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मंगलवार, अक्टूबर 07, 2014

मन:स्थितियां


अति महत्वाकांक्षाएं 
हिलोरे लेतीं हैं..
व्यग्रता के वायु-संवेग से 
ऊपर और ऊपर उठतीं अचानक 
धराशायी हो जातीं लहरें
और मै भी गिर पड़ता हूं.. 
उसी आघात से.. 
पर फ़िर तलाशता हूं किसी सर को
जिस पर मढ़ देना चाहता हूं.. 
अपकृत्य की ज़वाबदेही.. 
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 एक अदद देवता की तलाश में पूरी उम्र बिता दी
 कदाचित आत्मचिंतन करता 
तो शायद देवत्व का सामीप्य अवश्य मिलता 
पर भीड़ का हिस्सा हूं उसका मान ज़रूर रखूंगा.. 
आपसे विदा लेते लेते किसी देवता की  
आखिरी सांस तक ... तलाश में...

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शुक्रवार, अक्टूबर 03, 2014

*लाडली लक्ष्मी योजना : बेटियों के प्रति सामाजिक सोच एवं विचारों में बदलाव*

आराध्या और आर्या यानि  लाड़लियों के पिता श्री संतोष रायकवार एवम मां श्रीमति रेखा रायकवार  एक निजी हास्पिटल में कंपाऊंडर है जबकि मां रेखा नर्सिंग प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी हैं.  कर रहीं हैं . जबलपुर के गेट नम्बर 04 के पास वाली घनी बस्ती में रहने वाली मां रेखा उन लाखों माताओं के लिये आइकान क्यों न  हो .. जो भ्रूण के लिंग का पता लगाने के प्रयास में सक्रीय  हैं.
 आपको ये कहानी उन सबके लिए प्रेरणा दायक है बेटे के लिए बेटियों को कोख में निशाना साध के मारने का अपराध बेहद शातिर तरीके से करतें हैं . अथवा जो सामर्थ्य वान होकर भी बेटी का जन्म बर्दाश्त नहीं कर पाते हों. संतोष की कमाई 8000 /- प्रतिमाह से अधिक नहीं है. उस पर भी ज़िम्मेदारियां हैं.. दो छोटी बहनों की शादी करनी है. इन दो बेटियों को पढ़ाना है..
आराध्या और आर्या के  माता-पिता सामान्य रूप से शिक्षित हैं आय भी कम है पर समझदार है वो उन सब पढ़े लिखे मां-बाप से भी जो जन्म के पहले अथवा जन्म के बाद मार देते है . बाल विकास परियोजना जबलपुर क्र. एक के मदन महल गेट न. 4 इलाके के श्रीमति रेखा-संतोष रायकवार ने तीन साल पहले अपनी जुड़वां बेटियों के बाद आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की सलाह पर  परिवार कल्याण कार्यक्रम अपनाने का मन बनाया और अपनी जुड़वां बेटियों के जन्म के तुरंत बाद नसबंदी आपरेशन कराया भी.  
रेखा ने बताया- “दुनिया जिस तेजी से बदल रही है उसी तेजी से सोच भी बदलनी चाहिये. जब आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बहन जी ने समझाया कि बच्चों में फर्क नहीं करना चाहिए बेटा-बेटी सब सामान है . बस फिर क्या था हमने अपनी जुड़वां बेटियों आराध्या और आर्या के अच्छे कल के लिए परिवार कल्याण कार्यक्रम अपनाने का मन बनाया और बेटियों के जन्म के तुरंत बाद नसबंदी आपरेशन करा भी लिया”
 संतोष कहते हैं -  आज कन्या भोजन में आराध्या और आर्या ने अपने मनमोहक अंदाज़ में सबको खूब लुभाया. आराध्या बातूनी है .. उससे उलट आर्या शांत एवं अंतर्मुखी . दौनों बेटियों को लाडली लक्ष्मी योजना का प्राप्त है.  बेटियां घर की शान हैं. इनकी अनुपस्थिति में घर सूना सूना लगता है. निम्न आय वर्ग परिवार की इन बेटियों के माता पिता ने लाड़लियों के जन्म के बाद पुत्र की ज़रूरत न होने का ऐलान कर सबको चकित कर दिया.  

