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रविवार, जुलाई 13, 2014

मुदिता का अर्थ


मित्रो दुनियां में केवल मुदिता शेष होगी.. मुदिता का अर्थ प्रफ़ुल्लता के साथ जीवन जीनाही तो है.. इस प्रफ़ुल्लता का अर्थ सदा ही रचनात्मकता की दिशा में उठता क़दम ही है. यही प्रफ़ुल्लता विश्व का कल्याण करने के लिये "महत्वपूर्ण-टूल" है.  जो सांस्कृतिक रूप से पुष्टिकृत है. अर्थात इसे केवल दार्शिनिकों ने पुष्टिकृत किया हो ऐसा क़दापि नहीं हैं.आइये इसे अधिक विश्लेशित करें.. 
  • प्रफ़ुल्लता कैसे लाएं जीवन में :- जीवन में प्रफ़ुल्लता का प्रवेश तब होता है जब हम आप निस्पृह होकर रहें. अन्य किसी के जीवन से स्पर्द्धा, तुलना, एवम गुण-अवगुण की समीक्षा का सीधा अर्थ है कि हम अपने मानस में "कुंठा" का बीजारोपण कर रहें हैं. जब हमारे मानसिक क्षेत्रफ़ल में कुंठा का विस्तार होता है तो बेशक अन्य किसी भाव के लिये स्थान शेष क़दापि मिलना असंभव है. अत: प्रफ़ुल्लता के लिये मानस-स्थल सदा खाली रखें और दुनियां को देखने का नज़रिया बदलें. 
  •  प्रफ़ुल्लता के लिये सकारात्मक सोच को मानस में जगह दें :- अब आप कहेंगे कि मानस को रिक्त रखना हैं तो सकारात्मक सोच भी मानस में न रखी जाए.. न ऐसा नहीं हैं.. सकारात्मक सोच तरल तत्व सी होती है.. उसके कण कण में प्रफ़ुल्लता का संविलियन तुरंत संभव है. अगर आप कुंठित हैं तो प्रफ़ुल्ल रह ही न पाएंगें. 
  •  प्रफ़ुल्लता मैत्री-भाव का आधार है :- कुंठा कभी भी मैत्रीभाव को स्थान नहीं दे पाती, जबकि प्रफ़ुल्लता सदा मैत्रीभाव को मज़बूती देती है साथ ही मैत्री-भाव को आधार प्रदान करती है.
  •  प्रफ़ुल्लता से सृजन को बल मिलता है :- प्रफ़ुल्ल व्यक्ति सदा सृजन करता है. कुंठित व्यक्ति कभी सृजक हो ही नहीं सकता .
  • प्रफ़ुल्लता से निर्माण तेज़ी से होता है  :- प्रफ़ुल्ल व्यक्ति एवं समुदाय ने सदा ही श्रॆष्ठतम निर्माण किये हैं. भौतिक संरचनाओं में राम-सेतु, केदारनाथ, ताज़महल, के अलावा अभौतिक सामाजिक व्यवस्थाएं.. धर्म, सांस्कृतिक व्यवस्थाएं.. वेद, प्रजातंत्र.. यानी मूर्त अमूर्त... सब स्थाई सृजन सा होता है. 
                       प्रफ़ुल्लता की आभा आपके चेहरे से झलके शुभकामनाओं के साथ.. 
मित्रो मेरा ब्लाग "मिसफ़िटपेज व्यू चार्ट 150062 पृष्ठदृश्य -एवं 984 पोस्ट के साथ आपके स्नेह से लगातार आगे आ रहा है... आभार  


    गुरुवार, जुलाई 10, 2014

    तब हर तरह से बोलेगा.. तुम्हारी हर पर्त आसानी से खोलेगा..!!


