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जनवरी, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भाई मिश्र जी आभारी हैं आपके

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पोस्ट का पोस्ट मार्टम मिश्रा जी की टिप्पणी के बाद समयचक्र - महेद्र मिश्रा said... नागफनी की चर्चा आप अपने आँगन तक सीमित रखे बेहतर होगा . खेमबजी गुटबाजी जैसे शब्दों से परहेज करता हूँ और बरदास्त भी नही करता हूँ . नागफनी शब्द के साथ मुझे बधाई देना शायद मेरी भावनाओं को ठेस पहुँचा सकता है . आप बहुत बड़े ब्लॉगर है कृपया भविष्य में संतुलित शब्दों का प्रयोग करे . यही अपेक्षा करता हूँ . January 26, 2009 10:53 PM समयचक्र - महेद्र मिश्रा said... जिस तरह से बिना किसी की अनुमति के वगैर कोई कार्य करना उचित नही है पहले कोई भी कार्य करे तो सहमति सभी की ली जानी चाहिए और सभी का विश्वास अर्जित करना चाहिए यह सभी कहते है .पर एकला चलो की नीति अच्छी नही होती है ... जबलपुर के ब्लागरो से आज से राम राम कृपया नोट करे .. January 26, 2009 11:21 PM मिश्र जी मेरी पोस्ट जल्द बाजी में लिखी गयी पोस्ट थी जिसे मैं अन्तर पट से विभक्त न कर सका वास्तव में पोस्ट के प्रथम भाग में एक घटना का चित्रण चाह रहा था कि यकायक आपकी पोस्ट पर घूमने चला गया जहाँ आपके द्वारा कुछ सुझाव लिखे देखे उसका उत्तर फ़टाफ़ट देने

फुरुषोत्तम

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किस किस को सोचिए किस किस को रोइए आराम बड़ी चीज है , मुंह ढँक के सोइए ....!! " जीवन के सम्पूर्ण सत्य को अर्थों में संजोए इन पंक्ति के निर्माता को मेरा विनत प्रणाम ...!!'' आपको नहीं लगता कि जो लोग फुर्सत में रहने के आदि हैं वे परम पिता परमेश्वर का सानिध्य सहज ही पाए हुए होते हैं। ईश्वर से साक्षात्कार के लिए चाहिए तपस्या जैसी क्रिया उसके लिए ज़रूरी है वक़्त आज किसके पास है वक़्त पूरा समय प्रात: जागने से सोने तक जीवन भर हमारा दिमाग,शरीर,और दिल जाने किस गुन्ताड़े में बिजी होता है। परमपिता परमेश्वर से साक्षात्कार का समय किसके पास है...? लेकिन कुछ लोगों के पास समय विपुल मात्रा में उपलब्ध होता है समाधिष्ठ होने का । इस के लिए आपको एक पौराणिक कथा सुनाता हूँ ध्यान से सुनिए एकदा -नहीं वन्स अपान अ टाइम न ऐसे भी नहीं हाँ ऐसे "कुछ दिनों पहले की ही बात है नए युग के सूत जी वन में अपने सद शिष्यों को जीवन के सार से परिचित करा रहे थे नेट पर विक्की पेडिया से सर्चित पाठ्य सामग्री के सन्दर्भों सहित जानकारी दे रहे थे " सो हुआ यूँ कि शौनकादी मुनियों ने पूछा -

