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मंगलवार, सितंबर 27, 2022

पिता के पुत्र होने का एहसास छोड़िए

 
यह वाक्य मेरे लिए सदा से ही घृणास्पद रहा है। इस वाक्य के मेरे कानों में पड़ते ही मेरा मस्तिष्क क्रोध से भर गया था, और आज तक शिलालेख की तरह अंकित भी है। खैर यह मेरा अपना चिंतन है कदाचित कुछ लोगों का भी हो लेकिन जो पुत्र के पिता होते हैं वे केवल अहंकार के पिटारे से अधिक मुझे कुछ नजर नहीं आते।
   पुत्र संतान का गौरव अर्जित कराना तो सदियों से जारी है। भारत जैसे सनातनी देश में भारतीयों को यह जानकारी नहीं है कि भारत में शक्ति पूजा होती है। बेटियों के बिना कुछ भी नहीं बेटी दिवस पर विमर्श के लिए यह विषय जानबूझकर मैंने उन अल्प बुद्धि अभिभावकों के लिए चुना है जो केवल बेटों को अपना श्रेष्ठ संसाधन मानते हैं। जबकि मेरा दृष्टिकोण इससे इतर है। यह इसलिए नहीं कि -" ईश्वरीय संयोग से मैं बेटियों का पिता हूं बल्कि इसलिए कि मैंने हर मोर्चे पर बेटियों को सफल होते देखा है।"
   अक्सर घर के बड़े बूढ़े बुजुर्ग लोग किसी की संतान बेटी होने पर शोक ग्रस्त हो जाते हैं। इन बुजुर्गों ने ना तो वेदों का अध्ययन किया होता है और ना ही वे यह जानते कि वेदों के निर्माण में ऋषिकाओं का विशेष योगदान रहा है। ज्यादा दूर नहीं ऋग्वेद के कुछ अंश को पढ़ ले तो सब कुछ साफ हो जाएगा।
मुझे-"पुत्र के पिता बोध की जरूरत नहीं है। अगर मुझे संतान से प्रेम है तो यह सब तथ्य द्वितीयक हो जाते हैं।"
   आज मैं इस बात का रहस्योद्घाटन करना चाहता हूं कि पुत्र संतान का जनक या जननी होना गौरव और गरिमा की बात नहीं है बल्कि एक अच्छी संतान का जनक या जननी होना गौरव की बात है।
   भारतीय समाज को समझना चाहिए कि उसकी विरासत में बहुत कुछ ऐसा है जो यह सिद्ध करता है कि बेटियां भी बेटों के समकक्ष हैं। यह ऐतिहासिक और हमारी सांस्कृतिक निरंतरता के अन्वेषण से स्पष्ट हो जाता है। मुझे घटना याद आ रही है कि एक पुत्र संतान का पिता अपने पुत्र के विवाह के समय पुत्र के पिता और माता का दायित्व अपने भाई पर छोड़ना चाहता था। उसका यह कहना था कि मैंने यह दायित्व तुम्हें  इसलिए देना चाहता हूं क्या कि तुम्हें क्योंकि मैं  तुम्हें भी पुत्र बोध हो सके।
   छोटे भाई का इंकार कर देना साहस का कार्य था। उसने यह कहकर इंकार कर दिया कि जब ईश्वर ही नहीं चाहते कि मुझे ऐसा कोई बोध हो तो फिर आप ऐसा प्रयास क्यों कर रहे हैं? और फिर मैं तो पुत्री संतान को भी पुत्र संतान के समतुल्य समझता हूं।
   समाज का नकारात्मक चिंतन आप सकारात्मक दिशा की ओर जाता नजर आ रहा है। बिटिया दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं देकर आपसे आग्रह करूंगा कि कृपया बेटियों को लेकर किसी भी तरह की मानसिक ग्रंथि ना पाले। कृपया उसे एक संतान के रूप में देखें आपको कोई अधिकार नहीं है कि आप अपनी संतानों का विभाजन पुत्र  या पुत्री के रूप में करें।
  मुझे अच्छी तरह से याद है कि मेरे भांजे के विवाह के समय उसके  ससुर बेहद भावुक होकर मुझसे मिले और उन्होंने कहा हम आपके कृतज्ञ हैं और हमसे कोई कमी रह गई हो तो क्षमा कीजिए।
  मैंने पूछा- "आज आपने कन्यादान किया है न..?"
उनका उत्तर था- हां.. !
मेंरा प्रतिप्रश्न-" अर्थात दाता तो आप हो न ? तो फिर आपका हाथ हमारे हाथों के ऊपर है हम याचक हैं। याचक का स्तर हमेशा ही दाता से नीचे होता है मैं आपको प्रणाम करना चाहता हूं आपको प्रणाम है।
    भाव से परिपूर्ण पुत्री संतान के उस पिता को इस संवाद से जो प्रसन्नता हुई होगी उसका आंकलन करना बहुत मुश्किल है। पर मुझे विश्वास है कि-" इस तो कैसे संवाद से आप सबके मस्तिष्क में संतान के प्रति विभेद के दृष्टिकोण का अंत अवश्य हो जाएगा।"
  सुधि पाठक आप सबको नमन करते हुए  आत्मिक अनुरोध करना चाहता हूं-" आप पुत्र संतान , उत्कंठा में भ्रूण हत्याएं रोक दीजिए और अपनी पुत्री संतान को भी पुत्र संतान के समतुल्य ही मानिए। वंश केवल पुत्रों से नहीं चलता है, यह समाज का गलत दृष्टिकोण है। वंश पुत्रियां भी आगे नहीं जाती है यह वैज्ञानिक सत्य है। आप की संतान में आपका डीएनए है और वह डीएनए अनंत काल तक जीवित रहता है उसका स्थानांतरण होता रहता है। तो आप किस आधार पर कहते हैं कि वंश पुत्र ही चलाते हैं यह एक उत्तराधिकारी व्यवस्था हो सकती है लेकिन वैज्ञानिक और अध्यात्मिक व्यवस्था यह नहीं है जिसे आपने अपने मस्तिष्क को कूड़ेदान बनाकर संभाल कर रखा है।
 


 

रविवार, सितंबर 25, 2022

Fall in LIC share prices, loss of middle class

*Institutional investment is needed on the falling stock of LIC, otherwise the loss is only the loss of the middle class shareholders.*
The BPO of Life Insurance Corporation of India was issued at Rs 949. But this stock has fallen to ₹ 648 with a terrible fall of 32%.
This is the result of the biggest weakness of Life Insurance Corporation of India's management.
Traders who intervene in the stock market consider this fall as a permanent decline.
The middle class took the shares of Life Insurance Corporation of India all over India.The middle class had reposed their trust in LIC given the tagline of their hard earned money with life and after life.
There is no doubt that this organization i.e. Life Insurance Corporation of India has expertise in the matter of sales, but this skill is not working in the stock market.Life Insurance Corporation of India appears to be the weakest in finance management.
Senior officers of Life Insurance Corporation, who directly intervene in the management, are busy explaining to their subordinate officers that - "It is a conspiracy by the elements of business competition, due to which the shares fell."
Blaming others for the fall in LIC's stock is a classic example of business weakness. The most unfortunate thing is that the fall in the stock prices of Life Insurance Corporation of India is a sad situation for thousands of middle class families.In fact the middle class people had unwavering trust in their LIC agent in this promotion.LIC agents also do not have much knowledge regarding stock marketing. 
Gautam Adani holds 10% of LIC's stock.Adani also has companies that are involved in other businesses.Despite this Adani Group of Companies has also received loan from State Bank of India.This is definitely a matter of concern.
Overall, this attempt to mobilize capital from the market is giving very negative results due to weak managerial ability. 
We can only pray that God can compensate the financial loss of the middle class people.

