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मंगलवार, जनवरी 27, 2009

भाई मिश्र जी आभारी हैं आपके

पोस्ट का पोस्ट मार्टम मिश्रा जी की टिप्पणी के बाद


Blogger समयचक्र - महेद्र मिश्रा said...

नागफनी की चर्चा आप अपने आँगन तक सीमित रखे बेहतर होगा . खेमबजी गुटबाजी जैसे शब्दों से परहेज करता हूँ और बरदास्त भी नही करता हूँ . नागफनी शब्द के साथ मुझे बधाई देना शायद मेरी भावनाओं को ठेस पहुँचा सकता है . आप बहुत बड़े ब्लॉगर है कृपया भविष्य में संतुलित शब्दों का प्रयोग करे . यही अपेक्षा करता हूँ .

January 26, 2009 10:53 PM

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Blogger समयचक्र - महेद्र मिश्रा said...

जिस तरह से बिना किसी की अनुमति के वगैर कोई कार्य करना उचित नही है पहले कोई भी कार्य करे तो सहमति सभी की ली जानी चाहिए और सभी का विश्वास अर्जित करना चाहिए यह सभी कहते है .पर एकला चलो की नीति अच्छी नही होती है ... जबलपुर के ब्लागरो से आज से राम राम कृपया नोट करे ..

January 26, 2009 11:21 PM

मिश्र जी मेरी पोस्ट जल्द बाजी में लिखी गयी पोस्ट थी जिसे मैं अन्तर पट से विभक्त न कर सका वास्तव में पोस्ट के प्रथम भाग में एक घटना का चित्रण चाह रहा था कि यकायक आपकी पोस्ट पर घूमने चला गया जहाँ आपके द्वारा कुछ सुझाव लिखे देखे उसका उत्तर फ़टाफ़ट देने के चक्कर में पोस्ट लिख मारी जो नीचे दूसरे भाग में लिखी है "खेमबजी गुटबाजी" जैसे शब्द लिखे ही नहीं गए जिनका आप ज़िक्र कर रहें हैं । यदि पोस्ट में हों तो बताएं ................?


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"नागफनी" के बारे में आप से कभी मैंने अपनी अवधारणा स्पष्ट कर दी थी अब तो बस उस जो सजावट का कार्य करती-नागफनी का आभार ही मानता हूँ ! यहाँ मैं आज उस घटना का ज़िक्र करना चाहता हूँ कि २६ जनवरी की एक अधिकारी अपने मित्र की उसके सामने तारीफ़ की जैसे ही पीठ फेरी तुंरत उसकी निंदा करते नज़र आए॥ ऐसा हर स्तर पर है अत: उन "नागफनी"आभार मानना ही होगा जो सजावट के लिए प्रयुक्त हैंसच ईश्वर ने विष को कंठ में रख के दुनिया को बचाने की कोशिश की

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जबलपुर हिन्दी ब्लॉगर्स मीट की रिपोर्ट संजय तिवारी संजूजी ने अपने ब्लॉग संदेशा में छाप दी जो किसी भी स्थिति में कमतर और अधूरी नहीं थी . संजू भाई एक उर्जावान पोजिटिव सोच व्यक्ति हैं उनका आभार !जिनने इस मीट के साझा-आयोजन की जबाब देही को स्वीकारते हुए पोस्ट प्रकाशित की . उनके प्रति पुन: हार्दिक आभार कि उन्हौने समीर भाई के कैमरे से ली गयीं तस्वीरों को प्राप्त कर बेहतरीन पोस्ट प्रकाशित की . जो मीट में आ गए उनका आभार.......जो न आ सके उन भी आभार ..........!!

अंत में

आइना आईने के रू बरू हो जाए ज़रा

बात दौनों की चली जाए बहुत गहरे में !!

