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सोमवार, जनवरी 11, 2016

सबला बन कर उभरे बालिका :श्रीमती माया सिंह


 मध्यप्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह ने कहा है कि बालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए राज्य सरकार पूरी तरह संकल्पबद्ध है और इसके लिए प्रभावी कदम उठाए गए हैं। बच्चियों में आगे बढ़ने की ललक और सीखने की चाहत के चलते वे स्वयं भी सबला बनने की दिशा में अग्रसर हैं। शासन का प्रयास है कि हर बालिका चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि की हो, सबला बन कर उभरे ।
श्रीमती सिंह आज यहां मानस भवन के प्रेक्षागृह में आयोजित प्रदेश के पहले सबला सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में उद्बोधन दे रही थीं। उन्होंने कहा कि हमें बच्चियों को उनकी रूचि और योग्यतानुसार आगे बढ़ने में हरसंभव मदद और मार्गदर्शन देना होगा। श्रीमती सिंह ने इस सिलसिले में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के गंभीर प्रयासों का भी उल्लेख किया। महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा कि स्वागतम् लक्ष्मी, बेटी बचाओ अभियान और लाड़ली लक्ष्मी जैसी योजनाओं से परिदृश्य में गुणात्मक परिवर्तन संभव हो सका है ।

 बेटियों के प्रति समाज की सोच में बदलाव हुआ है। उन्होंने कहा कि किशोर आयु समूह में ही बच्चियों के व्यक्तित्व के विकास की ओर ध्यान देना होगा। यह समय सृजन और निर्माण का है। अभिभावकों और महिला एवं बाल विकास विभाग की  भूमिका इसमें बहुत महत्वपूर्ण है। सही समय पर सही मार्गदर्शन प्राप्त होने से ही बेटियां सशक्त बनेंगी और आगे चलकर चमकदार उपलब्धियां हासिल करने में कामयाब होंगी। इस परिप्रेक्ष्य में श्रीमती सिंह ने सुपोषण अभियान और स्नेह सरोकार कार्यक्रम का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सुधार के साथ-साथ बच्चियों की दक्षता बढ़ाने के लिए बहुतेरे प्रशिक्षण कार्यक्रम आरंभ किए गए हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा कि तमाम योजनाओं के जरिए सरकार ने समाज में बेटियों के प्रति सकारात्मक वातावरण बनाने के गंभीर प्रयास किए हैं जिसके चलते बेटियों को बेहतर अवसर उपलब्ध हो रहे हैं। महत्वपूर्ण यह है कि इस संदर्भ में समाज का भी यथेष्ट सहयोग प्राप्त हो रहा है ।
प्रदर्शनी का वलोकन करते हुए माननीय मंत्री जी एवं मान. प्रमुख सचिव  
श्रीमती सिंह ने कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मौजूद किशोरवय बालिकाओं और महिलाओं का आव्हान किया कि वे पूरी ऊर्जा और उत्साह के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध हों तथा सरकार और समाज के समर्थन से उपलब्धियों की नई ऊंचाईयों का स्पर्श करें । 
   कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सांसद श्री राकेश सिंह ने कहा कि भारत की पुण्य भूमि की संस्कृति में नारी का विशेष स्थान रहा है। तथापि बाद के समय में कुरीतियां पनपी जिनसे स्थितियों में बदलाव हुआ। उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार ने महिलाओं की स्थिति बेहतर बनाने के लिए अहम् कदम उठाए हैं। बेटियों की शिक्षा उनकी उन्नति के लिए बेहद जरूरी है। आज उनके सामने उपलब्धियों का आकाश है और उन्हें उड़ान भरने की स्वतंत्रता भी हासिल है। सांसद ने कहा कि बेटियां सब कुछ करने में सक्षम हैं। उन्होंने आव्हान किया कि बेटियां आगे आएं और सरकार की विभिन्न योजनाओं का फायदा लेकर अपने परिवार का नाम रौशन करें ।

   इस अवसर पर महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव श्री जे.एन. कंसोटिया ने कहा कि किशोरावस्था में उचित मार्गदर्शन प्राप्त होना बेहद जरूरी है। यह मार्गदर्शन ही बच्चियों के व्यक्तित्व में निर्णायक साबित होता है। प्रमुख सचिव ने कहा कि सबला योजना के तहत बालिकाएं बहुत अच्छा कार्य कर रही हैं और नए कौशल का विकास भी कर रही हैं। श्री कंसोटिया ने आदर्श लिंगानुपात हासिल करने की दिशा में कोशिशों को जरूरी बताया । 

   आयुक्त एकीकृत बाल विकास सेवा श्रीमती पुष्पलता सिंह ने कहा कि विभाग आत्म-विकास और सशक्तिकरण से महिलाओं को सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। सशक्तिकरण के लिए प्रदेश के 15 जिलों में आरंभ की गई सबला योजना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है ।
 




 माननीया महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह जी एवं अतिथियों ने जबलपुर जिले  में संचालित सबला योजना पर आधारित "नए क्षितिज की ओर फिल्म का प्रदर्शन किया जिसका निर्माण सुश्री सीमा शर्मा के निर्देशन में किया गया  "               

