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जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अक़्ल हर चीज़ को, इक ज़ुर्म बना देती है !

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बापू आसाराम   के बाद   समाज शास्त्री   आशीष नंदी भाई सा ’ ब   के विचारों के आते ही खलबली मचती देख भाई कल्लू पेलवान को न जाने क्या हुआ  बोलने लगा : सरकार भी गज़ब है कई बार बोला कि भई मूं पे टेक्स लगा दो सुनतई नहीं..   हमने पूछा :- कहां बोला तुमने कल्लू भाई कल्लू     :- पिछले हफ़्ते मिनिस्टर सा ’ ब का पी.ए. मिला था , मुन्नापान भंडार में ..उनई को बोला रहा. कसम से बड़े भाई हम सही बोलते हैं. हैं न ?             कल्लू को मालूम है कि काम किधर से कराना है कई लोग इत्ता भी नहीं जानते. कल्लू की बात सरकार तलक पहुंच गई होती तो पक्क़े में वक़्तव्यों के ज़रिये राजकोष में अकूत बढ़ोत्तरी होती.            इस विषय पर हमने कल्लू से बात होने के बाद  रिसर्च की तो पता चला पर्यावरण में वायु के साथ " वक्तव्य वायरस " का संक्रमण विस्तार ले रहा है.   आजकल बड़े बड़े लोग "वक्तव्य वायरस" की वज़ह से बकनू-बाय नामक बीमारी के शिक़ार हो रहे हैं.  इस बीमारी के  शिकार मीडिया के अत्यंत करीब रहने वाले सभा समारोह में भीड़ को देख कर आपा खोने वाले, खबरीले चैनल के कैमरों से घिरे व्यक्ति

डिंडोरी में हर्षोल्लास एवं उत्साह पूर्वक मनाया गया गणतंत्र दिवस

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 पंचायत एवं ग्रामीण विकास राज्यमंत्री श्री देवसिंह सैयाम  ध्वजारोहण करते हुये    डिण्डौरी जिले में गणतंत्र दिवस हर्षोल्लास एवं उत्साहपूर्वक मनाया गया। मुख्य समारोह स्थल पुलिस परेड ग्राउंड में समारोह के मुख्य अतिथि पंचायत एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री एवं जिले के प्रभारी मंत्री श्री देवसिंह सैयाम ने ध्वजारोहण कर परेड की सलामी ली। उन्होंने कलेक्टर श्री मदन कुमार और पुलिस अधीक्षक श्री आर.के.अरूसिया के साथ परेड का निरीक्षण किया और मुख्य मंत्री के संदेश का वाचन किया। इस अवसर पर प्रभारी मंत्री ने शांति के प्रतीक कबूतर और समृद्धि एवं अनेकता में एकता के प्रतीक रंगीन गुब्बारे आकाश में उड़ाये। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष श्री ओमप्रकाश धुर्वे, सांसद श्री बसोरी सिंह मसराम,सांसद श्री फ़ग्गन सिंह कुलस्ते विधायक ओमकार मरकाम, अध्यक्ष  जिला-पंचायत  नगर पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सुशीला मार्को, श्रीमति ज्योति-प्रकाश धुर्वे, भा.ज.पा.अध्यक्ष संजय साहू, कैलाशचंद जैन, अशोक अवधिया, सहित, न्यायाधीश गण एवं प्रशासनिक अधिकारी और नागरिक उपस्थित थे।     सरस्वती उ० मा० विद्यालय डिण्डौरी       कार्यक्रम क

