22.6.15

मुझे चट्टानी साधना करने दो

 रेवा तुम ने जब भी
तट सजाए होंगे अपने
तब से नैष्ठिक ब्रह्मचारिणी चट्टाने मौन हैं
कुछ भी नहीं बोलतीं
हम रोज़ दिन दूना राज चौगुना बोलतें हैं
अपनों की गिरह गाँठ खोलते हैं !
पर तुम्हारा सौन्दर्य बढातीं
ये चट्टानें
  हाँ रेवा माँ                                          
ये चट्टानें  बोलतीं नहीं
कुछ भी कभी भी कहीं भी
बोलें भी क्यों ...!
कोई सुनाता है क्या ?
दृढ़ता अक्सर मौन रहती है
मौन जो हमेशा समझाता है
कभी उकसाता नहीं
मैंने सीखा आज
संग-ए-मरमर की वादियों में
इन्ही मौन चट्टानों से ... "मौन"
देखिये कब तक रह पाऊंगा "मौन"
इसे चुप्पी साधने का
आरोप मत देना मित्र
मुझे चट्टानी साधना करने दो
खुद को खुद से संवारने दो !!

 

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