17.6.12

माता-पिता के लिये सिर्फ़ एक दिन नियत मत करो ..भई..!!


जब लौटता दफ़्तर से रास्ते में मुझे एक ज़रूरी काम होता है. बिना ड्रायवर को ये कहे कि ज़रा रुकना मैं वो काम पूरा कर ही लेता हूं जानते हैं कैसे डा. वेगड़ के पिता माता यानी  अमृतलाल जी बेगड़ सपत्नीक शाम छै: बजे के आस पास अपने घर से निकलते हैं शाम की तफ़रीह पर और मुझे लगता है देव-पुरुष सहचरी के साथ मुझे दर्शन देने स्वयम बाहर आते हैं. 

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                मेरे सहकर्मी धर्मेंद्र के बाबूजी फ़्रीडम फ़ाइटर के सी जैन  शाम पांच बजे से बेटे का इंतज़ार करती इनकी आंखें ..... 
फ़ादर्स डे पर  ..... धर्मेंद्र कहते हैं.. "सर,अपन तो पिता के नाम पूरी ज़िंदगी कर दें तो बहुत छोटी सी बात है...!!".




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आते ही सबसे दयनीय पौधे के पास गए

फ़िर अगले ही पल मुस्कुराने लगते
मेरे बाबूजी  सुबह सबेरे की अपने  
छत वाले गार्डन तक जाते हैं गार्डन वाले बच्चों  दुलारते हैं.. पौधे भी एहसास कर ही लेते होंगे :-''पितृत्व कितना स्निग्ध होता है "  नन्हे-मुन्ने पौधे  इंतज़ार करते हैं.बाबूजी बगीचे में आते ही  आते ही सबसे दयनीय पौधे के पास जाते उसे सहलाते  फिर एक दूसरे बच्चे पास की सबसे जरूरत मंद के पास सबसे पहले. ऐसे हैं बाबूजी. जी जैसे मेरे पास सबसे पहले 
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अंजना जी के बाबूजी कैलेण्डर कलाकार डा हेमराज जैन अब नेत्र-ज्योति विहीन हैं पर आज भी कल की स्मृतियों को बांटते हैं बच्चों में  ......








माता-पिता के लिये सिर्फ़ एक दिन नियत मत करो पूरा जीवन भी नियत करोगे तो कम होगा भई 


बस थोड़ा सा हम खुद को बदल लें तो  लगेगा कि :-भारत में वृद्धाश्रम की ज़रुरत से ज़्यादा ज़रुरत है पीढ़ी की सोच बदलने की.

अगर आप की तरह इनके भी पिता होते तो सच 

बालगृह के बच्चे माता-पिता 
इनके लिये एक संज्ञा  मात्र है
अर्थ की तलाश में 
ये बच्चे 


मेरे बाबूजी के लिये ये फ़ूल.....
हा हा 



13.6.12

पापा, क्यों भौंकते हैं................ये कुत्ते ?