              इस अवसर पर माननीया महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह ने कार्यक्रम में मौजूद छात्राओं से वन-टू-वन संवाद भी किया। उन्होंने बच्चियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया और उनके द्वारा प्रस्तुत मांगों के सम्बन्ध में उचित कदम उठाने का वादा भी किया। मुख्य अतिथि श्रीमती सिंह ने महिला सशक्तिकरण गीत लाड़ो पलकें झुकाना नहीं कीसीडी तथा शौर्या डायरेक्टरी विमोचन किया। उन्होंने महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए कार्य करने वाले शौर्य दलों के सदस्यों को सम्मानित भी किया। मुख्य अतिथि ने अपना बाल-विवाह रोकने वाली लाड़ो अभियान की ब्रांड एम्बेसेडर कु. पूजा काछी को भी सम्मानित किया जिन्होंने अपने बाल विवाह को रोकने के लिए पुरजोर आवाज उठाकर अपना अध्ययन जारी रखा ।
 इनके अलावा श्रीमती अनीता रैकवार व कु. लक्ष्मी लोधी को भी सम्मानित किया गया। साथ ही सबला योजनान्तर्गत प्रशिक्षण प्राप्त कर आत्मनिर्भर बनी किशोरी बालिकाओं को भी सम्मानित किया गया ।  
   

                           कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में महापौर डॉ स्वाति गोडबोले भी उपस्थित थीं । इस दौरान विधायक श्रीमती प्रतिभा सिंह व श्रीमती नंदिनी मरावी, मनोनीत विधायक एल.बी. लोबो, कलेक्टर श्री एस.एन. रूपला, पुलिस अधीक्षक डॉ आशीष एवं विभाग की संयुक्त संचालक सीमा शर्मा भी मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ राजलक्ष्मी त्रिपाठी ने किया ।
सिगनेचर ट्यून
        
           ढीमरयाई :- सबला योजना पर आधारित लोक गीत एवं नृत्य 

सांस्कृतिक गतिविधियाँ
श्रीमती सिंह ने एवं सांसद जी ने
 महिला सशक्तिकरण गीत
 लाड़ो पलकें झुकाना नहीं कीसीडी
तथा शौर्या डायरेक्टरी विमोचन किया 

सबला गीत गाती हुईं बालभवन की पूर्व छात्राएं
                     दृढ निश्चय करके हमने किया आज ऐलान   
  • स्वागत गान:- साक्षी गुप्ता ,प्रिया सौंधिया , शालिनी अहिरवार , एवं श्रद्धा बिल्लोरे ने सुश्री शिप्रा, सोमनाथ, मनीषा तिवारी के  संगीत एवं संगत में प्रस्तुत किया
सरस्वती वन्दना :- अब्दुल, आयुष, हर्ष, श्रेया , अमृता संगीत एवं  संगत :- अक्षय , आदर्श गीतकार  मुकुल द्वारा रचित सरस्वति वन्दना प्रस्तुत की गई 



  • सबला गीत: दृढ निश्चय करके हमने किया आज ऐलान



  • ढीमरयाई :- सबला योजना पर आधारित लोक गीत एवं नृत्य 



  • सबल सिगनेचर ट्यून :- बालभवन द्वारा 



  • कराते एवं मार्शल आर्ट (कुंग फूं जूडो ) :- श्री नरेंद्र गुप्ता एवं श्री अमित सुदर्शन के मार्गदर्शन में 


  • सांस्कृतिक कार्यक्रमोंकी झलकियाँ
    ·       सबला सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए सांस्कृतिक  कार्यक्रमों में बालभवन के बाल कलाकारों ने अनोखा समा बांधा सारी प्रस्तुतियाँ सबला योजना पर आधारित होते
    हुए मनोरंजक एवं प्रभावी रहीं  ।  कार्यक्रम में “सबला-गीत” एवं सबला पर आधारित लोकनृत्य एवं लोक-गीत  डिमरयाई सर्वाधिक चर्चित रहे । साथ ही   प्रवेश द्वार पर  ही हुए आगवानी गीत
    , सरस्वती वंदना , की प्रस्तुतियाँ बालाभवन में प्रशिक्षित किशोरी  बालिकाएँ क्रमश: साक्षी गुप्ताप्रिया सौंधिया, श्रद्धा बिल्लोरेशालिनी अहिरवार, मुस्कान सोनी मनीषा  तिवारी , समृद्धि असाठी, सेजल तपाआस्था अग्रहरी , शैफाली सुहानेहर्षिता गुप्ता, प्रियंका सोनी साध्वी बिरहा, पालक गुप्ता, कुमारी अमिय तिवारी , प्रिया सौंधिया, आदि ने सुश्री शिप्रा सुल्लेरे के संगीत निर्देशन एवं श्री इंद्र पांडे के नृत्य निर्देशन में विषय आधारित प्रस्तुतियाँ एवं सबला योजना की सिगनेचर ट्यून मनमोहक रही । 


    ·       संस्कारधानी के  गीतकार एवं बालभवनसहायक संचालक द्वारा लिखे एवं सत्शुभ्र मिश्र एवं पूर्वी फड़नीस द्वारा गाया महिला सशक्तिकरण  गीत “लाडो पलकें झुकाना नही  ” गीत की आडियो-वीडियो  लोकार्पण भी अतिथियों ने किया ।
    ·        बालभवन की कला निर्देशिका श्रीमती रेणु पांडे के  निर्देशन में प्रवेश द्वार से लेकर आडिटोरियम तक की  साजसज्जा भी किशोरीयों क्रमश: आस्था गुप्ता , तान्या बड़कुल, यशी पचौरी , नीति शर्मासृष्टि गुप्ता , श्रेया गुप्ता राजकुमारी गुप्ता, रिया साहू नंदनी पाटकर, रिकी राय, तान्या पाण्डेयखुशबू राय,  का योगदान उल्लेखनीय रहाइस अवसर पर मंत्री  महोदया को बालभवन में  शुभमराज अहिरवार द्वारा  निर्मित  पोट्रेट श्रीमति मनीषा लुम्बा संभागीय उपसंचालक, महिला सशक्तिकरण जबलपुर  भेंट  किया गया  

