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मंगलवार, सितंबर 23, 2008

आ ओ ! मीत लौट चलें




आ ओ मीत लौट चलें गीत को सुधार लें
वक़्त अर्चना का है -आ आरती संवार लें ।
भूल हो गई कोई गीत में कि छंद में
या हुआ तनाव कोई , आपसी प्रबंध में
भूल उसे मीत मेरे सलीके से सुधार लें !
छंद का प्रबंध मीत ,अर्चना के पूर्व हो
समवेती सुरों का अनुनाद भी अपूर्व हो,
अपनी एकता को रेणु-रेणु तक प्रसार दें ।
राग-द्वेष,जातियाँ , मानव का भेद-भाव
भूल के बुलाएं पार जाने एक नाव !
शब्द-ध्वनि-संकेत सभी आज ही सुधार लें !

आतंक वाद कबीलियाई सोच का परिणाम है

इस पोस्ट के लिखने के पूर्व मैंने यह समझने की कोशिश की है कि वास्तव में किसी धर्म में उसे लागू कराने के लिए कोई कठोर तरीके अपनाने की व्यवस्था तो नहीं है........?किंतु यह सत्य नहीं है अत: यह कह देना कि "अमुक-धर्म का आतंकवाद" ग़लत हो सकता है ! अत: आतंकवाद को परिभाषित कर उसका वर्गीकरण करने के पेश्तर हम उन वाक्यों और शब्दों को परख लें जो आतंकवाद के लिए प्रयोग में लाया जाना है.
इस्लामिक आंतकवाद , को समझने के लिए हाल में पाकिस्तान के इस्लामाबाद विस्फोट ,पर गौर फ़रमाएँ तो स्पष्ट हो जाता है की आतंक वाद न तो इस्लामिक है और न ही इसे इस्लाम से जोड़ना उचित होगा । वास्तव में संकीर्ण कबीलियाई मानसिकता का परिणाम है।


भारत का सिर ऊँचा करूँगा-कहने वाले आमिरखान,आल्लामा इकबाल,रफी अहमद किदवई,और न जाने कितनों को हम भुलाएं न बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे घटना क्रम को बारीकी से देखें तो स्पष्ट हो जाता है की कबीलियाई समाज व्यवस्था की पदचाप सुनाई दे रही थी जिसका पुरागमन अब हो चुका है, विश्व की के मानचित्र पर आतंक की बुनियाद रखने के लिए किसी धर्म को ग़लत ठहरा देना सरासर ग़लत है । हाँ यहाँ ये कहा जा सकता है की इस्लामिक-व्यवस्था में शिक्षा,को तरजीह ,देने,संतुलित चिंतन को स्थापित कराने में सामाजिक एवं धार्मिक नेतृत्व असफल रहा है जिससे अच्छी एवं रचनात्मकता युक्त सोच का अभाव रहा इस्लामिक-देशों की आबादी के । डैनियल पाइप्स.की वेब साईट http://hi.danielpipes.org/ पर काफी हद तक स्पस्ट आलेख लिखे जा रहे हैं जिसका अनुवाद अमिताभ त्रिपाठी कर रहें हैं । अब भारत को ही लें तो भारत में पिछले दशकों में प्रांतीयता,भाषावाद,क्षेत्र-वाद की सोच को बढावा देने की कोशिश की जा रही है इस पर आज लगाम न लगाई गयी तो तय शुदा बात है भारतीय-परिदृश्य में भी ऐसी घटनाएं आम समाचार होंगी।


आतंक को रोकने किसी भी स्थिति में किसी साफ्ट सोच का सहारा लेने की कोई ज़रूरत नहीं,आतंक वाद को रोकने बिना किसी दुराग्रह के कठोरता ज़रूरी है चाहे जितनी बार भी सत्ताएं त्यागनी पड़ें , हिंसा को बल पूर्वक ही रोका जाए।


डेनियल की वेब साईट पर बेहद सूचना परक आलेख देखे जा सकतें है


मुस्लिम दृष्टि में बराक ओबामा25 अगस्त, 2008, FrontPageMagazine.com
इस्लामवादी वामपंथी गठबन्धन का खतरा14 जुलाई, 2008, नेशनल रिव्यू
इस्लामवादी आतंकवाद कहाँ अधिक है यूरोप में या अमेरिका में?3 जुलाई, 2008, जेरुसलम पोस्ट
शत्रु का एक नाम है19 जून, 2008, जेरुसलम पोस्ट
ईरान पर आक्रमण को तैयार रहो11 जून, 2008, यू.एस.ए.टुडे
मध्यपूर्व पर ओबामा बनाम मैक्केन
इधर हमारे अंतरजाल के साथी भी को इस प्रकार का माहौल बनाएं बार-बार ,बैठक कर ,
आतंक की , सही परिभाषा ,को आम आदमीं के सामने रखना ही होगा

सोमवार, सितंबर 22, 2008

प्रीति का चित्रहार






अहमदाबाद,नहीं सूरत से प्रीति हैं
बेहद गंभीर चित्रकार
गहनों की डिजायनर समय निकाल के नेट पर आकर मित्रों से चर्चा में व्यस्त हो जातीं हैं
ब्लॉग पर कविताओं की तलाश करते करते उनने मुझे मित्र बना लिया
हार्दिक शुभ कामनाएँ
कवि,चित्रकार एवं एक आत्म विश्वाशी मौन साधिका
"प्रीति को "