मिलिट्री तख्तापलट खबर और ग्लोबल टाइम्स खामोश..?


शुक्रवार और शनिवार दरमियानी रात से चीन में तख्तापलट की खबरों का बाजार गर्म हो गया। शनिवार अर्थात 24 सितंबर 2022 सुब्रमण्यम स्वामी जी ने ट्वीट करके चीन के हालातों पर सवाल खड़े कर दिए।
  विश्व का समाचार बाजार इन दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से बेहद प्रभावशाली बन गया है। आज ट्विटर पर नंबर एक पर शी जिनपिंग और नंबर दो पर बीजिंग शब्द सर्वाधिक बार प्रयोग में लाया जा रहा था।
  भारतीय खबर रटाऊ मीडिया को बैठे-बिठाए मसाला मिल गया परंतु तथ्यात्मक जानकारी मीडिया हाउसेस में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अनुपलब्ध रही है।
आइए हम बताते हैं कि किन कारणों से यह खबर इन दिनों विश्व के समानांतर, मीडिया न्यू मीडिया अथवा सोशल मीडिया पर वायरल है कि चीन में मिलिट्री तख्तापलट हो चुका है?
[  ] जब भी चीन के मामले में कोई खबर सुर्खियों में आती है तब ग्लोबल टाइम्स उसे तुरंत रिस्पॉन्ड करता है। परंतु इस खबर के संदर्भ में ग्लोबल टाइम्स की चुप्पी का अर्थ मौन स्वीकृति लक्षण तो नहीं?
[  ] शंघाई  को-ऑपरेशन संगठन की बैठक में अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारों ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आज सहज रूप में देखा तथा उसका उल्लेख भी किया।
[  ] एक पत्रकार जेनिफर जैंग ने ऐसा वीडियो रिलीज किया जिसमें 80 किलोमीटर तक मिलिट्री के ट्रक बीजिंग की ओर जाते हुए नजर आए। इस वीडियो को पाकिस्तानी यूट्यूबर आरजू अकादमी ने प्रमुखता के साथ अपने दैनिक शो में प्रेजेंट किया है। यद्यपि वे अपने शो में इस मिलिट्री कू की पुष्टि नहीं कर रही थीं।
[  ] इस तख्तापलट का श्रेय जाता है चीन के पूर्व राष्ट्रपति एवं पूर्व प्रधानमंत्री को जिनका नाम क्रमशः हू जिंग ताओ एवम वें ज़िया हो है । खबरें यह भी हैं कि इन दोनों में समरकंद में हुई s.c.o. सम्मिट में ही सी जिनपिंग को सुरक्षा एजेंसियों से गिरफ्तार करवा लिया था।
[  ] समाचार यह भी गर्म है कि-" चीन की एक सेना अधिकारी ली क्यांग मिंग चीन के अगले राष्ट्रपति होंगे।
[  ] अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने इस समाचार की भी पुष्टि की है कि समिति के उपरांत होने वाले डिनर के पहले ही चाइना के राष्ट्रपति चीन के लिए रवाना हो चुके थे वह भी डिनर में शामिल हुए बिना।
[  ] सूचना माध्यम यह भी बताते हैं कि-" शी जिनपिंग को हाउस अरेस्ट कर दिया गया है।"
[  ] विश्व मीडिया का ध्यान चीन से विश्व में जाने वाली 60% फ्लाइट के उड़ान ना भर सकने को भी इस मिलिट्री तख्तापलट का संकेत माना है। कहा जाता है कि किंतु विश्व भर में 9584 एयरक्राफ्ट विदेशों के लिए उड़ ना सके।
[  ] रूस ने इनको पावर आफ साइबेरिया नाम से जानी जाने वाली पाइप लाइन के जरिए तेल देने पर अस्थाई तौर से रोक लगा दी है।
  उपरोक्त परिस्थितियों से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि-" चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अब सत्ता विहीन हो चुके हैं। चीन की संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को केवल दो बार राष्ट्रपति बनने की व्यवस्था है परंतु शी जिनपिंग का यह प्रयास रहा कि वे आजीवन चीन के राष्ट्रपति रहेंगे। यह तथ्य पूरा विश्व जानता है और चीन के महत्वाकांक्षी लोगों के मन में शी जिनपिंग का यह सपना बरसों से खटक रहा है। इस कारण भी तख्तापलट की इन खबरों से इंकार नहीं किया जा सकता ?
*यदि यह मिलिट्री कू हुआ है तो उसका कारण क्या है?*
   मीडिया रिपोर्ट पर गंभीरता से विचार किया जाए तो आप पाएंगे ताइवान मुद्दे पर चीन के राष्ट्रपति की चुप्पी को लेकर चीन की आर्मी पी एल ए अर्थात पीपल्स लिबरेशन आर्मी राष्ट्रपति के खिलाफ है। दूसरी ओर चीन में आर्थिक संकट तथा आंतरिक आर्थिक अस्थिरता का दोषी भी शी जिनपिंग को माना जा रहा है। साथ ही चीन के नागरिक अब अधिक मुखर हो गए हैं वह शी जिनपिंग के कोविड कालीन प्रबंधन से बेहद नाराज दिखाई दे रहे हैं।
इसके अतिरिक्त चीन का अंतर्राष्ट्रीय रसूख भी इन दिनों तेजी से अपेक्षा कृत कमजोर हुआ है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो विश्वव्यापी इस अफवाह को पूरी तरह से अफवाह नहीं कहा जा सकता? और इसे हूबहू स्वीकारना भी ठीक नहीं है जब तक की कोई आधिकारिक घोषणा ना हो।
  *शी जिनपिंग के कार्यकाल में शाइनो-इंडिया रिलेशनशिप*
    भारत की ओर से चीन के साथ मैत्री संबंध के प्रयास हमेशा ही सकारात्मक रहे हैं परंतु चीन पर डोकलाम घटना के बाद चीन से रिश्ते नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए थे। अंततः चीन को अपनी रणनीति से भारत के समक्ष झुकना पड़ा। पाकिस्तान के साथ चीन के रिश्ते व्यवसायिक रूप से मजबूत रहे हैं परंतु चीन की श्रीलंका और पाकिस्तान सहित अफ्रीकन देशों के साथ आर्थिक धोखेबाजी से पूरा विश्व चीन के विरोध में है। भारत का स्टैंड जियोपोलिटिक्स में मजबूत होता नजर आता है तो उसका कारण है-"चीन के विश्व के महत्वपूर्ण देशों से रिश्तो में खटास..!" विश्व के महत्वपूर्ण राष्ट्रों में भारत भी शामिल है आप सहज अंदाज लगा सकते हैं कि चीन के साथ हमारा संबंध सामान्य से कमजोर ही रहा है।
   यदि यह खबर सत्य है तो ऊपर दिए गए समस्त कारणों के आधार पर ही सत्य होगी परंतु हमें इस बात पर विश्वास करना चाहिए कि भारत के प्रति कीमती विदेश नीति सकारात्मक और भावात्मक नहीं है।