लाडली लक्ष्मी योजना के उद्देश्य में बेटियों के प्रति  सामाजिक सोच एवं विचारों में आ रहे बदलाव का सबसे सटीक उदाहरण है ये कहानी..  

रविवार, सितंबर 28, 2014

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा रोकने हुआ सीधा संवाद

संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर, आई.जी.
महिला सेल श्रीमति प्रग्यारिचा श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में महिला सशक्तिकरण
विभाग एवम पुलिस विभाग के संयुक्त तत्वावधान में
सीधा :संवाद
कार्यक्रम का आयोजन किया गया . दो सोपान में आयोजित  इस कार्यक्रम में बोलते हुए संभागीय आयुक्त
श्री  दीपक खांडेकर ने कहा
–“ दिन प्रतिदिन
विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं कीभागीदारी बढ़ रही है ।  ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि जहां पर
महिलाएं जा रही हैं  काम कर रही हैं
, वे
स्थल चाहे शासकीय हों अथवा अशासकीय हों या निजी हों
, कार्य करने की दृष्टि से
पूरी तरह सुरक्षित हों
,जिससे महिलाएं बिना किसी झिझक के कार्य कर सकें या कार्य करवा सकें । उनमें
असुरक्षा की भावना नरहे ।  किसी भी प्रकार
से उनका लैंगिक उत्पीड़न न हो । महिलाओं के कार्य करने के स्थल सुरक्षित
औरसुविधाजनक हो । यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो समानता की बात करना बेमानी होगी
।  देश की संसद ने इसके लिए वर्ष 2013 में
कार्य स्थल पर सुरक्षा को लेकर लैंगिक उत्पीड़न निवारण
, प्रतिषेध
एवं प्रतितोषण
,
अधिनियम बनाया है । इस अधिनियम में महिलाओं की सुरक्षा के
संबंध में विभिन्न प्रावधान किए गए हैं।
कार्यालय या किसी भी कार्य स्थल पर कार्यालय या संस्था प्रमुख की जवाबदेही
होगी कि कार्य स्थल परसुरक्षित कार्य का वातावरण उपलब्ध करायें । कार्य स्थल के
लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाया जाये । अपने कार्यालय में एक समिति गठित करें जो
इस प्रकार के मामलों की मानीटरिंग करे और कार्यवाही करे। 
कार्यशाला में पुलिस महानिरीक्षक डी. श्रीनिवास राव ने कहा
कि कार्य स्थल पर महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न रोकने के लिए बनाये गये अधिनियम में जो
प्रावधान किए गए हैं उनका सभी संभागीयएवं जिलों के कार्यालयों में पालन हो ।
  महिलाओं के लिए कार्य स्थल पर एक सुरक्षित
वातावरण दिया जाए ।
  जिससे वे गरिमा और
सम्मान के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें ।
  उनके अंदर कभी भीअसुरक्षा की भावना न आए । यदि
कोई कर्मचारी या सहकर्मी प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसके विरूद्ध सख्त
कार्यवाही हो ।
पुलिस महानिरीक्षक (महिला अपराध) श्रीमती प्रज्ञा ऋचा
श्रीवास्तव ने कहा
–“ समाज की 50% प्रतिशत आबादी महिलाओं की है ।
