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जनवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पाबला जी के नाम खुला ख़त

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मित्रों भारी वैचारिक संकट उत्पन्न  हो गया है ऐसा मुझे लग रहा है 'आज नेट पर डोमेन नाम को लेकर जो समस्या प्रसूति है' उससे सुसंगत कुछ बातें  आपसे शेयर करने को जी चाह रहा है आप अपने अतीत में जाएँ तो देखेंगेगे एक ही नाम सरनेम वाले कई बच्चे आपके साथ स्कूल में रहे होंगे जैसे विनय सक्सेना, राजेश दुबे, संजय सिंह, मनीष शर्मा, भीमसेन जोशी, मेरे साथ तो तीन गिरीश और थे दो गिरीश गुप्ता एक मैं एक गिरीश जेम्स उन दिनों न तो नीम का पेटेंट हुआ था न ही हल्दी का न ललित जी की मूंछों का किन्तु पिछले दिन पता चला कि मेरे 'कान' का भी किसी ने पेटेंट करा लिया है अब बताइये मैं क्या करुँ...? लोग सब समझतें हैं इन सब बातौं में कोई दम नहीं  अरे कोई  कुछ भी कर सकता है डोमेन नाम चर्चा आदि की चीर फाड़ से बेहतर है कि समझा जावे कि इन सब बातौं में क्या रखा हम सबको हिन्दी चिट्ठाकारिता के बेहतर आयाम स्थापित करने हैं अगर हमने ये न किया तो आने वाले समय में जब समीक्षा होगी तो बच्चे हम पर हसेंगे लानतें भेजेंगे तब हम ज़वाब न दे पाने कि स्थिति में होंगे. कबीर को किसने स्वीकारा होगा तब आज सब कबीर को जानते हैं ज़रूरी ह

वेब दुनिया के उप सम्पादक कुलवंत हैप्पी से पोडकास्ट साक्षात्कार

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शरद कोकास के बाद आज पोडकास्ट-साक्षात्कार  पर सुनिए भाई कुलवंत  सिंह हैप्पी   कुलवंत सार्थक ब्लागिंग के घोर समर्थक प्रतीत होते हैं .उनका मानना है कि असंगत टिप्पणिया अपने ब्लॉग पर बुलाने का आमंत्रण सी नज़र  आतीं हैं . सार्थक ब्लागिंग पर बेबाक हुए कुलवंत जी से बातचीत सुनिए यहाँ ________________________________________ अपने बारे में कुलवंत का बयान 27 अक्टूबर 1984 को श्री हेमराज शर्मा के घर स्व. श्रीमती कृष्णादेवी की कोख से जन्म लिया। जन्म के वक्त मेरा नाम कुलवंत राय रखा गया, और प्यार का नाम हैप्पी। लेकिन आगे चलकर मैंने दोनों नामों का विलय कर दिया "कुलवंत हैप्पी"। तब हम हरियाणा के छोटे से गाँव दारेआला में रहते थे। इस गांव में मुझे थोड़ी थोड़ी समझ आई। इस गाँव से शहर बठिंडा तक का रास्ता नापा और इस शहर में गुजारे कुछ साल मैंने। शहर से फिर कदम गाँव की ओर चले.लेकिन इस बार गाँव कोई और था. मेरा पुश्तैनी गांव..जहां मेरे दादा परदादा रहा करते थे, जिस गाँव की गलियों खेतों में खेलते हुए मेरे पिता जवान हुए। वो ही गांव जिस गाँव हीरके (मानसा) में मेरी मां दुल्हन बन आई थी। यहां पर मैंने दसवी

यशभारत पर मिसफिट

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    Sunday, 17 January, 2010 मोनिका गुप्ता के रांचीहल्ला  पर प्रकाशित आलेख आफत में आधी आबादी   से प्रेरित  9 अगस्त 2008 को मिसफिट पर प्रकाशित एक आलेख  पुत्री वती भव कहने में डर कैसा आलेख मिसफिट के अलावा एक अन्य ब्लॉग पर प्रस्तुत किया गया था. indi blag netwoerk  पर भी इसे सराहा गया आज यानि 17 जनवरी 2010 को फिर यशभारत ने इसे प्रयोग में लेकर गैर  नेट पाठकों तक पहुंचाया . यश भारत ने कैसा छापा इसे पाबला जी ही बताएँगे प्रिंट मीडिया पर ब्लॉगचर्चा  जो दिनांक 18 .01 .2010 को  02 :11 बजे के बाद दिख जाएगा 

