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शनिवार, अप्रैल 03, 2010
श्रीराम चौरे जी का निधन
मेरे नाना जी सदाचार की प्रतिमा उच्च-न्यायालय,मध्य-प्रदेश सेवा निवृत अतिरिक्त रजिस्ट्रार सत्य साई सेवा समिति के संस्थापक सदस्य, नार्मदीय-ब्राह्मण-समाज के वरिष्ठ नागरिक एवम श्री राजेन्द्र चौरे श्री विजय चौरे के पिता वयोवृद्ध श्री श्रीराम चौरे का दु:खद निधन 90 वर्ष की आयु में नागपुर में हुआ. आज इस महामना को अंतिम विदा देने प्रस्थान कर रहा हूं
गुरुवार, अप्रैल 01, 2010
शुक्रिया "नईदुनिया"जबलपुर
नारी के बारे में विमर्श किया जाना जितना सहज सरल है उतना कठिन है उसे ह्रदय से सम्मानित करना . स्त्रि विमर्श के नाम पे जो कुछ जारी है मुझे नही लगता उसमें नारी को स्थान दिलाने का भाव झलकता है बल्कि बहुधा बहस में विमर्श में नारी को आहत ही किया जाता है
धूप से बचाए जो वो छावा यही तो हैं
के गहन-विमर्श के साथ आज़ देर रात तक समदडिया-माल की विशाल छत पर अपने अपने अपने क्षेत्र की श्रेष्ट ”नायिकायें” सम्मानित की गईं

मंगलवार, मार्च 30, 2010
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
स्वर्गीय भवानी दादा का यह गीत उनके जन्म दिवस पर
पूर्णिमा जी के प्रयास से भवानी दादा की स्मृतियां
''अनुभूति पर ''
उपलब्ध है
मेरी आवाज़ में सुनिए गीत फरोश
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मैं तरह-तरह के
गीत बेचता हूँ ;
मैं क़िसिम-क़िसिम के गीत
बेचता हूँ ।
जी, माल देखिए दाम बताऊँगा,
बेकाम नहीं है, काम बताऊंगा;
कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,
कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने;
यह गीत, सख़्त सरदर्द भुलायेगा;
यह गीत पिया को पास बुलायेगा ।
जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझ को
पर पीछे-पीछे अक़्ल जगी मुझ को ;
जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान ।
जी, आप न हों सुन कर ज़्यादा हैरान ।
मैं सोच-समझकर आखिर
अपने गीत बेचता हूँ;
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
यह गीत सुबह का है, गा कर देखें,
यह गीत ग़ज़ब का है, ढा कर देखे;
यह गीत ज़रा सूने में लिखा था,
यह गीत वहाँ पूने में लिखा था ।
यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है
यह गीत बढ़ाये से बढ़ जाता है
यह गीत भूख और प्यास भगाता है
जी, यह मसान में भूख जगाता है;
यह गीत भुवाली की है हवा हुज़ूर
यह गीत तपेदिक की है दवा हुज़ूर ।
मैं सीधे-साधे और अटपटे
गीत बेचता हूँ;
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
जी, और गीत भी हैं, दिखलाता हूँ
जी, सुनना चाहें आप तो गाता हूँ ;
जी, छंद और बे-छंद पसंद करें –
जी, अमर गीत और वे जो तुरत मरें ।
ना, बुरा मानने की इसमें क्या बात,
मैं पास रखे हूँ क़लम और दावात
इनमें से भाये नहीं, नये लिख दूँ ?