इस आधी आबादी को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराना होगा । सुरक्षित वातावरण
में ही समाज के निर्माण में यह अपना योगदान दे पायेगी । यदि हम वास्तव में चाहते
हैंकि महिलाएं आगे आयें तो उन्हें कार्य स्थल पर बेहतर वातावरण मुहैया कराना होगा ।
कार्यशाला में अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया ।
लैंगिक उत्पीड़न में शारीरिक सम्पर्क, लैंगिक
स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध
,
लैंगिक  टिप्पणी करना, अश्लील साहित्य दिखाना, लैंगिक
प्रकृति का कोई अन्य निंदनीय
,
शारीरिक,
शाब्दिक या गैरशाब्दिक आचरण करना शामिल है ।  इसी प्रकार कार्य स्थल की व्याख्या इस प्रकार बताई गई ऐसा कोई विभागसंगठन उपक्रमस्थापन,उद्यमसंस्थाकार्यालय,
शाखा या यूनिटगैर सरकारी संगठनकोई प्राइवेट सेक्टरसोसाइटीन्यासअस्पतालप्रशिक्षण केंद्रकोई खेलकूद संस्थान कोई निवास गृह या कोईअन्य गृह । नियोजन से आशय है उसके उपक्रम के दौरान कर्मचारी द्वारा भ्रमण किया गया कोई स्थान एवंउपलब्ध कराया गया परिवहन भी है ।
              कार्यशाला के द्वितीय सोपान में टाक शो का समावेश बेहद प्रभावी रहा जिसमें श्री अमृतलाल वेगड, श्री रवींद्र बाजपेई, महिला मुद्दों पर विशेषरूप से आदिवासी दलित महिलाओं के लिये कार्य करने वाली  सामाजिक कार्यकर्ता दया मां (हर्रई) , श्री मनीष दत्त, श्रीमति उपमा राय, फ़िलम अभिनेता श्री आशुतोष राणा, मनोवैज्ञानिक श्रीमती जैन (सागर), अपराध शास्त्र विशेषज्ञ राजू टंडनस्त्री रोग विशेषज्ञ डा.रूपलेखा चौहान ने तीन पीढियों से सीधा संवाद किया. युवा, प्रौढ़, वयोवृद्ध जनों से हुई बातचीत में अंतत: एक सारभूत तत्व सामने आया कि "महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते जा रहे संत्राष का मूल आधार समकालीन  सामजिक परिस्थितियां हैं. ज़रूरत है आत्मअंवेषण की"
  सिने कलाकर आशुतोष राणा ने अपने वक्तव्य एवम पूछे गये सवालों के ज़वाब आद्यात्मिक आधार पर दिये, जबकि अमृतलाल वेगड़ ने नारी के सशक्त स्वरूप की व्याख्या करते हुए रोचक शैली में कहा कि- "समकालीन परिस्थियां तुरंत वैचारिक रूप से संवेदित  होने एवं आत्मचिंतन करने के लिये प्रेरित कर रहीं हैं.. "
   वरिष्ट पत्रकार श्री रवींद्र वाजपेई ने सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण से महिलाओं के विरुद्ध हो रही हिंसा लैंगिक अपराधों को रोकने का कारगर एवं प्रभावी तरीक़ा निरूपित किया. 
   दया मां ने महिलाओं को उनके अधिकारों मौज़ूदा क़ानूनों की जानकारी मुहैया कराने पर बल दिया. 
डा. रूपलेखा चौहान ने कहा कि- "सामाजिक सोच में परिवर्तन लाए बिना न तो भ्रूण हत्याएं रोकी जा सकेंगी और न ही महिलाओं के खिलाफ़ होती घटनाओं को रोका जा सकता है"  

