22.6.14

धर्म, आस्तिकता और नास्तिकता पर पाखंड का साया : बी.पी. गौतम

  • आलेख में प्रकाशित सामग्री  पर लेखक का सर्वाधिकार है. ब्लाग स्वामी  

ईश्वर और धर्म के विषय में अधिकतम ज्ञान अर्जित करने की दिशा में असंख्य
लोग स्वाभाविक ही जुटे रहते हैं। जब, जहां और जैसे अवसर मिलता है, वैसे
स्वयं को सतुंष्ट करने के प्रयास करते रहते हैं। मनुष्य की इसी स्वाभाविक
इच्छा का धूर्त और शातिर किस्म के लोग दुरुपयोग कर रहे हैं। धूर्त और
शातिर किस्म के लोगों ने ईश्वर और धर्म को धंधा बना लिया है, जिससे लोग
द्वंद से निकलने की जगह और गहरे में फंसते जा रहे हैं।
बचपन में एक कहानी सुनी थी, जिसमें बताया गया था कि एक गांव में चार अंधे
रहते थे। उस गांव में एक बार हाथी आया। चारों अंधों ने हाथी को छूने की
उत्सुकता व्यक्त की, तो महावत ने हाथी को छूकर अनुभूति करने की अंधों को
अनुमति दे दी। इसके बाद चारों अंधे अपने अनुभवों को आपस में बांटने लगे।
हाथी का पैर छूने वाले अंधे ने कहा कि हाथी एक खंबे जैसा होता है। हाथी
के पेट पर हाथ घुमाने वाले अंधे ने कहा कि हाथी ढोल की तरह होता है। कान
पकड़ने वाला अँधा उन दोनों को मूर्ख बताते हुए बोला कि हाथी सूप की तरह
होता है और पूँछ पकड़ने वाला चौथा अँधा तीनों के अनुभवों पर हंसता हुआ
बोला कि हाथी झाड़ू की तरह होता है, ऐसा ही कुछ धर्म के साथ हो रहा है।
वास्तव में धर्म क्या है, यह अधिकांशतः न कोई बता पा रहा है और न ही कोई
समझ पा रहा है, इसीलिए धर्म की जगह पाखंड लेता जा रहा है, जिसके
दुष्परिणाम लगातार सामने आ रहे हैं। धर्म के प्रति अज्ञानता और अनभिज्ञता
से ही पाखंड को बढ़ावा मिल रहा है, इसलिए धर्म का ज्ञान ही पाखंड से निजात
दिला सकता है।
व्याकरण की दृष्टि से धर्म शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की धृधातु से हुई
है, जिसका अर्थ है स्वभावत: धारण करना। अब प्रश्न उठता है कि धर्म का
कार्य क्या है, तो अभ्युदय (लौकिक) और नि:श्रेयस (पारलौकिक) उन्नति करना
ही धर्म का कार्य है। अधोगति में जाने से रोकना ही धर्म का मूल कार्य है।
सत, रज और तम में संतुलन बनाये रखने की प्रेरणा देने वाला भी धर्म ही है।
उदाहरण स्वरूप बात हिन्दू धर्म की करते हैं, तो सब से पहले यह जानना
आवश्यक है कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है। मूल नाम सनातन धर्म है, जिसे बाद
में वैदिक और अब हिन्दू धर्म कहने लगे हैं। हिन्दू और हिंदुस्तान शब्द की
उत्पत्ति के संबंध में विचार है कि भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने
"हिन्दुस्थान" नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश ही "हिन्दुस्तान" है।
"बृहस्पति आगम" में लिखा है कि हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।अर्थात, हिमालय से
प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश
हिन्दुस्थान कहलाता है।
"हिन्दू" शब्द "सिन्धु" से भी बना माना जाता है। संस्कृत में सिन्धु शब्द
के दो अर्थ हैं। इसके अलावा हिमालय के प्रथम अक्षर "हि" और इन्दु का
अन्तिम अक्षर "न्दु" से मिल कर "हिन्दु" शब्द बना और यह भू-भाग
हिन्दुस्थान कहलाया। नाम जैसे भी पड़ा, पर हिन्दू शब्द प्रचलन में आने के
बाद सनातन का पर्याय हिन्दू ही बनते चले गए, जबकि बौद्ध और जैन आदि भी
सनातनी ही हैं। व्याकरण में सनातन का अर्थ होता है शाश्वतअर्थात्,
जिसका न आदि है और न अन्त। सनातनी साहित्य और सनातनी विद्वान किसी
सिद्धान्त को निरस्त नहीं करते, वे सभी को बराबर की मान्यता देते हैं।
स्वयं एकेश्वरवादी होते हैं, पर अन्य वादों को भी मान्यता देते हैं,
क्योंकि सनातन व्यवस्था उत्कृष्ट और आदर्श जीवन जीने की एक पद्धति है।
मूल विषय पर आते हैं। धर्म का अर्थ है स्वभावत: धारण करना और सनातन का
अर्थ है शाश्वत, अर्थात विचार, सिद्धान्त, नियम आदि को जीवन में प्रमुख
स्थान देना मनुष्य का स्वभाव है और जो स्वभाव से धारण हो जाये, साथ ही
मनुष्य स्वभाव से ही धारण कर ले, वो धर्म है। इसी तरह जिसका न आदि है और
न अंत है, जो स्वाभाविक है, उसे धारण कर ले, वो सनातनी है। जिसे धारण
कराया जाये, वो सनातनी नहीं हो सकता। मनुष्य का मूल स्वभाव अहिंसक है,
लेकिन कोई हिंसक है, तो वह मनुष्यता के विपरीत है, अर्थात सनातन व्यवस्था
के भी विपरीत है।
सनातनीयों की मान्यता है कि ईश्वर एक है और वह सर्वशक्तिमान व सर्वव्यापी
है, लेकिन वे सगुण-निर्गुण, साकार-निराकार और आस्तिकता-नास्तिकता को भी
निरस्त नहीं करते। गीता में ही कहा गया है कि 'यदि तू प्रभु के लिए कर्म
करने के परायण होने में असमर्थ है, अर्थात प्रभु को नहीं मानता, तो भी
कोई बात नहीं, तू स्वयं की इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर और आनंद ले।
आशय यह है कि मूल धर्म नहीं, बल्कि कर्म है। किसी धर्मज्ञ के व्यवहार और
कर्म में धर्म नहीं हैं, तो नीच है, अधर्मी है, पापी है, अपराधी है,
लेकिन कोई धर्म के मर्म को जानता तक न हो, पर उसके कर्म देश, समाज,
प्रकृति और प्रत्येक जीव के कल्याण में हों, तो वह स्वयं में धर्मज्ञ ही
हुआ। कुल मिला कर पूजा पद्धति धर्म नहीं है। धर्म और कर्म का आपस में
अटूट रिश्ता है, अर्थात जो धार्मिक है, वह सदकर्म भी करेगा और सदकर्म
करता है, वह धार्मिक भी होगा, लेकिन धर्म और उसका आशय समझाने की जगह
लोगों को और उलझाया जा रहा है, क्योंकि लोगों को धर्म की सही जानकारी हो
गई, तो धर्म के नाम पर धंधा करने वाले लोगों का धंधा बंद हो जायेगा।
धर्म के नाम पर व्यापार करने वाले स्वयं भी धार्मिक नहीं हैं, तभी उनके