शुक्रवार, सितंबर 19, 2008

रिएलटी शो के फंडे

मीडिया व्यूह:,की पोस्ट बेहद समयानुकूल पोस्ट है,भारत में बुद्धू बक्से की उलज़लूल से अब ज़ल्द निजात दिलाने अब सरकार को आगे आना ही होगा । मेरे दृष्टिकोण से हिन्दी के अहर्निश जारी रहने वाले चैनल्स को सरकारी लगाम लगानी बेहद ज़रूरी है, मनोरंजन के नाम पे देश में चलाए जा रहे नोट-कमाओ अभियान के कई पहलू जब आम दर्शक के सामने आएँगे तो सब के सामने इस व्यापार में संलग्न व्यक्तियों की घिग्घी बंधना तय शुदा है ।
जहाँ तक मुझे ज्ञात है अब टेलिविज़न के कई चैनल केवल व्यापारी से हो गए हैं , इनको न तो सामाजिक न आर्थिक और न ही किसी नैतिक मूल्यों की रक्षा से कोई लेना देना है । समय आ गया है अब की सरकार कठोरता से बिना किसी पूर्वाग्रह के एक आचार संहिता बनाए जो इन वाहियाद हरक़तों पे सख्त नज़र रखे। चैनल'स की गला काट स्पर्धा के चलते कलाकारों की कला घुटन का शिकार हुईं है कई एस० एम० एस० के ज़रिए वसूली न करा पाए वे नकार दिए गए कहीं-कहीं यहाँ तक हुआ की जिनको हम महान कलाकार समझतें हैं वे ठेठ गंवारूपन का एहसास दिला गए खुदा इन्हें नसीहत दें

आइए इधर भी, भैया

चिट्ठा चर्चा, में स्वर्गीय-श्री प्रह्लाद नारायण मित्तल से मुलाक़ात कीजिए,उड़न तश्तरी ब्लॉग-"आलसी काया पर कुतर्कों की रजाई" डाल कर गज़ब तीर चला दियामुझको नहीं पता कविता क्या हैं फ़िर भी लिखे जा रहे हैं उधर लोग बाग़ एक परम स्वादिष्ट कविता , परोसे जा रहें हैं साक़ी शराब दे दे .----कुछ लोग ये गा-गा कर दिन को नशीला बनाने आमादा हैं.बेट्टा, ब्लागिंग छोड़ो ,मौज से रहो, अब भैया का नारा देकर पंडित जी ने गज़ब ढा दिया आँख की किरकिरी-की ताज़ा पोस्ट की "ईश्वर धर्म और आस्था के सहारे मृत्यु का इंतज़ार ही क्या हमारे बुज़ुर्गों के लिए बच गया काम है ?" की इस पंक्ति ने आंख्ने भिगो दीं .शीतल राजपूत के चिट्ठे का स्वागत ज़रूरी है,कुछ दिनों से ब्लॉगन-ब्लागन वार देख के मन खट्टा तो हुआ था किंतु जब ये मारें लातई-लात कहावत देखी तो लगा शायद कोई रास्ता काढ़ लिया जाएगामाँ कविता प्रति इसे मेरा आभार मानिए .तैयार रहिये अपने ब्लॉग पर टिप्पणियों की बरसात के लिए , बांचते ही अपन की बांछें खिल गई अपन भी टिप्पणी पाने की दावेदारी बनाम लालच से भरा ब्लागिया दिल लेकर आज की पोस्ट लिख रहें हैं

मंगलवार, सितंबर 16, 2008

चलो इश्क की इक कहानी बुनें


हंसी आपकी आपका बालपन
देख के दुनिया पशीमान क्यो...?

रूप भी आपका,रंग भी आपका
फ़िर दिल हमारा पशीमान क्यों।

निगाहों की ताकत तुम्हारी ही है
इस पे मेरी ये आँखें निगाहबान क्यों..?
तुम यकीनन मेरी हो शाम-ए-ग़ज़ल
इस हकीकत पे इतने अनुमान क्यों ?
चलो इश्क की इक कहानी बुनें
जान के एक दूजे को अंजान क्यों ?

सोमवार, सितंबर 15, 2008

अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी

अमिय पात्र सब भरे भरे से ,नागों को पहरेदारी
गली गली को छान रहें हैं ,देखो विष के व्यापारी,
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मुखर-वक्तता,प्रखर ओज ले भरमाने कल आएँगे
मेरे तेरे सबके मन में , झूठी आस जगाएंगे
फ़िर सत्ता के मद में ये ही,बन जाएंगे अभिसारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
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कैसे कह दूँ प्रिया मैं ,कब-तक लौटूंगा अब शाम ढले
बम से अटी हुई हैं सड़कें,फैला है विष गले-गले.
बस गहरा चिंतन प्रिय करना,खबरें हुईं हैं अंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,
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लिप्सा मानस में सबके देखो अपने हिस्से पाने की
देखो उसने जिद्द पकड़ ली अपनी ही धुन गाने की,
पार्थ विकल है युद्ध अटल है छोड़ रूप अब श्रृंगारी
..................................देखो विष के व्यापारी,

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