शनिवार, सितंबर 24, 2022

चावल निर्यात पर प्रतिबंध से डब्ल्यूटीओ में हड़कंप

*चावल निर्यात पर प्रतिबंध से विश्व व्यापार संगठन में मची अफरा-तफरी*
   विगत तिमाही में भारत सरकार ने आयात निर्यात को विनियमित करते हुए भारतीय बाजार की स्थिति के मद्देनजर ब्रोकन चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। आप जानते ही हैं कि विश्व बाजार में खाद्य आपूर्ति के मामले में भारत का योगदान पहले पांच नंबरों में आता है। चावल की वैश्विक खपत को देखते हुए आप को आश्चर्य होगा कि भारत से विगत 2021 में चावल का निर्यात 150 देशों में 9.6 बिलियन डॉलर्स  का रहा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में प्राकृतिक कारणों से घरेलू उत्पादन में चावल का उत्पादन 13% कम रहा है। इससे भारत का आंतरिक बाजार प्रभावित हुआ है। भारत में चावल निर्यात में पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया है बल्कि केवल ब्रोकन चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है और सामान्य चावल पर 20% की एक्सपोर्ट ड्यूटी लगाई गई है। इतना करने मात्र से विश्व व्यापार संगठन में लगभग 150 देशों के प्रतिनिधियों ने यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया कि भारत के इस कदम से विश्व की खाद्य आपूर्ति व्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है। इस मुद्दे को लीड करने में अमेरिका और सेनेगल सबसे आगे है। अमेरिका का यह भी कहना है कि -" ऐसे प्रतिबंधों से यह अर्थ निकाला जाता है कि भारत अत्यधिक प्रॉफिट कमाना चाहता है।"
   परंतु विश्व में फूड सिक्योरिटी , आपूर्ति और सप्लाई चैन के मामले में भारत का सदा ही पॉजिटिव नजरिया रहा है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि केवल निर्यात को सर्वोपरि रखा जावे निर्यात को सर्वोपरि रखने से हमारी आर्थिक व्यवस्था भी प्रभावित होती है फिर भी आंतरिक समस्याओं को देखते हुए हमें आवश्यक है कि हम कुछ ऐसे निर्णय लें जो भले ही नुकसानदेह हो परंतु जनता के लिए लाभकारी हो। भारत में 125 करोड़ से अधिक आबादी के लिए ब्रोकन राइस की उपलब्धता हमेशा आवश्यक और प्राथमिकता वाली होती है। यदि हम ऐसे अत्यंत उपयोगी खाद्य सामग्री को विश्व में बाटेंगे तो भारत में ब्रोकन राइस की कीमत आसमान को छू लेगी और आम आदमी तक इसकी उपलब्धता में नकारात्मक रूप से प्रभाव पड़ेगा। डब्ल्यूटीओ में इस मुद्दे को उठाकर विश्व के 150 देशों ने भारत को भेजने की कोशिश की परंतु भारतीय प्रतिनिधि ने स्पष्ट रूप से सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए स्पष्ट कर दिया कि-" भारत का संकल्प है की सप्लाई चेन को मेंटेन रखें लेकिन आंतरिक आवश्यकताओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता। जैसा कि आप सब जानते हैं कि इस वर्ष प्राकृतिक कारणों से भी भारत में खाद्यान्न का उत्पादन अपेक्षाकृत कम हुआ है अतः ऐसे कदम उठाना राष्ट्रहित में आवश्यक है और कोई भी सरकार अपने लोगों को भूखा रखकर निर्यात को सर्वोपरि कैसे रख सकती है?
   विश्व व्यापार संगठन की एक और अहम समस्या है कि विश्व व्यापार संगठन तेल उत्पादक देशों द्वारा निर्मित तेल के कृत्रिम अभाव कम उत्पादन पर हमेशा चुप रहा है। और आप देखते हैं कि विश्व बाजार में आए दिन क्रूड ऑयल कि वैश्विक आपूर्ति में मूल्यों में वृद्धि होती रहती है। और क्रूड आयल एक अत्यधिक लाभ कमाने का उत्पादक देशों के लिए महत्वपूर्ण साधन बन गया है। इससे दक्षिण एशियाई देशों ही नहीं बल्कि विश्व के उन तमाम देशों अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ता है जो तेल उत्पादक देशों से तेल का आयात करते हैं । इसके पूर्व भी आपने देखा होगा कि कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत में सब्सिडी को टारगेट करते हुए भारत के विरुद्ध आवेदन विश्व व्यापार संगठन के मुख्यालय में जमा किए। इसके अलावा कई देश विशेष तौर पर यूरोपियन देश भारत के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन में नकारात्मक वातावरण निर्मित करने की कोशिश करते रहे हैं।
   भारत की आयात निर्यात पॉलिसी सदा से ही सकारात्मक रही है। जबकि कोविड-19 के दौरान कच्चे केमिकल की आपूर्ति के संदर्भ में  अमेरिका द्वारा प्रतिबंध की कोशिश की थी। कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए भारत को जिस केमिकल की जरूरत थी उस पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगा  दिया था। परंतु अंतरराष्ट्रीय दबाव एवं भारत की क्षमता को देखते हुए अमेरिका के तत्सम में नवनिर्वाचित हुए राष्ट्रपति जो बाइडन को अपनी निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ा। वर्तमान में भारत की स्थिति रशियन तेल आपूर्ति व्यवस्था के कारण सामान्यतः ठीक है। विश्व खाद्य आपूर्ति अर्थात आयात निर्यात को डब्ल्यूटीओ ने सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा तो है परंतु यूरोपियन देश भारत में उत्पादित खाद्यान्नों पर सब्सिडी देने तक पर सवाल उठाते हैं। भारत की फेडरल और राज्य सरकारों द्वारा कृषि उत्पादन को उत्कृष्ट बनाने की जद्दोजहद करते हुए राजकोष से सब्सिडी प्रदान करती है। इस कारण भारत में कृषि उत्पाद की गुणवत्ता तथा मात्रा में वृद्धि देखी जा रही है। और यही विकास यूरोपियन देशों के पेट का दर्द बना हुआ है।
   तेल संकट से जूझ रहा यूरोप इन दिनों भारत के आंतरिक कारणों से चावल पर लगाए गए प्रतिबंध से भयभीत भी नजर आ रहा है।
   डब्ल्यूटीओ को यह बात समझनी चाहिए कि अगर तेल की कीमतों पर नियंत्रण रहा तो विश्व के अविकसित विकासशील देशों की आर्थिक व्यवस्था धीरे धीरे सुदृढ़ होगी परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इस मुद्दे पर विश्व व्यापार संगठन एक पक्षीय दृष्टिकोण अपनाता है। तेल की कीमतों पर सदा चुपचाप रहना  और भारत द्वारा उत्पादित खाद्य सामग्रियों के संदर्भ में अत्यधिक मुखर देशों की बात सुनना डब्ल्यूटीओ की सबसे बड़ी भूल है।
   