     एड. मनीष दत्त ने मौज़ूदा कानूनों का ज़िक्र करते हुए महिलाओं को स्वयं तत्परता के लिये प्रेरित किया.   


       इस अवसर पर श्री मनु श्रीवास्तव, सी एम डी विद्युत-वितरण कम्पनी,  पुलिस महक़मे के अधिकारी गण,  संयुक्त-संचालक महिला बाल विकास श्री हरिकृष्ण शर्मा, संभागीय उपसंचालक महिला सशक्तिकरण  श्रीमति शालिनी तिवारी सहित  जिला महिला सशक्तिकरण अधिकारी, संरक्षण अधिकारीयों एवं  संभाग के विभिन्न जिलों से आए स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि , विभिन्न विभागों के अधिकारीगण, महिलाओं के लिये कार्य करने वाले विचारक एवं एक्टिविष्ट, मीडिया से जुड़े प्रतिनिधि, किशोर बालक बालिकाएं,  वयो वृद्ध जन विषेश रूप से आमंत्रित थे
_________________________
 विषय से भटके पेनलिस्ट राणा जबकि दादा अमृतलाल बेगड़  रवींद्र बाजपेई, उपमा राय,राय ने तथ्यात्मक जानकारी देकर प्रश्नों के सटीक उत्तर दिये  

         संगोष्ठी में आशुतोष राणा विषय से भटक कर कराधान पर बोल पड़े जबकि बेगड़ जी, रवींद्र बाजपेई, उपमा राय जी ने जितना भी कहा अत्यंत प्रबावी रहा . प्रश्नकर्ताओं के सवाल आक्रामक थे ऐसा लगा कि उनमें परिवेश को आंकने में तथा सामाजिक मुद्दों पर व्यवहारिक अध्ययन कमज़ोर या सिर आंकड़ों पर आश्रित था. 
प्रख्यात चिकित्सक डा.रूपलेखा चौहान, पी एन डी टी एक्ट के उल्लंघन में डाक्टरों की मिलीभगत  के सवाल पर चिकित्सक समुदाय को बचातीं नज़र आईं.   

_________________________


चित्र वीथी
प्रथम सोपान 

संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर जी

कार्यक्रम संचालन करते हुए राकेश राव

प्रतिभागी 

प्रतिभागी 


शुक्रवार, सितंबर 26, 2014

आभार डिंडोरी

डिंडोरी वासियों का विनम्र आभार जिनके सहयोग से दो वर्ष से अधिक समय बाल विकास परियोजना अधिकारी डिंडोरी के पद पर सफलता पूर्वक कार्य कर सका
आभार उन सबका भी जिनने मुझे मार्गदर्शन दिया
उन सबका भी आभार जो मेरे काम में बाधा पैदा करते रहे और मैं नए नए निर्बाध रास्ते खोजता रहा रास्ते मिले भी और मुझे रास्ते खोजने का तरीका भी मिला । इस कवायद में मेरे कार्य कौशल में इजाफा ही हुआ है
दोस्तों आपका आभार जो मुझसे बायस थे पर अब किसी भी कारण से स्तब्ध हैं शायद अब समझ गए होगे कि सूचनाओं के आधार पर राय कायम करना मूर्खता होती है ।
उन व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक तौर पर चुगलखोरों का विशेष का आभार जो आदतन निंदा कर मेरे सचेतक बने तथा एक्सपोज़ हुए बड़ी आसानी से । ऐसे आस्तीन वाले सहयोगियों को विश्वास करना होगा कि दीवारों के कान फूटे नहीं आज भी दीवारें सुनतीं हैं सुनातीं है।
आभार उन कुछ कलमकारों के   जो ये साबित कर पाए कि भिखारी किसी भी रूप में हो भिखारी होता है ।
आभार उन मूर्खों का जो बताने में सफल हुए कि वे निरे मूर्ख हैं वरना गलत पहचान का दोष मेरे माथे होता ।
जो मित्र दफ्तर दफ्तर भिक्षा वृत्ति करने निकलते हैं उनको मेरी एक मात्र सलाह है कि ब्लैकमेलिंग और व्यवस्था सुधार में ज़मीन आसमान का फर्क है ।
उन स्नेहियों का आभार जो वास्तव में जीवनरूपी  नर्मदा की पवित्रता का अर्थ  समझते हैं तथा पवित्र हैं भी

