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सोमवार, सितंबर 12, 2022

द्वि पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती ब्रह्मलीन



 राष्ट्रीय संत स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी सनातन धर्म के सर्वोच्च धर्मसम्राट ज्योतिषपीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती का 99 वर्ष की आयु पूर्ण 100 वें वर्ष में प्रवेश करने के पश्चात् दिनांक 11 सितंबर 2022 को उनका तपस्या स्थली परमहंसी गंगा आश्रम में देवलोकगमन् हो गया। शंकराचार्य जी का जन्म 24 सितम्बर 1924 को सिवनी जिले के ग्राम दिघोरी में हुआ था। सनातन हिन्दू परम्परा के कुलीन ब्राह्मण परिवार में  पिता श्रीधनपति उपाध्याय एवं माता गिरिजा देवी के यहां जन्मे स्वामी जी का नाम माता पिता ने पोथीराम रखा था। पोथी अर्थात् शास्त्र मानो शास्त्रावतार हों। ऐसे संस्कारशील परिवार में महाराजश्री के संस्कारों को जागृत होते देर न लगी और वे 9 वर्ष के कोमलवय में गृह त्याग कर भारत के प्रत्येक प्रसिद्ध तीर्थस्थान और संतों के दर्शन करते हुए आप काशी पहुंचे। वहां आपने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्रीजी महाराज एवं स्वामी महेश्वरानन्द जी जैसे विद्वानों से वेद-वेदान्त, शास्त्र-पुराणेतिहास सहित स्मृति एवं न्याय ग्रन्थों का विधिवत् अनुशीलन किया।
यह वह काल था, जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। महाराजश्री भी इस पक्ष के थे, इसलिए जब सन् 1942 में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का घोष मुखरित हुआ, तो महाराज श्री भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और मात्र 19 वर्ष की अवस्था में ‘क्रान्तिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। पूज्य श्रीचरणों को इसी सिलसिले में वाराणसी  और मध्यप्रदेश के जेलों में क्रमश: 9 और 6 महीने की सजाएं भोगनी पड़ीं। महापुरुषों के संकल्प की शक्ति से 1947 में देश आजाद हुआ। अब पूज्य श्री में तत्वज्ञान की उत्कण्ठा जगी।
भारतीय इतिहास में एकता के प्रतीक सन्त श्रीमदादिशङ्कराचार्य द्वारा स्थापित अद्वैत मत को सर्वश्रेष्ठ जानकर, आज के विखण्डित समाज में पुन: शङ्कराचार्य के विचारों के प्रसार को आवश्यक ज्ञान और तत्त्वचिन्तन के अपने संकल्प की पूर्ति हेतु सन् 1950 में ज्योतिष्पीठ के तत्कालीन शङ्कराचार्य स्वामी श्री ब्रह्मानन्द सरस्वती जी महाराज से विधिवत  दण्ड संन्यास की दीक्षा लेकर स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से प्रसिद्ध हुए। जिस भारत  की स्वतन्तत्रता के लिए आपने संग्राम किया था, उसी भारत को आजादी के बाद भी अखण्ड, शान्त और सुखी न देखकर भारत के नागरिकों को दैहिक एवं भौतिक तापों से मुक्ति दिलाने हेतु, हिन्दु कोड बिल के विरुद्ध स्वामी करपात्रीजी महाराज द्वारा  स्थापित  ‘रामराज्य परिषद्’ के अध्यक्ष पद से सम्पूर्ण भारत में रामराज्य लाने का प्रयत्न किया और हिन्दुओं को उनके राजनैतिक अस्तित्त्व का बोध कराया।
ज्योतिष्पीठ के शङ्कराचार्य स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी महाराज के ब्रह्मलीन हो जाने पर सन् 1973 में द्वारकापीठ के तत्कालीन शङ्कराचार्य एवं स्वामी करपात्री जी महाराज सहित देश के तमाम संतों, विद्वानों द्वारा आप ज्योतिष्पीठ पर अभिषिक्त किये गये और ज्योतिष्पीठाधीश्वर शङ्कराचार्य के रूप में हिन्दुधर्म को अमूल्य संरक्षण देने लगे।
आपका संकल्प रहा है कि - विश्व का कल्याण। इसी शुभ भावना का मूर्तरूप देने के लिए आपने झारखण्ड प्रान्त के सिंहभूमि जिले में ‘विश्वकल्याण आश्रम’ की स्थापना की। जहां जंगल में रहने वाले आदिवासियों  को भोजन, औषधि एवं रोजगार देकर उनके जीवन को  उन्नत बनाने का आपने प्रयास किया। करोड़ों रुपयों की लागत से विशाल एवं आधुनिक अस्पताल वहां निर्मित हो चुका है, जिससे क्षेत्र के तमाम गरीब आदिवासी लाभान्वित हो रहे हैं।
पूज्यमहाराजश्री ने समस्त भारत की अध्यात्मिक उन्नति को ध्यान में रखकर आध्यात्मिक-उत्थान-मण्डल नामक संस्था स्थापित की थी। जिसका मुख्यालय भारत के मध्यभाग में स्थित मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में रखा। वहां पूज्य महाराज श्री ने राजराजेश्वरी त्रिपुर-सुन्दरी भगवती का विशाल मन्दिर बनाया है। सम्प्रति सारे देश में आध्यात्मिक उत्थान मण्डल की 1200 से अधिक शाखाएं लोगों में आध्यात्मिक चेतना के जागरण एवं ज्ञान तथा भक्ति के प्रचार के लिये समर्पित हैं। द्वारकाशारदापीठ के जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी श्री अभिनव सच्चिदानन्द तीर्थजी महाराज के ब्रह्मलीन होने पर उनके इच्छापत्र के अनुसार 27 मई 1982 को आप द्वारकापीठ की गद्दी पर अभिषिक्त हुए और इस प्रकार आप आदि शङ्कराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में से दो पीठों पर विराजने वाले पहले शङ्कराचार्य के रूप में प्रसिद्ध हुए।
एतदितिरिक्त देशभर में आपके द्वारा अनेक संस्कृत विद्यालय, बाल विद्यालय, नेत्रालय, आयुर्वेद, औषधालय, अनुसंधानशाला, आश्रम, आदिवासीशाला, कॉलेज, संस्कृत एकेडमी, गौशाला और अन्न क्षेत्र जैसी प्रवृत्तियां संपादित हो रही हैं तथा आप स्वयं भी अनवरत भ्रमण करते हुए संस्थाओं का संचालन व धर्मप्रसार करते रहे।  भगवान् आदिशङ्कराचार्य द्वारा स्थापित पीठों में से दो पीठों (द्वारका एवं ज्योतिष्पीठ) को सुशोभित करने वाले जगद्गुरु शङ्कराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज करोड़ों सनातन  हिन्दु धर्मवलम्बियों के प्रेरणापुंज और उनकी आस्था के  ज्योति स्तम्भ रहे हैं, लेकिन इससे भी परे वे एक उदार मानवतावादी सन्त भी थे। परमवीतराग, नि:स्पृह और राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत एक परमहंस साधु, जिनके मन में दलितों-शोषितों के प्रति असीम करूणा भी रही है।
         ॐ राम कृष्ण हरि:
स्वर समर्पण  बेटी उन्नति तिवारी
शब्द समर्पण श्री सच्चिदानंद शेकटकर
विनम्र श्रद्धांजलि संभागीय बाल भवन जबलपुर

शुक्रवार, सितंबर 09, 2022

अमर शहीद : शंकर शाह-रघुनाथ शाह - डाॅ. किशन कछवाहा

   
उर्दू भाषा में लिखे फैसले का हिन्दी में रूपान्तरण कचहरी अदालत फौजदार जबलपुर।

(मुकदमा-ए-बगावत सिलसिले शंकर शाह व रघुनाथ शाह व दीगर मुद्दई आलम मकसद हकीकत हाल 11 जुलाई 1857 पहली तहसीलदार, जबलपुर...........
बगावत व कत्ल करने, विलायतियों को लूटने व खजाना शहर.........
राजा शंकर शाह व रघुनाथ शाह को सजा-ए-मौत तकसीम की जाती है कि जिन्दा तोप से उड़ा दिया जाये।)

