निर्भया तुम ज्योति बनी
परन्तु बहुत देर हो जब तक तुम्हारे-ताप से पत्थर पिघले तब तक तुम्हारा क्रूर
अपराधी सिलाई मशीन लेकर तार तार हुए दिलों
के पर सुइयां चुभाने की कोशिश में लग जाएगा . फिर भी तुम्हारी वज़ह से पत्थर पिघले ....
चली गईं पर तुम्हारे बलिदान ने देश को अप्रतिम उपहार दिया है ..... क्या कहूं
नि:शब्द हूँ ..... अब एक भी अक्षर लिखना मेरे लिए भारी है ....... नमन बेटी
............
( जुविलाइन जस्टिस अधिनियम संशोधन पर त्वरित टिप्पणी )