बात दसेक साल पुरानी है. मेरी बिटिया श्रद्धा ने पूछा-"पापा, क्यों भौंकते हैं................ये कुत्ते ?"
         जवाब क्या दूं सोच में पड़ गया. नन्हीं सी बिटिया को जवाब देने से इंकार भी तो नहीं कर सकता थी और न ही जवाब सोच पा रहा था . अक्सर बच्चों के पूछे गये सवालों को से अचकचाकर जवाब न होने की स्थिति में  गार्ज़ियन्स इधर उधर की बात  करने लगते हैं अपन भी तो आम अभिभावक ही हैं. अपने राम को ज़्यादा सोचने का न तो वक़्त था और न ही कोई ज़वाब जो बाल सुलभ सवाल को हल कर दे. अब आप ही बताइये क्या ज़वाब देता. फ़िर भी हमने छत्तीसगढ़ के  सुप्रसिद्ध ब्लॉग लेखक श्री  अवधिया जी के कथन   को उत्तर बनाया :-"संसार में भला ऐसा कौन है जिसके भीतर कभी बदले की भावना न उपजी हो 
मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक के भीतर बदले की भावना उपजती है। 
यही कारण है कि कुत्ता कुत्ते पर और कभी कभी इन्सान पर भी गुर्राने लगता है ।"
पापा, क्यों भौंकते हैं................ये कुत्ते ?
अब आप इस सवाल का विग्रह कीजिये एक ....पापा, क्यों भौंकते हैं.........?
एक भाग है:.."पापा, क्यों भौंकते हैं......?"
और दूसरा:- "ये कुत्ते ?"
अमेरिकन एस्किमो डॉग जिसे हम
पामेरियन कहते हैं
                            हा हा समझ गये तभी हँस   रहें न आप सचमुच में कितने समझदार हैं..!
.हों भी क्यों न  ... ऐसा सवाल तो आपके बच्चों ने भी तो किया होगा. बच्चे सच ही तो बोलते हैं.वास्तव में सवाल तो यही था कि-"पापा आप भौंकते क्यों हैं...?
          बिटिया को क्या बताता -जस संगति तस गुन दिखलावा... ये अलग बात है कि संदल का असर सांप पर और सांप का असर संदल पर नहीं पड़ता पर "कुत्तव भौंक" के मामले में यह सिद्धांत लागू नहीं होता.हर एक भौंक का गहरा असर हम पर पड़ता है. हम भौंकना इनसे ही सीखते हैं गाहे बगाहे अपनी बात बनती न देख भौंकने लगते हैं.अगर पास से भौंकना न हो सका तो दूर जाकर . कुछ कुत्ते जो पामेरियन नस्ल के सफ़ेद बाल वाले होते हैं उनकी भौंकने की स्टाइल आपने देखी ही होगी.. वे अपने घर के दरवाजे से खतरे की ओर मुंह करके भौंकते हैं .. अगर आसन्न खतरा उसे देख ले तो पामेरियन साहब झट से कमरे में घुस जाते हैं.. कोई कोई तो मालिक-मालकिन की गोद तक खोजतें हैं. कुछ बहादुर किस्म के "पामेरियन साहब" खतरे की और मुंह कर भौंकते रहते हैं किंतु हौले हौले पीछे खिसकते हुए. 
      ठीक ऐसे ही कुछ कुत्तव-गुण हम पर भी तारी हैं तभी तो बच्चे पूछने लगे हैं..पापा, क्यों भौंकते हैं.....?          
  उत्तर  में हमआप कह सकते हैं "संसार में भला ऐसा कौन है जिसके भीतर कभी बदले की भावना न उपजी हो ?  
मनुष्य तो क्या पशु-पक्षी तक के भीतर बदले की भावना उपजती है। 
यही कारण है कि इंसान तक इंसान पर और कभी कभी कुत्तों पर भी गुर्राने लगता है ।
विग्रह के उपरांत शेष बचे वाक्य को देखिये-"ये कुत्ते....?"
ये कुत्ते का ज़वाब अब आप खोजते रहिये हम तो चले कुत्तों से माफ़ी मांगने ........  
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कुत्ते पर इंसानी नस्ल का रंगत  
चढ़ गई ये जानकर
अपनी वफ़ादारी का यशगान कर
एक बुज़ुर्ग कुत्ता
इन दिनों 
कुत्ता सुधार अभियान 
चला रहा है !!
नई पौध को आदमियत से 
बचाव के नुस्खे बता रहा है.
सामने भीड़ में बैठे कुत्ते 
उसपर भौंक रहे थे..
उसे कुत्ता सुधार अभियान 
जारी रखने से रोक रहे थे..
एक कुत्ते ने मीडिया को बताया 
"इस अभियान से कई घरेलू कुत्तों  के रोजगार पर पड़ेगा ..
जो कुत्ता बंगलों मे रह रहा है 
बेचारा सड़क पर कुत्ते की मौत मरेगा ?
इस खूसट को कौन बताए 
हम कुत्तों पर किसका रंग  चढ़ेगा..?
हम पर इंसानी रंग कभी न चढ़ पाएगा
हमारी बात कुत्ते कुत्ते तक पहुंचाइये
इस बूढ़े-खूंसठ से हमारा पिण्ड छुड़वाइये "
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11.6.12

Ability Unlimited Talk Show With Guruji Syed Sallauddin Pasha


मिसफ़िट पर शीघ्र गुरुजी सैयद सलाउद्दीन पाशा से सीधी बात शीघ्र लाइव प्रसारित एवम प्रसारित होगी
उम्मीद है आपने विकलांगों पर केंद्रित "सत्य मेव जयते" का एपीसोड  कल यानी  दिनांक 10/06/2012 को देखा ही होगा
यहां यानी बैमबसर पर देखिये जल्द ही
"Talk Show With Guruji Syed Sallauddin Pasha "
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यू ट्यूब पर शो देखिये