‘‘अपनी आराध्य गढ़ा- पुरवा स्थित कमलासनी माला देवी को अनुनय-विनय के साथ लिखा हुआ पत्र, जो ब्रिटिश शासन के स्थानीय कलेक्टर क्लार्क के हाथ लग गया था, मात्र इसी पत्र के आधार पर पिता-पुत्र शंकर शाह-रघुनाथ शाह को विद्रोह करने के अपराध में तोप के मुँह से बाँध कर उड़ा देने का दण्ड सुना दिया गया था। आराध्या श्री मालादेवी की प्रतिमा में माँ लक्ष्मी कमलासन पर विराजमान हैं। नीचे सिंह बैठा हुआ है, जिस पर देवी जी अपना एक पैर रखे हुये हैं। वहीं दूसरी ओर एक अन्य आकृति विद्यमान है।’’

गौंड राजाओं मदन शाह से लेकर शंकर शाह व रघुनाथ शाह की आराध्य श्री मालादेवी रहीं हैं। अपनी आराध्या देवी की वंदना करते हुये उन्होंने अंग्रेजों का दलन करने की प्रार्थना की थी। ब्रिटिश हुक्मरानों को बखरी में की गयी सघन जांच पड़ताल के बाद एक कागज के टुकड़े पर रघुनाथ शाह द्वारा लिखित कविता की कुछ पंक्तियाँ ही हासिल हो पायी थी जिसे आधार बनाकर विद्रोह करने का इतना बड़ा अत्याचारी कदम ब्रिटिश शासन द्वारा उठाया गया।  उक्त कागज में लिखी कविता की पंक्तियाँ इस प्रकार थी-

‘‘मूँद मुख इंडिन को चुगलों को चबाई खाई,
खूँद दौड़ दुष्टन को शत्रु-संघारिता।
संकर की रक्षा कर, दास प्रतिपाल कर,
दीन की सुन आय मात कालिका।
खायई ले मलेच्छन को झेल नहीं करो अब,
भच्छन कर तत्छन धौर मात कालिका।।’’
इस कविता की इन पंक्तियों का अंग्रेज अधिकारी ने अंग्रेजी में भाषान्तरण कराकर रिपोर्ट में संलग्न किया था। 14 सितम्बर 1857 को पुरवा स्थित आवासीय परिसर को घेरकर शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह सहित 13 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
    गढ़ा-मण्डला के राजवंश ने अपूर्व गरिमा के साथ ईसवी सन् 158 से 1789 तक अर्थात् 1631 वर्ष राज्य किया। इस राजवंश की रानी दुर्गावती भारत ही नहीं संसार की महान तथा प्रमुखतम महिला थीं जिसने अपने समय के राष्ट्र जीवन के यशस्वी कार्यकाल में विकास के साथ ही मुगल आक्रांताओं के आक्रमणों का समुचित जबाव दिया तथा राष्ट्रीय स्वामिमान के लिये सर्वस्व अर्पण करते हुये वीरगति प्राप्त की। 

उसी परम्परा का निर्वाह करते हुये, पराक्रमी दृढ़ निश्चयी इन पिता-पुत्र ने अपने परिवार की परम्परा और गौरव को आँच नहीं आने दी। उन्होंने भारत से अंग्रेजों को निष्कासित करने की हृदय से कामना की थी। भारी भरकम रक्षा व्यवस्था के बीच वयोवृद्ध शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह जिसकी आयु उस 60 और लगभग 40 के आसपास रही होगी, जिसका चेहरा शांत और गम्भीर बना हुआ था, हाथ पैर बाँध दिये गये, तोप के मुँह के पास खड़े थे, तोपें चला दी गयीं।  कहा तो यहाँ तक जाता है कि पहले-दूसरे प्रयास में तोपें चल ही नहीं सकी। अंततः तीसरे प्रयास में तोपें चली। घटना के बाद एक अंग्रेज अधिकारी, जो घटना के समय उपस्थित था, ने बतलाया कि वह भयानक दृश्य था। शरीर को क्षति तो पहुँची थी लेकिन सिर चेहरों पर क्षति के कोई चिन्ह नहीं थे। वह 18 सितम्बर 1857 का कालादिन  था। यह दुष्कृत्य ब्रिटिश शासन के द्वारा घबड़ाहट में किया गया था। 

रानी दुर्गावती का गौंडवाना साम्राज्य चार लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र तक फैला हुआ था। यह साम्राज्य 52 गढ़ों में विमवत था। जबलपुर में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान अफसर रहे कर्नल स्लीमन के अनुसार गौंडवाना साम्राज्य 300 ग 225 = 67,500 वर्गमील में था। प्रजा सुखी थी और राज्य संचालन की सुचारू व्यवस्था थी। उनके द्वारा निर्मित कतिपय शेष बचे तालाब आज भी राज्य की सम्पन्नता के प्रतीक बने हुये हैं। 

24 जून 1564 में जबलपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित बारहा ग्राम, नर्रईनाला के समीप वीरांगना दुर्गावती ने अंग्रेजों से लड़ते हुये अपनी आहुति दे दी थी। 

सम्पूर्ण महाकोशल क्षेत्र में सन् 1855 से ही अंग्रेजों द्वारा किये गये कतिपय भूमि सम्बंधी कानूनों में किये गये परिवर्तनों एवं तत्कालीन शासकीय कर्मचारी एवं अधिकारियों द्वारा किये जा रहे दुव्र्यवहार, अत्याचारों एवं दमनात्मक कार्यवाहियों के परिणाम स्वरूप जनता में भारी असन्तोष व्याप्त हो रहा था, जिसकं कारण अंग्रेजी सरकार और उनके कर्मचारियों के खिलाफ उपद्रव भी हो चुके थे।

भिन्न-भिन्न कारणों से भीतर ही भीतर सुलगती असन्तोष की लहर सन् 1857 के देश व्यापी आन्दोलन का सहयोगी कारण बनी। जबलपुर के आसपास के क्षेत्रों में छोटी-छोटी चपातियों का चमत्कार यत्र-तत्र फैल चुका था।

16 जून को जबलपुर छावनी की एक छोटी सी घटना  भविष्य का संकेत दे चुकी थी। एक साधारण सैनिक ने गारद का निरीक्षण कर रहे एडजूटेंट गिलर नामक सैनिक अधिकारी पर बन्दूक से हमला कर दिया। इस घटना से अंग्रेज अधिकारी सशंकित रहने लगे थे। ब्रिटिश सैनिक अधिकारियों के आदेशों की खुले आम अवहेलना होने लगी थी। इसी घटना के बाद एक(1) जुलाई को सागर में विद्रोह हो गया। दो दिन  बाद जबलपुर की 52वीं बटालियन की तीन कम्पनियों अपनी नाराजगी प्रकट कर दी। निरंतर जनजीवन में भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ रोष बढ़ता ही जा रहा था। एक गुप्त योजना के माध्यम से आसपास के ठाकुरों, जमींदारों, ताल्लुकेदारों और साहसी नवजवानों की टोलियों ने भी हमले की योजना बना रखी है।

विश्व का सबसे छोटा किला, जिसे गौंडवाना साम्राज्य के दौरान रानी दुर्गावती ने निर्माण कराया गया था, प्रेरणा प्राप्त करने युवकों की टोली यहाँ प्रतिदिन आने लगी थी, यहीं कतिपय निर्णय भी लिये जाने लगे थे।  

पिता-पुत्र को तोप से बाँधकर उड़ा देने की घटना के बाद से ब्रिटिश शासन के अधिकारी भी माहौल को देखकर आशंकित रहने लगे थे। यद्यपि अबतक इन वीर साहसी बलिदानियों की सम्पत्ति राजसात की जा चुकी थी,जिसके कारण इस परिवार को बड़ी कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ा था। 52 तालाबों के लिए प्रसिद्ध जबलपुर शहर गौंड राजाओं की प्रजावत्सलता से प्रभावित तो था ही, इस कारण ब्रिटिश शासन के येन-केन प्रकारेण समाप्ति के प्रयासों के लिये होड़ भी लगी हुयी थी।