कुकर्म आये दिन सामने आते रहते हैं, इसलिए लोगों का विश्वास धर्म से ही
उठता जा रहा है। धर्म से विश्वास उठने का अर्थ है कर्म से भी विश्वास
उठना। लोगों का कर्म से विश्वास उठेगा, तो अनैतिकता, अव्यवहारिकता,
अकर्मण्यता, कठोरता आदि को ही बढ़ावा मिलेगा, लेकिन लोगों को सही मार्ग
दिखाने वालों की संख्या बहुत कम है, इसलिए धर्म के नाम पर पाखंड से धोखा
खा चुके लोग आसानी से अधर्म की शरण में चले जाते हैं, अर्थात नास्तिक हो
जाते हैं, जबकि यही हाल नास्तिकता का है। जैसे धर्म के नाम पर लोग
व्यापार कर रहे हैं, वैसे ही लोग अधर्म के नाम पर भी व्यापार करने लगे
हैं।
कथित धार्मिक लोगों के इतने किस्से सामने आ चुके हैं कि उन पर एक बहुत
मोटी किताब लिखी जा सकती है। कहीं पद को लेकर हत्या के किस्से हैं, तो
कहीं आश्रम को लेकर संघर्ष हो रहे हैं। इतना सब रहता, तो भी ठीक था, धर्म
का भय दिखा कर पाखंडी नाबालिग लड़कियों तक को अपनी हवस का शिकार बना रहे
हैं, इसी तरह की कहानियाँ नास्तिक ठेकेदारों की भी हैं। वृन्दावन में एक
प्रसिद्ध कथावाचक थे। उनका धर्मावलम्बियों में बड़ा सम्मान था। उनके तीन
पुत्र हैं। अपने जीवन काल में ही उन्होंने अपने पुत्रों को भी कथा सुनाने
का अभ्यास कराना शुरू कर दिया। आयु पूर्ण होने पर एक दिन वह शरीर छोड़
गये, जिसके बाद उनके बड़े पुत्र ने पिता के कार्य को अपना लिया, पर न
ज्ञान था और न ही श्रोताओं को सुनाने का तरीका अच्छा लगा, जिससे पिता के
नाम पर एक-दो बार लोगों ने आयोजन कराया और फिर भूल गये। दूसरे बेटे ने भी
प्रयास किया, पर उसका परिणाम भी बड़े बेटे जैसा ही आया। चूंकि पिता
सेवाभाव से कथा सुनाते थे और बेटे पहले ही दिन से धंधे के रूप में कथा
सुनाने आये, इसलिए लोगों को रुचिकर न लगना स्वाभाविक था, साथ ही धार्मिक
ग्रंथों का अध्ययन न होने के कारण लोगों को ज्ञान के रूप में भी कुछ नहीं
मिल रहा था, जिससे धंधा नहीं चला, इस घटना से दोनों भाई धर्म और ईश्वर के
विरुद्ध हो गये, अर्थात नास्तिक हो गए और नास्तिकता के नाम पर धंधा शुरू
कर दिया। यहाँ ध्यान देने की विशेष बात यह है कि उनका पैतृक धंधा उनकी
अज्ञानता के कारण फलीभूत नहीं हुआ, पर ईश्वर और ईश्वरवादियों से घृणा
करने लगे।
एक भाई ने सोशल साइट्स पर विज्ञापन देकर थोड़ी बहुत ख्याति अर्जित कर ली
और धंधा चल पड़ा। धर्म के प्रति लोगों को भड़काने में किसी तरह के विशेष
ज्ञान की जरूरत भी नहीं है, जिससे परिश्रम विहीन यह धंधा उसे रास आ गया।
सोशल साइट्स ने ख्याति देश के बाहर तक पहुंचा दी। चूंकि पाखंड से चोट
खाये लोग दुनिया भर में हैं, उन्हीं में से किसी एक जर्मन ने जर्मनी में
सेंटर खोलने में मदद कर दी। सेंटर खुलने के पश्चात सवाल यह था कि अब क्या
किया जाए, तो इस व्यक्ति ने वहाँ योग सिखाने के लिए एक लड़का रख दिया और
चालीस यूरो प्रति व्यक्ति वसूलने लगा। कुछ ही समय में धन वर्षा होने लगी,
तो वहाँ एकाउंट आदि की व्यवस्था देखने के लिए ऐसे जानकार की आवश्यकता
महसूस हुई, जिसे जर्मन और इंग्लिश का अच्छा ज्ञान हो। एक लड़की आसानी से
मिल गई, जिसे कुछ ही दिनों में उस व्यक्ति ने प्रेमिका और फिर पत्नी बना
लिया।
धर्म के नाम पर धंधा करने वाले लड़कियों को रख कर उनसे शारीरिक संबंध
इसलिए बनाते हैं कि वे उनके प्रति पूरी तरह वफादार रहें और देखभाल मन से
करें। दुनिया भर की स्त्री भावुक होती है, इसलिए रिश्ते और प्रेम के
मुददे पर शातिर लोगों के षड्यंत्र में आसानी से फंस जाती है। कुल मिला कर
जो सब धर्म के नाम पर हो रहा था, वही सब अधर्म के नाम पर भी हो रहा है। न
आस्तिकता कुछ बदल पाई और न नास्तिकता। इस व्यक्ति पर विदेशी लड़कियों को
लाकर उनसे धंधा कराने के भी आरोप लगते रहे हैं। धार्मिक मठाधीशों की तरह
ही इसके आश्रम पर भी पुलिस छापा मार चुकी है, पर धार्मिक मठाधीशों की तरह
ही इस अधार्मिक मठाधीश के भी उच्च्स्तरीय राजनैतिक संबंध बताए जाते हैं,
जिससे यह कार्रवाई से बचा हुआ है।अब जर्मन पत्नी का चेहरा दिखा कर विदेशियों को आसानी से लुभा लेता है।
वृन्दावन में भी योग सेंटर चलाता है और फीस यूरो व डॉलर के रूप में वसूल करता है। विदेशियों को और अधिक प्रभावित करने के लिए बीस-पच्चीस बच्चे
जमा कर एक स्कूल खोल रखा है, जिसके नाम पर दोनों भाई मिल कर खुद की जमकर
ब्रांडिंग करते हैं।खैर, मनुष्यों में शातिर किस्म के ऐसे लोग हर क्षेत्र में मिल जायेंगे।
धर्म, अधर्म, राजनीति, व्यापार, पत्रकारिता, देशभक्ति सहित कोई भी
क्षेत्र क्यूँ न हो, इनके लिए हर क्षेत्र पैसे पैदा करने का एक माध्यम भर
है और ऐसे लोगों की संख्या बढ़ने के कारण ही हर क्षेत्र में परिणाम
अपेक्षा के विपरीत आने लगे हैं, आवश्यकता ऐसे लोगों से ही सतर्क रहने की
है। यह सब उदाहरण स्वरूप देना इसलिए आवश्यक था कि आस्तिकता से तंग आ चुके
लोग यह समझ सकें कि नास्तिकता के भी हाल कोई बहुत अच्छे नहीं हैं। जैसे
लोग आस्तिकता के नाम पर लोगों को मूर्ख बना रहे हैं, वैसे ही नास्तिकता
के नाम पर भी मूर्ख बनाने वालों की कमी नहीं हैं, इसलिए धर्म को स्वयं
जानें। अब बात नास्तिकता की करते हैं, तो सनातनी नास्तिक विचारधारा को निरस्त
नहीं करते, पर नास्तिक लोग आस्तिक विचारधारा को नहीं मानते, इसलिए सवाल
उठता है कि जो विचार, जो सिद्धान्त, जो वस्तु, जो स्वरूप कल्पना में ही
नहीं है, उस पर चर्चा कैसे की जा सकती है, अर्थात जब नास्तिकों का मानना
है कि ईश्वर है ही नहीं और जब एक विचार है ही नहीं, तो उसे निरस्त कैसे
किया जा सकता है? निरस्त करने का आशय है कि ईश्वर है, जिसे सिर्फ नास्तिक
नहीं मानते हैं, पर मूल सवाल आस्तिकता या नास्तिकता नहीं हैं। मूल सवाल
