16.1.21
एनडीटीवी की पूर्व पत्रकार क्या सचमुच हुई फिशिंग का शिकार ?
15.1.21
नेशनल न्यूज़ पर दहाड़ा जबलपुर का शेर
आज मकर संक्रांति के दिन न्यूज नेशन राष्ट्रीय चैनल पर "N.C.E.R.T. की 12वीं की इतिहास की पुस्तक में षड्यंत्र पूर्वक शामिल किए गए तथ्य जिसमें मुगलों को मंदिरों के विनाशक के साथ पुनर्निर्माण कर्ता बताया गया है" विषय पर एक डिबेट का आयोजन किया गया । इस डिबेट मेंं एम यू के फिरोज साहब वामपंथी प्रोफेसर सतीश प्रकाश, प्रोफेसर बद्रीनारायण मौलाना अली कादरी प्रोफ़ेसर संगीत रागी , शुबही खान प्रोफेसर बद्रीनारायण के साथ जबलपुुुर प्रोफेसर डॉ आनंद राणा ने भी हिस्सा लिया। बहस के मुद्दे पर केवल सतीश प्रकाश को छोड़कर सभी नियंत्रित रहे ।
वर्तमान में भारत के इतिहास को लेकर एक लंबी बहस छिड़ चुकी है। देश में यह स्वीकार आ गया कि आजादी के बाद जब इतिहास लिखने की बात आई तो तत्सम कालीन नीति नियंताओं इस भय से कि भविष्य में कहीं धर्म एवं संप्रदाय को मानने वालों के बीच में वैमनस्यता पैदा ना हो ऐसा इतिहास लिखा जाए। इस बिंदु पर जाकर मेरा मस्तिष्क अचानक बुद्धिहीनता पर चकित हो जाता है। मित्रों जैसे ही पत्रकार दीपक चौरसिया ने जो देश की बहस को संचालित कर रहे थे डॉ आनंद राणा को कनेक्ट किया आनंद राणा ने बतौर साक्ष्य प्रभाव कारी वक्तव्य में बताया कि मुगलों ने खास तौर पर औरंगजेब ने तो कभी भी उज्जैन के महाकाल की पूजा के लिए संसाधन या धन उपलब्ध नहीं कराया। एनसीईआरटी पुस्तकों में इस संबंध में जो भी लिखा है गलत है । महाकाल के पुजारी ने भी इस बात की पुष्टि कि आक्रांताओं से बचाव के उद्देश्य से महाकाल की प्रतिमा को गुफा में सुरक्षित कर दिया गया था। मित्रों सभी जानते हैं कि 16 अप्रैल 1669 को बाकायदा मंदिरों को ध्वस्त करने का आदेश मुगल बादशाह औरंगजेब ने दिया था। और वर्तमान में एनसीईआरटी की किताबों में अगर यह पढ़ाया जाता है कि औरंगजेब ने मंदिरों के प्रबंधन के लिए खास इंतजाम किए थे कुल मिलाकर यह झूठ है और इस झूठ को ज्ञान के हित में केवल किताबों से विलोपित कर देना चाहिए बल्कि ऐसी किताब लिखने वालों की किताबें ही प्रतिबंधित कर देनी चाहिए। पूरी बहस में जहां एक ओर मुस्लिम मत को मानने वाले औरंगजेब के कृत्य से असहमत थे वही कुतर्क का पुलिंदा किए हुए प्रोफेसर सतीश प्रकाश उज्जैन के महाकाल मंदिर के पुजारी को भी नकार रहे थे । आयातित विचारधारा मानने वाले और अपने ही एजेंडे को आगे रखने वाले प्रोफेसर सतीश प्रकाश को बेनकाब होता देख आश्चर्यचकित नहीं हूं बल्कि जबलपुर के शेर आनंद राणा की जबरदस्त अभिव्यक्ति के प्रति प्रफुल्लित अवश्य हूं।
12.1.21
बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड यू के फ़ॉर पोट्रेट में शामिल हुई स्वामी विवेकानंद की 8 हज़ार वर्ग फ़ीट अनाजों से बनी रंगोली
10.1.21
कन्फ्यूज़्ड बचपन (हास्य व्यंग्य)
9.1.21
अंग्रेज़ भारत से क्यों भागे.? लेखक :- श्रीमन प्रशांत पोळ
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इसरो विज्ञानी तपन मिश्रा और वैज्ञानिकों की सुरक्षा की प्रासंगिकता
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देहदान : की उच्चतम अनुकरणीय पहल
अविष्कारक लुइस ब्रेल को मृत्यु के 100 साल बाद राजकीय सम्मान
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ज्योतिर्मय चिंतक : माँ ज्योति बा फुले आलेख प्रोफेसर आनंद राणा इतिहासकार
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बीबीसी की कोविड19 वैक्सीन पर जबरदस्त रिपोर्ट
1.1.21
भारतीय उद्योगपतियों के पीछे क्यों पड़े हैं एक्टिविस्ट..?
