गिरीश बिल्लोरे मुकुल द्वारा जबलपुर से सुनने के लिये चटका लगाएं
"लाइव" पर
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अर्चना चावजी इंदौर से
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अर्चना चावजी इंदौर से

हां तो भाईयो और ब्लागर भग्नियो जो ( मानें ) दिल्ली पहुंच कर अन्ना ने चूलें सरकार की हिला दीं थीं ब्लागर ब्लागरा क्या करेंगे.. जी सम्मेलन की घोषणा होते ही कितने सीनों पे नागिन फ़िलम छाप धुन पै सांप लोट रए हैं सबरे ब्लागरन को पता है.पर जे जान लो भैया रवींद्र परताप जी और अगरवाल साब ने पूरे देस और बिदेस से ज़हर निकालने वाले सपेरे बुलाय लिये. जिनका काम है ज़हर से "ज़हर-रोधी" बनाना . सांप भैये आप तो जिसकी आस्तीन में रहते हो रहो सीनों पे न लोटो वरना ज़हर से हाथ धो लोगे. खास खबर ये है कि अविनाश जी और पता नहीं कौन कौन दिल्ली चलो का हल्ला महीनों से नुक्कड़ पे आके मचाए पड़े थे उधर भाई रवीन्द्र प्रभात की किताबें लिखने की मौन साधना अलग जारी थी. बस्स इस आह्वान का असर दिखा अंदर की बात तो जे है भैया कि अन्ना हज़ारे तक दिल्ली आ गये और बस हिला दीं चूलें सरकार की ऐसा माना जा रहा है... और खास खबर ये है कि लारा मेमसाब पर इस आह्वान का असर कुछ ज़ियादा ही हुआ उनने कसम खाई कि 29 अप्रैल 2011 से पूरे देश में ब्लागर्स के वास्ते आह्वान करेंगीं नारा देंगी "दिल्ली चलो "समीर बाबू कनाड़ा से सोच रए हैं के दिल्ली में बस जाने को जी चाहता है. हजूर बस एक बार चुनाव लड़ लिये होते तब्ब तो पक्का था कि आप दिल्ली में इच्च होते..सुना है कुछ लोग जो सम्मेलन को फ़ेस न कर पाए वे फ़ेस बुक में...पद्मावलि (पद्मावति नहीं) बारे पद्म भैया सुनिये हमारे राशी फ़ल में जात्रा के लिये मनाही है पर हम आयेंगे ज़रूर आएंगे पक्के में आएंगे . संगीता ताई से तोड़ निकलवाएंगे पक्के में. जी और तो और हम वेबकास्टिंग करेंगे ललित भाई के अलावा सवा लाख पे भारी श्री बी एस पाबला श्री संजीव तिवारी से मिलना भी होगा और देखिये हम लोग ऐसे दिखेंगे
आज़ से ३१ वर्ष एक माह पूर्व की वो सुबह हां याद आया मार्च १९८० के एक गुरुवार एक सुबह यानी चार से पांच के बीच का वक़्त था , जाग तो चुका था मैं साढ़े तीन बजे से , लग भी रहा था कि लगा कि आज़ का दिन बहुत अदभुत है. था भी, मुझे नहीं मालूम था कि आज़ क्या कुछ घटने वाला है. गंजीपुरा के साहू मोहल्ले वाली गली में अचानक एक समूह गान की आवाज़ गूंजती है बाहर दरवाजा खोल के देखता हूं बाबा के भक्तों की टोली अपनी प्रभात फ़ेरी में नगर-संकीर्तन करती हुई निकलती है. श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा.. जैसे कई भजन पूरे पथ संचलन में. गाते जा रहे थे भक्त गण .. साई कौन है ? इस पड़ताल में लग गया मैं. मार्च अस्सी की मेट्रिक की परीक्षा के बाद पड़ताल करना शुरु किया. वैसे मेरे कई मित्र जैसे अविजय उपाध्याय, शेषाद्रि अय्यर, जितेंद्र जोशी (आभास-जोशी के चाचा मेरे मौसेरे भाई), मुकुंद राव नायडू ,सत्य साई सेवा समिति की बाल विकास के विद्यार्थी थे.बाबा के बारे में इतना जानता था कि वे मेरे नाना जी के आध्यात्मिक गुरु हैं. उनके घर से समिति के काम चला करते थे. करंजिया के श्रृंखला बद्ध आलेखों ने मेरे किशोर मन पर एक नकारात्मक छवि बना दी थी बाबाओं के प्रति. उन में साई प्रमुख थे.मैं बाबा का विरोधी हो गया मन ही मन जैसे बाबा ने कुछ छीन लिया हो मेरा .