बुधवार, सितंबर 07, 2022

अदम्य साहस और संघर्ष की प्रतिमूर्ति : वीरांगना नीरजा भनोट

"अदम्य साहस और संघर्ष की प्रतिमूर्ति : वीरांगना नीरजा भनोट" (आज जयंती पर सादर समर्पित)
 वीरांगना नीरजा भनोट प्रथम भारतीय सबसे कम उम्र की महिला थीं जिन्हें मरणोपरांत - भारत का सर्वोच्च वीरता सम्मान अशोक चक्र (शांति काल में - सैनिक एवं असैनिक क्षेत्र) - प्रदान किया गया था। अदम्य साहस और संघर्ष का दूसरा नाम नीरजा भनोट (Neerja Bhanot)है। जयंती पर शत् शत् नमन है। नीरजा भनोट ने 1986 में ‘पैन एम 73’ फ्लाइट में 360 लोगों की जान बचाई थी। नीरजा भनोट (Neerja Bhanot) का जन्म 7 सितंबर 1963 को पत्रकार पिता हरीश भनोट (Harish Bhanot) और माता रमा भनोट (Rama Bhanot) के घर हुआ था। इनके माता पिता नीरजा को प्यार से लाडाे कह‍कर पुकारते थे। नीरजा की शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी लेकिन दहेज के कारण परेशान किये जाने की वजह से नीरजा ने अपने पति का घर छोड का मुम्बई वापस आ गईं। मुंबई आने के बाद उसने पैन एम एयरलाइन्स(Pan Am Airlines) ज्वाइन कर लिया। इस दौरान नीरजा ने एंटी-हाइजैकिंग(Anti-Hijacking) कोर्स भी किया। एयर-होस्टेस(Air-hostess) बनने से पहले उन्होंने  बिनाका टूथपेस्ट, गोदरेज बेस्ट डिटरजेंट, वैपरेक्स और विको टरमरिक क्रीम जैसे उत्पादों के लिए मॉडलिंग की थी नीरजा सबसे युवा और प्रथम महिला थीं, जिन्हें अशोक चक्र मिला (मृत्यु उपरांत) अशोक चक्र भारत का सर्वोच्च वीरता का पदक हैअशोक चक्र (Ashok Chakra) के साथ-साथ नीरजा को अमेरिका द्वारा फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन हिरोइजम अवॉर्ड (Flight Safety Foundation Award ) और पाकिस्तान द्वारा तमगा-ए-इंसानियत (tamgha-e-insaniyat), इसके अलावा जस्टिस फॉर क्राइम्स अवॉर्ड (Justice For Crimes Award ), यूनाइटेड स्टेट्स अटॉर्नीज ऑफिस फॉर द डिस्ट्रिक्ट ऑव कोलंबिया, स्पेशल करेज अवॉर्ड, यूएस गवर्नमेंट और इंडियन सिविल एवियेशन मिनिस्ट्रीज अवॉर्ड (Indian civil aviation ministry Award) जैसे सम्मानों से भी नवाजा गया5 सितंबर 1986 को नीरजा मुंबई से न्यूयॉर्क (New York) जाने वाले विमान में सवार हुईं। विमान में नीरजा सीनियर पर्सन के तौर पर तैनात थीं ।इस विमान को 4 आतंकियों ने कराची(Karachi) में हाईजैक कर लिया था। जिस समय विमान हाईजैक हुआ था उस समय विमान में 380 लोग सवार थे। विमान में आतंकवादी के होते हुए भी नीरजा ने अदम्य साहस दिखाया और विमान के आपातकालीन दरवाजे को खोलकर विमान में सवार 360 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला। नीरजा जब विमान से बच्चों को बाहर निकाल रहीं थी उसी वक्त एक आतंकवादी ने उन पर बंदूक तान दी, और मुकाबला करते हुए वीरांगना नीरजा का वहीं बलिदान  हुआ। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नीरजा का हीरोइन ऑव हाईजैक के तौर पर प्रसिद्ध हैं। वर्ष 2004 में भारत सरकार(Indian government) ने एक डाक टिकट भी जारी किया था।वीरांगना नीरजा भनोट न केवल भारत वरन् विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगनाओं में अपना पृथक स्थान रखती हैं।
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डॉ. आनंद सिंह राणा, श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत

सोमवार, सितंबर 05, 2022

मेरे निर्माता मेरे गुरु शत शत नमन

आज शिक्षक दिवस है शिक्षकों का केवल एक दिन है। शिक्षक शिक्षक नहीं मल्टीपरपज कर्मी हो चुके हैं। शिक्षा व्यवस्था  धीरे धीरे परिवर्तित हो रही है यह संतोष की वजह है। माता-पिता के बाद हमारी जिंदगी को सजाने संवारने वाला शिक्षक ही तो है। मैं अपनी प्रत्येक शिक्षक का आभार व्यक्त करता हूं उनके प्रति कृतज्ञ ना होना मेरा दुर्भाग्य होगा। जो भी अब तक हासिल किया है उसका आधार केवल गुरु अच्छा शिक्षक ही तो हैं..!
  आइए कुछ वर्षों पूर्व शायद 10 से 15 वर्ष पूर्व का एक विवरण आपके समक्ष रखता हूं..
     गुरुवर तुम्हें प्रणाम
    बात उन दिनों की है जब सरकारी तौर पर मेरी ड्यूटी स्कूल के निरीक्षण के लिए लगाई गई। मेरे साथ एक  राजस्व निरीक्षक थे। इन दिनों मिड डे मील पर सुप्रीम कोर्ट बहुत सख्त था और सरकार से कार्यक्रम के प्रॉपर क्रियान्वयन के लिए बेहद कड़े निर्देश थे जैसा कि हमें बताया गया। सुदूर गांव में स्कूल बच्चे दोपहर का भोजन स्कूल में ही करते थे। अभी भी वही प्रक्रिया जारी है परंतु शुरुआती दौर में मिड डे मील लागू करने में बहुत सारी कठिनाइयां प्रशासन को भी फेस करनी पड़ती थी।
    जबलपुर से ग्रामीण क्षेत्र पहुंचते-पहुंचते राजस्व निरीक्षक ने मुझे कई मुद्दों से परिचित कराते हुए ब्रेनवाश कर दिया कि- शिक्षक गांव में नहीं जाता जबलपुर में बैठकर आपसी सांठगांठ से काम चलाता है। आप गलत रिपोर्ट बनाइए। स्कूल मास्टर को दंडित करवाना होगा । 
     कुछ हद तक बात तो सही थी लेकिन पूरा सच यही था मुझे यकीन नहीं हुआ। अधिकांश गांव में स्कूल चलते हुए मिले गुरुजन बच्चों को शिक्षा और खानपान की व्यवस्था में मशरूफ मिले। संयोगवश समूचे क्षेत्र के स्कूल थोड़ी बहुत सैनिटेशन संबंधी समस्या के बावजूद सामान्य चल रहे थे।
   दूरस्थ गांव में स्कूल में 2 शिक्षक थे और लगभग 100 के आसपास बच्चे। एक टीचर से जब पूछा कि दूसरे गुरु जी कहां हैं तब उन्होंने बताया कि वह किचन में व्यवस्था कर रहे हैं बहुत लेट हो रहा है इन बच्चों को मिड डे मील।
    मुझे लगा कि रसोईया खुद बहुत ढीली होगी काम धाम ढंग से नहीं करती है इसलिए टीचर जी वही होंगे। और सीधे घर जाते हुए हमारी टीम किचन सेट में पहुंच गई। एक मुझसे अधिक उम्र के व्यक्ति सिर झुका कर चावल चेक कर रहे थे। और फिर रुक कर दाल का हाल-चाल लेने लगे। तभी आर आई ने सरकारी भाषा में डपट लगाई- मास्साब जिले से साहब आए समझ में नहीं आता..?
  इतनी पंक्तियां हमें भी उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त थी लगातार नकारात्मक बात सुनते सुनते मस्तिष्क भी वैसा ही हो चला था। यकायक शिक्षक ने अपना सिर ऊपर किया और कांपते हाथों को जोड़कर मुझे प्रणाम करने लगे ।
   मेरी आंखें डबडबा और अवसाद अपराध बोध से ग्रसित मैंने गुरुदेव के झुककर चरण स्पर्श किए।
    चर्चा में मुझे ज्ञात हुआ कि गुरुदेव के पिता माता का स्वर्गवास हो गया है बच्चों की जिम्मेदारी गुरु मां अर्थात उनकी पत्नी संभालती हैं। वे सप्ताह में एक या 2 दिन या सरकारी अवकाश पर ही शहर जा पाते हैं। सेवानिवृत्ति के लिए तब गुरुदेव के 2 साल और शेष थे। मिड डे मील स्कीम लॉन्च होने पर उस गांव में रसोइए का मामला दांवपेच में उलझा था। कभी छोटे गुरु जी तो कभी बड़े गुरु जी खाना पका कर बच्चों को खिलाते थे। यह बहुत बड़ी समस्या नहीं थी परंतु गांव में उत्कृष्ट समन्वय ना होने के कारण गुरुजनों को ऐसी समस्या फेस करनी पड़ रही थी। जब मैंने उनसे विद्यालय के विगत 3 वर्षों के रिजल्ट के बारे में जानकारी हासिल की जिसे प्राप्त फॉर्मेट के कॉलम में भरना था मुझे आश्चर्य का ठिकाना ना रहा । उस स्कूल का आंतरिक रिजल्ट तो उच्च स्तरीय था, साथ ही साथ बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम अप्रत्याशित रूप से उत्तम थे प्रत्येक बोर्ड परीक्षा में 8 से 10 बच्चे प्रथम श्रेणी शेष द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे।
   मुझे भी अथाह प्रेम से और कर्तव्य निष्ठा के साथ उन्होंने पढ़ाया था। स्कूल के दिनों में जब तक वह यह सुनिश्चित नहीं कर लेते थे कि सारे बच्चों को ज्ञान की प्राप्ति हो गई वह अपने काम को अधूरा समझते थे। पूरी कमिटमेंट के साथ शिक्षा देने वाले ऐसे कर्मठ शिक्षक समाज में भरे पड़े हुए। शिक्षक दिवस पर ऐसे कर्मठ एवं त्यागी गुरुजनों को शत-शत प्रणाम। ऐसे दृश्य हमेशा आपको नजर आएंगे आप शिक्षक को सम्मान दीजिए मैं अगर किसी पद पर हूं तो मां बाप के बाद मेरे निर्माता मेरे गुरु जन ही तो है न ।