    जो बोल रहा है उसे बोलने दो  ..
    खुली अधखुली गठाने खोलने दो
    सुनो खामोश होकर एक धैर्य से
    उसे खामोश मत रहने दो
    वरना एक दिन उसकी खामोशियां
     उसके अंतस में हौले हौले  गर्म होंगी..!
    फ़िर खौलेंगी... और फ़िर बोलेंगी.......!!
    कुछ ऐसा कि तुम कुछ बोल न पाओगे..
    खामोशी का अनुनाद... झेल न पाओगे
     अपने खेल खेल न पाओगे..
    वो मौन न रहे ध्यान रखो..
    तब तुम पत्थर से रेत होकर
    यक़ीनन बिखर जाओगे...!!
    सच यही है जब वो बोलेगा
    तब हर तरह से बोलेगा..
    तुम्हारी हर पर्त आसानी से खोलेगा..!!

    बुधवार, जुलाई 02, 2014

    "बावरे-फकीरा से संगृहीत 25.000/- रूपए की राशि मैजिक-ट्रेन"लाइफ लाइन एक्सप्रेस'' के लिए सौंपी गयी "




    शिर्डी साई को भगवान मानो या न मानो इस पर परम पूज्य शंकराचार्य जी की टिप्पणी से मुझे कोई लेना देना नहीं. पर एक अदभुत घटना घटी मेरे जीवन में मेरे गुरु-भक्ति गीत का गायन आभास से कराया श्रेयस जोशी ने उनकी संगीत रचना की. किसी भी कलाकार ने कोई धन राशि बतौर पारिश्रमिक हमसे न ली . बस पोलियो ग्रस्त बच्चों की मदद के वास्ते कुछ करने का ज़ुनून था. और  सव्यसाची-कला-ग्रुप जबलपुर द्वारा दिनांक 14 मार्च 2009 को स्थानीय मानस भवन जबलपुर में आयोजित पोलियो-ग्रस्त बच्चों की मदद हेतु साईं भक्ति एलबम बावरे-फकीरा  का लोकार्पण किया गया था . मेरे एक मित्र राजेश पाठक प्रवीण ने कहा था- बस आधा मानस भवन भर गया तो जानो अपना कार्यक्रम सफ़ल. पर भीड़ ने रुकने का नाम न लिया मानस भवन खचाखच था देखते ही देखते . शो शुरु से अंत तक एक सा रहा. स्व. ईश्वरदास रोहाणी  दादा , श्री जितेंद्र जामदार, सहित शहर के गणमान्य से लेकर सामान्य व्यक्ति तक आए. भगवान बाबा की कृपा स्व.  मां सव्यसाची के आशीर्वाद से पहले ही दिन पच्चीस हज़ार के एलबम बिक गए. प्राप्त  राशी कम न थी तब. रेडक्रास सोसायटी जबलपुर  को लाईफ़-लाईन एक्सप्रेस के प्रबंधन के लिये ज़रूरत थी. सेवाव्रती लोगों की ज़रूरत भी थी. अगले ही दिन राशि तत्कालीन कलेक्टर जबलपुर श्री हरिरंजन राव को सौंप दी गई. सेवाभावी युवकों को पारिश्रमिक, एवम बाद में लगातार आडियो एलबम बिका जिसका उपयोग  विकलांगो की मदद के लिये सव्यसाची-कला ग्रुप ने पोलियो-ग्रस्त बच्चों की मदद के लिये किया. मुद्दा ये है कि धंधेबाज़ सब नहीं होते परम पूज्य स्वामी स्वरूपानंद जी . आज़ भी अगर एलबम बिकता है तो उसका उपयोग चैरिटी के लिये ही तो होता है. हमें आहत न करे पूज्य.. हम अकिंचन हैं पर प्रभू पर हमारी गहरी आस्था है. प्रभू का एहसास हमें पत्थर से हो जड़ से हो चेतन से हो या आभासी.. हम  जो करेंगें उसी के आदेश पर करेंगें क्योंकि सम सनातन हैं.. हम लोक सेवी हैं.. जै साई राम 

