12.7.21

एनसीईआरटी को भेजे गए प्रस्ताव

एनसीईआरटी द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रमों में परिवर्तन परिवर्तन एवं संवर्धन बाबत
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद द्वारा अपनी वेबसाइट पर अपेक्षित विषयांतर्गत बिंदुओं पर निम्नानुसार बिंदु नवीन पाठ्यक्रम में जोड़े जाने की जरूरत है विषय वार हम क्रमागत रूप से अनुरोध करते हैं कि कृपया समस्त बिंदुओं में हमारी इन सुझावों को यथोचित स्थान देने की कृपा कीजिए
नवीन शिक्षा नीति के तहत अथवा उसके पूर्व निम्नानुसार पाठ्यक्रम परिवर्धन परिवर्तन संवर्धन की अपेक्षा है
1 :- गणित
[  ] जब क्षेत्रीय भाषाओं का अध्ययन भी कराया जाना है ऐसी स्थिति में गणना प्रणाली में कम से कम पांचवी कक्षा तक संस्कृत की गणना प्रणाली को केवल इस उद्देश्य से शामिल किया जाना प्रस्तावित है ताकि विद्यार्थी को संस्कृत के शब्दों को सुनने समझने का अवसर प्राप्त हो ।
[  ] यथासंभव वैदिक गणित को भी स्थान देना प्रस्तावित है
2 : विज्ञान
[  ] सामान्यतः वर्तमान युग को वैज्ञानिक युग माना जाता है। परंतु तकनीकी का विकास भारत के संदर्भ में बहुत पहले हो चुका है। जैसे समय का अनुमापन करना वार्षिक कैलेंडर का निर्माण यह सब नक्षत्र विज्ञान पर आधारित होने के बावजूद बच्चों को इस बात का ज्ञान नहीं होता कि- भारत की नक्षत्र आधारित काल गणना प्रणाली कितनी वैज्ञानिक है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय नक्षत्र विज्ञान संबंधी तथ्यों को माध्यमिक शिक्षा स्टार्टअप के विद्यार्थियों को बता देना आवश्यक होगा ।
3 :- इतिहास
[  ] भारतीय इतिहास में रामायण महाभारत के कालानुक्रम को समाप्त कर दिया गया है। यह कोई धार्मिक व्यवस्था नहीं थी महाभारत और रामायण काल के पर्याप्त सबूत उपलब्ध है। इस संदर्भ में रामायण एवं महाभारत कालीन विवरणों को स्वीकृति देनी चाहिए।
[  ] भारत का इतिहास मौर्य काल से प्रारंभ नहीं होता है बल्कि उससे पहले रामायण के बाद महाभारत काल के उपरांत महाजनपदों का विवरण प्राचीन इतिहास के रूप में भारतीय आदि ग्रंथों में मौजूद है । इसलिए आवश्यक है कि भारतीय इतिहास को ईशा के 1500 वर्षों तक सीमित ना रखा जाए। पाठ्यक्रम में सिंधु घाटी सभ्यता तथा वैदिक कालीन सरस्वती नदी के विलुप्त होने के इपोक अर्थात समय बिंदु को जो 8000 वर्ष पूर्व का है को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए। इस संबंध में कई वैज्ञानिकों ने तथा इतिहासकारों ने बहुत बड़े-बड़े काम किए हैं इनमें एक नाम वेदवीर आर्य का भी है जिनकी किताबों क्रमशः the chronology of India from Manu To Mahabharata, एवम the chronology of India Mahabharat to mediaeval era में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर विस्तृत विश्लेषण है। इसके अलावा भी आईआईटी कानपुर एवं कुछ विदेशी विश्वविद्यालयों द्वारा प्राचीन भारतीय इतिहास के संबंध में शोध पत्र तैयार किए गए हैं का विवरण पाठ्यक्रमों में शामिल करना चाहिए।
[  ] वर्तमान में किसी को भी जैन एवं बुद्ध मतों के कालखंड के संबंध में कोई विशेष जानकारी नहीं है अतः इस पर नवीनतम शोध कार्यों को ध्यान में रखते हुए विस्तार से जानकारी प्राथमिक शिक्षा के उपरांत सम्मिलित की जा सकती है ऐसा हम प्रस्तावित करते हैं।
4:-भारतीय वैदिक समाज के संबंध में कोई भी विवरण भारत के विद्यार्थियों तक पहुंचाने का ना तो कोई प्रयास किया गया है और ना ही विवरण पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। इस विसंगति को दूर करना भी बहुत आवश्यक है।
[  ] इसके अतिरिक्त इस्लामिक ईसाई कंटेंट  को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन ने स्वीकारा है परंतु समकालीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था पर ना तो ऐतिहासिक कंटेंट उपलब्ध है और ना ही इसका कोई भी सही विवरण इतिहास में सम्मिलित नहीं है। अर्थात 4004 वर्ष पूर्व भारत की सभ्यता को 0 साबित करना सिद्ध होता है। जबकि सिंधु घाटी सभ्यता के अंत की स्थिति अर्थात लगभग 5000 तक के प्रमाण 2019 तक हरियाणा में मिल चुके हैं। सिंधु घाटी सभ्यता आज की से 5000 वर्ष पूर्व चरम पर थी जिसका उदाहरण धोलावीरा के नगर निर्माण अवशेषों से ज्ञात हुए हैं जबकि अभी मात्र 10 से 12% तक के अवशेष चिन्हित किए गए हैं।। अतः यह माना जा सकता है कि सिंधु घाटी सभ्यता वर्तमान समय से 5000 वर्ष समाप्त हुई है। परंतु किसका प्रारंभ निश्चित तौर पर 16000 वर्ष पूर्व हुआ था। इसके प्रमाण में उदाहरण स्वरूप आदरणीय विष्णु श्रीधर वाकणकर जी के कार्यों के माध्यम से समझा जा सकता है।
[  ] वर्तमान शिक्षा प्रणाली में केवल उत्तर भारतीय राज्य व्यवस्था तथा संस्कृति का विवरण दर्ज है वह भी विशेष रूप से मुगलकालीन। जबकि दक्षिण भारत के राज्यों का राजवंशों का उल्लेख या तो नहीं है और यदि है अभी तो संक्षिप्त रूप से। अतः संपूर्ण भारत के इतिहास के विवरण को पाठ्यक्रम में किसी न किसी रूप में शामिल किया जावे ऐसा हम प्रस्तावित करते हैं।
[  ] यहां भारतीय सामाजिक व्यवस्था धार्मिक ना होकर सर्वाधिक सेक्युलर है। दक्षिण भारत में शैव वैष्णव शाक्त, आदि आदि कई संप्रदाय प्रतिष्ठित थे। किंतु उनका समेकन अर्थात एकीकरण आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा किया गया। ऐसे विवरण भी शैक्षिक पाठ्यक्रम में ना होने से भारतीय विद्यार्थियों को ही भारत को समझने में भारी चूक हो रही है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र को अर्थशास्त्र जैसे विषय से बाहर रखा है । शून्य और दशमलव प्रणाली के संदर्भ में जिन भारतीय विद्वानों का योगदान रहा है उसके बारे में बच्चों को जानकारी ही नहीं है।
हमारे ऐतिहासिक व्यक्तित्व
भारत के ऐतिहासिक व्यक्तित्व से परिचित कराने के लिए 1977 के आसपास तक सहायक वाचन जैसी पुस्तकें विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से चला करती थी। जिसमें पंचतंत्र जातक कथाएं महापुरुषों की जीवनी या आदि कंटेंट शामिल हुआ करता था जो वर्तमान में पाठ्यक्रम से बाहर है। कृपया ऐसे विवरणों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की कृपा कीजिए।
6:- भाषा विकास
वर्तमान में भाषा विकास संबंधी कोई कंटेंट अर्थात पाठ्य सामग्री बच्चों को नहीं पढ़ाई जा रही है। संस्कृत विश्व की समस्त भाषाओं की जननी है यह तथ्य हम बहुत बाद में आकर समझे जबकि संस्कृत के बारे में हमें प्रारंभ से ही जानकारी होनी चाहिए थी। हमें संस्कृत को एक विषय के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल कर देना चाहिए। परंतु संस्कृत को किसी भी स्तर पर पर्याप्त संरक्षण प्राप्त नहीं हुआ है जो वापस प्रदान करना चाहिए।
[  ] भाषाओं के विकास के संबंध में भी कंटेंट पाठ्यक्रम में प्रस्तुत करना आवश्यक है।
[  ] प्राचीन इतिहास मौर्य वंश से प्रारंभ होकर वहीं कहीं समाप्त हो जाता है । जबकि मोहम्मद साहब के समकालीन राजा दाहिर का कहीं भी जिक्र नहीं है इतिहास से बाहर रखने का औचित्य क्या है यह हमारी समझ से परे है। अतः आपसे अनुरोध है कि राजा दाहिर के अतिरिक्त उसके पूर्व तथा पश्चात में विभिन्न विदेशी यात्रियों विशेष तौर पर चीनी यात्रियों एवं पर्शियन मुस्लिम विद्वान यात्रियों द्वारा लिखे गए विवरणों का पाठ्यक्रम में शामिल होना जरूरी है।
        मान्यवर उपरोक्त अनुसार प्रस्ताव सादर हमारी ओर से प्रस्तुत है
गिरीश बिल्लोरे मुकुल

11.7.21

जनसंख्या नियंत्रण ही नहीं जनसंख्या प्रबंधन की अवधारणा को अपनाना होगा

 

         मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में भारत की जनसंख्या 139 करोड़ होकर विश्व की जनसंख्या 17.58% पर आ चुकी है और यह वह समय है जब हम किन से मात्र कुछ लाख कम है  अर्थात जनसंख्या के मामले में अगर भारत और चीन की जनसंख्या मिला दी जाए तो विश्व की आबादी की एक दशक में 50% हिस्सेदारी आने में आसानी से पहुंच जाएगी। यह दोनों हितेश आने वाले दो-तीन दशक में अपने सारे संसाधन खो सकते हैं ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

          विश्व के कुछ प्रमुख राष्ट्रों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका जनसंख्या विश्व की जनसंख्या में 5% यूनाइटेड किंगडम  .0 8%, जर्मनी की जनसंख्या 1.07% फ्रांस 0.85% इटली 0.78% है। यह सारे देश लगभग भारत और चीन से अधिक जन सुविधा संपन्न देश हैं। यहां उन देशों का विवरण प्रस्तुत नहीं किया गया है जो खाड़ी के देश है वे आर्थिक रूप से बेहद समृद्ध होने के साथ-साथ जन सुविधा संपन्न है।

          भारत ने जनसंख्या को  जनशक्ति के रूप में स्वीकारा है। अतः भारत को भविष्य के 50 वर्षों की कार्य योजना तैयार करने की जरूरत है। विभिन्न रिपोर्ट के आधार पर हम कह सकते हैं कि भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर 1.2% से 1.3% के बीच रहेगी। और यह वार्षिक वृद्धि दर भारतीय जनसंख्या को भारत के नागरिकों की औसत उम्र 72 वर्ष की तुलना में अत्यधिक कही जा सकती है।

                                            जनसंख्या वृद्धि की दर



          यह सर्वोच्च सत्य है की भारत की जनसंख्या वृद्धि दर 2.5 % से कम होकर 1.8% के आसपास रह गई है। तो आप सोचते होंगे कि किन कारणों से जनसंख्या अधिनियम लाने चाहिए?

सवाल स्वाभाविक है। पर आपने आर्टिकल के प्रारम्भ को ध्यान से देखा कि- भारत और चीन अगले कुछ दशक में विश्व की जनसंख्या के 50 % हो जाएगी। और इन दौनों राष्ट्रों को 3 से 4 गुना अधिक संसाधनों की जरूरत होगी। फिर प्राकृतिक संसाधनों के उत्पादों के उपभोक्ताओं के लिए प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन में तेज़ी से प्राकृतिक अस्थिरता बढ़ेगी । जैसा प्राचीन इतिहास में दर्ज़ है।  

          अत: भारत की जनसंख्या जनशक्ति अवश्य है किंतु रोजगार एवं उत्पादकता में इस जनसंख्या की भागीदारी वर्तमान संदर्भ में एवं आगामी 50 वर्षों के लिए  चिंता  का विषय है।
          भारतीय जनशक्ति के लिए आर्थिक संसाधनों एवं उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों जैसे रहने के स्थान शुद्ध पानी उत्पादित खाद्य सामग्री और इसके अलावा राज्य की ओर से प्रदत्त शैक्षणिक विकास चिकित्सा एवं आंतरिक सुरक्षा संसाधनों को बढ़ती हुई जनसंख्या नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगी ऐसा मेरा मानना है।

          भारतीय संदर्भ में जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ जनसंख्या प्रबंधन के संदर्भ में भी फुलप्रूफ माइक्रो प्लानिंग की जरूरत है। वर्तमान में कोविड-19 टीकाकरण में अब तक कई देशों की जनसंख्या से दुगनी कई देशों की जनसंख्या के बराबर कई देशों की  जनसंख्या की तुलना में कई गुना अधिक वैक्सीनेशन दिए जा चुके हैं परंतु फिर भी हमारी उपलब्धि 50% तक नहीं पहुंच पाई है।

          राज्य की जिम्मेदारी है कि वह शिक्षा चिकित्सा और रक्षा मूल रूप से आवासी व्यवस्था के साथ राष्ट्र वासियों को ब्लड कराएं। परंतु यदि इस गति से जनसंख्या बढ़ेगी तो आने वाले 50 वर्षों में भारत की जनसंख्या ना केवल राजकीय संसाधनों का लाभ उठा सकेगी और ना ही प्राकृतिक संसाधनों का पर्याप्त रूप से रसास्वादन कर सकेगी।

          विश्व जनसंख्या दिवस पर प्रत्येक परिवार को व्यक्तिगत तौर पर बिना किसी लोभ लालच के जनसंख्या प्रबंधन को महत्व देना ही होगा। भारत सरकार एवं मध्य प्रदेश सहित कई राज्य सरकारों द्वारा जनसंख्या प्रबंधन की दिशा में कारगर कदम उठाए हैं परंतु यह व्यवस्था बेहद कारगर नहीं रहेगी अगर जनसंख्या वृद्धि ना रुके तो। हम पड़ोसी देश पाकिस्तान से तुलना करें तो उनकी जनसंख्या मात्र 22 या 23 करोड़ है। यद्यपि उसका जनशक्ति नियोजन और प्रबंधन बेहद घटिया स्तर का होने के कारण वहां स्वास्थ्य शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं नकारात्मक आंकड़े प्रदर्शित करती है। परंतु भारतीय प्रशासनिक एवं सामाजिक व्यवस्था करने वालों का हुनर काबिले तारीफ है कि उनके द्वारा इस देश को संभावित खतरे से बाहर निकाल लिया।

          भारतीय योजनाकारों ने एक  प्रभावशाली व्यवस्थापन कर संसाधनों की आम नागरिक तक पहुंच को वर्तमान परिस्थितियों में बरकरार रखा है यह कुशल प्रबंधकीय विशेषज्ञता का बिंदु है। परंतु सब दिन होत ना एक समाना के सिद्धांत को भी ध्यान में रखना होगा। 

 

9.7.21

वामन मेश्राम का भ्रम जाल : राहुल सांकृत्यायन का कमाल...!

