भूमंडलीकरण के भयावह दौर और गदहे-गदही के संकट



भूमंडलीकरण के भयावह दौर में गधों की स्थिति बेहद नाज़ुक एवम चिंतनीय हो चुकी है . इस बात को लेकर समाज शास्त्री बेहद चिंतित हैं. उनको चिंतित होना भी चाहिये समाजशास्त्री चिंतित न होंगे तो संसद को चिंतित होना चाहिये. लोग भी अज़ीब हैं हर बात की ज़वाबदेही का ठीकरा सरकार के मत्थे फ़ोड़ने पे आमादा होने लगते हैं. मित्रो  -"ये...अच्छी बात नहीं..है..!"
सरकार का काम है देखना देखना और देखते रहना.. और फ़िर कभी खुद कभी प्रवक्ता के ज़रिये जनता के समक्ष यह निवेदित करना-"हमें देखना था , हमने देखा, हमें देखना है तो हम देख रहे हैं ".. यानी सारे काम देखने दिखाने में निपटाने का हुनर सरकार नामक संस्था में होता है. जी आप गलत समझे मैं सरकार अंकल की बात नहीं कर रहा हूं.. मै सरकार यानी गवर्नमेंट की बात कर रहा हूं. हो सकता है सरकार अंकल ऐसा कथन कहते हों पर यहां उनको बेवज़ह न घसीटा जाये. भई अब कोई बीच में बोले मेरी अभिव्यक्ति में बाधा न डाले.. रेडी एक दो तीन ......... हां, तो अब पढिये अर्र तुम फ़िर..! बैठो.... चुपचाप..  तुमाए काम की बात लिख रहा हूं..तुम हो कि जबरन .. चलो बैठो.. 
               
अब इनको  बैसाखीय सुख कहां मिलता है आज़कल ?
   हां  तो मित्रो मित्राणियो .. मैं कह रहा था कि  
भूमंडलीकरण के भयावह दौर में गधों की स्थिति बेहद नाज़ुक एवम चिंतनीय हो चुकी है . इस बात को लेकर समाज शास्त्री बेहद चिंतित हैं. चिंता का विषय है कि  गधों को अब सावन के सूर की तरह हरियाली ही हरियाली  नज़र आती है.. चारों ओर का नज़ारा एक दम ग्रीन नज़र आता है.. और आप सब जानते ही हैं कि बेचारे ग्रीनरी में सदा भूखे रह जाते हैं उनके अंग खाया-पिया कुछ भी नहीं लगता . जबकि उनको कम से कम बैसाख में तो उनके साथ इतना अत्याचार नहीं होना चाहिये.अब ज़रूरी है कि  सरकार इस ओर गम्भीरता से विचार करे ऐसा मत है समाज शास्त्रियों का. 

                            मित्रो आप को मेरी बात अटपटी लग रही है न .? तो ऐसे दृश्य की कल्पना कीजिये जिसमें आप सपत्नीक अपनी आंखों की हरियाई दृष्टि से अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाने खड़े  हों और स्कूल की फ़ीस इतनी ज़्यादा हो कि आपको गश आ जाये..  है न ..  आपकी आत्मकथा सी कहानी उस गधे की ..जिसे हरियाली दिखाई जाती है.. पर हासिल कुछ भी नहीं होता.. यहां तक की बैसाख में सूखी घास भी नहीं. 
                       अगर सरकार ने गधों के हितों के बारे में सोचना शुरु कर दिया तो  आपके बारे में कौन  सोचेगा..!
              सरकार करे  क्या करे,  सरकार के सामने कई सारी समस्याएं हैं जैसे सी ए जी , बी सी सी आई, थ्री जी चीनी  सैनिक पाकिस्तानी उधम बाज़ी, . और निपटने इच्छा शक्ति..सब को मालूम है
          और आप हो कि ये हल्की फ़ुल्की समस्या लेके सरकार के पास आ जाते हो.. स्कूल में दाखिला कराना आपका निर्णय है काहे सरकार को इत्ती बात में घसीटते हो भाई.   उसके पास न तो दाखिला फ़ीस कम कराने के कोई नियम हैं न ही क़िताबों के बोझ कम कराने के लिये कोई तदबीर. भारत को  विश्व के विकसित देशों के पासंग बैठना है तो सरकार को अपनी साइज़ तो कम करनी ही है.और आप हो कि सरकार को खींच खीच के बढ़ा रये हो.. 
              अब आप ही बताईये आपकी और आपके सहोदर की  पूरी पढाई जितनी रक़म में हो गई उससे दूनी तो आपके मुन्ने को एक क्लास में लग जाएगी. बेचारी सरकार सोचे क्यों ! डिसाइड आपने किया आप तय करो पैसा किधर से लाओगे 
             आप भी न अज़ीब बात करते हो सरकार को स्कूल कालेज़ की दाखिला फ़ी में सब्सिडी देना चाहिये.. हुर हुत्त.. कल आई पी एल की टिकट पर सब्सिडी की मांग करोगे. 
                      अरे हां रामदेव महाराज जी  एक बात याद आई आप स्विस से पैसा मंगाना चाह रहे थे न किसी से न कहियो एक तरीका बताय देता हूं.. आप की सुन ली जावे तो सरकार से आई.पी. एल. की कमाई को राज़कोष में जमा करने की मांग कर दैयो महाराज..
                          तब तक हम गधे और मनुष्य प्रजाति को समझाना जारी रखते हैं..
   हां तो मित्रो   सरकार को बड़ी समस्याओं के बारे में सोचने दो.. गधों और हमारे लोगों के  बारे में समाजशास्त्रीगण सोचेंगे. हालांकि दौनों के पास सिर्फ़ सोचने के अलावा कोई चारा नहीं है. पर बच्चन सुत महाराज बोलते थे टीवी पर  सोचने से आईडिये आते हैं और एकाध धांसू टाइप आईडिया आया कि आपकी और गधे की ज़िंदगी में भयंकर बदलाव आ जाएंगे.. ये बदलाव देश को क्या जींस तक को बदल देंगे आज़ आप लेविस की जींस पहन रहें हैं हो सकता है कल गधे जी..... हा हा 
छोड़ो भाई बताओ मज़ा आया कि नहीं.. नही आया तो पढ़ काय रये हो.. जाओ बाहर आई. पी एल चालू हो गया.. पट्टी लिखवा दो.. हा हा         

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