    शनिवार, जनवरी 09, 2016

    महिला सशक्तिकरण गीत "लाडो पलकें झुकाना नहीं " लोकार्पित

    मानस भवन जबलपुर में आज दिनांक 8 जनवरी 2015 को मानस भवन जबलपुर में  श्रीमति मायासिंह माननीया मंत्री महिला बाल विकास एवं सांसद श्री राकेश सिंह जी के करकमलों से "लाडो पलकें झुकाना नहीं " गीत का लोकार्पण हुआ . इस अवसर पर डा स्वाति सदानंद गोडबोले महापौर जबलपुर, श्रीमती एल बी लोबो (माननीया मनो. विधायक ) श्रीमती प्रतिभा सिंह, माननीया विधायक बरगी श्रीमती नंदनी मरावी माननीया विधायक सिहोरा, प्रमुख सचिव महिला बाल विकास, श्री जे एन कंसोटिया, आयुक्त आई सी डी एस श्रीमती पुष्पलता सिंह , श्रीमति राजपाल
    कौर दीक्षित, एडीशनल डायरेक्टर, सुश्री सीमा शर्मा संयुक्त संचालक, आई सी डी एस, श्रीमती उपस्थित थी आयुक्त महोदया महिला सशक्तिकरण श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव की प्रेरणा से मेरे अभिन्न मित्र के साथ पूर्वी फड़नीस यह  गीत जो महिला सशक्तिकरण संचालनालय मध्यप्रदेश की योजनाओं पर केन्द्रित है. इस गीत को लिखने ईश्वर ने मुझे अवसर दिया . गीत को संगीतबद्ध किया श्री हरप्रीत खुराना ने . मित्र श्री के जी त्रिवेदी  (जवाहर बाल भवन भोपाल ) के निर्देशन में वीडियो निर्माण बालभवन भोपाल के कलाकारों ने किया .
           माननीय मंत्री महिला बाल विकास श्रीमती मायासिंह जी ने  8 जनवरी 2016 को रिलीज़ हुए “लाडो पलकें झुकाना नहीं ..!” गीत यूट्यूब 04 चैनल्स पर अपलोड हो चुका है . आप भी देखिये और पसंद आने पर इसे मित्रों के लिए शेयर कीजिये                  
                             सादर आभार
        गीतकार : गिरीश बिल्लोरे “मुकुल” गायक- सत्शुभ्र मिश्र , एवं पूर्वी फडनीस  
    एवं के जी त्रिवेदी वीडियो




    मंगलवार, जनवरी 05, 2016

    ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की !

    जब भी रीता तब करता हूँ, कोशिश फिर से भर जाने की
    तुम  रीत गए तो रोना क्या बेबाक़ सुनो मस्ताने की  !
    ::::::::::::
    जबजब  मैं दीवाना होकर, मस्ती में झूमा करता हूँ .
    जो पागल कहते हैं मुझको, मैं उनको चूमा करता हूँ ..!
    मैं प्रेम बांटने निकला हूँ .. छोडो आदत ठुकराने की !!
    ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की  !
    ::::::::::::

    मैं सावन भीगा भीगा हूँ , तुम सब आओ इक संग भीगो
    समरता की मधुशाला में , इक साथ बैठ प्याले पीलो  
    जब माटी में ही मिलना  हो तो क्यों आदत हो सकुचाने की,
    ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की  !
    ::::::::::::

    जग ज़ाहिर है तुम छिप छिप के मदिरालय जाया करते हो
    तुम क्या जानो कैसे कैसे , वापस फिर  आया करते हो..?
    निकलोगे भेस  बदल के जो , दुनिया कैसे पहचानेगी ?  
    ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की  !
    ::::::::::::



    शनिवार, जनवरी 02, 2016

    जिस घर आँगन विदुषी बिटिया वो घर ही धनवान

    छवि: शालिनी अहिरवार 






















    “सबला-गीत”
    दृढ़ निश्चय करके हमने,  किया आज ऐलान
    हर बिटिया को देना होगा, जीवन का हर ज्ञान !
    जिस घर आँगन विदुषी बिटिया वो घर ही धनवान
    जिस घर की बेटी हो सबला वो घर ही बलवान !!
    ::::::::::::::::::::
    माँ सोई तो अभिमन्यु ने विजय द्वार न पाया
    जागी मात जसोदाने, तिरलोक का दर्शन पाया !
    अर्थ यही है बेटी को भी होने दो हर ज्ञान –
    तब सच में पाएगा भारत विश्व गुरु का मान ..!!  
     ::::::::::::::::::::

    “निर्णय-क्षमता” के विकास का, देना है अधिकार
    स्वस्थ्य रहे सबल हो बेटी, पक्का हो आधार !
    कल की माएं होंगी सक्षम, तबकरना अभिमान –
    नए दौर में नए क्षितिज का करना है निर्माण !!
    ::::::::::::::::::::

    बुधवार, दिसंबर 30, 2015

    कम बोलते हैं शुभम बोलती हैं उनकी पेंटिंग्स



      20 अगस्त 1997 को जन्मे शुभम के पिता श्री जगदीश राज अहिरवार पेशे से सब्जी व्यापारी हैं

    . 2007 में  बाल भवन में बेटे को उसकी रूचि देखते हुए  संभागीय बाल भवन में प्रवेश दिलाया । रोज़ कमाने वाले जगदीश बच्चों के भविष्य को लेकर बेहद संवेदित हैं .बच्चों को घरेलू आर्थिक परेशानियों से अप्रभावित रखने वाली शुभमराज माताजी श्रीमती कोमल का सपना है –“बच्चे के  सारे सपने पूरे हों.... !
              तीन भाईयों में शुभम सबसे बड़े बेटे शुभम जिसका रुझान बचपन से ही  चित्रकारी में है जबकि अन्य छोटे भाई खेल और पढ़ाई में रुचि रखते हैं ।

