Ad

गुरुवार, नवंबर 05, 2009

इन्टरनेट पर उन्माद फ़ैलाने वालों पर आई०टी० प्रतिबन्ध लगाए

                      http://flash-map-india.smartcode.com/images/sshots/flash_map_india_22916.gif                                                             राष्ट्रीय समरसता को भग्न करने की कोशिश देश के अमन चैन को क्षति ग्रस्त करने की मंशा कदापि स्वीकार्य नहीं. भारत एक बहु-धर्मीय विशेषता युक्त राष्ट्र है यहां सभी को सभी के धर्मों का सम्मान करना हमें घुट्टी में पिलाया है. किन्तु कुछ दिनों से देख रहा हूँ इंटरनेट पर  चार किताबें पड़कर उत्तेज़ना फैलाने वाले लोगों के लिए अब उपेक्षा ही एक ही  इलाज़ है जो सहजता से संभव है. मित्रों भारत-देश को भारत कहलाने के लिए किसी धर्म,वर्ग,समूह,विचारधारा की कतई ज़रुरत नहीं भारत अखंड है रहेगा क्योंकि भारत का जितना सुदृढ़ भोगौलिक अस्तित्व है उससे कहीं अधिक इसका आत्मिक जुडाव प्रभावशाली है. अस्तु अंतर जाल पर सक्रीय ऐसे तत्वों के खिलाफ उपेक्षा का भाव रखिये जी उनके आलेखों तक जाना भी देश का अपमान मानता हूँ.साथ ही भारत सरकार के मेरी आई०टी० से विनम्र अपील है ऐसे लेखकों को प्रतिबंध करने का कार्य सबसे पहले किया जाए.जो किसी भी  धर्म का खुला उपहास करते हुए समरसता के विरुद्ध वातावरण बना रहे हैं.  

मंगलवार, नवंबर 03, 2009

काव्य पहेली देखें सुधि पाठकों की पसंद कौन हैं.?

रेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं

"......................................."

के बाद चतुर्थ पंक्ति के लिये मुझे न तो भाव मिल पा रहे थे न ही शब्द-संयोजना संभव हो पा रही थी. किंतु मेरी बात को पूरी करने वाले मित्र को यह चार पंक्तियां सादर भेंट कर दी जावेंगी इस से मेरा हक समाप्त हो जाएगा आपको भी यदि कोई पंक्ति सूझ रही हो तो देर किस बात यदि आप प्रविष्ठि न देना चाहें तो आप अपनी पसंद के कवि का नाम ज़रूर दर्ज़ कीजिए 
"समस्या-पूर्ती" हेतु मिसफिट पर आयोजित प्रतियोगिता काव्य पहेली के लिए प्राप्त प्रविष्ठियों पर आपकी पसंद क्रमानुसार दर्ज़ कीजिये तब तक आता है जूरी का निर्णय
                                                          प्रतिभा जी की पंक्ति जोडने  से पद को  देखिये
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
कि कुछ पग बस जीत दूर है..
____________________________________________
समीर भाई की पंक्ति जुडते ही पद का स्वरुप ये हुआ है
 हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
हरेक लश्कर है रोया रोया.
_____________________________________________
  अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी की पंक्ति जुडते ही
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
''हो जायेगा पत्थर इन्सां गोया |''
_____________________________________________________
राजीव तनेजा जी जो कवि हो गये है इस बहाने

हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
अपना भविष्य आप बनाएँ
_____________________________________________________
पहेली सम्राठ ताउ राम पुरिया उवाच

हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
परेशानी का बीज खुद ही बोया बोया.
_______________________________________________
एम. वर्मा जी की पंक्तियां जोडते ही पद हुआ यूं

हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
काटोगे वही जो बीज बोया
_______________________________________________
बवाल
  हरेक लश्कर है खोया खोया
    हरेक लश्कर है सोया सोया
    चलो जगाएं इन्हैं उठाएं.....
    है गर्म पानी लहू समोया   
_______________________________________________

रविवार, नवंबर 01, 2009

काव्य पहेली

सुधि सहयोगियो/सहयोगिनो
सादर अभिवादन इस पद की चौथी पंक्ति पूरी कीजिए सबसे उपयुक्त पंक्ति जुडते ही पद घोषित विजेता का हो जाएगा . झट सोचिए पट से टाईप कर दीजिए
हरेक लश्कर है खोया खोया
हरेक लश्कर है सोया सोया
चलो जगाएं इन्हैं उठाएं
................................

गुरुवार, अक्टूबर 29, 2009

अफसर और साहित्यिक आयोजन :भाग एक

::एक अफसर का साहित्यिक आयोजन में आना ::
____________________________________________________
पिछले कई दिनों से मेरी समझ में आ रहा है और मैं देख भी रहा हूँ एक अफसर नुमा साहित्यकार श्री रमेश जी को तो जहां भी बुलाया जाता पद के साथ बुलाया जाता है ..... अगर उनको रमेश कुमार को केवल साहित्यकार के रूप में बुलाया जाता है तो वे अपना पद साथ में ज़रूर ले जाते हैं जो सांकेतिक होता है। यानी साथ में एक चपरासी, साहब को सम्हालता हुआ एक बच्चे को रही उनकी मैडम को सम्हालने की बात साहब उन्हें तो पूरी सभा सम्हाले रहती है। एक तो आगे वाली सीट मिलती फ़िर व्यवस्था पांडे की हिदायत पर एक ऐसी महिला बतौर परिचर मिलती जिसे आयोजन स्थली का पूरा भौगौलिक ज्ञान हो ताकि कार्यक्रम के दौरान किसी भी प्रकार की शंका का निवारण सहजता से कराया जा सके। और कुछ लोग जो मैडम की कुरसी के उस सटीक एंगल वाली कुर्सी पर विराजमान होते हैं जहाँ से वे तो नख से शिख तक श्रीमती सुमिता रमेश कुमार की देख भाल करते हैं । उधर कार्यक्रम को पूरे यौवन पे आता देख रमेश जी पूरी तल्लीनता से कार्यक्रम में शामिल रहतें हैं साहित्यिक कार्यक्रम उनके लिए तब तक आकर्षक होता है जब तक शहर के लीडिंग अखबार और केबल टी वी वाले भाई लोग कवरेज़ न कर लें । कवरेज़ निपटते ही रमेश कुमार जी के दिव्य चक्षु ओपन हो जातें हैं और वे अपनी सरकारी मज़बूरी का हवाला देते हुए जनता से विदा लेते हैं । रमेश कुमार जैसे लोगों को इस समाज में साहित्य समागम के प्रमुख बना कर व्यवस्था पांडे जन अपना रिश्ता कायम कर लेतें हैं साहित्य की इस सच्ची सेवा से मित्रों मन अभीभूत है .................शायद आप भी ..........!!
____________________________________________________

