
पुरा संपदा बिखरी हुई हैं


६४ योगनी

संग-ऐ-मरमर की दीवारों को
चूमतीं

कहीं शांत शीतल
तो कही तेज़..... कलरव के साथ

कूदती अल्हड़ बिटिया सी :''मेरी माँ नर्मदा ''



अभी भी ५ रूपए के लिए धुआं धार में कूद जाते हैं । आप सिक्का फैंकिए वे उठा के लाते हैं.....?
एक और जबलपुरिया "yunus भाई " को तो भूल ही गया था नूर साहब लाॅ कालेज में मुझे पढाते थे । मेरी अम्मी जिनका शेर
"मेरी आंखों पे लरज़ते हुए उनके आंसू,यूँ ही ठहरे रहें ता उम्र इनायत होगी ,
कद्र-ऐ-जुम्बिश में गिर के बिखर जाएंगे , और फिर उनकी अमानत में खयानत होगी "
खूब याद है, खूब याद है इरफान का वो शेर :-"जब भूक की शिद्दत से तढ़पेगें मेरे बच्चे ,दीवार पे रोटी की तस्वीर बना दूंगा "
हजूर [yunus भाई ]आप जबलपुर या एम० पी० के संगीतकारों , गायकों पर एक पोस्ट देकर जबलपुरिया धर्म निबाह दीजिए ।