     शुभम का   चित्रकला के प्रशिक्षण का सपना बाल-भवन ने  पूरा किया । उसका मानना है हमें  खुद के विकास के  लिए  अच्छे अवसर एवं अच्छे स्थान की तलाश  करनी चाहिए मुझे बालभवन जबलपुर में आकर अपने सपने पूरा करने का मौका मिला  मैं रोमांचित हूँ । अपनी सफलता का श्रेय माता पिता एवं बालभवन को देते हुए शुभमराज ने कहा की- बाल-भवन  की अनुदेशिका श्रीमती रेणु पाण्डे के प्रभावी प्रशिक्षण एवं अनुशासन से ही  मुझे राष्ट्रीय स्तर के इस पुरस्कार प्राप्त हुआ है ।” 
    बालभवन अनुदेशिका श्रीमती रेणु पाण्डे कहतीं हैं
    -
    बालभवन आने से कला के साथ साथ शुभम के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आएँ है । कला-साधना से जहां एक ओर  शैक्षिक उपलब्धियां श्रेष्ठ रहीं वहीं उसके संवाद-कौशल एवं व्यक्तित्व में भी निखार देखा गया । शुभमराज अहिरवार पंडित लज्जा
    शंकर झा उत्कृष्टता विद्यालय में 12 वीं कक्षा (गणित-विज्ञान) में अध्ययनरत हैं ।
    इस उपलब्धि पर संभागीय उप संचालक
      श्रीमती मनीषा लुम्बा
    , जो पूर्व में बालभवन की संचालक रह चुकीं हैं का मानना है कि- "कला को कोई अभाव रोक पाने में कभी भी सफल नहीं हो सकता " 
    शुभमराज़ अहिरवार 2013 के बालश्री अलंकरण लिए  नामांकित हैं देवताल
    जबलपुर का सजीव चित्र जिसे
     
    मास्टरपीस कहना गलत न होगा . इस चित्र
    का विश्लेषण किया मशहूर आर्टिस्ट
     
    धुव गुप्ता जी ने ... मुझसे आज
    कर रहे थे वे.. शुभमराज देश का मशहूर चित्रकार बनेगा ... इसमें कोई दो राय नहीं .
    शुभम राज के स्कूल के शिक्षक श्री शिवेन्द्र परिहार साइंस व्याख्याता  जो स्वयं एक
    अच्छे शिक्षक हैं ने शुभम की रियलिस्टिक पेंटिंग्स को अद्वितीय बताते हैं . 
    यूं तो शुभम कम बोलते हैं पर उनकी पेंटिंग्स मुक्तकंठ बोलती हैं ...  


    बुधवार, दिसंबर 23, 2015

    निर्भया आखिर पत्थर को पिघला दिया तुमने पर देर हो गई



    निर्भया तुम ज्योति बनी परन्तु बहुत देर हो जब तक तुम्हारे-ताप से पत्थर पिघले तब तक तुम्हारा क्रूर अपराधी सिलाई मशीन लेकर तार तार हुए  दिलों के पर सुइयां चुभाने की कोशिश में लग जाएगा . फिर भी तुम्हारी वज़ह से पत्थर पिघले .... चली गईं पर तुम्हारे बलिदान ने देश को अप्रतिम उपहार दिया है ..... क्या कहूं नि:शब्द हूँ ..... अब एक भी अक्षर लिखना मेरे लिए भारी है ....... नमन बेटी ............   
    ( जुविलाइन जस्टिस अधिनियम संशोधन पर त्वरित टिप्पणी )

    मंगलवार, दिसंबर 22, 2015

    टनों पिघले हुए मोम पर सुलगता सवाल "ज्योतिसिंह यानी निर्भया "



    डा राम मनोहर लोहिया जी ने कहा था- "ज़िंदा कौमें पांच साल इंतज़ार नहीं करतीं" अगर लोहिया ने सही कहा है तो हमें अपने ज़िंदा होने पर संदेह है. निर्भया यानी ज्योति सिंह के जीने मरने से किसी को क्या फर्क पडेगा. पड़े भी क्यों भारत में जो जब ज़रूरी तौर पर होना चाहिए वो तब हो ही कैसे सकता है . जब सब जानते हैं कि निर्भया यानी ज्योति के बलिदान के बाद टनों से मोमबत्तियां पिघला तो दीं आम जनता ने... सुनो निर्भया की माँ....! और हाँ  पिता तुम भी सुन लो...!!  हमने भी अगुआई की थी ... उस दिन मोमबत्ती जला कर ये अलग बात है उसी पिघले मोम पर आप सवाल सुलगा रहे हो ..!
    क्या रखा है इस सबमें जाओ जब संभव होगा तब हम बदलेंगे  ..... क़ानून अभी हमको फुरसत नहीं हमको विरोध करना है ... ताकत दिखानी है तब तक आप इंतज़ार करो .. 
    ऐसा इस लिए कहा जा रहा है क्योंकि  शोकमग्न हूँ रो रहा हूँ ..  देश उस हकीम के सामने है जो पर्ची पर दवा लिखने के लिए कलम तलाश रहा है . कितने असहिष्णु हैं वे लोग जो सहिष्णुता के लिए दोहरे मानदंड रखते हैं . पूरे विश्व को समझ आ गया है . यह भी समझ चुका है देश कितना भुल्लकड़ है . जो डा. लोहिया जी के शब्द भुला बैठा मुझे तो संदेह है कि हम ज़िंदा हैं भी कि नहीं . बार बार साँसों से पूछने को जी चाहता है कि- तीन साल तक क्यों नहीं हम भारतीय केवल एक ही बात समझाने में कामयाब नहीं हुए कि जो बलात्कारी है वो सर्वदा वयस्क ही है . हो सकता था कि जड़मतियाँ सुजान हो जातीं ..?
    हम भी कमजोर साबित हुए ... यद्यपि सब सोच रहे थे कि निर्भया के बाद और निर्भया न होंगी इस निर्भया को भी न्याय मिलेगा पर हमारे दिवा-स्वप्न थे .. अब टनों पिघली मोम पर एक सवाल सुलग रहा है ... दोष किसका है ......... शायद ज्योति यानी निर्भया का ही है जो उस बस में जा बैठी .
    अलविदा बेटी अलविदा अब हम खुद ठगे गए हैं तेरे लिए कहाँ से लाएं न्याय ?  