5.6.12

शो मस्ट गो आन


साभार:-"Owaisihospital "
वातावरण की गहमा गहमीं के बाद  एक निर्वात सी स्थिति थी सहमे सहमे चेहरे . कुछ देर पहले की ही तो बात है   स्ट्रैचर  पर बेहोश देह आई.सीं.यू. में प्रवेश करा दी मुस्तैद स्टाफ़ ने. लगभग भागता हुआ ड्यूटी-डाक्टर मरीज के लिये सही डाक्टर को बुलाने में सफ़ल हो जाता है. अगले दस मिनिट में  आत्मविश्वास से लकदक एक काया प्रवेश करती है आई.सी.यू. में. परिजन नि:शब्द किंतु उनकी पथराई आंखें अपलक गोया पूछतीं हैं -"बचालोगे न ? "
             कुछ देर के बाद ही स्ट्रैचर को मरीज़ सहित ओ.टी. में आकस्मिक आपरेशन  के लिये ले जाया गया. और अगले पंद्रह मिनिट बाद हताश डाक्टर के मुंह से "सारी" निकलता है. परिजनों में से किसी एक के मुंह से चीख.. और एक धैर्यवान युवक सम्भवत: बेटा तो न था पडौसी सी रहा होगा..(बेटे तो विदेशों में होते हैं ) जेब से रुपये निकालते हुये  रिशेप्शन पर कुछ बतियाता है.
     फ़र्स्ट फ़्लोर से ग्राउंड-फ़्लोर तक के सारे मरीज़ों के परिजनों के चेहरों पर एक अज़ीब सा भाव था. भयातुर ही तो थे वे ..
   पडौसी का बेटा सेल फ़ोन से  :- "बोस साहब नहीं रहे.." की सूचना जारी करता है.  मेरे लगभग बराबर खड़ा डाक्टर बुदबुदा रहा था..."पता नहीं बाडी कब ले जाते हैं ?" आनन फ़ानन बोस साहब के पडौस वाला लड़का सब कुछ व्यवस्थित कर देता है. बोस साहब जो अब बोस साहब न होकर बाडी थे को घर ले जाया जाता है.
आधे घण्टे बाद एक निर्वात सी स्थिति थी सहमे सहमे चेहरे धीरे धीरे नार्मल होने लगते हैं. जैसे कुछ हुआ ही न हो.
एक युवा बाप के कष्ट को न देख सकने की स्थिति देख कर मुक्ति की कामना करता है उसकी सुर्ख लिपिस्टिक वाली बीवी सहमति जताती है. कुछ लोग बुके लेकर हालिया भर्ती मिश्रा साहब को फ़िल्मी स्टाइल में पेईंग वार्ड में घुसते हैं. विधायक जी सदलबल क्षेत्र के यशस्वी दादाजी के हालचाल लेने उनके कमरे में घुस जाते हैं. मौका मिलते ही वो लड़का उस लड़की से बातें करने लगता है. सच शो फ़िर से चालू हो जाता है कभी न रुकने वाला शो..
 





तुम जो बिच्छू हो तुम्हारे पास डंक ही एक मात्र विकल्प


साभार: हिंदी-लतीफ़े
अक्सर
खुद से पूछता हूं
एक हारी देह लेकर
अब तक ज़िंदा क्यों हूं..?
खुद से पूछने का मतलब है
कि -"शायद अब कोई निर्णय लेना है"
मुझे खुल के कुछ कह देना है ..!!
पर नि:शब्द हो जाता हूं ..
तुम्हैं देखकर...
तुम जो मुझे
ग़लत साबित कर खुद से कभी नहीं पूछते
कुछ भी...!!
आज़ भी षड़यंत्रों की बू आई थी
तुम्हारे कथन से
तुम जो
थकते नही हो
गलीच आचरण से..
चलो ठीक है ..
मैंने भी बहते हुए बिच्छूओं को बचाने का लिया है संकल्प..
तुम जो बिच्छू हो तुम्हारे पास डंक ही एक मात्र विकल्प