है धर्म, इसलिए प्रश्न यह है कि ऐसा कौन सा सदकर्म है, जिसे सिर्फ
नास्तिक लोग ही कर सकते हैं, आस्तिक नहीं कर सकते। धर्म का सीधा संबंध
कर्म से है, अर्थात जो धार्मिक है, वो सदकर्म भी करता होगा और सदकर्म
करता है, वह धार्मिक भी होगा। धार्मिक होने का अर्थ माथे पर तिलक लगाना,
कोई विशेष वस्त्र पहनना अथवा पूजा पद्धति से बिल्कुल नहीं है, इस सब से
धर्म को जोड़ दिया गया है, जिसे पाखंड कहते हैं। सनातनी व्यवस्था में विवाद, आलोचना और समस्या की मूल जड़ धर्म नहीं है। बहुत सी चीजों को धर्म से जोड़ दिया गया है, उन चीजों पर विवाद है, इसलिए विवाद धर्म से जुड़ जाता है। धर्म आदर्श नागरिक बनाता है, तो आदर्श बनाने पर क्या विवाद हो सकता है। असलियत में हिंदुओं के पास दो तरह का साहित्य है। एक को श्रुति कहते हैं, जिसके बारे में मान्यता है कि यह देववाणी है,
जिसे सुन कर ऋषियों ने मानव कल्याण के लिए लिपिबद्ध किया। दूसरा साहित्य
है स्मृति, इसके बारे में मान्यता है कि एक-दूसरे की स्मृति से आगे बढ़ा
और स्मृति के आधार पर ही लिपिबद्ध कर दिया गया। विवाद और आलोचना के
केंद्र में स्मृति वाला साहित्य ही है, पर यहाँ विशेष ध्यान देने की बात यह है कि यह साहित्य धर्म नहीं है। देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार नियम-कानून परिवर्तित होते रहते हैं, इस साहित्य को वैसे ही मानना चाहिए। कुल मिला कर व्यक्ति जिस देश की सीमा में रहता है, उस देश के नियम-कानून मानना भी धर्म ही है। विवाद और आलोचना पर ध्यान देने वाला धार्मिक हो ही नहीं सकता। लौकिक और पार-लौकिक उन्नति कराने वाला धर्म और करने वाला धार्मिक है। धर्म के विषय में प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन की एक सटीक टिप्पणी है कि विज्ञान मनुष्य को अपरिमित शक्ति तो दे सकता है, पर वह
उसकी बुद्धि को नियंत्रित करने की साम‌र्थ्य नहीं प्रदान कर सकता। मनुष्य
की बुद्धि को नियंत्रित करने और उसे सही दिशा में प्रयुक्त करने की शक्ति
तो धर्म ही दे सकता है।
वृन्दावन में भी योग सेंटर चलाता है और फीस यूरो व डॉलर के रूप में वसूल करता है। विदेशियों को और अधिक प्रभावित करने के लिए बीस-पच्चीस बच्चे
जमा कर एक स्कूल खोल रखा हैजिसके नाम पर दोनों भाई मिल कर खुद की जमकर
ब्रांडिंग करते हैं।खैरमनुष्यों में शातिर किस्म के ऐसे लोग हर क्षेत्र में मिल जायेंगे।
धर्मअधर्मराजनीतिव्यापारपत्रकारितादेशभक्ति सहित कोई भी
क्षेत्र क्यूँ न होइनके लिए हर क्षेत्र पैसे पैदा करने का एक माध्यम भर
है और ऐसे लोगों की संख्या बढ़ने के कारण ही हर क्षेत्र में परिणाम
अपेक्षा के विपरीत आने लगे हैंआवश्यकता ऐसे लोगों से ही सतर्क रहने की
है। यह सब उदाहरण स्वरूप देना इसलिए आवश्यक था कि आस्तिकता से तंग आ चुके
लोग यह समझ सकें कि नास्तिकता के भी हाल कोई बहुत अच्छे नहीं हैं। जैसे
लोग आस्तिकता के नाम पर लोगों को मूर्ख बना रहे हैंवैसे ही नास्तिकता
के नाम पर भी मूर्ख बनाने वालों की कमी नहीं हैंइसलिए धर्म को स्वयं
जानें। अब बात नास्तिकता की करते हैंतो सनातनी नास्तिक विचारधारा को निरस्त
नहीं करतेपर नास्तिक लोग आस्तिक विचारधारा को नहीं मानतेइसलिए सवाल
उठता है कि जो विचारजो सिद्धान्तजो वस्तुजो स्वरूप कल्पना में ही
नहीं हैउस पर चर्चा कैसे की जा सकती हैअर्थात जब नास्तिकों का मानना
है कि ईश्वर है ही नहीं और जब एक विचार है ही नहींतो उसे निरस्त कैसे
किया जा सकता हैनिरस्त करने का आशय है कि ईश्वर हैजिसे सिर्फ नास्तिक
नहीं मानते हैंपर मूल सवाल आस्तिकता या नास्तिकता नहीं हैं। मूल सवाल
है धर्मइसलिए प्रश्न यह है कि ऐसा कौन सा सदकर्म हैजिसे सिर्फ
नास्तिक लोग ही कर सकते हैंआस्तिक नहीं कर सकते। धर्म का सीधा संबंध
कर्म से हैअर्थात जो धार्मिक हैवो सदकर्म भी करता होगा और सदकर्म
करता हैवह धार्मिक भी होगा। धार्मिक होने का अर्थ माथे पर तिलक लगाना,
कोई विशेष वस्त्र पहनना अथवा पूजा पद्धति से बिल्कुल नहीं हैइस सब से
धर्म को जोड़ दिया गया हैजिसे पाखंड कहते हैं। सनातनी व्यवस्था में विवादआलोचना और समस्या की मूल जड़ धर्म नहीं है। बहुत सी चीजों को धर्म से जोड़ दिया गया हैउन चीजों पर विवाद हैइसलिए विवाद धर्म से जुड़ जाता है। धर्म आदर्श नागरिक बनाता हैतो आदर्श बनाने पर क्या विवाद हो सकता है। असलियत में हिंदुओं के पास दो तरह का साहित्य है। एक को श्रुति कहते हैंजिसके बारे में मान्यता है कि यह देववाणी है,
जिसे सुन कर ऋषियों ने मानव कल्याण के लिए लिपिबद्ध किया। दूसरा साहित्य
है स्मृतिइसके बारे में मान्यता है कि एक-दूसरे की स्मृति से आगे बढ़ा
और स्मृति के आधार पर ही लिपिबद्ध कर दिया गया। विवाद और आलोचना के
केंद्र में स्मृति वाला साहित्य ही हैपर यहाँ विशेष ध्यान देने की बात यह है कि यह साहित्य धर्म नहीं है। देशकाल और परिस्थितियों के अनुसार नियम-कानून परिवर्तित होते रहते हैंइस साहित्य को वैसे ही मानना चाहिए। कुल मिला कर व्यक्ति जिस देश की सीमा में रहता हैउस देश के नियम-कानून मानना भी धर्म ही है। विवाद और आलोचना पर ध्यान देने वाला धार्मिक हो ही नहीं सकता। लौकिक और पार-लौकिक उन्नति कराने वाला धर्म और करने वाला धार्मिक है। धर्म के विषय में प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन की एक सटीक टिप्पणी है कि “विज्ञान मनुष्य को अपरिमित शक्ति तो दे सकता हैपर वह
उसकी बुद्धि को नियंत्रित करने की साम‌र्थ्य नहीं प्रदान कर सकता। मनुष्य
की बुद्धि को नियंत्रित करने और उसे सही दिशा में प्रयुक्त करने की शक्ति
तो धर्म ही दे सकता है।