शहर जबलपुर की शान लुकमान

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  जी अब इस शहर में आइनों की कमीं को देख के मलाल होता है की क्यों लुकमान नहीं हैं साथ . बवाल हों या समीर लाल  चचा   लुकमान  थे  ही ऐसे . गोया अल्लाह ने लुकमान के लिबास में एक फ़रिश्ता भेजा था इस ज़मीं पर....जिसे मैंने छुआ था उनके चरण स्पर्श कर.  दादा लुकमान की याद किसे नहीं आती . सच मेरा तो रोयाँ-रोयाँ खड़ा हो गया था .....27 जुलाई 2002 का वो दिन जब लुकमान जी ने शहर जबलपुर से शरीरी रिश्ता तोडा ........ वे जेहन से दूर कभी हो भी नहीं सकते . जाने किस माटी के बने थे जिसने देखा-सुना लट्टू हो गया . इस अद्भुत गंगो-जमुनी गायन प्रतिभा को उजागर किया पंडित भवानी प्रसाद तिवारी ने , इस बिन्दु पर वरिष्ठ साहित्यकार मोहन शशि का कहना है:-"भवानी दादा के आशीर्वाद से लुकमान का बेलौस सुर-साधक होना सम्भव हो सका धर्म गुरुओं ने भी लुकमान की कव्वालियाँ सुनी"शशि जी ने आगे बताया -"लुकमान सिर्फ़ लुकमान थे (शशि जी ने उनमें नकलीपन कभी नहीं देखा) वे मानस पुत्र थे भवानी दादा के " १४ जनवरी १९२५ (मकर संक्राति) को जन्मा यह देवपुत्र जन्म से मोमिन,था किंतु साम्प्रदायिक सदभाव का मूर्त-स्वरुप था उनका

राज मिट जाते हैं

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सादर अभिवादन बावरे-फकीरा एलबम से भजन मकर-संक्रांति के शुभ अवसर पर सादर शुभ कामनाओं सहित बावरे=फकीरा एलबम से राज मिट जाते हैं भाव-गीत सादर सुधि पाठकों के लिए पोड कास्ट पर सुनने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये आपकी  प्रतिक्रया प्रार्थनीय है इस पाड कास्ट  पर के विज़िट का अनुरोध है

एक महकमे को मुलजिम करार देना गलत है .

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  सुमन जी के इस आलेख   से जो लखनऊ ब्लॉगर एसोसिएशन पर सरकार के हत्यारे शीर्षक से  छपा है मैं असहमत हूँ क्योंकि इस आलेख से लगता है समूची भारतीय पुलिस व्यवस्था  को "हत्यारी-व्यवस्था" है. दूसरा पक्ष कहे सुने  बिना पुलिस औरसरकार का मनोबल तोड़ना सर्वथा देश की क़ानून व्यवस्था का मज़ाक बना देना कहाँ तक अनुचित है. क़ानून के राज़ को सब मानें मध्य-प्रदेश  और आंध्र प्रदेश में हो रही नक्सली हिंसा को एक पक्ष सहज प्रतिक्रया मानता है ? क्यों क्या सरकारी नौकर ही सर्वथा गलत होता है. भारत में लागू प्रजातंत्र किसी को रक्त रंजित सियासी हथकंडों की अनुमति नहीं देता न ही भारत इतना असहिष्णु है कि किसी को भी सिरे से खारिज करे . हर विचारधारा का यहाँ सम्मान होता है. किन्तु रक्त-रंजन की इजाज़त कदापि नहीं पुलिस से यदि कुछ गलती हो रही है तो उसे रकने आवाज़ बुलंद ज़रूर कीजिये किन्तु यदि यह आरोप सब पुलिस वालों पर जड़ दिया जाए तो सिर्फ नकारात्मक बुद्धि का संकेत है  किसीको भी आतंकवादीयों के पक्ष में किसी को खड़े रहने की ज़रुरत नहीं है देश में नक्सल बाडी आन्दोलन.धर्म के नाम पर क़त्ल-ए-आम,सियासती दंगे,सर्वहारा के