स्पष्ट है कि दो दर्पण आमने सामने हों तो अन्नंत प्रतिबिम्बों का दर्शन किया जा सकता है मिश्र जी

ध्यानाकर्षण के लिए आभार

विगत दिवस जबलपुरिया ब्लॉगर मीट भोजन के साथ संम्पन्न हुई ..............................................जो ब्लॉगर भाई किन्ही कारणों से मीट में नही पहुँचपाये उनके नही पहुँचने के कारणों की खोजबीन(पोस्टमार्टम)की जा रही है .... पर आयोजक बन्धु ने अनुपस्थित शहरी और बाहरी अन्य ब्लॉगर बंधुओं को ब्लॉगर मीट केसम्बन्ध में जानकारी देना भी उचित नही समझा ........भाई अपनी अपनी मर्जी .....जानकारी दे देते ....कम से कम नेट पे दे देते । अब समीर जी कुछ जानकारी अवश्य देंगे इस उम्मीद के साथ"


रविवार, जनवरी 18, 2009

फुरुषोत्तम

http://www.davidchess.com/pictures/sims2_a/Jane_dreaming.jpg
किस किस को सोचिए किस किस को रोइए
आराम बड़ी चीज है ,मुंह ढँक के सोइए ....!!
"जीवन के सम्पूर्ण सत्य को अर्थों में संजोए इन पंक्ति के निर्माता को मेरा विनत प्रणाम ...!!''

आपको नहीं लगता कि जो लोग फुर्सत में रहने के आदि हैं वे परम पिता परमेश्वर का सानिध्य सहज ही पाए हुए होते हैं। ईश्वर से साक्षात्कार के लिए चाहिए तपस्या जैसी क्रिया उसके लिए ज़रूरी है वक़्त आज किसके पास है वक़्त पूरा समय प्रात: जागने से सोने तक जीवन भर हमारा दिमाग,शरीर,और दिल जाने किस गुन्ताड़े में बिजी होता है। परमपिता परमेश्वर से साक्षात्कार का समय किसके पास है...?
लेकिन कुछ लोगों के पास समय विपुल मात्रा में उपलब्ध होता है समाधिष्ठ होने का ।
इस के लिए आपको एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ ध्यान से सुनिए
एकदा -नहीं वन्स अपान अ टाइम न ऐसे भी नहीं हाँ ऐसे
"कुछ दिनों पहले की ही बात है नए युग के सूत जी वन में अपने सद शिष्यों को जीवन के सार से परिचित करा रहे थे नेट पर विक्की पेडिया से सर्चित पाठ्य सामग्री के सन्दर्भों सहित जानकारी दे रहे थे " सो हुआ यूँ कि शौनकादी मुनियों ने पूछा -"हे ऋषिवर,इस कलयुग में का सारभूत तत्व क्या है.....?
ऋषिवर:-"फुर्सत"
मुनिगण:- "कैसे ?"
ऋषिवर :- फुरसत या फुर्सत जीवन का एक ऐसा तत्व है जिसकी तलाश में महाकवि गुलजार की व्यथा से आप परिचित ही हैं आपने उनके गीत "दिल ढूँढता फ़िर वही " का कईयों बार पाठ किया है .
मुनिगण:- हाँ,ऋषिवर सत्य है, तभी एक मुनि बोल पड़े "अर्थात पप्पू डांस इस वज़ह से नहीं कर सका क्योंकि उसे फुरसत नहीं मिली और लोगों ने उसे गा गाकर अपमानित किया जा रहा है ...?"
ऋषिवर:-"बड़े ही विपुल ज्ञान का भण्डार भरा है आपके मष्तिस्क में सत्य है फुर्सत के अभाव में पप्पू नृत्य न सीख सका और उसके नृत्य न सीखने के कारण यह गीत उपजा है संवेदन शील कवि की कलम से लेकिन ज्यों ही पप्पू को फुरसत मिलेगी डांस सीखेगा तथा हमेशा की तरह पप्पू पास हो जाएगा सब चीख चीख के कहेंगे कि-"पप्पू ....!! पास होगया ......"
मुनिगण:-ये अफसर प्रजाति के लोग फुरसत में मिलतें है .... अक्सर ...........?
ऋषिवर:-" हाँ, ये वे लोग हैं जिनको पूर्व जन्म के कर्मों के फलस्वरूप फुरसत का वर विधाता ने दिया है
मुनिगण:-"लेकिन इन लोगों की व्यस्तता के सम्बन्ध में भी काफी सुनने को मिलता है ?
ऋषिवर:-"इसे भ्रम कहा जा सकता है मुनिवर सच तो यह है कि इस प्रजाति के जीव व्यस्त होने का विज्ञापन कर फुरसत में होतें है, "
मुनिगण:-कैसे...? तनिक विस्तार से कहें ऋषिवर
ऋषिवर:-"भाई किससे मिलना है किससे नहीं कौन उपयोगी है कौन अनुपयोगी इस बात की सुविज्ञता के लिए इनको विधाता नें विशेष गुण दिया है वरदान स्वरुप इनकी घ्राण-शक्ति युधिष्ठिर के अनुचर से भी तीव्र होती है मुनिवर कक्ष के बाहर खडा द्वारपाल इनको जो कागज़ लाकर देता है उसे पड़कर नहीं सूंघ कर अनुमान लगातें हैं कि इस आगंतुक के लिए फुरसत के समय में से समय देना है या नहीं ? "
मुनिगण:-वाह गुरुदेव वाह आपने तो परम ज्ञान दे ही दिया ये बताएं कि क्या कोई फुरसत में रहने के रास्ते खोज लेता है सहजता से ...?

