आज मेरी नज़र नियम एवं अधिनियम ब्लॉग पर पडी जहां विकलांग व्यक्तियों के अधिकार को लेकर एक आलेख है जो 2009 में प्रकाशित हुआ है . जिसमें विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों के लिए बनाए गए अधिनियम में विकलांग
व्यक्तियों को आधारभूत अधिकारों का विस्तार से विवरण दिया है . किन्तु मेरी नज़र में यह अनुसूचित संवर्गों के हितार्थ बनाए कानूनों के सापेक्ष उतना प्रभाव-पूर्ण नहीं जितना कि अपेक्षा थी . अत: अधिनियाँ एवं उसके नियमों में कुछ आवश्यक परिवर्तन वांछित हैं. यद्यपि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 में काफी
हद तक सुधार किया है किन्तु जिन बिन्दुओं पर संसोधन के लिए ध्यान आकृष्ट कराया जा रहा है जो दौनों ही अधिनियमों को कारगर एवं प्रभावी बना
सकते हैं
वास्तव में इस अधिनियम की प्रभावशीलता अत्यधिक लाभप्रद नहीं है. परन्तु ऐसा नहीं कि रोज़गार को लेकर अधिनियम का प्रभाव कमजोर रहा है . शासकीय रिक्त पदों की पूर्ती के मामलों में इसे अधिनियम से अभूतपूर्व सफलता मिली है. किन्तु सामाजिक संरक्षण के मामले में पीडब्ल्यू अधिनियम 1995 अधिक प्रभाव साबित नहीं कर पाया है. अतएव इस मुद्दे पर पुनर्विचारण बेहद आवश्यक है.
उपरोक्त अधिकारों भारत में
सामान रूप से सभी को प्राप्त है . किन्तु उनके शोषण एवं उनको अपमानित करने के
अपराधों , भीख माँगने के लिए बाध्य करने, कार्य-क्षेत्र में उत्पीड़न , एवं योग्यता
संवर्धन के मुद्दों पर अधिनियम में अतिरिक्त प्रावधानों की आवश्यकता का विश्लेषण
नहीं है .
मान्यवर निवेदन है कि अधिनियम
में निम्नानुसार बिन्दुओं को समावेशित करने हेतु सादर प्रार्थना है
1.
शारीरिक एवं मानसिक
यंत्रणा देना / देने के लिए संप्रेरित करना
2.
विकलांगों के विरुद्ध
आपराधिक षडयंत्र करना
3.
सार्वजनिक / सामूहिक / एकल
रूप से उपहासित करना
4.
विकलांग व्यक्तियों से
विद्वेष रखना, एवं विद्वेष-पूर्ण वातावरण निर्मित करने में सहयोग करना.
5.
अपाहिज द्वारा प्राप्त सभी
अर्जित संपदा चल-अचल संपत्ति को छल,कपट
पूर्ण तरीके से हासिल करना क्रय करना.
6.
अधीनस्त / समक्ष / वरिष्ट विकलांग कर्मियों के विरुद्ध दुर्व्यवहार करना
7.
पति-पत्नी अथवा नैसर्गिक
संबंधी होने के बावजूद उपेक्षित भाव रखना, अपराध कारित कर घरेलू हिंसा करना
8.
झूठी शिकायत करना
9.
नि:शक्तजनों के लिए आरक्षित संवर्ग के पद तब तक रिक्त रखना जब तक योग्य
अभ्यर्थी प्राप्त न हो
10.
प्रोन्नति में आरक्षण के प्रावधान.
उपरोक्त हेतु संभवत: आई पी
सी में भी कुछ बदलाव किया जाना संभावित होगा
इन बिन्दुओं पर विस्तार से उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर विमर्श किया जाकर नए उपबंध
भी शामिल किये जाना चाहिए .
साथ ही निशक्तजन कल्याण आयुक्त के अधिकार एवं उनकी कार्यविधि बेहद प्रभावपूर्ण नहीं है उदाहरणार्थ उन तक
पहुँचाने वाली शिकायतों के आधार पर ही कार्यवाई संभव है . जबकि विकलांग व्यक्ति
ग्रामीण दूरस्थ क्षेत्र में भी रहता है जिसे यह नहीं मालूम कि आयुक्त तक अपनी बात
किस प्रकार भेजी जावे. अत: अनुसूचित जाति, जनजाति की तरह सम्पूर्ण रूप से विकलांग
व्यक्तियों के हितों के संरक्षण के लिए प्रावधान अत्यंत आवश्यक प्रतीत होते हैं .