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शुक्रवार, जनवरी 20, 2012

मधुर सुर न सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा न मांडी जाए रंगोली जिस दर पे वो दर कैसा ?


मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा 
 मांडी जाए रंगोली जिस दर पे वो दर कैसा ?
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बिना बेटी के घर लगते अमावस की घुप रातें 
 रु झु पायलें बजतीं  होती हैं मृदुल बातें
 दीवारों पे  रौक और  देहरी से चमक गायब-
देखता जो भी सोचे ये घर तो है मगर कैसा ..?
                       मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा 
********************
वो बेटी ही तो होती है कुलों को जोड़ लेती है
अगर अवसर मिले तो वो मुहाने मोड़ देती है
युगों से  बेटियों को तुम परखते हो  जाने क्यूं..?
म लेने तो दो उसको जम-लेने से डर कैसा..?
                          मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा
******************** 
पालने से पालकी तक की  चिंता छोड़ के आना
वो बेटों से भी बेहतर है ये चिंत जोड़ ते लाना
उसे तुमने जो अब मारा धरा दरकेगी ये तय है-
उसे ताक़त बनाओगे जमाने से डर कैसा 
                         मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा 

गुरुवार, जनवरी 19, 2012

भट्ट साब को भट्टा सुलगाने के लिये जिस आग की ज़रूरत थी वो मिल ही गई.:गिरीश बिल्लोरे

एक पोर्न स्टार की आमद से तहलका मचाने वाली खबरों का आना माया नगरी के भट्ट साब को भट्टा सुलगाने के लिये जिस आग की ज़रूरत थी वो मिल ही गई. भट्ट कैम्प के  दर्शकों के लिये सुखद खबर थी उधर भट्टा जलाने  आस लगाए भट्ट जी की बाछैं खिल गईं. तब तक भट्ट कैम्प के पंजीकृत दर्शक ?.. भट्ट जी का भट्टा कब आग पकड़ेगा इस गुंताड़े में जिस्म-2 के पोस्टर को सामने रख मद्यपान कर उनके गुनगान कर रहे हैं. यानी भारत में इन महाशय के अलावा किसी की ताक़त नहीं कि वे "नैतिक-भ्रष्टाचार" कर सके . बिग बास के पांचवें सत्र में भी सन्नी को लाना बिग बास की "भीड़ जुटाओ : धन कमाओ" के अतिरिक्त और कुछ न था. यानी कुल मिलाकर किसी भी सूरत में नोट कमाएं. इस सब के चलते खबरची भाई लोग काहे पीछे रहते. करीना से लेकर पता नहीं कौन कौन सी खबरें छापते रहे.यानी कुल मिला कर देश में इस प्रकार नैतिक भ्रष्टाचार की मुखालफ़त करने के लिये एक और अन्ना जी की ज़रूरत है जो इस तरह की संस्कार हीन परिस्थितियों को रोकने की कोशिश करे.    वैसे सबको विश्वास  है कि अपना सेंसर बोर्ड पर जो जिस्म-2 कैंची नहीं चलाएगा महेश भाई के रसूख और तर्क के  आगे कौन नहीं झुक सकता.है. खैर जो भी हो हम-आप अगर सब मिल कर गंदगी को हटाने की मुहिम छेड़ दें तो शायद मायानगरी के  "नैतिक-भ्रष्टाचार" के खिलाफ़ जन मानस बनेगा ये तय है.  

क़रीब दिल के क़िताब रखना !

टेक्स्ट

                  क़रीब दिल के क़िताब रखना !
                  छिपा के उसमें गुलाब रखना !
                   नज़र में पहली ये प्यार कैसा -
                   नज़र-नज़र का हिसाब रखना !
                   लबों से बिखरे हंसी अचानक -
                   तो लब पे हाज़िर ज़वाब रखना !
                   हां कह दो जाके सितमग़रों से
                   है रब को आता हिसाब रखना !
                   हां इक कमीं है मुकुल में यारो-
                   नहीं सुहाता हिसाब रखना !!
                           * गिरीश बिल्लोरे "मुकुल”

