाप्त किया जाए। वरना हम अपनी संतानों को क्या जवाब देंगे।
कृपया अमेजॉन फ्लिपकार्ट गूगल बुक्स किंडल पर उपलब्ध ऐसी कृतियों को अवश्य पढ़ें और जाने भारत का सच्चा इतिहास भारतीय नजरिया से।
  Bhartiya Manav Sabhyta Evam Sanskriti Ke Pravesh Dwaar: 16000 Isa Purva ( भारतीय मानव–सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेशद्वार : 16000 ईसा पूर्व ) 

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