आज नवरात्रि का चतुर्थ दिवस है और आज कुष्मांडा देवी की आराधना करेंगे। आप यह जानते हैं कि सृष्टि का निर्माण शक्तियों से हुआ है। ब्रह्मांड का निर्माता होने के कारण तथा शक्ति का सर्वोच्च पुंज होने के कारण मां कुष्मांडा को आप तेजस स्वरूप में देख सकते हैं। भारतीय सनातन में सृष्टि का निर्माण वैज्ञानिक सांकेतिक सत्य है। जिसमें यह कहा है कि सृष्टि का सृजन शक्ति के बिना असंभव है। शक्ति के अभाव में ना तो दुनिया चलती है नाही शरीर यहां तक कि इस संपूर्ण ब्रह्मांड जिसमें हजारों आकाशगंगा नक्षत्र लाखों सूर्य का अस्तित्व है जो अनंत विस्तारित है उसके संचरण में संचालन में शक्ति की मौजूदगी अर्थात उपस्थिति को नकारा नहीं जा सकता। मां कुष्मांडा के मौजूद होने तथा उनके अस्तित्व का अर्थ है कि यह वह शक्ति है जिसके माध्यम से पूरा विश्व जीवंत है और संपूर्ण ब्रह्मांड विभिन्न गतिविधियों से गतिमान है।
हम जिस गैलेक्सी में निवास करते हैं जिसे हम मिल्की वे गैलेक्सी कहते हैं उस गैलेक्सी के हजारों सूर्य में हमारे सूर्य के मंडल में मां कुष्मांडा के अस्तित्व की कल्पना पुराना एवं सनातन शास्त्रों में की गई है। अगर हम वैज्ञानिक भाषा में कहें तो अष्टभुजी मां कुष्मांडा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा से विश्व ही नहीं बल्कि समूचे ब्रह्मांड अस्तित्ववाद है।
मां अष्टभुजा के हाथों में कमंडल धनुष बाण कमल अमृत से भरा हुआ कलश चक्र गदा है तथा एक हाथ में सिद्धियों और निधियों की दात्री जपमाला दर्शित है। मां कुष्मांडा के वाहन को सिंह के स्वरूप में प्रदर्शित किया है।
सुरासंपूर्णकलशं
रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना
हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं
ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति
चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं
कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
सामान्य व्यक्ति को इस श्लोक का जाप करना चाहिए
या
देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।'
विशेष :- इस दिन जहाँ तक संभव हो बड़े माथे
वाली तेजस्वी विवाहित महिला का पूजन करना चाहिए। उन्हें भोजन में दही,
हलवा खिलाना श्रेयस्कर है। इसके बाद
फल, सूखे
मेवे और सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए। जिससे माताजी प्रसन्न होती हैं। और
मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है।