बुधवार, जनवरी 18, 2012

फिलीस्तीनियों के "वापसी के अधिकार" को समाप्त करना


डैनियल
पाइप्स

1967 से 1993 के मध्य पश्चिमी तट या गाजा से कुछ सैकडों की संख्या में ही फिलीस्तीनियों ने इजरायली अरब लोगों से विवाह कर (जो कि इजरायल की कुल जनसंख्या का पाँचवा भाग हैं) और इजरायल की नागरिकता प्राप्त कर इजरायल में निवास करने के अधिकार को प्राप्त किया। इसके बाद ओस्लो समझौते ने कम चर्चित परिवार पुनर्मिलन प्रावधानों के द्वारा इस छोटी सी धारा को एक नदी में परिवर्तित कर दिया। 1994 से 2002 के मध्य फिलीस्तीन अथारिटी के 137,000 निवासी इजरायल में आ चुके हैं और उनमें से अनेक छल और बहुविवाह में संलिप्त हैं।
इजरायल के समक्ष दो कारण हैं जिसके चलते उसे इस अनियंत्रित आप्रवास से चिंतित होना चाहिये। पहला, यह सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करता है। शिन बेट सुरक्षा सेवा के प्रमुख युवाल दिस्किन ने 2005 में ध्यान दिलाया था कि आतंक की गतिविधियों में लिप्त पाये गये 225 इजरायली अरब में से 25 जो कि 11 प्रतिशत है अवैध रूप से परिवार पुनर्मिलन प्रावधानों के तहत इजरायल में प्रविष्ट हुए थे। वे 19 इजरायलियों को मारने आये और 83 को घायल किया और उनमें से सबसे अधिक दुष्ट शादी तुबासी था जिसने कि 2002 में हमास की ओर से हाइफा के माज्जा रेस्टोरेंट पर आत्मघाती आक्रमण किया और 15 लोगों की ह्त्या की।
दूसरा, यह चोरी छुपे फिलीस्तीनियों के " वापसी के अधिकार" के रूप में कार्य करता है और इजरायल के यहूदी स्वरूप को कमतर बनाता है। जो 137,000 नये नागरिक इजरायल में आये हैं वे इजरायल की कुल जनसंख्या का 2 प्रतिशत हैं जो कि कम संख्या नहीं है। युवाल स्टीनिज जो कि अब वित्त मन्त्री हैं उन्होंने 2003 में ही फिलीस्तीन अथारिटी की परिवार पुनर्मिलन की नीति को इजरायल में फिलीस्तीनियों की संख्या बढाने और इसके यहूदी चरित्र को कमतर करने के प्रयास के रूप में आँक लिया था। बाद में एक फिलीस्तीनी मध्यस्थ अहमद क़ुरेयी ने इस आशंका को सही सिद्ध किया , " यदि इजरायल सीमा के सम्बंध में हमारी योजना को अस्वीकार करता है ( एक फिलीस्तीनी राज्य ) तो हमें इजरायल की नागरिकता की माँग करनी चाहिये"
इन दो खतरों की प्रतिक्रिया में इजरायल की संसद ने जुलाई 2003 में " इजरायली कानून में नागरिकता और प्रवेश" कानून पारित किया। इस कानून के अंतर्गत फिलीस्तीनी परिवारों को स्वतः ही इजरायल की नागरिकता या निवास को प्रतिबंधित कर दिया गया और इसके साथ कुछ तदर्थ और सीमित अपवाद लगा दिये गये जिसके द्वारा गृह मंत्रालय को यह प्रमाणित करना होता है कि वे स्वयं को इजरायल के साथ जुडा हुआ पाते हैं और अन्य प्रकार से सहायक हैं। काफी कटु आलोचना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने वर्ष 2005 में इस बात को दुहराया , " इजरायल राज्य को अपने यहूदी चरित्र को संरक्षित रखने और बनाये रखने का पूरा अधिकार है चाहे इसका अर्थ यह भी हो कि इससे नागरिकता की नीति पर भी प्रभाव पड्ता हो" ।