18.6.14

“वनिता-चेतना” ब्लागके तीसरे वर्ष में प्रवेश किया


  महिला बाल कल्याण गतिविधियों की सूचनाएं न्यू-मीडिया में प्रसारित प्रकाशित करना कराना इस कारण आवश्यक हो गया है ताकि विकास के लिये उठाए गए क़दम की जानकारी नेपथ्य में नचली जावे . 
विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे समयानुकूलित साईंस का दर्ज़ा दिया जा सकता है. विकास की गतिविधियों में संलग्न रहना  बिना नए प्रयोगों के कठिन हो जाता है.प्रयोंगों का प्रकाशन एवम उनसे प्राप्त फ़ीडबैक दस्तावेजीकरण जैसी आवश्यकताओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता . साथ ही नक़ारात्मक समाचारों का दैनंदिन प्रकाशन जो बहुधा व्यक्तिगत
कारणों से संपृक्त होते हैं .. विकास गतिविधियों को   को
निरुत्साहित करतें हैं....
पी आर ओ श्री अतुल खरे ने कहा विकास-सूचनाएं अपेक्षाकृत अधिक आवश्यक हैं  मीडिया को चाहिये कि उत्साही टीमों को चीयर अप करे...!
 मुझेबस मुझे श्री खरे की उक्ति से  अपने लिये रास्ता मिल गया ... और विकास वार्ता के बाद अपने विभाग के विकास
समाचारों के लिये वनिता-चेतना के साथ मिल कर छोटा सा प्रयोग कर दिया वनिता-चेतना
ब्लाग के रूप में.. डा. निशा जैन एवम स्नेही आशुतोष केवलिया का आभारी हूं..
क्षमा प्रार्थना के साथ कहना ज़रूरी है कि विभागीय
अधिकारी अपने कार्य के वेब पर  प्रकाशन को
लेकर उत्साही नहीं हैं.. आशा करता हूं कि वे आफ़िसियली ब्लाग बनाएं अगर मेरी मदद की
ज़रूरत महसूस करतें हैं तो अवश्य मुझे मेल करें. साथ ही समाचार सूचनाएं एवम सृजन
मुझे भेज दें .. मुझे केवल तीन या चार घंटे नींद आती है.. शासकीय कार्य के बाद
अवश्य देर रात तक लेखकीय धर्म निभाता हूं... आप जैसे भी प्रकाशनार्थ सामग्री अवश्य
भेजिये.. शब्दों में पिरोना मुझ पर छोड़िये ........
उम्मीदों के साथ आपका कृपा पात्र
गिरीश बिल्लोरे
बाल विकास परियोजना अधिकारी
डिंडोरी, म.प्र.
फ़ोन :- 09479756905



17.6.14

देश का पहला वन स्टाप क्राइसिस सेंटर गौरवी जयप्रकाश अस्पताल भोपाल उदघाटित



मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि आर्थिक और राजनैतिक सशक्तिकरण के माध्यम से महिला सशक्तिकरण किया जा सकता है। मध्यप्रदेश इस दिशा में नेतृत्व करेगा। उन्होंने समाज से महिला सशक्तिकरण के लिये साथ देने का आव्हान किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान आज यहाँ महिला सम्मान एवं संरक्षण के गौरवी अभियान के शुभारंभ समारोह में कही। समारोह की अध्यक्षता केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने की। कार्यक्रम में प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता आमिर खान विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि बेटियों के प्रति भेदभाव मानसिकता का दोष है। इसे बदलने के लिये सामूहिक प्रयास की जरूरत है। समाज में महिलाओं के प्रति नजरिया बदलने का अभियान चलाना होगा। गौरवी अभियान इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मध्यप्रदेश में बेटियों को वरदान बनाने के लिये बेटी बचाओ अभियान शुरू किया गया। मुख्यमंत्री कन्यादान और लाड़ली लक्ष्मी जैसी अभिनव योजनाएँ बनाई गई जिन्हें अन्य प्रदेशों ने भी अपनाया। प्रदेश में स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये 50 प्रतिशत आरक्षण किया गया। उन्होंने कहा कि घरेलू हिंसा को रोकने के लिये समाज को आगे आना होगा। प्रदेश में गौरवी अभियान के तहत वन स्टाप क्राइसिस रिज्यूलेशन सेंटर खोले जायेंगे। मध्यप्रदेश में महिला अपराध के मामले में 15 दिन के भीतर जाँच के बाद चालान प्रस्तुत करने की व्यवस्था की गई है। इस तरह के प्रकरणों में अपराधियों को समय-सीमा में कठोर सजा दिलाई गई है।



डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि मध्यप्रदेश में गौरवी अभियान शुरू कर पूरे देश के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई अनूठी योजनाएँ शुरू की हैं जिन्हें देश में अपनाया जा सकता है। जिस प्रकार पोलियो को समाप्त किया गया है। उसी प्रकार खसरा, प्याज और कुष्ठ रोग भी समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार मध्यप्रदेश को पूरा सहयोग देगी। महिला सुरक्षा को सुदृढ़ करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। महिलाओं के सम्मान की रक्षा एक संवेदनशील विषय है। महिला सुरक्षा और संरक्षण के इस अभियान में सभी विभागों की भूमिका रहे। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में स्वास्थ्य को एक बड़ा जन आंदोलन बनाने की जरूरत है। मध्यप्रदेश इस दिशा में पहल करें। उन्होंने कहा कि भोपाल में बन रहे एम्स को एम्स दिल्ली के समकक्ष बनाया जायेगा। इसे समय-सीमा में पूरा किया जायेगा। उन्होंने कहा कि भोपाल का एम्स ऐसा अस्पताल है जहाँ एक पूरा परिसर आयुष को समर्पित है। सभी चिकित्सा पद्धतियों को एक साथ रखा गया है।
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि पूर्ववर्ती केंद्रीय सरकार के असहयोग के चलते मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को निचले स्तर तक ले जाने में बाधाएँ आती थीं, अब यह स्थिति नहीं रहेगी। उन्होंने गौरवी अभियान को अनुपम पहल बताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री की पहल और विशेष रुचि बेटियों को बचाने और उनकी गरिमा की रक्षा करने के लिये प्रदेश में कई योजनाएं चलायी गई हैं। इस दिशा में रचनात्मक कार्य करने वाले वे पहले मुख्यमंत्री हैं। श्री मिश्रा ने कहा कि महिला हिंसा, उत्पीड़न और शोषण के प्रकरण में मध्यप्रदेश के सख्त रवैये के कारण अपराधियों को तत्काल दंडित किया गया है। स्वास्थ्य क्षेत्र में उपलब्धियों को बताते हुए कहा कि प्रतिदिन 4 लाख रोगी को 450 प्रकार की दवाइयाँ नि:शुल्क मिलती हैं। आज तक कोई गंभीर शिकायत नहीँ हुई। गंभीर मरीजों को आर्थिक सहायता देने में भी प्रदेश आगे है। यहाँ हर वर्ष 100 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता मरीज को मिलती है। अस्पतालों में भर्ती करीब 90 हजार मरीज को नाश्ता एवं भोजन मिलता है।
महिला-बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश में महिलाओं के सम्मान और उनका गौरव बढ़ाने की दिशा में अनूठी पहल हुई है। उन्होंने कहा कि महिला हिंसा रोकने संबंधी केंद्रीय कानून पारित होने के तत्काल बाद मध्यप्रदेश ने ऊषा किरण योजना लागू कर पहल की थी। उन्होंने कहा कि महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने के लिये अशासकीय संस्थाओं और समाज के हर वर्ग की भागीदारी जरूरी है । 
प्रसिद्ध सिने अभिनेता-निदेशक आमिर खान अपने भाषण में कहा कि सत्यमेव जयते कार्यक्रम में पीड़ित महिलाओं को एक ही स्थान पर स्वास्थ्य, मनोचिकित्सीय, कानूनी और पुलिस सहायता देने का सुझाव आया था। इस विचार को एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने समर्थन दिया था। इस पर अमल करने में मध्यप्रदेश ने सबसे पहले पहल की, इसके लिये मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडलीय टीम बधाई की पात्र है। श्री आमिर खान ने कहा कि वे वन स्टॉप क्राइसिस रेजोल्यूशन सेंटर में पदस्थ होने वाले चिकित्सकों, कानूनी विशेषज्ञों, परामर्शदाताओं एवं अमले के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेना चाहेंगे और उनसे संवाद करेंगे। उन्होंने कहा कि अपराधियों के विरुद्ध अतिशीघ्र और पक्की कार्रवाई कर उन्हें दंड देने से ही महिलाओं के प्रति न्याय होगा और समाज में सुरक्षा का भाव आयेगा। उन्होंने कहा कि महिलाओं और बेटियों को भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक रूप से ताकत देना होगी। इसके अलावा बेटों को सही शिक्षा देने की शुरूआत करना होगी ताकि वे बहनों और महिलाओं का सम्मान और आदर करना सीखें। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि मध्यप्रदेश की यह पहल सफल होगी और इसमें लोगों का ज्यादा से ज्यादा सहयोग मिलेगा।
प्रमुख सचिव स्वास्थ्य श्री प्रवीण कृष्ण ने कहा कि गौरवी अभियान स्वास्थ्य, गृह और महिला-बाल विकास विभाग की समन्वित पहल है। देश का पहला वन स्टाप क्राइसिस सेंटर जयप्रकाश अस्पताल भोपाल में स्थापित हो रहा है। इसका संचालन स्वास्थ्य विभाग एवं एक्शन एड संस्था द्वारा किया जायेगा। इस अवसर पर स्वास्थ्य राज्य मंत्री श्री शरद जैन, भोपाल के सांसद श्री आलोक संजर, प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा श्री अजय तिर्की, स्वास्थ्य आयुक्त श्री पंकज अग्रवाल, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव श्री लव वर्मा, संचालक स्वास्थ्य श्री राजीव दुबे, श्री फेज अहमद किदवई, संचालक राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन एवं वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