     शुंग वंश का शासक पुष्यमित्र शुंग
              185 ईसा पूर्व मौर्य वंश के 
 ब्राह्मण सम्राट पुष्यमित्र शुंग महानायक थे न कि खलनायक

                                    गिरीश बिल्लोरे “मुकुल”

              185 ईसा पूर्व मौर्य वंश के शासक ब्रहदत्त की प्रशासनिक और कमजोर व्यवस्था बुद्धिस्ट निवृत्ति मार्ग के प्रति अतिशय मोह के कारण तथा ग्रीक राजा डेमोट्रीयस  के षड्यंत्र को ना रोकने की इच्छा के कारण सेनापति पुष्यमित्र शुंग द्वारा ब्रहदत्त की सरेआम हत्या की ना कि धोखे से मारा यह तथ्य डॉक्टर एच सी रायचौधरी ने शुंग डायनेस्टी पर स्पष्ट तौर पर विवरण लिखा है। राहुल सांस्कृत्यायन ने  कल्पना की कि हो सकता है पुष्यमित्र शुंग ही राम के तुल्य माना जाता  हो .  

इससे एक विद्वान बामसेफ के अध्यक्ष वामन मेश्राम ने तुरंत अपनी अभिव्यक्ति में पुष्यमित्र शुंग को अयोध्या का राजा बता दिया। और उन्होंने इसे गलत तरीके से जनता के बीच में प्रस्तुत किया। 5 मार्च 2019 को यूट्यूब पर अपलोड वीडियो में यह तथ्य स्पष्ट होता है बिना अध्ययन के वामन मेश्राम जी गलत तथ्य प्रस्तुत कर रहे हैं।

पुष्यमित्र शुंग के विरुद्ध जो भी इतिहास में दर्शाया गया है उस पर पुनर्विचार करना बहुत जरूरी है वरना वर्तमान समय में नव बौद्ध एवं कथित दलित चिंतक भारतीय सामाजिक संरचना को विघटित  करने में सर्वोपरि होंगे।

वर्तमान में आपको वामन मेश्राम के कुछ ऐसे वीडियो मिल जाएंगे जिसमें वे यह कहते सुने जाते हैं कि पुष्यमित्र शुंग एक क्रूर शासक था जिसने ब्राह्मण शासन की स्थापना के लिए नीची जाति के मौर्य वंश का समापन किया और पुष्यमित्र शुग ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से अयोध्या स्थानांतरित कर दी और उनकी तुलना मर्यादा पुरुषोत्तम राम से  कर दी है। यह पूरी तरह से काल्पनिक और वोल्गा के से गंगा तक के लेखक राहुल सांकृत्यायन की एक परिकल्पना है जो उन्होंने अपनी कृति के प्रभा कथानक में कुछ इस तरह वर्णित किया है .  (देखें प्रभा कथाक्रम 11 समय अवधि 50 ईसवी पेपरबैक संस्करण वोल्गा से गंगा तक पृष्ठ क्रमांक 161 पैराग्राफ दो)

    “इसमें तो कोई शक नहीं कि अश्वघोष में बाल्मीकि के मधुर काव्य का रसास्वादन किया। कोई ताज्जुब नहीं कि यदि बाल्मीकि शुंग वंश के आश्रित कवि रहे होजैसे कालिदास चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के और शुंगवंश की राजधानी की महिमा बढ़ाने के लिए उन्होंने  दशरथ की राजधानी वाराणसी से बदलकर साकेत या अयोध्या कर दी और राम के रूप में सम्राट पुष्यमित्र या अग्निमित्र की प्रशंसा की- वैसे ही जैसे कालिदास ने रघुवंश में रघु और कुमारसंभव के कुमार के नाम से पिता पुत्र चंद्रगुप्त विक्रमादित्य और कुमारगुप्त की।

एक जिम्मेदार लेखक जो गली गली भटका हो और जानकारियां एकत्र की है की कलम यह क्या लिख रही है समझ से परे है। वैसे तो यह एक कयास मात्र है लेकिन इस स्टेटमेंट से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि-" भारत के साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन ने ना तो भारतीय इतिहास के साथ ईमानदारी बरती और ना ही साहित्य के प्रति ईमानदार रहे हैं और उन्होंने एक ऐसा वक्तव्य जारी कर दिया जिस का दुरुपयोग वामन मेश्राम जैसे अध्ययन हीन अनाड़ी व्यक्ति ने करना प्रारंभ कर दिया इसकी पुष्टि आप यूट्यूब पर 5 मार्च 2019 को अपलोड किए गए वीडियो पर कर सकते हैं।

हर प्राचीन लिखा हुआ सत्य हो ऐसा कैसे हो सकता। बिना पुष्टि किए हुए जातियों का ध्रुवीकरण करने के उद्देश्य से वामन मेश्राम में एक त्रुटि पूर्ण वक्तव्य दिया है . ऐसा नहीं है कि यह वक्तव्य केवल एक बार दिया गया है उनके कई सारे ऐसे वीडियो हैं जिनमें उन्होंने यह भ्रामक जानकारी प्रसारित की है।ईसा के सौ पचासी वर्ष पूर्व यवन भारत पर आक्रमण करने के लिए आमादा थे जिसका प्रमुख कारण था मौर्य डायनेस्टी का कमजोर पड़ जाना।

बृहदत्त एक ऐसा अकर्मण्य शासक था जो सीमाओं की रक्षा करने में असफल रहा है। सेनापति पुष्यमित्र शुंग को तब एक जानकारी प्राप्त हुई थी कि-" बौद्ध मठों में यवन सैनिक भिक्खुओं के वेश में आकर निवास कर रहे हैं। और उनका उद्देश्य केवल और केवल भारत में ग्रीक शासन की स्थापना करना है। जब राजा से इस संदर्भ में पुष्यमित्र ने चर्चा की तब राजा का यह कथन था कि-" हम वक्त आने पर देखेंगे..!"

फिर भी पुष्यमित्र ने बौद्ध मठों की जांच परख शुरू कराई। उन्हें लगभग 300 यवन सैनिक हथियार सहित मठों में मौजूद मिले। बौद्ध साधु ने यह स्वीकारा कि जब उन्होंने उन्हें बुद्धिस्ट बन जाने का आश्वासन दिया था। इस बात से क्रुद्ध होकर पुष्यमित्र शुंग ने समूचे 300 यवन सैनिकों के सर कलम कर दिए और बुद्ध साधुओं को गिरफ्तार करके कह कर दिया। इस बात पर भी राजा बृहदत्त जिसे व्रहद्रथ भी कहा जाता है ने पुष्यमित्र को क्रोध में आकर राज भवन से बाहर जाने के लिए कह दिया। पुष्यमित्र  को यह अपमान  राष्ट्र की रक्षा के लिए सहना पड़ा ।

एक दिन सेनापति पुष्यमित्र और राजा के बीच में राजभवन से बाहर कहीं मुलाकात हुई और इस मुलाकात में कहासुनी भी हुई। इतिहासकार कहते हैं कि राजा को सबके सामने पुष्यमित्र ने तलवार से चीर दिया। स्वयं को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करते हुए पुष्यमित्र ने सत्ता पर अपना अधिकार उद्घोषक किया। इतिहासकार कहते हैं कि- ग्रीक योद्धा डोमेट्रियन अपनी बड़ी सेना लेकर भारत पर आक्रमण करना चाहता था । पुष्यमित्र शुंग ने डोमेट्रियन और उसकी सेना को जो अब ज्यादा उत्साह से सिंधु नदी के तट तैयार थी पर हमला बोलकर वापस भगा दिया गया।

फिर पुष्यमित्र ने अपनी राजधानी वर्तमान मध्यप्रदेश के विदिशा में स्थापित कर दी जिसे एक तत्सम कालीन भेलसा नगरी के रूप में जाना जाता है।

पुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया ये यज्ञ पाणिनी के शिष्य महर्षि पतंजलि ने संपादित कराए। और यज्ञ के दौरान एक युद्ध में पंजाब में राज्य करने वाले इंडो ग्रीक राजा मिलैण्डर या मिलान्दर का भी अंत हुआ।

भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पुष्यमित्र ने तत्सम कालीन भ्रमित बौद्ध साधुओं को जेल में रखा। और उन मठों को नेस्तनाबूद किया जहां यवन सैनिकों का नियमित आना-जाना रहा है तथा राष्ट्रद्रोह की योजना को मूर्त स्वरूप दिए जाने की कोशिश होती रही है। 

यह सत्य है कि अपने 36 वर्षीय शासनकाल में पुष्यमित्र के पास इतनी शक्ति थी कि वह भारत भूमि से बुद्धिस्ट का समापन कर देता परंतु सांची के स्तूप इस बात की गवाही देते हैं कि उन स्तूपों में सुरक्षा की दृष्टि से स्तूप के इर्द-गर्द चट्टानों की बाउंड्री बनाई गई और यह बाउंड्री शुंग वंश के काल में ही बनी है।

शुंग-वंश के कार्यकाल में की सामाजिक व्यवस्था
शुंग वंश के काल में कर्म वाद के सिद्धांत को बढ़ावा मिला। निवृत्ति और निर्वाण के सिद्धांत के स्थान पर सनातनी पुरुषार्थ की अवधारणा प्रबल हुई। मनु स्मृति का लिपिबद्ध करण इसी युग में करने की स्थिति का वर्णन ग्रंथों एवं लब्ध जानकारियों में मिलता है।

आप सब जानते हैं के पुष्यमित्र शुंग के पुत्र क्रमष: अग्निमित्र, एवं देवभूति के उपरांत शुंग वंश का अंत हुआ। शुंग वंश ने केवल उन्हीं राजाओं को अपने अधीन किया या उन्हें सत्ता से अलग कर दिया जो ऐसे बुद्धिस्ट राजा थे जिन्हें जनता और विकास की बातें ना तो समझ में आती थी और ना ही वे बुद्ध धर्म के अत्यधिक प्रभाव में आकर प्रशासनिक कल्याणकारी कार्यों को निष्पादित नहीं कर पा रहे थे।

पुष्यमित्र शुंग द्वारा वृहद्रथ या बृहदत्त की हत्या करना तथा पाटिलीपुत्र पर अपना राज्य स्थापित कर देना किसी तरह की जातिगत समीकरण का आधार नहीं है।

वह ब्राह्मण था लेकिन वह सेनापति होने के नाते क्षत्रिय था। वामन मेश्राम विश्व अमन करते हुए भोली भाली जनता को यह समझाते हैं के पुष्यमित्र ब्राह्मण था और उसे मौर्य वंश पसंद नहीं था इसलिए उसने एक बौद्ध भिक्षु का सिर लाओ 100 स्वर्ण मुद्राएं पाओ जैसे आदेश जारी किए थे। अब वर्तमान परिस्थिति में आप ही निर्णय लेने की राष्ट्रद्रोह की सजा क्या होनी चाहिए..?

वामन मेश्राम जैसे वक्ताओं को विचार अभिव्यक्ति करने के पूर्व 370  ईस्वी से 515 तक के इतिहास का अध्ययन कर लेना चाहिए, ताकि वे समझ सकें कि-“हूणों का चर्चित राजाधिराज तोरमाण (जिसने वैष्णव सम्प्रदाय को अपनाया) के पुत्र क्रूर पुत्र राजा मिहिरकुल की जानकारी हासिल हो सके जिसने खुले तौर पर बौद्धों का अंत करने का संकल्प लिया था.

यद्यपि इतिहास को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करने वालों की कलई अब हम जैसे इतिहास के अकिंचन पाठक भी करने लगें हैं. इस आलेख का आलेखन आम भारतीयों को “भारत को भारतीय नज़रिए से देखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है न कि रोमिला थापर, इरफान हबीव जैसे इतिहासकारों के ऐनक से ...!”