कुछ ही क्षणों उपरांत सारे मुनि कोई न कोई बहाना बना के सटक लिए फुरसत पा गए और बन गए ""फ़ुरुषोत्तम -जीव "
गुरुदेव सूत जी ने एकांत में मुनियों से फुरसत पा कर वृक्षों को जो कहा वो कुछ इस तरह था
फुर्सत और उत्तम शब्द के संयोजन से प्रसूता यह शब्द आत्म कल्याण के लिए बेहद आवश्यक और तात्विक-अर्थ लेकर धरातल पर जन्मां है आज यानी 18 दिसम्बर 2009 को इस शब्द का जन्मदिन जो नर नारी पूरी फुर्सत से मनाएंगें वे स्वर्ग में सीधे इन्द्र के बगल वाली कुर्सी पर विराजेंगे । इस पर शिवानन्द स्वामी एक आरती तैयार करने जा रहें हैं आप यदि कवि गुन से लबालब हैं तो आरती लिख लीजिए अंत में लिखना ज़रूरी होगा : कहत "शिवानन्द स्वामी जपत हरा हर स्वामी " पंक्ति का होना ज़रूरी है।

फोटो:गूगल बाबा से फुरसत में तलाश जिसका भी उसका आभार फुर्सत मिलते ही टिपिया देना जी

शुक्रवार, जनवरी 16, 2009

ये मस्त चला इस मस्ती में थोडी थोडी मस्ती लेलो :लुकमान चाचा


यह सही नहीं कि समीर लाल जी मोदीवाडा सदर में लुकमान को सुनते थे , खासतौर पर होली ? ऐसा नहीं था जहाँ भी चचा का प्रोग्राम होता भाई समीर की उड़न-प्लेट सम्भवत:वेस्पा स्कूटर पर सवार हो कर चली आती थी .
दादा दिनेश जी विनय जी को आभार सहित अवगत करना चाहूंगा कि:- पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी ,के बाद वयोवृद्ध साहित्यकार श्रीयुत हरिकृष्ण त्रिपाठी जी का स्नेह लुकमान पर खूब बरसा . मित्र बसंत मिश्रा बतातें हैं:-'असली जबलपुर में चचा कि महफिलें खूब सजातीं थीं भइया गिरीश तुमको याद होगा मिलन का कोई भी कार्यक्रम बिना लुकमान जी के अधूरा होता था ''
मुझे अक्षरस:याद है कि मिलन के हर कार्यक्रम में लुकमान का होना ज़रूरी सा हो गया था ।
  • चाचा लुकमान को जन्म तिथि याद न थी ..!
14 जनवरी 1925 मैंने उनकी जन्म तारीख लिखी ज़रूर है किंतु उनके स्नेही और 1987 से अन्तिम समय तक साथ रहने वाले शागिर्द भाई शेषाद्री अयैर और दीवाना बना देने वाले ढोलक वादक "कुबेर"कहतें हैं जब मन-मस्त हो रब से मिलन का तारतम्य बने समझो वही दिन लुकमान के जन्म का दिन है
  • भवानीदादा की विदाई
भवानी दादा की पार्थिव देह को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जा रहे थे किसी ने कहा चाचा दादा को उनका पसंदीदा गीत सुना दो जाते-जाते चाचा ने भारी मन से अपने पूज्य को सुना ही दिया :-ये मस्त चला इस मस्ती में थोडी थोडी मस्ती लेलो...!!
क्रमश:


गुरुवार, जनवरी 15, 2009

बबाल का शुक्रिया : लुकमान साहब को याद करने का

जी अब इस शहर में आइनों की कमीं को देख के मलाल होता है की क्यों लुकमान नहीं हैं साथ . बवाल हों या लाल दादा लुकमान की याद किसे नहीं आती . सच मेरा तो रोयाँ-रोयाँ खड़ा हो गया था .....27 जुलाई 2002 का वो दिन जब लुकमान जी ने शहर जबलपुर से शरीरी रिश्ता तोडा ........ वे जेहन से दूर कभी हो भी नहीं सकते . जाने किस माटी के बने थे जिसने देखा-सुना लट्टू हो गया . इस अद्भुत गंगो-जमुनी गायन प्रतिभा को उजागर किया पंडित भवानी प्रसाद तिवारी ने , इस बिन्दु पर वरिष्ठ साहित्यकार मोहन शशि का कहना है:-"भवानी दादा के आशीर्वाद से लुकमान का बेलौस सुर-साधक होना सम्भव हो सका धर्म गुरुओं ने भी लुकमान की कव्वालियाँ सुनी"शशि जी ने आगे बताया -"लुकमान सिर्फ़ लुकमान थे (शशि जी ने उनमें नकलीपन कभी नहीं देखा) वे मानस पुत्र थे भवानी दादा के " १४ जनवरी १९२५ (मकर संक्राति) को जन्मा यह देवपुत्र जन्म से मोमिन,था किंतु साम्प्रदायिक सदभाव का मूर्त-स्वरुप था उनका व्यक्तित्व. सिया-चरित,भरत-चरित, मैं मस्त चला हूँ मस्ती में थोडी थोडी मस्ती लेलो , माटी की गागरिया , जैसे गीत बिना किसी लुकमानी महफ़िल का पूरा होना सम्भव ही नहीं होता था।लुकमान साहब को अगर साम्प्रदायिक सौहार्द का स्तम्भ कहें तो कम न होगा। भरत चरित सुन के कितनी पलकें भीगीं किसे मालूम ? मुझे याद है कविवर रामकिशोर अग्रवाल कृत भरत चरित्र, सिया चरित,सुनने वालों की पलकें अक्सर भीग जातीं मैंने देखीं हैं . साधना उपाध्याय,मोहन शशि,स्वयं रामकिशोर अग्रवाल "मनोज", ओंकार तिवारी,रासबिहारी पांडे , बाबू लाल ठाकुर मास्साब, डाक्टर सुधीर तिवारी,डाक्टर हर्षे,और यदि लिखने बैठूं तो एक लम्बी लिस्ट है जिसे लिखना लाजिमी नहीं है.

क्रमश:

बुधवार, जनवरी 14, 2009

महाजाल सबसे तेज़ !!



एक " रिपोर्ट:"- (संक्रांति की सुबह "महाजाल " पर समाचार नुमा
यह आलेख) पढ के शरीर का रोयाँ -रोयाँ खड़ा हो गया। तभी श्रीमति जी ने शेविंग-उपकरण सामने लाके रख दिए साहब आज शेव करके समय एक भी बाल न छूट पाया । वे बोलीं:-आज इत्ती जल्दी शेव निपटा लिया । मेरे मुंह से निकल गया महाजाल पे छपी 2040 का समाचार पढा तो यह सम्भव हुआ है। श्रीमति बिल्लोरे अपना माथा खाजुआनें लगीं कि हम ने क्या कहा । तब तक अपने मानस में भी "