[भोपाल 16 जून 2014 समाचार स्रोत : जनसंपर्क ]

16.6.14

गृहणी श्रीमति विधी जैन के कोशिश से आयकर विभाग में हरक़त

        भारतीय भाषाओं के सरकारी एवम लोक कल्याणकारी , व्यावसायिक संस्थानों द्वारा अपनाने में जो  समस्याएं आ रही थीं वो कम्प्यूटर अनुप्रयोग से संबंधित थीं.  यूनिकोड की मदद से अब कोई भी हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं को प्रयोग में लाने से इंकार करे तो जानिये कि संस्थान या तो तकनीकि के अनुप्रयोग को अपनाने से परहेज कर रहा है अथवा उसे भारतीय भाषाओं से सरोकार नहीं रखना है. 
           भारतीय भाषाओं की उपेक्षा अर्थात उनके व्यवसायिक अनुप्रयोग के अभाव में गूगल का व्यापक समर्थन न मिल पाना भी भाषाई सर्वव्यापीकरण के लिये बाधक हो रहा है. ये वही देश है जहां का युवा विश्व को सर्वाधिक तकनीकी मदद दे रहा है. किंतु स्वदेशी भाव नहीं हैं.. न ही नियंताओं में न ही समाज में और न ही देश के ( निर्णायकों में ? ) बदलाव से उम्मीद  है कि इस दिशा में भी सोचा जावे. वैसे ये एक नीतिगत मसला है पर अगर हिंदी एवम अन्य भारतीय भाषाई महत्व को प्राथमिकता न दी गई तो बेतरतीब विकास ही होगा. आपको आने वाले समय में केवल अंग्रेज़ियत के और कुछ नज़र नहीं आने वाला है. हम विदेशी भाषाओं के विरुद्ध क़दापि नहीं हैं किंतु भारतीय भाषाओं को ताबूत में जाते देखने के भी पक्षधर नहीं. भारत का दुर्भाग्य ये ही है यहां रोटी के लिये अंग्रेज़ी, कानूनी मदद के लिये अंग्रेजी, चिकित्सा- अभियांत्रिकी , यानी सब के लिये अंग्रेज़ी सर्वोपरि है. 
    यानी स्वतंत्रता के बाद भारतीय भाषाओं के विकास तथा उनके प्रशासनिक क़ानूनी, चिकित्सकीय, व्यवसायिक अनुप्रयोग के लिये एक संपृक्त कोशिशें की हीं नहीं गईं. विश्वविद्यालयों विद्वतजनों से क्षमा याचना के साथ हम उनको उनकी भूलों की तरफ़ ले जाना चाहेंगे. कि उन्हौंने भारतीय भाषाई विकास को तरज़ीह नहीं दी यहां तक कि सर्वाधिक उपयोग में लाई जाने वाली हिंदी की उपेक्षा होते देखा वरना क़ानून चिकित्सा, प्रशासन, व्यवसाय, अर्थात सभी  भी विषयों की भाषा हिंदी होती.  
मुझे प्राप्त एक ई संदेश में हिंदी की प्रतिष्ठा के लिये संघर्षरत श्री मोतीलाल गुप्ता ने आज एक मेल किया  में एक सफ़ल कोशिश का विवरण दर्ज़ है. विवरण अनुसार मुम्बई निवासी एक गृहणी श्रीमति विधि जैन  ने एक आवेदन लिख कर आयकर विभाग को हिंदी के अनुप्रयोग को बढ़ावा देने की अपेक्षा विभाग से की गई. 
श्रीमति विधि जैन
मुम्बई निवासी श्रीमति विधि जैन की कोशिश को अब आकार मिल सकता है . उनके आवेदन पर  राजस्व विभाग, केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के उपनिदेशक (राजभाषा) श्री आर.एन.त्रिपाठी, ने  समुचित कार्यवाही करने के निर्देश आयकर निदेशालय को दे दिए हैं।
                  अब द्विभाषी पैन कार्ड की सम्भावना प्रबल हो गई है. 


ऑनलाइन आयकर विवरणी भरने और जमा करने की सुविधा केवल अंग्रेजी में होने से आम जनता परेशान  होती रहती है और अब तक आयकर सम्बन्धी सारा काम सलाहकारों के भरोसे होता है, उसे पता ही नहीं चलता कि सलाहकार क्या कर रहा है? श्रीमती जैन ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री से मांग की है कि आयकर सम्बन्धी सभी ऑनलाइन सेवाएँ अविलम्ब राजभाषा हिन्दी में और आगे देश की सभी प्रमुख भाषाओं में उपलब्ध करवाने का अनुरोध किया है.
उन्होंने बताया कि उनका अगला लक्ष्य ऑनलाइन रेल टिकट बुक करने की सुविधा 10 प्रमुख  भारतीय भाषाओं में उपलब्ध करवाने के लिए अभियान चलाना है ताकि आम यात्रा बिना परेशानी के इस सेवा का लाभ उठा सके.


              

15.6.14

जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही.

बरगद पीपल नीम सरीखेतेज़ धूप में बाबूजी
मां” के बाद नज़र आते हैं , “मां” ही जैसे बाबूजी ..!!
अल्ल सुबह सबसे पहले , जागे होते बाबूजी-
पौधों से बातें करते पाए  जाते बाबूजी ...!!
अखबारों में जाने क्या बांचा करते रहते हैं
दुनिया भर की बातों से जुड़े हुए हैं बाबूजी ..!!
साल चौरासी बीत गए जाने  क्या क्या देखा है
बातचीत न कर पाएं हम  घबरा जाते बाबूजी..!!
जाने कितनी पीढ़ा भोगी होगी जीवन में
उसे भूल अक्सर मित्रों संग  मुस्काते हैं बाबूजी ..!!
चौकस रहती आंखें उनकी,किसने क्या क्या की गलती
पहले डांटा करते थे वेअब समझाते हैं बाबूजी...!!
दौर पुराना याद है उनको, सैतालिस की रातों का
देश हुआ आज़ाद जिस दिन, वो पल था सौगातों का
उपरैनगंज की कुलियों में हो खुश  घूमे हैं बाबूजी ...
 खेल कबड्डी हाकी कुश्ती, चैस वैस सब उनके थे –
शिब्बू दादा बोले भैया- बहुत तेज़ थे बाबूजी .

           आज़ साथ हैं हम सबके वो हम सब का धन मान वही
जिसके बाबूजी वृद्धाश्रम में.. है सबसे बेईमान वही.
लेकर आओ, झटपट आके पूजो पिता प्रभू ही हैं
समझाते इक नवल युगल को, वो थे मेरे बाबूजी.!!    

