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शुक्रवार, जनवरी 20, 2012

मधुर सुर न सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा न मांडी जाए रंगोली जिस दर पे वो दर कैसा ?


मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा 
 मांडी जाए रंगोली जिस दर पे वो दर कैसा ?
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बिना बेटी के घर लगते अमावस की घुप रातें 
 रु झु पायलें बजतीं  होती हैं मृदुल बातें
 दीवारों पे  रौक और  देहरी से चमक गायब-
देखता जो भी सोचे ये घर तो है मगर कैसा ..?
                       मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा 
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वो बेटी ही तो होती है कुलों को जोड़ लेती है
अगर अवसर मिले तो वो मुहाने मोड़ देती है
युगों से  बेटियों को तुम परखते हो  जाने क्यूं..?
म लेने तो दो उसको जम-लेने से डर कैसा..?
                          मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा
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पालने से पालकी तक की  चिंता छोड़ के आना
वो बेटों से भी बेहतर है ये चिंत जोड़ ते लाना
उसे तुमने जो अब मारा धरा दरकेगी ये तय है-
उसे ताक़त बनाओगे जमाने से डर कैसा 
                         मधुर सुर  सुनाई दें जिस घर से वो घर कैसा 

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