रविवार, अक्टूबर 25, 2009

प्रयाग राज़ की मीट : आप अपनी कुंठा में हमें शामिल मत कीजिए

ब्‍लागरों की ब्‍ला-ब्‍ला सच बला बला के रूप में मुझे तो दिखाई दे रही है मुझे तो अंदेशा है कि इस पोस्ट को लिखा नहीं लिखाया गया है सो मित्रों आज पांडे जी के ज़रिये को साफ़ साफ़ बता दूँ की मुझे जबलपुर को लेकर किए गए इस कथन से आपत्ति है जो उन्हौनें लिखा हिन्‍दूवादी ब्‍लागरों को दूर रखकर आयोजक सेमिनार को साम्‍प्रदायिका के तीखे सवालों पर जूझने से तो बचा ले गये लेकिन विवाद फिर भी उनसे चिपक ही गये। सेमिनार से हिन्‍दूवादी या, और भी साफ शब्‍दों में कहें तो धार्मिक कटटरता की हद तक पहुंच जाने वाले तमाम ब्‍लागर नदारद रहे। यहां न तो जबलपुर बिग्रेड मौजूद थी और न साइबर दुनिया में भी हिन्‍दूत्‍तव की टकसाली दुनिया चलाने में यकीन रखने वाले दिखायी पडे। इस सवाल पर जब कुछ को टटोला गया तो कुछ ब्‍लागरों ने अपने छाले फोडे और बताया कि दूसरे ब्‍लागरों को तो रेल टिकट से लेकर खाने-पीने और टिकाने तक का इंतजाम किया गया लेकिन उन्‍हें आपैचारिक तौर से भी नहीं न्‍यौता गया। अब वे आवछिंत तत्व की तरह इसमें शामिल होना नहीं चाहते है। उन्‍होंने इस आयोजन को राष्‍टीय आयोजन मानने से भी इंकार कर दिया। अब उनकी इस शिकायत का जवाब तो भाई सिद्वार्थ शंकर ही अच्‍छी तरह से दे सकते हैं।

जहां तक वांछित अवांछित होने का निर्णय है सो सभी जानतें हैंकौन इस देश में "सत्यनाराण की पोथी बांच के "देर रात जाम चटकाते सर्वहारा के बारे में चिंतितहोता है [चिंतित होने का अभिनय करता है ] जबलपुर ने कामरेट "तिरलोक सिंह जी "को पल पल मरते देखा है. रहा हम पर तोहमतों का सवाल सो आप गोया परसाईजी से लेकर ज्ञानरंजन जी तक की सिंचित साहित्यिक पौध को अपमानित कर रहें हैं . यानी उन दौनों को भी........?

अब बताएं आज सुबह सुबह वज़न मशीन पर हम खड़े हुए तो हमारा वज़न उतना ही निकला जितना चार दिन पहले था किंतु जबलपुर ब्रिगेड और साम्प्रदायिकता को युग्मित कर आपका वज़न ज़रूर कम हुआ है.....?
हजूर इधर अनूप जी से रात को ही बात हुई थी मेरी व्यस्तता और नेट की खराबी के कारण प्रयाग के बारे में मुझे ज़्यादा कुछ जानकारी नहीं थी सो मित्रों उनने मीट के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी पर पंडित जी ने यह नहीं बताया की हमको क्यों नहीं न्यौता गया हिमांशु जी निकले तेज़ चैनल अन्दर की ख़बर ले आए। अरे भैया हिन्दुस्तान में ब्लागिंग के विकास पर कोई रपट देते तो मालिक हम सच आपको नरमदा के पवित्र जल से अभिषिक्त कर देते पर आपने हमें कुतर्कों विरोध करने परही साम्प्रदायिक करार दिया सो जान लीजिए यहां "धुँआधार" भी है ....आगे.....बला बला......ब्ला ...ब्ला ......।
कृपया माफ़ करें जो सच है बोल दिया



सोमवार, अक्टूबर 19, 2009

क्षणिकाएं

##############
एक  
##############
एक कोयला जो
उपयोगी तो है किन्तु
शीतलता में हाथ काले कर ही देता है
जलते ही आग से हाथ जलाता है ...?
मित्र
अगर
उसे सलीके से उपयोग में लाओ तो
कल तुम कह न सकोगे
"एक कोयला .........."
##############
दो
##############
तुम जो देश को
कानून को मुट्ठी में
कस कर घूम रहे हो
कभी सोचते होगे की सर्व शक्ति मान हो ?
मित्र सच कहूं
पराजय के लिए एक आह ही काफी होगी

Ad

यह ब्लॉग खोजें

मिसफिट : हिंदी के श्रेष्ठ ब्लॉगस में