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शनिवार, सितंबर 06, 2008

श्रीमती तारा काछी : पथ-प्रदर्शिका

ये आरती संजोई है उन बेटियों ने जो चाहतीं हैं कि उनसे उनका बचपन न छीन
ग्राम पंचायत तिलहरी,में मेरे विभाग की आँगनवाडी का कामकाज देखतीं हैं तारा काछी ,जो हमेशा अपने गाँव को ऊँचाइयों पर देखना और रखना चाहतीं हैं ....इस गाँव में शिशु,बाल,और मात्र मृत्यु की डर पिछले कई वर्षों से शून्य पर स्थिर है ...........हो भी क्यों न तारा जो है वहाँ
अपनी पर्यवेक्षक दीदी कुमारी माया मिश्रा से सलाह कर तारा ने इस बार बाल विवाह रोकने बेटियों से वो करवाया जो रक्षा-बंधन पर बहने अपने भाइयों के साथ करतीं हैं .जी हाँ ......रक्षा-सूत्र बंधन
बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी थी माताओं,बहनों बेटियों की
उत्सव सा था पूरे गाँव में
और बारी बारी से बेटियों ने अपनी माँ,दादी,बुआ,चाची,के हाथों में बाँध दी
"राखियाँ "
ये कहा
"मेरा,बचपन मत छीनना "
बाल विकास परियोजना बरगी में संचालित इस केन्द्र में गोद-भराई,जन्म-दिवस, की रस्में मनाई जातीं रहीं जिसे हू बहू हू विभाग ने पूरे प्रदेश में लागू कर दिया

गुरुवार, सितंबर 04, 2008

मिसफिट-चिंतन: बसंत मिश्रा की टेस्ट पोस्ट "।। श्री गणेशाय नम:।। "

मिसफिट-चिंतन: बसंत मिश्रा की टेस्ट पोस्ट से
"।। श्री गणेशाय नम:।।
नामक एक ब्लॉग आज से शुरू हो गया है ।
बसंत मिश्रा
ने
आज से शुरू किए
अपने ब्लॉग का नाम
रखके मुझे अभिभूत कर दिया
उनका आभारी हूँ ...!!

मंगलवार, सितंबर 02, 2008

सुबह,-"सुबह" उदास सी

जो जिया वो प्रीत थी ,अनजिया वो रीत है
शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है
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प्रीत के प्रतीक पुष्प -माल मन है गूंथता
भ्रमर बागवान से -"कहाँ है पुष्प ?" पूछता !
तितलियाँ थीं खोजतीं पराग कण
पुष्प वेणी पे सजा उसी ही क्षण ,!
कहो ये क्या प्रीत है या तितलियों पे जीत है…….?
शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है !
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सुबह,-"सुबह" उदास सी,उठी विकल पलाश सी
चुभ रही थी वो सुबह,ओस हीन घास सी
हाँ उस सुबह की रात का पथ भ्रमित सा मीत है
शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है !
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तभी तो हम हैं हम ज़बाँ को रात में तलाशते
मिल गए तो खुश हुए,मिले न तो उदास से
यही तो जग की रीत है हारने में जीत है
शब्द भरम को तोड़ दे ,वोही तो मेरा गीत है !
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शनिवार, अगस्त 30, 2008

भोला का गाँव : राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त गाँव.........!!