शनिवार, सितंबर 03, 2022

चिंतन : अपने मन से झूठे मत बनो स्वामी शुद्धानंदनाथ

चिंतन : अपने मन से झूठे मत बनो
           स्वामी शुद्धानंदनाथ
*पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन स्वामी शुद्धानंद नाथ का जीवन सूत्र 27 सितम्बर 1960 श्रीधाम आश्रम सतना*
अपने मन से झूठे मत बनो। कितना भी बड़ा दुष्कर्म मन से या तन से हुआ हो उसे मंजूर करो , उसे दूसरा रंग मत दो, उसका दोष दूसरों पर ना करो । जो भी होता है वह अपनी ही भूल के कारण होता है। इसलिए अपने मन से और मन में भूल को मत छुपाओ, भूल की छानबीन करो। अपनी मम्मत्व भावना अपने को  निष्पक्ष विचार करने से रोकती है । इसलिए हम तो भाव को त्याग करके विचार करने का प्रयत्न करो।
   जीवन के सरल से सरल पद पर रहना ही अध्यात्म कहा जाता है। जीवन में प्राप्त और अब प्राप्त वस्तुओं की प्रीति और वियोग में ही चित्त का विकास होता है। विकास की प्रक्रिया ही अध्यात्मिक साधना का अंतरंग है। इस प्रक्रिया से सिद्धि हेतु वातावरण का निर्माण अनुकूलता की रचना तथा प्रतिकूलता के साथ युद्ध करने का सामर्थ्य उत्पन्न करना होता है।
   इस सामर्थ्य के के लिए बहुत सी बहिरंग साधनाएं करनी पड़ती हैं । धारणा के योग्य मनस्वी गुरु जन इस प्रकार का आदेश देते हैं। आज से आपके जीवन में एक नया जागरण होने जा रहा है ।
#शुद्धानंद

500 गुरुकुल खुलने के बाद क्या अंग्रेजी स्कूलों की बादशाहट खत्म हो जाएगी?

हर अभिभावक टी वी स्टार बनाना चाहते हैं अपने बच्चों को



  इन दिनों रियलिटी शो का माहौल इस कदर दिमाग पर हावी है कि कला साधक बच्चों का लक्ष्य केवल रियलिटी शो तक सीमित रह गया है। अभिभावक जी रियलिटी शो के लिए अपने बच्चों को चुने जाने के सपने में दिन-रात डूबे रहते हैं।
   नृत्य संगीत तक समाज को सीमित रखने वाली इन ग्लैमरस कार्यक्रमों में संवेदना उनका भरपूर दोहन किया जाता है। दर्शकों के मन में बच्चे की गरीबी अथवा उसकी अन्य कोई विवशता को प्रदर्शित करके टीआरपी में आसानी से ऊंचाई हासिल करने का हुनर उन्हें करोड़ों रुपए के विज्ञापनों से लाभ दिलवाता है।
   मेरा दावा है कि अगर मौलिक कंपोजीशन पर केंद्रित गैर फिल्मी गीतों पर आधारित कोई रियलिटी शो आयोजित किया जाए तो ना तो बच्चे खुद को सक्षम पाएंगे और ना ही अभिभावक ऐसे कार्यक्रमों मैं बच्चों को शामिल करने की कोशिश करेंगे। टेलीविजन चैनल भी ऐसा करने के लिए ना तो मानसिक रूप से तैयार है और ना ही उनमें ऐसे काम करने की कोई विशेष योग्यता है।
  जबलपुर नगर का ही उदाहरण ले लीजिए। नगर से अब तक कई बच्चे ऐसे संगीत शो में शामिल हुए हैं परंतु स्थायित्व कितनों को मिला है यह एक विचारणीय प्रश्न है?
    ऐसे रियलिटी शो के कारण दूरदर्शन तथा अन्य चैनल पर आने वाले क्विज कार्यक्रम भी समाप्त हो चुके हैं। भारत को समझने के लिए भारत की निगाह चाहिए। परंतु रियलिटी शो के मकड़जाल ने बच्चों को इस कदर जकड़ रखा है कि वह 100 200 गीत गाकर अपने आपको महान गायक मानने लगे हैं। कुछ गायक तो यह समझते हैं कि वे अमुक महान गायक के विकल्प हैं। वास्तविकता इससे उलट है। मेरा मानना है की कराओके पर गाना गा लेना श्रेष्ठ गायकी का कोई पैमाना नहीं होना चाहिए। इन दिनों यह इडियट बॉक्स केवल कॉपी पेस्ट कलाकार पैदा कर रहा है और उन्हें प्रचारित कर रहा है। जबकि भारत को लता मंगेशकर मोहम्मद रफी किशोर कुमार कुमार गंधर्व पंडित भीमसेन जोशी जैसे महान कलाकारों की जरूरत है। मुझे अधिकांश बच्चों के अंतिम लक्ष्य की जानकारी प्राप्त होने महसूस हुआ संगीत कला के ऊपरी हिस्से तक भी यह बच्चे नहीं पहुंच पाए हैं। आप जानते हैं कि इन दिनों गीतों की उम्र मुश्किल से एक माह से लेकर अधिकतम 12 माह तक होती है। आजकल गीत देखे जाते हैं ना कि सुने जाते हैं। 50 60 के दशकों में जो गीत रचे जाते थे गाए जाते थे वह आज भी जिंदा है। मुंबई महा नगरी में जहां गीत दिखाने के लिए बनते हैं वहां केवल और केवल संगीत का व्यवसायिक उपयोग किया जा रहा है। हाल ही में कुछ शो इस फॉर्मेट पर बनाए गए कि लोग उस चैनल विशेष का ऐप डाउनलोड करें और अपने मनपसंद कलाकार के लिए वोटिंग करें। इसका सीधा सीधा लाभ केवल चैनल को हासिल होता है। ऐप डाउनलोड होने से टीआरपी में वृद्धि होती है और आमदनी भी होती है।
  मेरे संस्थान की एक बालिका इशिता तिवारी बच्चों के किसी रियलिटी शो के लिए सेलेक्ट ना हो पाई तो उसने आकर मुझसे अपना दुख व्यक्त किया। बच्ची ने यह भी कहा कि मैं योग्य नहीं हूं। इस पर मैंने उसे समझाया बेटा संगीत  महान साधना के बिना हासिल नहीं किया जा सकता। और उसका मूल्यांकन  टीवी चैनल कर भी नहीं सकते। संगीत साधना कठोर तपस्या की तरह ही होती है। पंडित छन्नूलाल मिश्र की गायकी उस बच्ची को सुना कर मैंने बताया कि- यह उन महान गायकों में से हैं जिन्होंने अपनी साधारण आवाज को कर्णप्रिय आवाज के रूप में परिवर्तित कर दिया। ऐसे महान गायक किसी टीवी शो के मोहताज नहीं थे।
   हम अपने संस्थान में कॉपी पेस्ट गीत संगीत को बिल्कुल महत्व नहीं देते। जब इस देश को अच्छे तैयार कलाकारों की जरूरत है तो हम क्यों ना ऐसी कोशिशें करें जो क्षणिक प्रसिद्धि दिलाने वाली व्यवसायिक मनोरंजक प्रणाली से बच्चों को मुक्त करें।
    इन रियलिटी शोज में जिन बच्चों को मौका नहीं मिलता वह अपने आप को अयोग्य मानने लगते हैं , यहां तक कि उनके अभिभावक भी यही सोचते हैं कि मेरे बच्चे में प्रतिभा की कमी है? अभिभावक यह विचार करें की कॉपी पेस्ट करके या नकल उतार के कौन महान कलाकार बन सका है? बस अगर इतना आप सोचेंगे तो तय है कि आप रियलिटी शो के इस मकड़जाल से बाहर होंगे।
  