सायबर क्राइम :मेरी आई डी का दुरूपयोग

                                                            आज अचानक भोपाल में विभागीय मीटिंग के समय एक +918040932451  से प्राप्त सन्देश का कुछ इस प्रकार था मैं बैंगलोर से बोल रहा हूँ आपके पास ढ़ेड़ करोड़ इ-मेल आई०डी० हैं इस आशय का मेल मुझे मिल गया है मेल के ज़रिये मिले आई डी पर मैंने मेल भेजी है . आपका  उत्तर न मिला इस लिए फोन कर रहा हूँ ?अचानक आए इस फोन का अर्थ अभी तक मुझे समझ न आया लेकिन इस भय से कि फोन करने वाले व्यक्ति किसी साजिश के शिकार  न हों अतएव उनको फ़ौरन sms करके बताया कि यह मेल मेरे आई डी से मेरे द्वारा नहीं किया है ! मित्रों इस घटना का अर्थ जानने की कोशिश कर रहा हूँ किन्तु आप सभी को आगाह कर रहा हूँ इस तरह का कोई भी मेल आप तक पहुंचे तो कृपया तस्दीक ज़रूर कर लीजिए वैसे मैं भी इस घटना की जानकारी सायबर क्राइम विभाग को देना चाहता हूँ यदि बैंगलोर वाले वो फोन कर्ता मुझे कथित रूप से उनको प्राप्त मेल की प्रति भेजें . आप जो भी इस विषय में जानकारी रखतें हैं कृपया तकनीनी आलेख ज़रूर लिखिए k

"अखंड टिप्पणी-वता/वती भवेत !!"

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आप सभी का मिसफिट पर हार्दिक स्वागत हैइस ब्लॉग पर आते ही आपकी समस्त टिप्पणी से सम्बंधित कामनाएं बाबा टिपोर नाथ के आशीर्वाद से पूर्ण हो जायेंगी. आप सभी का हार्दिक स्वागत है जो टिप्पणियां देने आए जो आ रहें हैं तुरंत आ जाएँ कसम से बाबा टिपोर चाँद का आशीर्वाद से आपका ब्लॉग भी भरी-पूरी सुहागिन सा दमकता चमकता दिखेगा

नए वर्ष तुम्हारा स्वागत क्यों करुँ ...?

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रस्म अदायगी के लिए भेज देतें हैं लोग चंद एस एम एस तुम्हारे आने की खुशियाँ इस लिए मनातें हैं क्योंकि इस रस्म को निबाहना भी ज़रूरी है किसी किसी की मज़बूरी है किन्तु मैं  नए  वर्ष  तुम्हारा  स्वागत  क्यों करुँ ...? अनावश्यक आभासी रस्मों में रंग क्यों भरूँ ? पहले  तुम्हें आजमाऊंगा कोई कसाबी-वृत्ति से विश्व को मुक्त करते हो तो तो मैं हर इंसान से एक दूसरे को बधाई संदेशे भिजवाउंगा खुद सबके बीच जाकर जश्न तुम्हारी कामयाबी का मनाऊँगा तुम सियासत का चेहरा धो दोगे न  ? तुम न्याय ज़ल्द दिला दोगे न ? तुम मज़दूर मज़बूर के चेहरे पर मुस्कान सजा दोगे न ? तुम विश्व बंधुत्व की अलख जगा दोगे  न ? यदि ये सब करोगे तो शायद मैं आखरी दिन 31 /12 /2010 को रात अपनी बेटी के जन्म दिन के साथ तुम्हें आभार कहूँगा....! तुम्हारे लिए बिदाई गीत गढ़ूंगा !! तुम विश्वास तो भरो मेरी कृतज्ञता का इंतज़ार करो ?