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मंगलवार, दिसंबर 10, 2013

सुनो सूरज तुम जा रहे हो.. मैं भी चलता हूं..

सुनो सूरज
तुम जा रहे हो..
मैं भी चलता हूं..
तुम्हारी मेरी
हर एक शाम
एक अनुबंधित शाम है
तुम भी घर लौटते हो
रोजिन्ना मैं भी घर लौटता हूं..!
धूल सना मैं..
लिपटते हैं बच्चे मुझसे
द्वारे से आवाज़ सुनाई देती है
मुन्नू बाबू आ गये...?
ज़वाब मैं देता हूं-"हां, हम आ गये !"
तब हाथ-पानी की सौंधी खुशबू वाली रोटीयां
सिंक रही होतीं हैं..
प्याज़.. नमक... वाली रोटीयां.. हरी-मिर्च के साथ
बहुत स्वादिष्ट होतीं हैं.
दिन भर की थकन मिट जाती है
भूख के साथ ..
अबके हाट से साग-भाजी ले आने का वादा
कर देता हूं कभी कभार
ले भी आया हूं कई बार .
पर वो कहती है...
खरच कम करो
बच्चों के लिये कुछ बचा लो
सिरपंच रात को बैठक में
रोजी के  नये रास्ते बताता है.
कर्ज़ के फ़ारम भरवाता है.
सरकार का संदेश सुनाता है.
ये सब कुछ समझ नहीं आता है..
लौटता हूं फ़ारम लेकर
मुन्नू-मुन्नी को दे देता हूं नाव-हवाई जहाज़-फ़िरकी बनाने
मुझे मालूम है कित्ते चक्कर लगाने पड़ते हैं कर्ज़ के लिये..
मिलता भी तो आधा-अधूरा
फ़िर कर्ज़ का क्या करूंगा
खेत में पसीना बोता हूं..
चैन से खाता-पीता और सोता हूं..
सूरज तुम शायद चैन से सो पाते हो या नहीं..
मेरी तरह... 

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