       

    गुरुवार, दिसंबर 17, 2015

    “क्या सच कमजोरों को दुनियाँ में जीने हक़ है भी कि नहीं..!”


      आज एक बार फिर मेरी नज़र में एक मूर्ख सरकारी अधिकारी के बयान से अपना आलेख शुरू करूंगा जिसने एक बार कहा था-“कमजोर को स्थाईत्व का हक़ कदापि नहीं ! ”
    उस नामुराद असहिष्णु अफसर का यह कथन हम जैसे लोगों के लिए असहिष्णु हो सकता हैं किन्तु ज्ञान का हर विस्तार उसे संपुष्ट यानी कन्फर्म करता है  अर्थ-शास्त्र राजनीति-शास्त्र, कायिक-विज्ञान या कहें हर जगह कमजोर के स्थायित्व के अंत की निकटता का विस्तार से उल्लेख है . इस  पुष्टि  के बावजूद इस विषय पर लिखने की जोखिम इस लिए भी उठाया जा रहा है क्योंकि यह सिद्धांत मानवीय सन्दर्भों में यह विषय सर्वथा अग्राह्य होना चाहिए पर समाज में इस बात को इस तरह घुट्टी में पिलाया गया है कि-"कमजोर को अनदेखा करो..!"
    यह विचार इतना परिपक्व हो चुका है कि सामाजिक ढाँचे में रच बस सा गया है . और फिर यहीं से आरम्भ होती है असमानता की यात्रा “कमजोर यानी शीघ्र समाप्त होने वाला” जब ये विचार और विस्तार पाता है तो बेशक सामाजिक संरचना इसे आत्म-सात कर लेती है . अरब देशों में नारी के अधिकारों का ज़िक्र करें तो बायोलोजिकल कारणों से पुरुषोचित साम्य न होने के कारण उसे अलग बंदिशों से जूझना  पड़ता है तो मनु-स्मृति अपाहिजों को संगत में पंगत तक में बैठाए जाने की अनुमति नहीं देता . पुरुष-नारी, सबल-दुर्बल, वरिष्ठ-कनिष्ठ, धनाड्य-अकिंचन, ज्ञानी-अज्ञानी, बुद्धिहीन-बुद्धिमान जैसी स्थितियों में जब जीवन के अधिकार अतिक्रमित होते हैं तब लगता है अगर आपमें कोई कमी है जो समाज की बहुसंख्यक आबादी में अपेक्षाकृत अधिक है .... तो नि:संदेह आपके अधिकारों में कटौतियां लादी जा सकतीं हैं . फिर वह मानवाधिकार को अतिक्रमित क्यों न करे सामाजिक पुष्टिकरण प्राप्त होना कठिन नहीं .
    किन्नरों के लिए सामाजिक सोच तो इतनी विपरीत है कि उनको अत्यधिक उपेक्षा का शिकार होना होता है ये सब जानते हैं .
    भारत जैसे देश में विधवा को सामाजिक-संस्कारों से दूर रखा जाना  दूसरा अहम् सवाल है अन्य धर्मों में भी अब आवाजें उठने लगीं हैं कि दबाव न हो अब कुछ बदलाव हो पर उस आवाज़ को कब सुना जावेगा ये सब उस वर्ग की क्षमता के विकास पर निर्भर करता है शायद ? उधर अपाहिजों को संवेदनाएं अवश्य हासिल हैं किन्तु समानता देने में हिचकिचाना सामाजिक दस्तूर है . ये भारतीय सामाजिक स्थिति नहीं वरन सम्पूर्ण विश्व में यही दृश्य आप सहज देख सकते हैं . भारत के सन्दर्भों में सरकारी कानूनी कारणों से सोच में कुछ हद तक बदलाव आया है खासकर महिलाओं एवं बच्चों की स्थिति में पर निर्भया काण्ड जैसी स्थितियां अचानक संकेत दे देतीं हैं कि - "हम अभी आदिम जंगली सभ्यता से मुक्त नहीं हुए .  कभी ओमप्रकाश बाल्मीकी की किताब "जूठन" याद आती है तो सिहरन हो ही जाती है .   आप   खुद को सबल समझने वाले पुरुषों की नज़रें देखिये तो आप पाएंगे - वे नारी के सौन्दर्य का दर्शन करते समय कितनी हिंसक एवं लालची हो जातीं हैं . अगर आप अचानक किसी असामान्य वस्त्र पहनी लड़की या महिला को हिंसक एवं लोभी नज़रों से  देखने वाले से सवाल करें - "भाई, इन देवी में आपको माँ, बहन अथवा बेटी की छवि कहीं नज़र आई ?" - विश्वास कीजिये ज़वाब मिलेगा - "मेरी बेटी ऐसी नहीं मेरी माँ का पहनावा वैसा है , मेरी बहन तो ऐसी है आदि आदि .." यानी कुल मिला कर नारीदेह पर कपड़े वैसे हों जो कथित रूप सबल होने के दम्भी पुरुष उत्तेजित अथवा लोभी न हों . सार यह कि औरत वो पहने जो पुरुष चाहे . नारी के स्तन देख कर हमें अपनी माँ याद क्यों नहीं पातीं जिस से झरे अमृत ने जीवन दिया ...?
    क्यों हैं  हमारी नज़र एक आक्रमणकारी की नज़र शायद हम एक ऐसे आचरण को ओढ़कर बैठे हैं जिसे सिर्फ "कमज़ोर" की तलाश है ..!
               कमजोर को तलाशिये ज़रूर तलाशिये पर उसे सक्षम बनाने के लिए वरना यह खाई बेशक बेहद गहरी होती चली जावेगी फिर उभरेंगें ऐसे चित्र जो भयावह होंगें जिसे आप न देख पाएंगे .. 
    अब सोच में बदलाव का अब समय है जीने और अधिकारों में साम्य की ज़रुरत को विकसित हो रही सभ्यता का दुर्भाग्य ही कहा जावेगा. उस मूर्ख अफसर आभारी होना ही है जिसने “कमजोर को स्थाईत्व का हक़ कदापि नहीं ! ” देने वाले विचार से रूबरू कराया वरना ये संक्षिप्त चिंतन संभव न था .