इन दिनों की दुहरा है कवि-धंधा,
हैं दोनों चीज़े व्यस्त, कलम, कंधा ।
कुछ घंटे लिखने के, कुछ फेरी के
जी, दाम नहीं लूँगा इस देरी के ।
मैं नये पुराने सभी तरह के
गीत बेचता हूँ ।
जी हाँ, हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
जी गीत जनम का लिखूँ, मरन का लिखूँ;
जी, गीत जीत का लिखूँ, शरन का लिखूँ ;
यह गीत रेशमी है, यह खादी का,
यह गीत पित्त का है, यह बादी का ।
कुछ और डिजायन भी हैं, ये इल्मी –
यह लीजे चलती चीज़ नयी, फ़िल्मी ।
यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत,
यह दुकान से घर जाने का गीत,
जी नहीं दिल्लगी की इस में क्या बात
मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात ।
तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,
जी रूठ-रुठ कर मन जाते है गीत ।
जी बहुत ढेर लग गया हटाता हूँ
गाहक की मर्ज़ी – अच्छा, जाता हूँ ।
मैं बिलकुल अंतिम और दिखाता हूँ –
या भीतर जा कर पूछ आइये, आप ।
है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप
क्या करूँ मगर लाचार हार कर
गीत बेचता हँ ।
जी हाँ हुज़ूर, मैं गीत बेचता हूँ ।
अश्लीता को बढा रहा है इलैक्ट्रानिक मीडिया :लिमिटि खरे पुनर्प्रस्तुति
प्रहरी लाइव के परिकल्पनाकार कनिष्क जी ने सुझाया है ये प्लेयर देखिये और बताइये कैसा लगा
शनिवार, मार्च 27, 2010
सफ़ेद मुसली खिलाडियों के वरदान और खिलाड़ी अनजान : अलका सरवत मिश्रा
![]() |
अलका सरवत मिश्रा |
भारत में जडी-बूटियों का अनुप्रयोग औषधि के रूप में किया जाना सदियों से ज़ारी है किंतु उपेक्षा की सुईंयां अक्सर चुभा दीं जाती हैं इन कोशिशों और कोशिश में लगे लोंगों को....! फ़िर भी हौसलों के ज़खीरे लिये ये लोग अपने अपने मोर्चे पर तैनात हैं. चाहे बाबा रामदेव अथवा अलका सरवत मिश्रा ............ जो जडी-बूटियों से जीवन को बेहतर बनाने की कोशिशे जारी रखे हुये हैं अलका जी एक ऐसे विषय पर लिखतीं हैं जिसकी ज़रुरत आज हर व्यक्ति को है वे अपने सारे शोध-आलेख ब्लॉग मेरा समस्त पर पोस्ट करतीं हैं तथा आभार व्यक्त करतीं हैं हिंद युग्म वाले शैलेश भारतवासी का जिन्हौने उनको एक लोक प्रिय ब्लॉगर बनाया. इसी दौरान हमसे रहा न गया हमने ज़नाब सरवत ज़माल जी से बात चीत भी की
![]() |
सरवत ज़माल साहब |
शुक्रवार, मार्च 26, 2010
तापसी नागराज नई-दुनिया द्वारा नायिका 2010 अवार्ड हेतु नामांकित
अनिता कुमार जी को जन्म-दिवस का संगीत भरा उपहार
अनिता कुमार जी का जन्म-दिवस 18 मार्च 2010 को आया किन्तु व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण वे आन लाइन नहीं हुईं थी. फिर एम टी एन एल की ब्राड-बैंड सेवा ने उनको नेट पर आने न दिया और आज जब वे नेट पर आई तो हमने थमा दिया ये उपहार आप भी खो जायेंगे इस उपहार मंजूषा को खुलता देख मुझे यकीन है ......आपको यकीन न हो तो लगाइए एक चटका नीचे डिव-शेयर प्लेयर पर या एक क्लिक संवाद एवं विमर्श पर किन्तु एक महत्त्व पूर्ण सूचना यह देनी ज़रूरी कि अनिता जी का सबसे मनपसंद गीत फिल्म मेरे महबूब फिल्म से है जिसे यहां यू-ट्यूब पर देखा-सुना जा सकता है
आभारी हूँ :-इन डाट काम का और श्री बी एस पाबला जी के इस प्रयास का और अब आपका जो इसे सुन रहे हैं
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