जब भी रीता तब करता हूँ, कोशिश फिर से भर जाने की
तुम रीत गए तो रोना
क्या – बेबाक़ सुनो मस्ताने की !
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जबजब मैं दीवाना होकर, मस्ती में झूमा करता हूँ .
जो पागल कहते हैं मुझको, मैं उनको चूमा करता
हूँ ..!
मैं प्रेम बांटने निकला हूँ .. छोडो आदत ठुकराने की !!
ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की !
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मैं सावन भीगा भीगा हूँ , तुम सब आओ इक संग भीगो
समरता की मधुशाला में , इक साथ बैठ
प्याले पीलो
जब माटी में ही मिलना हो तो क्यों आदत हो सकुचाने की,
ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की !
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जग ज़ाहिर है तुम छिप छिप के मदिरालय जाया करते हो
तुम क्या जानो कैसे कैसे , वापस फिर आया करते हो..?
निकलोगे भेस बदल के
जो , दुनिया कैसे पहचानेगी ?
ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की !
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