    

  

 

    

4.7.21

Understanding Swami Vivekananda

दुनिया में जो भी कुछ घटता है वह सब उन महापुरुषों के संदेशों से व्यवस्थित हो सकता है जो का यही संदेश है। स्वामी विवेकानंद को याद करना आज.. 
    अभी लेकिन उनकी स्मृतियां इतनी मीठी कि किसी को बांटने में मुझे उस बच्चे की तरह असहजता हो रही थी जैसे किसी बच्चे को अपनी सबसे प्रिय वस्तु बांटने के लिए कहा जाए। परंतु" हर दिन नया दिन है हर रात नई रात..!"- का अनुसरण करते हुए लगा कि कुछ लिख दिया जाए कुछ बांट दिया जाए। आज मैं बच्चों से बात करना चाहता हूं बच्चों से बात करने का उद्देश्य यह है कि वह जाने भारत विश्व में इतना चर्चित राष्ट्र क्यों है। बच्चों भारतीय दर्शन एक ऐसा जीवन प्रदर्शन है.. जिसे विश्व के दर्शन यानी फिलासफी की नीव कहा जा सकता है। मैंने बचपन में एक कवि की कविता सुनी थी जिसने उन्होंने कहा था कि- आज दुनिया में जो भी कुछ है इसकी फाउंडेशन में भारतीय फिलासफी है।
    विवेकानंद जी के बारे में आप कितना जानते हैं मुझे नहीं मालूम। स्वामी विवेकानंद जी सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुए जब उन्होंने शिकागो में अपना भाषण दिया। उन्होंने भारतीय सनातन धर्म पर अपनी टिप्पणी अपने भाषण में बहुत सतर्कता एवं आत्मविश्वास के साथ प्रस्तुत की थी। आज मैं आपको सलाह दूंगा कि एक बार अनिवार्य रूप से विवेकानंद के उस भाषण को गूगल से सर्च करके अवश्य पढ़ें। बच्चों शायद आप जानते होंगे कि भारत अपनी संस्कृति का विकास ईशा के 3500 वर्ष पूर्व हुआ आपके पापा मम्मी भी यही जानते हैं। परंतु नवीनतम खोजों ने स्पष्ट कर दिया है कि यह एक भ्रम है जो चलाया गया है। भारतीय समाज का विकास आज से लगभग 20000 वर्ष पूर्व हुआ है। इसके वैज्ञानिक और तथ्यात्मक साक्ष्यों  scientific and factual evidence के आधार पर यह कहा जा सकता है। मेरे सहित बहुत से लोगों ने इस पर रिसर्च कर लिया है।
    बच्चों भारतीय धर्म सनातन धर्म कहलाता है। जिसके मूल आधार में विश्व बंधुत्व यानी विश्व के प्रत्येक व्यक्ति में आपसी भाईचारे का मौलिक सिद्धांत उल्लेखित है। स्वामी विवेकानंद ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे जिन्होंने सामाजिक विषमताओं और आर्थिक विषमताओं पर भी चिंतन किया। उनका मत था कि वेद वाक्य जिसमें यह कहा गया है कि सर्वे जना सुखिनो भवंतु को वास्तविक रूप में समाज में दिखना चाहिए। इसके लिए वे अमेरिका में नहीं रुके बल्कि भारत आकर संपूर्ण भारत की यात्रा की और लोगों को जागृत किया। उनका यह मानना था कि चाहे दुनिया कितनी भी वितरित हो जाए सत्य का साथ कभी नहीं छोड़ना है। आपको उनके जन्म और मृत्यु का विवरण नीचे प्रस्तुत कर रहा हूं जन्म की तारीख और समय: 12 जनवरी 1863, कोलकातामृत्यु की जगह और तारीख: 4 जुलाई 1902, बेलुर मठ, हावड़ा अब देखिए 1863 से 1902 तक कुल 39 वर्ष का जीवनकाल और महान उपलब्धियां है ना अद्भुत बात...! 
  स्वामी विवेकानंद के जन्म से सन 2063 में उनकी हमारे बीच अनुपस्थिति के 200 वर्ष लगभग पूर्ण हो जाएंगे और तब भी उनके प्रतिपादित सिद्धांत के साथ-साथ शिक्षाएं अकाट्य रहेगी। स्वामी विवेकानंद के जीवन दर्शन को आगे ले जाना आपकी जिम्मेदारी है। जिस तरह अमेरिकन अपने राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन को भुला नहीं पाती उसी तरह भारत में बहुत सारे आईकॉनिक व्यक्तित्व हुए हैं जिन्हें भूल जाना भारत की दुर्दशा को आमंत्रित करने के बराबर होगा। मुझे मालूम है कि यह आर्टिकल बहुत लंबा होने से आपको पढ़ने में तकलीफ होगी। परंतु आज आपको पढ़ना होगा विवेकानंद योगी होने के बाद लोगों के बीच गए जबकि वे अपने व्यक्तिगत एक के लिए हिमालय की ओर नहीं गए। उनकी चिंता थी कि भारत का अगर कोई भी बच्चा भूखा रहता है तो उन्हें चैन से रहने की आवश्यकता नहीं है। वह शिक्षा चरित्र निर्माण और राष्ट्रप्रेम को सर्वोच्च धर्म मानते थे। भारत को अगर आप आज अच्छा देखना चाहते हैं तो आप गलत हैं आपको यह ध्यान रखना होगा कि भारत भविष्य में भी अच्छा रहे आज को हम बेहतर बनाएं कल को बेहतर बनाने में कोई कठिनाई नहीं होगी। स्वामी विवेकानंद ने ना केवल अपने दौर को बेहतर बनाने की कोशिश की बल्कि कुछ ऐसा कर दिया जिसके कारण आज आप स्वतंत्र भारत के मुस्कुराते हुए बच्चे बने हो। अभी आर्थिक विषमता आए हैं सामाजिक मुद्दे हैं जिनके कारण हम कभी कभी या अक्सर चिंतित और दुखी रहते हैं। स्वच्छता सद्भावना सामाजिक ऊंच-नीच का भेद और निजी स्वार्थ इन बिंदुओं पर वेदांत के सिद्धांतों पर सरल विश्लेषण करने वाले स्वामी विवेकानंद के दर्शन यानी फिलासफी को समझना जरूरी है। रोटी कपड़ा मकान जरूरी है तो सामाजिक विकास के लिए समतामूलक दर्शन यानी फिलासफी की जरूरत है। बच्चों सच कहूं वेदों में कहीं भी जाति प्रथा मेरे पढ़ने में नहीं आती है। जब फाह्यान और व्हेनसांग भारत आए थे तो उन्होंने कहा था कि भारत इसलिए महान है क्योंकि यहां समतामूलक समाज है सोचिए पांचवी छठवीं शताब्दी में आने वाले इन यात्रियों ने भारत के बारे में साफ-साफ लिखा था और वह भी वापस चीन जाकर। अर्थात उन पर कोई मानसिक दबाव नहीं था। इससे यह तो प्रमाणित हो जाता है कि भारत विश्व बंधुत्व और समता मूलक समाज के रास्ते पर चलता है। आप जब स्कूल जाते हैं तो क्या आप जाति बिरादरी और संप्रदाय को देखते हैं नहीं देखते ना तो बस यही है भारत के सनातन दर्शन का आधार। अंग्रेजों ने इस बात को ठीक उसी तरह समाज में फैलाने की कोशिश की जैसा वह करते हैं। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल  ने भारत के नागरिकों से बहुत नकारात्मक व्यवहार किया था। वे भारतीयों को दूसरे दर्जे का विश्व नागरिक समझते थे। विंस्टन चर्चिल सबसे बड़े नस्लवादी व्यक्ति थे यह अलग बात है कि उन्होंने हिटलर की तरह यहूदियों पर जैसा अत्याचार किया जाता है वैसा नहीं किया परंतु विचारों से वह व्यक्ति मेरे अध्ययन के अनुसार बहुत क्रूर था। जबकि स्वामी विवेकानंद का दर्शन पढ़ने समझने के बाद आप बच्चे भविष्य में ना तो हिटलर को स्वीकारेंगे और ना ही चर्चिल को। एक और बात स्वामी विवेकानंद के बारे में बताता हूं उनका मानना था सत्य पर अडिग रहना इसी सत्य को पकड़कर चलना चाहे समाज से आप किसी भी तरह की असहमतियाँ झेलते रहे परंतु सत्य के लिए सहते रहना झेलते रहना। महामना स्वामी विवेकानंद को शत शत नमन।

3.7.21

The Virgin River Narmada


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*Scientific and Geological facts about Narmada*
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*Narmada is the virgin river because she never cross her limit and limitations. According to pauranik text and description Narmada was only the river we called brahmacharini*

नर्मदा अति प्राचीन नदी है इसका निर्माण हिमालय के निर्माण से भी पहले हुआ है। आप सभी जानते हैं कि लगभग 4.50 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी नामक ग्रह का निर्माण हुआ वास्तव में सूर्य की हलचल से निकला हुआ आग का लावा जिसमें गैस और तरल खनिज मौजूद थे साथ ही अंतरिक्ष में गतिमान भौतिक वस्तुएं पृथ्वी के कक्ष में स्थापित हो गई। और पृथ्वी अपनी कक्षा में गर्म लावा बॉल की तरह है अपनी अक्ष पर घूमने वाली गति के कारण गुरुत्वाकर्षण बल पैदा करती है। यह प्रक्रिया लगभग 10000000 साल तक चलती है। पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी होती है किंतु अचानक एक पिंड पृथ्वी से टकरा जाता है जिससे चंद्रमा का उदय भी होता है। पृथ्वी के अंदर का लावा उसके टकराने से बहुत ऊंचाई तक जाता है और एक निश्चित दूरी पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में बंध जाता है। जो पिंड पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में अथवा किसी भी ग्रह के गुरुत्वाकर्षण में बंध जाए तो वह अपनी कक्षा स्थापित कर लेता है। तथा उसके चक्कर लगाने लगता है।
  सुधि जनो इस घटना के लाखों साल बाद पृथ्वी की ऊपरी परत यानी प्लेट्स में परिवर्तन होता है। और यह प्लेट एक दूसरे से टकराती है जब भारत के दक्षिणी हिस्से में यह टकराव होता है तो हिमालय का निर्माण होता है साथ ही साथ निचले भाग में सिलवट पड़ती है ऐसी ही सिलवट नर्मदा और ताप्ती सहित दक्षिण भारत की के निर्माण का कारण बनी है। नर्मदा के संदर्भ में कहा जाए तो अमरकंटक से खंभात की खाड़ी तक जो सलवट बनी नर्मदा है नर्मदा की विशेषता यह है कि नर्मदा अपनी सीमाएं नहीं तोड़ती। जो अपनी सीमा नहीं छोड़ता वह ब्रम्हचर्य का पालन करता है वैज्ञानिक कारण यही है उसे चिर कुमारी मानने का । 
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