    "बावरे-फकीरा से संगृहीत 25.000/- रूपए की राशि मैजिक-ट्रेन"लाइफ लाइन एक्सप्रेस'' के लिए सौंपी गयी "
    सव्यसाची कला ग्रुप जबलपुर द्वारा बावरे फकीरा एलबम के ज़रिए एक सप्ताह से भी कम समय में जुटाई है धन राशि संस्था चाहती है कि "विश्व में जादुई रेल "कही जाने वाली
    लाइफ-लाइन-एक्सप्रेस के लिए आवश्यक आर्थिक सहायता देने हर वर्ग के नागरिक आगे आएं
    *संस्था इस हेतु संकल्पित है कि आम नागरिक के मन में इस पुनीत कार्य हेतु भागीदारी की भावना जागृत हो
    सव्यसाची-कला-ग्रुप जबलपुर द्वारा दिनांक 14 मार्च 2009 को स्थानीय मानस भवन जबलपुर में आयोजित पोलियो-ग्रस्त बच्चों की मदद हेतु साईं भक्ति एलबम बावरे-फकीरा का लोकार्पण किया गया था . जिसमें आभास जोशी एवं पोलियो-ग्रस्त गायक श्री ज़ाकिर हुसैन (वी ओ आई 02 फेम ) के अतिरिक्त स्थानीय कलाकार भी शामिल हुए थे . सव्यसाची कला ग्रुप ने एक सप्ताह से कम समय में "बावरे-फकीरा टीम" के संकल्प को पूर्ण करने के उद्येश्य से एलबम के प्रथम संस्करण के माध्यम से रूपए 25,000=00 की धन राशि संगृहीत की है माह अप्रैल 2009 में जबलपुर में आने वाली मैजिक-ट्रेन "लाइफ लाइन एक्सप्रेस'' के लिए 25.000/- रूपए की धनराशि श्री हरि रंजन राव कलेक्टर जबलपुर को भेंट की गयी.
    इस अवसर पर प्रशासन की ओर से महेंद्र द्विवेदी जिला कार्यक्रम अधिकारी महिला बाल विकास तथा संस्था की ओर से श्री के जी बिल्लोरे,के के बैनर्जी,मनोज सक्सेना,पप्पू शर्मा,डाक्टर विजय तिवारी "किसलय",कर सलाहकार श्री दिलीप नेमा, राजेश पाठक "प्रवीण",श्री निर्मल यादव, श्री नितिन अग्रवाल सहित संस्था के संस्थापक-अध्यक्ष श्री एस के बिल्लोरे सचिव श्री सुनील पारे उपस्थित रहे. सव्यसाची कला ग्रुप के संस्थापक अध्यक्ष श्री एस के बिल्लोरे ने बताया कि :"इस एलबम का निर्माण स्वर्गीया प्रमिला देवी की प्रेरणा से युवा संगीतकार श्रेयस जोशी,गायक आभास जोशी,संदीपा पारे(भोपाल) एवं गीतकार गिरीश बिल्लोरे मुकुल द्वारा किया गया था सभी ने नि:शुल्क उक्त कार्य को पूरे मनोयोग से पूर्ण किया है सव्यसाची-कला-ग्रुप जबलपुर इन कला साधकों का हार्दिक आभार मानते हुए नगर के उन सभी सम्मानित जनों का आभार मानता है जिनके कारण लक्ष्य की पूर्ती सहजता से हो सकी है |"
    जिलाध्यक्ष श्री हरिरंजन राव ने डोनेशन स्वीकारते हुए कहा :-"लाइफ लाइन एक्सप्रेस के लिए यह पहला डोनेशन है जो सराहनीय है "
     एलबम प्राप्ति हेतु संपर्क कीजिये
    सव्यसाची-कला-ग्रुप
    969/A,Gate No.04,Sneh Nagar Road, Jabalpur (M.P.)
    Phone: 09826143980 Email: girishbillore@gmail.com
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    सुनील पारे
    सचिव ,सव्यसाची कला ग्रुप जबलपुर

    मंगलवार, जुलाई 01, 2014

    "माई री मैं कासे कहूं पीर .... !"