“भारत में शिक्षा : एक चिंतन "



विश्व  के सापेक्ष हमारा अक्षर ज्ञान 
 कमतर है ऐसा कथन हमारी सामाजिक व्यवस्था के  माथे पर लगा सवाल है जिसका हल तलाशना न केवल अब ज़रूरी है वरन समग्र विकास के लिये आवश्यक है कि  शिक्षा को अब अक्षर ग्यान से ऊपर उठाना ही होगा .
“भारत में शिक्षा” को केंद्रीय विषय बना कर अगर आप विचार करें तो पाएंगे कि भारत में शिक्षा एक अज़ीबोगरीब स्थिति या कहूं कि आकार ले चुकी है. जहां लोग अपने बच्चों के लिये शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता वाले पायदान पर रख रहें हैं वहीं दूसरी ओर शिक्षा के लिये उन लोगों परिवारों की कमी नहीं जो आज़ भी इस तरह के मिथक से बाहर नहीं आ पाए हैं जिसमें कहा है-“पढ़ै लिखै कछु न होय : हल जोते कुटिया भर होय ” ऐसी कुठिया भर होय की कल्पना उन दिनों की है जब कि  किसान के पास विकल्पों की कमी थी . हाथ में केवल हल-बैल थे, पारिवारिक विरासत वाली भूमियां थीं, आकाश  से बरसात की उम्मीदें थीं. गांव था जहां शिक्षा का मंदिर न था, शिक्षा की गारंटी न देती थी सरकार, संचार संसाधन न थे, अब सब कुछ है तो   क्यों स्कूल न भेजने वाली इस जनोक्ति जिसमें कहा है - ल जोते कुटिया भर होय को जन मानस  बाहर का रास्ता नहीं दिखाता . 
 वास्तव में भारतीय मानस अपनी विचारधारा न बदलने की आदत से मज़बूर है. उसे पूर्वज़ों का सिखाया सदा अच्छा लगा है .. परंतु परिवर्तित होते समय के साथ ग्रामीण भारत को अपनी सोच बदली है.. उसे मालूम कराना होगा कि अन्न की चिंता उसे कम से कम शिक्षा स्वास्थ्य के संदर्भों में नहीं करनी चाहिये.  भारत एक ऐसा देश बन चुका है जो खाने की गारंटी दे रहा है अपने सारे नागरिकों कों.    तो आम नागरिक को चाहिये कि शिक्षा जिसका अधिकार है उसे हासिल हो . कोई भी बच्चा स्कूल न जाने वाला न रहे. सड़क पर भीख न मांगी जावे. बूट पालिश न करें बच्चे.. फ़िर कोई विदेशी फ़िल्मकार "स्लम डाग " कहकर भारतीय बच्चों का अपमान न करे . 
स्रोत : विकी पीडिया 
स्रोत : विकी पीडिया 


केंद्र और राज्यों की सरकारें जिस ज़द्दोज़हद में हैं वो है शिक्षा के अधिकार को ठीक तरीके से लागू कराना . अब तो भारत सरकार ने निराश्रित यानी माता पिता विहीन बच्चों के लिये "फ़ास्टर केयर " नाम से एक ऐसी कारगर योजना राज्य सरकारों के ज़रिये लागू करने की कोशिश कर दी है जिससे माता-पिता विहीन बच्चों को प्रतिमाह रु. 750/- उनके पालकों को दिये जावेगें. इस की राशि अब दुगने से ज़्यादा हो जाने की उम्मीद है. फ़िर राज्य सरकारें भी अपने अपने वित्तीय प्रबंधन से धन मुहैया करा रहीं हैं. तो फ़िर सवाल उठता है कि आम नागरिक इससे बेखबर हो क्यों शिक्षा के महत्व को समझ नहीं पा रहे हैं. गहरी पड़ताल करने पर पता चलता है कि  सामाजिक पारिवारिक प्राथमिकताएं शिक्षा को पीछे ढकेलतीं हैं. उसमें कहीं न कहीं मान्यताएं भी शामिल हैं.  विकी पीडिया पर प्रकाशित NFHS 2007 के आंकड़े यद्यपि पुराने हैं पर उनका ज़िक्र इस कारण ज़रूरी है ताकि यह समझा जा सके कि अब स्कूल के खिलाफ सोच का अंत शुरू हो रहा है. वर्त्तमान में स्कूल के प्रति सकारात्मक  समझ में इज़ाफ़ा हुआ है.  

            
                                        ताज़ा  स्थिति देखिये 

http://iipsenvis.nic.in से साभार
लिंक "भारत में साक्षरता दर: 1951-2011"

  भारत में शिक्षा के विकास के लिये ग्राम स्तर तक किये जा रहे प्रयासों को अनदेखा करना भी गलत है. देश की आंगनवाड़ियां अब फ़ीडर यूनिट के मानिंद कार्य करने लगीं हैं. प्रमाण स्वरूप  आदिवासी क्षेत्र की एक आंगनवाड़ी का दृश्य देखा जा सकता है =>  https://www.facebook.com/photo.php?v=651301521612296&l=5268434772482404739
(Post by Girish  Mukul )
अब अगर देश के सम्पूर्ण एवम सर्वांगीण विकास की बात करनी है तो हमें इन बिंदुओं पर काम, करना ही होगा

  1. सामाजिक एवम पारिवारिक प्राथमिकता के क्रम में शिक्षा को सबसे ऊपर रखने के प्रयास तेज़ करना
  2. शिक्षा के अधिकार को प्रबलता से लागू करना कराना,
  3. फ़ीडर यूनिट्स को मज़बूत बनाना
  4. निज़ी शिक्षण संस्थानों को व्यवसायिकता से मुक्त कराना 
  5. व्यवसायिक शिक्षा के पाठ्यक्रम माध्यमिक स्तर के लिये तैयार कराना
  6. उच्चतर माध्यमिक शिक्षा को शिक्षा के अधिकार में शामिल करना        

9.6.14

कुपोषण से निज़ात पाने सोच बदलो ..