सोमवार, सितंबर 22, 2014

सिस्टम : एक अवलोकन



सरकारी अफ़सर हो या उसकी ज़िंदगी चौबीसों-घंटे के लिये सरकारी होते हैं जो भी होता है सब कुछ सरकारी ही तो होता है. दफ़्तर का चपरासी आफ़िस से ज़्यादा घर का काम करे तो वफ़ादार , जो बाबू घर जाके चापलूसी करे पूरी निष्ठा और ईमानदारी चुगलखोरी करे वो निष्ठावान, बाकी  बाकियों कोकिसी काम के नहीं वाली श्रेणी में रखा जा सकता है..!”
ईमानदारी का दम भरने वाला साहब उसके कान में चुपके से कुछ कह देता है और वो बस हो जाता है हलाकान गिरी से न रहा गया उसने पूछा-राजेंद्र क्या बात है किस तनाव में हो भई..?
राजेंद्रका बतावैं,साहब, सोचता हूं कि बीमार हो जाऊं..!
गिरी-बीमार हों तुमाए दुश्मन तुम काए को..
राजेंद्र-अरे साहब, दुश्मन ही बीमार हो जाए ससुरा !
गिरी ने पूछा- भई, हम भी तो जानें कौन है तुम्हारा दुश्मन..?
राजेंद्र- वही, जो अब रहने दो साहब, का करोगे जानकर..
गिरी-अरे बता भी दो भाई.. हम कोई गै़र तो नहीं..
राजेंद्र-साहब, साठ मीटर पर्दे को एडजस्ट करने में कित्ती स्टेशनरी लगेगी.. गणित में कमज़ोर हूं सा..
गिरी समझ गया कि राजेंद्र को उसके बास ने घरके पर्दे बदलने का आदेश दिया है. एक दीर्घ सांस छोड़ते हुए उसने बताया-“अरे, हर सेक्शन से मांग पत्र ले ले स्टेशनरी का कमसे कम सात हज़ार का इंतज़ाम करना होगा
राजेंद्र-सा ये तो चार माह की खपत है.. बाप रे मर जाऊंगा
गिरी- लाया तो भी तो मरना है है न..?
हां साहब सच्ची बात हैराजेंद्र ने हर बाबू की तरफ़ नोटशीट बढ़ा दी की तीन दिवस में सब अपनी शाखा की स्टेशनरी मांग ले.
सब कुछ वैसे ही हुआ. सब के सब बिना कुछ बोले हज़ूर के आदेश की भाषा समझ गये थे गोया.
सबने बिना नानुकुर के स्टाक-रजिस्टर में भी दस्तखत कर दिये राजेंद्र ने वही किया जो बास ने कहा था. घर के पर्दे बदल गए. बस सब कुछ सामान्य सा हो गया

और इस तरह एक अदृश्य किंतु अति महत्वपूर्ण कार्य निष्पादित हो गया.

रविवार, सितंबर 21, 2014

हम विकास की भाषा से अनजान हैं..

          विश्व में  शांति की बहाली को लेकर समझदार लोग बेहद बेचैन हैं  कि किस प्रकार विश्व में अमन बहाल हो ? चीनी राष्ट्रपति के भारत आगमन के वक़्त तो अचानक मानों चिंतन और चर्चा को पंख लग गए . जिधर देखिये उधर चीन की विस्तारवादी नीति के कारण प्रसूते सीमाई विवाद के चलते  व्यवसायिक अंतर्संबंधों को संदर्भित करते हुए  चर्चाओं में खूब ऊर्ज़ा खर्च की जा रही है . 
 