महायोगी हनुमान जी ही रामदुलारे क्यों..? : नमःशिवाय अरजरिया

एक सामान्य नाम की तरह 'रामदुलारे' आम जनों के लिए एक नाम की प्रतीति कराता है। लेकिन भाव जगत के लोगों या जो शब्द में भी ब्रह्म खोजते हैं, के लिए यह नाम बड़ा अनूठा है। ईश्वर की महकती अनुकंपा या प्रीति प्राप्त करने का पर्याय है यह नाम। रामदुलारे का शाब्दिक अर्थ है जो राम का दुलारा अर्थात प्रिय हो। अधिकांश साधक भी भगवतप्रेमी या रामप्रेमी होते हैं अर्थात राम को स्नेह करते हैं, परंतु रामदुलारे की अभिव्यक्ति को तो स्वयं श्रीराम स्नेह करते हैं। राम के चरित्र के अद्भुत चितेरे गोस्वामी तुलसीदास की लेखनी में त्रुटि से भी कोई शब्द निरर्थक नहीं आता। वह प्रियता की श्रेणी के आधार पर मानस में शब्दों का विन्यास बिखेरते है। किसी स्थान पर 'प्रिय' तो किसी स्थान पर 'अतिप्रिय' तो कहीं 'अतिशय प्रिय' एवं अन्यत्र 'प्राणप्रिय' शब्दों का प्रयोग करते हैं। उत्तर कांड के 32 में दोहे के पूर्व वह 'रामदुलारे' हनुमान जी के लिए 'परमप्रिय' विशेषण का प्रयोग करते हैं।
लक्ष्मणजी के लिए-
'लक्ष्मण धाम राम प्रिय'
अयोध्या वासियों के लिए-
अति प्रिय मोह यहां के वासी।
वानरों के लिए-
ताते मोहि तुम 'अतिप्रिय' लागे
भरत के लिए-
भरत 'प्राणप्रिय' पुन लघु भ्राता।
विभीषण के लिए-
सुन लंकेश सकल गुन तोरे।
तातें तुम 'अतिशय प्रिय' मोरे।।
जानकी जी के लिये-
जनक सुता जग जननी जानकी
'अतिशय प्रिय' करुनानिधान की।।
हनुमान जी के लिये-
भ्रातन्ह सहित राम एक बारा।
 संग 'परमप्रिय' पवन कुमारा।। 
आखिर क्या कारण रहा होगा कि परिजनों के लिए मानस मर्मज्ञ प्रिय एवं प्राणप्रिय विशेषणों का प्रयोग करते है जबकि विभीषण जैसे मित्र के लिए अतिशय प्रिय विशेषण का प्रयोग करते हैं। इनसे भी अधिक हनुमान जी जैसे परिकरों के लिए 'परमप्रिय' विशेषण का प्रयोग मानसकार ने किया है। हनुमानजी के उद्दात्त चरित्र के संबंध में मुझ जैसे अल्पमति व्यक्ति जिसमें लेखन का एक भी गुण नहीं है, परम प्रिय विशेषण के प्रयोग हेतु यह कारण उचित जान पड़ा कि हनुमान जी ने सर्व भावों से अपने आराध्य जगदीश्वर श्रीराम का भजन किया। उत्तरकांड में मानसकार इसका समाधान भी प्रस्तुत करते हैं-
"पुरुष नपुंसक नारि वा, जीव चराचर कोई।
 सर्व भाव भज कपट तजि, मोहि परम प्रिय सोई।।
अर्थात स्त्री, पुरुष, नपुंसक या कोई भी चर जीव या यहाँ तक कि अचर पदार्थ भी यदि संपूर्ण भाव से भगवान का जाप या स्मरण सतत रूप से करता है तो वह भगवान का परम प्रिय  बन जाता है। ऐसा श्री रामचंद्र स्वयं अपने भ्राताओं से कह रहे हैं। हनुमान जी जैसा नाम स्मरण करने वाला जीव चर या अचर संसार में कोई दूसरा नहीं हुआ। वेद, पुराण एवं आगम से लेकर जैन एवं बौद्ध साहित्य में भी ऐसा दूसरा उदाहरण नहीं मिलता है। मानसकार तुलसी लिखते भी हैं-
"सुमरि पवनसुत पावन नामू।
अपने वश कर राखे रामू।। 
वनवास काल में जब श्रीराम महर्षि वाल्मीकि से अपने निवास स्थान के बारे में जानना चाहते हैं तो महर्षि भी कहते हैं कि आप ऐसे व्यक्तियों के हृदय में निवास करें जो काम,क्रोध,मोह,मान,मद,लोभ एवं क्षोभ जैसे मानसिक विकारों से परे हो। जिनके हृदय में कपट, दंभ एवं माया नहीं बसती है। है रघुनाथ तुम ऐसे जीवो के हृदय में निवास करो।
"काम,क्रोध,मद, मान ना मोहा।
लोभ न क्षोभ न राग न द्रोहा।।
जिनके कपट दंभ नहि माया।
तिनके हृदय वसहु रघुराया।।"
हनुमान जी के पास ना तो माया है और ना ही क्रोध। क्रोध यदि है भी तो राम काज को पूर्ण करने के लिए। माया वानरों की ओर देखती भी नहीं है। नारद जब वानर का स्वरूप धारण कर विश्व मोहिनी के स्वयंवर में गए तो माया रूपी विश्व मोहिनी ने नारद की ओर देखा भी नहीं। हनुमानजी आजीवन ब्रह्मचारी हैं। काम उन से कोसों दूर है। उनके हृदय में तो राम है। कहा गया है- 'जहां राम तंह काम नहि'। हनुमान जी के तो हृदय में काम के रिपु राम धनुर्वाण धारण किए बैठे हैं। हनुमान जी सदैव लघु या अतिलघु रूप में रहते हैं अतः दंभ या अहंकार का प्रश्न ही नहीं है। इसी प्रकार हनुमान जी कपट राग एवं द्वेष से भी पूर्णत: विरत है। अतः वह राम दुलारे है।
महर्षि वाल्मीकि जी यह भी कहते हैं कि, हे रघुनाथ जो आपको ही माता, पिता, गुरु, सखा एवं स्वामी सभी भावों से स्मरण करें, उसके मन मंदिर में आप जानकी जी और लखनलाल के साथ निवास करें। यदि हनुमत चरित्र का विहंगावलोकन करें तो उन्होंने श्री राम को प्रथम परिचय में ही 'स्वामी' कहकर संबोधित किया। उन्होंने सखा मानकर ही श्रीराम एवं सुग्रीव की मित्रता कराई। भगवान श्रीराम ने उन्हें स्वयं 'सुत' नाम से संबोधित किया। अर्थात श्रीराम उनके लिए पिता सदृश्य हैं। इसी प्रकार हनुमान जी ने श्रीराम से प्रथम मुलाकात में ही माता की बुद्धि का आरोपण कर अपने पोषण की अपेक्षा की। यही नहीं आंजनेय ने श्रीराम जी को गुरु मानकर उनसे भजन का उपाय पूछा और श्रीराम ने अनंतर में गुरु की भूमिका का निर्वाह करते हुए उन्हें अनन्यता का उपदेश दिया। मानस में यह सभी भाव है-
"स्वामि सखा पितु मातु गुरु, जिनके सब तुम तात।
 मन मंदिर तिनके वसहु, सीय सहित दोउ भ्रात।।"
कठिन भूरि कोमल पद गामी।
कवन हेतु विचरहु वन स्वामी।।
सुनु सुत तोहि उरिन में नाहीं।
देखउँ करि विचार मन माहीं।
सेवक, सुत, पति, मातु भरोसे।
रहइ असोच बनइ प्रभु पोसे।।
तापर में रघुवीर दोहाई।
जानउँ नहिं कछु भजन उपाई।।
"सो अनन्य जाके असि, मति न टरइ हनुमंत।
मैं सेवक सचराचर, रूप स्वामी भगवंत।।"
हनुमान जी के राम दुलारे बनने का एक कारण यह भी था कि उन्होंने समस्त प्रकार की ममताओं का त्याग कर अपनी ममता राघवेंद्र के श्री चरणों से बांध ली थी। सुंदरकांड में जगदीश्वर श्रीराम स्वयं विभीषण से कहते हैं कि ममतायें दश हैं और जो भी व्यक्ति समस्त दशों प्रकार की ममताओं को एकत्रित कर मेरे चरणों से ममता की रस्सी को बांध देता है, ऐसा संत पुरुष सदैव मेरे हृदय में रहता है।
"जननी जनक बंधु सुत दारा।
तन धन भवन सुहद परिवारा।।
सबके ममता ताग बटोरी।
मम पद मनहिं बाँध बरि डोरी।।"
संसार में विरले लोग ही होते हैं जो इन दश ममताओं में से किसी एक को छोड़ पाते हैं। भरत जी ने मां की ममता छोड़ी, पिता की ममता का त्याग लक्ष्मण जी ने किया, भाई की ममता का त्याग विभीषण ने किया, सुत की ममता महाराज मनु ने त्यागी, रामजी के लिए पत्नी(सती) का त्याग योगेश्वर शिव ने किया। भगवान राम के लिए तन का त्याग महाराज दशरथ जी ने किया, श्री राम के लिए धन का त्याग श्रृंगवेरपुर के राजा गुह ने किया, भवन अयोध्यावासियों ने त्यागा, सुग्रीम ने सुहदों को छोड़कर श्री राम को मित्र बनाया तथा मुनिजनों एवं संतों ने श्रीराम के लिए अपना परिवार त्याग दिया। इस प्रकार अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग ममता का त्याग किया। धन्य है, महावीर हनुमान जिन्होंने दशों की दशों ममताएं अपने आराध्य कौशलाधीश के लिए त्याग दी, या यूं कहें कि उन्हें ये दशों ममताएँ बांध ही न सकीं।
 मेरे एक बौद्धिक मित्र ने कहा कि हनुमानजी ज्ञानियों में अग्रणी है तथा बुद्धि में वरेण्य है। इसीलिए वह रामदुलारे हैं। क्योंकि प्रत्येक राजा अपने साथ ज्ञानी एवं बुद्धिमान सचिव या सेनापति रखना चाहता है। प्रथमत: तो मुझे उनकी बात सही लगी।सामान्य राजे-महाराजे के लिए यह तर्क उचित भी है। परंतु श्रीराम तो चराचर जगत के स्वामी अर्थात जगदीश्वर है। उनके तो भृकुटी विलास मात्र से सृष्टि में कंपन होने लगता है। ऐसी दशा में लगा कारण कुछ पृथक है। आचार्य रजनीश कहते हैं कि माने गए संबंध, मित्रता तथा गुरु आदि के संबंध नाभि से जुड़े होते हैं । यह संबंध हृदय के संबंधों से प्रबल होते हैं। भगवान श्री राम के लक्ष्मण, भरत एवं जानकी आदि के संबंध हृदय के थे। परंतु विभीषण एवं हनुमान से संबंध नाभि या मणिपुर चक्र से जनित थे। मुझे ओशो का तर्क उचित लगा। वस्तुतः हम भले ही मनुष्य के शरीर में मस्तिष्क को सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग माने, परंतु यह नाभि या नाभि जनित ऊर्जा पर ही आधारित होता है। बिलकुल वैसे ही जैसे कि भवन में शिखर के स्थान पर नींव या वृक्ष में पुष्प के स्थान पर जड़ महत्वपूर्ण होती है। वही व्यक्ति अधिक स्वस्थ माना जाता है जिसकी श्वांस-प्रश्वांस गहरी हो अर्थात नाभि तक आती जाती हो।
नाभि स्थान को यौगिक परंपरा में मणिपुर चक्र कहते हैं वस्तुतः यह मां(शक्ति) का धाम या निवास होता है। जन्म के समय जननी से इसी से हमारा संबंध रहता है। यदि जननी उत्कृष्ट साधिका है, तथा उसके चक्र जागृत है तो उसका जनन भी उत्कृष्ट होगा। हनुमान जी महाराज की माँ अंजना पूर्व जन्म में वायुदेव की अप्सरा पत्नी के साथ शिव की परम भक्त थीं। अतः आंजनेय में जन्मन: भक्ति योग का प्रकट होना स्वभाविक ही था। यदि जन्मना मणिपुर चक्र जागृत नहीं है तो साधना,तप या योग से उसे जागृत किया जा सकता है। आंजनेय की जैविक माता से इतर पालक, पोषक एवं संरक्षक माता जनकनंदिनी जानकी थी। जानकीदुलारे महावीर ने अपनी भक्ति, ज्ञान एवं कर्म से जनकनंदिनी के वरदपुत्र का दर्जा प्राप्त कर अष्टसिद्धियां एवं नवनिधियों के अधिष्ठान होने का वरदान प्राप्त किया। माता जानकी ने हीं उन्हें 'रामदुलारे' होने का आशीर्वाद दिया। यही कारण है कि हनुमान जी राम दुलारे है।
"अजर अमर गुणनिधि सुत होहू। करहु बहुत रघुनायक छोहू।।"
!ॐ नमः शिवाय!
नमःशिवाय अरजरिया
संयुक्त कलेक्टर जबलपुर।

2.7.21

भारतीय इतिहास सुधार हेतु एनसीईआरटी सुझाव मांगे15 जुलाई तक अंतिम तिथि सुनिश्चित की

*राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद यानी एनसीईआरटी द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित कार्य की अपेक्षा की गई है। भारतीय इतिहास के गलत प्रस्तुतीकरण पर यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन द्वारा भी कुछ सिलेबस परिवर्तित किए जा रहे हैं। वर्तमान में 30 जून 2021 तक भारतीय इतिहास के पाठ्यक्रम में बहुत विवरणों को शामिल करना था। किंतु जनता की विशेष मांग के आधार पर एनसीईआरटी ने इसकी तिथि बढ़ाकर 15 जुलाई कर दी गई है। जबलपुर से या महाकौशल क्षेत्र से दो महान व्यक्तित्व को इतिहास अजीत महतो नहीं मिला है। आप सब से अनुरोध है कि कृपया महारानी दुर्गावती एवं रानी अवंती बाई के इतिहास से संबंधित विवरण सटीक तथ्यों एवं जानकारी के आधार पर  आर्टिकल अवश्य भेजें। महाकौशल क्षेत्र से महारानी लक्ष्मी बाई एवं महारानी अवंती बाई का इतिहास एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हो सके। इस आर्टिकल को काल्पनिक रूप से नहीं लिखना है।*
एनसीईआरटी का ईमेल आईडी गूगल में सर्च किया जा सकता है। इतना व्यापक चिंतन आज तक एनसीईआरटी ने कभी भी प्रस्तुत नहीं किया। आपसे अनुरोध है कि ऐसे ही भारतीय भौगोलिक परिस्थिति परिवर्तन के मुद्दे पर नर्मदा घाटी के निर्माण और उसके इतिहास पर भी वैज्ञानिक आधार पर आर्टिकल लिखे जा सकते हैं।
एनसीईआरटी का वेबसाइट लिंक 
https://ncert.nic.in/index.php?ln=
सादर 
गिरीश बिल्लोरे