केवल सुव्यवस्था न
संदेश भी तो है 
बच्चों की भाषा बोलना और
समझना ज़रूरी है 
                    मध्य-प्रदेश में कुपोषण से निज़ात पाने एक ऐसी अनोखी कार्ययोजना सामने आई है जिसने एक रास्ता दिखा दिया कि कुपोषण निवारण के लिये परिवारों को पोषण के महत्व, उसके तरीक़ों कि किस तरह से कुपोषण का शमन किया जा सकता है.  बाल विकास सेवाओं के मिशन मोड में आने के बाद मध्य-प्रदेश की सरकार ने जिस तरह से मार्च महीने की पहली से बारहवीं तारीख तक स्नेह-शिविरों का आयोजन किया उससे चौंकाने वाले परिणाम सामने आए. विभागीय दावों के अनुरूप 01 मार्च 2012 से 12 मार्च 2012 तक अत्यधिक कम वज़न वाले बच्चों के वज़न में 200 ग्राम का न्यूनतम इज़ाफ़ा होना था किंतु 40% बच्चों का इस अवधि में वज़न  उससे कहीं अधिक यानी 400 ग्राम तक का वज़न बढ़ा जो एक चौंकने वाला परिणाम है. . व्यवस्था के खिलाफ़ आदतन वाकविलास करते रहने वाले लोग अथवा नैगेटिव सोच वालों के लिये यह कहानी आवश्यक है ....
हां, इसी घर में कम वज़न
वाला बच्चा रहता है.
       कुपोषण के संदर्भ में आठ बरस पूर्व की घटना का स्मरण करना चाहूंगा कि  पूर्व मेरे एक पत्रकार जी ने मुझ पर सवालों की बौछार कर दी उनने अपने बेहतर किताबी  एवम खबरिया मालूमात के आधार पर मुझे कठघरे में खड़ा करने की  कोशिश की . मेरे पास उनके सवालों का ज़वाब न था. मध्यप्रदेश के जबलपुर में तैनाती थी मेरी लगभग 28 वार्डों की मलिन बस्तियों में चल रहे मात्र 215 आंगनवाड़ी केंद्रों के ज़रिये कुपोषण से जूझना  हर केंद्र को एक हज़ार के आसपास की आबादी देखनी होती थी .  रिक्शे वालों, मज़दूरों के घरों में ही नहीं निम्न एवं सीमांत मध्य-वर्ग के परिवारों में बाल-पोषण आदतों के प्रति उदासीनता तब ज़ोरों पर थी. साफ़ पानी, खानपान से ज़्यादा धन का अनावश्यक कार्यों में प्रयोग करना शहरी एवम ग्रामीण बस्तियों में समान रूप से  मौज़ूद था भी और है भी . पत्रकार भाई को खुला न्यौता दिया कि आप- मेरा पार्ट देखने किसी भी बस्ती में चलें चुनौती भी है कि मेरा पार्ट उतना बुरा न होगा जितना कि आप समझ रहें हैं.. शीतलामाई क्षेत्र को मित्र ने स्वयं चुना . नियत तिथि और समय पर हम मौज़ूद थे हमने साथ साथ घर घर का दौरा किया . सवाल पूछे गए अगली सुबह के अखबार में एक बड़ी स्पेशल रिपोर्ट “ उनकी प्राथमिकता शराब है बच्चे नहीं...!” शीर्षक से छपी . निष्कर्ष था अपनी आमदनी  एक रुपए का 15% हिस्सा भी बच्चों पर खर्च नहीं करते लोग. लोगों की स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा को दोयम मानतें हैं. प्रसव के दौरान  आयरन गोलियां न लेना, उत्सव प्रवास शराब पर अधिक धन व्यय करना कुपोषण का कारण साबित हुआ . साबित ये भी हुआ कि खान पान की आदतों में भ्रांतियां एवम खानपान के तरीकों में अनियमितता अटी पड़ीं हैं. बच्चे बार बार बीमार होते हैं.. पर पानी अनुपचारित ही पिलाया जाता है.  
छै बरस पहले  मीडिया ने कुपोषण जनित बाल एवम शिशु मृत्यु पर आधारित समाचारों को प्रकाशित किया उच्च न्यायालय जबलपुर पीठ ने भी इस संबंध में सरकार से जवाब तलब किया फलत: स्वास्थ्य एवम बाल विकास सेवा विभाग ने अपनी पड़ताल तेज़ की .
स्थल भ्रमणों से स्पष्ट हुआ कि लोग बच्चों एवम उनकी माताओं के पोषण एवम स्वास्थ्य को लेकर अत्यधिक उदासीन थे .
 इस तथ्य की पुष्टि के लिये विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त संचालक श्री हरीश अग्रवाल के खालवा विज़िट के घटना क्रम का उल्लेख आवश्यक हो गया है जिनका उल्लेख करते हुए वे हम सबको बैठकों कहा करते  थे कि “अतिरिक्त आहार खिलाना    खालवा के लोगों ने तब उनको बताया था कि – “हमारे बच्चे फ़िर पैदा हो सकते हैं किंतु अगर हमने बैल खो दिये तो हमारा पालन हार कौन होगा. हम दूसरा बैल कैसे खरीदेंगे हम ग़रीब हैं.. हम आपके किसी भी केंद्र में न बच्चे को भेज सकते न ही हमारे परिवार से कोई जा सकता”
असामयिक मौत की कगार पर बैठे बच्चे के पिता ने कहा – कि हम आपको समय दे ही नहीं सकते हमारी प्राथमिकता आय अर्जित करना है .  
  सरपंच का कथन तो और भी विष्मयकारी लगा उनको – “आप चालीस बच्चों की बात कर रहें हैं पिछले साल तो अस्सी बच्चे मरे थे. ”.. इन उद्दहरणों का हवाला देते हुए श्री अग्रवाल कहा करते थे – कि सामुदायिक सोच को बदलो संकल्प लो तो सही सुविधा देने के साथ सोच बदलने संकल्प लेना ही होगा.  
    इन सभी परिस्थियों पर न केवल भारत सरकार की नज़र है. बल्कि मध्यप्रदेश सरकार के बाल विकास संचालनालय की सूक्ष्म अनवेषी अधिकारी श्रीमति नीलम शम्मी राव ने सुपोषण स्नेह शिविरों  की छै माही कार्ययोजना तैयार की है. छै माह तक चलने इस कार्यक्रम की शुरुआत होती है स्नेह शिविर से. जो चार या उससे अधिक अति कम वज़न के बच्चों के लिये एक ऐसे स्थान पर लगाए जाते हैं हैं जहां परिस्थितियां शिविर लगाने अनुकूल हो.      
            बच्चों को  उनकी माताओं के साथ बुलवाया जाता है. प्रात: दस बजे से शाम पांच बजे तक बच्चों के तीन बार आहार दिया जाता है. दिन भर महिलाओं को मनोरंजक गतिविधियों के साथ साथ पोषण शिक्षा दी जाती है. बच्चों के बढ़ते हुए वज़न को देख कर और अधिक उत्साहित होती हैं महिलाएं.
प्रमुख सचिव महिला बाल विकास श्री बी आर नायडू  आशांवित ही नहीं बल्कि परिणामों से खुश हैं पर उनकी चिंता ये है कि – अगले छै माह तक सिलसिला जारी रहे तो  
स्नेह शिविर के अच्छे परिणाम देने वाले जिले डिंडोरी और कटनी में क्या हुआ

मध्य-प्रदेश का आखिरी जिला डिंडोरी छत्तीसगढ़ के एकदम नज़दीक है. आर्थिक गतिविधियों का अभाव यहां के लोगों को "आर्थिक-प्रवास" के लिये बाहर भेजता है घर के घर खाली हो जाते हैं. म.प्र., छत्तीसगढ़, मुम्बई, दिल्ली, यहां तक कि पंजाब हरियाणा तक के लिये इनके प्रवास होते हैं. गांव में रह जाते हैं नन्हे-मुन्ने अगर उनके घर में कोई सम्हालने वाला हुआ तो. सरकार यहीं से उनकी सेवा का ज़िम्मा उठाती है
       जाकर पोषण सन्देश देना बेहद ज़रूरी है. संदेश देने वालों की योग्यता को परखने . मानिटरिंग करने आए राकेश जी अतिप्रसन्न इस लिये हुए क्योंकि हमारी श्रीमति दीप्ति पाराशर "पोषण सहयोगिनी" के ज्ञान स्तर में कोई कमी न थी . सुपरवाईज़र कौतिका को सब कुछ मालूम था कि बिना सिखाए कुछ भी संभव नहीं है.
लाल सूट में बैठी जिला कार्यक्रम अधिकारी श्रीमति कल्पना तिवारी ने मुख्यालय से आए श्री आनंद स्वरूप शिवहरे को जो बताया उससे साफ़ हो गया कि चयन एवम प्रशिक्षण में योग्यता को महत्व दिया था.
मुख्यालय के दल ने किया
परीक्षण 
बारीक पड़ताल के बाद निरीक्षण एवम मूल्यांकन पर आने वाली टीम ने पाया कि वाक़ई 15 में से 03 बच्चे तीस दिन में ही कुपोषण से मुक्ति पा गए. 11 बच्चों को नियमित रूप से वज़न बढ़ा है. जबकि गम्भीर कुपोषण श्रेणी के मात्र 8 बच्चे शेष हैं  जो अगस्त-सितम्बर 2014 तक कुपोषण की ज़द से बाहर आ ही जाएंगें.  ऐसा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता श्रीमति पुष्पा श्रीवास का मानना है.
इस क्रम में कटनी जिले की बहोरीबंद बाल विकास परियोजना के इंचार्ज सतीष पटेल ने बताया कि हमने 09 शिविरों में  102 बच्चों को जोड़ा जिनमें से 82% बच्चों का वज़न 200 ग्राम से 400 ग्राम तक बढ़ा  शेष बच्चों का वज़न बढ़ेगा और वे अगले छै माह में खतरे से बाहर वाली सीमा रेखा में अवश्य आएंगे.
अच्छे परिणाम से प्रेरित हुई चंद्रावती
बहोरीबंद  परियोजना के नैगवां की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता चंद्रवती गौड़ ने स्वप्रेरणा से अपने केंद्र ग्राम को स्नेहशिविर लगा कर सुपोषित कर दिया है . वे चाहतीं हैं कि अब जो तीन बच्चे मध्यम कम वज़न की श्रेणी में हैं को सामान्य वज़न श्रेणी में ले आया जावे .