ये मस्त चला इस मस्ती में थोडी थोडी मस्ती लेलो :लुकमान चाचा

यह सही नहीं कि समीर लाल जी मोदीवाडा सदर में लुकमान को सुनते थे , खासतौर पर होली ? ऐसा नहीं था जहाँ भी चचा का प्रोग्राम होता भाई समीर की उड़न-प्लेट सम्भवत:वेस्पा स्कूटर पर सवार हो कर चली आती थी . दादा दिनेश जी विनय जी को आभार सहित अवगत करना चाहूंगा कि:- पंडित भवानी प्रसाद तिवारी जी ,के बाद वयोवृद्ध साहित्यकार श्रीयुत हरिकृष्ण त्रिपाठी जी का स्नेह लुकमान पर खूब बरसा . मित्र बसंत मिश्रा बतातें हैं:-'असली जबलपुर में चचा कि महफिलें खूब सजातीं थीं भइया गिरीश तुमको याद होगा मिलन का कोई भी कार्यक्रम बिना लुकमान जी के अधूरा होता था '' मुझे अक्षरस:याद है कि मिलन के हर कार्यक्रम में लुकमान का होना ज़रूरी सा हो गया था । चाचा लुकमान को जन्म तिथि याद न थी ..! 14 जनवरी 1925 मैंने उनकी जन्म तारीख लिखी ज़रूर है किंतु उनके स्नेही और 1987 से अन्तिम समय तक साथ रहने वाले शागिर्द भाई शेषाद्री अयैर और दीवाना

बबाल का शुक्रिया : लुकमान साहब को याद करने का

जी अब इस शहर में आइनों की कमीं को देख के मलाल होता है की क्यों लुकमान नहीं हैं साथ . बवाल हों या लाल दादा लुकमान की याद किसे नहीं आती . सच मेरा तो रोयाँ-रोयाँ खड़ा हो गया था ..... 27 जुलाई 2002 का वो दिन जब लुकमान जी ने शहर जबलपुर से शरीरी रिश्ता तोडा ........ वे जेहन से दूर कभी हो भी नहीं सकते . जाने किस माटी के बने थे जिसने देखा-सुना लट्टू हो गया . इस अद्भुत गंगो-जमुनी गायन प्रतिभा को उजागर किया पंडित भवानी प्रसाद तिवारी ने , इस बिन्दु पर वरिष्ठ साहित्यकार मोहन शशि का कहना है:-"भवानी दादा के आशीर्वाद से लुकमान का बेलौस सुर-साधक होना सम्भव हो सका धर्म गुरुओं ने भी लुकमान की कव्वालियाँ सुनी"शशि जी ने आगे बताया -"लुकमान सिर्फ़ लुकमान थे (शशि जी ने उनमें नकलीपन कभी नहीं देखा) वे मानस पुत्र थे भवानी दादा के " १४ जनवरी १९२५ (मकर संक्राति) को जन्मा यह देवपुत्र जन्म से मोमिन , था किंतु साम्प्रदायिक सदभाव का मूर्त-स्वरुप था उनका व्यक्तित्व. सिया-चरित , भरत-चरित , मैं मस्त चला हूँ मस्ती में थोडी थोडी मस्ती ल

महाजाल सबसे तेज़ !!

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एक " रिपोर्ट:"- (संक्रांति की सुबह "महाजाल " पर समाचार नुमा यह आलेख) पढ के शरीर का रोयाँ -रोयाँ खड़ा हो गया। तभी श्रीमति जी ने शेविंग-उपकरण सामने लाके रख दिए साहब आज शेव करके समय एक भी बाल न छूट पाया । वे बोलीं:-आज इत्ती जल्दी शेव निपटा लिया । मेरे मुंह से निकल गया महाजाल पे छपी 2040 का समाचार पढा तो यह सम्भव हुआ है। श्रीमति बिल्लोरे अपना माथा खाजुआनें लगीं कि हम ने क्या कहा । तब तक अपने मानस में भी " " हलचल: " होने लगी कि इतने शब्द तो पहले से ही हिन्दी में विराजे हैं पंडित जी ने गज़ब शब्द खोज निकाला इसे अब भाषाविज्ञानी तय करेंगे कि थोक कट-पेस्टीय लेखन शब्द को शामिल किया जाए या नहीं अगर ब्लागर्स से कोई पूछेगा तो हम सब दादा के साथ हैं। उधर कबाड़ी भाई के पास पुराने रेडुए से ये सुनने मिला आत्म-विभोर हूँ ! इस बीच तिल का कटोरा दो बार मेरे सामने से से वापस जा चुका है अत: पोस्ट आधी-अधूरी छोड़ के उठ रहा हूँ बाकी एहावाल शाम के बाद पोस्ट करूंगा मुझ डर है कि संक्रांति कहीं क्रान्ति का रूप न रख लेवे। इन अन्तिम-पंक्तियों के लिखे ज