    विधवा जीवन का सबसे दु:खद पहलू है कि उसे सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकारों से आज़ भी  समाज ने दूर रखा है. उनको उनके सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकार देने की बात कोई भी नहीं करता. जो सबसे दु:खद पहलू है. शादी विवाह की रस्मों में विधवाओं को मंडप से बाहर रखने का कार्य न केवल गलत है वरन मानवाधिकारों का हनन भी है.              आपने अक्सर देखा होगा ... घरों में होने वाले मांगलिक कार्यों में विधवा स्त्री के प्रति उपेक्षा का भाव . नारी के खिलाफ़ सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाने का साहस करना ही होगा . किसी धर्म ग्रंथ में पति विहीन नारी को मांगलिक कार्यों में प्रमुख भूमिका से हटाने अथवा दूर रखने के अनुदेश नहीं हैं. जहां तक हिंदू धर्म का सवाल है उसमें ऐसा कोई अनुदेश नहीं पाया जाता न तो विधवा का विवाह शास्त्रों के अनुदेशों के विरुद्ध है.. न ही उसको अधिकारों से वंचित रखना किसी शास्त्र में निर्देशित किया गया है. क्या विधवा विवाह शास्त्र विरुद्ध है? इस विषय पर गायत्री उपासकों की वेबसाइट http://literature.awgp.org/hindibook/yug-nirman/SocietyDevelopment/KyaVidhvaVivahShastraViruddhHai.1 पर स्पष्ट लिखा है कि यह अनाधिकृत है.

    विधवाओं के लिये वर्जित क्या है

    1. श्रृंगार :- विधवा स्त्री को स्वेत वस्त्र पहनने की अनुमति है. उसे श्रृंगार की अनुमति कदापि नहीं दी गई है. आधार में ये तथ्य है कि रंगीन वस्त्र उसे उत्तेजक बना सकते हैं. जो पारिवारिक सम्मान को क्षति पहुंचाने का कारण हो सकता है.
    2. पुनर्विवाह  :- ईश्वर चंद्र विद्यासागर के अथक प्रयासों से पुनर्विवाह को अब अंगीकार किया जाने लगा है. 
    3. पारिवारिक सांस्कृतिक आयोजनों में प्रमुख भागीदारी :- पुत्रों, पुत्रीयों, अथवा अन्य रक्त सम्बंधियों के विवाह, चौक, आदि में विधवाओं को मुख्य समारोह से विलग रखा जाता है. यदि कोई विधवा स्त्री अपनी संतान का विवाह करवा रही है तो उसका धन शुद्ध माना जाता है जबकि उसका स्वयं मंडप में प्रवेश वर्जित है. यहां तक कि वर मां/ वधू मां का दायित्व परिवार के किसी अन्य जोड़े को दिया जाता जै. 
    4. ग्रह प्रवेश में किये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान में मान्यता का अभाव  :-  आज़ भी मौज़ूद  है यह कुरीति .भले ही विधवा ने स्वयं अर्जित / पति की विरासत से प्राप्त धन से अचल सम्पदा अर्जित की हो 
    5. मनोरंजक/हास-परिहास जैसे पारिवारिक आयोजन  :- ऐसे आयोजन में भी विधवाओं को परे रखने की व्यवस्था समाज में है. 