गुरुवार, सितंबर 22, 2022

दिलदार सरदार दमदार सरदार बीएस पाबला

अद्भुत व्यक्तित्व था बीएस पाबला जी का उनसे मुलाकात की वजह हिंदी ब्लॉगिंग में प्रभावी लेखन एवं ब्लॉगिंग के तकनीकी ज्ञान रही है। पाबला जी से मुलाकात दिल्ली में हुए अंतरराष्ट्रीय ब्लॉगर्स मीट में हुई थी। दिल्ली में मिले देश चिट्ठाकार  ऐसे मिले जैसे आपस में बड़ा घरेलू सा रिश्ता हो। मध्य प्रदेश के सहोदर राज्य छत्तीसगढ़ के रायपुर के सभी ब्लॉगर भाई श्री ललित शर्मा जी सहित ब्लॉगर्स से आवाज सुनने का रिश्ता तो था ही पर प्रत्यक्ष मिलते ही सच में ऐसा लगा जैसे हम सच एक ही मोहल्ले में रहने वाली लोग हैं। जबलपुर मूल के समीर लाल कनाडा से बैठे-बठे बहुत तेरी लोगों को ब्लॉगिंग सिखाते तो पाबला जी ब्लॉगिंग में आने वाली तकनीकी समस्याओं का  दुख दर्द मिटाने में पीछे नहीं रहते। अक्सर हम सब समस्याओं का निदान पावभाजी से ही पाते थे। उनका सहयोगी भाव अद्भुत था। 1 दिन में सुबह-सुबह चकित रह गया जब बाबूलाल जी का कॉल आया। 29 नवंबर 2008 अथवा 2009 की बात है यह मेरे लिए बड़ा महत्वपूर्ण दिन है इस  दिन मेरा जन्मदिन होता है पाबला जी ने शुभकामनाएं दी। उन्होंने बड़ी मेहनत से सारे हिंदी चिट्ठाकारों के जन्म पर्वों का लेखा जोखा बना रखा था और ऑफिस जाने के पहले उन सभी को फोन लगाकर बधाई अवश्य देते। एक बार मेरा ब्लॉग ठीक तरीके से काम नहीं कर रहा था। पाबला जी ने अपने तकनीकी ज्ञान से ब्लॉग का ढांचा ही सुधार दिया। और मुझे निर्देश दिया कि आप तुरंत पासवर्ड बदल लीजिए। मैंने बड़े उदासीन भाव से कहा -" पाबला जी पासवर्ड आपके पास है न..?"
पाबला जी ने कहा-" मैं शाम को देखूंगा कि आपने पासवर्ड बदला कि नहीं अभी तो मुझे दफ्तर जाना है। पासवर्ड किसी को भी शेयर नहीं करना चाहिए।"
  पुत्र के असमय निधन से वे दुखी जरूर थे परंतु जीवन को भरपूर शिद्दत से जीते रहे अपने आंसू आंखों में कहां छुपा लिया करते थे इस बारे में वे ही जानते हैं या वाहेगुरु ?
 उनके अकेलेपन को मिटाने का काम उनका डॉगी था जिसे भी प्यार से मैक सिंह बुलाते थे।
   दिलदार सरदार दमदार सरदार बीएस पाबला 21 सितंबर 2021 को हम सब को छोड़ कर अनंत यात्रा में पर निकल पड़े। बी एस पाबला जी को विनम्र श्रद्धांजलि शत शत नमन उनकी अनुपस्थिति हमेशा हमें खलती है।

रविवार, सितंबर 18, 2022

हिंसा, अहिंसा और हमारा जीवन


भारतीय जीवन दर्शन हिंसा का हिमायती नहीं है। वह तो इतना भी हिंसक नहीं है कि किसी के हृदय को ठेस भी लगे ।
     हमारी  सनातनी परंपराएं हिंसा का समर्थन न करती हैं न करेंगी। अहिंसा जीवन दर्शन का मूल तत्व है। शारीरिक मानसिक और वाचिक हिंसा को विश्व का कोई भी शब्द समाज अंगीकार नहीं करता है।
   यहां हम जीवन दर्शन की चर्चा कर रहे हैं।
लेकिन क्या हमेशा केवल आपको ही अहिंसक रहना है?
ऐसी स्थिति में मेरी सलाह है - "नहीं आदर्श स्थिति में आप अहिंसक रहिए असामान्य स्थिति में जीवन को सुरक्षित और रक्षित करने के लिए अहिंसा की सीमाएं पार करनी ही होगी ।"
      क्या तुम हमेशा अहिंसा का लबादा ओढ़े रहोगे ? यदि तुम्हारे समक्ष हिंसा का वातावरण निर्मित हो गया हो तो?
   यह प्रश्न सामान्य रूप से पूछा जाता है। कदापि नहीं ऐसा होना भी नहीं चाहिए ऐसा होता भी नहीं है। जब कभी भी हम हिंसा पर विमर्श करते हैं तो इसका आशय यह कतई नहीं है कि हमें अहिंसक ही बने रहना है। ईश्वर ने आपको किसी कार्य विशेष के लिए पृथ्वी पर भेजा है। कार्य क्या है इसका आपको तनिक भी आभास नहीं होता परंतु कार्य करना आपका दायित्व होता है और ईश्वर आपसे यह कार्य करा लेता है। कृष्ण ने 5 गांव ही तो मांगे थे पूरा साम्राज्य तो दुर्योधन के पास था। दुर्योधन सृष्टि का सबसे अन्यायी  राजकुमार क्यों बन गया? वस्तुतः दुर्योधन के मस्तिष्क में बचपन से ही कुंठा और हिंसा का बीजारोपण हो चुका था। वह बचपन से ही पांडवों से युद्ध कर रहा था । कृष्ण ने बहुत प्रयास किए।
समकालीन परिस्थितियों में यद्यपि आजकल कृष्ण के पूजक बहुत हैं, पर कृष्ण के अनुसरण कर्ताओं की संख्या समाप्त सी हो गई है। कृष्ण का अनुसरण करने का अर्थ है कि आप हम न्याय प्रिय बने। पूरा कृष्ण बनने को कोई कह भी नहीं रहा है। आजकल तो माता पिता भाई बहन और तथाकथित रिश्तेदार अगर न्याय की बात होती है तो सबसे पहले सबल पक्ष के साथ खड़े नजर आते हैं। इनमें कृष्ण कहां है? निर्बल के बल राम तो बहुत दूर की बात हुई..! उसके बाद का हमारे  महायोगी कृष्ण का कैरेक्टर किसी में नजर नहीं आता।
  अब न तो अर्जुन को संबल देने वाला कृष्ण है और न ही दुर्योधन को समझाने वाला कृष्ण बचा है। कितना भी खोजो नहीं मिलेगा। कृष्ण कभी युद्ध नहीं करते कृष्ण का दायित्व समन्वय स्थापित सुनिश्चित करना  है।
      दुर्भाग्य है कि गीता कंठस्थ होने के बावजूद अपने आपको कंफर्ट ज़ोन में रखने की जद्दोजहद में न्याय का पक्षधर नजर नहीं आता यानी अब कृष्ण नजर नहीं आता। 5000 साल ही तो बीते हैं कृष्ण के युग कलयुग की यात्रा तक। मां कहती थी कि लोग अपने कीर्ति की दुंदुभी बजाने के लिए सर्वाधिक सक्रिय होते हैं। दो तीन दशक पहले कहीं गई यह बात आज भी समीचीन है। चलो मूल प्रश्न पर आते हैं हिंसा अहिंसा और जीवन जी हां हिंसा का अतिरेक अहिंसा की रक्षा कवच रोका नहीं जा सकता।
   तुम अपने कृष्ण स्वयं बन जाओ। बार-बार अहिंसक को यथासंभव समझाओ पर ना समझे तो हिंसक हो जाओ। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि रक्त पात करो..! सड़कों पर खून खून की धाराएं बहा दो! ऐसा मत करो परंतु प्रतिकार अवश्य करो स्पष्ट वादी हो कर अपनी बात रखो। अगर यह ना करोगे तो कायर कहलाओगे। कायरता मोक्ष का रास्ता नहीं है।
  मेरे इस आर्टिकल को युद्ध की प्रेरणा मत समझना बल्कि इसे एक कृष्ण की तलाश का प्रयास समझना, आपको कृष्ण मिलेगा बस तलाशने की जरूरत है। इसका अर्थ यह भी है कि-"आप कृष्ण कि केवल पूजा मात्र न करें, बल्कि कृष्ण का अनुसरण करें और न्याय न्यायिक समीक्षा करें पीड़ित पक्ष को मदद करें । मुंह तक रजाई ओढ़ कर सोना कायरता की निशानी है।
   

गुरुवार, सितंबर 15, 2022

मातृत्व एवम न्यायपूर्ण_कुलपालन के पथ से स्वर्ग का रास्ता..!


