14.6.10

मेरी आवाज़ में अब सुनिये: मन बैठा विजयी सा रथ में !!

इश्क-प्रीत-लव:
पर प्रकाशित गीत मेरी आवाज़ में सुनना चाहेंगे जो इन सभी सुधि पाठकों भाया :निलेश  माथुर जी,संगीता स्वरुप ( गीत ), दिव्या जी ,राम त्यागीजी , विनोद कुमार पांडेय जी,अमिताभ मीत जी,अजय कुमार जी ,दिलीपभाई ,डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ,म  वर्मा जी ने आप को भी पसन्द आयेगा तय है 

12.6.10

एक गीत.....................पॉड्कास्ट.......

मेरे प्रयास को सराहने केलिए मै आप सभी श्रोताओं  की आभारी हूँ.....आगे भी सहयोग मिलता रहेगा इसी कामना के साथ .............आपके सुझावों का स्वागत है.........
आज प्रस्तुत है................

 
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी की इस रचना को आप यहाँ पढ सकते हैं.................
http://uchcharan.blogspot.com/

10.6.10

एक लघुकथा....................पॉड्कास्ट.........

नमस्कार..............‘‘मिसफ़िट:सीधीबात‘‘ पाडकास्टर के रूप में मेरी पहली कोशिश  .............................आज इस ब्लॉग पर ये मेरा पहला प्रयास है ...................सुझाव सादर अपेक्षित है.........
आज सुनिए....... दीपक"मशाल" की लिखी एक लघुकथा................शीर्षक है ------"दाग अच्छे हैं"............. आप इसे यहाँ पढ सकते हैं

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26.5.10

मज़ाक मज़ाक में एक पोस्ट

ब्लागजगत में समझौतावादी लक्षण दिखाई दे रहे हैं..डी. के.  साहब की यह पोस्ट उकसाती नज़र आ रही है हा हा हा .....गोदियाल सा’ब ने बीज बो दिया ...ही...ही....ही....? पी. डी सा’ब अभी हम सब ने   [यह शब्द नवीन प्रतिस्थापित है ]सुबह सुबह आदरणीय ज्ञानदत्त  पाण्डे जी के स्वास्थ्य की मंगल कामना की है और यह अपेक्षा ............ बात कुछ हज़म नहीं हुई. वैसे इस तरह के आह्वान की ज़रूरत क्यों आन पड़ी पी.डी. सा’ब. सच मानिये कोई भी इस तरह की कल्पना लेकर ब्लागिंग के लिये नहीं आता बस वह आता है लिखने के वास्ते और दिशा तय कर देतें हैं हम लोग जो पहले से मैदान में डटें हैं. ब्लाग पर वानरी हड़्कम्प का न होना चिन्ता का विषय नहीं भले ही मज़ाक में में चिंता व्यक्त की गई हो.
आपकी मज़ाहिया प्रतिटिप्पणी के गहरे अर्थ हैं:-पं.डी.के.शर्मा"वत्स", @सुरेश चिपलूनकर जी,भाई जल्दी से फुर्सत मे आईये...अब तो ये शान्ति  कुछ असहनीय सी होने लगी है :-) यह टिप्पणी मनुष्य के अंतस में बसे एक सत्य को उज़ागर करती है........
युद्ध की प्रतीक्षा शांति से अधिक की जाती है.हर व्यक्ति इसमें शामिल होता है जिनका वर्गीकरण निम्नानुसार है :-
  1. वीर:-  कुछ लोग शामिल होना चाहते है,और हो भी जाते हम. उनको मैं वीर की श्रेणी में रखने की गुस्ताख़ी कर रहा हूं. इनकी संख्या बहुत नहीं है.
  2. धीर:-  वो जो शामिल नहीं किंतु युद्ध के दु:खद परिणामों को युद्ध की आहट आते ही दूर से अनुमानते  हैं. बता भी देते हैं सजग करतें हैं .....इनकी संख्या इक्का-दुक्का ही तो है.
  3.  नीर:- निरंतर युद्ध की कामना में  रत  व्यक्ति जो सिर्फ दो पक्षों में युद्ध कराना एवं देखना चाहतें हैं ...... फ़िर सामने सामने विजेता के पक्ष में परोक्ष रूप से पराजित के सम्पर्क में रहतें हैं. इन लोगों का प्रतिशत सर्वाधिक है. 
  मित्रो मज़ाक मज़ाक में लिखी गई इस पोस्ट का कोई अन्यथा अर्थ न लिया जाये परन्तु यह सत्य है कि युद्ध के प्रति शान्ति के सापेक्ष अधिक आकर्षण देखा गया है. 
रिठेल : "आपने" की जगह हम सबने प्रतिस्थापित किया है आपका कोई फ़ोन नम्बर नहीं है कोई बात नहीं यहीं बता दीजिये   डी.के. सा’ब इस पोस्ट को लिंक करने में आपत्ती हो तो अवश्य लिन्क पृथक कर दूं  !

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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