    अगर शास्त्रों द्वारा विधवाओं को सामान्य जीवन से प्रथक रखने की कोशिश के निर्देश दिये भी जाते तो ऐसे निर्देशों को सभ्य-समाज को बदल देना चाहिये.  सनातन धर्म अन्य धर्मों की तरह कठोर नही है. धर्म देख काल परिस्थिति अनुसार  विकल्पों के प्रयोग की अनुमति देता है. किंतु ब्राम्हणवादी व्यबस्था के चलते कुछ मुद्दे अभी भी यथावत हैं. नारी के पति विहीन होने पर उसका श्रृंगार अधिकार छिनना, उसकी चूड़ियां सार्वजनिक तौर पर तोड़ना एक लज्जित कर देने वाली कुरीति है. पति के शोक में डूबी नारी को क़ानून के भय से सती भले ही न बनाता हो ये समाज पर नित अग्नि-पथ पर चलने मज़बूर करता है. उसके अधिकार छीन कर जब मेरी दादी मां के सर से बाल मूढ़ने नाई आता था तब मै बहुत कम उम्र का था पर समझ विकसित होते ही  जब मुझे इस बात का एहसास हुआ कि सत्तर वर्ष की उम्र में भी उनको विधवा होने का पाठ पढ़ाया जा रहा है तो मैं बेहद दु:खी हुआ.
        तेज़ी से सामाजिक परिवर्तन हो रहा है. किंतु समाज ने अपनी विधवा मां, बहन, बेटी, भाभी, बहू किसी के अधिकार छिनते देख एक शब्द भी नहीं कहा. किसी में भी हिम्मत नहीं है. किस बात का भय है.   हम सनातन धर्म के अनुयायी हैं जो लचीला है..  कर्मकांडी अथवा  पंडे इसे रोजी रोटी कमाने लायक ही जानते हैं. पंडे क्या हमें धर्म के मूल तत्व आ अर्थ बता सकते हैं. वे सिखाएंगे भी क्या..उनका काम सीमित है  हमें सामाजिक बदलाव लाना है. ऐसा सामाजिक बदलाव जिससे किसी प्राणी मात्र को पीडा से मुक्त रखा जा सके.  शंकराचार्यों को ऐसे  विषय पर समाज को मार्गदर्शन देने की ज़रूरत है. न कि विवादित बयानों की .
    सुधि पाठको पूरी ईमानदारी से विचारमग्न हो के सोचिये कि आप मेरे इस आह्वान पर क्या सोचते हैं.. नारी के तिरस्कार वाली क्रियाओं से समाज के विमुक्त करने विधवाओं के प्रति सकारात्मक दायित्व निर्वहन से क्या धरती धरती न रहेगी. ... ?          


    सोमवार, जून 30, 2014

    शास्त्री जी नाराज़गी छोडिये : केवल भाई क्षमा मांगिये तकनीकी समस्या बताते हुए ..


    "आज से ब्लॉगिंग बन्द"   का उदघोष कर डॉ. रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक जी ने एक बार फ़िर ब्लाग जगत में खलबली मचा दी . मसला मेरी दृष्टि में एक तरह की मिसअंडर स्टैंडिंग है .. www.blogsetu.com को लेकर. जहां तक मेरा मानना है शास्त्री जी ने हिंदी ब्लागिंग को वो सब दिया जो ज़रूरी था उनकी वज़ह से ही हिंदी ब्लागिंग में कुछ नए नवेले प्रयोग हुए.. खटीमा सम्मेलन इस बात का सर्वोच्च उदाहरण है. जिसमें वेबकास्टिंग को स्थान मिला.. और आगे गूगल को जिसे हैंगआउट के रूप में सुविधा के रूप में सबको देना ही पड़ा .  
     जहां तक ब्लाग सेतु  का सवाल है उसके निर्माता भाई केवलराम की जीवटता को नकारना बेमानी होगा. 
     वैसे इन दौनों महारथियों के बारे में कुछ भी कहना सूरज भैया के सामने दीपक रखने वाला काम ही होगा. दौनो महानुभाव योग्य ही नहीं सुयोग्य और क्षमतावान हैं.  
          ब्लाग सेतु  के पूर्व से चर्चामंच पाठकों तक नि:स्वार्थ लिंक उपलब्ध कराने का काम कर रहा है. किंतु अचानक ब्लाग जगत में हुए ऐसे विवाद से मन पीढ़ा से भर आया है. अच्छा होता कि बात केवल शास्त्री जी एवम केवल भाई के बीच निपट सुलझ जाती पर अब आगे बढ़ ही चुकी है तब तथ्य मुझे  गहराई तक जाना ज़रूरी लगा. पतासाज़ी से जाना कि नवीन वेबसाइट होने से भाई केवलराम उस पर स्लो चलने के दबाव से बचना चाहते थे.. और उन्हौने सम्भवत: चर्चामंच को प्रयोग के तौर पर हटाया था.. इस वास्तविकता से  उनको शास्त्री से दूरभाष पर चर्चा कर लेना था. या उनको इस प्रयोग कि जानकारी दे देनी थी ताकि वे केवलभाई के इस प्रयोग को अन्यथा न लेते .. शास्त्री जी आपसे भी बिना लाग लपेट के कहना चाहता हूं कि केवल भाई का कार्य आपके विरुद्ध न होकर एक प्रयोग मात्र था यही सच है. 
        शास्त्री जी नाराज़गी छोड़िये और केवलराम जी छोटे भाई के रूप में क्षमा मागिंये शास्त्री जी से कि तकनीकी समस्या की पड़ताल  के लिये ऐसा प्रयोग किया.. था... !! 
    "क्षमा बड़न को चाहिये छोटन के उत्पात "     