24.6.21

अवतरित हुई माँ दुर्गा , दुर्गावती के रूप में : आनंद राणा


"मृत्यु तो सभी को आती है अधार सिंह,परंतु इतिहास उन्हें ही याद रखता है जो स्वाभिमान के साथ जिये और मरे"...वीरांगना गोंडवाने की महारानी दुर्गावती 🙏 (आत्मोत्सर्ग के समय अपने सेनापति से कहा) 🙏  बलिदान दिवस पर शत् शत् नमन है..नई दुनिया समाचार पत्र द्वारा इसे विस्तार से प्रकाशित किया है 🙏 जो कुछ लिखा वो सब वीरांगना के आशीर्वाद से 🙏बलिदान दिवस पर शत् शत् नमन है 🙏 🙏 आपने बहुत पढ़ा होगा रजिया बेगम को, नूरजहाँ को, आस्ट्रिया की मारिया थेरेसा को, इंग्लैंड की एलिजाबेथ प्रथम को, रुस की कैथरीन द्वितीय को.. थोड़ा आज वीरांगना रानी दुर्गावती को पढ़िए तो दावा है कि आप वीरांगना दुर्गावती को इन सबसे ऊपर पायेंगे 🙏🙏🙏 💐 💐चंदेलों की बेटी थी,गोंडवाने की रानी थी..चण्डी थी रणचण्डी थी, वह दुर्गावती भवानी थी"- "शौर्य +स्वाभिमान +स्वतंत्रता और प्रबंधन की देवी - गोंडवाना साम्राज्य की साम्राज्ञी वीरांगना रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर शत् शत् नमन है" 🙏 🙏वीरांगना रानी दुर्गावती का शासन महान् गोंडवाना साम्राज्य का स्वर्ण युग था 🙏अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय जी के निर्देशन में +अनुसंधान दल के अध्यक्ष रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के यशस्वी कुलपति प्रो कपिल देव मिश्र जी +क्षेत्रीय संगठन मंत्री मध्य क्षेत्र डॉ. हर्षवर्धन सिंह तोमर जी +प्रो. अलकेश चतुर्वेदी जी शा. महाकोशल महाविद्यालय  एवं कार्यकारी अध्यक्ष श्री नीरज कालिया के मार्गदर्शन में इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत के झरोखे से वीरांगना रानी दुर्गावती के गौरवमयी इतिहास की संक्षिप्त गाथा (चित्र क्र. 3  वीरांगना के सेनापति अधार सिंह (सिंहा) के वंशज महान् चित्रकार राममनोहर सिंहा जी का है जो वीरांगना रानी दुर्गावती के शस्त्र पूजन का है जब वो अकबर विरुद्ध समर में जा रही थीं.. ये चित्र उनके वंशज डॉ अनुपम सिंहा ने मुझे प्रेषित किया था 🙏 एतदर्थ अनंत कोटि आभार) - वीरांगना दुर्गावती का 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर दुर्ग में राजा कीरतसिंह के यहाँ अवतरण हुआ था ..युवावस्था में ही राजनीति, कूटनीति और युद्ध नीति का ज्ञान प्राप्त हुआ..कालिंजर के प्रबंधन में सहयोग साथ पिता के साथ मिलकर दुर्ग के रक्षार्थ 4 युद्ध लड़े, और विजयश्री प्राप्त हुई..मुगल शासक हुमायूँ को सन् 1539 शेरशाह ने भारत से खदेड़ा.. शेरशाह ने साम्राज्यवादी नीति के अंतर्गत भारत में विस्तार आरंभ किया वहीं अन्य मुस्लिम शासकों और पड़ोसी राज्यों के दवाब के चलते राजा कीरतसिंह ने गोंडवाना साम्राज्य के महान् राजा संग्रामशाह से मित्रता का हाथ बढ़ाया... राजा संग्रामशाह का विशाल गोंडवाना (गढ़ा-कटंगा) साम्राज्य जिसमें 52 गढ़ थे पूर्व से पश्चिम 300 मील और उत्तर से दक्षिण 160 मील तक सुविस्तीर्ण था।जिसमें 70हजार गांव थे, आगे चलकर वीरांगना रानी दुर्गावती ने 80 हजार गांव कर लिए थे, यह साम्राज्य लगभग इंग्लैंड के साम्राज्य के बराबर हो गया था ...राजा संग्रामशाह ने राजा कीरतसिंह की गुणवती सुपुत्री वीरांगना दुर्गावती से अपने पुत्र दलपति शाह के विवाह का प्रस्ताव रखकर मित्रता को रिश्तेदारी में बदल दिया.. यद्यपि राजा संग्रामशाह का सन् 1541 में निधन हो गया तथापि राजा कीरतसिंह ने अपना वचन निभाया और सन् 1542 में वीरांगना दुर्गावती का विवाह गोंडवाना के राजा दलपति शाह ने साथ कर दिया.. यह विवाह भारत में सामाजिक समरसता का अद्वितीय उदाहरण है.. सन् 1545 में कालिंजर दुर्ग पर हमले में शेरशाह मारा गया और राजा कीरतसिंह भी शहीद हो गए.. इधर गोंडवाना साम्राज्य में भी एक अनहोनी घटना घटी,राजा दलपति शाह का निधन सन् 1548 में हो गया.. वीरांगना इस वज्रपात से विचलित हुईं, परंतु साहस के साथ अपने अल्पवयस्क पुत्र वीर नारायण सिंह की ओर ले गोंडवाना साम्राज्य की सत्ता संभाल ली... इस तरह गोंडवाना साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती का महान् साम्राज्ञी के रुप में उदय हुआ। रानी दुर्गावती ने 16 वर्ष शासन किया और यही काल गोंडवाना साम्राज्य का स्वर्ण युग था।गोंडवाना साम्राज्य राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,कला एवं साहित्य के क्षेत्र में सुव्यवस्थित रुप से पल्लवित और पुष्पित होता हुआ अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँचा।वर्तमान में प्रचलित जी.एस. टी. जैंसी कर प्रणाली रानी दुर्गावती के शासनकाल में लागू की गई थी, फलस्वरुप तत्कालीन भारत वर्ष गोंडवाना ही एकमात्र राज्य था जहाँ की जनता अपना लगान स्वर्ण मुद्राओं और हाथियों में चुकाते थे। अद्भुत एवं अद्वितीय जल प्रबंधन था 52 तालाब और 40 बावलियों का रखरखाव था। गढ़ा उन दिनों उत्तर - मध्य भारत का हिन्दुओं का धार्मिक केंद्र बिंदु था, जहाँ कोई भी हिन्दू अपनी इच्छानुसार धार्मिक अनुष्ठान कर सकता था, इसलिए इस स्थान को लघुकाशी वृंदावन कहा जाता था।उपरोक्तानुसार स्वर्ण युग के लिए आवश्यक सभी प्रतिमानों के आलोक में सिंहावलोकन करने पर यही प्रमाणित होता है कि यह काल गोंडवाना साम्राज्य का स्वर्ण युग था। 
*वीरांगना रानी दुर्गावती की युद्ध नीति *-- रानी दुर्गावती की युद्ध नीति और कूटनीति विलक्षण थी, जिसकी तुलना  काकतीय वंश की वीरांगना रुद्रमा देवी और फ्रांस की जान आफ आर्क को छोड़कर विश्व की अन्य किसी वीरांगना, मसलन आस्ट्रिया की मारिया थेरेसा, इंग्लैंड की एलिजाबेथ प्रथम एवं रुस की केथरीन द्वितीय आदि से नहीं की जा सकती है।युद्ध के 9 पारंपरिक युद्ध व्यूहों क्रमशः वज्र व्यूह, क्रौंच व्यूह, अर्धचन्द्र व्यूह, मंडल व्यूह, चक्रशकट व्यूह, मगर व्यूह, औरमी व्यूह, गरुड़ व्यूह, और श्रीन्गातका व्यूह से परिचित थीं। इनमें क्रौंच व्यूह और अर्द्धचंद्र व्यूह में सिद्धहस्त थीं। क्रौंच व्यूह रचना का प्रयोग ,जब सेना ज्यादा होती थी, तब किया जाता था जिसमें क्रौंच पक्षी के आकार के व्यूह में पंखों में सेना और चोंच पर वीरांगना होती थीं और शेष अंगों पर प्रमुख सेनानायक होते थे। वहीं दूसरी ओर जब सेना छोटी हो और दुश्मन की सेना बड़ी हो तब इस व्यूह रचना का प्रयोग किया जाता था, जिससे सेना एक साथ ज्यादा से ज्यादा जगह से दुश्मन पर मार सके।वीरांगना की रणनीति अकस्मात् आक्रमण करने की होती थी। रानी दुर्गावती दोनों हाथों से तीर और तलवार चलाने में निपुण थीं। गोंडवाना साम्राज्य की सत्ता संभालने के कुछ दिन बाद ही गढ़ों की संख्या 52 से बढ़कर 59हो गई थी। वीरांगना ने एक बड़ी स्थायी और सुसज्जित सेना तैयार की, जिसमें 20 हजार अश्वारोही एक सहस्र हाथी और प्रचुर संख्या में पदाति थे। 
वीरांगना रानी दुर्गावती के शौर्य, साहस एवं पराक्रम के संबंध में प्रकाश डालते हुए तथाकथित छल समूह के वामपंथी एवं एक दल विशेष के समर्थक इतिहासकारों सहित अबुल फजल, बदायूंनी और फरिश्ता ने कुल 4 युद्धों का टूटा-फूटा वर्णन कर इति श्री कर ली है, जबकि वीरांगना ने 16 युद्ध (छुटपुट युद्धों को छोड़कर) लड़े। 16 युद्धों में से 15 युद्धों विजयी रहीं, जिसमें 12 युद्ध मुस्लिम शासकों से लड़े गये, उसमें से भी 6 मुगलों के विरुद्ध लड़े गये। पिता राजा कीरतसिंह के साथ मिलकर, हनुमान द्वार का युद्ध, गणेश द्वार का युद्ध, लाल दरवाजा का युद्ध.. बुद्ध भद्र दरवाजा का युद्ध (कालिंजर का किला अब कामता द्वार,पन्ना द्वार, रीवा द्वार हैं)लड़े गये जिसमें विजयश्री प्राप्त की। 
गोंडवाना की साम्राज्ञी के रुप में सत्ता संभालते ही मांडू के अय्याश शासक बाजबहादुर ने गोंडवाना साम्राज्य दो बार आक्रमण किए परंतु रानी दुर्गावती ने दोनों बार जम कर ठुकाई कर दुर्गति कर डाली और मांडू तक खदेड़ा। बाजबहादुर जीवन भर शरणागत रहा। आगे मालवा के सूबेदार शुजात की कभी हिम्मत नहीं हुई। शेरखान (शेरशाह) कालिंजर अभियान में मारा गया। कुछ दिनों बाद मुगलों ने पानीपत के द्वितीय युद्ध के उपरांत पुनः सत्ता हथिया ली और अकबर शासक बना। शीघ्र ही येन केन प्रकारेण साम्राज्य विस्तार करना आरंभ कर दिया।
 रानी दुर्गावती के गोंडवाना साम्राज्य की संपन्नता और समृद्धि की चर्चा कड़ा और मानिकपुर के सूबेदार आसफ खान द्वारा मुगल दरबार में की गई । धूर्त, लंपट और चालाक अकबर लूट और विधवा रानी को कमजोर समझते हुए जबरदस्ती गोंडवाना साम्राज्य हथियाने के उद्देश्य से रानी को आत्मसमर्पण के लिए धमकाया परंतु गोंडवाना की स्वाभिमानी और स्वतंत्रप्रिय वीरांगना रानी दुर्गावती नहीं मानी। अकबर का संदेश था कि स्त्रियों का काम रहंटा कातने का है, तो रानी ने संदेश के साथ एक सोने का पींजन भेजा और कहा कि आपका भी काम रुई धुनकने का है। अकबर तिलमिला गया और उसने आसफ खान को गोंडवाना साम्राज्य की लूट और उसके विनाश के लिए रवाना किया। इसके पूर्व अकबर ने दो गुप्तचरों क्रमशः गोप महापात्र और नरहरि महापात्र को भेजा परंतु वीरांगना ने दोनों को अपनी ओर मिला लिया। उन्होंने अकबर की योजना और आसफ खाँ के आक्रमण के बारे में रानी दुर्गावती को सब कुछ बता दिया। 
वीरांगना रानी दुर्गावती सतर्क हो गईं और सिंगौरगढ़ में मोर्चा बंदी कर ली। आसफ खान 6 हजार घुड़सवार सेना 12 हजार पैदल सेना एवं तोपखाने तथा स्थानीय मुगल सरदारों के साथ सिंगोरगढ़ आ धमका। इधर रानी दुर्गावती के साथ, उनके पुत्र वीर नारायण सिंह, अधार सिंह, हाथी सेना के सेनापति अर्जुन सिंह बैस, कुंवर कल्याण सिंह बघेला, चक्रमाण कलचुरि, महारुख ब्राह्मण, वीर शम्स मियानी, मुबारक बिलूच,खान जहान डकीत, महिला दस्ता की कमान रानी दुर्गावती की बहन कमलावती और पुरा गढ़ की राजकुमारी (वीर नारायण की होने वाली पत्नी) संभाली। अविलंब युद्ध आरंभ हो गया। सिंगोरगढ़ का प्रथम युद्ध - आसफ खान ने आत्मसमर्पण के लिए कहा, वीरांगना ने कहा कि किसी शासक के नौकर से इस संदर्भ में बात नहीं की जाती है। वीरांगना ने भयंकरआक्रमण किया, मुगलों के पैर उखड़ गये आसफ खान भाग निकला। सिंगौरगढ़ का द्वितीय युद्ध - पुन: मुगलों के वही हाल हुए लेकिन मुगलों का तोपखाना पहुंच गया और रानी को खबर लग गयी उन्होंने गढ़ा में मोर्चा जमाया और सिंगोरगढ़ छोड़ दिया। सिंगौरगढ़ का तृतीय युद्ध - मुगलों का तोपखाना भारी पड़ गया और सिंगोरगढ़ हाथ से निकल गया। अघोरी बब्बा का युद्ध - यह चौथा युद्ध था जिसका उद्देश्य मुगल सेना को पीछे हटाना था ताकि वीरांगना गढ़ा से बरेला के जंगलों की ओर निकल जाए। घमासान युद्ध हुआ और सेनानायक अर्जुन सिंह बैस ने आसफ खाँ को बहुत पीछे तक खदेड़ दिया। वीरांगना ने तोपखाने से निपटने के लिए एक शानदार रणनीति बनायी जिसके अनुसार बरेला (नर्रई) के सकरे और घने जंगलों के मध्य मोर्चा जमाया ताकि तोपों की सीधी मार से बचा जा सके। 
गौर नदी का युद्ध - वीरांगना रानी दुर्गावती के जीवन के 15वें और मुगलों से 5वें युद्ध में 22 जून 1564 को स्वतंत्रता,स्वाभिमान और शौर्य की देवी - विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगना रानी दुर्गावती ने,प्रात:सेनानायक अर्जुन सिंह बैस के शहीद होने का समाचार मिलते ही "अर्द्धचंद्र व्यूह"बनाते हुए "गौर नदी के युद्ध" में आसफ खाँ सहित मुगलों की सेना पर भयंकर आक्रमण किया और पुल तोड़ दिया ताकि तोपखाना नर्रई (बरेला) न पहुँच सके। मुगल सेना तितर बितर हो गई जिसको जहां रास्ता मिला भाग निकला..वीरांगना ने पुन:रात्रि में हमले की योजना बनाई परंतु सरदारों की असहमति के कारण निर्णय बदलना पड़ा.. यहीं भारी चूक हो गई, यदि रात्रि में आक्रमण होता तो इतिहास कुछ और ही होता.. अंततः वीरांगना ने नर्रई की ओर कूच किया और युद्ध के लिए "क्रौंच व्यूह" रचना तैयार की.।23 जून 1564 को नर्रई में प्रथम मुठभेड़ हुई, रानी और उनके सहयोगियों ने मुगलों की जमकर ठुकाई की। मुगल भाग निकली और डरकर बरेला तक भागी।  23 जून की रात तक तोपखाना गौर नदी पार कर बरेला पहुंच गया। 23 जून की रात को घातक षड्यंत्र हुआ। .आसफ खान ने रानी के एक छोटे सामंत बदन सिंह को घूस देकर मिला लिया.. उसने रानी की रणनीति का खुलासा कर दिया कि कल युद्ध में रानी मुगलों को घने जंगलों की ओर खींचेगी जहाँ तोपखाना कारगर नहीं होगा और सब मारे जाएंगे। आसफ खान डर गया उसने उपचार पूंछा.. तब बदन सिंह ने बताया कि नर्रई नाला सूखा पड़ा है और उसके पास पहाड़ी सरोवर है जिसे यदि तोड़ दिया जाए तो पानी भर जाएगा और रानी नाला पार नहीं कर पाएगी और तोपों की मार सीधा पड़ेगी.।उधर रात में रानी को अनहोनी अंदेशा हुआ.. उन्होंने सरदारों से रात में ही हमले का प्रस्ताव रखा पर सरदार नहीं माने.. यदि मान जाते तो इतिहास कुछ और होता.।बहरहाल युद्ध अंतिम घड़ी आ ही गयी.. वीरांगना ने "क्रौंच व्यूह" रचा.. सारस पक्षी के समान सेना जमाई गई.. चोंच भाग पर रानी दुर्गावती स्वयं और दाहिने पंख पर युवराज वीरनारायण और बायें पंख पर अधारसिंह खड़े हुए.. 24 जून 1564 को प्रातः लगभग 10 बजे मोर्चा खुल गया.. घमासान युद्ध प्रारंभ हुआ.. पहले हल्ले में मुगलों के पांव उखड़ गए.. मुगलों ने 3 बार आक्रमण किये और तीनों बार गोंडों ने जमकर खदेड़ा... इसलिए मुगलों ने तोपखाना से मोर्चा खोल दिया.. रानी ने योजना अनुसार जंगलों की ओर बढ़ना शुरू किया परंतु बदन सिंह की योजना अनुसार पहाड़ी सरोवर तोड़ दिया गया.. नर्रई में बाढ़ जैसी स्थिति बन गयी.. अब रानी घिर गयी.. इसी बीच अपरान्ह लगभग 3 बजे वीरनारायण के घायल होने की खबर आई.. वीरांगना जरा भी विचलित नहीं हुई.. आंख में तीर लगने के बाद भी जंग जारी रखी.. मुगल सेना के बुरे हाल थे परंतु रानी को एक तीर गर्दन पर लगा रानी ने तीर तोड़ दिया.. हाथी सरमन के महावत को अधार सिंह पीछे हटने का आदेश दिया परंतु रानी समझ गयी थी कि अब वो नहीं बचेंगी.. इसलिए अब वो गोल में समा गयीं और भीषण युद्ध किया जब उनको मूर्छा आने लगी तो उन्होंने अपनी कटार से प्राणोत्सर्ग किया.. वहीं सेनापति अधार सिंहा के नेतृत्व में कल्याण सिंह बघेला और चक्रमाण कलचुरि ने युद्ध जारी रखा, और वीरांगना के पवित्र शरीर को सुरक्षित किया तथा युवराज वीरनारायण सिंह को रणभूमि से सुरक्षित भेजकर अपनी पूर्णाहुति दी 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 विश्व में ऐंसा दूसरा उदाहरण नहीं है..वीरांगना ने आत्मोत्सर्ग के पूर्व अपने सेनापति अधार सिंह से कहा था कि "मृत्यु तो सभी को आती है अधार सिंह, परंतु इतिहास उन्हें ही याद रखता है जो स्वाभिमान के साथ जिये और मरे" 💐 💐 💐पुनः बलिदान दिवस पर शत् शत् नमन है.. - डॉ. आनंद सिंह राणा - इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत 💐 💐