जनतांत्रिक-चैतन्यता बनाम हमारे अधिकार और कर्तव्य

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                 यही सही वक़्त  है जब कि हमें जनतांत्रिक संवेदनाओं का सटीक विश्लेशण कर उसे समझने की कोशिश करनी चाहिये. भारतीय गणतांत्रिक व्यवस्था में जहां एक ओर आदर्शों की भरमार है वहीं  सेंधमारी की के रास्तों की गुंजाइश भी है. जिनको अनदेखा करने  की हमारी आदत को नक़ारा नहीं जा सकता. हम हमेशा बहुत कम सोच रहे होते हैं. केवल जनतंत्र की कतिपय प्रक्रियाओं को ही जनतंत्र मान लेते हैं. जबकि हमें जनतंत्र के मूल तत्वों को समझना है उसके प्रति संवेदित होना है. अब वही समय आ चुका ज हमें आत्म-चिंतन करना है                     हम, हमारे जनतंत्र किस रास्ते  ले जा रहें हैं इस मसले पर हम कभी भी गम्भीर नहीं हुए. हमारे पास चिंता के विषय बहुतेरे हैं जबकि हमें चिंतन के विषय दिखाई नहीं दे रहे अथवा हम इसे देखना नहीं चाहते. हमारी जनतांत्रिक संवेदनाएं समाप्त प्राय: नहीं तो सुप्त अवश्य हैं.वरना दामिनी की शहादत पर बेलगाम बातें न होंतीं. हम जनतंत्र के प्रति असंवेदित नहीं पर सजग नहीं हैं. न ही हमने इस बिंदु पर अपनी संतानों को ही कुछ समझाइश ही दी है. हम केवल चुनाव तक जनतंत्र  के प्रति संवेदित हैं ऐसी मेरी व्य

आम आदमी से जुड़ा़ खास चेहरा श्री पी.नरहरि I.A.S.

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आम आदमी से जुड़ा़ खास चेहरा श्री पी.नरहरि I.A.S.  ट्विटर पर आम आदमी से जुड़ा़ खास चेहरा श्री पी.नरहरि I.A.S.  फ़ेसबुक पर श्री पी. नरहरि को आम आदमी की मुश्किलों तक पहुंचने के लिये किसी भी स्थापित माध्यम की आवश्यकता नहीं वे जन-समस्याओं के लिये सीधे लोगों से जुड़े रहने के के लिये फ़ेसबुक एवम ट्विटर के इस्तेमाल में कोई गुरेज़ नहीं रखते. ये बात नहीं कि वे आवेदकों को समय नहीं देते नियमित रूप से आम आदमी के हाथों से उन तक पहुंचे आवेदनों का निपटारा भी बाक़ायदा तेज़ी से ही होता है. एक ज़ुनूनी व्यक्तित्व है नरहरी साहब का. मेरा परिचय एक बहुत छोटे मातहत के रूप में उनसे तब हुआ जब वे मेरे कार्यक्षेत्र में दौरे पर आए. उन दिनों हम इस कोशिश में थे कि मैदानी अमले को सिखाया जावे कि किस तरहा आंगनवाड़ी-कार्यक्रम को लोकप्रियता दी जा सकती है. संयोग वश मुझे नरहरी सर जो प्रोजेक्ट डायरेक्टर हुआ करते थे वाले दल में रखा मंडला के बीजाडांडी ब्लाक से लौटते वक़्त मैने  श्रीमति तारा काछी  द्वारा संचालित आंगनवाड़ी केंद्र तिलहरी में रुकने का अनुरोध किया. समय कम था इस लिये मुझे बस पांच मिनिट रुकने की शर्त पर  आ

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं

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जनाब ज़ां निसार अख़्तर  के बारे में जानिये चौथी दुनियां अखबार के इस "आलेख" में                              नमस्कार मित्रो जां निसार अख़्तर एक मशहूर शायर की क़लम की ज़ादूगरी से मैं इस हद तक प्रभावित हुआ हूं कि उनकी तारीफ़ में कुछ कहने के लिये शब्द छोटे पढ़ रहे हैं..उनकी ग़ज़ल में गोते लगाएं और जानें उनको   अशआर मेरे यूं तो ज़माने के लिए हैं कुछ शेअर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं आंखों में जो भर लोगे तो कांटो से चुभेंगे ये ख्वाब तो पलकों पे सजाने के   लिए हैं देखूं तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ मंदिर में फ़क्त दीप जलाने के लिए हैं सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की वरना तो बदन आग बुझाने के लिए हैं ये इल्म का सौदा , ये रिसाले , ये किताबें इक शख्स की यादों को भुलाने के लिए हैं

