राज तरंगिणी सिद्ध करती है कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है
कल्हण किसी सरकारी भर्ती परीक्षा के लिए सवाल बनकर रह गए हैं। मेरा मानना है कि हमें भारत को समझने के लिए भारतीय प्राचीन इतिहास को पढ़ने की आवश्यकता है। परंतु हम इन सब से दूर रहते हैं पढ़ने लिखने का आजकल चलन ही खत्म हो गया है। आइए हम राज तरंगिणी में वर्णित कश्मीर के इतिहास के माध्यम से भारत को जानने की कोशिश करते हैं। यहां एक तथ्य स्पष्ट करना चाहता हूं कि "वामन मेश्राम जैसे कुछ अति उत्साही लोग सार्वजनिक मंच से जाती पाती का विश्लेषण करते हुए समाज का वर्गीकरण करने में पीछे नहीं रहते।"
ब्राह्मणों को अपमानित के पीछे अगणित कारण गिनाने वाली भीड़ को बता देना चाहता हूं कि- "भारतीय इतिहास में कभी भी जाति के आधार पर इसी प्रकार की असहिष्णुता का प्रावधान नहीं था ।"
ऐतिहासिक दस्तावेजों एवं ग्रंथों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि भारत में वर्ण व्यवस्था थी परंतु सामाजिक एकात्मता के भाव को यह व्यवस्था समाप्त नहीं कर रही थी। वर्ण व्यवस्था केवल कर्म आधारित जीविकोपार्जन पर केंद्रित रही है। मैंने अपनी कृति भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व में स्पष्ट रूप से इस बात का गहन अध्ययन के उपरांत उल्लेख किया है।
जाती पाती का वर्गीकरण केवल मुस्लिम आक्रांता आक्रमणकारियों तथा ब्रिटिश आक्रमणकारियों के आने के उपरांत सामाजिक विघटन जाति के आधार पर हुए हैं। विदेशी शासकों ने अपने लाभ के लिए कुछ ऐसे प्रयास किए जिससे सामाजिक रिलेशनशिप में बदलाव हुआ है। जबकि इसके पूर्व मिहिरकुल जो हूण था तथा कनिष्क जो कुषाण था के कार्यकाल में सामाजिक एकात्मता प्रभावित नहीं हुई। इस बात का रहस्योद्घाटन भारत के प्रथम इतिहासकार कल्हण की किताब राज तरंगिणी में होता है।
केवल मुस्लिम आक्रांता आक्रमणकारियों और ब्रिटिश उपनिवेश वादियों के कारण भारतीय समाज में उथल-पुथल और ढांचागत बदलाव देखने को मिले। इन दोनों ही वर्गों ने भारतीय एकात्मता को गंभीर क्षति पहुंचाई है। राज तरंगिणी के लिखे जाने के पूर्व चीनी यात्रियों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि भारत में एकात्मता के भाव सर्वव्यापी रहे हैं। क्योंकि यह आलेख राज तरंगिणी पर केंद्रित है अतः उसी आधार पर यहां स्पष्ट करना आवश्यक है कि 10 वीं 11 वीं शताब्दी तक सामाजिक ढांचा बेहद प्रभावशाली एवं एकात्मता को बढ़ावा देने वाला था। उदाहरणार्थ वैवाहिक संबंध किसी भी जाति के हो सकते थे। और अस्पृश्यता कश्मीर में कभी देखने को नहीं मिलती थी। प्रमाणित तौर पर कहा जा सकता है कि डोम जाति की कन्या भी कश्मीर की महारानी के रूप में राज तरंगिणी उल्लेखित है। इतना ही नहीं कालांतर में एक राजा जिनका नाम कल्यपाल था वे निम्न वर्ण के थे । उनका विवाह राजपूतों में ही हुआ अर्थात प्रत्येक कश्मीरी को सामाजिक अधिकार समान रूप से प्राप्त हुए थे जन्मना जाति के आधार पर नहीं। लेकिन यह सच है कि केवल मुस्लिम जाति से वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं किए जा सकते थे। परंतु उन्हें राज्य में प्रमुख पदों पर किया जाता था। राज तरंगिणी के अनुसार राजा ललित आदित्य का मंत्री तुखार था जो तुर्की मूल का था और मुस्लिम था। किसी भी गैर कश्मीरी के प्रति कश्मीर में निरादर का भाव नहीं पाया गया। उन्हें श्रद्धालु आदरणीय इत्यादि शब्दों से संबोधित किया जाता था।
अगर आप राज तरंगिणी पढ़ लेंगे तो आपको यह ज्ञान हो जाएगा कि कश्मीर भारत का अविभाज्य हिस्सा है, सांस्कृतिक सामाजिक स्वरूप में भी और भौगोलिक स्वरूप में इसे भारत से पृथक देखा ही नहीं जा सकता।
कश्मीर में हूण राजा मिहिरकुल ने तथा मेघवाहन ने कश्मीर में ब्राह्मणों को राज आश्रय देकर बसाया तथा उनकी सेवाएं ली।
स्वतंत्रता के उपरांत लिखा गया भारतीय इतिहास राज तरंगिणी नामक ग्रंथ को पढ़ने के उपरांत भ्रामक और अर्थहीन प्रतीत होता है।
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