मन
चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने देह पर हस्ताक्षर किये...!
आस्था
की दवा गिर गई हाथ से और रिश्ते कई फ़िर उजागर हुए...!!
हमसे
जो बन पड़ा वो किया था मग़र कुछ कमी थी
हमारे प्रयासों में भी
हमसे
ये न हुआ, हमने वो न किया, कुछ नुस्खे लिये न किताबों से ही
लोग
समझा रहे थे हमें रोक कर , हम थे खुद के लिये खुद प्रभाकर हुए
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने
देह पर हस्ताक्षर किये...!
चुस्कियां
चाय की अब सियासत हुईं प्याले ने आगे आके बदला
समां,
चाय
वाले का चिंतन गज़ब ढा गया पीने वाले यहीं और वो है कहां..?
उसने
सोचा था जो सच वही हो गया, गद्य बिखरे बिखरके आखर हुए
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने
देह पर हस्ताक्षर किये...!
हर
तरफ़ देखिये नागफ़नियों के वन, गाज़रीघास की देखो भरमार है
*न्यायालय
से हुए समाचार घर, ये समाचार हैं याकि व्यापार हैं....?
छिपे
बहुत से हिज़ाबों ही, कुछेक ऐसे हैं जो उज़ागर हुए...!!
मन चिकित्सक बना देखता ही रहा, दर्द ने
देह पर हस्ताक्षर किये...!
*News Room's like Court