और हमारा मुंह खुला का खुला रह गया

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और हमारा मुंह खुला का  खुला रह गया धीरे धीरे राम धुन पे शव यात्रा जारी थी. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि गुमाश्ता बाबू जो कल तक हंसते खिल खिलाते दुनियादारी से बाबस्ता थे अचानक लिहाफ़ ओढ़े के ओढ़े बारह बजे तक घर में क़ैद रहे .  रिसाले वाले गुमाश्ता बाबू के नाम से प्रसिद्ध उन महाशय का नाम बद्री प्रसाद गुमाश्ता था. अखबार से उनका नाता उतना ही था जितना कि आपका हमारा तभी मुझे " रिसाले वाले "   उपनाम की तह में जाने की बड़ी ललक थी. अब्दुल मियां ने बताया कि दिन भर गुमाश्ता जी के हाथ में अखबार हुआ करते हैं . उनका पेट एक अखबार से नहीं भरता. अर्र न बाबा वो अखबार खाते नहीं पढ़ते है. देखो क़रीम के घर जो अखबार आता है उन्हीं ने लगवाया विश्वनाथ के घर भी और गुप्ता के घर भी.मुहल्ले में   द्वारे  द्वारे सुबह सकारे उनकी आमद तय थी. शायद ही गुमाश्तिन भाभी ने उनको कभी घर में चाय पिलाई हो ? अक्सर उनकी चाय इस उसके घर हुआ करती थी होती भी क्यों न पिता ने उनको बेचा जो था 1970 के इर्द-गिर्द गुमाश्ता जी की बिक्री दस हज़ार रुपयों में हुई थी तब वे तीसेक बरस के होंगे. और तब से आज़ तक वे घर जमाई के र

मकर संक्रान्ति : सूर्य उपासना का पर्व :सरफ़राज़ ख़ान

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भारत में समय-समय पर अनेक त्योहार मनाए जाते हैं. इसलिए भारत को त्योहारों का देश कहना गलत न होगा. कई त्योहारों का संबंध ऋतुओं से भी है. ऐसा ही एक पर्व है . मकर संक्रान्ति. मकर संक्रान्ति पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तब इस त्योहार को मनाया जाता है. मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति शुरू हो जाती है. इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते हैं. तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लोग शाम होते ही आग जलाकर अग्नि की पूजा करते हैं और अग्नि को तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति देते हैं. इस पर्व पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवड़ियां आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं. देहात में बहुएं घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं. बच्चे तो कई दिन पहले से ही लोहड़ी मांगना शुरू कर देते हैं. लोहड़ी पर बच्चों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है. उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है. इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जा

बापूजी जो भाव से बलात्कारी हो उसे तो सगी बहन भी भाई कहने में झिझकेगी

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आसाराम बापू ही क्यों सारे बड़बोलों के लिये एक सटीक सुझाव देना अब ज़रूरी है कि औरतें को शिक्षा देने के स्थान पर अब आत्म चिंतन का वक़्त आ गया है. कुछ दिनों से देख रहा हूं कि मीडिया के ज़रिये लोग बाग अनाप-शनाप कुछ भी बके जा रहें हैं बेक़ाबू हो चुकी है जुबाएं लोगों की . सच्चाई तो यह है कि हम सब बोलने की  बीमारी से ग्रसित हैं . क्योंकि  हमारा दिमाग  सूचनाओं से भरा पड़ा है  और हम उसे ही  अपनी  ज्ञान-मंजूषा मान बैठे हैं ..! और चमड़े की ज़ुबान लप्प से तालू पर लगा कर ध्वनि उत्पन्न करने की काय विज्ञानी क्रिया करते हैं । जो   वास्तव में यह एक सतही मामला है किसी को भी किसी सूचना से तत्व-बोध नहीं हो सकता. आज के मज़मा जमाऊ लोगों को तो कदापि नहीं. आसाराम जी ने जो भी कहा केवल सतही बात है. और जो भी जो कुछ कहे जा रहे हैं उसे भी वाग्विलास की श्रेणी में ही रखा जा सकता है.  मेरे एक तत्कालीन कार्यालय प्रमुख ने किसी चर्चा में कहा था- "कमज़ोर की पराजय को कोई रोक   नहीं सकता "                             उनका कथन आधी सचाई थी पूरी सचाई तो उनको तब समझ आती जबकि वे कछुआ और खरगोश की कथा याद रखत