इस कानून को चुनौती देने वाले वकील सावसान जाहेर के अनुसार अपवाद के कुल 3,000 प्रार्थना पत्र में से केवल 33 को ही संस्तुति दी गयी। परिवार पुनर्मिलन के मामले में कठोर प्रावधान अपनाने वाला इजरायल अकेला देश नहीं है उदाहरण के लिये डेनमार्क में ऐसा कानून दशकों से प्रयोग में है यदि अन्य लोगों को छोड दें तो इस देश का इजरायल का पति भी नीदरलैंड और आस्ट्रिया की तरह ही एक मुकद्दमा लड रहा है।
पिछले सप्ताह इजरायल के सर्वोच्च न्यायालय ने 6-5 के बहुमत से इस मह्त्वपूर्ण कानून को स्थाई बना दिया। किसी व्यक्ति के विवाह के अधिकार को मान्यता देते हुए भी न्यायालय ने इस बात से इंकार कर दिया कि इसके साथ ही निवास का अधिकार भी प्राप्त होता है। न्यायालय के मनोनीत प्रधान अशर दन ग्रुनिस ने अपने बहुमत के निर्णय में अपने विचार व्यक्त किये , " मानवाधिकार राष्ट्रीय आत्मह्त्या का निर्देश नहीं है" ।
यहूदियों की ओर फिलीस्तीनी आप्रवास की यह परिपाटी 1882 से आरम्भ हुई जब यूरोप के यहूदियों ने अपना अलिया ( उत्थान का हिब्रू शब्द , जिसका अर्थ है इजरायल भूमि के लिये आप्रवास) । उदाहरण के लिये विन्स्टन चर्चिल ने इस बात को पाया था कि किस प्रकार फिलीस्तीन में यहूदी आप्रवास से उसी प्रकार अरब आप्रवास को उत्प्रेरणा मिली। , " उत्पीडन से कहीं दूर अरब लोग देश में बडी संख्या में भर गये और अपने को कई गुना बढाया जब तक कि उनकी जनसंख्या बढ नहीं गयी"।
संक्षेप में, आपको इजरायलवाद ( जायोनिस्ट) के उच्च स्तरीय जीवन और कानून पालक समाज का लाभ प्राप्त करने के लिये यहूदी होना आवश्यक नहीं है। इस विषय के एक छात्र जान पीटर्स का अनुमान है कि एक दोहरा यहूदी और अरब आप्रवासी " कम से कम बराबर सापेक्ष का" 1893 से 1948 के मध्य विकसित हुआ। इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है , अन्य आधुनिक यूरोपवासी जो कि कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बसे ( आस्ट्रेलिया और अफ्रीका) और ऐसे समाज का निर्माण किया जिन्होंने कि मूलवंशियों को भी आकर्षित किया।
फिलीस्तीनी अलिया की यह परिपाटी इजरायल के जन्म के समय से ही जारी है। वे इजरायलवाद विरोधी ( जायोनिस्ट विरोधी) हो सकते हैं लेकिन आर्थिक आप्रवासी, राजनीतिक विद्रोही , समलैंगिक , सूचनाकर्ता और सामान्य मतदाता जो आत्मनिर्भर हैं वे फिलीस्तीन अथारिटी या हमास के नर्क के गर्त की अपेक्षा मध्य पूर्व के विशिष्ट आधुनिक और उदार राज्य को पसंद करते हैं। और यह भी ध्यान देने योग्य है कि कुछ इजरायली अरब ही अपने विवाहित जोडे के साथ पश्चिमी तट और गाजा में रहना पसंद करते है जबकि कोई भी कानूनी बाधा उन्हें ऐसा करने से नहीं रोकती।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का एक दीर्घकालिक मह्त्व है। जैसा किIsrael Hayom में एली हजान ने लिखा है, " न्यायालय ने अघोषित और घोषित दोनों ही प्रकार से निर्णय दे दिया है कि इजरायल एक यहूदी राज्य है, और इसके साथ ही वर्षों पुरानी बहस का समाधान कर दिया है" । पिछले दरवाजे से " वापसी के अधिकार" को बंद करने से इजरायल की इजरायलवादी ( जायोनिस्ट) पहचान और भविष्य सुरक्षित हो गया।