कलेक्टर साहब का गाँव में दौरा जान कर भोला खेत नहीं गया उसे देखना था की ये कलेक्टर साहब क्या....कौन .....कैसे होते हैं ?
दिन भर मेहनत मशक्कत कर के रोजी-रोटी कमाने वाला मज़दूर आज दिल पे पत्थर रख के रुका था , सिरपंच जी के आदेश को टालना भी उसकी सामर्थ्य से बाहर की बात थी सो बेचारा रुक गया , रात को गुलाब कुटवार [कोटवार ] की पुकार ने सारे पुरुषों को संकर-मन्दिर [शंकर ] खींच लिया बीडी जलाई गई.यहाँ सिरपंच ने तमाखू चूने,बीड़ी,का इंतज़ाम कर दिया था.
सरपंच:-"काय भूरे आओ कई नई...?"
"मरहई खौं जाएँ बे आएं तो आएं कक्का हम तो हैं जुबाब देबी"
"जब से भूरे आलू छाप पाल्टी को मेंबर हो गाओ है मिजाज...............कल्लू की बात अधूरी रह गई कि आ टपका भूरे.....तिरछी नज़र से कल्लू को देखा और निपट लेने की बात कहते कहते रुक गया कि झट कल्लू ने पाला बदला :"जय गोपाल भैया बड़ी देर कर दई........काय भौजी रोकत हथीं का"
"सुन कल्लू , चौपाल में बहू-बेटी की चर्चा मति करियो"
सरपंच ने मौके की नजाकत भांप बात बदली -''भैया,कल कलेक्टर साब आहैं सबरे गाँव वारे''
भूरे;'काय,कलेक्टर सा'ब का कर हैं इ तै आन खें'
सुन तो भूरे अपने गाँव में शौचालय बनने हैं , सबरे लोग लुगाई दिसा मैदान न जावें गाँव में साप-सपैयत की सुभीता हो जाए जेइ बात समझा हैं बे इतै आन खें
इधर सबके लिए बीडी जलाता भोला सरपंच की बात पे सर हिला हिला के समर्थन जता रहा था . तभी सरपंच बोला:हमाए गाँव में जित्ते बी पी एल बारे हैं सब के शौचालय पंचायत बनबाहे बाकी सब ख़ुद बनाने ?
"न सरपंच भैया ,जे नहीं चलेगा , अब भीख़म के घर है 10 एकड़ जिन्घा-जिमीन है,बहू आँगनबाड़ी की मेडम है बाको बी पी एल कारड बनाओ है, बाहे मुफत में बनी बनाई टट्टी मिल जै है और हम भीखम जित्ते बड़े अदमी नईं हमाओ नाम ........?तीरथ बोला
कल्लू ने अपना सुर तेज किया :- तुमाए दिमाक में भीखम के अलावे कोई बात नईं सूझती , अरे जब कारड बनत हटे तो तुम बड़े अपनी रहीसी झाडत रहे सब जानत हैं रेब्नू साब ने तुमाई रहीसी की बिबसता बना दइ अब रोजिन्ना तुमाओ रोबो गलत है
भीखम की साँस में साँस आई भीखम बोला:भैया तीरथ,अकल बड़ी होत है तैं भैंस को बड़ी बता राओ है.
देर रात तक सरपंच ने सारे गाँव को एक तरह से सेट कर लिया । तय हो गया किअगले दिन कोई भी गाँव की निंदा बनाम सरपंच की शिकायत नहीं करेगा । इसके बदले अगले दिन दौरे के बाद कच्ची-मुर्गा पार्टी होगी।
गाँव में अगले दिन शाम ५:०० बजे कलेक्टर साहब आए । गाँव की साफ़ सड़कें ,सुंदर स्कूल , देख के दंग रह गए गाँव वालों की स्वच्छता को लेकर समझ दारी को आई ए एस श्रेणी का अधिकारी भी चकित रह गया।
गाँव की खुल के सराहना हुई.......सरपंच ने बताया हजूर बाकी सब बी पी एल के कार्ड वाले हैं तीरथ को छोड़ के सर्वे के समय तीरथ बाहर गया था उसकी ओरत से पूछ के ग़लत जान कारी रेवेन्यू इंसपेक्टर ले गए उसका नाम नहीं जुड़ पाया । साहब हर कीमत पर जिले को निर्मल जिला बनाना चाहते थे सो एस डी एम् को हिदायत दी सुनिए इनका नाम आवेदन का परीक्षण कर जोड़ लें यदि पात्र हों तो ,अन्यथा इनका शौचालय मैं बनवा देता हूँ ।
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पूरे १४५ घर शौचालय युक्त हो गए। सरपंच के घर में पहले से ही था । टाट के परदे लगे थे इन शौचालयों में , निर्मल ग्राम की जांच करने आई टीम को सब कुछ सही मिला । सरपंच दिल्ली से इनाम पाकर लौटे । गाँव के दिन फ़िर गए , भोला ,तीरथ,कल्लू,सुंदर सबके घरों में शौचालय हैं । जिन पर ऊपर से छप्पर बना है..... इस बार बरसात में लकडी कंडे इन्हीं संडासों में रख के गाँव भर के लोगों ने पूरी बरसात सूखा इंधन पाया। भोला आज भी समझ नहीं पाया कि कलेक्टर साहब उसके गाँव में क्यों आए थे.......?
[यह पोस्ट सभी समझदार ग्राम्य जनों को सादर समर्पित है जो अपने घरों में बने शौचालयों का प्रयोग...........और पूरे गाँव को शौचालय बताते है,,,,,,,,,,,,,,]