फ़ुर्षोत्तम-जीव

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किस   किस   को   सोचिए   किस   किस   को   रोइए आराम   बड़ी   चीज   है  , मुंह   ढँक   के   सोइए  ....!! " जीवन   के   सम्पूर्ण   सत्य   को   अर्थों   में   संजोए   इन   पंक्ति   के   निर्माता   को   मेरा   विनत   प्रणाम  ...!!'' साभार http://manojiofs.blogspot.in/2011/11/blog-post_26.html साभार नभाटा  आपको नहीं लगता कि जो लोग फुर्सत में रहने के आदि हैं वे परम पिता परमेश्वर का सानिध्य सहज ही पाए हुए होते हैं। ईश्वर से साक्षात्कार के लिए चाहिए तपस्या जैसी क्रिया उसके लिए ज़रूरी है वक़्त आज किसके पास है वक़्त पूरा समय प्रात: जागने से सोने तक जीवन भर हमारा दिमाग,शरीर,और दिल जाने किस गुन्ताड़े में बिजी होता है। परमपिता परमेश्वर से साक्षात्कार का समय किसके पास है...? लेकिन कुछ लोगों के पास समय विपुल मात्रा में उपलब्ध होता है समाधिष्ठ होने का । इस के लिए आपको एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ ध्यान से सुनिए एकदा -नहीं वन्स अपान अ टाइम न ऐसे भी नहीं हाँ ऐसे "कुछ दिनों पहले की ही बात है नए युग के सूत जी वन में अपने सद शिष्यों को जीवन के सार से परिचित करा रहे थे नेट

कबाड़खाना ब्लाग की अनूठी प्रस्तुति

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आज मन चाह रहा था कुमार गंधर्व को सुनूं सुनने को तलाश की गई तो  कबाड़खाना ब्लाग की इस पोस्ट पर ठहर गया  माया महाठगिनी हम जानी निरगुन फांस लिए कर डोलै, बोलै मधुरी बानी. केसव के कमला व्है बैठी, सिव के भवन भवानी. पंडा के मूरत व्है बैठी, तीरथ में भई पानी. जोगि के जोगिन व्है बैठी, राजा के घर रानी. काहू के हीरा व्है बैठी, काहू के कौड़ी कानी. भक्तन के भक्ति व्है बैठी, ब्रह्मा के बह्मानी. कहै कबीर सुनो भाई साधो, वह सब अकथ कहानी और अब सुनिये ये 

और शारदा महाराज खच्च खच्च खचा खच बाल काटने लगे बिना पानी मारे....

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रायपुर के सैलून में प्रसिद्ध लेखक ललित शर्मा  सैलून में कटवाते कटवाते  जेब कटवाना अब हमें रास न आ रहा था। आज़कल सैलून वाले लड़के बड़ी स्टाइल से बाल काटतेजेब काटने की हुनर आज़माइश करने लगे हैं. हमारे टाइप के अर्ध बुढ़ऊ में अमिताभी भाव जगा देते है.. सर फ़ेसियल भी कर दूं..?, फ़ेसमसाज़   करूं ?  स्क्रब   कर दूं  ब्लीच   करूं.. किसी एक पे आपकी हां हुई कि आपकी जेब कटी.. किस्सा चार-पांच सौ पे सेट होता है. अपन ठहरे आग्रह के कच्चे इसी कच्चेपन से  मंथली बज़ट बिगड़ने लगा तो हमने भी एकदम तय कर लिया कि बाल तो घर में ही कटवाएंगे वो भी क्लासिक स्टाईल में.  हम ने फ़ैमिली-बारबर शारदा परसाद जी से कटिंग कराएंगे वो भी अपने घर में. खजरी वाले खवास दादा की यादैं भी उचक उचक कर कहतीं भई, कटिंग घर में शारदा सेईच्च बनवाओ.  सो हम ने शारदा जी को हुकुम दे डाला- हर पंद्राक दिन में हमाई कटिंग करना ! वो बोले न जी हम औजार लेके किधर किधर घूमेंगे वो तो मालिश वालिश तक ठीक है.   बिलकुल डिक्टेटर बन हमने फ़ैमिली-बारबर को हिदायत दी - शारदा तुम अस्तुरा-फ़स्तुरा, कैंची-वैंची" लेके आना अगले संडे .   सा’ब जी-"