9.8.08

"पुत्री वती भव: कहने में डर कैसा"




"पुत्री वती भव: कहने में डर कैसा" ताज़ातरीन समाचार एक ब्लॉग "रांचीहल्ला"से तथा समीर लाल की मज़ाहिया किंतु गहरे अर्थ वाली पोस्ट प्रेरित हो सोचता हूँ
“औरतों की दशा जितनी चिकित्सा विज्ञान ने बिगाड़ के रखी है उससे अधिक ज़िम्मेदार है मध्य वर्ग की सामाजिक विवशता यहाँ मध्यवर्ग को सरे आम अपमानित करना मेरा लक्ष्य बिलकुल नहीं है किंतु वास्तविकता यही है "पति बदलू कथानकों पे आधारित एकता कपूर छाप सीरियल देखतीं महिलाओं के ज़ेहन में घरेलू जिम्मेदारी के अलावा यह भी जिम्मेदारी है की अखबारों/संचार-माध्यमों में शाया आंकड़ों पे नज़र डाल लें किंतु जैसे ही कन्या सौभाग्यवती होती है उसे करवाचौथ,संतान सप्तमीं,वट-सावित्री जैसे व्रत वर्तूले याद रह जाते क्या महिलाओं के लिए ये सब शेष है सच यदि महिलाएं स्वयं लिंग परीक्षण के विरुद्ध एक जुट हो जाएँ तो यकीनन सारा परिदृश्य ही बदल जाएगा आप सोच रहें होंगे कि किन कारणों से ये ज़बाव देही मैं महिलाओं पे डाल रहा हूँ
जन संख्या आयुक्त और महापंजीयक जेके भाटिया का कहना है कि 1981 में लड़कियों की सं`या 1000 लड़कों के मुकाबले में 960 थी जो अब गिरकर 927 पर आ गई है। पंजाब में स्थिति तो और भी बदतर है। पंजाब के जाट सिक्खों में प्रति हज़ार पुरुषों में मात्र 527 लड़कियां ही रह गयी है। इसलिए अधिकतर पंजाबी लड़कों को अपनी बिरादरी में लड़की नही मिलती और शादी के लिए उन्हें दक्षिण भारत की ओर रुख करना पड़ता है। ऐसा इसलिए भी इन राज्यों में एक संतान की संस्कृति तेजी से फैल रही है और अधिकतर लोग इसमें पुत्र को ही प्राथमिकता देते है। भाटिया के शब्दों में `पंजाब के हाथ खून से रंगे मध्य प्रदेश के मुरैना में लड़कियों की संख्या 815, राजस्थान के धौलपुर में 859, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में 789 और हरियाणा के रोहताक में 780 तक पहुंच गयी है। आंकड़े यह भी बताते है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में भ्रूण हत्या से संबंधित घटनाये ज्यादा देखने को मिलती है। जहां मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में अवांछित गर्भपात का प्रतिशत 11.7 और वांछित गर्भपात 4 प्रतिशत है, वही शहरी क्षेत्रों में यह क्रमशः 24 और 14.9 प्रतिशत है। राजस्थान का धौलपुर भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। शहरी क्षेत्रों में यह 15.9 और 8.6 प्रतिशत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि बालिकाओं और महिलाओं को नज़रअंदाज़ करके कोई विकास नहीं हो सकता। विज्ञान और टेक्नोलोजी में प्रगति का प्रयोग इंसानियत की भलाई के लिए होना चाहिए न कि उसे अजन्मी कन्याओं की हत्या के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
{आभार:-मोनिकागुप्ता-रांची हल्ला )
कल जब महिला सशक्तिकरण पर एक कार्य शाला में मुझे महाविद्द्यालय के प्राचार्य का सवाल गहराई तक छू गया कि भारतीय बुज़ुर्ग केवल "पुत्रवती भव:" का आशीर्वाद क्यों देते हैं....? यानी पुत्र मोह हमारी संस्कृति का हिस्सा है तभी तो हम "पुत्री वती भव:"कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते ।
चिंतन  पर मान्धाता  की पोस्ट :- बच्चा पैदा करने की मशीन समझ रखा है ...- भी इसी विषय के इर्द गिर्द है कदाचित
आजाद भारत की नारी शक्ति सच कुछ कारगर क़दम उठाए .............और आशीर्वाद देँ "पुत्री वती भव:" फ़िर देखी पुरूष प्रधान समाज के दृश्य सहजता से बदलने लगेंगें

9 टिप्‍पणियां:

Manvinder ने कहा…

je haalt hame khud ko aage aa kar badalne honge....
ham jab bati ke janam per khush honge... samanta ki soshenge..
lekin lagata hai ki je awearness us din aaegi jis din shaadi ke liye ladakiyo ki kami pesh aegi

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत अच्छा प्रश्न किया है आपने।
घुघूती बासूती

बाल भवन जबलपुर ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
बाल भवन जबलपुर ने कहा…

थैंक्स मनविंदर जी
हालत सख्ती भी बदल सकती है
उपलब्ध क़ानून अनिवार्य रूप से लागू करने की
इच्छा हो बस देखिए लकड़ी के आगे मकड़ी कैसे
ता-थैया.....ता-थैया.....! ता-थैया.....! ! ता-थैया.....!!!
करेगी
घुघूती जी आभार अब ब्लॉग से बाहर भी "पुत्री वती भव:" का आशीष आजाए
समाज में समा जाए
दृश्य ही बदल जाए

Udan Tashtari ने कहा…

विचारणीय आलेख. आभार इस आलेख का.

बेनामी ने कहा…

ek dam sahii prashn , jwaab koi nahin dae saktaa mae bhi nahin

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

आभार समीर जी
रचना जी
ज़वाब की ज़रूरत नहीं है पास एक बार किसी नव वधु को ये आशीष दीजिए बस

Unknown ने कहा…

nice
aap ka blog sochane pe mazaboor karataa hai
badhai

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

thanks blog patrkaar ji

Wow.....New

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