भारत में रिलायंस और अदानी ग्रुप के विरुद्ध वातावरण निर्माण करने के पीछे एक खास वर्ग भारत में भारतीय कंपनियों को हतोत्साहित करने के लिए एक खास तरीके से काम कर रही है । उनका अपना एजेंडा है बाबा रामदेव अंबानी एवं अदानी द्वारा स्थापित उत्पादक समूह को क्षतिग्रस्त करना ।
किसान आंदोलन के 1 माह से अधिक समय बीतते हुए एक तथ्य सामने आया है जो यह साबित करता है कि-"भारतीय कंपनियों को इतना हतोत्साहित कर दीजिए कि की वे ना तो सक्रिय रूप से उत्पादन कर सके नाही विश्व व्यापार के लायक हो सकें"
किसान आंदोलन में एक नैरेटिव तेजी से फैलाया गया कि भारत सरकार ने यह तीन कानून केवल बाबा रामदेव अदानी और अंबानी जैसे व्यापारियों को लाभान्वित करने के लिए बनाए हैं।
आज अचानक नीरव जॉनी जी के ब्लॉग पर नजर गई ।
तो पता चला कि हम भारतीय उत्पादन क्षमता को नजर अंदाज करके किस तरह से विदेशी कंपनियों को पालपोस रहे हैं । उसके पहले आपको बता देना आवश्यक है कि हम अपने दैनिक जीवन में सुबह से शाम तक जितने भी विदेशी प्रोडक्ट खरीदते हैं उनका लाभ भारतीय भारतीय जीडीपी की गिरावट का एकमात्र कारण है विदेशी निर्भरता वह भी डेंली यूज़ के उत्पादों के लिए। इसका दोष भारत सरकार को यह कह कर दिया जाता है.. कि सरकार की आर्थिक नीतियां गलत हैं ? चिंतन का विषय है कि विदेशी कंपनियों द्वारा उत्पादित विभिन्न उत्पादों के प्रति आप का आकर्षण एक उपभोक्ता के रूप में कुछ अधिक है। साउथ एशिया के भूतपूर्व गुलामों को यूरोप सदा से ही आकर्षित करता रहा है। विश्व व्यापार संगठन की संधि पर हस्ताक्षर करने के उपरांत आप बहुत आराम से विदेशी उत्पादों को भारत में खरीद पा रहे हैं। यहां तक कि आपको इन्हें खरीदने के लिए गुमराह किया जाता है। उत्पादन कंपनियों एवं सरकार के बीच सांठगांठ का आरोप लगाया जाता है यह नैरेटिव भारतीय अर्थव्यवस्था भुगतान संतुलन और जीडीपी के लिए नेगेटिव फैक्टर के रूप में देखता हूं मित्रों मैं अक्सर स्थानीय उत्पादन और उनके अनुकूल स्थानीय बाजार में खपत का पक्षधर हूं । परंतु मध्यम वर्ग एक ऐसी मूर्खतापूर्ण स्थिति से गुजर रहा है जहां वह विदेशी कंपनियों के उत्पादन का उपभोक्ता बाजार बनाने में स्वयं को झोंक देता है जो ना तो राष्ट्र के हित में है नाही भारतीय अर्थव्यवस्था के पक्ष में नीरज जी के आर्टिकल से मैंने आपके बीच में लाने की कोशिश की है आप समझ जाएंगे कि आप कितना विदेशी उत्पादों पर आकृष्ट हैं और देश में रिलायंस के टावर तोड़ने रामदेव की बेइज्जती करने तथा अदानी को गाली देने कितना सक्रिय नजर आते हैं। नीचे दिए प्रोडक्ट आप उपयोग करते हैं किंतु कभी भी आपने यह नहीं देखा होगा कि इन कंपनियों के विरुद्ध किसी भी आंदोलन में कोई भी खड़ा हुआ हो मेरा मानना है यूरोपियन और चाइनीस कंपनियों द्वारा स्लीपर सेल के माध्यम से सबसे खतरनाक ढंग से ग्रोथ कर रही पतंजलि अदानी और रिलायंस कंपनियों के विरुद्ध वातावरण निर्माण का प्रयास किया जा रहा है।
भारतीय कंपनियों कीी सूची यहां क्लिलिक करें नीरव जानी का ब्लॉग
कोलगेट, हिंदुस्तान यूनिलीवर ( पहले हिन्स्तान लीवर ), क्लोस-अप, पेप्सोडेंट, एम, सिबाका, एक्वा फ्रेश, एमवे, ओरल बी, क्वांटम आदि । कोलगेट, क्लोस-अप, पेप्सोडेंट, सिबाका, अक्वा फ्रेश, ओरल-बी, हिंदुस्तान लीवर ।
हिंदुस्तान यूनिलीवर, लो’ओरीअल , लाइफ ब्वाय , ले सेंसि, डेनिम, चेमी, डव, रेविओं, पिअर्स, लक्स, विवेल, हमाम, ओके, पोंड्स, क्लिअर्सिल, पमोलिवे, एमवे, जोनसन बेबी, रेक्सोना, ब्रिज , डेटोल ।
विदेशी:: हेलो, कोलगेट, पामोलिव, हिंदुस्तान यूनिलीवर, लक्स, क्लिनिक प्लस, रेव्लों, लक्मे, पी एंड जी , हेड एंड शोल्डर, पेंटीन, डव, पोंड्स, ओल्ड स्पेस, शोवर तो शोवर, जोहानसन बेबी ।
