30.8.22

चिंतन: ब्रह्मतत्व का रहस्य


What is Brahma Tattva? Or who is called the God particle?
   वास्तव में यही जटिल प्रश्न है। इस प्रश्न में जटिलता इसलिए भी है क्योंकि इसके अस्तित्व स्वीकार लेने के लिए कई परिभाषाएं हमने दीं हैं। ब्रह्म तत्व का परीक्षण करने वालों ने बहुत सारी बातें छोड़ दी  हैं
[  ] वैज्ञानिक नजरिए से ब्रह्म तत्व को सर्वप्रथम मान्यता की नहीं थी। फिर धीरे-धीरे जब प्रोफेसर हॉकिंग्स ने समझा कि यदि सृष्टि का कोई ऑपरेटिंग सिस्टम है तो उससे कोई ऑपरेट करने वाला भी होगा यदि ऐसा है तो ब्रह्म तत्व है। विज्ञान आज भी सामान्य रूप से ईश्वर के अस्तित्व को नकारता है। पर जब क्वांटम कांटेक्ट में जाता है तो फिर ब्रह्म तत्त्व के रास्ते पर चढ़ता हुआ नजर आता है।
[  ] गति के नियम, गुरुत्वाकर्षण का नियम, अंतरिक्ष की व्यवस्थाओं के साथ पृथ्वी का अंतर्संबंध पृथ्वी पर उपस्थित तथा एलियंस के आवागमन के संदर्भ में जब विचार होता है तो कहीं ना कहीं गॉड पार्टिकल अर्थात ब्रह्म तत्व की समीक्षा वैज्ञानिक करता है।
[  ] सामाजिक नजरिए से देखा जाए तो हर व्यक्ति अपने से महान किसी शक्ति के समक्ष नतमस्तक होता है। दुनिया दो खेमे में विभक्त है - आस्तिक और नास्तिक । सीधी सी बात है ब्रह्म तत्व को स्वीकारने वाला आस्तिक है और न करने वाला नास्तिक है। समाज की मूल इकाई अर्थात व्यक्ति ईश्वर के रहस्य को समझने की कोशिश करता है। वह किसी संप्रदाय के साथ जोड़ता है किसी गुरु के संरक्षण में ब्रह्म तत्व को जानने की कोशिश करता है। उसे मिल भी जाता होगा उसके सवालों का उत्तर।
[  ] तर्कशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखने वाले ईश्वर के स्वरूप का निर्धारण करने के लिए गुणदोष , पक्ष-विपक्ष, का अवलोकन करते हैं, फिर अपने ज्ञान एवं बौद्धिक योग्यता के आधार पर इसका स्वरूप निर्धारित कर देते हैं। फिर भी उसे पूर्ण रूप से परिभाषित नहीं कर पाते। आचार्य  रजनीश को इसी खंड में रखना चाहता हूं।
[  ] आदि गुरु शंकराचार्य ने ईश्वर को अद्वैत दर्शन के माध्यम से समझा दिया। अनहलक, द्वैत, द्वैताद्वैत, एकेश्वरवाद, बहुलदेव वाद, ईश्वर-तत्व को समझने में सर्वश्रेष्ठ सूत्र हैं।
[  ] परन्तु कुछ लोग ब्रह्म को गपोड़ियों की तरह एक्सप्लेन करते हैं। वे ब्रह्म को स्वर्गलोक जैसे स्थान का स्थाई निवासी घोषित कर रहे हैं। जबकि ब्रह्म तत्व के सर्वव्यापी होता है।
[  ] ब्रह्म तत्व के कण-कण में व्याप्त होने की कुतर्क से विश्लेषण किया जाता है।
        कुल मिलाकर जिसने जैसा महसूस किया , अपने कंफर्ट के अनुसार ब्रह्म बना दिया। ब्रह्म स्वर्ग में रहता है वह जन्नत में रहता है हम कहते हैं अलख निरंजन हैं वह दिखता नहीं है। वास्तविकता यह है कि जो सार्वभौमिक है सर्वव्यापी है है उसे आप देख भी तो नहीं सकते.. उसे देखने की आपने हमने क्षमता कहां? त्रैलोक्य के दर्शन करोगे? आसान नहीं है ऐसा करना अभी तो कुछ वर्ष पहले अर्थात 1977 में ब्रह्मांड के रहस्य को जानने भेजा गया वायजर यान वर्ष 2017 में 40 वर्षों में केवल 20 अरब किलोमीटर जा पाया है। अब दो तीन अरब किलोमीटर और पहुंच सका होगा ! है न अभी तो नक्षत्रों तक पहुंचना है निहारिका ओं से मुलाकात करना है हो सकता है और कई 100  साल लग जाए तुम ब्रह्मांड को नहीं  जान सकते तो उसके नियंता ब्रह्म को कैसे जान सकते हो?
ब्रह्म को पहचानने की रिस्क मत उठाओ जानते हो ब्रह्म को पहचानने के लिए और उसे परिभाषित करने के लिए आत्मज्ञान की जरूरत है। महसूस करो समाधि स्थिति में जाओ योग शक्ति से अहम् ब्रह्मास्मि के सूत्र वाक्य को स्वीकारते  हुए ब्रह्म को पहचान लो। और क्या बताऊं बहुत बुद्धिमान हो समझदार हो ब्रह्म को तलवार से स्थापित कर रहे हो एक ब्रह्म है दूसरा नहीं है यह तो हम बरसों से कह रहे हैं नहीं युगो से कर रहे है और तुम हो कि सर तन से जुदा करते हुए अपनी काल्पनिक दुनिया के मंतव्य की स्थापना कर रहे हो।
      *ॐ राम कृष्ण हरि:*

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