शं नो वरुण: सुस्वागतम आई एन एस विक्रांत 2.0

[ भारत की 7516 किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा पर चौकसी के लिए जरूरी था यह सामरिक महत्व का पोत, स्वर्गीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के स्वप्न को साकार होते हम देख रहे हैं। हम देख रहे हैं कि हम गुलामी के प्रतीकों से स्वयं को हटा रहे हैं। आई एन एस विक्रांत टू पॉइंट जीरो की परिकल्पना भारत की रक्षा पंक्ति का महत्वपूर्ण नया दस्तावेज बन गया है। ऐसा नहीं है कि समुद्री सीमा की रक्षा के लिए नौसेना की कल्पना ब्रिटिश इंडिया के कालखंड में हुई थी सच बल्कि सच्चाई तो यह है कि मोहनजोदड़ो हड़प्पा कालीन अवधि में ही विश्व के साथ व्यवसायिक संबंध स्थापित कर चुके थे और वह भी समुद्री मार्ग से। जिसके बाद सामरिक रक्षा पंक्ति तैयार करने का श्रेय वीर शिवाजी को जाता है। इसके पूर्व चोल राजाओं ने जावा सुमात्रा मलेशिया जैसे स्थानों पर अपने राज्य स्थापित किए। कैसे गए होंगे यह राजा अब के लोग विचार करते रहे परंतु भारतवंशियों की बौद्धिक क्षमता का आकलन करें हम पाते हैं कि हम समुद्री मार्ग के प्रति पहले से ही जागरूक थे। मेरे मतानुसार मुगल और अन्य विदेशी आक्रांता ओं के स्मृति चिन्ह भिन्न भिन्न कर देना चाहिए या उन्हें अपने राज्य चिन्हों की सूची से हटा देना कोई असहिष्णुता नहीं है। मित्रों आज मैं अपने मित्र प्रोफेसर आनंद राणा का आर्टिकल इस ब्लॉग में प्रस्तुत कर बेहद प्रसन्नता महसूस कर रहा हूं। उनकी स्वीकृति के उपरांत मुद्रित इस ब्लॉग को आपकी सहमति और सम्मति अवश्य मिलेगी ]
"स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर : एक और दासता प्रतीक ध्वस्त" - "शं नो वरुण"(जल के देवता हमारे लिए मंगलकारी रहें) भारतीय नौसेना को मिला नया ध्वज। भारतीय नौसेना को आज यशस्वी प्रधानमंत्री श्रीयुत नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नया ध्वज प्राप्त हुआ और औपनिवेशिक रायल नेवी का अंतिम प्रतीक ध्वस्त हो गया । ध्वज का अनावरण कोच्चि में स्वदेशी विमान वाहक - 1(आई.ए.सी.)को 'आई. एन. एस. विक्रांत को नौसेना में सम्मिलित करने दौरान हुआ है। एक सेंट जार्ज के क्रास को दर्शाने वाली लाल पट्टी को अब छत्रपति शिवाजी महाराज की राजकीय मुहर के निशान से बदला गया है। नए ध्वज के ऊपरी कोने पर भारत के राष्ट्रीय तिरंगे झंडे और अशोक के चिन्ह को यथास्थिति रखा गया है। छत्रपति शिवाजी महाराज की राजकीय मुहर को नीले और सोने के अष्टकोण के साथ दर्शाया गया है। यद्यपि परम श्रद्धेय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय 2001 में इसे बदला गया था, परंतु सन् 2004 में पुनः ध्वज मूल स्वरुप में आ गया था। 
यह था औपनिवेशिक रायल नेवी का ध्वज जिसे ध्वस्त किया गया - एक सफेद पृष्ठभूमि पर रेड क्रॉस को सेंट जॉर्ज क्रॉस के रूप में प्रदर्शित किया  जाता है, इसका नाम एक ईसाई योद्धा के नाम पर रखा गया है, जो ईसाईयों के तृतीय धर्मयुद्ध में शामिल एक वीर  योद्धा था।
यह  क्रॉस इंग्लैंड के ध्वज के रूप में भी कार्य करता है जो यूनाइटेड किंगडम का एक घटक है।
इसे इंग्लैंड और लंदन शहर ने वर्ष 1190 में भूमध्य सागर में प्रवेश करने वाले अंग्रेजी जहाज़ों की पहचान करने के लिये अपनाया था।
अधिकांश राष्ट्रमंडल देशों ने अपनी स्वतंत्रता के समय रेड जॉर्ज क्रॉस को बरकरार रखा है, हालाँकि कई देशों ने वर्षों से अपने संबंधित नौसैनिकों पर रेड जॉर्ज क्रॉस को हटा दिया है।
उनमें से प्रमुख हैं ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और कनाडा।आज दिनांक 2सितंबर 2022 को भारत ने भी इस दासता के प्रतीक से मुक्ति प्राप्त कर ली।
 "सत्यमेव जयते" 
🌷🌷🌷
डॉ. आनंद सिंह राणा 
🌷🌷🌷

