फ़ोटो साभार "इधर से" |
साले कुत्ते की मौत मरेगा.. !,
उसे तो कुत्ते की मौत मरना चाहिये... अक्सर ये कोसन-मंत्र का
उच्चारण रोजिन्ना सुनाई देता है. पर अगरचे कोसने वाले लोग हमारे ठाकुर सा’ब से मिले होते तो साले कुत्ते की मौत मरेगा..
!, उसे तो कुत्ते की मौत मरना चाहिये..किंतु ठाकुर सा’ब के कुत्ते की मौत नहीं.कारण साफ़ है कि
ठाकुर सा’ब का कुत्ता कुत्ता न होकर उनका पारिवारिक सदस्य बन
चुका था. वज़ह ठाकुर साब न थे वरन ठकुराइन जी की पारखी आंखें थीं . ये अलहदा
बात है कि ठाकुर सा’ब को चुनने में उनकी आंखें धोका खा गईं
थीं पर इसका दोष ठकुराइन
जी का न था ... ठाकुर सा’ब का चुनाव पारिवारिक इंतखाब था वोटें इन्ही सु.प्र. ठाकुर को मिलीं. चलिये ठाकुर साब को छोड़िये कुत्ते पर आते हैं..
"यूं तो वो देसी कुतिया एवम सरकारी अफ़सर के विदेशी कुत्ते के
मिलन का परिणाम यानी अर्ध्ददेशी नस्ल का किंतु उसे जैकी नाम देकर उसका अंग्रेज़ीकरण किया जाना श्रीमति ठाकुर का ही काम रहा होगा वरना एक मेव स्वामी होने का एहसास उनको कैसे होता. ठाकुर सा’ब को वे सुनते हो,
ये,
वो,
हां..जी... सर्वनामों से सम्बोधित करतीं थीं किंतु जैकी को
पूर्ण स्नेह के
साथ जैकी का सम्बोधन कर बुलाने वाली ठकुराइन ने अपने बगल
वाले कमरे में एक
बिस्तर जैसा कि आमतौर पर किशोरवय संधि पर आने वाले बच्चों
के लिये बड़े घरों
में होता है लगवा दिया.
जब ठकुराइन जी जैकी को लाईं थीं तब एक पालना एन उनके बाजू में लगा था. ठाकुर सा’ब की मज़ाल क्या कि वे इस अगाध स्नेहिल वातावरण में निमिष मात्र बाधा उत्पन्न करते
एक दिन
...
ठकुराइन-
ए जी, सुनते हो..?
ठाकुर
सा’ब - वो ही तो काम है मेरा.. बोलो !
ठकुराइन-
जैकी अब बड़ा हो चला है..
ठाकुर
सा’ब - तो ?
ठकुराइन-
उसे बाजू वाले कमरे में रखूंगी तुम अब बैठक के पीछे वाले कमरे को ड्रिंक्स-रूम बना
लो !
ठाकुर
सा’ब (बुदबुदाए ) जो आदेश,
हमारी दशा कुत्ते से बदतर हो चली है अब..
ठकुराइन-
क्या कहा... ?
ठाकुर सा’ब- कुछ नहीं .. हम कह रहे थे आखिर कुत्ता भी तो प्राणी ही होता है.. बताओ युधिष्टिर महाराज उसे स्वर्ग तक ले गए थे.. भाईयों को छोड़ कर.. हम तुम्हारे जैकी को एक कमरा नहीं दे सकते क्या.. ?
अर्वाचीन प्रसंगों पर पुरातन प्रसंगों की पुनरावृत्ति
से माहौल कुछ सामान्य हुआ वरना ठाकुर सा’ब की फ़ज़ीहत तो तय थी.
समय के साथ उम्र जरावस्था की ओर ले जा रही थी सभी को
ठाकुर सा’ब भी बेहद
गर्व महसूस करने लगे जैकी पर जब उनने सुना कि अस्थाना सा’ब ने
कहा है कि -
हे प्रभू,
अगला जन्म अगर कुत्ते का देना हो तो मुझे ठाकुर सा’ब का
कुत्ता
बना. क्या ठाठ हैं भाई उसके.. !!-
ठाकुर
सा’ब बताते हैं कि अस्थाना साब का यह वक्तव्य उनकी उम्र में बढ़ा देता है..!! .
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आज़
अचानक ठाकुर सा’ब मिले बोले- जबलपुर जाओगे ..?
हम-
हां, चलोगे क्या आप भी...?
ठाकुर सा’ब हमारी आल्टो में लद गए जबलपुर वापस आने के लिये. रास्ते में हमसे पूछने लगे कि भई पिछले महीने छुट्टी पे थे क्या ? दिखाई नहीं दिये.
हम
बोले - जी भंडारी हास्पिटल में थे हम ,
निमोनिया हो गया था.
बस अस्पताल निमोनिया बीमारी का सूत्र पकड़ कर ठाकुर सा’ब के मुंह से एक लम्बी एम. पी. थ्री फ़ाइल चालू हो गई.. ठाकुर साब शुरु हो गये .. हमारा जैकी भी निमोनिया की वज़ह से प्रभू को प्यारा हुआ.