" हलचल:"होने लगी कि इतने शब्द तो पहले से ही हिन्दी में विराजे हैं पंडित जी ने गज़ब शब्द खोज निकाला इसे अब भाषाविज्ञानी तय करेंगे कि थोक कट-पेस्टीय लेखनशब्द को शामिल किया जाए या नहीं अगर ब्लागर्स से कोई पूछेगा तो हम सब दादा के साथ हैं। उधर कबाड़ी भाई के पास पुराने रेडुए से ये सुनने मिला आत्म-विभोर हूँ ! इस बीच तिल का कटोरा दो बार मेरे सामने से से वापस जा चुका है अत: पोस्ट आधी-अधूरी छोड़ के उठ रहा हूँ बाकी एहावाल शाम के बाद पोस्ट करूंगा मुझ डर है कि संक्रांति कहीं क्रान्ति का रूप न रख लेवे। इन अन्तिम-पंक्तियों के लिखे जाने तक पाँच पुकार सुनाई पड़ चुकीं हैं मुझे । सभी को सादर मकर-संक्रांति की हार्दिक शुभ कामनाए अब आगे 08:45 बजे घर लौटा तो सोचताहूँ सुबह की चर्चा को एक सुंदर मोड़ दे दूँ- सो लेपू खोला ही था कि येभाई साहब -यानीअपने दुबे जी याद आ गए जिनने ने गज़ब की बात कही ।अपन को याद आया गंगटोक जहाँ पिछले दिनों बड़े भैया होकर आए थे सो ये आलेख बांच ही लिया कि नाथुला पास --बर्फीली वादियाँ में कैसा लगता है कि मन में आया पतंग बाजी करलें किंतु एक डाकिया हाँ वही हवा का डाकिया मेरी पुरानी प्रेमिका , की याद लाया वो भी व्हाया - राजीव रंजन प्रसाद, और फ़िर अचानक हमने पतंग बाजी का मसला बीच में ही छोड़ कर [रात में पतंग उडाना असम्भव मान के ] आइने में जब देखा, तो पाया कि हम 45 के हैं और पतंग पर समय जाया करने 'कुत्ते से कुछ शिक्षा लें कि वो कैसे अमीर हुआ । नौवें सोपान पर है चिट्ठों की चर्चा जो रवीन्द्र प्रभात जी की "परिकल्पना " में है । उधर श्रीमती जी के बनाए तिल ले लड्डू खूब ज्यादा हो गए हैं तो ब्लॉग पर स्वास्थ्य चर्चा लेकर मिहिर भोज उपस्थित हैं न अब आप न तो तिल से डरिए और न ही ताड़ से । चलो अब बंद करता हूँ चर्चा बस का फ़ोन आ गया कल की ममत्व मेले वाली प्रेस कांफ्रेंस की तैयारी करनी है। सो सहिकिन्तु बॉस इस आलवेज राइट अब विदा कल तक के लिए




"ममत्व मेले-09 की तैयारियां पूर्ण :मेले को मिला अंतर्राजीय स्वरुप "

*16 जनवरी-से-20 जनवरी तक चलने वाले मेले का शुभारम्भ एम एल बी ग्राउंड में

*झारखण्ड,उत्तरांचल,छत्तीसगड़,उत्तर-प्रदेश,राजस्थान,महाराष्ट्र के उत्पाद भी मेले में रखे जाएंगे

*प्रतिदिन होंगीं रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ

*महिलाओं एवं किशोरी बालिकाओं के लिए रंगोली,मेंहदी,खेल,नृत्य प्रतियोगिताएँ आयोजित होंगी.