                💐💐💐
तुम्हारे ईश्वर तुम ईश्वर के साथ ही हैं तुम ईश्वर के साथ कब कब हो बताओ...!
वन वन भटकते रहे कुछ योगियों ने अहर्निश प्रभू से साक्षात्कार की उम्मीद की थी । 20 बरस बीतते बीतते वे धीरे धीरे परिपक्व उम्र के हो गए ! 
कुछ तो मृत्यु की बाट जोह रहे थे । पर प्रभू नज़र न आए । नज़र आते कैसे उनके मन में सर्वज्ञ होने का जो भरम था । श्रेष्ठतम होने का कल्ट (लबादा) ओढ़कर घूम रहे थे । कोई योग में निष्णात था तो कोई अदृश्य होने की शक्ति से संपृक्त था । किसी को वेदोपनिषद का भयंकर ज्ञान था तो कोई बैठे बैठे धरा से सौर मंडल की यात्रा पर सहज ही निकल जाता था । 
  परमज्ञानीयों में से एक ज्ञानी अंतिम सांस गिन रहा था । तभी आकाश से एक  यान आया ।और योगियों के जत्थे के पास की आदिम जाति की बस्ती की एक झोपड़ी के सामने उतरा। 
 यान को देख सारे योगी सोचने लगे लगता है कि यान के चालक को भरम हुआ है। इंद्र के इस यान को कोई मूर्ख देवता चला रहा है शायद सब दौड़ चले  यान के पास खड़े होकर बोले - है देव्, योगिराज तो कुटिया में अंतिम सांसे गिन रहे हैं । आप वहीं चलिए । 
देव् ने कहा- हे ऋषियों, मैं दीनू और उसकी अर्धांगिनी को लेने आया हूँ। 
महायोगी के लिए यम ने कोई और व्यवस्था की होगी । 
ऋषियों के चेहरे उतरते देख देव् ने कहा - इस दम्पत्ति में  पत्नि ने ता उम्र मातृत्व धर्म का पालन किया है । स्वयम विष्णु ने इसे देवत्व सम्मान के साथ आहूत किया । 
और दीनू..?
देव्- उसने सदा ही निज धर्म का पालन किया । मिल बांट कर कुटुंब के हर व्यक्ति को समान रूप से धन धान्य ही नहीं प्रेम का वितरण भी किया । 
अतः मैं देवराज इंद्र की यम से हुई चर्चानुसार आया हूँ ।
पूरी दुनिया भर का ज्ञात अज्ञात अध्यात्म एक पल में समझ में आ गया ऋषियों को । 
 ( न स्वर्ग है नर्क है यहां केवल सांकेतिक रूप से उल्लेखित है ।  मातृत्व और कौटुंबिक न्याय का महत्व समझाने के लिए कथा की रचना की गई है )

सोमवार, सितंबर 12, 2022

द्वि पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ब्रह्मलीन



 राष्ट्रीय संत स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्मसम्राट ज्योतिषपीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती का 99 वर्ष की आयु पूर्ण 100 वें वर्ष में प्रवेश करने के पश्चात् दिनांक 11 सितंबर 2022 को उनका तपस्या स्थली परमहंसी गंगा आश्रम में देवलोकगमन् हो गया। शंकराचार्य जी का जन्म 24 सितम्बर 1924 को सिवनी जिले के ग्राम दिघोरी में हुआ था। सनातन हिन्दू परम्परा के कुलीन ब्राह्मण परिवार में  पिता श्रीधनपति उपाध्याय एवं माता गिरिजा देवी के यहां जन्मे स्वामी जी का नाम माता पिता ने पोथीराम रखा था। पोथी अर्थात् शास्त्र मानो शास्त्रावतार हों। ऐसे संस्कारशील परिवार में महाराजश्री के संस्कारों को जागृत होते देर न लगी और वे 9 वर्ष के कोमलवय में गृह त्याग कर भारत के प्रत्येक प्रसिद्ध तीर्थस्थान और संतों के दर्शन करते हुए आप काशी पहुंचे। वहां आपने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्रीजी महाराज एवं स्वामी महेश्वरानन्द जी जैसे विद्वानों से वेद-वेदान्त, शास्त्र-पुराणेतिहास सहित स्मृति एवं न्याय ग्रन्थों का विधिवत् अनुशीलन किया।
यह वह काल था, जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। महाराजश्री भी इस पक्ष के थे, इसलिए जब सन् 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का घोष मुखरित हुआ, तो महाराज श्री भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और मात्र 19 वर्ष की अवस्था में ‘क्रान्तिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। पूज्य श्रीचरणों को इसी सिलसिले में वाराणसी  और मध्यप्रदेश के जेलों में क्रमश: 9 और 6 महीने की सजाएं भोगनी पड़ीं। महापुरुषों के संकल्प की शक्ति से 1947 में देश आजाद हुआ। अब पूज्य श्री में तत्वज्ञान की उत्कण्ठा जगी।
भारतीय इतिहास में एकता के प्रतीक सन्त श्रीमदादिशङ्कराचार्य द्वारा स्थापित अद्वैत मत को सर्वश्रेष्ठ जानकर, आज के विखण्डित समाज में पुन: शङ्कराचार्य के विचारों के प्रसार को आवश्यक ज्ञान और तत्त्वचिन्तन के अपने संकल्प की पूर्ति हेतु सन् 1950 में ज्योतिष्पीठ के तत्कालीन शङ्कराचार्य स्वामी श्री ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज से विधिवत  दण्ड संन्यास की दीक्षा लेकर स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से प्रसिद्ध हुए। जिस भारत  की स्वतन्तत्रता के लिए आपने संग्राम किया था, उसी भारत को आजादी के बाद भी अखण्ड, शान्त और सुखी न देखकर भारत के नागरिकों को दैहिक एवं भौतिक तापों से मुक्ति दिलाने हेतु, हिन्दु कोड बिल के विरुद्ध स्वामी करपात्रीजी महाराज द्वारा  स्थापित  ‘रामराज्य परिषद्’ के अध्यक्ष पद से सम्पूर्ण भारत में रामराज्य लाने का प्रयत्न किया और हिन्दुओं को उनके राजनैतिक अस्तित्त्व का बोध कराया।
ज्योतिष्पीठ के शङ्कराचार्य स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी महाराज के ब्रह्मलीन हो जाने पर सन् 1973 में द्वारकापीठ के तत्कालीन शङ्कराचार्य एवं स्वामी करपात्री जी महाराज सहित देश के तमाम संतों, विद्वानों द्वारा आप ज्योतिष्पीठ पर अभिषिक्त किये गये और ज्योतिष्पीठाधीश्वर शङ्कराचार्य के रूप में हिन्दुधर्म को अमूल्य संरक्षण देने लगे।
आपका संकल्प रहा है कि - विश्व का कल्याण। इसी शुभ भावना का मूर्तरूप देने के लिए आपने झारखण्ड प्रान्त के सिंहभूमि जिले में ‘विश्वकल्याण आश्रम’ की स्थापना की। जहां जंगल में रहने वाले आदिवासियों  को भोजन, औषधि एवं रोजगार देकर उनके जीवन को  उन्नत बनाने का आपने प्रयास किया। करोड़ों रुपयों की लागत से विशाल एवं आधुनिक अस्पताल वहां निर्मित हो चुका है, जिससे क्षेत्र के तमाम गरीब आदिवासी लाभान्वित हो रहे हैं।
पूज्यमहाराजश्री ने समस्त भारत की अध्यात्मिक उन्नति को ध्यान में रखकर आध्यात्मिक-उत्थान-मण्डल नामक संस्था स्थापित की थी। जिसका मुख्यालय भारत के मध्यभाग में स्थित मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में रखा। वहां पूज्य महाराज श्री ने राजराजेश्वरी त्रिपुर-सुन्दरी भगवती का विशाल मन्दिर बनाया है। सम्प्रति सारे देश में आध्यात्मिक उत्थान मण्डल की 1200 से अधिक शाखाएं लोगों में आध्यात्मिक चेतना के जागरण एवं ज्ञान तथा भक्ति के प्रचार के लिये समर्पित हैं। द्वारकाशारदापीठ के जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री अभिनव सच्चिदानन्द तीर्थजी महाराज के ब्रह्मलीन होने पर उनके इच्छापत्र के अनुसार 27 मई 1982 को आप द्वारकापीठ की गद्दी पर अभिषिक्त हुए और इस प्रकार आप आदि शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से दो पीठों पर विराजने वाले पहले शङ्कराचार्य के रूप में प्रसिद्ध हुए।
एतदितिरिक्त देशभर में आपके द्वारा अनेक संस्कृत विद्यालय, बाल विद्यालय, नेत्रालय, आयुर्वेद, औषधालय, अनुसंधानशाला, आश्रम, आदिवासीशाला, कॉलेज, संस्कृत एकेडमी, गौशाला और अन्न क्षेत्र जैसी प्रवृत्तियां संपादित हो रही हैं तथा आप स्वयं भी अनवरत भ्रमण करते हुए संस्थाओं का संचालन व धर्मप्रसार करते रहे।  भगवान् आदिशङ्कराचार्य द्वारा स्थापित पीठों में से दो पीठों (द्वारका एवं ज्योतिष्पीठ) को सुशोभित करने वाले जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज करोड़ों सनातन  हिन्दु धर्मवलम्बियों के प्रेरणापुंज और उनकी आस्था के  ज्योति स्तम्भ रहे हैं, लेकिन इससे भी परे वे एक उदार मानवतावादी सन्त भी थे। परमवीतराग, नि:स्पृह और राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत एक परमहंस साधु, जिनके मन में दलितों-शोषितों के प्रति असीम करूणा भी रही है।
         ॐ राम कृष्ण हरि:
स्वर समर्पण  बेटी उन्नति तिवारी
शब्द समर्पण श्री सच्चिदानंद शेकटकर
विनम्र श्रद्धांजलि संभागीय बाल भवन जबलपुर