गुरुवार, सितंबर 01, 2022

चिंतन : कबिरा मार मार समझाए

 
  उपासना आराधना चिंतन अध्ययन ज्ञान साधना तपस्या समाधि वैराग्य, अध्यात्मिक दर्शन के बीए खोजे गए शब्द नहीं है। इनका संबंध सनातन व्यवस्था में जीवन दर्शन के साथ भी स्थापित किया है। पर्यूषण पर्व एवं गणेश उत्सव के अवसर पर कुछ बिंदु विचार योग्य हैं।
   शरीर के लिए आवश्यक पुरुषार्थ है इस कारण सभी को कहा जाता है - कर्म करो। कर्म अपनी आंतरिक शुचिता के साथ करो। किसी का दिल मत दुखाओ।  हम किसी को मन वचन और कर्म  कष्ट पहुंचाते हैं, और आध्यात्मिक होने का अभी नहीं करते हैं ईश्वर ऐसी स्थिति में हमें स्वीकार नहीं करता।
   हिंसक व्यक्ति को कभी ईश्वर ने स्वीकारा ही नहीं भले ही वह स्वयं अवतार क्यों ना रहा हो?
  इसकी हजारों कथाएं उपलब्ध हैं हर धर्म के ग्रंथों में।
   मुझे घृणित कार्य इसलिए नहीं करना चाहिए कि ईश्वर मुझे दंडित करेगा यह कांसेप्ट ही गलत है। ईश्वर से डरो मत उसके शरणागत हो जाओ और पवित्र भाव से प्राणी मात्र में ईश्वर के तत्व को पहचानो यही सभी ग्रंथों में लिखा है।
कठोर तप साधना ध्यान तपस्या योगी करते हैं। यह क्रिया आत्मबोध का अनुसंधान Research है , आत्मबोध होते ही हम ईश्वर के तत्व को पहचान सकते हैं।
हर एक पौराणिक कथा कहानी का उद्देश्य होता है। यह केवल हमें अहिंसा अपरिग्रह शुचिता उक्त कार्यों की प्रेरणा के लिए कहीं गई कथाएं हैं। कुछ कथाएं काल्पनिक है कुछ वास्तविक हैं यही कथाएं गृहस्थ जीवन को सुख में बनाती हैं। सुखी जीवन ब्रह्म के आनंद का मार्ग है।
मुझे अच्छी तरह से याद है मैं अपने मित्र के साथ रात में फुहारे पर चटपटा खाने जाया करता था। अक्सर वहां एक भिक्षुक अपेक्षा भरी आंखों से मुझे और मेरे मित्र को देखता था। अक्सर ऐसा होता था कि हम 3 फलाहारी चाट इत्यादि आर्डर करने लगे थे। ना हम उसका नाम जानते ना वह हमारा नाम जानता पर इतना अवश्य है कि उसके अंदर के ब्रह्म का सम्मान करते हुए हम अपने मन में बहुत आनंद का अनुभव करते थे। सुख खरीदा जाता है परंतु आनंद बरसता है आनंद त्याग की कीमत मांगता है आनंद समता का भाव मांगता है आनंद आध्यात्मिक तथ्य है आनंद ईश्वर में समा जाने का विषय है। जो इंद्रियों को जीत लेता है उसे परमानंद की प्राप्ति सहित हो जाती है।
मित्रों मैं उपदेशक नहीं । ना हीं ऐसी कोई योग्यता मुझे प्राप्त हुई है। हम सब ऐसे ही हैं। परंतु त्याग और समता का भाव यह सब सिखा देता है।
एक थे संत कबीर, उनका जन्म ही इसलिए हुआ था कि सत्य का जीवन विश्लेषण कर सकें। खुल के बोलते थे काहे का तुर्क काहे का हिंदू और काहे का मुस्लिम उनके निशाने पर सब के सब थे। कवि जीवंत और जीवित है। कबीर ना किसी की छाप छुड़वाते ना किसी का तिलक। कबीर तो बस ऐसा ताना-बाना बुन जीते थे कि सर से पांव तक मनुष्य पवित्र हो जाए जाए इसके लिए कठोर वचन भी कह देते। अपने दौर का सबसे अकिंचन और तेज़ तर्रार कवि एक अकेला जुलाहा सबसे लड़ता रहा सबको समझाता रहा कबीर ने ना कोई आश्रम खड़ा किया ना कोई दौलत बनाई अक्खड़ बिंदास बेखौफ कबीर तो कबीर ठहरे उन्हें किसी लाग लपेट की जरूरत नहीं। तरीका कुछ भी हो कबीर ने मानवता के श्रेष्ठतम प्रतिमान स्थापित कर दिए। एक थे हमारे मिर्जा गालिब साहब कहते थे 
खुदा के वास्ते काबे से पर्दा न हटा
कहीं ऐसा ना हो वहां भी काफिर सनम निकले . !
   इस तरह इन विचारों और चिंतकों ने समतामूलक समाज की स्थापना में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। परंतु इस देश का दुर्भाग्य जिसमें इस्लाम आतंक के सहारे बढ़ने का प्रयास कर रहा है। जबकि कोई भी संप्रदाय दिलों में प्रेम श्रद्धा विश्वास और एकात्मता के बिना घर नहीं बना पाता। तुर्रा यह कि सर कलम कर देंगे? दुनिया  ऐसी नहीं बनती भारत में तो इन सब का कोई स्थान नहीं है। यह अपराध है इन अपराधियों को रोकना होगा। यह गलती है इसे स्वीकार ना होगा।
    हमारे गुरुदेव ने कहा था-"जीवन की छोटी से छोटी गलती अथवा भूल को  स्वीकार कर लेना चाहिए । क्योंकि व्यवहारिक जीवन में यह सब संभव है यह होना सुनिश्चित है शरीर गलतियां करता है आत्मा का कार्य है गलतियों को पहचानना और फिर पश्चाताप और प्रायश्चित करना।
    परंतु इसके पूर्व क्षमा प्रार्थना सर्वोपरि है। हर गलत कार्य के फल स्वरुप नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है। इस नकारात्मक ऊर्जा का सम्मान करना हमारा खुद का दायित्व है। मेरे इस अभिकथन से किसी को ठेस पहुंचती है तो मैं पूरी विनम्रता और शुचिता के साथ क्षमा प्रार्थी।
  *ॐ श्री राम कृष्ण हरि*