कविता और गीत : गिरीश बिल्लोरे मुकुल

कविता


"विषय '',
जो उगलतें हों विष
उन्हें भूल 


अमृत बूंदों को
उगलते
कभी नर्म मुलायम बिस्तर से
सहज ही सम्हलते
विषयों पर चर्चा करें
अपने "दिमाग" में
कुछ बूँदें भरें !
विषय जो रंग भाषा की जाति
गढ़तें हैं ........!
वो जो अनलिखा पढ़तें हैं ...
चाहतें हैं उनको हम भूल जाएँ
किंतु क्यों
तुम बेवज़ह मुझे मिलवाते हो इन विषयों से ....
तुम जो बोलते हो इस लिए कि
तुम्हारे पास जीभ-तालू-शब्द-अर्थ-सन्दर्भ हैं
और हाँ 


तुम अस्तित्व के लिए बोलते हो-
इस लिए नहीं कि 

तुम मेरे शुभ चिन्तक हो । 

शुभ चिन्तक 
रोज़ रोटी 
चैन की नींद !!

गीत:-

अनचेते अमलतास नन्हें
कतिपय पलाश।
रेणु सने शिशुओं-सी
नयनों में लिए आस।।
अनचेते चेतेंगें
सावन में नन्हें
इतराएँगे आँगन में
पालो दोनों को ढँक दामन में।
आँगन अरु उपवन के
ये उजास।

ख़्वाबों में हम सबके बचपन भी
उपवन भी।
मानस में हम सबके
अवगुंठित चिंतन भी।
हम सब खोजते
स्वप्नों के नित विकास।।

मौसम जब बदलें तो
पूत अरु पलाश की
देखभाल तेज़ हुई साथ
अमलतास की
आओ सम्हालें इन्हें ये तो
अपने न्यास।।

मंगलवार, जनवरी 17, 2012

कुछ तो है दुनिया में अच्छा..क्या हर तरफ़ बुराई है ?

हम कह दें वो अफ़साने और तुम कहदो तो सच्चाई
बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!!
****************
जैसा देखा इंसा सनमुख वैसी बात कहा करते हो
लगता है गिरगिट को घर में मीत सदा रक्खा करते हो
बात मेरी बिखरे आखर हैं और तुम्हारी रूबाई है...!!
    बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!!

****************
मन चाहा लिक्खा करते हो मनमाना नित बोल रहे हो
चिंतन हीन मलिन चेहरे को  लेके इत उत डोल रहे हो
कुछ तो है दुनिया में अच्छा..क्या हर तरफ़ बुराई है ?
    बोल बोल के  झूठ इस तरह शोहरत तुमने पाई है ...!!
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तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !!




उनको यक़ीन हो कि न हो हैं हम तो बेक़रार
चुभती हवा रुकेगी क्या कंबल है तारतार !!
मंहगा हुआ बाज़ार औ’जाड़ा है इस क़दर-
हमने किया है रात भर सूरज का इंतज़ार.!!
हाक़िम ने  फ़ुटपाथ पे आ बेदख़ल किया -
औरों की तरह हमने भी डेरा बदल दिया !
सुनतें हैं कि  सरकार कल शाम आएंगें-
जलते हुए सवालों से जाड़ा मिटाएंगें !
हाक़िम से कह दूं सोचा था कि सरकार से कहे
मुद्दे हैं बहुत उनको को ही वो तापते रहें....!
लकड़ी कहां है आपतो - मुद्दे जलाईये
जाड़ों से मरे जिस्मों की गिनती छिपाईये..!!
 जी आज़ ही सूरज ने मुझको बता दिया
कल धूप तेज़ होगी ये  वादा सुना दिया !
तू चाहे मान ले भगवान किसी को भी
हमने तो पत्थरों में भगवान पा लिया !!
 कहता हूं कि मेरे नाम पे आंसू गिराना मत
 फ़ुटपाथ के कुत्तों से मेरा नाता छुड़ाना मत
 उससे ही लिपट के सच कुछ देर सोया था-
ज़हर का बिस्किट उसको खिलाना मत !!

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