"ममत्व मेले-09 की तैयारियां पूर्ण :मेले को मिला अंतर्राजीय स्वरुप "

*16 जनवरी-से- 20 जनवरी तक चलने वाले मेले का शुभारम्भ एम एल बी ग्राउंड में * झारखण्ड , उत्तरांचल , छत्तीसगड़ , उत्तर-प्रदेश , राजस्थान , महाराष्ट्र के उत्पाद भी मेले में रखे जाएंगे * प्रतिदिन होंगीं रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ * महिलाओं एवं किशोरी बालिकाओं के लिए रंगोली , मेंहदी , खेल , नृत्य प्रतियोगिताएँ आयोजित होंगी. संस्कारधानी जबलपुर में वर्ष 1992, 1999, 2006, के बाद इस वर्ष 2009 में को आयोजित होने वाले ममत्व मेले का स्वरुप विगत वर्षों से भिन्न होगा. तदाशय की जानकारी देते हुए जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला बाल विकास पदेन जिला प्रबंधक महिला वित्त विकास निगम श्री महेंद्र द्विवेदी व्दारा बताया गया कि:-मेले की तैयारियाँ पूर्ण की जा चुकीं इस हेतु कार्यदलों का गठन किया जा चुका जिन्हें बिन्दुवार कार्य निर्देश जारी किए जा चुकें हैं साथ ही साथ सभी कार्य दलों को विस्तृत मार्गदर्शन हेतु बैठक का आयोजन भी किया जा चुका झारखण्ड , उत्तरांचल , छत्तीसगड़ , उत्तर-प्रदेश , राजस्थान , महाराष्ट्र के उत्पाद भी मेले में रखे जाएंगे . प्रदेश

स्वर्गीय ठाकुर दादा

हम सबके प्रिय स्वर्गीय ठाकुर दादा हमारे बीच नहीं आज त्रयोदशी पर विनत श्रध्दांजलि

गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो ?

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अदेह के सदेह प्रश्न कौन गढ़ रहा कहो गढ़ के दोष मेरे सर कौन मढ़ रहा कहो ? मुझे जिस्म मत कहो चुप रहो मैं भाव हूँ तुम जो हो सूर्य तो रश्मि हूँ प्रभाव हूँ !! मुझे सदा रति कहो ? लिखा है किस किताब में देह पे ही हो बहस कहा है किस जवाब में नारी  बस देह..? नहीं प्रचंड अग्निपुंज भी मान जो उसे  मिले हैं शीत-कुञ्ज भी ! चीर हरण मत करो मत हरो मान मीत भूलो मत कुरुक्षेत्र युद्ध एक प्रमाण मीत ! जननी हैं ,भगनी है, रमणी हैं नारियां - सुन्दर प्रकृति की सरजनी हैं नारियां  हैं शीतल मंद पवन,लावा  ये ही तो हैं धूप से बचाए जो वो  छावा यही तो हैं !

बूझ लिया और जान लिया पहचान लिया भी

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“ ब्लागर्षियों …!!” पहेली ...ओउर .....ओकर जबाव .. तो ठीक है हमहूँ कहे देत हैं कि हम तो उस भैये को खोजत हैं जिसने पहले-पहल यानि कि सबसे पहले मुर्गी और अंडा को मुर्गी और अंडा की संज्ञा दी है. जिसकी तर्ज़ पे "ब्रह्म की पहचान" करने वाले महर्षियों कि तरह "ब्लॉग-ऋषिगण " इस पहले का भेद जानने की कोशिश में लगे हैं...!! अब इस पहेली को को सुलझाने कि कोशिश के दौर में विजेता महारथियों को मेरी और मेरे अन्य ब्लॉग-मुनियों की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं पहुंचे जी !