    शुक्रवार, जून 27, 2014

    शुभ यात्रा की विश पूरी करें : हिदायतों का ध्यान रखें

    यह आलेख फ़ेसबुक के GreenYatra से सामुदायिक समझ को बढ़ाने के लिये प्रस्तुत किया जा रहा है 
    आजकल नए बने ताज एक्सप्रेस वे पर रोजाना गाड़ियों के टायर फटने के मामले सामने आ रहे हैं जिनमें रोजाना कई लोगों की जानें जा रही हैं.एक दिन बैठे बैठे मन में प्रश्न उठा कि आखिर देश की सबसे आधुनिक सड़क पर ही सबसे ज्यादा हादसे क्यूँ हो रहे हैं? और हादसों का तरीका भी केवल एक ही वो भी टायर फटना ही मात्र, ऐसा कोन सी कीलें बिछा दीं सड़क पर हाईवे बनाने वालों ने? दिमाग ठहरा खुराफाती सो सोचा आज इसी बात का पता किया जाये. तो टीम जुट गई इसका पता लगाने में. अब सुनिए हमारे प्रयोग के बारे में. मेरे पास तो इको फ्रेंडली हीरो जेट है सो इतनी हाई-फाई गाडी को तो एक्सप्रेस वे अथोरिटी इजाजत देती नहीं सो हमारे एडमिन पेनल की दूसरी कुराफाती हस्ती को मैंने बुला लिया उनके पास BMW X1 SUV है (ध्यान रहे असली मुद्दा टायर फटना है) सबसे पहले हमनें ठन्डे टायरों का प्रेशर चेक किया और उसको अन्तराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ठीक किया जो कि 25 PSI है. (सभी विकसित देशों की कारों में यही हवा का दबाव रखा जाता है जबकि हमारे देश में लोग इसके प्रति जागरूक ही नहीं हैं या फिर ईंधन बचाने के लिए जरुरत से ज्यादा हवा टायर में भरवा लेते हैं जो की 35 से 45 PSI आम बात है).
    खैर अब आगे चलते हैं.
    इसके बाद ताज एक्सप्रेस वे पर हम नोएडा की तरफ से चढ़ गए और गाडी दोडा दी. गाडी की स्पीड हमनें 150 - 180 KM /H रखी. इस रफ़्तार पर गाडी को पोने दो घंटे दोड़ाने के बाद हम आगरा के पास पहुँच गए थे. आगरा से पहले ही रूककर हमने दोबारा टायर प्रेशर चेक किया तो यह चोंकाने वाला था. अब टायर प्रेशर था 52 PSI .अब प्रश्न उठता है की आखिर टायर प्रेशर इतना बढ़ा कैसे सो उसके लिए हमने थर्मोमीटर को टायर पर लगाया तो टायर का तापमान था 92 .5 डिग्री सेल्सियस. सारा राज अब खुल चुका था, कि टायरों के सड़क पर घर्षण से तथा ब्रेकों की रगड़ से पैदा हुई गर्मी से टायर के अन्दर की हवा फ़ैल गई जिससे टायर के अन्दर हवा का दबाव इतना अधिक बढ़ गया. चूँकि हमारे टायरों में हवा पहले ही अंतरिष्ट्रीय मानकों के अनुरूप थी सो वो फटने से बच गए. लेकिन जिन टायरों में हवा का दबाव पहले से ही अधिक (35 -45 PSI) होता है या जिन टायरों में कट लगे होते हैं उनके फटने की संभावना अत्यधिक होती है.
    अत : ताज एक्सप्रेस वे पर जाने से पहले अपने टायरों का दबाव सही कर लें और सुरक्षित सफ़र का आनंद लें. मेरी एक्सप्रेस वे अथोरिटी से भी ये विनती है के वो भी वाहन चालकों को जागरूक करें ताकि यह सफ़र अंतिम सफ़र न बने.
    आप सभी फेसबुक मित्रों से अनुरोध है कि इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें. चूँकि ऐसा करके आपने यदि एक जान भी बचा ली तो आपका मनुष्य जन्म धन्य होगा |