शुक्रवार, सितंबर 09, 2022

अमर शहीद : शंकर शाह-रघुनाथ शाह - डाॅ. किशन कछवाहा

   
उर्दू भाषा में लिखे फैसले का हिन्दी में रूपान्तरण कचहरी अदालत फौजदार जबलपुर।

(मुकदमा-ए-बगावत सिलसिले शंकर शाह व रघुनाथ शाह व दीगर मुद्दई आलम मकसद हकीकत हाल 11 जुलाई 1857 पहली तहसीलदार, जबलपुर...........
बगावत व कत्ल करने, विलायतियों को लूटने व खजाना शहर.........
राजा शंकर शाह व रघुनाथ शाह को सजा-ए-मौत तकसीम की जाती है कि जिन्दा तोप से उड़ा दिया जाये।)

‘‘अपनी आराध्य गढ़ा- पुरवा स्थित कमलासनी माला देवी को अनुनय-विनय के साथ लिखा हुआ पत्र, जो ब्रिटिश शासन के स्थानीय कलेक्टर क्लार्क के हाथ लग गया था, मात्र इसी पत्र के आधार पर पिता-पुत्र शंकर शाह-रघुनाथ शाह को विद्रोह करने के अपराध में तोप के मुँह से बाँध कर उड़ा देने का दण्ड सुना दिया गया था। आराध्या श्री मालादेवी की प्रतिमा में माँ लक्ष्मी कमलासन पर विराजमान हैं। नीचे सिंह बैठा हुआ है, जिस पर देवी जी अपना एक पैर रखे हुये हैं। वहीं दूसरी ओर एक अन्य आकृति विद्यमान है।’’

गौंड राजाओं मदन शाह से लेकर शंकर शाह व रघुनाथ शाह की आराध्य श्री मालादेवी रहीं हैं। अपनी आराध्या देवी की वंदना करते हुये उन्होंने अंग्रेजों का दलन करने की प्रार्थना की थी। ब्रिटिश हुक्मरानों को बखरी में की गयी सघन जांच पड़ताल के बाद एक कागज के टुकड़े पर रघुनाथ शाह द्वारा लिखित कविता की कुछ पंक्तियाँ ही हासिल हो पायी थी जिसे आधार बनाकर विद्रोह करने का इतना बड़ा अत्याचारी कदम ब्रिटिश शासन द्वारा उठाया गया।  उक्त कागज में लिखी कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार थी-

‘‘मूँद मुख इंडिन को चुगलों को चबाई खाई,
खूँद दौड़ दुष्टन को शत्रु-संघारिता।
संकर की रक्षा कर, दास प्रतिपाल कर,
दीन की सुन आय मात कालिका।
खायई ले मलेच्छन को झेल नहीं करो अब,
भच्छन कर तत्छन धौर मात कालिका।।’’
इस कविता की इन पंक्तियों का अंग्रेज अधिकारी ने अंग्रेजी में भाषान्तरण कराकर रिपोर्ट में संलग्न किया था। 14 सितम्बर 1857 को पुरवा स्थित आवासीय परिसर को घेरकर शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह सहित 13 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
    गढ़ा-मण्डला के राजवंश ने अपूर्व गरिमा के साथ ईसवी सन् 158 से 1789 तक अर्थात् 1631 वर्ष राज्य किया। इस राजवंश की रानी दुर्गावती भारत ही नहीं संसार की महान तथा प्रमुखतम महिला थीं जिसने अपने समय के राष्ट्र जीवन के यशस्वी कार्यकाल में विकास के साथ ही मुगल आक्रांताओं के आक्रमणों का समुचित जबाव दिया तथा राष्ट्रीय स्वामिमान के लिये सर्वस्व अर्पण करते हुये वीरगति प्राप्त की। 

उसी परम्परा का निर्वाह करते हुये, पराक्रमी दृढ़ निश्चयी इन पिता-पुत्र ने अपने परिवार की परम्परा और गौरव को आँच नहीं आने दी। उन्होंने भारत से अंग्रेजों को निष्कासित करने की हृदय से कामना की थी। भारी भरकम रक्षा व्यवस्था के बीच वयोवृद्ध शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह जिसकी आयु उस 60 और लगभग 40 के आसपास रही होगी, जिसका चेहरा शांत और गम्भीर बना हुआ था, हाथ पैर बाँध दिये गये, तोप के मुँह के पास खड़े थे, तोपें चला दी गयीं।  कहा तो यहाँ तक जाता है कि पहले-दूसरे प्रयास में तोपें चल ही नहीं सकी। अंततः तीसरे प्रयास में तोपें चली। घटना के बाद एक अंग्रेज अधिकारी, जो घटना के समय उपस्थित था, ने बतलाया कि वह भयानक दृश्य था। शरीर को क्षति तो पहुँची थी लेकिन सिर चेहरों पर क्षति के कोई चिन्ह नहीं थे। वह 18 सितम्बर 1857 का कालादिन  था। यह दुष्कृत्य ब्रिटिश शासन के द्वारा घबड़ाहट में किया गया था। 