23.6.21

एक इनोवेशन जो हाई जैक किया...!

 फेसबुक पुरानी यादें वापस लौट कर कुछ पुराना नई तरीके से याद दिला दीया करती हैं । उन्हीं यादों में से एक याद आज में आज फिर तैरने लगी मेरे दिमाग में। आज उन यादों को नए तरीके से पेश कर रहा हूं
     The Godh Bharai program was initiated by respected Kuku TR
in Balaghat District, when she was posted as project officer. After sometime this program implemented by me and my team in my project area at Jabalpur district. Women and child development department Government of MP adopted this as a program for Mangal Divas. On first tuesday of the month this program is organised in every anganbadi centre, on second tuesday we celebrate  the birthday of those babies who are already an year old or who are about to be one year old by the end of the month, 3rd Tuesday is celebrated as ann prashan and the last Tuesday we celebrate Kishori Balika Divas. My former respected Commissioner madam Shrimati Kalpana Srivastava launched this program for entire ICDS project in MP. Respected IAS officer former project director Shri P Narhari sir has encouraged us. 
Meena Badkul #Maya_Misha Sushama Shantanu Naik  #nilima_dubey #Sandhya_Nema and other supervisor supported me to launch this pilot project. Then this program adopted by State

  

22.6.21

प्राचीन यूनान में ईश्वर के आँसू कहलाने वाले हीरे की कहानी मध्यप्रदेश में लिखी जा रही है...!"

पाठकों आज से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए आर्टिकल लिखना प्रारंभ कर रहा हूं । आज का विषय सामान्य अध्ययन अंतर्गत मध्य प्रदेश खनिज हीरा से संबंधित है।
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विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से यह आर्टिकल लिखा गया है। यह आर्टिकल केवल भारतीय डायमंड इंडस्ट्री अर्थात हीरा उद्योग के संबंध में संक्षिप्त जानकारी के तौर पर युवाओं के लिए प्रस्तुत है। 
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यूनानी मान्यता अनुसार ईश्वर का आंसू है हीरा
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हीरा एक ऐसा कार्बनिक पदार्थ है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता की वजह से बहुमूल्य रत्न होने के दर्जे पर सदियों से कायम है। प्राचीन यूनानी सभ्यता ने हीरे को उसकी पवित्रता को और उसकी सुंदरता को देखते हुए ईश्वर के आंसू तक की उपमा दे दी है ।
    विश्व में भारत और ब्राज़ील के अलावा अमेरिका में भी हीरे का प्राकृतिक एवं कृत्रिम उत्पादन किया जाता है।
भारत के गोलकुंडा में सबसे पहले हीरे की खोज की गई थी और वह भी 4000 वर्ष पूर्व। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान  ही भारत भारत का कोहिनूर हीरा ब्रिटिश खजाने में जा पहुंचा था। जी हां मैं उसी कोहिनूर हीरे की बात कर रहा हूं जो महारानी के मुकुट  में लगा हुआ है वह हीरा गोलकुंडा की खदान से ही हासिल किया गया था। भारत में उड़ीसा छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में हीरे की मौजूदगी है। सबसे ज्यादा मात्रा में इस रत्न की मौजूदगी मध्य प्रदेश में है। अगर बक्सवाह कि हीरा खदानों ने काम करना शुरू कर दिया तो विश्व में भारत हीरा उत्पादन में श्रेष्ठ  स्थान पर होगा। एक अनुमान के मुताबिक रुपए 1550 करोड़ वार्षिक राजस्व आय का स्रोत होगी यह परियोजना।
    हीरे को यूनान सभ्यता के लोग ईश्वर के आंसू कहा करते थे और आज भी यही माना जाता है। पिछले कुछ दिनों से ईश्वर के इन आंसुओं की कहानी मध्यप्रदेश में लिखी जा रही है। हालांकि यह कहानी 20 साल पहले शुरू हुई थी और 2014 से 2016 तक चला  इसका मध्यातर । 2017 के बाद से इस डायमंड स्टोरी का दूसरा भाग शुरू हो चुका है। इतना ही नहीं धरना प्रदर्शन पर्यावरण के मुद्दे वन्य जीव संरक्षण जैसे कंटेंट इसमें सम्मिलित हो रहे हैं। कुल मिला के संपूर्ण फीचर फिल्म सरकार की मंशा को देखकर लगता है वर्ष 2022 तक इस फिल्म का संपन्न हो जाने की संभावना है। छतरपुर जिले की बकस्वाहा विकासखंड में 62.64 हेक्टेयर जमीन किंबरलाइट चट्टाने मौजूद है और जहां यह चट्टानें मौजूद होती हैं वहां हीरे की मौजूदगी अवश्यंभावी होती है। इन चट्टानों से हीरा निकालने के लिए लगभग 382 हेक्टेयर जमीन उपयोग में लाई जाएगी।.
   किंबरलाइट चट्टानों की पहचान आज से लगभग 20 वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलियन कंपनी द्वारा की गई थी। कहते हैं कि 3.42 करोड़ कैरेट के हीरे बक्सवाहा के जंगलों से निक लेंगे ।
   शासकीय सर्वेक्षण के अनुसार 215875 पेड़ बक्सवाहा के जंगलों में मौजूद है।
पन्ना में उपलब्ध 22 लाख कैरेट हीरे में से 13 लाख कैरेट हीरे निकाल लिए गए हैं तथा कुल 9 लाख  कैरेट हीरे अभी शेष है उन्हें नाम और वर्तमान में बक्सवाहा के जंगल में अनुमानित हीरे इस खनन की तुलना में 15 गुना अधिक होगी।
  buxwaha बक्सवाह  की हीरा खदानों से हीरा निकालने के लिए ऑस्ट्रेलिया की कंपनी रियो टिंटो को 2006 में टेंडर दिया हुआ था और इस कंपनी ने 14 साल पहले इस टैंडर को हासिल किया लगभग 90 मिलियन रुपए खर्च भी किए। कंपनी को प्रदेश सरकार ने 934 हेक्टर जमीन पर काम करने का ठेका दिया था। जबकि रियो टिंटो के द्वारा काम समेटने के बाद 62.64 हेक्टेयर भूमि से हीरे निकालने के लिए 382 हेक्टेयर जंगल को साफ करना पड़ेगा। जैसा पूर्व में बताया है कि उक्त क्षेत्र में 215875 वृक्षों को काटा जाएगा यदि यह क्षेत्र 934 सेक्टर होता तो इसका तीन से चार गुना अधिक वृक्षों को काटना आवश्यक हो जाता । मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के इन ज़िलों  जैसे पन्ना और छतरपुर में पानी की उपलब्धता की कमी रही है जिसकी पूर्ति के लिए अस्थाई और कृत्रिम तालाब बनाने की व्यवस्था कंपनी द्वारा की जावेगी।
   वर्तमान में हीरा खनन करने के लिए आदित्य बिरला ग्रुप ने 50 साल के लिए बक्सवाहा के 382 हेक्टेयर जंगल में काम करने का टेंडर हासिल किया है। आदित्य बिरला ग्रुप की कंपनी  एक्सेल माइनिंग कंपनी द्वारा प्रस्तावित परियोजना में कार्य किया जाएगा।
   बक्सवाहा की खदानों में काम करने के लिए 15.9 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत प्रतिदिन होगी जबकि बुंदेलखंड क्षेत्र में पानी का अभाव सदा से ही रहा है। इस संबंध में कंपनी क्या व्यवस्था करती है यह आने वाला भविष्य ही बताएगा। पेड़ों के कटने के बाद वैकल्पिक व्यवस्थाएं क्या है इस पर भी सवालों का उत्तर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में लंबित याचिका के माध्यम से प्राप्त हो ही जाएगा। अन्य परिस्थितियों के असामान्य ना होने की स्थिति में इस परियोजना की विधिवत शुरुआत 2022 तक संभावित है।  पर्यावरणविद यह मानते हैं कि प्राकृतिक वनों के काटने के बाद इस क्षेत्र में मौजूदा वाटर टेबल का स्तर गिर जाएगा। साथ ही वन्यजीवों के जीवन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस संबंध में पर्यावरणविद और स्थानीय युवा सोशल मीडिया खास तौर पर ट्विटर पर अभियान चला रहे हैं। जबकि मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बक्सवाहा से संबंधित डीएफओ का कहना है कि-" इस परियोजना से स्थानीय लोगों को रोजगार की उम्मीदें बढ़ी है वे इस परियोजना का विरोध नहीं करते।"
    एक्टिविस्टस द्वारा लगातार पर्यावरण संरक्षण को लेकर प्रतीकात्मक आंदोलन शुरू कर दिए गए हैं। 
हीरे को तापमान गायब कर सकता है
    हीरे के बारे में कहा जाता है कि अगर इसे ओवन में रखकर 763 डिग्री पर गर्म किया जाए तो हीरा गायब हो सकता है। वैसे ऐसी रिस्क कोई नहीं लेगा। हीरे के मालिक होने का एहसास ही अद्भुत होता है।
ग्रेट डायमंड इन द वर्ल्ड - जब हीरे का एक कण अर्थात उसका सबसे छोटा टुकड़ा भी मूल्यवान होता है तब ग्रेड डायमंड कितने बहुमूल्य होंगे इसका अंदाजा लगाना ही मुश्किल है। कहते हैं कि दक्षिण अफ़्रीका और ब्राजील की खदानों से विश्व के महानतम हीरों को निकाला और तराशा गया है।
दुनिया का सबसे बड़ा हीरा कलिनन हीरा (Cullinan Diamond) है जो 1905 में दक्षिण अफ्रीका की खदान से निकाला गया। 3106 कैरेट से अधिक भार का है जो ब्रिटेन के राजघराने की संपत्ति के रूप में उनके संग्रहालय में रखा है ।
तक ढूंढ़ा गया दुनिया का सबसे दूसरा बड़ा अपरिष्कृत हीरा 1758 कैरेट का हीरा  सेवेलो डायमंड (Sewelo Diamond) । जिसका अर्थ है दुर्लभ खोज।
    औपनिवेशिक काल में ब्रिटिश राजघराने को यह भ्रम था कि भारत का कोहिनूर हीरा अगर क्राउन में लगा दिया जाए तो ब्रिटिश शासन का सूर्यास्त कभी नहीं होगा। बात सही की थी कि सूर्योदय ब्रिटिश उपनिवेश में कहीं ना कहीं होता रहता था । परंतु राजघराने में यह मिथक उनकी राजशाही के अंत ना होने के साथ जोड़कर देखा जाने लगा। और महारानी ने अपने मुकुट पर कोहिनूर जड़वा लिया ।
   भारत का एक सबसे अधिक वजन वाला हीरा ग्रेट मुगल गोलकुंडा की खान से 1650 में  प्राप्त हुआ। जिसका वजन 787 कैरेट का था ।
  इस हीरे का आज तक पता नहीं है कि यह हीरा किस राजघराने में है एक अन्य हीरा जिसे अहमदाबाद डायमंड का नाम दिया गया जो पानीपत की लड़ाई के बाद ग्वालियर के राजा विक्रमजीत को हराकर 1626 में बाबर ने प्राप्त किया था। इस दुर्लभ हीरे की अंतिम नीलामी 1990  में लंदन के क्रिस्ले ऑक्सन हाउस हुई थी।
द रिजेंट नामक डायमंड, सन 1702 में गोलकुंडा की खदान से मिला हीरा 410 कैरेट के वजन का था। कालांतर में यह हीरा नेपोलियन बोना पार्ट  ने हासिल किया। यह हीरा अब 150 कैरेट का हो गया है जिसे पेरिस के लेवोरे म्यूजियम में रखा गया है।
  विकी पीडिया में दर्ज जानकारी के अनुसार  ब्रोलिटी ऑफ इंडिया का वज़न 90.8 कैरेट था।  ब्रोलिटी कोहिनूर से भी पुराना  है, 12वीं शताब्दी में फ्रांस की महारानी ने खरीदा। आज यह कहाँ है कोई नहीं जानता। एक और गुमनाम हीरा 200 कैरेट  ओरलोव है  जिसे १८वीं शताब्दी में मैसूर के मंदिर की एक मूर्ति की आंख से फ्रांस के व्यापारी ने चुराया था। कुछ गुमनाम भारतीय हीरे: ग्रेट मुगल (280 कैरेट), ओरलोव (200 कैरेट), द रिजेंट (140 कैरेट), ब्रोलिटी ऑफ इंडिया (90.8 कैरेट), अहमदाबाद डायमंड (78.8 कैरेट), द ब्लू होप (45.52 कैरेट), आगरा डायमंड (32.2 कैरेट), द नेपाल (78.41) आदि का नाम शामिल है ।