    मंगलवार, दिसंबर 15, 2015

    बैसाखी के सहारे आरोपी को पकड़ लिया



    यह रिपोर्ट पलपल इंडिया में "यहाँ"  पर प्रकाशित हुई है जो मूलरूप से प्रतिलिपि कर यहाँ प्रकाशित की गई है 
     गणेश के दोनों पैर नहीं है. वह बैसाखी के सहारे चलता है, लेकिन उसने जो काम किया वह एक पुलिस वाला ही कर सकता है. पत्नी की हत्या करके भाग रहे हत्यारे पति को उसने बैसाखी के सहारे 1 किलोमीटर तक पीछा किया और उसे पकड़ लिया. मामला ढाई महीने पुराना है. कानूनी प्रक्रिया की वजह से गणेश का नाम नहीं खोला गया था. अब एसपी ने उसके इस साहस के लिए उसे 5 हजार रुपए का इनाम देकर सैल्यूट किया.
    26 सितम्बर की रात बरगी डैम के पास बने घर के आंगन में गणेश यादव (30 )अपने पिता और दोस्त के साथ बैठे थे. अचानक गणेश को जंगल से किसी महिला की चीखें सुनाईं पड़ी. गणेश ने ये बातें अपने पिता और दोस्त को बताईं, लेकिन दोनों उसे वहम होने की बात कहकर शांत कर दिया. लेकिन गणेश खुद को नहीं रोक पाए और बैसाखी उठाकर तेजी से उस तरफ भागने लगे, जहां से चीखें आ रहीं थीं. गणेश को झाड़ियों के बीच से अचानक एक व्यक्ति भागता हुआ नजर आया और वो उसके पीछे लग गया.
    सहारा ही बन गया हथियार
                  करीब एक किलोमीटर पीछा करने के बाद गणेश ने भागने वाले को बैसाखी अड़ाकर पकड़ लिया. इसी बीच उसका दोस्त और पिता भी वहां पहुंच गए. पकड़े गए आदमी के हाथ में खून लगा हुआ था, उसने पत्नी की हत्या करने की बात कबूल की. तीनों उसे पकड़कर उस जगह ले गए, जहां महिला की लाश के साथ हत्या में प्रयुक्त कैंची पड़ी हुई थी. इसके बाद पुलिस को खबर दी गई और आरोपी को सौंप दिया गया. गणेश की हिम्मत और आत्मविश्वास की वजह से एक बड़ी वारदात का खुलासा हो गया .
    कानूनी प्रक्रिया की वजह से नाम नहीं किया था उजागर
    सीएसपी बरगी हरिओम शर्मा ने बताया कि 26 सितंबर की शाम करीब 7 बजे बरगी नगर निवासी राममिलन पटेल अपनी पत्नी सुमन पटेल को घुमाने के बहाने से बरगी डेम के पास जंगली रास्ते में ले गया था. यहां उसने पारिवारिक विवादों के चलते उस पर कैंची से हमला करके हत्या कर दी. सीएसपी ने बताया कि चूंकि घटना के बाद कानूनी प्रक्रिया के तहत गणेश का नाम उजागर नहीं किया गया था. गुरुवार को एसपी ऑफिस में एसपी डा. आशीष ने गणेश को शासन से स्वीकृत हुई पांच हजार की राशि प्रदान की. इस मौके पर बरगी टीआई केएस बघेल, बरगी नगर चौकी प्रभारी ईश्वरी पटले समेत पुलिस विभाग के सभी अधिकारी-कर्मचारी मौजूद रहे


    सोमवार, दिसंबर 14, 2015

    निःशक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 में संशोधन अपेक्षित है