शुक्रवार, अगस्त 29, 2008

तुम कौन हो.....?


देखिए आप कौन हैं ? मैं कौन हूँ ?
इस बात में ज़्यादा समय गवाने का दौर नहीं है मित्र
सियासत ओर सियासती लोग आपको क्या समझते हैं एक कहानी से साफ हो जाएगी बात

'उन भाई ने बड़ी गर्मजोशी से हमारा किया। माँ-बाबूजी ओर यहाँ तक कि मेरे उन बच्चों के हालचाल भी जाने जो मेरे हैं हीं नहीं। जैसे पूछा-
“गुड्डू बेटा कैसा है।”
“भैया मेरी 2 बेटियाँ हैं।”
“अरे हाँ- सॉरी भैया- गुड़िया कैसी है, भाभी जी ठीक हैं। वगैरा-वगैरा। यह बातचीत के दौरान उनने बता दिया कि हमारा और उनका बरसों पुराना फेविकोलिया-रिश्ता है।
हमारे बीच रिश्ता है तो जरूर पर उन भाई साहब को आज क्या ज़रूरत आन पड़ी। इतनी पुरानी बातें उखाड़ने की। मेरे दिमाग में कुछ चल ही रहा था कि भाई साहब बोल पड़े - “बिल्लोरे जी चुनाव में अपन को टिकट मिल गया है।”
“कहाँ से, बधाई हो सर”
“.... क्षेत्र से”
“मैं तो दूसरे क्षेत्र में रह रहा हूँ। यह पुष्टि होते ही कि मैं उनके क्षेत्र में अब वोट रूप में निवास नहीं कर रहा हूँ। मेरे परिवार के 10 वोटों का घाटा सदमा सा लगा उन्हें- बोले – “अच्छा चलूं जी !”
पहली बार मुझे लगा मेरी ज़िंदगी कितनी बेकार है, मैं मैं नहीं वोट हूं।
{नोट:-फोटो पर जिस किसी सज्जन का अधिकार हो तो कृपया ईमेल कीजिए तत्काल फोटो हटा दी जाएगी }

बुधवार, अगस्त 27, 2008

नागफनी जिनके आँगन में


नागफनी जिनके आँगन में, उनके घर तक जाए कौन ?
घर जिनके जाले मकडी के, रेशम उनसे लाए कौन !

हर उत्तर से प्रश्न प्रसूते, प्रश्न-प्रश्न डूबे हैं उत्तर
प्रश्न चिन्ह जीवन जो हो तो ऐसा चिन्ह मिटाए कौन ?

चिन्तन के घट कुंठा रस मय, गीत जलाने लगे रहल ही
पथ पे बिखरे बेर के कांटे , खुद से बाहर जाए कौन ?  

मन ही मेरे मन का साथी, शीतल रश्मि समर्पण करता
मेरे अंतस  दीप उजागर ,  सूरज के गुन गाए कौन..?
जिज्ञासा दब गई भूख में पोथी पूज न पाया बचपन
चीख रहे हैं आज आंकड़े बूढ़ी आँख पढ़ाए ...?


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