भारत के इतिहास को काल्पनिक साबित करने का क्रम आज से नहीं बल्कि वर्षों से चल रहा है। विगत 70 वर्षों से तो यह बहुत तेजी से चला है। वामपंथी विचारक और लेखक भारत के अस्तित्व को ही न करते हैं। वामपंथी इतिहासकारों ने तो हद ही कर दी भारतीय महानायक श्रीराम और श्रीकृष्ण को मिथक चरित्र बता दिया। मित्रों जैनिज्म के प्रथम महापुरुष नेमिनाथ तक को इन साजिश करने वालों ने कृष्ण के समकालीन होते हुए व्याख्या और चर्चा से बाहर कर दिया ताकि कृष्ण को कल्पनिक घोषित किया जा सके। साहित्यकार अक्सर कल्पना में लेखन करते हैं। मेरा हमेशा से एक ही उद्देश्य रहा है कि जो लिखो यथार्थ लिखो लोकोपयोगी लिखो राष्ट्र के अस्तित्व को स्थापित करने वाला कंटेंट लिखो। परंतु दुर्भाग्य है इस देश का रामधारी सिंह दिनकर ने राम को लोक कथाओं का नायक निरूपित कर दिया।
लोक साहित्य में भारतीय वैदिक साहित्य में विदेशी यात्रियों द्वारा लिखे गए साहित्य में भारत के यथार्थ को चित्रित किया है। फिर भी हम अपने प्रमाद वश तथाकथित प्रगतिशील साहित्यकारों के प्रश्नों का जवाब नहीं दे पाते। हम पढ़ते नहीं हैं इसलिए हम जवाब नहीं दे पाते।
रामधारी सिंह दिनकर को नकारना मेरे लिए कोई कठिन नहीं था हो सकता है आपके लिए कठिन हो।
*चर्चिल ने भारत को केवल एक भौगोलिक शब्द कहा है उनका मानना था भारत एक भौगोलिक शब्द है जैसे भूमध्य रेखा कोई राष्ट्र नहीं भारत भी एक राष्ट्र नहीं है।*
*सर जॉन स्ट्रैची कहते हैं-" भारत के बारे में जानने वाली पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत नाम का कोई देश ना कभी था न कभी है*
इन तमाम मान्यताओं और नैरेटिवस को यूरोपियन नेपोटिज्म के अलावा क्या नाम दिया जाए?
मित्रों अब समय आ गया है जब वेदों, उपनिषदों, आरण्यकों, संहिताओं, महाकाव्य क्रमशः रामायण महाभारत, शास्त्रों आदि पर स्पष्ट मीमांसा करते हुए अपनी बात रखी जाए। इस क्रम में मैंने *भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व* कृति की रचना की है। यह एक ऐतिहासिक कृति है। इसी क्रम में जनरल जीडी बक्शी ने सरस्वती सभ्यता के जरिए भी भारत को भारतीय नजरिए से समझने की पेशकश की है । मित्रों आइए विंस्टन चर्चिल और स्ट्रैची को नकारते हुए मैक्स मूलर तथा वामपंथी लेखकों साहित्यकारों जैसे संस्कृति के चार अध्याय लिखने वाले रामधारी सिंह दिनकर को वोल्गा से गंगा तक लिखने वाले राहुल सांकृत्यायन द्वारा स्थापित मंतव्य को जड़ से समाप्त किया जाए। वरना हम अपनी संतानों को क्या जवाब देंगे।
कृपया अमेजॉन फ्लिपकार्ट गूगल बुक्स किंडल पर उपलब्ध ऐसी कृतियों को अवश्य पढ़ें और जाने भारत का सच्चा इतिहास भारतीय नजरिया से।
Bhartiya Manav Sabhyta Evam Sanskriti Ke Pravesh Dwaar: 16000 Isa Purva ( भारतीय मानव–सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेशद्वार : 16000 ईसा पूर्व )
लोक साहित्य में भारतीय वैदिक साहित्य में विदेशी यात्रियों द्वारा लिखे गए साहित्य में भारत के यथार्थ को चित्रित किया है। फिर भी हम अपने प्रमाद वश तथाकथित प्रगतिशील साहित्यकारों के प्रश्नों का जवाब नहीं दे पाते। हम पढ़ते नहीं हैं इसलिए हम जवाब नहीं दे पाते।
रामधारी सिंह दिनकर को नकारना मेरे लिए कोई कठिन नहीं था हो सकता है आपके लिए कठिन हो।
*चर्चिल ने भारत को केवल एक भौगोलिक शब्द कहा है उनका मानना था भारत एक भौगोलिक शब्द है जैसे भूमध्य रेखा कोई राष्ट्र नहीं भारत भी एक राष्ट्र नहीं है।*
*सर जॉन स्ट्रैची कहते हैं-" भारत के बारे में जानने वाली पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत नाम का कोई देश ना कभी था न कभी है*
इन तमाम मान्यताओं और नैरेटिवस को यूरोपियन नेपोटिज्म के अलावा क्या नाम दिया जाए?
मित्रों अब समय आ गया है जब वेदों, उपनिषदों, आरण्यकों, संहिताओं, महाकाव्य क्रमशः रामायण महाभारत, शास्त्रों आदि पर स्पष्ट मीमांसा करते हुए अपनी बात रखी जाए। इस क्रम में मैंने *भारतीय मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेश द्वार 16000 ईसा पूर्व* कृति की रचना की है। यह एक ऐतिहासिक कृति है। इसी क्रम में जनरल जीडी बक्शी ने सरस्वती सभ्यता के जरिए भी भारत को भारतीय नजरिए से समझने की पेशकश की है । मित्रों आइए विंस्टन चर्चिल और स्ट्रैची को नकारते हुए मैक्स मूलर तथा वामपंथी लेखकों साहित्यकारों जैसे संस्कृति के चार अध्याय लिखने वाले रामधारी सिंह दिनकर को वोल्गा से गंगा तक लिखने वाले राहुल सांकृत्यायन द्वारा स्थापित मंतव्य को जड़ से समाप्त किया जाए। वरना हम अपनी संतानों को क्या जवाब देंगे।
कृपया अमेजॉन फ्लिपकार्ट गूगल बुक्स किंडल पर उपलब्ध ऐसी कृतियों को अवश्य पढ़ें और जाने भारत का सच्चा इतिहास भारतीय नजरिया से।
Bhartiya Manav Sabhyta Evam Sanskriti Ke Pravesh Dwaar: 16000 Isa Purva ( भारतीय मानव–सभ्यता एवं संस्कृति के प्रवेशद्वार : 16000 ईसा पूर्व )