संस्कारधानी जबलपुर में वर्ष 1992, 1999, 2006,के बाद इस वर्ष 2009 में को आयोजित होने वाले ममत्व मेले का स्वरुप विगत वर्षों से भिन्न होगा. तदाशय की जानकारी देते हुए जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला बाल विकास पदेन जिला प्रबंधक महिला वित्त विकास निगम श्री महेंद्र द्विवेदी व्दारा बताया गया कि:-मेले की तैयारियाँ पूर्ण की जा चुकीं इस हेतु कार्यदलों का गठन किया जा चुका जिन्हें बिन्दुवार कार्य निर्देश जारी किए जा चुकें हैं साथ ही साथ सभी कार्य दलों को विस्तृत मार्गदर्शन हेतु बैठक का आयोजन भी किया जा चुका झारखण्ड,उत्तरांचल,छत्तीसगड़,उत्तर-प्रदेश,राजस्थान,महाराष्ट्र के उत्पाद भी मेले में रखे जाएंगे. प्रदेश के समस्त जिलों से स्वसहायता समूहों द्वारा घरेलू उपयोग की सामग्रियां,हस्तशिल्प,मसाले, मूर्तियाँ, टेराकोटा,संगमरमर, के उत्पाद, घरेलू साजो सामान , रेशमी-कोसा साडियां, प्राकृतिक एवं वनोपज आधारित - सामग्रियां मेले का आकर्षण होंगी, जिले के ग्रामीण-क्षेत्रों की महिलाएं एवं स्व-सहायता समूह अन्य-प्रदेशों के स्वसहायता समूहों से संपर्क कर व्यवहारिक एवं उत्पादन सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त कर सकतीं है. महिलाओं में स्वरोज़गार एवं उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए स्व-रोज़गार मार्गदर्शन कक्ष "प्रेरणा-केन्द्र" स्थापित किया जा रहा है. प्रतियोगिताओं में भाग लेने हेतु इच्छुक महिलाएं बालिकाएं मेला स्थल पर दिनांक 16 जनवरी 2009 को प्रात: 11:30 बजे से पंजीयन करा सकतीं हैं

सम्पूर्ण आयोजन को सफल बनाने 15 कार्यदलों में 25 से अधिक अधिकारी/पर्यवेक्षक/अन्य कर्मीं तैनात किए गएं हैं

गिरीश बिल्लोरे

प्रभारी अधिकारी

प्रचार प्रसार,ममत्व-मेला 09



रविवार, जनवरी 11, 2009

शनिवार, जनवरी 10, 2009

गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो ?


http://hindinest.com/chitralekh/kiranbedi.jpg
अदेह के सदेह प्रश्न कौन गढ़ रहा कहो
गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो ?
मुझे जिस्म मत कहो चुप रहो मैं भाव हूँ
तुम जो हो सूर्य तो रश्मि हूँ प्रभाव हूँ !!
मुझे सदा रति कहो ? लिखा है किस किताब में
देह पे ही हो बहस कहा है किस जवाब में
नारी  बस देह..? नहीं प्रचंड अग्निपुंज भी
मान जो उसे  मिले हैं शीत-कुञ्ज भी !
चीर हरण मत करो मत हरो मान मीत
भूलो मत कुरुक्षेत्र युद्ध एक प्रमाण मीत !
जननी हैं ,भगनी है, रमणी हैं नारियां -
सुन्दर प्रकृति की सरजनी हैं नारियां 
हैं शीतल मंद पवन,लावा  ये ही तो हैं
धूप से बचाए जो वो  छावा यही तो हैं !
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiueXueeYQ1otkK2ilEoDWVs6nQCLaRbdCHLf4yDUslKzrt8xYwSAsjf3RHLZr8Y5z0TZOR5dsnsEo7gNyDRDc3M7yLkz__aLS6_oturGi_ffhFH0FQDRRq_cIQ58QAK3MmoRm1YPS34e_/s320/Woman4.jpg

मंगलवार, जनवरी 06, 2009

बूझ लिया और जान लिया पहचान लिया भी


ब्लागर्षियों…!!”

पहेली ...ओउर .....ओकर जबाव .. तो ठीक है हमहूँ कहे देत हैं कि
हम तो उस भैये को खोजत हैं जिसने पहले-पहल यानि कि सबसे
पहले मुर्गी और अंडा को मुर्गी और अंडा की संज्ञा दी है. जिसकी तर्ज़ पे "ब्रह्म की पहचान"
करने वाले महर्षियों कि तरह "ब्लॉग-ऋषिगण " इस पहले का भेद जानने की कोशिश में
लगे हैं...!!अब इस पहेली को
को सुलझाने कि कोशिश के दौर में विजेता महारथियों को मेरी और मेरे अन्य ब्लॉग-मुनियों
की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं
पहुंचे जी !

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