27.5.12

एक वसीयत : अंतिम यात्रा में चुगलखोरों को मत आने देना

साभार in.com
एक बार दिन भर लोंगों की चुगलियों से त्रस्त होकर एक आदमी बहुत परेशान था. करता भी क्या किससे लड़ता झगड़ता उसने सोचा कि चलो इस तनाव से मुक्ति के लिये एक वसीयत लिखे देता हूं सोचते सोचते कागज़ कलम उठा भी ली कि बच्चों की फ़रमाइश के आगे नि:शब्द यंत्रवत मुस्कुराता हुआ निकल पड़ा बाज़ार से आइसक्रीम लेने . खा पी कर बिस्तर पर निढाल हुआ तो जाने कब आंख की पलकें एक दूसरे से कब लिपट-चिपट गईं उस मालूम न हो सका. गहरी नींद दिन भर की भली-बुरी स्मृतियों का चलचित्र दिखाती है जिसे आप स्वप्न कहते हैं .. है न..?
   आज  वह आदमी स्वप्न में खुद को अपनी वसीयत लिखता महसूस करता है. अपने स्वजनों को संबोधित करते हुये उसने अपनी वसीयत में लिखा
मेरे प्रिय आत्मिन
 सादर-हरि स्मरण एवम असीम स्नेह ,
                   आप तो जानते हो न कि मुझे कितने कौए कोस रहे हैं . कोसना उनका धर्म हैं .. और न मरना मेरा.. सच ही कहा है किसी ने कि -"कौए के कोसे ढोर मरता नहीं है..!"ढोर हूं तो मरना सहज सरल नहीं है. उमर पूरी होते ही मरूंगा.मरने के बाद अपने पीछे क्या छोड़ना है ये कई दिनौं से तय करने की कोशिश में था तय नहीं कर पा रहा था. पर अब तय कर लिया है कि एक वसीयत लिखूं उसे अपने पीछे छोड़ जाऊं . इस वसीयत के अंतिम भाग में  उन सबके नाम उजागर करूं जो दुनियां में चुगलखोरी के के क्षेत्र में  निष्णात हैं.
             प्रिय आत्मिनों..! ऐसे महान व्यक्तित्वों को मेरी शव-यात्रा में आने न देना.. चाहे चोरों को बुलाना, डाकूओं को भी गिरहकटों को हां उनको भी बुला लेना.. आएं तो रोकना मत . बेचारों ने क्या बिगाड़ा किसी का. अपने पापी पेट के कारण अवश्य अपराधी हैं ... इनमें से कोई बाल्मीकी बन सकता है पर चुगलखोर .. न उनको मेरी शव-यात्रा में न आने देना.
                                                                                                                          तुम्हारा ही
                                                                                                                            "मुकुल "
    इन पंक्तियों के लिखे जाने के बाद उस  स्वप्न दर्शी ने महसूस किया कि एक दैत्य उसके समक्ष खड़ा है. दैत्य को देख उसको अपने कई गहरे दोस्त याद आए.दैत्य से बचाव के लिये जिसे पुकारने भी  कोशिश करता तुरंत उसी मित्र का भयावह चेहरा स्वप्न-दर्शी को दैत्य में दिखाई देता.. अकुलाहट घबराहट में उसे महसूस हुआ कि वो मर गया ..
                        खुद के पार्थिव शरीर को देख रहा था. बहुतेरी रोने धोने की आवाज़ें महसूस भी कीं.. मर जो गया था किसी से कुछ न कह पा रहा था.किसी को ढांढस तक न बंधा सका.
        अपनी देह को अर्थी में कसा देखा उसने. परिजन दिख रहे थी. पर मित्र........ गायब थे.. अचानक उसके सामने वही दैत्य प्रगट हुआ. दैत्य ने पूछा-"क्या, मर कर भी चिंता मग्न हो..!"
स्वप्नदर्शी:-”हां, मेरे अभिन्न मित्र गायब हैं..?"
दैत्य :-"मैने सबको रोक दिया वे चुगलखोरी के अपराध में लिप्त थे न.. तुम्हारी वसीयत के मुताबिक़ वे तुम्हारी शव-यात्रा से वंचित ही रहेंगें.."
                     स्वपनदर्शी को अपनी वसीयत पर गहरा अफ़सोस हुआ.. रो पड़ा तभी पत्नी ने उसके मुंह से निकलती अजीबो-गरीब आवाज़ सुन कर जगाया.. क्या हुआ तुम्हैं ...?
 नींद से जागा वो वास्तव में जाग चुका था............ अपनी वसीयत लिखने की इच्छा खत्म कर दी.. दोस्तों ये ही आज़ की सच्चाई..
   सूचना 
इस आलेख के सभी पात्र एवम स्थान काल्पनिक हैं इनका किसी भी जीवित मृत व्यक्ति से कोई सम्बंध नहीं.. यदि ऐसा पाया जाता है तो एक संयोग मात्र होगा 
भवदीय:गिरीश बिल्लोरे मुकुल

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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