5.1.16

ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की !

जब भी रीता तब करता हूँ, कोशिश फिर से भर जाने की
तुम  रीत गए तो रोना क्या बेबाक़ सुनो मस्ताने की  !
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जबजब  मैं दीवाना होकर, मस्ती में झूमा करता हूँ .
जो पागल कहते हैं मुझको, मैं उनको चूमा करता हूँ ..!
मैं प्रेम बांटने निकला हूँ .. छोडो आदत ठुकराने की !!
ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की  !
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मैं सावन भीगा भीगा हूँ , तुम सब आओ इक संग भीगो
समरता की मधुशाला में , इक साथ बैठ प्याले पीलो  
जब माटी में ही मिलना  हो तो क्यों आदत हो सकुचाने की,
ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की  !
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जग ज़ाहिर है तुम छिप छिप के मदिरालय जाया करते हो
तुम क्या जानो कैसे कैसे , वापस फिर  आया करते हो..?
निकलोगे भेस  बदल के जो , दुनिया कैसे पहचानेगी ?  
ये बात सुनो मस्ताने की, बेबाक़ सुनो मस्ताने की  !
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