    आज मेरी नज़र नियम एवं अधिनियम ब्लॉग पर पडी जहां विकलांग व्यक्तियों के अधिकार को लेकर एक आलेख है जो 2009 में प्रकाशित हुआ है . जिसमें विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों के लिए बनाए गए अधिनियम में विकलांग व्यक्तियों को     आधारभूत अधिकारों का विस्तार से विवरण दिया है . किन्तु मेरी नज़र में यह अनुसूचित संवर्गों के हितार्थ बनाए कानूनों के सापेक्ष  उतना प्रभाव-पूर्ण नहीं जितना कि अपेक्षा थी . अत: अधिनियाँ एवं उसके नियमों में कुछ आवश्यक परिवर्तन वांछित हैं.  यद्यपि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 में काफी हद तक सुधार किया है किन्तु जिन बिन्दुओं पर संसोधन के लिए  ध्यान आकृष्ट कराया जा रहा है  जो दौनों ही अधिनियमों को कारगर एवं प्रभावी बना सकते हैं   
                 वास्तव में इस अधिनियम की प्रभावशीलता  अत्यधिक लाभप्रद नहीं है. परन्तु ऐसा नहीं कि रोज़गार को लेकर अधिनियम का प्रभाव कमजोर रहा है . शासकीय रिक्त पदों की पूर्ती के मामलों में इसे अधिनियम से अभूतपूर्व सफलता मिली है. किन्तु सामाजिक संरक्षण के मामले में पीडब्ल्यू अधिनियम 1995 अधिक प्रभाव साबित नहीं कर पाया है. अतएव इस मुद्दे पर  पुनर्विचारण  बेहद आवश्यक है.    
                      उपरोक्त अधिकारों भारत में सामान रूप से सभी को प्राप्त है . किन्तु उनके शोषण एवं उनको अपमानित करने के अपराधों , भीख माँगने के लिए बाध्य करने, कार्य-क्षेत्र में उत्पीड़न , एवं योग्यता संवर्धन के मुद्दों पर अधिनियम में अतिरिक्त प्रावधानों की आवश्यकता का विश्लेषण नहीं है . 
    मान्यवर निवेदन है कि अधिनियम में निम्नानुसार बिन्दुओं को समावेशित करने हेतु सादर प्रार्थना है
    1.     शारीरिक एवं मानसिक यंत्रणा देना / देने के लिए संप्रेरित करना
    2.     विकलांगों के विरुद्ध आपराधिक षडयंत्र करना
    3.     सार्वजनिक / सामूहिक / एकल रूप से उपहासित करना
    4.     विकलांग व्यक्तियों से विद्वेष रखना, एवं विद्वेष-पूर्ण वातावरण निर्मित करने में सहयोग करना.
    5.     अपाहिज द्वारा प्राप्त सभी अर्जित संपदा चल-अचल  संपत्ति को छल,कपट पूर्ण तरीके से हासिल करना क्रय करना.
    6.      अधीनस्त / समक्ष / वरिष्ट  विकलांग कर्मियों के विरुद्ध दुर्व्यवहार करना
    7.     पति-पत्नी अथवा नैसर्गिक संबंधी होने के बावजूद उपेक्षित भाव रखना, अपराध कारित कर घरेलू हिंसा करना
    8.     झूठी शिकायत करना  
    9.     नि:शक्तजनों के लिए  आरक्षित संवर्ग के पद तब तक रिक्त रखना जब तक योग्य अभ्यर्थी प्राप्त न हो
    10.                  प्रोन्नति में आरक्षण के प्रावधान.
    उपरोक्त हेतु संभवत: आई पी सी में भी कुछ बदलाव किया जाना संभावित होगा  
     इन बिन्दुओं पर विस्तार से उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर विमर्श किया जाकर नए उपबंध भी शामिल किये जाना चाहिए  .
    साथ ही निशक्तजन कल्याण आयुक्त के अधिकार एवं उनकी कार्यविधि बेहद प्रभावपूर्ण नहीं है उदाहरणार्थ उन तक पहुँचाने वाली शिकायतों के आधार पर ही कार्यवाई संभव है . जबकि विकलांग व्यक्ति ग्रामीण दूरस्थ क्षेत्र में भी रहता है जिसे यह नहीं मालूम कि आयुक्त तक अपनी बात किस प्रकार भेजी जावे. अत: अनुसूचित जाति, जनजाति की तरह सम्पूर्ण रूप से विकलांग व्यक्तियों के हितों के संरक्षण के लिए प्रावधान अत्यंत आवश्यक प्रतीत होते हैं .


    शनिवार, दिसंबर 12, 2015

    ओशो तुम ठहरे गाडरवारा के मैं जन्म से सालेचौका का हूँ.

    ओशो 1990 में देह त्याग 
    हम 1990 में देह के साथ  
    जीवन भर के लिए कुछ तय तो किया था पर पता नहीं ऐसा क्या हुआ हुआ कि अपने आपको असहज पा रहा हूँ . मुझे जो मिला आसानी से कभी नहीं मिला मिलता भी कैसे जो चाहिए मज़दूर को उसके लिए मज़दूरी तो करना ही चाहिए न . मुफ्त जो मिला वो तो पचेगा नहीं न .. नियति ने जो छीना उससे अधिक दे दिया कभी देने से रुका नहीं परमेश्वर मैं भी लुटाने से खुद को क्यों रोकूँ..? बताओ भला. अरे जो मुझे हासिल हुआ है वो सच में मेरा नहीं उसका दिया है . 