रानी दुर्गावती का गौंडवाना साम्राज्य चार लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र तक फैला हुआ था। यह साम्राज्य 52 गढ़ों में विमवत था। जबलपुर में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान अफसर रहे कर्नल स्लीमन के अनुसार गौंडवाना साम्राज्य 300 ग 225 = 67,500 वर्गमील में था। प्रजा सुखी थी और राज्य संचालन की सुचारू व्यवस्था थी। उनके द्वारा निर्मित कतिपय शेष बचे तालाब आज भी राज्य की सम्पन्नता के प्रतीक बने हुये हैं। 

24 जून 1564 में जबलपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित बारहा ग्राम, नर्रईनाला के समीप वीरांगना दुर्गावती ने अंग्रेजों से लड़ते हुये अपनी आहुति दे दी थी। 

सम्पूर्ण महाकोशल क्षेत्र में सन् 1855 से ही अंग्रेजों द्वारा किये गये कतिपय भूमि सम्बंधी कानूनों में किये गये परिवर्तनों एवं तत्कालीन शासकीय कर्मचारी एवं अधिकारियों द्वारा किये जा रहे दुव्र्यवहार, अत्याचारों एवं दमनात्मक कार्यवाहियों के परिणाम स्वरूप जनता में भारी असन्तोष व्याप्त हो रहा था, जिसकं कारण अंग्रेजी सरकार और उनके कर्मचारियों के खिलाफ उपद्रव भी हो चुके थे।

भिन्न-भिन्न कारणों से भीतर ही भीतर सुलगती असन्तोष की लहर सन् 1857 के देश व्यापी आन्दोलन का सहयोगी कारण बनी। जबलपुर के आसपास के क्षेत्रों में छोटी-छोटी चपातियों का चमत्कार यत्र-तत्र फैल चुका था।

16 जून को जबलपुर छावनी की एक छोटी सी घटना  भविष्य का संकेत दे चुकी थी। एक साधारण सैनिक ने गारद का निरीक्षण कर रहे एडजूटेंट गिलर नामक सैनिक अधिकारी पर बन्दूक से हमला कर दिया। इस घटना से अंग्रेज अधिकारी सशंकित रहने लगे थे। ब्रिटिश सैनिक अधिकारियों के आदेशों की खुले आम अवहेलना होने लगी थी। इसी घटना के बाद एक(1) जुलाई को सागर में विद्रोह हो गया। दो दिन  बाद जबलपुर की 52वीं बटालियन की तीन कम्पनियों अपनी नाराजगी प्रकट कर दी। निरंतर जनजीवन में भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ रोष बढ़ता ही जा रहा था। एक गुप्त योजना के माध्यम से आसपास के ठाकुरों, जमींदारों, ताल्लुकेदारों और साहसी नवजवानों की टोलियों ने भी हमले की योजना बना रखी है।

विश्व का सबसे छोटा किला, जिसे गौंडवाना साम्राज्य के दौरान रानी दुर्गावती ने निर्माण कराया गया था, प्रेरणा प्राप्त करने युवकों की टोली यहाँ प्रतिदिन आने लगी थी, यहीं कतिपय निर्णय भी लिये जाने लगे थे।  

पिता-पुत्र को तोप से बाँधकर उड़ा देने की घटना के बाद से ब्रिटिश शासन के अधिकारी भी माहौल को देखकर आशंकित रहने लगे थे। यद्यपि अबतक इन वीर साहसी बलिदानियों की सम्पत्ति राजसात की जा चुकी थी,जिसके कारण इस परिवार को बड़ी कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ा था। 52 तालाबों के लिए प्रसिद्ध जबलपुर शहर गौंड राजाओं की प्रजावत्सलता से प्रभावित तो था ही, इस कारण ब्रिटिश शासन के येन-केन प्रकारेण समाप्ति के प्रयासों के लिये होड़ भी लगी हुयी थी।

बुधवार, सितंबर 07, 2022

अदम्य साहस और संघर्ष की प्रतिमूर्ति : वीरांगना नीरजा भनोट

"अदम्य साहस और संघर्ष की प्रतिमूर्ति : वीरांगना नीरजा भनोट" (आज जयंती पर सादर समर्पित)
 वीरांगना नीरजा भनोट प्रथम भारतीय सबसे कम उम्र की महिला थीं जिन्हें मरणोपरांत - भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान अशोक चक्र (शांति काल में - सैनिक एवं असैनिक क्षेत्र) - प्रदान किया गया था। अदम्य साहस और संघर्ष का दूसरा नाम नीरजा भनोट (Neerja Bhanot)है। जयंती पर शत् शत् नमन है। नीरजा भनोट ने 1986 में ‘पैन एम 73’ फ्लाइट में 360 लोगों की जान बचाई थी। नीरजा भनोट (Neerja Bhanot) का जन्म 7 सितंबर 1963 को पत्रकार पिता हरीश भनोट (Harish Bhanot) और माता रमा भनोट (Rama Bhanot) के घर हुआ था। इनके माता पिता नीरजा को प्यार से लाडाे कह‍कर पुकारते थे। नीरजा की शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी लेकिन दहेज के कारण परेशान किये जाने की वजह से नीरजा ने अपने पति का घर छोड का मुम्बई वापस आ गईं। मुंबई आने के बाद उसने पैन एम एयरलाइन्स(Pan Am Airlines) ज्वाइन कर लिया। इस दौरान नीरजा ने एंटी-हाइजैकिंग(Anti-Hijacking) कोर्स भी किया। एयर-होस्टेस(Air-hostess) बनने से पहले उन्होंने  बिनाका टूथपेस्ट, गोदरेज बेस्ट डिटरजेंट, वैपरेक्स और विको टरमरिक क्रीम जैसे उत्पादों के लिए मॉडलिंग की थी नीरजा सबसे युवा और प्रथम महिला थीं, जिन्हें अशोक चक्र मिला (मृत्यु उपरांत) अशोक चक्र भारत का सर्वोच्च वीरता का पदक हैअशोक चक्र (Ashok Chakra) के साथ-साथ नीरजा को अमेरिका द्वारा फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन हिरोइजम अवॉर्ड (Flight Safety Foundation Award ) और पाकिस्तान द्वारा तमगा-ए-इंसानियत (tamgha-e-insaniyat), इसके अलावा जस्टिस फॉर क्राइम्स अवॉर्ड (Justice For Crimes Award ), यूनाइटेड स्टेट्स अटॉर्नीज ऑफिस फॉर द डिस्ट्रिक्ट ऑव कोलंबिया, स्पेशल करेज अवॉर्ड, यूएस गवर्नमेंट और इंडियन सिविल एवियेशन मिनिस्ट्रीज अवॉर्ड (Indian civil aviation ministry Award) जैसे सम्मानों से भी नवाजा गया5 सितंबर 1986 को नीरजा मुंबई से न्यूयॉर्क (New York) जाने वाले विमान में सवार हुईं। विमान में नीरजा सीनियर पर्सन के तौर पर तैनात थीं ।इस विमान को 4 आतंकियों ने कराची(Karachi) में हाईजैक कर लिया था। जिस समय विमान हाईजैक हुआ था उस समय विमान में 380 लोग सवार थे। विमान में आतंकवादी के होते हुए भी नीरजा ने अदम्य साहस दिखाया और विमान के आपातकालीन दरवाजे को खोलकर विमान में सवार 360 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला। नीरजा जब विमान से बच्चों को बाहर निकाल रहीं थी उसी वक्त एक आतंकवादी ने उन पर बंदूक तान दी, और मुकाबला करते हुए वीरांगना नीरजा का वहीं बलिदान  हुआ। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का हीरोइन ऑव हाईजैक के तौर पर प्रसिद्ध हैं। वर्ष 2004 में भारत सरकार(Indian government) ने एक डाक टिकट भी जारी किया था।वीरांगना नीरजा भनोट न केवल भारत वरन् विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगनाओं में अपना पृथक स्थान रखती हैं।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
डॉ. आनंद सिंह राणा, श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत

सोमवार, सितंबर 05, 2022

मेरे निर्माता मेरे गुरु शत शत नमन

आज शिक्षक दिवस है शिक्षकों का केवल एक दिन है। शिक्षक शिक्षक नहीं मल्टीपरपज कर्मी हो चुके हैं। शिक्षा व्यवस्था  धीरे धीरे परिवर्तित हो रही है यह संतोष की वजह है। माता-पिता के बाद हमारी जिंदगी को सजाने संवारने वाला शिक्षक ही तो है। मैं अपनी प्रत्येक शिक्षक का आभार व्यक्त करता हूं उनके प्रति कृतज्ञ ना होना मेरा दुर्भाग्य होगा। जो भी अब तक हासिल किया है उसका आधार केवल गुरु अच्छा शिक्षक ही तो हैं..!
  आइए कुछ वर्षों पूर्व शायद 10 से 15 वर्ष पूर्व का एक विवरण आपके समक्ष रखता हूं..
     गुरुवर तुम्हें प्रणाम
    बात उन दिनों की है जब सरकारी तौर पर मेरी ड्यूटी स्कूल के निरीक्षण के लिए लगाई गई। मेरे साथ एक  राजस्व निरीक्षक थे। इन दिनों मिड डे मील पर सुप्रीम कोर्ट बहुत सख्त था और सरकार से कार्यक्रम के प्रॉपर क्रियान्वयन के लिए बेहद कड़े निर्देश थे जैसा कि हमें बताया गया। सुदूर गांव में स्कूल बच्चे दोपहर का भोजन स्कूल में ही करते थे। अभी भी वही प्रक्रिया जारी है परंतु शुरुआती दौर में मिड डे मील लागू करने में बहुत सारी कठिनाइयां प्रशासन को भी फेस करनी पड़ती थी।
    जबलपुर से ग्रामीण क्षेत्र पहुंचते-पहुंचते राजस्व निरीक्षक ने मुझे कई मुद्दों से परिचित कराते हुए ब्रेनवाश कर दिया कि- शिक्षक गांव में नहीं जाता जबलपुर में बैठकर आपसी सांठगांठ से काम चलाता है। आप गलत रिपोर्ट बनाइए। स्कूल मास्टर को दंडित करवाना होगा । 
     कुछ हद तक बात तो सही थी लेकिन पूरा सच यही था मुझे यकीन नहीं हुआ। अधिकांश गांव में स्कूल चलते हुए मिले गुरुजन बच्चों को शिक्षा और खानपान की व्यवस्था में मशरूफ मिले। संयोगवश समूचे क्षेत्र के स्कूल थोड़ी बहुत सैनिटेशन संबंधी समस्या के बावजूद सामान्य चल रहे थे।
   दूरस्थ गांव में स्कूल में 2 शिक्षक थे और लगभग 100 के आसपास बच्चे। एक टीचर से जब पूछा कि दूसरे गुरु जी कहां हैं तब उन्होंने बताया कि वह किचन में व्यवस्था कर रहे हैं बहुत लेट हो रहा है इन बच्चों को मिड डे मील।
    मुझे लगा कि रसोईया खुद बहुत ढीली होगी काम धाम ढंग से नहीं करती है इसलिए टीचर जी वही होंगे। और सीधे घर जाते हुए हमारी टीम किचन सेट में पहुंच गई। एक मुझसे अधिक उम्र के व्यक्ति सिर झुका कर चावल चेक कर रहे थे। और फिर रुक कर दाल का हाल-चाल लेने लगे। तभी आर आई ने सरकारी भाषा में डपट लगाई- मास्साब जिले से साहब आए समझ में नहीं आता..?
  इतनी पंक्तियां हमें भी उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त थी लगातार नकारात्मक बात सुनते सुनते मस्तिष्क भी वैसा ही हो चला था। यकायक शिक्षक ने अपना सिर ऊपर किया और कांपते हाथों को जोड़कर मुझे प्रणाम करने लगे ।
   मेरी आंखें डबडबा और अवसाद अपराध बोध से ग्रसित मैंने गुरुदेव के झुककर चरण स्पर्श किए।
    चर्चा में मुझे ज्ञात हुआ कि गुरुदेव के पिता माता का स्वर्गवास हो गया है बच्चों की जिम्मेदारी गुरु मां अर्थात उनकी पत्नी संभालती हैं। वे सप्ताह में एक या 2 दिन या सरकारी अवकाश पर ही शहर जा पाते हैं। सेवानिवृत्ति के लिए तब गुरुदेव के 2 साल और शेष थे। मिड डे मील स्कीम लॉन्च होने पर उस गांव में रसोइए का मामला दांवपेच में उलझा था। कभी छोटे गुरु जी तो कभी बड़े गुरु जी खाना पका कर बच्चों को खिलाते थे। यह बहुत बड़ी समस्या नहीं थी परंतु गांव में उत्कृष्ट समन्वय ना होने के कारण गुरुजनों को ऐसी समस्या फेस करनी पड़ रही थी। जब मैंने उनसे विद्यालय के विगत 3 वर्षों के रिजल्ट के बारे में जानकारी हासिल की जिसे प्राप्त फॉर्मेट के कॉलम में भरना था मुझे आश्चर्य का ठिकाना ना रहा । उस स्कूल का आंतरिक रिजल्ट तो उच्च स्तरीय था, साथ ही साथ बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम अप्रत्याशित रूप से उत्तम थे प्रत्येक बोर्ड परीक्षा में 8 से 10 बच्चे प्रथम श्रेणी शेष द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे।
   मुझे भी अथाह प्रेम से और कर्तव्य निष्ठा के साथ उन्होंने पढ़ाया था। स्कूल के दिनों में जब तक वह यह सुनिश्चित नहीं कर लेते थे कि सारे बच्चों को ज्ञान की प्राप्ति हो गई वह अपने काम को अधूरा समझते थे। पूरी कमिटमेंट के साथ शिक्षा देने वाले ऐसे कर्मठ शिक्षक समाज में भरे पड़े हुए। शिक्षक दिवस पर ऐसे कर्मठ एवं त्यागी गुरुजनों को शत-शत प्रणाम। ऐसे दृश्य हमेशा आपको नजर आएंगे आप शिक्षक को सम्मान दीजिए मैं अगर किसी पद पर हूं तो मां बाप के बाद मेरे निर्माता मेरे गुरु जन ही तो है न ।

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