हीरो की तराशी :- बहुमूल्य रत्न हीरा कुशल कारीगरों द्वारा तराशा जाता है। विश्व के 90% हीरो की तराशी का काम जयपुर में ही होता है।
हीरो का सौंदर्य और उनकी पवित्रता हीरों का दुर्गुण यह है। विश्व साम्राज्य होने के बावजूद ब्रिटेन की महारानी में कोहिनूर का लालच कर बैठीं । तो मिस्टर चौकसी रत्न के धंधे में अपनी नैतिकता खो बैठा।
    आज से लगभग 10 वर्ष पहले मेरे मित्र  कुशल गोलछा जी ने मुझे एक डायमंड दिया और कहा कि इसे आप खरीदिए । उस जमाने में लगभग ₹30000 की कीमत का वह डायमंड मेरी क्रय क्षमता से कई गुना अधिक था। मेरे कॉमन मित्र श्री धर्मेंद्र जैन से मैंने उसे खरीदने मैं असमर्थता दिखाइए। श्री गोलछा ने कहा आप हजार या पांच सौ देते रहिए पर आप यह हीरा पहने रहिये।
    परंतु बिना लालच किए मात्र 1 महीने लगभग हीरे 18 कैरेट सोने की  अंगूठी जड़ा हीरा मुझे आज भी याद आ रहा है। दो-तीन साल पहले जब कुशल जी से उस हीरे के वर्तमान मूल्य पर चर्चा हुई  तब उनने कहा था- अब उस हीरे की कीमत कम से कम ₹100000 तो होना ही चाहिए। आपको ले लेना था इसमें कोई शक नहीं कि हीरा सदा के लिए होता है आज भी वह हीरा याद आता है परंतु हीरे के बारे में मेरा हमेशा से एक ही नजरिया रहा है कि उसकी पवित्रता बेईमान बना देती है, और यह सब ऐतिहासिक रूप से सत्य है।

13.6.21

वच्छ गोत्रीय नार्मदीय ब्राह्मणों की कुलदेवी मां आशापुरी देवी

कुल देवी मां आशापूर्णा देवी असीरगढ़            जिला बुरहानपुर मध्य प्रदेश
    "श्रुतियों एवं परंपराओं के अनुसार असीरगढ़ महाभारत काल में बना असीरगढ़ ब्राह्मण समाज के बिल्लोरे वंश जिनके पूर्वजों के सहोदर शरगाय शर्मा और सोहनी परिवारों की कुलदेवी आशापूर्णा देवी की स्थापना भी असीरगढ़ फोर्ट की दीवार पर एक छोटे से मंदिर के रूप में अवस्थित है।"
       ज्ञात ऐतिहासिक विवरण
आदिकाल से भारत का इतिहास केवल श्रुति परंपरा पर आधारित रहा है अतः लिखित इतिहास के आधार पर जात जानकारियों से सिद्ध होता है कि असीरगढ़ का किला 9 वी शताब्दी के आसपास निर्मित हुआ है।
    यह जानकारी हमारे कुटुंब के पूर्वजों ने हमारे नजदीकी पूर्वज यानी आजा के पिता ने  पुत्र यानी आजा और  आजा के पिता और उनके भाइयों को बताया है। असीरगढ़ फोर्ट का निर्माण कब हुआ इसका कोई वैज्ञानिक परीक्षण ईएसआई नहीं कराया या नहीं इस बारे में सोचने की जरूरत है क्योंकि इसके तक आज तक प्रमाणित नहीं हो पाए हैं और ना ही ऐसा कोई प्रतिवेदन राज्य सरकार ने कभी दिया या जारी किया हो।
   आइए हम उपलब्ध जानकारियों के अनुसार जाने कि यह किला इन जानकारियों के आधार पर किसने बनाया और कहां स्थित है?
   इतिहासकार इसे दक्षिण का मार्ग कहते हैं। जबकि मान्यता के अनुसार यह हमारी ऐतिहासिक धरोहर है और यहां पर 5000 वर्ष से भी पहले महाभारत काल में किले का निर्माण किया गया।  ताप्ती और नर्मदा के तट पर स्थित बुरहानपुर के उत्तर में स्थित किस किले की भौगोलिक स्थिति 21.47°N तथा 76.29° E की लोकेशन पर स्थित है । यह बुरहानपुर से 22 किलोमीटर दूर स्थित है तथा इसकी ऊंचाई 780 मीटर है समुद्र तल से यह 70.1 मीटर ऊंचाई पर स्थित स्थान है। जो 60 एकड़ भूमि पर बनाया गया है। 1370 ईस्वी  में बनवाए गए इस किले का निर्माण आसा अहिर नामक एक विदेशी शासक ने करवाया था ऐसा प्रचारित है । कालांतर में आसा अहीर या असाहिर ने नासिर खान नाम के अपने एक अधीनस्थ व्यक्ति को किले के संरक्षण का कार्य सौंपा। परंतु किले पर कब्जा जमाने की नासिर खान ने कल्पना की और सबसे पहले उसने राजा असाहिर का समूल अंत कर दिया।
किले की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसके लिए के दो मार्ग निर्मित किए गए थे एक मार्ग दक्षिण पश्चिम दिशा में तथा दूसरा मार्ग गुप्त मार्ग है जो सात गुप्त रक्षण व्यवस्था से रक्षित  है। किस किले पर नौवीं से बारहवीं शताब्दी का राजपूतों, 15वीं शताब्दी तक फ़ारूक़ी की राजाओं के अलावा मुगल मराठा निजाम पेशवा और खुलकर के अलावा औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों का शासन रहा है अंग्रेजों की छावनी के रूप में यह किला उपयोग में लाया जाता रहा है। इस किले में अकबर ने भी कुछ दिन निवास किया था । बाद में उन्होंने यह किला छावनी के रूप में परिवर्तित कर दिया तथा किले का प्रबंधन  एक सूबेदार अब्दुल सामी को शॉप कर वापस दिल्ली आए थे । मैंने अपने किसी लेख में लिखा था कि दक्कन का प्रवेश द्वार दिल्ली से महाकौशल प्रांत होते हुए बहुत सहज एवं बाधा हीन रहा है किंतु गोंडवाना साम्राज्य की कर्मठता और राष्ट्रप्रेम की बलिदानी भावना के आगे मुगल सम्राट अकबर का बस नहीं चल सका। क्योंकि मुसलमान आक्रमणकारियों एवं विदेशियों के लिए दक्षिण भारत जीतना हमेशा से ही उनका सपना रहा है वह 12 वीं शताब्दी वीं शताब्दी से ही इस कोशिश में लगे हुए थे। अतः बार बार कोशिशों के बाद इस किले पर कब्जा करना उनके लिए आसान हो गया।
औरंगजेब का इस किले से गहरा नाता है औरंगजेब जब दक्षिण विजय से भारत का शहंशाह बनना चाहता था तब वह लौटकर इस किले का भी विजेता बन गया यह घटना 1558 से 1559 के मध्य की है। कहते हैं कि युद्ध से लौटने के बाद  उसने अपने पिता शाहजहां आगरा में बंदी बनाया  और खुद शासक बन बैठा। यह कहना सर्वथा गलत है कि औरंगजेब ने मंदिरों का उद्धार किया है। असीरगढ़ के किले कि तलछट पर दीवार में बने आशापुरा माता की प्रतिमा पर उसने किसी भी तरह की कोई धार्मिक सहिष्णुता नहीं प्रदर्शित की ना ही वहां के लिए पहुंच मार्ग विकसित किया। बल्कि यह कहा जाता है कि मुगल सेना के लिए किले के ऊपरी भाग में मस्जिद का निर्माण अवश्य कराया। यह इस किले का सौभाग्य ही था कि किले में स्थित शिव प्रतिमा का विखंडन एवं मंदिर का विलीनीकरण औरंगजेब नहीं कर पाया।
आदिलशाह जो 17वीं शताब्दी में अकबर के अधीन हो चुका था ने यह किला अर्थात असीरगढ़ का किला अकबर को सहर्ष सौंप दिया था।
     कुल मिलाकर इस किले का ज्ञात इतिहास ईसा के बाद 9 वीं शताब्दी से मिलता है।
   इस किले पर मौजूद मंदिर मस्जिद चर्च अवशेष यह बताते हैं कि निश्चित रूप में यह किला विभिन्न राजसत्ताओं के अधीन रहा है ।
      परंतु दीवार पर मां आशापूर्णा देवी का स्थान हम नार्मदीय ब्राह्मण के वत्स गोत्रियों बिल्लोरे, शकरगाएं, सोहनी और शर्मा कुलों की कुलदेवी इस किले के आधार तल पर स्थान विराजमान हैं ।
  यह कहा जाता है कि नार्मदेय ब्राम्हण समाज ने अपने अस्तित्व के साथ अपनी कुलदेवी के स्थान को गुजरात के कच्छ क्षेत्र से मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में स्थापित किया। ये वच्छ गोत्रीय नार्मदीय ब्राह्मण थे । सौभाग्य से इसी कुल में मेरा भी जन्म हुआ है।
   अधिकांश पाठक स्वर्गीय शरद बिल्लोरे  को जानते हैं । वह मेरे कुल गोत्र के ही सदस्य थे। उनके सबसे बड़े भाई श्री शैलेंद्र श्री अशोक उसके बाद श्री शरद श्री शिव अनुज और सबसे छोटे भाई सुरेंद्र जी है हरदा तहसील के रहटगांव में रहने वाले इस परिवार की बड़ी बहू को बार-बार स्वप्न में तथा एहसास में आशापूर्णा देवी ने आदेशित किया कि मेरा निवास स्थान असीरगढ़ किले की दीवार पर है वहां मेरे सभी बच्चों का आना जाना सुनिश्चित किया जाए। सभी भाइयों को जब यह बात बताई गई तो यह तय किया गया कि प्रत्येक 25 दिसंबर को वहां जाकर सह गोरियों को इकट्ठा किया जावे तदुपरांत वर्ष 1996 से यह प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई तब से अब तक हजारों की संख्या में वच्छ गोत्रियों का समागम वहां होता है। वर्ष 2020 में यह पूजा अति संक्षिप्त कर दी गई थी कोविड-19 के कारण परंतु सामान्य समय में बिल्लोरे सोहनी,शकरगाए, शर्मा, सरनेम वाले नार्मदीय ब्राह्मणों का समागम होता है। वच्छ गोत्रीय  चाहे वे विश्व के किसी भी कोने में क्यों ना रहे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सामूहिक पूजन एवं भंडारे का हिस्सा बनते हैं।
    नार्मदीय-ब्राह्मण समाज के विभिन्न लोगों का मध्य प्रदेश में आगमन हुआ तब उन्हें अपनी कुलदेवी के लिए उचित स्थान की जरूरत थी कहते हैं । इससे यह भी सिद्ध होता है कि हम रामायण काल में मध्य प्रदेश यानी मध्य भारत में नर्मदा के तट पर आ चुके थे। राजा मांधाता ने हमारे पूर्वज युवा बटुकों को राजाश्रय तथा हमें यज्ञ आदि कर्म के योग्य बनाया। यज्ञी या यज्जी नारमदेव जो नार्मदीय ब्राह्मणों का अपभ्रंश है विवाह भी राजा मांधाता ने कराया ऐसी श्रुति का मुझे ज्ञान है।
आप सब जानते ही हैं कि आदिकाल से भारतीय कौटुंबिक व्यवस्था में  एक कुलदेवी को पूजने की परंपरा की परंपरा है। इससे यह सिद्ध होता है कि हर कुल अपनी परंपराओं को अपनी कुलदेवी की निष्ठा के साथ पूजा करते हुए आने वाली पीढ़ी को यह बताता है कि आप किस कुल से संबद्ध हैं।