    एक बार बचपने में एक आध्यात्मोत्प्रेरित कविता लिखी थी 

    काश हममें सामर्थ्य होता 
    अवरोधों में बढ़ने का 
    नए स्वप्न गढ़ने का 
    और पूछने का 
    यदि तू ही है दाता 
    तो बता कौन है तेरा दाता ?
              कविता लिख गई कैसे लिखी क्यों किया इतना बड़ा सवाल जो परमेश्वर से अन्य किसी कठोर मतावलंबी करता तो उसे ईश-निंदा का दंड भोगना होता.. पर बालपन में इस कविता का लिखा जाना परमेश्वर से सवाल करना मुझे रोमांचित कर रहा है .. पर एक दिन जब डी एन जैन कालेज के सभागार में पंडित हरिकृष्ण त्रिपाठी जी ने कहा-"अप्प दीपो भव " तब जाना की परमेश्वर से किया सवाल वास्तव में मुझे इस बात के लिए प्रेरित कर रहा था कि - परमेश्वर तक कैसे जाना है...? इसी सवाल में छिपा है जीवन का रहस्य ... मुझे कुछ काम मिले हैं मुझे  करने को, कुछ सुख मिले हैं भोगने को, कुछ धड़कन मिलीं हैं ...... यानी सब तो मिला है... तो मिला नहीं है एक ज़वाब दाता के दाता कौन..?
    दाता के दाता को जानने दाता तक जाना होगा .... मारकर न भाई जीते जी उसी में मग्न होना होगा. कोई तब उसका होता है जब उसके करीब जाता है .. उसके करीबी जाने कोई बिचौलिया मुला-पंडित नहीं होता पादरी भी नहीं ये सब धार्मिक  प्रक्रिया कराते हैं उनका अधिकार है जो सामाजिक व्यवस्था ने दिया . मुझको कोई रास्ता नहीं दिखा सकता ... मेरा रास्ता मुझे चुनना है उसके पहे खोजना है .. इस जन्म में नहीं मिला ... मिलता भी कैसे इस जन्म में मैंने जीवन के सुख को सुख से दुःख को दुःख से भोगा है... होना ये था कि दौनों ही स्थितियों को निर्विकार तटस्थ भाव स्वीकारना था . तब कहीं जाकर परमेश्वर का पथ दिखाने वाली कंदील मेरे हाथ होती . 
    ओशो तुम ठहरे रायसेन के बाद गाडरवारा के मैं जन्म से सालेचौका का हूँ. तुम्हारा पीछा करते करते जबलपुर तक तो आ गया हूँ .... पर तुम आगे निकल गए . मैं अभी पीछे हूँ और रहूँगा भी . असल में तुमको जो मिला उससे अधिक मुझ पर सदगुरु ने उडेला परन्तु तुम समूचा पा गए मेरे हाथ ठहर न पाया वो अमिय.. !
    अभी दो जन्म बाद फिर मिलते हैं तब जब केवल मैं और मेरा पथ तुम और तुम्हारा पथ होगा .. परमेश्वर से मिलने के लिए. ये बिचौलिये दूर दूर तक न होंगें न तुमको कोई टार्च-विक्रेता कहेगा न मुझसे कोई प्रतिस्पर्धा रखेगा. मेरे पास विचार संचिंचित हैं तुम्हारे पास अथाह ज्ञान भी विचार भी ..... मैं सदगुरु से पा न सहा तुमसे मिल न सका ...... बच्चा था न .... 1990 तक तुम इतने दूर हो चले थे कि मैं अकिंचन कैसे मिलता...? 
    अरे हाँ याद आया ....... आपके शिष्यों से स्नेहियों से खबरें मिलतीं हैं कि तुम क्या थे ...... डी एन जैन कालेज वाले अरविन्द सर से भी जानने की कोशिश की थी पर उनने मुझे बहला दिया था .. पर  तुम्हारे समकालीन बी एस  अधौलिया जी के बेटे डा. विनोद जी  ने मुझे बेहद स्नेह से तुम्हारे बारे में बताया था .. अदभुत सम्मोहन था तुममें  वो मुझमें भी है पर अभी ज्ञान कम है जो है वो सूचनाएं हैं उसे ज्ञान नहीं कहते परमपूज्य गुरुदेव शुद्धानंद जी ने जो ज्ञान दिया वो मानस में हैं पर उस कमरे में जिसका रास्ता मुझे नहीं नज़र आ रहा आएगा पर तब जब कि मेरे हाथ में टार्च होगी .. टार्च खरीदूंगा नहीं क्योंकि परसाईपुरा वाले हंसेंगें .. जमानी हरदा टिमरनी सिराली  सब आस पास तो हैं ही काहे अनावश्यक बैरभाव बढे आनंद से अमृतघट से अमृत छक लूं फिर टार्च बनालूँगा अथवा कंदील हाथ में लेके उस कमरे को खोज ही लूंगा . फिर उस कमरे में लुकछिप के गुम हो जाऊँगा .... सब सोचेंगे मर गया तब सच मैं ज्ञान के सागर में जल क्रीडारत पाउँगा खुद को .. 
    तुम
    सच बेहद खूबसूरत हो
    नाहक भयभीत होते है 
    तुमसे अभिसार करने
    तुम बेशक़ अनिद्य सुंदरी हो
    अव्यक्त मधुरता मदालस माधुरी हो
    बेजुबां बना देती हो तुम
    बेसुधी क्या है- बता देती हो तुम
    तुम्हारे अंक पाश में बंध देव सा पूजा जाऊंगा
    पलट के फ़िर 
    कभी न आऊंगा बीहड़ों में इस दुनियां के
    ओ मेरी सपनीली तारिका
    शाश्वत पावन अभिसारिका
    तुम प्रतीक्षा करो मैं ज़ल्द ही मिलूंगा !!
                          चलते चलते एक बात साफ़ कर देना चाहता हूँ कि - दुनियाँ कायरों से अटी पड़ी है . सब कुछ अनुबंधित है ..... किसी को दर है कि उसके भगवान को दूसरा ख़त्म कर देगा तो कोई प्रतिक्रियावश गुर्राता है.. ऐसों के साथ अपना गुज़ारा संभव नहीं अब बेहतर है कि......... सम्पूर्ण शुद्धि हो ..... फिर सब के सब मिल कर पूछें - 
    यदि तू ही है दाता 
    तो बता कौन है तेरा दाता ?         

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