नारी के बारे में विमर्श किया जाना जितना सहज सरल है उतना कठिन है उसे ह्रदय से सम्मानित करना . स्त्रि विमर्श के नाम पे जो कुछ जारी है मुझे नही लगता उसमें नारी को स्थान दिलाने का भाव झलकता है बल्कि बहुधा बहस में विमर्श में नारी को आहत ही किया जाता है
यह सत्य है आज एक ऐसा सत्य भी उज़ागर हुआ जब एक ऐसी महिला को नगर के अखबार नई-दुनिया ने नायिका-सम्मान २०१० से सम्मानित किया जिसने जीवन का विवरण सिर्फ़ संघर्ष की कलम से मानस-फ़लक दर्ज़ किया.. सीमित साधन और जीवन को जीने की सफ़लता और सुफ़लता से जीने की ललक की मूर्ति नारी के इस शक्तिरूपा स्वरूप को नई-दुनियां जबलपुर ने विशेष सम्मान देकर सभी की आंखें नम कर दीं वो हैं श्रीमति माया राय.... रामपुर निवासी माया राय, बराट रोड पर चाय की दुकान चलाती हैं। घर पर मां और छोटी बेटी साथ हैं। 17 साल पहले पति का स्वर्गवास हो जाने के बाद उनके व्यवसाय (चाय की दुकान) को खुद संभाला और अपने चार बेटियों का भरण पोषण करने लगीं। सबसे बड़ी बेटी को बीकॉम तक पढ़ाया और उसका विवाह कर दिया। उससे छोटी बेटी रोशनी को भी बीकॉम कराया और वर्तमान में वह रायपुर से सीएस की कोचिंग कर रही है। तीसरे नंबर की पुत्री का दो साल पूर्व भेड़ाघाट में पानी में डूब जाने से निधन हो गया। सबसे छोटी बेटी मोनिका अभी दसवीं में पढ़ रही है। सभी बेटियों अंग्रेजी माध्यम स्कूलों से पढ़ाई कराई। चाय की दुकान के अतिरिक्त आजीविका का कोई साधन नहीं। कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा, लेकिन एक शिक्षित व जिम्मेदार महिला का दायित्व निभाया।
के गहन-विमर्श के साथ आज़ देर रात तक समदडिया-माल की विशाल छत पर अपने अपने अपने क्षेत्र की श्रेष्ट ”नायिकायें” सम्मानित की गईं
शिक्षा-विद श्रीमति विमला मेबेन के विद्द्यार्थी आज़ विश्व के कई कोने में शहर-देश-प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं जी हां जाय-सीनियर सेकेन्ड्री स्कूल की स्थापना करने वाले उनके दो बेटों क्रमश: प्रवीण एवम अखिलेश मेबेन आज़ रोमांचित थे उन्हौनें शायद ही सोचा होगा कि उनकी संघर्ष शील मां जो एक छोटे से कमरे से कुछ बच्चों को शिक्षित कर रहीं मां क्या चमत्कार करने जा रही हैं... या आने वाले बीस-तीस बरस की संरचना कैसी होगी उनके लिये ........ सीमित साधनों में असीमित कोशिश कर श्रीमति विमला मेबेन ने सीमित साधनो में असीमित कोशिशें कर जिस अदभुत शिक्षा प्रणाली को गढा उसकी लकीर पर चलते-चलाते जाय सीनियर सेकण्डरी स्कूल आज खास स्कूल बन चुका है..... उनको सम्मान के लिये चयनित कर ज्यूरी ने कोई गलती नहीं की ........आयु की अधिकता वश अस्वस्थ्य श्रीमति विमला जी .की ओर से सम्मान ग्रहण किया उनकी पुत्रवधु ने ...सच वे शिक्षा के क्षेत्र की "नायिका " हैं ओर सदैव रहेंगी . .
आलेख-प्रस्तुति सहयोग हेतु आभार श्री राजेश दुबे एवम प्रिय भाई राम कृष्ण गौतम
भारत में जडी-बूटियों का अनुप्रयोग औषधि के रूप में किया जाना सदियों से ज़ारी है किंतु उपेक्षा की सुईंयां अक्सर चुभा दीं जाती हैं इन कोशिशों और कोशिश में लगे लोंगों को....! फ़िर भी हौसलों के ज़खीरे लिये ये लोग अपने अपने मोर्चे पर तैनात हैं. चाहे बाबा रामदेव अथवा अलका सरवत मिश्रा ............ जो जडी-बूटियों से जीवन को बेहतर बनाने की कोशिशे जारी रखे हुये हैं अलका जी एक ऐसे विषय पर लिखतीं हैं जिसकी ज़रुरत आज हर व्यक्ति को है वे अपने सारे शोध-आलेख ब्लॉग मेरा समस्त पर पोस्ट करतीं हैं तथा आभार व्यक्त करतीं हैं हिंद युग्म वाले शैलेश भारतवासी का जिन्हौने उनको एक लोक प्रिय ब्लॉगर बनाया. इसी दौरान हमसे रहा न गया हमने ज़नाब सरवत ज़माल जी से बात चीत भी की
Tapsi Nagraj nominated for Naika Award in Art & Culture category by NAI-DUNIYA JABALPUR kindly suport send your vote by your sms
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अनिता कुमार जी का जन्म-दिवस 18 मार्च 2010 को आया किन्तु व्यक्तिगत व्यस्तता के कारण वे आन लाइन नहीं हुईं थी. फिर एम टी एन एल की ब्राड-बैंड सेवा ने उनको नेट पर आने न दिया और आज जब वे नेट पर आई तो हमने थमा दिया ये उपहार आप भी खो जायेंगे इस उपहार मंजूषा को खुलता देख मुझे यकीन है ......आपको यकीन न हो तो लगाइए एक चटका नीचे डिव-शेयर प्लेयर पर या एक क्लिक संवाद एवं विमर्श पर किन्तु एक महत्त्व पूर्ण सूचना यह देनी ज़रूरी कि अनिता जी का सबसे मनपसंद गीत फिल्म मेरे महबूब फिल्म से है जिसे यहां यू-ट्यूब पर देखा-सुना जा सकता है
ऐसा नहीं है कि आज एकलव्य की अनुकृतियां न हों अन्तस से भावुक, सदैव तत्पर महेन्द्र मिश्र अपने आप में एक जोरदार व्यक्तित्व को जी रही हैं.... आप सुनिये उनसे उनके दिल की बात आज़ उनकी वसीयत ज़रूर देखिये उनके ब्लाग ”समयचक्र” पर.......शहीद भगत सिंह को याद किया उनने निरंतर पर . मिश्र जी में भोले भाले शिव के अंश को नकारना गलत होगा........... किंतु शान्त चित्त हो कर जब वे सृजन करतें हैं तो बस भूल जाते हैं समय को भूलें क्यों न समयचक्र चला भी तो रहे हैं वे ही.