            हम भारतीयों की एक आदत है कि हम किसी मुद्दे को या तो सहज स्वीकारते हैं या एकदम सिरे से खारिज़ कर देते हैं. वास्तव में आज़कल जो भी वैचारिक रूप से परोसा जा रहा है उसे पूरा परिपक्व तो कहा नहीं जा सकता. आप जानते ही हैं कि जिस तरह अधपका भोजन शरीर के लिये फ़ायदेमंद नहीं होता ठीक उसी तरह संदर्भ और समझ विहीन वार्ताएं मानस के लिये . तो फ़िर इतना वैचारिक समर क्यों .. ? इस बिंदु की पड़ताल से पता चला कि बहस   कराने वाला एक ऐसे बाज़ार का हिस्सा है जो सूचनाओं के आधार पर अथवा सूचनाओं (समाचारों को लेकर ) एक प्रोग्राम प्रस्तुत कर रहा होता है. उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं कि संवादों के परिणाम क्या हो सकते हैं. 
             बाज़ार का विरोध करने वाले लोग, सांस्कृतिक संरचनाओं की बखिया उधेड़ने वाले लोग, सियासत, अर्थशास्त्र, सामाजिक मुद्दों पर चिंतन हेतु आधिकारिक योग्यता रखने वाले लोग बहुतायत में उन जगहों पर काम कर रहे हैं जहां ऐसी बहसें होतीं हैं. कई बार तो वार्ताएं अखाड़ों का स्वरूप ले लेतीं हैं. 
            चलिये चीन की जीवनशैली पर विचार करें तो हम पाते हैं कि वहां विकास   हमसे बेहतर हुआ है. और जापान भी हमसे तेज़ गति से गतिमान है. जिसका श्रेय केवल वहां के लोगों में काम करने की असाधारण क्षमता को जाता है.  विकास की बोली भाषा से भी अपरिचित हैं अगर थोड़ा जानते भी हैं तो सिर्फ़ ये कि सरकार की व्यस्था क्या है.. सरकार हमारे लिये क्या करेगी , सरकार को ये करना चाहिये वो करना चाहिये वगैरा वगैरा. लेकिन हम घर का कचरा सड़क पर फ़ैंक सरकारी सफ़ाई व्यवस्था के न होते ही मीडिया के सामने रोते झीखते हैं अथवा घर बैठकर कोसतें हैं व्यवस्था को .  मीडिया जो सूचनाओं का बाज़ार है उसे अपनी शैली में सामने ले आता है. बात इस हद तक उत्तम है कि मीडिया अपना काम कर देता है पर हम .. हम तो अपनी आदत से बाज़ नहीं आते हमको सदा ही घर साफ़ रखने और सड़क गंदी करने का वंशानुगत अभ्यास है. शायद ही कुछ गांव ऐसे मिलेंगें जहां शौचालयों को स्टोर रूम की तरह स्तेमाल न किया जा रहा हो. सुधि पाठको अभी हमें विकास की भाषा समझनी है न कि समझ विहीन वार्ताओं में शरीक होना है.. चलो गांधी जयंति नज़दीक आ रही है... जुट जाएं कुछ अच्छा करने के लिये स्वच्छता को ही आत्मसात करने की कोशिश तो करें .. शायद विकास गाथा यहीं से लिख  पाएं हम...........

शुक्रवार, सितंबर 19, 2014

न्यायालय से हुए समाचार घर


मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!
आस्था की दवा गिर गई हाथ से और रिश्ते कई फ़िर उजागर हुए...!!

हमसे जो बन पड़ा वो किया था मग़र  कुछ कमी थी हमारे प्रयासों में भी
हमसे ये न हुआ, हमने वो न किया, कुछ नुस्खे लिये  न किताबों से ही
लोग समझा रहे थे हमें रोक कर , हम थे खुद के लिये खुद प्रभाकर हुए
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

चुस्कियां चाय की अब सियासत हुईं  प्याले ने आगे आके बदला समां,
चाय वाले का चिंतन गज़ब ढा गया पीने वाले यहीं और वो है कहां..?
उसने सोचा था जो सच वही हो गया, गद्य बिखरे बिखरके आखर हुए
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

हर तरफ़ देखिये नागफ़नियों के वन, गाज़रीघास की देखो भरमार है
*न्यायालय से हुए समाचार घर, ये समाचार हैं याकि व्यापार हैं....?
छिपे बहुत से हिज़ाबों ही, कुछेक ऐसे हैं जो उज़ागर हुए...!!
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!

*News Room's like Court 

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