    गुरुवार, जून 26, 2014

    मानव तस्करी की मंडी में मासूम :संजय स्वदेश

    साभार :- चित्र  पंजाब केसरी से साभार
    बीते दिनों केरल पुलिस के 16 अधिकारियों ने झारखंड के 123 बच्चों को केरल से जसीडीह स्टेशन पहुंचाया गया। ये बच्चे मानव तस्करी के जरिए केरल के अनाथालय में पहुंचाया गया था। पिछले वर्ष भी इसी तरह थोक में बच्चों की मानव तस्करी की एक और मामले का पर्दाफाश हुआ था। राजस्थान के भरतपुर रेलवे स्टेशन से 184 बाल मजदूरों को मुक्त करा कर पटना पहुंचाया गया। आए दिन देश के हर राज्य के अखबारों में बच्चों के गायब होने की खबर किसी ने किसी पन्ने के कोने में झांकती रहती हंै। देश बड़ा है। आबादी बड़ी है। संभव हो आपके आसपास कोई ऐसा नहीं मिले, जिसके बच्चे होश संभालने से पहले ही गायब हो चुके हो। इसलिए आपको जानकार थोड़ा आश्चर्य होगा, लेकिन हकीकत यह है कि आज देशभर में करीब आठ सौ गैंग सक्रिय होकर छोटे-छोटे बच्चों को गायब कर मानव तस्करी के धंधे में लगे हैं। यह रिकार्ड सीबीआई का है। मां-बाप का जिगर का जो टुकड़ा दु:खों की हर छांव से बचता रहता है, वह इस गैंग में चंगुल में आने के बाद एक ऐसी दुनिया में गुम हो जाता है, जहां से न बाप का लाड़ रहता है और मां के ममता का आंचल। किसी के अंग को निकाल कर दूसरे में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है, तो किसी को देह के धंधे में झोंक दिया जाता है, तो हजारों मजदूरी की भेंट चढ़ जाते हैं। पीड़ित में ज्यादातर दलित समाज से संबंद्ध हैं। 
    गुमशुदा होने के समान्य आंकड़ों के अनुसार देश के औसतन हर घंटे में एक बच्चा गायब होता है। मतलब देशभर में चौबीस घंटे में कुल 24 लोगों के जिगर के टुकड़ों को छिन कर जिंदगी के अंधेरे में ढकेल दिया जाता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 44,000 बच्चे हर साल लापता हो जाते हैं और उनमें से करीब 11,000 का ही पता लग पाता है। भारत में मानव तस्करी को लेकर यूएन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत मानव तस्करी का बड़ा बाजार बन चुका है और देश की राजधानी दिल्ली मानव तस्करों की पसंदीदा जगह बनती जा रही है, जहां देश भर से बच्चों और महिलाओं को लाकर ना केवल आसपास के इलाकों बल्कि विदेशों में भी भेजा जा रहा है। वर्ष 2009 से 2011 के बीच लगभग 1,77,660 बच्चे लापता हुए जिनमें से 1,22,190 बच्चों को पता चल सका, जबकि अभी भी 55 हजार से ज्यादा बच्चे लापता हैं जिसमें से 64 फीसदी यानी लगभग 35,615 नाबालिग लड़कियां हैं। वहीं इस बीच करीब 1 लाख 60 हजार महिलाएं लापता हुईं जिनमें से सिर्फ 1 लाख 3 हजार महिलाओं का ही पता चल सका।  वहीं लगभग 56 हजार महिलाएं अब तक लापता हैं। रिपोर्ट के मुताबिक साल 2011-12 में एनजीओ की मदद से 1532 बच्चों को बचाया जा सका। वर्ष 2009-2011 के बीच लापता हुए लगभग 3,094 बच्चों का अबतक कोई सुराग नहीं लग पाया है जिनमें से 1,636 लड़कियां हैं तो वहीं इस दौरान गायब हुईं लगभग 3,786 महिलाएं भी अबतक लापता हैं।
