1948 तक मुक्त बलोचस्तान के
मसले पर लालकिले से भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अभिव्यक्ति
से पाकिस्तान में ही नहीं बल्कि आयातित विचारकों के ज़ेहन में खलबली देखी जा रही
है. भारत का बलोच लोगों के हित में बोलना एक लुहारी हथौड़ा साबित हुआ है. प्रधानमंत्री
जी का बयान दक्षेश ही नहीं विश्व के लिए एक खुला और बड़ा बयान साबित हुआ है. उनका
यह बयान बांगला देश विभाजन की याद दिला रहा है जब इंदिरा जी ने पूरी दृढ़ता के साथ
न केवल शाब्दिक सपोर्ट किया बल्कि सामरिक सपोर्ट भी दिया.
मोदी जी की अभिव्यक्ति एक प्रधानमंत्री के रूप
में बड़ी और ज़वाबदारी भरी बात है. बलोच नागरिक इस अभिव्यक्ति पर बेहद अभिभूत हैं. अभिभूत
तो हम भी हैं और होना ही चाहिए वज़ह साफ़ है कि खुद पाकिस्तान लाल शासन का
अनुगामी बन अपने बलात काबिज़ हिस्से के साथ
जो कर रहा है उसे कम से कम भारत जैसे राष्ट्र का कोई भी व्यक्ति जो मानवता का
हिमायती हो बर्दाश्त नहीं करेगा . मेरे विचार से श्री नरेन्द्र दामोदर मोदी के
खिलाफ आयातित विचारधाराएं जो भी सोचें आम राय बलोच आवाम के साथ है.
यहाँ अपनी समझ से जो देख पा रहा हूँ कि आयातित
विचारधाराएं कभी भी लाल-राज्य के खिलाफ बयान को स्वीकार्य नहीं करतीं . बहरहाल साल 48 से मौजूदा वक्त तक बलोच कौम के समर्थन में खुलकर न
आना मानवाधिकार मूल्यों की रक्षा की कोशिशों की सबसे बड़ी कमजोरी का सबूत है . वज़ह जो भी हो देश का वास्तविक हिस्सा पूरा
काश्मीर है जिस पर पाक का हक न तो था न ही
हो सकेगा . तो फिर पाकिस्तान की काश्मीर पर तथाकथित भाई बंदी की वज़ह क्या है ...?
इस मसले की पड़ताल में आपको जो सूत्र लगेंगे
उनका मकसद पाक की पञ्चशील पर पंच मारने वाली
लाल-सरकार से नज़दीकियाँ . चीन – पाक आर्थिक कोरिडोर और ग्वादर पोर्ट के
ज़रिये पाकिस्तान को चीनी सामरिक सपोर्ट मिलता है. जहां तक विकास की बात है
पाकिस्तानी सरकार बलोचस्तान को छोड़ कर
शेष सम्पूर्ण पाक में कर पा रहा है बलोचस्तान उसकी दुधारू बकरी है. इतना ही नहीं
इस आलेख लिखने तक मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ 22 हज़ार अधिक लोगों को बड़ी बेहरमी
से मौत के घाट उतारा है. हज़ारों हज़ार युवा
गायब कर दिए गए .. बलोचों के कत्लो-गारद की हिमायती पाकिस्तानी सरकार फौज से
ज़्यादा आतंकवादियों के इशारों पर काम करती .
पाकिस्तान 69 बरस का एक नासमझ बच्चा राष्ट्र है . जिसे उसके नागरिकों से अधिक
बाहरी विवाद पसंद है. कुंठा की बुनियाद पर बने देश पाकिस्तान धर्माधारित विचारधारा
और कट्टरता की वज़ह से रियाया के अनुकूल
नहीं है . पाकिस्तान की वर्तमान दुर्दशा की जिम्मेदारी विभाजन के लिए षडयंत्र करने वाले तत्वों खासकर
नवाबों, पाक की सेना और सियासियों की दुरभि संधि उस पर ततसमकालीन अमेरिका की पाकिस्तान के प्रति
सकारात्मक नीतियां हैं. जबकि भारत ने कमियों / अभावों के बावजूद अपेक्षाकृत अधिक सहिष्णु एवं सकारात्मक रवैया
रखा साथ ही भारतीय आवाम ने विकास को सर्वोच्च माना तभी हम दक्षेस की बड़ी ताकत हैं
. अब तो भारत का जादू हर ओर छाया है. वज़ह सियासत, कूटनीति, और भारतीय स्वयं है.
भारतीय युवा विश्व के लिए महत्त्वहीन कतई
नहीं है . 1985 के बाद जन्मी पौध ने तो विश्व
से लोहा मनवा ही लिया है .
आयातित विचारधारा अपने अस्तित्व को बचाए रखने
जो कर रही है उसके उदाहरण जेएनयू जैसी जगहों पर मिल जाएंगें . इसका कदापि अर्थ न
लगाएं कि सामाजिक साम्य से असहमति है.. वरन हम कुंठित साम्य को खारिज करते हुए “समरससाम्य” की
ललक में हैं .
भारत की नीती कभी भी सीमाओं के विस्तार की न थी..
पर नवाबों के जेनेटिक असर की वज़ह से पाकिस्तान ने इरान और कदाचित क्राउन शह पर
बलोचों की आज़ादी पर डाका डाला है. तो बलोच गुरिल्ले क्यों खामोश रहेंगे. इतना ही नही
गिलगित तथा पाक द्वारा कब्जाए कश्मीर की जनता भी अविश्वास से भरी है.
भारत ने अपने कानूनों में आमूलचूल प्रावधान
रखें हैं दमित जातियों के लिए .. पर वे
खुद सिया सुन्नी पंजाबी सिंधी, गैर पंजाबी आदि आदि फिरका परस्ती के लिए कोई कारगर
प्रबंध न कर सके. जब बलोच को सपोर्ट की बात की तो सनाका सा खिंच गया पाक में
बदलते हालातों पर पाक के प्रायोजित वार्ताकार बोडो, असम , सिख , यहाँ तक की
नक्सलवादियों तक के लिए रुदालियों की भूमिका
निबाह रहे हैं . जबकि पाक में छोटे से इलाज़ के लिए न चिकित्सकीय इंतजामात हैं न ही
बेहतर एजुकेशन सिस्टम. आला हाकिमों और हुक्मरानों और आतंकियों की औलादें ब्रिटेन
एवं अमेरिका में पढ़ लिख रहीं हैं. जबकि आम आवाम के पास न्यूनतम सुविधाएं भी न के
बराबर है.
(आगे भी जारी........ प्रतीक्षा कीजिये )