हमारी कुलदेवी का मूल स्थान गुजरात में कच्छ क्षेत्र में स्थित है। अपने चुनावी मुहिम के दौरान भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी गुजरात के इस मंदिर में जाकर माथा टेक चुके हैं।
कथा एवं श्रुतियों के मुताबिक-" गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र आज भी भारत में अमर है और भटक रहे हैं इसके प्रमाण के रूप में यह माना जाता है कि वे रात्रि में असीरगढ़ के किले में उपस्थित होकर शिव के मंदिर में पूजा करते हैं और एक गुलाब का फूल भी चढ़ाते हैं। सामान्यतः शिव पर अर्पित करने वाले पुष्प सफेद होते हैं किंतु असीरगढ़ किले में चढ़ाए जाने फूलों में पीले फूल धतूरा पुष्प रक्त गुलाब होता है।
2015 से अब तक स्थानीय लोगों के संस्मरण
वर्ष 2015 से वर्तमान में स्थानीय लोग क्रम से है अज्जू बलराम रामप्रकाश बिरराय आदि ने अद्भुत प्राणी जिसे वे अश्वत्थामा मानते हैं से मिलने का जिक्र किया है। पाला नामक बुजुर्ग कहते हैं कि वे लकवा ग्रस्त तभी हुए हैं जब उनकी मुलाकात अश्वत्थामा की हुई। 1984 के मीडिया कटनी से बात करते हुए राम प्रकाश ने मीडिया कर्मी को बताया कि कुछ अजीबोगरीब पैरों के
निशान यहां देखे गए हैं।
  अभी हमारे संज्ञान में मात्र इतनी ही तथ्य आ सके हैं। 
*कुलदेवी मां आशापुरा देवी को समर्पित इस आर्टिकल बहाने हम यह कोशिश कर रहे थे यह हमने कब आशापुरा माता को असीरगढ़ किले स्थापित किया अथवा कोई और लोग हैं जिन्होंने मां आशापुरा को गुजरात से यहां अर्थात असीरगढ़ किले में प्राण प्रतिष्ठित किया है। अगर यह ज्ञात होता कि हम माता के स्वरूप को स्थापित करने वाले हैं तो यह सुनिश्चित हो जाएगा  नार्मदीय ब्राम्हण मध्यप्रदेश में कब आए। वैसे राजा मांधाता  (6777BCE से 5577 BCE ) कालखंड में हम ओमकारेश्वर  रहे थे ।
परंतु यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि- असीरगढ़ के किले का निर्माण महाभारत काल में हुआ। उसके उपरांत ही हम या अन्य कोई आशापूर्णा देवी की स्थापना कर पाए होंगे। वर्तमान में मैं कुलदेवी के आशीर्वाद से एक कृति का लेखन कर रहा हूं जिसमें सातवें मन्वंतर के 28वें चतुर्युग का वैज्ञानिक एवं ज्योतिषीय गणना के आधार पर कालखंड निर्धारित किया जा रहा है। इससे यह साबित कर पाएंगे कि 4.567 करोड़ वर्ष पूर्व बनी इस पृथ्वी में भारत का निर्माण कब हुआ और युगों की अवधारणा क्या है। इसमें अब तक ज्ञात स्थिति के अनुसार मनु का कालखंड 14500 से 11200 ईसा पूर्व रहा है। वेदों की रचना 11500 से 10500 ईसा पूर्व में हुई है। जबकि उपनिषद संहिता ब्राह्मण अरण्यक इत्यादि का निर्माण 10,500 से 6777 ईसवी पूर्व हुआ है। त्रेता युग की अवधि 6777 से 5577 ईसा पूर्व जबकि  राम रावण का युद्ध 5677 में संपन्न हुआ। द्वापर युग के संबंध में अपनी कृति में हमने 5577 से 3173 ईसा पूर्व का कालखंड निर्धारित करने का प्रयास किया है। और महाभारत का युद्ध 3162 ईसा पूर्व में संपन्न हुआ है।
इस रिसर्च का उद्देश्य केवल प्रजापिता ब्रह्मा मनु तथा वेदों के निर्माण काल के निर्धारण के अलावा राम  कृष्ण के अस्तित्व को प्रकाश में लाना। अगर हम किसी से भी पूछे के हमारा इतिहास कब से है तो उत्तर में हमें यह जानकारी मिलती है कि ईशा के ढाई हजार साल पूर्व से हमारी संस्कृति का उत्थान हुआ है। जबकि ऐसा नहीं है भारतीय संस्कृति का प्रवेश द्वार हम ईसा मसीह के 20000 वर्ष पूर्व निर्धारित करने की कोशिश कर रहे यह अकारण नहीं है यह सत्य भी है।

12.6.21

दिशा विहीन होता हिंदी साहित्यकार

साहित्य का सृजन करना और साहित्य की सृजन का अभिनय करना जगह-जगह सृजन करने वालों गिरोहबाज़ी 100 साल से भी कम उम्र के "अल्पवय-हिंदी-भाषा" के साहित्य के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। मुझे मालूम है कि यह टिप्पणी मिर्ची वाला असर पैदा करेगी। पर ध्यान रखिए साहित्यकार होने की नौटंकी मत कीजिए वास्तव में पढ़िए उसके बाद लिखिए । 
  कल आप-हम जब मरखप जाएंगे हमारी संतानें हमारी आत्मा से पूछेगी - "संस्कृत ने बहुत कुछ दिया है.. आपने क्या किया..? 
   यही  होंगे ... अदेह के सदेह प्रश्न..? बहुतेरी हस्तियां मंच पर चुटकुले सुनाती बहुत सारी हस्तियां विषय को अपने शब्दों में नए सिरे से लिख देती हैं.. ! 
   आयोजन और फर्जी जुड़ाव साहित्यिक नेतागिरी साहित्य में राजनीतिक मक्कारियाँ, पक्षपाती लेखन किस दिशा में जा रहा है हिंदी साहित्यकारों का झुंड मुझे तो दूर से भेड़ों का झुंड नजर आ रहा है। अब तो आत्मचिंतन की जरूरत है अब रामधारी सिंह दिनकर को नकारने की जरूरत है अब जरूरत है वर्ग बनाकर वर्गीकरण करके वर्ग संघर्ष पैदा करने वालों के मुंह पर ताला लगाने की वरना वरना साहित्य के सर्जक साहित्य के सृजनकर्ता ना होकर साहित्य के सपोले कहलाएंगे।
फोटो Mukul Yadav से साभार

11.6.21

मेलिसा कपूर ने क्यों अपनाया सनातन जीवन प्रणाली को ...?


   यूनाइटेड किंगडम की एक युवती मेलिसा ने भारतीय सनातन जीवन प्रणाली और दर्शन को क्यों स्वीकारा इस बारे में आज आपसे चर्चा करना चाहता हूं। इसके पहले कि आप हिंदू धर्म को एक मेथालॉजी से परिमित 
(Under the Limitation of methodology) कर दें मैं आपको  सनातन इस तरह से देखना चाहिए ताकि आप उसे समझ सके। मेलिसा की मां डेनमार्क से हैं प्रोटेस्टेंट रही हैं जबकि उनके पिता ईस्ट पोलैंड से रहे हैं तथा वह कैथोलिक मत को मानते थे। मेलिसा का जन्म कनाडा में हुआ। और उनका भारतीय सनातन व्यवस्था में प्रवेश विवाह संस्कार के साथ हुआ। 16 संस्कारों में अगर देखा जाए तो सनातन की शुरुआत जन्म के साथ अंगीकृत कराई जाती है। लेकिन मेलिसा ने सबसे पहले भारतीय दर्शन को समझा पढ़ा और बाद में सनातन धर्मी पुरुष से विवाह कर वे सनातन का हिस्सा बन गईं । 
   इनका मानना है कि जब तक मैंने सनातन के बारे में जानकारी हासिल नहीं की थी तब तक मैं सनातन को अर्थहीन और अस्तित्व ही मानती थी। किंतु केरल के दौरे के बाद मुझे इस फिलासफी और जीवन प्रणाली के प्रति आकर्षण पैदा हुआ। उनका मानना है कि सनातन सर्वाधिक रूप से वैज्ञानिक धर्म है अतः उन्होंने अपने संप्रदाय को छोड़कर सनातन धर्म को स्वीकार किया। वे विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखती हैं - उनका सबसे पहला वीडियो बालाकोट स्वच्छ भारत अभियान झांसी की रानी नामकरण संस्कार ऋषिकेश यात्रा गोद भराई भारतीय हिंदू गुरुओं के विभ्रम भ्रमित करके धर्म परिवर्तन मोक्ष के रास्ते आदि विषयों के साथ साथ महाभारत रामायण भारतीय पूजा प्रणाली यहां तक कि गर्भावस्था के दौरान जिस तरह से महिला का खानपान पर और उसे मुहैया कराए गए वातावरण पर ध्यान देने के निर्देश या व्यवस्था सनातन में है वह सर्वोपरि है। मेलिसा आयुर्वेद के प्रोटीन कैलोरी युक्त विशेष आहार का एक वीडियो में उल्लेख करती है। एक सुरक्षित प्रेगनेंसी और सफल प्रसव के लिए क्या जरूरी होना चाहिए इन तथ्यों का भी मेलिसा को पर्याप्त ज्ञान है। वे गर्भावस्था के दौरान अपनाई जाने वाली आयुर्वेद
आधारित जीवन प्रणाली को श्रेष्ठ मानती हैं। इसके अतिरिक्त वे बहुत से भारतीय मुद्दों पर चर्चा करती हैं मेलिसा कपूर 30 मार्च 2019 से यूट्यूब पर है और इन्होंने अपने यूट्यूब चैनल का नाम इंग्लिश बहन English Bahan रखा हुआ है जो अब तक 816921 दर्शकों तक दिखा जा चुका है।
   यहां मैं अपनी अभिव्यक्ति में आपको यह बता देना चाहता हूं कि सनातन को जो भी जान लेता है वह उसका अनुयाई और समर्थक हो जाता है। और जो शुरू से यानी जन्म से सनातन धर्म के हैं उन्हें धर्म को समझने की जरूरत है ताकि सनातन जीवन व्यवस्था को बेहद प्रभावी ढंग से अंगीकृत करें ।
    अंततः मैं फिर से कहूंगा कि-मेलिसा कपूर की अभिव्यक्ति से स्पष्ट होता है कि भारतीय दर्शन भारतीय जीवन प्रणाली के प्रति आकर्षण और उसके अनुपालन के लिए भारत को समझना बहुत जरूरी है।
*गिरीश बिल्लोरे मुकुल*

मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
जन्म- 29नवंबर 1963 सालिचौका नरसिंहपुर म०प्र० में। शिक्षा- एम० कॉम०, एल एल बी छात्रसंघ मे विभिन्न पदों पर रहकर छात्रों के बीच सांस्कृतिक साहित्यिक आंदोलन को बढ़ावा मिला और वादविवाद प्रतियोगिताओं में सक्रियता व सफलता प्राप्त की। संस्कार शिक्षा के दौर मे सान्निध्य मिला स्व हरिशंकर परसाई, प्रो हनुमान वर्मा, प्रो हरिकृष्ण त्रिपाठी, प्रो अनिल जैन व प्रो अनिल धगट जैसे लोगों का। गीत कविता गद्य और कहानी विधाओं में लेखन तथा पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन। म०प्र० लेखक संघ मिलन कहानीमंच से संबद्ध। मेलोडी ऑफ लाइफ़ का संपादन, नर्मदा अमृतवाणी, बावरे फ़कीरा, लाडो-मेरी-लाडो, (ऑडियो- कैसेट व सी डी), महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं आडियो-विजुअल सीडी का प्रकाशन सम्प्रति : संचालक, (सहायक-संचालक स्तर ) बालभवन जबलपुर

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