    गायब बच्चों के माता-पिता के आंखों के आंसू सूख चुके हैं। पर उनकी यादें हर दिन टिस मारती है। ऐसी बात नहीं है कि इन तरह के अपराधों के रोकथाम के लिए कानून नहीं है। कानून तो है, पर इसका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा है। यदि क्रियान्वयन भी होता है तो इसमें इतनी खामियां हैं कि मानव तस्करों के गिरोह पर मजबूती से नकेल नहीं कसा जा पता है। कई मामलों में तो देखा गया है कि ऐसे कानूनों की जानकारी थाने में तैनात पुलिसवालों को भी नहीं होती है। हालांकि गृहमंत्रालय की विभिन्न इकायों के माध्यम से करीब 225 मानव तस्कर विरोधी इकाइयां सक्रिय हैं। गृह मंत्रालय की मानव तस्करी विरोधी इकाइयों 2011 से अब तक देश भर में 4000 से अधिक बचाव अभियान चलाये और 13742 पीड़ितों को बचाया। साथ ही 7087 मानव तस्करों को गिरफ्तार कराया। जल्द ही 100 और नई ऐसी इकाइयां गठित होने वाली है। लेकिन सरकार की मानव तस्कर विरोधी गतिविधियां जिस गति से सक्रिय है, उससे कई ज्यादा तेज तस्करों का गिरोह हैं। देश और देश के बाहर दूर दराज के गरीब ग्रामीणों व आदिवासी क्षेत्र के बच्चे इसी तरह मानव तस्करी की आग में जलते जा रहे हैं। भारत ने मानव तस्करी रोकने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय संधियों को मंजूरी दी है। इनमें संयुक्त राष्ट्र ट्रांसनेशनल संगठित अपराध संधि और महिलाओं और बच्चों की तस्करी से जुडी दक्षेस संधि जैसे समझौते शामिल हैं। इसके अलावा बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय समझौता है। इसके बावजूद बांग्लादेश और नेपाल से लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर मानव तस्करी जोरों पर होती है। बांग्लादेश और नेपाल से सीमा पार मानव तस्करी में संगठित गिरोह शामिल हैं, लेकिन सफल जांच और मुकदमे के शायद ही ऐसे कोई मामले हों, जो अपराधियों के मन में भय पैदा करते हों। कई बार यह देखा गया है कि मानव तस्करी से निपटने के लिए सीमा रक्षक बलों, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जैसे आयोगों तथा राज्य की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच त्वरित समन्वय और सक्रियता की भी भारी कमी है। जब तक  तस्कर पीड़ित मासूमों को अपने परिवार का सदस्य समय कर मानव तस्करों के खिलाफ कार्य करने वाली सरकारी एजेंसियां सक्रिय होकर कार्य नहीं करेंगी, देश में इस काले अमावीय धंधे का थोक बाजार फलता फूलता रहेगा। 
    लेखक : संजय स्वदेश फ़ोन नम्बर :09691578252 

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