मंगलवार, अगस्त 30, 2022

चिंतन: ब्रह्मतत्व का रहस्य


What is Brahma Tattva? Or who is called the God particle?
   वास्तव में यही जटिल प्रश्न है। इस प्रश्न में जटिलता इसलिए भी है क्योंकि इसके अस्तित्व स्वीकार लेने के लिए कई परिभाषाएं हमने दीं हैं। ब्रह्म तत्व का परीक्षण करने वालों ने बहुत सारी बातें छोड़ दी  हैं
[  ] वैज्ञानिक नजरिए से ब्रह्म तत्व को सर्वप्रथम मान्यता की नहीं थी। फिर धीरे-धीरे जब प्रोफेसर हॉकिंग्स ने समझा कि यदि सृष्टि का कोई ऑपरेटिंग सिस्टम है तो उससे कोई ऑपरेट करने वाला भी होगा यदि ऐसा है तो ब्रह्म तत्व है। विज्ञान आज भी सामान्य रूप से ईश्वर के अस्तित्व को नकारता है। पर जब क्वांटम कांटेक्ट में जाता है तो फिर ब्रह्म तत्त्व के रास्ते पर चढ़ता हुआ नजर आता है।
[  ] गति के नियम, गुरुत्वाकर्षण का नियम, अंतरिक्ष की व्यवस्थाओं के साथ पृथ्वी का अंतर्संबंध पृथ्वी पर उपस्थित तथा एलियंस के आवागमन के संदर्भ में जब विचार होता है तो कहीं ना कहीं गॉड पार्टिकल अर्थात ब्रह्म तत्व की समीक्षा वैज्ञानिक करता है।
[  ] सामाजिक नजरिए से देखा जाए तो हर व्यक्ति अपने से महान किसी शक्ति के समक्ष नतमस्तक होता है। दुनिया दो खेमे में विभक्त है - आस्तिक और नास्तिक । सीधी सी बात है ब्रह्म तत्व को स्वीकारने वाला आस्तिक है और न करने वाला नास्तिक है। समाज की मूल इकाई अर्थात व्यक्ति ईश्वर के रहस्य को समझने की कोशिश करता है। वह किसी संप्रदाय के साथ जोड़ता है किसी गुरु के संरक्षण में ब्रह्म तत्व को जानने की कोशिश करता है। उसे मिल भी जाता होगा उसके सवालों का उत्तर।
[  ] तर्कशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखने वाले ईश्वर के स्वरूप का निर्धारण करने के लिए गुणदोष , पक्ष-विपक्ष, का अवलोकन करते हैं, फिर अपने ज्ञान एवं बौद्धिक योग्यता के आधार पर इसका स्वरूप निर्धारित कर देते हैं। फिर भी उसे पूर्ण रूप से परिभाषित नहीं कर पाते। आचार्य  रजनीश को इसी खंड में रखना चाहता हूं।
[  ] आदि गुरु शंकराचार्य ने ईश्वर को अद्वैत दर्शन के माध्यम से समझा दिया। अनहलक, द्वैत, द्वैताद्वैत, एकेश्वरवाद, बहुलदेव वाद, ईश्वर-तत्व को समझने में सर्वश्रेष्ठ सूत्र हैं।
[  ] परन्तु कुछ लोग ब्रह्म को गपोड़ियों की तरह एक्सप्लेन करते हैं। वे ब्रह्म को स्वर्गलोक जैसे स्थान का स्थाई निवासी घोषित कर रहे हैं। जबकि ब्रह्म तत्व के सर्वव्यापी होता है।
[  ] ब्रह्म तत्व के कण-कण में व्याप्त होने की कुतर्क से विश्लेषण किया जाता है।
        कुल मिलाकर जिसने जैसा महसूस किया , अपने कंफर्ट के अनुसार ब्रह्म बना दिया। ब्रह्म स्वर्ग में रहता है वह जन्नत में रहता है हम कहते हैं अलख निरंजन हैं वह दिखता नहीं है। वास्तविकता यह है कि जो सार्वभौमिक है सर्वव्यापी है है उसे आप देख भी तो नहीं सकते.. उसे देखने की आपने हमने क्षमता कहां? त्रैलोक्य के दर्शन करोगे? आसान नहीं है ऐसा करना अभी तो कुछ वर्ष पहले अर्थात 1977 में ब्रह्मांड के रहस्य को जानने भेजा गया वायजर यान वर्ष 2017 में 40 वर्षों में केवल 20 अरब किलोमीटर जा पाया है। अब दो तीन अरब किलोमीटर और पहुंच सका होगा ! है न अभी तो नक्षत्रों तक पहुंचना है निहारिका ओं से मुलाकात करना है हो सकता है और कई 100  साल लग जाए तुम ब्रह्मांड को नहीं  जान सकते तो उसके नियंता ब्रह्म को कैसे जान सकते हो?
ब्रह्म को पहचानने की रिस्क मत उठाओ जानते हो ब्रह्म को पहचानने के लिए और उसे परिभाषित करने के लिए आत्मज्ञान की जरूरत है। महसूस करो समाधि स्थिति में जाओ योग शक्ति से अहम् ब्रह्मास्मि के सूत्र वाक्य को स्वीकारते  हुए ब्रह्म को पहचान लो। और क्या बताऊं बहुत बुद्धिमान हो समझदार हो ब्रह्म को तलवार से स्थापित कर रहे हो एक ब्रह्म है दूसरा नहीं है यह तो हम बरसों से कह रहे हैं नहीं युगो से कर रहे है और तुम हो कि सर तन से जुदा करते हुए अपनी काल्पनिक दुनिया के मंतव्य की स्थापना कर रहे हो।
      *ॐ राम कृष्ण हरि:*

शनिवार, अगस्त 27, 2022

बापू के बंदरों के वंशज

    *बापू के बंदरों के वंशज*
         ( व्यंग्य-गिरीश बिल्लोरे मुकुल)
   महात्मा गांधी ने हमें जिन तीन बंदरों से परिचय कराया था उन्हीं के वंशजों से हमारा अचानक मिलना हो गया। तीनों की पर्सनालिटी अलग अलग नजर आ रही थी यहां तक कि वे बंदरों से ही अलग थे।
   व्यक्तित्व में बदलाव तो होना चाहिए स्वाभाविक है कि विकास अनुक्रम में सांस्कृतिक विकास सबसे तेजी से होता है इसमें नए नए शब्द मिलते हैं। शारीरिक शब्दावली आप बदली हुई देख सकते हैं। बापू के तीनों बंदर वाकई में बदल चुके थे। बंदर क्या वह इंसानों से बड़े इंसान बंदर नजर आ रहे थे।
  आपको याद होगा जिस बंदर ने अपनी कान में अंगुलियां डाल रखी थी , उसकी  वंशज ने मुझसे गर्मजोशी से हाथ मिलाया। और कुछ नहीं लगा क्या कर रहे हो आजकल हमने अपना बायोडाटा रख दिया और कहा अब आप तीनों ने मेरा परिचय तो जान लिया होगा आप लोग क्या कर रहे हैं मुझे बताने का कष्ट कीजिए...!
  हां मेरे दादाजी कान में उंगली डाल कर गांधी जी के पास रहा करते थे। हम भी वही कुछ सबको सिखा रहे हैं।
अच्छा....यह तो बहुत अच्छी बात है।
नहीं नहीं आप समझ नहीं पा रहे हैं..! बंदर ने कहा, हम लोगों को बता रहे हैं कहां से कैसी आवाज आ रही है, कौन कह  रहा है, इस पर तुम्हें ध्यान देने की बिल्कुल जरूरत नहीं। क्योंकि तुम्हारी औकात तो है नहीं अगर सुनोगे तो फिर उत्तेजित होकर एक्शन मोड में आ जाओगे.. ! हो सकता है कि आ बैल मुझे मार वाली स्थिति का निर्माण भी कर लो। तो ऐसे मसलों को सुनने की जरूरत क्या है। भाई युक्ति से मुक्ति मिलती है युक्ति लगाओ और मुक्त रहो क्या बुराई है?
    मित्रों उस महान बंदर की संतान का जितना आभार माना जाए कम है। मध्यम वर्ग के लिए तो यह एकदम फिट बैठता है। मध्यवर्ग को इस प्रथम बंदर की औलाद का उपदेश आत्मसात कर लेना चाहिए भाई।
  तभी दूसरे बंदर ने सिगरेट जलाई और मेरी तरफ मुखातिब होकर पूछा - तुम कवि लेखक निबंधकार ब्लॉग लेखक हो?
मेरा उत्तर हां में था। मैंने भी उससे प्रति प्रश्न किया तो तुम्हें मेरा लिखा हुआ पसंद आता है?
    तभी कॉफी हाउस में चलने का अनुरोध सुनकर मैं उनके पीछे पीछे हो लिया।
    अनुकूल टेबल चुनकर हम बैठ गए। दूसरे बंदर ने कहा-" तुम्हें मैं बिल्कुल नहीं पढ़ता ! हां तुम्हारी फोटो शोटो पेपर में देख कर लगता है कि तुम लिखते हो किसी ने बताया भी था कि तुमने एक किताब लिख मारी है सॉरी भाई बुरा मत मानना अब हम ठहरे बंदर इधर से उधर उधर से इधर टाइम कहां मिलता है?
मैंने पूछा - चलो ठीक है बताओ तुम्हारा धंधा क्या है ?
     मैं भी सोशल एजुकेशन फील्ड में काम कर रहा हूं। मैं ऐसे नेगेटिव स्थापित करने में अपनी क्लाइंट की मदद करता हूं जिससे क्लाइंट के पक्ष में वातावरण निर्मित हो। मैं पब्लिक को सिखाता हूं यह मत देखो वह मत देखो जो मैं दिखा रहा हूं वही देखो। और फिर मैं वह चीज दिखा देता हूं जिसे मुझे बेचना होता है। छोटी सी बात है कि घर में कपूर जलाने से इंसेक्ट भाग जाते हैं। मैंने सिखाया है-" प्रिय भारतवंशियों , प्रगतिशील हो इंसेक्ट किलर स्प्रे रखो। सर में दर्द हो तो तेल पानी की मालिश मत करो अरे भाई फला कंपनी ने दवा बनाई है ना बहुत रिसर्च किया है एक बार फिर पुरानी रूढ़ीवादी बातों से छुटकारा भी तो चाहिए तुम्हें। मेरी बातें सुनकर लोग जरूर प्रभावित होते हैं मेरा क्लाइंट मुझे धन देता है मेरे बच्चों का लालन-पालन होता है। सब का मस्तिष्क ठंडा ठंडा कूल कूल रखता हूं मैं। सच बताऊं मैं सब कुछ बेच सकता हूं। कभी आजमाना मेरी सेवा में लेकर देखना..!
  मैंने उस बंदर से कहा-"भाई.., मैं ठहरा ऑफिस का बाबू मैं क्या कर सकता हूं मेरे पास कोई प्रोडक्ट नहीं है।
   बंदर बोला-" मौका तो दो मैं तुम्हें भी बेच सकता हूं"
  अब तक  वेटर चार कॉफी लेकर आ चुका था। सब जानते हैं कि मैं नाकारा नामुराद व्यक्ति हूं मुझसे किसी को कोई फायदा कभी हो सकता है भला? परंतु मेरे भी भाव लग सकते हैं मैं बेचा जा सकता हूं सुनकर मुझे विस्मित होना स्वभाविक था। एक बार तो मैं महसूस करने लगा कि वह बंदर  मुझे नीलाम कर रहा है सामने बहुत सारे गधे खड़े हैं और मुझे खरीदने का मन भी कई लोग बना चुके हैं। तभी मुंह पर हाथ रखने वाले बंदर की औलाद ने मुझे हिलाया और पूछा- श्रीमान कहां खो गए?
  स्वप्नलोक से वापस आते मैंने देखा कि बंदरों ने लगभग आधी कॉफी समाप्त कर दी थी। तीसरे बंदर ने अपने आप अपनी कहानी बिना पूछे बतानी शुरू कर दी। उसे मालूम था कि मैं उससे भी कुछ पूछने वाला हूं।
    भाई मैं तो दुनिया की हर चीज देखता हूं हर चीज सुनता हूं और अपने पूर्वज की तरह मुंह बंद रखता हूं। जानते हो क्यों..?
मैं नहीं जानता तुम ही बता दो..!
तीसरा बंदर कहने लगा-" भाई सब देखने सुनने के बाद मैं उन लोगों के पास जाता हूं जिनसे बुरा हुआ है जिनमें बुरा किया है और फिर बताता हूं कि भाई इस सब को पब्लिक फोरम पर मैं नहीं लाने वाला अगर आप मेरे लिए पत्रं पुष्पं की व्यवस्था कर दें। मैं अपने मुंह पर उंगली रख लूंगा बिलकुल वैसे ही जैसे मेरे पूर्वज जो गांधी जी के साथ थे ने अपने मुंह पर उंगली रखी थी।
   इतना कहकर बंदर अचानक गायब होने लगे, कॉफी हाउस का वेटर मेरी ओर बिल लेकर आ रहा था, कि... मेरी पत्नी ने मुझे हिलाया, और चीखते हुए बोली-" तुम लेखकों का यही दुर्भाग्य है रात भर जागना और 9:00 बजे तक बिस्तर पर पड़े रहना.. बच्चों का ख्याल नहीं होता तो कब की तुम्हें छोड़कर मैके चली जाती..!"
    हम जैसे बेवकूफ लेखकों का भूतकाल वर्तमान और भविष्य इसी तरह की लताड़ का आदि हो गया है। यह अलग बात है कि स्वप्न में जिन बंदरों से मुलाकात हुई वह बंदर कितने विकसित हो चुके हैं कितने परिपक्व हैं यह हम अब तक ना समझ सके।
*डिस्क्लेमर : इस व्यंग्य का किसी से कोई लेना देना नहीं जिसे पढ़ना है पढ़ें समझना है समझो अपने दिल पर ना लें अगर आप गांधीजी के बंदर हैं तो भी और नहीं है तब भी*