       चलिये देखें इधर का दृश्य   
अनौपचारिक शिक्षा : ग्राम संगवा में 

Post by Girish Mukul.)

6.6.14

“जबलपुर संभाग में सुपोषण लाने जिला स्तर पर बने एक्शन प्लान की पड़ताल “


जबलपुर में जून 2014 को आयोजित
बैठक मैराथन बैठक में जिलों नें रखीं कार्य योजनाएं प्रमुख सचिव महिला बाल विकास, श्री बी आर नायडू, आयुक्त जबलपुर संभाग श्री दीपक खांडेकर, कलेक्टर श्री विवेक पोरवाल (जबलपुर), श्रीमति छवि भारद्वाज़, (डिंडोरी) श्री लोकेश जाटव,(मंडला) बी. किरण गोपाल (बालाघाट), भरत यादव (नरसिंहपुर),  सहित सभी जिलों के कलेक्टर्स, मुख्य कार्यपालन अधिकारी छिंदवाड़ा  के अलावा राज्य स्तर से आये अधिकारी संयुक्त संचालक श्री महेंद्र द्विवेदी, उपसंचालक  श्री दीपक संकत, श्री विशाल मेढ़ा, सहायक संचालक श्री आनंद शिवहरे, श्री गोविंद सिंह रघुवंशी, श्री हरीश माथुर, श्री पियूष मेहता,  श्री बालमुकुंद शुक्ला, उपस्थित थे.

बाल विकास कार्यक्रम के मिशन मोड में आने के बाद  कुपोषण को समाप्त कर सुपोषण लाने की कार्ययोजना जिला स्तर पर बनायी जायेगी। इसके लिए समुदाय आधारित प्रयासोंपोषण आहार कार्यक्रम को प्रभावी और शाला पूर्व शिक्षा को असरदार बनाने के निर्देशप्रमुख सचिव महिला एवं बाल विकास श्री बी.आरनायडूसंभागायुक्त दीपक खांडेकर और आयुक्त आई.सी.डी.एस नीलम शम्मी राव द्वारा जबलपुर में आयोजित संभागीय समीक्षा बैठक में जिला कलेक्टर्स द्वारा प्रस्तुत कार्ययोजना की समीक्षा की गई. 
बैठक में संभाग के जिलों के कलेक्टर्समहिला एवं बाल विकासविभाग के जिला स्तरीय अधिकारी,परियोजना अधिकारीस्वास्थ्यविभाग के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारीसंयुक्त संचालकस्वास्थ्य और भोपाल से आये अधिकारी मौजूद थे।
जिला कलेक्टर्स द्वारा अपने जिले की शिशु एवं पोषण विकासकार्ययोजना प्रस्तुत की गयी। मंडला जिले की सूचना प्रौद्योगिकीआधारितडिंडौरी जिले के समुदाय आधारित प्रस्तावोंछिंदवाड़ा  जिले केसमुदाय स्वास्थ्य अन्य विभिन्न क्षेत्रों के समन्वय पर आधारित तथाकटनी जिले की स्वास्थ्य आधारित कार्ययोजना को विशेष सराहना मिली। संभाग के अन्य जिलों की कार्ययोजनाओं को सराहा गया। सभीकार्ययोजनायें जिले की परिस्थिति और जरूरत को देखते हुए तैयार कीगयी थीं।
आयुक्त आईसीडीएस ने सुपोषण अभियान के अच्छे परिणामबताये। उन्होंने कहा कि गर्भवती महिलाओं की सूची तैयार कर पोषणप्रदान करने की शुरूआत कर दी जानी चाहिए। जन्म के साथ ही सुपोषणके लिए सभी जरूरी प्रयासों को करना जरूरी है। इसके लिए स्वास्थ्यविभाग के साथ बेहतर समन्वय स्थापित कर कार्य करना होगा। जन्मलेने वाले हर बच्चे का पंजीयन एवं पोषण का रिकार्ड होना चाहिए।जबलपुर संभाग में संभागायुक्त दीपक खांडेकर द्वारा तीनों विभागों केसंयुक्त प्रयास से हुए सर्वे से कार्य योजना बनाने में मिली सहूलियत काउल्लेख किया गया। कुपोषित बच्चों के चिन्हांकननियमित वजन लेने,वजन लेने वाली मशीन की उपलब्धता की जरूरत रेखांकित की गयी।
बैठक में कहा गया कि शिशु के पोषण के साथ जरूरी है कि शालापूर्व शिक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए। बाल चौपाल में अभिभावकों केसाथ चर्चा एवं जागरूकता की जरूरत रेखांकित की गयी। आंगनवाड़ी केंद्रोंके भवन के लिए बजट आवंटन पर चर्चा हुई।
प्रमुख सचिव श्री नायडू ने बताया कि महिला एवं बाल विकासविभाग द्वारा मुख्यमंत्री सामुदायिक क्षमता विकास कार्यक्रम शुरू कियाजा रहा है। जिसका उद्देश्य समाजसेवी गुण वाले व्यक्तियों में क्षमताविकास कर उन्हें अवसर प्रदान करना है। इस कार्यक्रम से उनके द्वारा किएगए कार्य को पहचान मिलेगी तथा रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। बताया गयाकि यह तीन वर्ष का प्रशिक्षण कार्यक्रम होगा। जिसमें प्रशिक्षणार्थियों कोविश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त प्रमाण पत्र प्रदान किया जायेगा। हर जिलेके लिए निर्धारित सीट में 18 से 45 वर्ष अवस्था तक की 75 प्रतिशतमहिलायें तथा 25 प्रतिशत पुरूष आवेदन कर सकेंगे। चयन कलेक्टर द्वाराचयन प्रक्रिया अपना कर किया जाएगा। यह कार्य जून-जुलाई माह मेंसंपन्न होगा। योजना का पूरा विवरण स्वास्थ्य एवं महिला एवं बालविकास विभाग के सूचना पटल पर चस्पा किया जाएगा।
   प्रमुख सचिव श्री नायडू ने कहा कि मुख्यमंत्री जी ने भीख मांगनेवाले बच्चों के लिए चिंता व्यक्त की है इस हेतु खुले आश्रय-गृह की स्थापना पर बल देते हुए नायडू ने कहा कि भारत सरकार ने प्रत्येक स्ट्रीट  बच्चे पर एक लाख रुपए व्यय करेगी . जिला कलेक्टर्स यथा शीघ्र एन.जी.ओ अथवा रेडक्रास सोसायटी से प्रस्ताव भेजें ताक़ि भारत सरकार को स्वीकृति के लिये प्रस्ताव भेजे जा सकें.   
                 बदलेगा लाड़ली लक्ष्मी का स्वरूप
प्रमुख सचिव महोदय ने कहा कि –“लाड़ली लक्ष्मी योजना के  स्वरूप को बरकरार रखते हुए सरकार अब कुछ ऐसे परिवर्तन करने जा रही है जिससे अट्ठारह साल बाद लाड़ली को मैट्रिक पास होने के बाद परिपक्कवता निधि प्राप्त हो सकेगी, योजना में लम्बित आनलाइन फ़ीडिंग का कार्य समय रहते पूर्ण कर लिया जावे ताकि सरलीकरण के साथ योजना के लाभ से कोई भी बालिका लाभ से वंचित न रह सके.  ”
डिंडोरी मंडला, छिंदवाड़ा, कटनी की कार्ययोजनाएं चर्चित रहीं . 

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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अलबरूनी का भारत : समीक्षा

   " अलबरूनी का भारत" गिरीश बिल्लौरे मुकुल लेखक एवम टिप्पणीकार भारत के प्राचीनतम  इतिहास को समझने के लिए  हमें प...

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