हम-
जैकी..?
ठाकुर
साब- हां हमारा कुत्ता..
और बिना इस बात की परवाह किये ठाकुर सा’ब की एम. पी. थ्री फ़ाइल चालू .वो सब सुनाया जो पहले भाग में हम आपको बता चुके हैं. फ़िर शहपुरा आते ही चाय
पीकर और तरोताज़ा हो बताने लगे कि -
भाई जैकी के इलाज़ पर दो लाख रुपया खर्च हो गया
हम-
जैकी..का इलाज़ दो लाख..
ठाकुर
सा’ब- हां भई हां दो लाख ...
एक सन्नाटा कुछ देर के लिये पसरा हमने ड्रायवर को देखा वो मुंह झुकाए हंस रहा था हम ने खुद पे काबू पाया हम उनकी चुप्पी तुड़वाने के लिये मुंह खोल ही रहे थे कि श्रीमान जी बोले- यार बिल्लोरे, क्या
रोग न था उसे..
हार्ट अटैक ,
सुगर,
बी.पी. सब कुछ तो था. बाकायदा रात बिरात डाक्टर एक फ़ोन पे हाज़िर हो जाते थे . उसके हार्ट का आपरेशन तक करा डाला ..अरे हां उसको मोतिआ बिंद भी था. लेकिन मरा वो निमोनिया.. से..!!
निमोनिया
से...?
हां उसके कमरे का ए सी ज़रा हाई था. तुम्हारी भाभी
बाहर गईं थीं. कोई घर पर न था वैसे भी वो बीमार चल रहा था. नौकर चाकर में इत्ती अकल कहां.. ए सी तेज़ कर दिया (मैं मन में सोच रहा था कि नौकर चाकर अक्लवान रहे होंगे तभी तो ईर्ष्यावश ऐसा किया उनने )
बस दूसरे दिन
से जैकी लस्तपस्त तुम्हारी भाभी को फ़ोन लगाया उस वक्त वो
दार्जलिंग में
थीं. प्रायवेट एयर टेक्सी से भागी भागी आईं .. मैं उस वक्त
जबलपुर न आ सका
वापस सरकारी नौकर की दशा तो तुम जानते ही हो.. पंद्रह दिन
इलाज़ चला पर
निमोनिया के लिये उस वक्त ऐसे इलाज़ भी तो न थे अब बताओ तुम
पंद्रह दिन में
ठीक हो गए न.. ?
जी में आया कि ठाकुर सा’ब को गाड़ी के बाहर ढकेल दूं.. पर बात बदलते हुये हम बोले- सा’ब, कुत्ता ही था न काहे इतना परेशान थे.. आप लोग..?
क्यों न होते,
वो तो किसी ऐरे-गैरे का कुत्ता तो न था.. सु.प्र. ठाकुर
का था. जानते हो एक बार उसका दिल एक हमारे बड़े बाबू
की कुतिया पे आ गया..
मैडम समझ गईं बोलीं गुप्ता जी को समझा दो कि वो रानी को
बांध के रखें. वो
आज़कल अपने दरवाज़े चक्कर लगाती है जैकी भी कूं कूं कर बाहर
भागने को करता
है. जब गुप्ता जी की कुतिया की हरकतें ज़्यादा बढ़ने लगीं तो
हमने उनका
तबादला कर दिया.जिले से बाहर . और सुनो उस कुत्ते की खासियत
ये थी कि जब हम
पति-पत्नि लड़ाई झगड़ा करते तो वो हमारी तरफ़ मुंह कर गुर्राया
करता था. क्या
मज़ाल कि हमारे घर में कोई मेहमान किचिन में घुस जाए. केवल
महाराजन को बिना
ठकुराइन के किचिन में घुसने देता था. नौकर चाकर अगर
तिनका भी फ़ैंकने जाएं
तो जैकी को दिखाना ज़रूरी होता था.
जब वो मरा तो ठकुराइन की गोद में उसके लिये इंसानों की तरह कर्मकांड करवाया..
अंतिम संस्कार के बाद पूरी क्रियाएं छैमाह तक..
इस बीच हम जबलपुर आ चुके थे ठाकुर सा’ब को
उनके बताए अड्डे
पे उतारा और फ़िर आज़ तक सोच रहें हैं कि - जैकी के मरने के
बाद अंतिम
संस्कार करने वाले ठाकुर सा’ब ने मुंडन कराया था कि नहीं.. या वे पितृपक्ष में उसके नाम की धूप डालते हैं कि नहीं. अगली बार फ़िर जैकी को लेकर ठाकुर साब को उकसाऊंगा. अनुत्तरित सवालो के ज़वाब ज़रूर मिलेंगे......... क्योंकि ठाकुर सा’ब एक बड़ी लम्बी चटाई बिछाते हैं. कोशिश करूंगा कि वे गया जी जाकर कुत्ते का अंतिम श्राद्ध कर दें.