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जिलेट, सेवन ‘ओ’ क्लोक, एरास्मिक, विल्मेन, विल्तेज आदि
हिंदुस्तान यूनिलीवर, फेअर एंड लवली, लक्मे, लिरिल, डेनिम, रेव्लों, पी एंड जी, ओले, क्लिएअर्सिल, क्लिएअर्तोन, चारमी, पोंड्स, ओल्ड स्पाइस, डेटोल , जॉन्सन अँड जॉन्सन, व्रेंग्लर, नाइकी, ड्यूक, आदिदास, न्यूपोर्ट, पुमा, राडो, तेग हिवर, स्विसको, सेको, सिटिजन, केसिओ कमल, नटराज, किन्ग्सन, रेनोल्ड, अप्सरा, पारकर, निच्कोल्सन, रोतोमेक, स्विसएअर , एड जेल, राइडर, मिस्तुबिशी, फ्लेअर, यूनीबॉल, पाईलोट, रोल्डगोल्ड, कोका कोला, पेप्सी, फेंटा स्प्राईट, थम्स-अप, गोल्ड स्पोट, लिम्का, लहर, सेवन अप, मिरिंडा, स्लाइस, मेंगोला, निम्बुज़ , लिप्टन, टाइगर, ग्रीन लेबल, येलो लेबल, चिअर्स, ब्रुक बोंड रेड लेबल, ताज महल, गोद्फ्रे फिलिप्स, पोलसन, गूद्रिक, सनराइस, नेस्ले, नेस्केफे, रिच , ब्रू,
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31.12.20
कोशिशें सदा बड़ी ही होतीं हैं..!
30.12.20
मेरी फुदक चिरैया का हत्यारा माओ
18 मार्च 1958 से 18 मार्च 1960 तक एक मूर्ख नेता ने मेरी फुदक चिरैया का सामूहिक हत्या का अभियान छेड़ दिया इस मूर्ख नेता का नाम था माओ ।
यह एहसान फरामोश अति स्वाभिमानी और अपने कैलकुलेशंस को श्रेष्ठ मानने वाला नेता था। पता नहीं क्यों इस भटके हुए संहारक मस्तिष्क में एक गणित उभरा और वह गणित था देश की अर्थव्यवस्था को यूरोपियन राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था से बेहतर बनाना।
यह जिस आईडियोलॉजी से आता है उस आईडियोलॉजी में मौलिक रूप से यह विचार समाहित होता है कि अगर कुछ हुआ है... तो उसका उत्तरदाई बिना कोई अवश्य है । बस एक दिन बैठे बैठे गुणा भाग करते हुए इसने अंदाज लगाया-" यह जो गौरैया है ना साल भर में 4•5 किलोग्राम अनाज चट कर जाती है । और चूहे भी अनाज चट कर जाते हैं अगर हम इन चिड़ियों को मार दें तो बहुत सा अनाज बचेगा और वह अनाज बाजार में बेचकर अर्थव्यवस्था को पुख्ता किया जा सकता है । कैलकुलेशन सही था लेकिन परिणाम के बारे में सोचा ही नहीं गया। मेरी फुदक चिरैया उन कीट पतंगों को भी चट कर जाती है जो माओ के देश के खेत में फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। और वह इस बात का भी अंदाज नहीं लगा पाया कि यह जो टिड्डी दल है ना उस पर भी नियंत्रण करती है मेरी फुदक चिरैया...!!
एक मूर्खतापूर्ण निर्णय जिसने क्या जनता क्या सेना क्या इंटेलेक्चुअल्स और क्या पुलिस और प्रशासन सब के सब ऐसे इंवॉल्व हो जैसे कोई उत्सव मनाया जा रहा है।
हो सकता है कि उनको भारत में भी कुछ लोग मेरी फुदक चिरैया से नाराज रहने लगे हो..😢😢 असंभव कुछ भी नहीं वैसे भी यह मूर्खों के शब्दकोश का शब्द है। भारत एसे कुछ लोगों को अपने देश में रहने की इजाजत देता है जो मेरी फुदक चिरैया से नाराज हैं ।
ग्रेट स्पैरो मूवमेंट में जनता की जिम्मेदारी थी कि वह मक्खी मच्छर चूहे और गौरैया को समूल नष्ट कर दें । मैंने इस मूवमेंट का नाम बदल रखा था मैं इसे *मेरी गौरिया के खिलाफ आतंकवाद* नाम देता हूं ।
जानते हैं उसके बाद क्या होगा 1960 के आते-आते इकोसिस्टम अर्राकर गिर गया । खेतों में उगने वाले अनाज को कीड़े और टिड्डी दल बिना किसी दबाव के निपटाने लगे। करोड़ों चीनी वासियों को भूखमरी और शिकार होना पड़ा था...!
कोविड-19 वायरस के जन्मदाता देश में जो ना हो वह थोड़ा है ।
मेरे बारे में
- बाल भवन जबलपुर
- जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर
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