गुरुवार, अगस्त 25, 2022

चिंतन : सुख और आनंद


   आनंद यूं ही नहीं मिलता, आनंद खरीदा नहीं जा सकता , आनंद के बाज़ार भी नहीं लगते, आनंद की दुकानें भी नहीं है, आनंद के विज्ञापन नहीं कहीं देखे हैं कभी आपने?
   आनंद अनुभूति का विषय है। आनंद कठोर साधना से प्राप्त होता है। आनंद मस्तिष्क का विषय है। आनंद प्राप्ति के लिए हिंसा नहीं होती । आनंद चैतन्य की पूर्णिमा है। भिक्षु आनंदित हो सकता है, जितनी उम्मीदैं आकांक्षाएं और अपेक्षाएं कम होंगी अथवा शून्य होंगी, उससे कहीं अधिक आनंद का अनुभव होगा। लोग समझते हैं कि आनंद सुख का समानार्थी शब्द है। ऐसा नहीं है ऐसा कभी ना था मैं तो कहता हूं ऐसा हो ही नहीं सकता।
सुख अपेक्षाओं का पूरा होते ही प्राप्त हो जाता है। सुख बाजार में खरीदा जा सकता है सुख की खुलेआम बिक्री होती है, सुख के बाजार की हैं, सुख भौतिकवाद का चरम हो सकता है। 
      चाहत वर्चस्व सत्ता सुख के महत्वपूर्ण संसाधन है। सुख का अतिरेक प्रमाद और अहंकार का जन्मदाता है। जबकि आनंद का अतिरेक शांति एवं ब्रह्म के साथ साक्षात्कार का अवसर देने वाला विषय है।
  मैं जब भी अपने कंफर्ट जोन से बाहर आता हूं तब मुझे सुख में कमी महसूस होती है। यह कमी मुझे दुखी कर देती है। दुख आरोप-प्रत्यारोप शिकायत का आधार बन जाता है। ऐसी स्थिति में आनंद के रास्ते तक बंद हो जाते हैं।
       मीरा तो महारानी थी महल में रहती थी..और उसने अपना कंफर्ट जोन छोड़ दिया। सुख की सीमा से बाहर निकल आई । जब मीरा कंफर्ट जोन से बाहर निकली और कहने लगी *पायोजी मैंने राम रतन धन पायो।*
   हमने अत्यधिक सुखी लोगों को बिलखते देखा है , और अकिंचन को तल्लीनता से ब्रह्म के नजदीक जाते देखा है। कुल मिला के सुख फिजिकल डिजायर  का परिणाम है जबकि आनंद आत्मिक एवं आध्यात्मिक अनुभूतियों का प्रामाणिक परिणाम है।
     सुख के सापेक्ष आनंद योग साधना चिंतन धारणा ध्यान और समाधि का अंतिम परिणाम है।
हाथ में धन मस्तिष्क में सुख का अनुभव अक्सर हम महसूस करते हैं। जैसे ही धन कम होता है हमारा मन व्यग्रता से लबालब हो जाता है, और हम दुखी हो जाते हैं। 
        हाथ से सत्ता जाते ही आपने लोगों को उसके कैंचुए की तरह बिलबिलाते देखा होगा ? जो नमक की जलन से शरीर स्वयं को बचाने में असफल हो जाता है। वर्चस्व  की भी यही स्थिति है। ध्यान से देखो जो मनुष्य अकिंचन होकर न्यूनतम जरूरतों की पूर्ति कर ब्रह्म चिंतन में लग जाता है, उसके चेहरे की तेजस्विता देखिए हो सकता है कि घर के बाहर "माम भिक्षाम देही...!" की आवाज आपको सुनाई दे रही है न....!
       देखिए उसके चेहरे पर तृप्ति के भाव को यदि वह योगी है तो उसके चेहरे पर आपको महात्मा बुद्ध नजर आएंगे। 
 ॐ राम कृष्ण हरि:

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